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मुकम्मल ख़्वाब

कवयित्री
पारुल शमाा
मुकम्मल ख़्वाब

प्रकाशकः OnlineGatha – The Endless Tale


पताः सी -2, तृतीि तल, खुशनुमा कॉम्पलेक्स, मीरा बाई मार्ा,
हजरतर्ंज, लखनऊ, उत्तर प्रदेश 226001
संपकाः +91-9936649666
वेबसाइट: www.onlinegatha.com
ISBN: 978-93-86915-88-7
मूल्य: 159 / -
वर्ा: 2019
© सभी अयिकार कॉपीराइट सहहत लेखक के साथ आरक्षित है।

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ऑनलाइनर्ाथा पुस्तक प्रकाशन का एक संर्ठन है।


िह स्थान ऑनलाइन साहहत्यिक, शैिणिक और वैज्ञायनक दुयनिा
में एक क़दम है । िह कार्ज़ी प्रतत की रचनाओं को ऑनलाइन
दुयनिा से जोड़कर काम करता है ।

िह पुस्तक सद्भावना में प्रकाशशत की र्ई है कक लेखक


का कािा मौशलक है । पुस्तक को त्रुकट मुक्त करने के शलए सभी
प्रिास ककए र्ए हैं । पुस्तक का कॉपीराइट लेखक के पास
अनुरक्षित है और इस पुस्तक का कोई भी हहस्सा प्रकाशक और
लेखक की शलखखत अनुमतत के बबना ककसी भी तरीके से पुनः उत्पन्न
नहीं ककिा जा सकता है ।

ii
मुकम्मल ख़्वाब

िन्यवाद

मेरी पुस्तक ‘‘मुकम्मल ख्वाब’’ के ख्वाब को मुकम्मल


करने में मेरे माता-कपता का कवशेर् िोर्दान रहा है ।
मेरे दादा जी एवं पूरे पररवार के प्यार और आशीवाद से िह
कािा करना सम्भव हो पािा है।
मेरे यमत्रों ने भी बहुत सहिोर् हदिा है।
सभी के शलए हृदिमिी आभार

-शजद्दी पारुल

iii
मुकम्मल ख़्वाब

‘‘मुकम्मल ख्वाब”

पुस्तक ‘‘मुकम्मल ख्वाब’’ में असफलता से


सफलता की ओर बढ़ाने वाली ककवताओं का संग्रह है।
तथा प्रततकूल पररस्थस्थततिों में कहठनाइिों का सामना
करके जीवन को कैसे सरल बनािा जािे, इस पर
मुख्य रूप् से ध्यान केन्द्रित ककिा र्िा है। कुछ लोर्ों
का मत है कक जीवन बहुत कहठन है परन्तु सकारात्मक
नजररिा से दे खा जाए तो जीवन से खूबसूरत भी कुछ
नहीं है।

इस पुस्तक में ककवता संग्रह (जो बहुत सरल


और सुसज्जित भार्ा में शलखी र्ई है) का अध्यिन
करके आपका दृखिकोि सकारात्मक हो जाएर्ा तथा
ख्वाबों को मुकम्मल करने के शलए एक निी हदशा
यमलेर्ी। यनदा फाज़ली जी की एक पंयक्त का विान कर
रही हूँ।

‘‘कभी ककसी को मुकम्मल जहाूँ नहीं यमलता’’

इस पंयक्त में भी कवयित्री ने सकारात्मकता


खोज कर इस पुस्तक का नाम मुकम्मल ख्वाब रखा

iv
मुकम्मल ख़्वाब

है तथा ककवताओं को भी मुकम्मल होते सपनों के रूप


में दशाािा है–

शसकवल सेवा अभ्यथी िा कवणभन्न प्रततिोर्ी


परीिाओं की तैिारी करने वाले अभ्यतथििों के शलए भी,
िे पुस्तक प्रेरिा शसद्ध होर्ी।

- शजद्दी पारुल
E-mail – Ziddiparul@gmail.com

v
मुकम्मल ख़्वाब

शशक्षिका
डॉ. रश्मि र्ुप्ता

vi
मुकम्मल ख़्वाब

समपाि

मेरी प्रथम पुस्तक ‘‘मुकम्मल ख्वाब’’ मैं


अपनी कप्रि शशक्षिका (डॉ. रश्मि र्ुप्ता मैम) को
समकपित कर रही हूँ ।

हडिर मैम,

आप के प्यार और आशीवााद से खुद को


लेखन में सिम पािा है, आपके बबना मेरे द्वारा ककताब
शलखा जाना तो क्या, कलम उठाना भी संभव नहीं था।
आप मेरे जीवन में एक रोशनी बन कर आई हो !

आपके बारे में शजतना शलखूूँ उतना कम है मेरे


शब्दकोर् में वो शब्द नहीं, जो आपको समकपित कर
सकूूँ। मेरी कलम और शब्द आपके व्ययक्तत्व के विान
में खुद को असमथा पाते हैं। मेरी कलम और शब्द दोनो
नर्ण्य है ।

िह पुस्तक मेरी शशक्षिका डाूँ॰ रश्मि र्ुप्ता मैम


को समकपित है जो मेरी असफलता में भी उम्मीद की
ककरि के साथ सफलता देखती हैं और बार-बार यमली
असफलताओं के बाद भी मुझ पर कवश्वास करती हैं।

vii
मुकम्मल ख़्वाब

‘‘मैं हूँ आपकी जादू


आप मेरी सूिा का प्रकाश हो’’

- आपकी शज़द्दी पारुल

viii
मुकम्मल ख़्वाब

‘‘हडिर मैम’’

आपने एक निा रास्ता हदिा है


मैं भी कुछ कर सकती हूँ
मुझे िे बता हदिा है
आप मेरे पास नहीं हो
लेककन हमेशा मेरे साथ हो
शजसकी कोई पहचान नहीं थी
उसको भी पहचान दी है
मुझे नहीं पता था कुछ भी
कक मैं क्या कर सकती हूँ
क्या करूूँ िे आपने बता हदिा है
स्पने सच में कैसे बदलते हैं
समझा हदिा है
मुझे आज तक नहीं समझ पािा कोई
आपने मेरे अतीत को समझकर
मुझे भकवष्य समझा हदिा है
वादा करके, हमेशा मेरे साथ रहने का
मुझे एक निी शज़न्दर्ी दी है ।

- आपकी शजद्दी पारुल

ix
मुकम्मल ख़्वाब

कवयित्री

पारुल शमाा

x
मुकम्मल ख़्वाब

अनुक्रमणिका
इं सायनित .............................................................. 1

भाग्य तुम्हारा .......................................................... 2

सब्र करो ................................................................ 3

हवा के साथ चलना सीख ......................................... 4

मन की खखड़की खोल ............................................... 6

हाथ तो बढ़ाओ ....................................................... 7

हमने कोशशश बहुत की ............................................. 8

शज़न्दर्ी नाराज़ मत हो ............................................. 9

मेरी आदशा ........................................................... 10

जीवन की पररभार्ा ................................................ 12

(1) .................................................................... 12

(2) ................................................................... 14

इतना मत सोचा करो ............................................. 15

दृढ़ यनश्चि ........................................................... 17

मैं और मेरे सपने................................................... 19

टू टा ख्वाब ........................................................... 24

असफलता से सफलता की ओर ............................... 25

एक मौका सभी को यमलता है ................................. 28

xi
मुकम्मल ख़्वाब

इन्तज़ार है मुझे ..................................................... 29

रास्ता िुि
ूँ में भी रोशन है ....................................... 30

चाूँद के साथ टहलने यनकले .................................... 31

वाह! शज़न्दर्ी ........................................................ 32

शज़न्दर्ी ............................................................... 34

चलो उठो............................................................. 38

उम्मीदें ................................................................. 41

संघर्ा ................................................................... 43

चारों हदशाओं में .................................................... 45

माूँ की िाद .......................................................... 47

प्रश्न . . . . . . ..................................................... 49

पहाड़ की पुकार ..................................................... 51

जीत का उद्घोर्...................................................... 52

जीत को लड़ जािेंर्े ............................................... 53

मंशज़लें इं तजार करती हैं .......................................... 54

हार-जीत .............................................................. 55

तन्हा पेड़ .............................................................. 56

उड़ चले ............................................................... 59

फूँस र्ए है ........................................................... 61

xii
मुकम्मल ख़्वाब

सपनों में आर् ...................................................... 62

कहानी चलती रहती है ............................................ 64

कौन चलेर्ा साथ हमारे .......................................... 65

शचहड़िा घर से यनकली है ........................................ 67

एक निा संघर्ा है जीवन ......................................... 68

आईने से िारी रख ................................................ 69

ककवताएूँ शज़िंदा रहती है ........................................... 70

शज़द्दी ................................................................... 71

पंख टू टे हैं ............................................................ 73

छािा ................................................................... 75

साथ चलो ............................................................ 78

बन्दे मत मान हार ................................................. 79

टू टा शसतारा ......................................................... 80

मेरा सपना ........................................................... 81

पीड़ पराई ............................................................. 83

परींदे ................................................................... 84

िूप ..................................................................... 85

रास्ते ................................................................... 86

दस्तक देकर देखे ................................................... 89

xiii
मुकम्मल ख़्वाब

हमने हदल में ठानी है ............................................. 91

मैं इतना तो कर सकती हूँ ....................................... 92

सपना देखा .......................................................... 93

शज़न्दर्ी की दौड़ .................................................... 95

िीरज रखखिे ......................................................... 97

बस की खखड़की से ................................................ 98

रं र्...................................................................... 99

आखखर कहाूँ ....................................................... 101

कहानी शलख रही हूँ .............................................. 104

सपनों में जीना मरना ........................................... 107

दूर .................................................................... 109

मन की आशा ..................................................... 110

राही .................................................................. 111

तततशलिाूँ - ख्वाब ............................................... 112

नजर अंदाज़ ....................................................... 115

भार्ा ................................................................. 118

निे रास्ते ........................................................... 120

कमरे की चीजें .................................................... 121

टू टी - बबखरी चीजें ............................................. 123

xiv
मुकम्मल ख़्वाब

ककस सोच में पड़े हो ............................................ 125

# DEAR MA’AM ............................................ 126

# DEAR MA’AM ............................................ 127

समझौता नहीं करना ............................................ 128

हफा-हफा शलखा है ................................................. 130

कोशशश करते रहहए .............................................. 131

आत्मा आवाज़ देती है ........................................... 132

कभी मैं शब्द शलखती थी ...................................... 133

एक हदन तुम भी देखोर्े........................................ 134

उम्मीद नहीं छोड़ी है ............................................. 135

रोज एक ख़्वाब टू ट जाता है .................................. 136

शज़न्दर्ी तू कहाूँ खो र्ई........................................ 137

इरादा करके देखो ................................................ 138

आओ चाि कपए .................................................. 139

हमसे पहचानने में भूल हुई .................................... 141

xv
इं सायनित

शब्दों के ममा को समझने के शलए


मानव होना जरूरी है
मानव होने के शलए मानव नहीं
भावनात्मक होना जरूरी है
भावनाओं को समझने के शलए

शरीर नहीं, रूह का होना जरूरी है

रूह को समझने के शलए जरूरी


नहीं कक आध्यात्मत्मक हो
यनस्वाथा प्रेम का होना जरूरी है
यनस्वाथा प्रेम जरूरी नहीं कक
परमात्मा से ही हो
जीवात्मा से होना जरूरी है

यनस्वाथा प्रेम के शलए, लर्ाव ही नहीं


सवाप्रथम इं सायनित का होना जरूरी है !!

******
मुकम्मल ख़्वाब

भाग्य तुम्हारा

भाग्य तुम्हारा, तुम ही शलखोर्े

कोई और न शलखने आिेर्ा


तुम स्विं ति करोर्े रास्ते
कोई और न चलने आिेर्ा
तुम स्विं ही रचोर्े इततहास
कोई और न रचने आिेर्ा
तुम खुद ही बना सकते हो

एक ऐसा ररकाडा , शजसे

कोई तोड़ न पािेर्ा


तुम खुद ही बदल सकते हो वक्त
कोई और बदल न पािेर्ा

भाग्य तुम्हारा, तुम ही शलखोर्े

कोई और न शलखने आिेर्ा !!

******

2
मुकम्मल ख़्वाब

सब्र करो

सब्र कर,
तुझे भी पहचान यमलेर्ी
कुछ दे र से सही
लेककन जरूर यमलेर्ी

पहचानेर्ी तुझे दुयनिा


तेरे नाम से
होंर्े सभी प्रेररत
तेरे काम से

क्रेज होर्ा तेरा


फैन-फौलोकविंर् यमलेर्ी
शज़द्दी शसफा टै र् ही नहीं
इसको ब्रांड के रूप में
जरूर पहचान यमलेर्ी
सब्र कर
तुझे भी पहचान यमलेर्ी !!

******

3
मुकम्मल ख़्वाब

हवा के साथ चलना सीख

हदल मेरा कहता


हवा के साथ चलना सीख
लीक से हटकर
कुछ करना सीख
होकर दुयनिा से अलर्
कुछ करना सीख
बनािे रास्ते पर
सब चलते है
तू पथ का यनमााि सीख
तू पथ का यनमााि सीख
हदल मेरा कहता
हवा के साथ चलना सीख
बहकर चारो हदशाओं में
तू र्र्न को छूना सीख
तू स्विं लड़ना सीख
खुद से हार, खुद से जीत
हदल मेरा कहता
हवा के साथ चलना सीख।

******

4
मुकम्मल ख़्वाब

मेहनत कर

मेहनत कर मंशज़ल को पा
ख्वाबों को तू हफर से उठा
जुनून को तू हफर से जर्ा
मेहनत कर मंशज़ल को पा
बबन मेहनत के मुकाम नहीं
पथ में राही आराम नहीं
तू मेहनत ही करता जा

मेहनत कर मंशज़ल को पा !!

******

5
मुकम्मल ख़्वाब

मन की खखड़की खोल

सूरज ने द्वार अपने खोले


तू भी मन की खखड़की खोल
प्राप्त कर पुण्य प्रकाश
सदा जि हो हर पल

जि - जि बोल !!

******

6
मुकम्मल ख़्वाब

हाथ तो बढ़ाओ

तुम लक्ष्य तक पहुूँ च चुके हो


जरूरत है हाथ बढ़ाने की
तुम हाथ तो बढ़ाओ
दूररिाूँ इतनी भी नहीं
कक तुम ति ना कर पाओ
जरूरत है कदम बढ़ाने की
तुम कदम तो बढ़ाओ !!

******

7
मुकम्मल ख़्वाब

हमने कोशशश बहुत की

माना कभी-कभी कोशशशें


कामिाब नहीं होती
हदल की हर इच्छा
पूरी नहीं होती
जरूरी नहीं, जो चाहो यमल जाए
लेककन कोशशशें कभी
नाकामिाब भी नहीं होती

हमने कोशशश बहुत की


अभी उसको पा ना सके
आज नहीं, हफर कभी,
पािेंर्े जरूर क्योंकक
कोशशशे नाकामिाब नहीं होती।

******

8
मुकम्मल ख़्वाब

शज़न्दर्ी नाराज़ मत हो

शज़न्दर्ी नाराज़ मत हो
थोड़ा वक्त लर्ेर्ा तुझको पाने में

शज़न्दर्ी नाराज मत हो
अभी समि खुद व्यस्त है मुझे आजमाने में

शज़न्दर्ी नाराज मत हो
शशद्दत से लर्ी हूँ मैं तुझे पाने में

शज़न्दर्ी नाराज मत हो
हर सम्भव प्रिास करूूँर्ी मैं
तेरे साथ मुस्कुराने में
शज़न्दर्ी . . . . . . . . . !!

******

9
मुकम्मल ख़्वाब

मेरी आदशा

आदशा हैं मेरी लक्ष्मी बाई


वतामान की है ककरि
अस्थस्तत्व के शलए लड़ना शसखाती
दे श के शलए मर यमटना
नारी होती है सबल
ककसी के आर्े कभी न झुकना
ऐसी है मेरी आदशा
झाूँसी की रानी लक्ष्मी बाई
नहीं शसखाती वो कंर्न चूड़ी
नहीं शसखाती वो श्ृर्
ं ार
चलाना शसखाती वो तो हतथिार
कोई आूँख भी उठािे तो
तुम रहो िुद्ध को तैिार
ऐसी है मेरी आदशा
झाूँसी की रानी लक्ष्मी बाई
कभी न सहो तुम कोई भी वार
रिभूयम में कर के घोर्िा
अम्बर में दहाड़ दो

10
मुकम्मल ख़्वाब

दुिनों को मारकर
व्ययक्तत्व को यनखार दो
शसर उठाकर जीना शसखाती
ऐसी है मेरी लक्ष्मी बाई।

******

11
मुकम्मल ख़्वाब

जीवन की पररभार्ा

(1)

आज मन भी उदास है
व्यस्त है वो जीवन को समझने में
आखखर जीवन है क्या ?
आज कलम भी व्यस्त है
जीवन की पररभार्ा शलखने में
इतना सरल नहीं है जीवन
कक मैं उसको समझ सकूूँ
शलख दूूँ कोई ककवता और
समझा सकूूँ, असमथा हूँ
मैं जीवन को समझाने में
लेककन कर रही हूँ प्रिास
जीवन को पररभाकर्त करने में
मेरे शब्दों में,
जीवन एक संघर्ा है
जीवन एक जीत है
जीत के बाद हर्ा है

12
मुकम्मल ख़्वाब

जीवन अकेले चलने का नाम है


जब सब पीछे खींच रहे हों
तब जीवन आर्े बढ़ने का नाम है।

******

13
मुकम्मल ख़्वाब

(2)

जीवन भीड़ से अलर्

होने का नाम है

ककसी और से नहीं

जीवन खुद से जीतने का नाम है

ककसी और से कवश्वास नहीं खुद

खुद आत्म-कवश्वास से

भर जाने का नाम है

जीवन र्म में मुस्कुराने का नाम है।

******

14
मुकम्मल ख़्वाब

इतना मत सोचा करो

इतना मत सोचा करो,


जो करना है कर जाओ
हफर िे ना हो कक पछताओ

कर शलिा है फैसला,
तो हफर ना मन भटकाओ
जो करना है कर जाओ

राह नहीं है आसान


तुम उस पर डट जाओ
जो करना है कर जाओ

मन उदास क्यों है
तुम प्रसन्न हो जाओ
चाहे कुछ न हो
लेककन नकारात्मकता मत लाओ

15
मुकम्मल ख़्वाब

जो करना है कर जाओ
इतना मत सोचा करो . . . . . . ।

******

16
मुकम्मल ख़्वाब

दृढ़ यनश्चि

कर शलिा, कर शलिा
कर शलिा, दृढ़ यनश्चि
अब कुछ करना है
अब कुछ करना है

दे खा है अपने कॉलेज में


उस सम्मान को, उस कवश्वास को
इसशलए मुझे बहुत बड़ा करना है

पाना है वही स्थान


जो आज देखा है
भीड़ में खड़ी नहीं होना मुझको
मुझे तो सबको प्रेररत करना है

अनुसरि करें मेरा सभी


ऐसा ही कुछ करना है
खड़ी हो भीड़ मेरे इन्तजार में
इस लािक मुझे बनना है

17
मुकम्मल ख़्वाब

लर् र्िा है अब हदल में


मुझे कुछ बहुत बड़ा करना है
नहीं हूँ मैं अभी कुछ भी
और नहीं है मेरी पहचान
मुझे सभी पहचाने
इस लािक मुझे बनना है ।

कुछ प्राप्त नहीं ककिा अभी तक


कर सके मेरे शशिक भी मुझ पर र्वा
ऐसा ही कुछ करना है
मुझे बहुत बड़ा करना है ।

बचपन में सपना था


बहुत ज्यादा पढ़ने का
अब सपना है कुछ
बहुत बड़ा करने का !!

******

18
मुकम्मल ख़्वाब

मैं और मेरे सपने

सब साथ है
हफर भी िे मन उदास है
क्या मेरे हदल में
कोई उल्लास नहीं है

तुम्हें क्या लर्ता है


मैं और मेरे सपनों के बीच
कोई दीवार नहीं है

मैं और मेरे सपने


तड़प रहे हैं एक-दूसरे को
मुझे सपनों के पास जाना है
सपनों को मुझमें यमलकर
सच हो जाना है
तुम्हे क्या लर्ता है
मुझे मेरे सपनों पर कवश्वास नहीं है

19
मुकम्मल ख़्वाब

मैं और मेरे सपने


नदी के दो ककनारे जैसे है
जलिारा में भावनाएूँ बह सकती है
महसूस कर सकते हैं यमलन को
तुम्हें क्या लर्ता है
हमारा संर्म आसान नहीं है

मेरे सपने आकाश है


मैं हूँ वो सूखी िरती
शजसे सपनों की प्यास है
थोड़े सपने दूर है तो क्या
तुम्हें क्या लर्ता है
वो आस-पास नहीं है

मेरी तड़प को मेरे


सपने समझ सकते है
सपनों के दूर जाने के
र्म को मैं जानती हूँ
जब कोई सपना टू टता है
मन की उस स्थस्थतत को मैं पहचानती हूँ

20
मुकम्मल ख़्वाब

तुम्हें क्या लर्ता है


मुझे सपनों के खो जाने का ददा नहीं है
तुम्हें क्या लर्ता है
मुझे मेरे सपनों की पहचान नहीं है
तुम्हें क्या लर्ता है
मैं और मेरे सपनों के
बीच कोई दीवार नहीं है

खो जाती हूँ मैं खुद भी कभी-कभी


तुम्हे क्या लर्ता है
मुझे मेरी र्लती का एहसास नहीं है
मुझे मेरे सपनों से प्यार नहीं है
खुद से प्यार है
सपनों से प्यार है

बस सपनों के पास जाने को


कोई राह प्रतीत नहीं है
तुम्हे क्या लर्ता है
मेरे प्रिासों में राह
का यनमााि नहीं है

21
मुकम्मल ख़्वाब

कभी मैं सपनों से रूठ जाती हूँ


कभी सपने मुझसे रूठ जाते हैं
तुम्हें क्या लर्ता है
मैं और मेरे सपनों के बीच
कोई कववाद नहीं है।

कभी मैं सपनों को भूल जाती हूँ


कभी सपने मुझे भूल जाते हैं
दुयनिा की हकीकत से रूबरू होते हैं जब
सपने लौट आते हैं
तुम्हें क्या लर्ता है
हमारे बीच कोई समझ नहीं है

मैं और मेरे सपनों के बीच


एक शज़द है
सपनों को शजद है
मुझसे दूर जाने की
मुझे शजद है सपनों को पाने की
तुम्हे क्या लर्ता है
सपनों को पाना आसान नहीं है

22
मुकम्मल ख़्वाब

मेरी शजद के आर्े


सपनों को झुकना होर्ा
मुझमें यमलकर सपनों
को पूरा होना होर्ा
तुम्हे क्या लर्ता है
सपनों का झुकना
इतना भी आसान नहीं है।

******

23
मुकम्मल ख़्वाब

टूटा ख्वाब

आज हफर हदल से कुछ यनकला है


एक ख्वाब शज़न्दर्ी से यनकला है।
आूँखों से बह रही है अश्ु िारा
जैसे कोई अज़ीज मुझसे रूठा है।

शािद मेरा सपना हफर टू टा है


जो चाहती हूँ करना
अर्र वो करूूँर्ी
तो नुकसान क्या है
लेककन शजम्मेदाररिों का पहाड़
आज हफर टू टा है।
आज हफर हदल से कुछ यनकला है
मैंने जब खुश होकर उपलब्धि को बतािा
खुशी नहीं, शब्दों से ही हदल टू टा है।

आज हफर हदल से कुछ यनकला है


एक ख्वाब शज़न्दर्ी से यनकला है!!

******

24
मुकम्मल ख़्वाब

असफलता से सफलता की ओर

करके िाद सारी असफलताएूँ


मैं यनकल चुकी हूँ
एक निे लक्ष्य की ओर
अपनी मंशजल की ओर

कल रात ही तो टू टी थी
परीिा के पररिाम से
आज सुबह हफर यनकल चली
एक निे लक्ष्य की ओर
अपनी मशज़ल की ओर

ना हफक्र है हारने की
ना खुशी है जीतने की
एक बार हफर शज़न्दर्ी से खेलने
हार हो िा जीत िे दे खने

25
मुकम्मल ख़्वाब

मैं यनकल चुकी हूँ एक बार हफर


अपनी मंशज़ल की ओर
अपने लक्ष्य की ओर

ककस-ककसने मजाक बनािा


िे िाद कर
ककस -ककसने एहसास करािा
मैं असफल हूँ
उस असफलता को सफलता
में बदलने
मैं यनकल चुकी हूँ
एक निे लक्ष्य की ओर
अपनी मंशज़ल की ओर

हाइवे पर दे ख दौड़ती कार को


जीवन को समझने की कोशशश कर रही हूँ
आर्े यनकलने की चाह में
दौड़ रहे हैं सभी
कोई आर्े कोई पीछे
दौड़ में शायमल है सभी
जाना तो समझ आिा

26
मुकम्मल ख़्वाब

लाइफ इज़ आ रे स
इसशलए होकर खुद से ही प्रेररत
लेकर खुद से ही प्रेरिा
मैं यनकल चुकी हूँ
एक निे लक्ष्य की ओर
अपनी मंशज़ल की ओर!!

******

27
मुकम्मल ख़्वाब

एक मौका सभी को यमलता है

कुछ करने का
कुछ बनने का
एक मौका सबको यमलता है
कुछ पढ़ने का िा
पढ़ने लािक कुछ शलखने का
एक मौका सबको यमलता है।
इततहास पढ़ना है
िा रटना है
िे तुम्हारी इच्छा है
लेककन इततहास रचने का
एक मौका सबको यमलता है।

******

28
मुकम्मल ख़्वाब

इन्तज़ार है मुझे

इन्तज़ार है मुझे उस हदन का


शजस हदन मुझे पहचान यमलेर्ी
थोड़ी सी ही सही
मेरे सपनों को उड़ान यमलेर्ी

इन्तज़ार है मुझे उस हदन का


शजस हदन मुझे मैम भी र्ले लर्ाएूँ र्ीं
जब वो अपने द्वारा बोिे बीज को
एक वट वृि पाएूँ र्ीं

इन्तज़ार है मुझे उस हदन का


जब आूँखों में आूँसू खुशी के होंर्े
भीड़ खड़ी होर्ी मेरे शलए और
र्हदिश के शसतारे चमक रहे होंर्े
इन्तज़ार है मुझे . . . . . . . . !!

******

29
मुकम्मल ख़्वाब

रास्ता िुि
ूँ में भी रोशन है

रास्ता िुूँि में भी रोशन है


दे खने का नज़ररिा होना चाहहए
तुम चल सकते हो सभी रास्तों पर
चलने का सलीका होना चाहहए

रास्ता कोई भी हो, दूर से ही िुूँि हदखती है


छोटे -छोटे कदम बढ़ाना चाहहए
छोटे -छोटे कदमों से
िुूँि हट जाएर्ी

तुम चलते रहना, चलते रहना


मंशज़ल तक िुूँि हट जाएर्ी
प्रिेक चीज मुमककन है
करना आना चाहहए
रास्ता िुूँि में भी रोशन है
दे खने का नज़ररिा होना चाहहए !!

******

30
मुकम्मल ख़्वाब

चाूँद के साथ टहलने यनकले

ऐ चाूँद मेरी मुस्कुराहट के आर्े


तेरी चाूँदनी कुछ कम सी है

र्म में भी मुस्कुराना आता है मुझे


िे दे ख तेरी खुशी कुछ कम सी है

तू खोता रहता है अस्थस्तत्व अपना


पररस्थस्थतत कैसी भी हो

मैं अस्थस्तत्व नहीं खोऊूँर्ी


रिभूयम में भी डटी रहूँर्ी

झुकूूँर्ी नहीं, नहीं यमट पाऊूँर्ी


िे कवश्वास देख ऐ चाूँद
तेरी चाूँदनी कुछ कम सी है।

******

31
मुकम्मल ख़्वाब

वाह! शज़न्दर्ी

हम जद्दोजहद करते रहे


ककस्मत के साथ
दे खा तो जाना,
हम कहीं और जा रहे हैं

जहाूँ नहीं है शुकून


न जाने, क्यों चले जा रहे हैं
ककस चीज की है आस अब
क्या पाने को खुद को भुला रहे हैं

हर बार ठोकर लर् रही हैं


उठ कर हफर जा रहे हैं
यर्रकर उठना, उठकर यर्रना
इसी में शज़न्दर्ी बबता रहे हैं

चारो तरफ से खुद को डु बा हदिा


क्या होर्ा अब, िही सोचे जा रहे हैं
रास्ते में यमला जो भी, सबको अपनािा

32
मुकम्मल ख़्वाब

उनको जब यमले, अजनबी बता रहे हैं


कवश्वास करते हैं सब पर
उसी का फल पा रहे हैं
क्या होर्ा अब इसी सोच में
शज़न्दर्ी बबता रहे हैं ।

हवाओं का रुख, ज्यों ही मुड़ा


वक्त के पीछे जा रहे हैं
हम जद्दोजहद करते रहे
ककस्मत के साथ
दे खा तो कहीं और जा रहे हैं ।

******

33
मुकम्मल ख़्वाब

शज़न्दर्ी

तुझसे मैं हैरान हूँ, ऐ शज़न्दर्ी


कभी खुश हूँ, कभी परे शान हूँ शज़न्दर्ी
तेरे भी खेल यनराले हैं
कभी तू मेरे साथ है

कभी तू मुझसे दूर है


लेककन तेरे बहुत एहसान है शज़न्दर्ी
कभी रूलाती है, कभी हूँसाती है
क्या-क्या सबक शसखाती है शज़न्दर्ी

जब सपने की ओर मैं चली


ककस्मत दूर जाने लर्ी
ददा भी जब हुआ
जब हदवाली पास आने लर्ी
जब समि था खुशी के दीप जलाने का
तब रुलाने लर्ी, तू ऐ शज़न्दर्ी

34
मुकम्मल ख़्वाब

ककस्मत जब रूठ र्िी


उम्मीद की ककरि बुझने लर्ी
बार-बार यमलने लर्ी जब असफलता
तब आशा की लौ
एक बार हफर जला रही है शज़न्दर्ी

ककतनी अच्छी है ना शज़न्दर्ी ?


दे के उम्मीद कवश्वास के साथ
हफर से जर्ा रही है शज़न्दर्ी
सच कहूँ?
मुझे नींद से उठा रही है शज़न्दर्ी
एक बार हफर
मैदान में बुला रही है शज़न्दर्ी

दे रही है अब चुनौती शज़न्दर्ी


उम्मीद जर्ा रही है अब शज़न्दर्ी
मुझे शज़द है शजसको पाने की
उसको दूर करने की साशजश कर रही है शज़न्दर्ी

35
मुकम्मल ख़्वाब

शािद अन्जान है कक
मैं शजद्दी हूँ
िा जानकर भी अनजान
बन रही है शज़न्दर्ी
मैं मानना चाहती हूँ
खुद को दोर्ी
परन्तु ककस्मत पर कवश्वास
चाहती है शज़न्दर्ी

हार मैं मानूर्


ूँ ी नहीं
जो करना चाहे कर सकती है शज़न्दर्ी
शजसकी शजद है वो पाऊूँर्ी
तुझे िे बताना चाहती हूँ शज़न्दर्ी

शजतना तुझको आजमाना है आजमाले


मैं तो हर हाल में तेरे साथ हूँ
मैं अकेली नहीं हूँ
मेरी मैम मेरे साथ है ऐ शज़न्दर्ी
तुझसे मैं अनजान हूँ ऐ शज़न्दर्ी

36
मुकम्मल ख़्वाब

मुझे तो शजद है
सीखने की, जीतने की
एक हदन वक्त भी करे र्ा अफसोस
लेककन मैं तुझसे नाराज नहीं हूँ
सच में, बहुत खूबसूरत है मेरी शज़न्दर्ी
आई लव माई शज़न्दर्ी !!

******

37
मुकम्मल ख़्वाब

चलो उठो

चलो उठो, चलो उठो

अब प्रतीिा ककसकी है
खुद ही चलना है तुमको
अब आस ककसकी है

ला दो एक क्रात्मन्त
अब हफक्र ककसकी है

चलो उठो, चलो उठो


अब प्रतीिा ककसकी है

चलो उठो, तुम चलो

रुकना नहीं है
पकड़ ली है राह
तो मुड़ना नहीं है

चाहे टकराए पहाड़


झुकना नहीं है
करना है सब - कुछ पार
हो जाओ बस तैिार

38
मुकम्मल ख़्वाब

यनकल जाओ, बहुत आर्े


अब जरूरत ककसकी हैं
सब रोक रहे हैं अभी
मुझ पर हूँ स रहे हैं सभी

तू कर जा कुछ ऐसा
शब्द न हो ककसी के पास
मत बरबाद कर समि
जो बनना है बन जा

जो करना है अब
जल्दी से कर जा
मत भार् प्रततज्ञा के पीछे
प्रततभा को पहचान

प्रततभा को यनकाल बाहर


और बनाले खुद की पहचान
प्रततज्ञा और प्रततभा साथ रख

जो करना है खुद कर
ना ककसी से आश रख
होंर्े तेरे सपने पूरे
भर्वान पे कवश्वास रख

39
मुकम्मल ख़्वाब

आई॰ ए॰ एस॰ शज़न्दर्ी है


काव्य मेरी रूशच है
दोनों को साथ रख
एक अलर् पहचान होर्ी
बहु प्रततभाशाली सूची में तू होर्ी

सपना है ऑल रांउडर का
उसको िाद रख
इसशलए प्रततज्ञा और प्रततभा

दोनों साथ रख !!

******

40
मुकम्मल ख़्वाब

उम्मीदें

उम्मीदें हैं सबकी


तू इनको िाद रख
करके पररवार को िाद
मुत्यिल में भी आर्े कदम रख

कर िाद पररवार के वो सपने


जो तूने हदखािे हैं
कर िाद बाबा की उम्मीद
जो तूने जर्ािी है

कर िाद अपनी प्यारी मैम की उम्मीद


जो तुझसे लर्ािी है
तू सबको िाद रख
मुत्यिल में भी आर्े कदम रख

हर शक्श सोचता है
मैं IAS बनूूँर्ी
सबको कवश्वास है

41
मुकम्मल ख़्वाब

एक हदन बड़ा करूूँर्ी


कुछ भी हो, उनका जर्त में सम्मान रख
उम्मीदें हैं सबकी
तू इनको िाद रख

ककस-ककसने हदल दुखािा


तू भूल जा
ककस-ककसने मजाक उड़ािा
तू भूल जा

कौन साथ यनभा रहा है िाद रख


कर के पररवार को िाद
मुत्यिल में भी आर्े कदम रख ।

******

42
मुकम्मल ख़्वाब

संघर्ा

संघर्ा के हदन है
जो हो रहा है
वो तो होर्ा ही
तुम नहीं घबराना
चलते जाना है
संघर्ा से लड़कर
अपनी मंशज़ल को पाना है

चारो तरफ अूँिेरा है


नहीं हदखती कोई ककरि
उस ककरि को ढू ूँ ढने ही तो
िूप में भी पथ पर चलते जाना है

हो रही है परीिा
तुम्हारे िैिा की, आत्मकवश्वास की
तुम्हारी हहम्मत की,
उस हहम्मत को ही तो अब हदखाना है

43
मुकम्मल ख़्वाब

नहीं लौटना है बीच में से


अब तुम्हे चलते ही जाना है
हर हाल में मंशज़ल को पाना है

जो होर्ा अच्छा ही होर्ा


िे कवश्वास हदल में जर्ाना है
पररस्थस्थतत कैसी भी हो
आई॰ ए॰ एस॰ तो बनकर ही हदखाना है ।

******

44
मुकम्मल ख़्वाब

चारों हदशाओं में

कहते हैं सभी


मत भार्ों चारों हदशाओं में

मेरी है ऐसी हफतरत


मन लर्ता है सभी हदशाओं में

सब के भ्रम को तोड़ना है
होकर सफल चारो हदशाओं में

शज़न्दर्ी बहुत छोटी है


करना है सब कुछ बहुत जल्दी

हवा बन कर बहना है
चारो हदशाओं में

र्र्न को छूना है
सार्र की र्हराई नापनी है

45
मुकम्मल ख़्वाब

करना है फतह माउन्ट एवरे स्ट को


लहराना है भर्वा माउन्ट एवरे स्ट पर

घाटी में भी ततरं र्ा लहराना है


भार्ना है मुझे चारों हदशाओं में

चारों तरफ भारत माता के


नारे र्ूूँज रहे हो

र्ूूँज रहा हो वन्दे मात्रम


चारो हदशाओं में

भार्ना है मुझ,े चारो हदशाओं में


होना है सफल, चारो हदशाओं में ।

******

46
मुकम्मल ख़्वाब

माूँ की िाद

माूँ एक कहानी है, जो तुम्हे सुनानी है।


तेरे बबना माूँ कैसी, मेरी शज़न्दर्ानी है।

अकेली हूँ मैं िहाूँ, आूँखों में पानी है।


मुखजी नर्र की माूँ एक कहानी है।

कैसे समझाऊूँ मैं, कैसे शज़न्दर्ी बनानी है।


माूँ बबन तेरे िे शज़न्दर्ी बेर्ानी है।

सपनों के पीछे ऐसे भार्ी


कक तुझे छोड़ आिी

अब जब भी आए तेरा नाम
बस आूँखों में पानी है।

शलख तो बहुत कुछ दूूँ


मर्र माूँ मेरी सार्र है

और शब्द र्ार्र में पानी है


बस िही कहानी है जो तुझे सुनानी है।

******

47
मुकम्मल ख़्वाब

चलते रहहए

िहद जीवन में कुछ पाना है


अनल अिरों में इततहास शलखवाना है
तो तुम्हारा काम है चलना
तुम चलते रहो

तुम्हे क्या जरूरत है रुकने की


लोर्ों का काम है कहना
तुम्हें क्या जरूरत है सुनने की
जो तुम्हारा हदल कहे करते जाओ
तुम्हारा उद्देश्य सफल होना है

तुम हो जाओर्े, कर जाओर्े


तुम्हारा काम है चलना
तुम चलते रहो।

******

48
मुकम्मल ख़्वाब

प्रश्न . . . . . .

सब पूछते हैं,
इतने शब्द कहाूँ से लाती हो
कैसे शलखती हो िे ककवताएूँ
कैसे शब्दों को माला में सजाती हो
कहाूँ से आते हैं इतने कवचार
शजनसे तुम आककर्ित कर जाती हो
कैसे सोच पाती हो इतना, कैसे
तुम एक काल्पयनक कैनवास बनाती हो
भरके तुम इसमें रं र्
कैसे तुम भावों को जर्ाती हो
आखखर कैसे तुम ककवता को बनाती हो
कैसे तुम शलखे ककरदार को जीवंत कर जाती हो

उत्तर . . . . . .

मैं खुद जलती हूँ


खुद ही आूँसू बहाती हूँ
करके खुद के ऊपर प्रिोर्

49
मुकम्मल ख़्वाब

मैं िे शब्द खोज लाती हूँ


जर्ाकर भावों को, पंयक्त-पंयक्त जोड़
शब्दों की एक माला बनाती हूँ
कैनवास पर बबखरे रं र्ों की तरह
मैं माला को सजाती हूँ
शजससे आककर्ित हो सभी
तब मैं वो ककवता बना पाती हूँ
शािरी, ककवता समझ मुस्कुरा दे ते हो तुम
लेककन मैं तो स्विं शलख जाती हूँ।

******

50
मुकम्मल ख़्वाब

पहाड़ की पुकार

िे पहाहड़िाूँ मुझे पुकार रही है


िे पहाहड़िाूँ मुझे पुकार रही है
सोिी हूँ मैं अब तक कहाूँ
पहाहड़िाूँ मुझसे पूछ रही है

एवरे स्ट मुझे बुला रहा है


मैं भी प्रिासरत हूँ उस हदशा में
लेककन एवरे स्ट खुद चला आ रहा है
वो खामोश रहकर पूछ रहा है
हूँ मैं अब तक कहाूँ

मेरी चाह एवरे स्ट जीतने की


एवरे स्ट को हार जाना है
पाना है वो मुकाम
जहाूँ एवरे स्ट को भी नजरें उठानी पड़े
सब कुछ जीत कर एक हदन
एवरे स्ट की र्ोद में सो जाना है।

******

51
मुकम्मल ख़्वाब

जीत का उद्घोर्

पररस्थस्थतत कोई भी हो
उसको स्वीकार कर
सि का सामना कीशजए

यर्र ही तो र्िे हो
उठकर हफर से
जीत का उद्घोर् कीशजए

तुम्हारा यर्रना कोई सािारि नहीं है


भकवष्य की महानता यछपी है इसमें
हदल की आूँखों से एहसास तो कीशजए

तुम भी जीत सकते हो


कवश्वास तो कीशजए
यर्र ही तो र्िे हो
उठकर हफर से, जीत का उद्घोर् कीशजए
जीत का उद्घोर् कीशजए।

******

52
मुकम्मल ख़्वाब

जीत को लड़ जािेंर्े

बहुत चला हार का शसलशसला


अब जीत को लड़ जािेंर्े
दे खते हैं ककस्मत की नाराजर्ी
अब हम भी शज़द पर अड़ जािेंर्े

जीतने की शज़द में


खुद को भूल जािेंर्े
शज़द को पूरा करने के शलए
शज़द्दी बन, तकदीर से लड़ जािेंर्े

हाूँ तकदीर से लड़ जािेंर्े


अब शज़द पर अड़ जािेंर्े।

******

53
मुकम्मल ख़्वाब

मंशज़लें इं तजार करती हैं

ककसने कहा,
राही का कोई तलबर्ार नहीं होता
मंशज़ल को राही से प्यार नहीं होता
कौन कहता है
दूर भार्ती है मंशज़ले
खुद को कोई र्ुनहर्ार नहीं कहता

तुम चलो तो सही


तुम से प्यार करती है मंशज़लें
खड़ी है वो भी पलके बबछािे
तुम्हारा इंतजार करती है मंशज़लें
तुम्हारा इंतजार करती है मंशज़लें।

******

54
मुकम्मल ख़्वाब

हार-जीत

शज़न्दर्ी है
हार-जीत लर्ी रहती है
हार से घबराकर
रुक जाना
इतना भी तो सही नहीं है

संघर्ा खुद से हो तो ठीक है


दूसरे से खुद को कम समझ
खुद से हार जाना
इतना भी सही नहीं है

शज़न्दर्ी है
हार जीत लर्ी रहती है
हारने का डर होता है
लेककन डर से डर जाना
इतना भी सही नहीं है।

******

55
मुकम्मल ख़्वाब

तन्हा पेड़

जलती िूप में तन्हा पेड़


ककस तन्हाई में है
कभी सोचा ?
मानव रूप में आकर
सारे सुख पाकर

कभी िूप तो कभी छाूँव पाकर


कुछ इच्छाओं के मर जाने से,
खुद को मरा मान लेते हो
तन्हा पेड़ मानव की तन्हाई
में तन्हा है

उसकी शज़िंदर्ी ठीक चलती


लेककन मानव की तनहाई
से तनहा है
पेड़ हमको जीवन दे ता

56
मुकम्मल ख़्वाब

मानव उसको ही तन्हा कर जाता


मानव सबको तन्हा करके
खुद ही तन्हा है
आज जलती िूप में
पेड़ तन्हा है।

िूप तेज, पत्ता न पास है


पेड़ को हफर भी जीवन की तलाश है
पेड़ बूढ़ा हो चुका है
हफर भी जीवन में प्यास है

मानव जीवन से हारकर


जीवन नहीं खोजता है
मुत्यिल आने पर
कैसे बाहर यनकले,
नहीं वो सोचता है

57
मुकम्मल ख़्वाब

तू क्यों तन्हा है
खुद की तन्हाई से
क्यों है तू भार्ीदार
खुद की तनहाई में
तू जीना सीख

हार को हराकर
तू जीतना सीख
तू क्यों तन्हा
तुझे दे ख पेड़
तन्हा है।

******

58
मुकम्मल ख़्वाब

उड़ चले

चलो आओ
उड़ चलें
भीड़ से दूर
एक अलर् जर्ह
निे ख्वाबों की ओर
आओ,
उड़ चले

भारत के नव यनमााि में


उिवल भकवष्य की ओर
उड़ चले
अपने ख्वाबों की ओर
नव कवचारों की ओर
चलो आओ
उड़ चले . . . . . . . . . .

59
मुकम्मल ख़्वाब

मंशजल की ओर
उड़ चले . . . . . . . . . .
ख्वाबों की ओर
उड़ चले . . . . . . . . . .
चलो आओ . . . . . . . . . . ।

******

60
मुकम्मल ख़्वाब

फूँस र्ए है

फूँस र्ए हैं


हाूँ हम थोड़े
फूँस र्ए हैं
पररस्थस्थततिों के हाथों
मजबूर हो र्ए है
लेककन ऐसा तो नहीं
कक इसका कोई हल न हो
बाहर यनकलने को
कववेक बल न हो
मन से शयक्तशाली बनो
पररस्थस्थततिों का सामना करो
एक हदन तुम देखना
खुद बोलेर्े
मुत्यिलों से जीत र्ए हम
हाूँ यनकल र्िे हम
यनकल र्िे हम !!

******

61
मुकम्मल ख़्वाब

सपनों में आर्

शजनके सपनों में आर् होती है


उनमें कुछ न कुछ तो बात होती है
थककर नहीं बैठते वो कभी
थकने के बाद भी
निे जीवन की शुरूआत होती है

शजनके सपनों में आर् होती है


सािारि तो नहीं होते वो
कुछ तो यछपा होता है उनमें
सब कुछ हारने के बाद भी
चेहरे पर मुस्कान होती है
डर को डराकर जीतने की
प्यास होती है।

शजनके सपनों में आर् होती है


असािारि होते हैं वो लोर्
शजनमें जीतने की शज़द होती है
शज़द को पूरा करने में

62
मुकम्मल ख़्वाब

बार-बार हार से मुलाकात होती है


हफर भी जीतने की आस होती है
निे जीवन की शुरूआत होती है।

******

63
मुकम्मल ख़्वाब

कहानी चलती रहती है

जीवन एक अटू ट िारा है


चलता रहता है
कुछ पत्थरों के आ जाने से
राहें नहीं बदलती है
जीवन की कहानी है
िे तो चलती रहती है

जीवन कभी न टू टने वाली िारा है


थोड़ी कमजोर हो जाने से
र्तत नहीं बदलती है
जीवन की कहानी है
िे तो चलती रहती है
जीवन एक अटू ट िारा . . . . . . . . ।

******

64
मुकम्मल ख़्वाब

कौन चलेर्ा साथ हमारे

कौन चलेर्ा साथ हमारे


क्यों सोच-सोच परे शान हो
अकेले ही तो बचे हो
संघर्ा की राह में
िे दे ख-दे ख
क्यों तुम हैरान हो

साथ ककसी मानव का नहीं


तुम को खुद ही चलना होर्ा
है तुम्हें इन्तजार ककसका
खुद को खुद से यमलना होर्ा
तुम स्विं को पाकर हो जाओ
भीड़ से अलर्
क्यों परे शान हो

65
मुकम्मल ख़्वाब

कौन चलेर्ा साथ हमारे


क्यों सोच-सोच परे शान हो
सािारि जीवन के शलए
सब साथ चाहहए
जबकक करना हो बड़े
से भी बड़ा
बस तुम्हारे हौसलों में
जान चाहहए
तुम्हारे स्वर में
जीत का आहवान चाहहए

करे कोई और जीत की घोर्िा


क्यों तुम्हारे िे कवचार हो
तुम चलो अकेले
तुम्हारे कदमों में रफ्तार हो
कौन चलेर्ा साथ हमारे
क्यों सोच-सोच परे शान हो।

******

66
मुकम्मल ख़्वाब

शचहड़िा घर से यनकली है

ककसने कहा
भाग्य शलखा है
हाथों की लकीरों में
शचहड़िा को पंख
फड़फड़ाने पड़ते हैं
बंद दीवारों में

र्रीबी हो िा अमीरी
शचहड़िा, शचहड़िा होती है
संघर्ा करना होता है
शचहड़िा को आजाद होने में

शचहड़िा घर से यनकली है
आूँखों में कुछ सपने शलए
आजाद भारत में आजादी यमलेर्ी उसको
लेककन अभी वक्त लर्ेर्ा
शचहड़िा को पररिंदे बन जाने में।

******

67
मुकम्मल ख़्वाब

एक निा संघर्ा है जीवन

ना कोई कोमा
ना कोई कवराम है
जीत की लड़ाई िहाूँ
जीत ही वीर का प्रमाि है
कुछ रुकने पर,
हफर से चलना है जीवन
जीतने के बाद भी
एक निा संघर्ा है जीवन

जाने वालों को भुलाकर


आने वाले को साथ रख
जब कोई साथ न हो
तो अकेले चलना है जीवन
एक निा संघर्ा है जीवन
हर पल
निा संघर्ा है जीवन
एक निा संघर्ा है जीवन।

******

68
मुकम्मल ख़्वाब

आईने से िारी रख

िे दुयनिा एक रं र्मंच है
ना ककसी से ररश्तेदारी रख
तू आईने से िारी रख
जब-जब दुयनिा
तुझे यर्राएर्ी
आईना ही तुझे ताकत हदखलाएर्ा

जब तू दे खर्
े ा
आइने में
खुद को पहचान पािेर्ा
तू आइने की ही
शजम्मेदारी रख
तू आइने से िारी रख
ना ककसी से ररश्तेदारी रख।

******

69
मुकम्मल ख़्वाब

ककवताएूँ शज़िंदा रहती है

कुछ सपने दफन


हो जाते हैं
कुछ एहसास
ककवताओं में यछप जाते हैं
ककव के मर जाने पर
भी, ककवताएं शजन्दा रहती हैं
बबखेरती उस भाव को
ककवताएूँ अमर हो जाती हैं
ककवताएूँ शजन्दा रहती है
लेककन जब कोई और पढ़े
उसके हदल को छू जाती है
कुछ ककवताएूँ अमर हो जाती है
कुछ ककवताएूँ अमर कर जाती हैं
अक्सर ककवताएूँ शजन्दा रह जाती है।

******

70
मुकम्मल ख़्वाब

शज़द्दी

िूूँ ही,
नहीं बना जाता शज़द्दी
शज़द करनी होती है

िूूँ ही,
नहीं होती शज़द
हदल में जुनून होना चाहहए

िूूँ ही,
नहीं होता जुनून पैदा
सपनों में आर् होनी चाहहए

िूूँ ही,
नहीं लर्ती सपनों में आर्
इच्छा शयक्त मजबूत होनी चाहहए

िूूँ ही,
नहीं होती इच्छा शयक्त मजबूत
शज़द्दी होने की वजह होनी चाहहए

71
मुकम्मल ख़्वाब

िूूँ ही,
नहीं यमल जाती वजह
पहले अपमान होना चाहहए

िूूँ ही,
नहीं होता अपमान
पहले भर्वान द्वारा शलखा होना चाहहए

िूूँ ही,
नहीं शलखते भर्वान
कुछ असािारि कराना होता है

िूूँ ही,
नहीं बन जाता कोई असािारि
पहले उसकी काबबशलित का परीिि होता है

िूूँ ही, नहीं बन जाता


कोई शज़द्दी
शजद के काबबल होना चाहहए।

******

72
मुकम्मल ख़्वाब

पंख टूटे हैं

कभी-कभी जीवन की उड़ान में


कुछ सपने टू ट जाते हैं
मानो पंख टू ट जाते हैं
पंखों के टू टने से
इतना डरते हो क्यों
पंख ही तो टू टे हैं तो क्या
हौंसले तो शजिंदा है
हफर शचिंता करते हो क्यों
इतना डरते हो क्यों
पंखों वालो को भी
जीवन में झुकते देखा है
बबना हौंसले उनको
मैंने रास्ते में रुकते दे खा है

73
मुकम्मल ख़्वाब

जुनून को जर्ाओ
पंखों की परवाह करते हो क्यों
पंखों के टू टने से डरते हो क्यों
तुम शचिंता करते हो क्यों।

******

74
मुकम्मल ख़्वाब

छािा

मुझ में ककसकी छािा है


िे लेखन का र्ुि कहाूँ से आिा है
िे र्ुि ककसने शसखािा है
आखखर कब की मैंने शुरुआत
लेखन की, ककवताओं की
कैसे ककताब शलखने का
ख्याल मन में आिा है
कहाूँ से आते हैं मन में कवचार
कैसे खुद की पहचान बनाना
सम्भव हो पािा है
मुझ में मेरी मैम की छािा है
िे लेखन का र्ुि मैम से आिा है
कैमस्ट्री के साथ काव्य भी पढ़ािा है
िे र्ुि मेरी मैम ने शसखािा है
मैम के यमलने पर शुरूआत की
मैंने लेखन की ककवताओं की
बबखरी चीजों को समेट
ततनका-ततनका उठािा है।

75
मुकम्मल ख़्वाब

मैम के आर्े सब छोटा है


मैं क्या दे सकती हूँ उनको
सब कुछ तो उन्होंने हदलािा है
इसशलए एक ककताब शलखकर
करके मैम को समकपित
कुछ समपाि का भाव जर्ािा है
मैम खुद की रचना को
वट वृि दे खे
इसशलए ककताब का ख्याल मन में आिा है
मैम के साथ होने से
जीवन में जीतना आिा है
जीत की शजद में
उभरते हैं निे-निे कवचार
इसशलए कवचारों का आना
सम्भव हो पािा है
मैम ने मुझे
जीतने की शज़द में
शज़द्दी बना हदिा

76
मुकम्मल ख़्वाब

इसशलए ‘‘शज़द्दी पारुल’’ के रूप


में खुद की पहचान बनाना
सम्भव हो पािा है।

******

77
मुकम्मल ख़्वाब

साथ चलो

ज्यादा न सही
थोड़ी दूर तो साथ चलो
रास्ता िूूँि में
भी हदखेर्ा
तुम हहम्मत तो रखो
मैं िैिा रख लूर्
ूँ ी
पहुूँ च जाऊूँर्ी मंशज़ल तक
तुम एक-दो सीढ़ी
तो साथ चलो
ज्यादा न सही
थोड़ी दूर तो साथ चलो
मंशज़ल पर पहुूँ चाना है र्र
तो हमेशा साथ चलो
तुम मेरे साथ चलो।

******

78
मुकम्मल ख़्वाब

बन्दे मत मान हार

जीवन में यछपा है श्ृंर्ार


बन्दे मत मान हार
चाहे हो जािे
नस तार-तार
उसमें भी ढू ूँ ढ प्यार
बन्दे मत मान हार

माना तेरे इशारों पर


जीवन नहीं चला करता है
तो तू चल
जीवन के अनुसार
जीवन में यछपा है श्ृंर्ार
बन्दे मत मान हार

हार से सीखकर
जीत को बनाले आिार
बन्दे मत मान हार
जीवन में यछपा है श्ृंर्ार।

******

79
मुकम्मल ख़्वाब

टूटा शसतारा

शसतारा टू ट सकता है
सहारा छूट सकता है
लेककन तुम मत हारना
हफर से उठना
जुड़ना और चलते जाना
टू टे शसतारे में भी
कुछ चमक होती है
जो अपनी न सही
ककसी और की होती है
लेककन शसतारा भी
रोशन है।
सहारा छूट र्िा तो क्या
तुम खुद के सहारे बनो
खुद का अच्छा दोस्त बनो
जान लो खुद के बारे में
इससे अच्छा मौका भी न यमल सकता
तुम खुद के सहारे बनो
तुम खुद ही शसतारे बनो।

******

80
मुकम्मल ख़्वाब

मेरा सपना

मेरा सपना,
मेरा सपना है
मुझे ही इसको
पूरा करना है
जब सपना अपना है
तो क्यों उम्मीद लर्ािी है
र्ैरों से
मैम तो साथ हैं
बस चलना है
मैम की अूँर्ुली पकड़
खुद के पैरों से
मैम रास्ता हदखा रही है
बस उनके बतािे अनुसार
चलना है
मैम की उम्मीदों को
पूरा करना है
जहाूँ वो देखना
चाहती है
उस शीर्ा पर

81
मुकम्मल ख़्वाब

पहुूँ चना है
मेरा सपना
जो मैम का भी
है अब अपना
उसको पूरा करना है
खुद के शलए
न सही
मैम के शलए
शीर्ा पर पहुूँ चना है
सपनों को पूरा
करने की कोई
वजह नहीं थी
अब यमल र्ई है
वजह है मेरी मैम
शजनके हर एक
ख़्वाब को मुकम्मल
करना है
मेरा सपना
मेरे शलए न सही
मैम के शलए ही
पूरा करना है।

******

82
मुकम्मल ख़्वाब

पीड़ पराई

पीड़ पराई
जाने कौन ?
मैं कुछ कर सकती हूँ
माने कौन ?
मनवाना नहीं
हदखाना है
बबन कुछ ककिे
पहचाने कौन
पीड़ पराई
जाने कौन
रुकावट का सामना
खुद करना है
सभी को कार्ज के
टु कड़े पर पररिाम चाहहए
ज्ञान की पहचान
नहीं है कार्ज
इस बात को जाने कौन ?
पीड़ पराई
जाने कौन ?
******
83
मुकम्मल ख़्वाब

परींदे

परींदो से सीखे
ततनका-ततनका चुनकर
घौंसला बनाना
दाने की तलाश में
मीलो चलते जाना
मौसम के अनुसार
खुद की राहें बनाना
जीवन को संघर्ा नहीं
खुशी से जीना
घौंसला टू ट जाने पर भी
पुनः यनमााि करना
जीवन कहठन नहीं है
इस बात को स्वीकार करना
परींदो से सीखे
बादल से ऊूँची उड़ान भरना
परींदो से सीखे
पहचान साथ लेकर चलना
आओ पररिंदो से सीखे।

******

84
मुकम्मल ख़्वाब

िूप

तुमको शयक्त करने प्रदान


िूप यनकली है
मैं वो जादू हूँ
शजसको जर्ाने-उठाने
िूप यनकली है
मैम मेरी सूिा का प्रकाश है
मेरे अन्दर छु पे दे वत्व
को जर्ाने
िूप यनकली है
मुझे नींद से उठाने
िूप यनकली है
मुझे शयक्त िाद हदलाने
िूप यनकली है।

******

85
मुकम्मल ख़्वाब

रास्ते

मेरे सामने
दो रास्ते हैं
एक रास्ता
खुशहाल जीवन की ओर
मेरे सपनों की ओर
मेरी मंशज़ल की ओर
शजस पर चलना
थोड़ा कहठन है
लेककन नामुमककन नहीं है
इस रास्ते पर
चलकर, उिवल
भकवष्य के ख़्वाब
बुन सकती हूँ
सारे सपने, चीजें
अपनी पसन्द से
चुन सकती हूँ
अपने मन के अनुसार
जीवन को र्ुजार सकती हूँ

86
मुकम्मल ख़्वाब

सबकी इच्छािें पूरी कर


लाखों शजिंदयर्िाूँ सूँवार सकती हूँ।
दूसरा रास्ता,
शजसमें आज खुशी है
लेककन दुखों की
कोई सीमा नहीं
ककतना पीड़ाग्रस्त
होर्ा जीवन
इसका भी कोई अंदाजा नहीं
इस रास्ते पर
चलकर, एक उजाले के बाद
अूँिेरे की भी
कोई सीमा नहीं
इतना ही शलखूूँर्ी
इस रास्ते के बारे में
क्योंकक इस पर
मुझे चलना नहीं है
मुझे पहला रास्ता अपनाना है
सबके जीवन को खुशहाल बनाना है
सवाूँरना है इस देश का भकवष्य

87
मुकम्मल ख़्वाब

भारत को कवश्व र्ुरू बनाना है


‘‘रास्ते तो सारे मेरे है
बस शज़द है कुछ बड़ा करने की।’’

******

88
मुकम्मल ख़्वाब

दस्तक दे कर दे खे

बबना कोशशश के
खुद को असफल मानना
अपने जीवन को
ककस्मत पर छोड़ना
िे कैसी समझदारी है
अर्र ककस्मत ही है
सब कुछ तो
कमों की फसल उर्ाना
तुम्हारी शजम्मेदारी है
ककस्मत ही तो है
तुम ककस्मत के दरवाजे पर
दस्तक दे कर देखो
सपनों के शलए
मेहनत करके दे खो
हफर दे खना

89
मुकम्मल ख़्वाब

तुम्हारी जीवन से िारी है


जीवन को ककस्मत
पर छोड़ना
िे कैसी समझदारी है।

******

90
मुकम्मल ख़्वाब

हमने हदल में ठानी है

खुद से होकर प्रेररत


खुद से लेकर प्रेरिा
खुद की ही मानी है
कुछ करना है
बस कुछ करना है
कुछ सािारि नहीं
असािारि सा कुछ
तो करना है
कुछ बड़े से भी बड़ा
करना है
नहीं दे खने कुछ
बनने के सपने
कुछ करने की ठानी है
मैंने खुद की ही मानी है
खुद से होकर प्रेररत
खुद से लेकर प्रेरिा
हदल में अब ठानी है
खुद की ही मानी है।

******

91
मुकम्मल ख़्वाब

मैं इतना तो कर सकती हूँ

शजनको नहीं है उम्मीद


उनमें भी उम्मीद जर्ानी है
जो नहीं है प्रेररत
उनको भी प्रेररत करना है

यर्रे हुए को उठा सकूूँ


मैं इतना तो कर सकती हूँ
मैं डू बते को सम्भाल सकूूँ
मैं इतना तो कर सकती हूँ

शजनका खत्म है जीवन


उनको बना सकूूँ
मैं इतना तो कर सकती हूँ
मैं खुद को बना सकूूँ
मैं इतना तो कर सकती हूँ
मैं खुद के शलए लड़ सकूूँ
मैं इतना तो कर सकती हूँ।

******

92
मुकम्मल ख़्वाब

सपना दे खा

मैंने कभी एक सपना दे खा


वह सपना जो कभी नींद में था
वह सपना जो कभी आकर्ाि था
वह सपना जो कभी ककसी
और का मुकम्मल था
वह सपना जो कभी
मात्र एक कवचार था

मन में आने वाला


उड़ता-उड़ता सा ख्याल था
वह सपना जो िणिक था
मैंने सपनों को जकड़
शलिा इच्छा शयक्त से
सपनों में बाूँि दी
एक डोर, मन की शयक्त से
सपनों को साकार करने
मैं यनकल पड़ी
रास्ते की तलाश में

93
मुकम्मल ख़्वाब

रास्ता खोजा, चल रही हूँ


पल-पल आर्े बढ़ने
के प्रिास में।

मेरा एक सपना पूरा हो र्िा


जो कभी सोचा भी नहीं था
कक इतनी जल्दी होर्ा पूरा
मेरा वो ख़्वाब
मुकम्मल हो र्िा
मेरा वो सपना
जो कभी दे खा था
जो शसफा सपना था
वो मुकम्मल हो र्िा।

******

94
मुकम्मल ख़्वाब

शज़न्दर्ी की दौड़

कभी िूप है तो
कभी छाूँव हैं
कुछ तो अलर् है
शजिंदर्ी की दौड़ में

कभी कोई साथ है


कभी कोई दूर है
लेककन सब महत्वपूिा है
शजिंदर्ी की दौड़ में

साथ रहने वाले


मंशज़ल तक साथ जाते हैं
दूर जाने वाले भी
जर्ा दे ते हैं जुनून
शज़न्दर्ी की दौड़ में

95
मुकम्मल ख़्वाब

अपने भी परािे हैं


परािे भी अपने हैं
र्हदिश में परािे
होते हैं साथ
शज़न्दर्ी की दौड़ में।

******

96
मुकम्मल ख़्वाब

िीरज रखखिे

मंशज़ल ज्यादा दूर नहीं है


जरूरत है िीरज रखने की
बहुत करीब हो तुम सपनों के
जरूरत है िीरज रखने की
जब-जब मंशज़ल के करीब पहुूँचोर्े
एक बार नहीं कई बार
शज़न्दर्ी पीछे फेंकेर्ी
होर्ी पहचान तुम्हारी काबबशलित की
तुमको काबबल बनाने में
शजन्दर्ी खुद जुटी है
जरूरत है िीरज रखने की
शजन्दर्ी तुमको खुद बना रही है
मानो कुम्हार के बतान हो
जब हो जाओर्े तुम काबबल
शज़न्दर्ी खुद आजािेर्ी
तुमको मंशज़ल तक ले जाएर्ी
जरूरत है िीरज रखने की
तुम िीरज रखो।

******

97
मुकम्मल ख़्वाब

बस की खखड़की से

कई बार
बस के सफर में
जीवन को समझने की कोशशश करो

बस की खखड़की से
बाहर के वातावरि को देखो
जोड़ो उसको जीवन से

बस के सफर को
जीवन का सफर समझो

यनकल पड़ो उसमें


ढू ूँ ढकर निा रास्ता
अपने मंशज़ल की ओर

अपने लक्ष्य की ओर
तुम नजर करो।

******

98
मुकम्मल ख़्वाब

रं र्

िे रं र्
बोलते हुए रं र्
इशारों में समझाते हुए रं र्
लक्ष्य को हदखाते हुए रं र्
आककर्ित करते िे रं र्
मन को भाते िे रं र्
समृयद्ध के िे रं र्

बशलदान, हररिाली
का प्रतीक है िे रं र्
ततरं र्े के है िे रं र्
बहुत खूबसूरत है िे रं र्
बहुत प्यारे हैं िे रं र्
बोलते हुए रं र्
इशारों में समझाते हुए रं र्।

99
मुकम्मल ख़्वाब

ऊूँचा: ककतना ?
आसमान से ऊूँचा
ख़्वाब तुम्हारा हो
भीड़ से अलर्
नाम तुम्हारा हो

करो कुछ इतना बड़ा


पृथ्वी तो क्या
मंर्ल ग्रह पर
वास तुम्हारा हो
आसमान से ऊूँचा
ख्वाब तुम्हारा हो

सबसे अलर् सबसे अच्छा


अनल अिरों में
शलखा इततहास तुम्हारा हो
आसमान से ऊूँचा
ख्वाब तुम्हारा हो।

******

100
मुकम्मल ख़्वाब

आखखर कहाूँ

क्या तुमने कभी


खुद से पूछा
कक जाना कहाूँ है
क्या तुमने कभी
हदल से सोचा
कक जाना कहाूँ है

क्या तुमने कभी


हदमार् से सोचा
शजस रास्ते पर
चल रहे हैं।
वो तुम्हारा ही है
िा आकर्ाि है

क्या तुमने कभी


खुद का कवश्लेर्ि ककिा
कक िे काम तुम्हारे लािक है
िा िूूँ ही चले जा रहे हो

101
मुकम्मल ख़्वाब

जहाूँ नहीं है मंशज़ल


रास्ते भी नहीं है
मेहनत र्लत हदशा
में लर्ा रहे हो।

आखखर कब तक
िूूँ ही चलते रहोर्े
भीड़ का हहस्सा
तुम बनते रहोर्े
कुछ तो अलर् करो
हदल से पूछ कर
जाना कहाूँ है
जल्दी िे सुयनत्यश्चत करो

आखखर कब तक
बने बनािे रास्ते पर
चलते रहोर्े

तुम भी रास्ते का यनमााि करो


तुम भी रास्ते का यनमााि करो
आखखर जाना कहाूँ है

102
मुकम्मल ख़्वाब

तुम िे ति करो
कैसे जाना है
ति करो

कोई साथ हो मत दे खो सहारा


अकेले जाने की
हहम्मत रखो।

******

103
मुकम्मल ख़्वाब

कहानी शलख रही हूँ

कैसे बदलता है वक्त


कैसे होते हैं सपने साकार
कैसे आते हैं कुछ करने के कवचार
मेरी कलम से, मेरी कहानी
शलख रही हूँ मैं
कहानी शलख रही हूँ मैं

कई बार ,
खुद का ज्ञान नहीं करते
यछपा है कुछ, पहचान नहीं करते
मेहनत तो करते हैं

शािद सही हदशा का चुनाव नहीं करते


अपनी सारी ताकत झोंक
दे ते हैं र्लत हदशा में
यछपे दे वत्व को बाहर नहीं करते

104
मुकम्मल ख़्वाब

क्या करने आिे हो


कभी नहीं सोचते
भर्वान ने क्यों भेजा है

क्या है तुम्हारे
जीवन का रहस्य
कभी नहीं खोजते
तुमको रहस्य बता रही हूँ मैं
कहानी शलख रही हूँ मैं

हजारों मौके ककस्मत


हमको दे ती है
जरूरत है पहचानने की
अपना वक्त बदलने की
कैसे पहचान करे मौकों की

बता रही हूँ मैं


वक्त कैसे बदलना है
शसखा रही हूँ मैं
कहानी शलख रही हूँ मैं

105
मुकम्मल ख़्वाब

मेरी कलम से
मेरी कहानी शलख रही हूँ मैं
कहानी शलख रही हूँ मैं ।।

******

106
मुकम्मल ख़्वाब

सपनों में जीना मरना

हम अपने सपनों में


जीते मरते हैं
कुछ कवरले ही सपनों
को सच करते हैं
कभी सोच कर कामिाबी
सपनों में जीते हैं
कभी सोच कर असफलता को
सपनों में मरते हैं
नहीं सोचते सपनों को पूरा
नहीं करते राह का यनमााि
बस सपनों में
जीते-मरते हैं
सपनों के शलए
सपनों से बाहर यनकलकर

107
मुकम्मल ख़्वाब

एक कोशशश नहीं करते हैं


अक्सर िूूँ ही
हम अपने सपनों में
जीते-मरते हैं ।

******

108
मुकम्मल ख़्वाब

दूर

सपनों के शलए
घर से दूर
मैं मजबूर
बहुत कुछ छूटा
हो र्ई सब से दूर
मैं मजबूर
अपनी प्यारी चीजों को छोड़
प्यारी जर्ह को भी छोड़
हूँ बहुत दूर
मैं मजबूर
सपनों के शलए
घर से दूर
मैं हूँ मजबूर ।

******

109
मुकम्मल ख़्वाब

मन की आशा

मन की एक
छोटी सी आशा
मेरे जीवन की पररभार्ा

मेरी आशा, मेरे सपने


मेरे जीवन को दशााते हैं

बताकर मेरे कवचारों को


यनराश लोर्ों में भी
उमंर् भर जाते हैं

सबको प्रेररत करना


मेरे जीवन की पररभार्ा
सबके साथ खड़े रहकर

लक्ष्य तक ले जाना
मेरे मन की है इक आशा
िही है मेरे जीवन की पररभार्ा ।

******

110
मुकम्मल ख़्वाब

राही

राही हम मतवाले
हदखते हैं भोले-भाले
राही हम मतवाले
जो मन करे
वो करते हैं
ना ककस्मत थाम
के रोने वाले
राही हम मतवाले
सूरत हमारी मासूम है
हदल के सच्चे
लेककन है हम
इततहास रचने वाले
राही हम मतवाले
हदखते हैं हम
भोले-भाले ।

******

111
मुकम्मल ख़्वाब

तततशलिाूँ - ख्वाब

कुछ तततशलिाूँ ख्वाब दे खती हैं


वह समाज की बेहड़िाूँ झेलती हैं
मानो अणभशाप लर्ा हो उनको
वो बड़े-बड़े सपने कहाूँ दे खती हैं

िूूँ तो हर िेत्र में


तततशलिों का ही परचम है
लेककन हफर भी खुद को
असहाि दे खती है
कुछ तततशलिाूँ ख्वाब दे खती है

कुछ तततशलिाूँ यमले


मकरन्द से खुश है
कुछ तततशलिाूँ तोड़ कर बेहड़िा
मंशज़ल का नव यनमााि दे खती है

112
मुकम्मल ख़्वाब

िूूँ तो सुिर र्िा है दे श


हफर भी कुछ तततशलिाूँ
आज भी भेदभाव देखती है
जहाूँ उनके परों को कुचल
हदिा जाता है।

समाज क्या कहेर्ा


कहकर रोक हदिा जाता है
इस स्थस्थतत में शसफा वो
टीचर बनने तक ही ख्वाब देखती है

शािद िे भी बड़ी
बात है उनके शलए
तभी वो खुद को
भाग्यवान देखती है

लेककन वास्तकवक जीवन जी नहीं पाती


वो संतुि होती हैं
ककस्मत से जो यमले
अपने शजनके अरमानों को पूरा करने

113
मुकम्मल ख़्वाब

हफर भी कुछ तततशलिां ख्वाब दे खती हैं


शजन्हें वह सच कर नहीं पाती।
कुछ तततशलिाूँ आज भी
ख़्वाब दे खती है
कुछ तततशलिाूँ खुद के
शलए लड़ना नहीं जानती

वो भी कुछ बड़े से
बड़ा कर सकती है
अपनी शयक्त को नहीं पहचानती
जीवन को जीना चाहती तो है

लेककन वास्तकवक जीवन जी नहीं पाती


वो संतुि होती है ककस्मत से जो यमले
अपने हदल के ख्वाबों को पूरा करने
हफर भी, कुछ तततशलिाूँ ख्वाब दे खती हैं
शजन्हें वो सच नहीं कर पाती।

******

114
मुकम्मल ख़्वाब

नजर अंदाज़

अर्र मौका यमला है


कुछ करने का तो

उसका पररिार् मत करना


तुम उसको नजर अंदाज़
मत करना

जो रास्ता हदख रहा है


उसपे चलने से मत घबराना

जो यमला है उसको
नजर अंदाज़ मत करना

तुम चलते रहना


रास्तों को नजर अंदाज़
मत करना ।

******

115
मुकम्मल ख़्वाब

र्ीत

क्या र्ीत शलखूूँ मैं


भूला-बबसरा अतीत शलखूूँ मैं
कुछ उम्मीदों के मर जाने पर
कैसे संर्ीत शलखूूँ मैं

असफलता से सीखूूँ
सीखकर, तकदीर शलखूूँ मैं
क्या र्ीत शलखूूँ मैं
भूला-बबसरा अतीत शलखूूँ मैं

भरकर जोश, लेकर निी उमंर्


मन को हर्ा से भरकर
एक सुन्दर संर्ीत शलखूूँ मैं
निे-निे से र्ीत शलखूूँ मैं
सुन्दर संर्ीत शलखूूँ मैं

116
मुकम्मल ख़्वाब

‘‘वक्त ने कुछ शसखािा होर्ा


तभी बालर्ीत शलखने की
उम्र में शज़न्दर्ी शलख रही हूँ ।’’

******

117
मुकम्मल ख़्वाब

भार्ा

भार्ा
जो कक इक जररिा है
अपने कवचार दशााने का
भार्ा
जो कक इक माध्यम है
प्यार व्यक्त करने का
भार्ा
मेरी मातृभार्ा हहन्दी है
मुझे प्रािों से प्यारी है
भार्ा
मेरी मातृभार्ा
जो मेरे देश को
पहचान हदलाती है
मेरी मातृभार्ा
जो र्वा से बताती है
कक हम हहन्दुस्तानी है
भार्ा
मेरी मातृभार्ा

118
मुकम्मल ख़्वाब

शजससे सबको प्यार हुआ है


बड़े-बड़े व्ययक्तिों ने भी
इसको स्वीकार ककिा है
भार्ा मेरी मातृभार्ा।

******

119
मुकम्मल ख़्वाब

निे रास्ते

निे रास्ते हैं


निी मंशज़ले हैं
निा-निा सा
है िे सफर
िू॰ पी॰ एस॰ सी॰
में सब कुछ निा है
सब कुछ पढ़ना है
चहुमुाखी ज्ञान का है सफर
निा-निा सा
है िे सफर।

******

120
मुकम्मल ख़्वाब

कमरे की चीजें

कमरे की बबखरी
चीजों में र्ुम है

अनकहे, अनसुलझे
कुछ ककस्से

अभी भी
र्ुम है

डािरी के कुछ
पन्ने खोिे हैं

खोज तो रही हूँ


लेककन खोिे हैं

कमरे की बबखरी
चीजों में र्ुम
कुछ चीजे, बाते

121
मुकम्मल ख़्वाब

अभी भी र्ुम है
कुछ एहसास
अभी भी र्ुम है ।

******

122
मुकम्मल ख़्वाब

टूटी - बबखरी चीजें

कुछ चीजें,
जो िूूँ ही बबखरी रहती है
काम नहीं है उनका कुछ
चीजें अक्सर टू टी रहती है
फेंकने का मन नहीं
करता, इन टू टी-बबखरी चीजों कों

अक्सर िे चीजें
हदल के करीब होती है
टू टने के बाद भी
उम्मीद होती है
थे चीजें अक्सर बबखरी रहती है
मन नहीं करता सूँभालने को
हर पल आूँखें दे खना चाहती है
मन नहीं करता, इनको समेटने का

123
मुकम्मल ख़्वाब

फेंकने का मन नहीं करता


इन टू टी बबखरी चीजों को
कुछ चीजें . . . . . . . . ।

******

124
मुकम्मल ख़्वाब

ककस सोच में पड़े हो

ककस सोच में पड़े हो


तुम अब तक क्यों खड़े हो
तुम चलो, न रुको

जो खोना था खो र्िा
उसको पाने की शज़द में क्यों अड़े हो
तुम अब तक क्यों खड़े हो
ककस सोच में पड़े हो

सब जार् रहे, तुम सो रहे हो


ककस्मत को पकड़कर क्यों रो रहे हो
तुम अब तक क्यों खड़े हो
तुम चलो, ना रुको

जो समि बरबाद होना था, हो र्िा


जो बचा है उसको क्यों खो रहे हो
ककस्मत को थामे क्यों रो रहे हो
तुम अब तक क्यों खड़े हो
ककस सोच में पड़े हो ।

******

125
मुकम्मल ख़्वाब

# DEAR MA’AM

एक बबखरी सी शज़िंदर्ी को,


कुछ िूूँ प्यार हदिा
मेरे हाथ में कलम दे कर
मेरा िे जीवन सूँवार हदिा

वास्तव में, बबखरी थी िे शज़न्दर्ी


शजसको खुशशिों से भरा है
मैं हताश होकर बैठ र्ई थी
आपके प्यार और कवश्वास ने
हफर से खड़ा ककिा है

एक उदास मन को भी
खुश रहना शसखा हदिा
मेरे हाथ में कलम दे कर
मेरा जीवन सूँवार हदिा ।

******

126
मुकम्मल ख़्वाब

# DEAR MA’AM

आपको सोचने से ही मन, प्रफुल्लल्लत हो उठता है


आपकी मुस्कुराहट से ही सारी शचिंताएूँ खत्म होती है
आपके साथ से तो अब संघर्ा भी मीठा लर्ता है
आपके कवश्वास से तो खुद पर कवश्वास होता है
आपकी उम्मीद से सब कुछ करने का मन करता है
आपके हर ख़्वाब मुकम्मल करने का मन करता है
आपके होने से सब कुछ मुमककन लर्ता है,
# DEAR MA’AM
एक उम्मीद जर्ी है
कुछ करने की चाह लर्ी है
जो टू ट र्िे थे सपने
हफर से जुड़ आिे हैं
आपके आने से बहुत खुशी यमली है
हाूँ एक उम्मीद जर्ी है।

******

127
मुकम्मल ख़्वाब

समझौता नहीं करना

समझौता नहीं करना मुझे


जीवन में समझौता नहीं करना
एक उम्मीद के टू ट जाने से
जीवन नहीं रुका करता है
जीवन में समझौता नहीं हुआ करता है

उम्मीद को जर्ाना होता है


सपनों को बुनना होता है
समझौता नहीं करके
संघर्ा करना होता है
कोई नहीं यर्र जाने से
जीवन नहीं रुका करता है
जीवन में समझौता नहीं हुआ करता है

128
मुकम्मल ख़्वाब

कैसे कर लूूँ मैं समझौता


मेरे सपने नींद के सपने नहीं है
दे खा है इनको खुली आूँखों से
क्योंकक हौंसले जुनन
ू ी कभी झुकते नहीं है
थोड़ी मुत्यिल आ जाने से
जीवन नहीं रुका करता है
जीवन में समझौता नहीं हुआ करता है ।

******

129
मुकम्मल ख़्वाब

हफा-हफा शलखा है

हफा-हफा शलखा है
शज़न्दर्ी का अफसाना
कभी वक्त यमले
तो आओ पढ़ने
बहुत शशद्दत से इकट्ठा
ककिा है मोततिो को
कभी वक्त यमले
तो आओ र्ढ़ने
क्यों बेरंर् पड़े हो
रं र् भरे मौसम में,
क्यों बेरंर् पड़े हो
जो खो र्िा उसको
पाने की शज़द में
क्यों अड़े हो, तुम
अब तक क्यों खड़े हो
तुम अब तक क्यों ?

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130
मुकम्मल ख़्वाब

कोशशश करते रहहए

कोशशश करते रहहए


कभी तो सुबह आएर्ी
अंिेरे के बाद ही
एक अच्छी सुबह आएर्ी
मुत्यिलों से हार मत जाना
चेहरे पर जरूर चमक आएर्ी
कोशशश करते रहहए
कभी तो सुबह आएर्ी
अभी नहीं है कोई भी पहचान
तुम मेहनत करो, पहचान भी बन जाएर्ी
राह पर काूँटे बबखरे हो
हफर भी तुम चलो
शाम यछपा
लेने दो सूरज को
एक निी ककरि जरूर आएर्ी
कोशशश करते रहहए।

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131
मुकम्मल ख़्वाब

आत्मा आवाज़ दे ती है

जब राही पथ से भटके
आत्मा आवाज दे ती है

जब सपनों को भूले तब
आत्मा आवाज दे ती है

जब मनोबल यर्रने लर्े


आत्मा आवाज दे ती है

जब राही थक कर बैठे
आत्मा आवाज दे ती है

जब मन से कोई हार जाए


आत्मा आवाज दे ती है।

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132
मुकम्मल ख़्वाब

कभी मैं शब्द शलखती थी

कभी मैं शब्द शलखती थी


अब शब्द मुझे शलखते हैं।
कभी मेरे, शब्दों में कल्पनाएूँ थी
अब शब्द, मुझे व्यक्त करते हैं

इन शब्दों से कुछ र्हरा ररश्ता है


मैं खुद कुछ नहीं शलखती
मेरे शब्द, मेरा एहसास शलखते हैं

मुझे ज्ञान नहीं हैं,


काव्य के यनिमों का
मैं नहीं शलखती कोई ककवता
मेरे शब्द, मेरा कवश्वास शलखते हैं।

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133
मुकम्मल ख़्वाब

एक हदन तुम भी दे खोर्े

मैं आज जहाूँ हूँ,


कल उससे आर्े दे खोर्े
अभी तो शुरूआत है
कल बढ़ता देखोर्े
सूरज सी बड़ी नहीं हूँ मैं
हफर भी ऊूँचा दे खोर्े
ना ही इतना तेज है मुझमें
हफर भी जलता देखोर्े
मुझे हफक्र नहीं है अूँिेरे की
मैं हूँ वो जुर्नू शजसको
तुम एक हदन रोशन देखोर्े
एक हदन तुम भी दे खोर्े ।

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134
मुकम्मल ख़्वाब

उम्मीद नहीं छोड़ी है

उम्मीद नहीं छोड़ी है


मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी है
बार-बार असफल होकर भी
उम्मीद नहीं छोड़ी है
कुछ करने की ठानी है
खुद की ही मानी है
मैं अब सब करूूँर्ी
जरूर बहुत बड़ा करूूँर्ी
मेरा हौसला बड़ा है
शजसकी दुयनिा दीवानी है
उम्मीद नहीं छोड़ी है
उम्मीद नहीं छोड़ी है ।

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135
मुकम्मल ख़्वाब

रोज एक ख़्वाब टूट जाता है

रोज एक ख़्वाब टू ट जाता है


जैसे कोई अजीज मुझसे रूठ जाता है
मेरी रूशच को जब इतर कहा जाता है
मेरा हदल पल में टू ट जाता है
जब मैं कोई उपलब्धि बताती हूँ
खुशी नहीं, शब्दों से मन खुद से रूठ जाता है।
रोज एक ख़्वाब टू ट जाता है
रोज कुछ पीछे छूट जाता है।

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136
मुकम्मल ख़्वाब

शज़न्दर्ी तू कहाूँ खो र्ई

शज़न्दर्ी तू कहाूँ खो र्ई

ढू ूँ ढते हैं हम तुझे िहाूँ वहाूँ

शज़न्दर्ी तू क्यों खफा हो र्ई

आखखर तू है कहाूँ

तू क्यों मुझसे जुदा हो र्ई

शज़न्दर्ी तू कहाूँ खो र्ई।

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137
मुकम्मल ख़्वाब

इरादा करके दे खो

इरादा करके देखो


तुम कर जाओर्े
खुद पर कवश्वास तो करो
तुम जीत जाओर्े

जो राह है कहठन
उसको भी आसान पाओर्े
इरादा करके तो दे खो
तुम कर जाओर्े

जो शसफा सपने है
उनको सच कर हदखाओर्े
आत्म-कवश्वास तो लाओ
तुम जीत जाओर्े

तुम हहम्मत तो करो


चलने की
मंशज़ल तक पहुूँ च जाओर्े
इरादा करके तो दे खो
तुम कर जाओर्े ।

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138
मुकम्मल ख़्वाब

आओ चाि कपए

रकववार का हदन है

महकते हुए पलयछन है

आओ चाि कपए

चाि एक ज़ररिा है

कुछ कहने का, सुनने का

आओ इस ठण्डी सुबह में बैठे

करने कुछ र्ुफ्तर्ु बैठे

आओ बैठते हैं करके िाद कुछ पुराने ककस्से

दोस्तों संर् एक अलर् ही अंदाज

चाि तब तक नहीं जब तक मूूँर्फली न हो साथ

अरे आओ ना, एक बार हफर बैठते है चाि के साथ

िाद करते हुए वो नहर की बातें, केयमस्ट्री ट्यूशन

टीचर का आर्े र्ेट से आना

हमारा पीछे र्ेट से बंक मारना

139
मुकम्मल ख़्वाब

और भी बहुत कुछ िाद करना है

अपने शब्दों पे कवराम लर्ा रही हूँ

क्योंकक िारो कुछ भी सावाजयनक नहीं करना है

ठीक है, आर्े यमलके करें र्े िाद, चाि के साथ

अरे आओ ना, चाि कपए . . . . . .

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140
मुकम्मल ख़्वाब

हमसे पहचानने में भूल हुई

हम से पहचानने में भूल हुई


हम खुद को नहीं पहचान सके

र्लततिाूँ हुई जो अतीत में


उनको न जान सके

जब असफल हुए, तब क्या ही पछताना है


समि को खोकर, अब क्या ही पाना है

शज़द्दी मन को भी, कुछ समझा न सके


हम खुद को न जान सके, पहचान सके

हम से जानने में भूल हुई


हम खुद को न जान सके।

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141

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