You are on page 1of 1

कालिदास सच-सच बतिाना !

इं दुमती के मृत्यु -शोक से

अज रोया या तु म रोए थे ?

कालिदास, सच-सच बतिाना!

लशवजी की तीसरी आँ ख से

लनकिी हुई महाज्वािा में

घृतलमलित सू खी सलमधा सम

तु मने ही तो दृग धोए थे

कालिदास, सच-सच बतिाना !

रलत रोई या तु म रोए थे?

वर्ाा -ऋतु की लिग्ध भू लमका

प्रथम लदवस आर्ाढ़ मास का

दे ख गगन में श्याम घनघटा

लवधु र यक्ष का मन जब उचटा

लचत्रकूट के सु भग लशखर पर

खड़े -खड़े तब हाथ जोड़कर

उस बे चारे ने भे जा था

लजनके ही द्वारा सं देशा,

उन पुष्करावता मेघों का

साथी बनकर उड़ने वािे

कालिदास, सच-सच बतिाना !

पर-पीड़ा से पूर-पूर हो

थक-थक कर औ ' चूर-चूर हो

अमि-धविलगरर के लशखरों पर

लप्रयवर तु म कब तक सोए थे ?

कालिदास, सच-सच बतिाना !

रोया यक्ष लक तु म रोए थे ?

You might also like