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कब तक हमको

ब ाँटोगे

लेखक

संतोष ससंह
प्रकाशक: OnlineGatha – The Endless Tale
पता: सी -2, तृतीय तल, खुशनुमा कॉम्प्लेक्स, मीरा बाई मार्ग,
हजरतर्ंज, लखनऊ, उत्तर प्रदेश 226001
संपकग: + 91-9936649666

वेबसाइट: www.onlinegatha.com

ISBN: 978-93-86915-74-0

मूल्य: ₹ 60/-

वर्ग: 2019

प्रकाशक पत्री
©सभी अधिकार कॉपीराइट सहहत लेखक के साथ आरधित है ।
ऑनलाइनर्ाथा पुस्तक प्रकाशन का एक संर्ठन है । यह स्थान
ऑनलाइन साहहत्यिक, शैिणिक और वैज्ञाननक दनु नया में एक क़दम
है । यह काग़ज़ी प्रनत की रचनाओं को ऑनलाइन दनु नया से जोड़कर
काम करता है ।
यह पुस्तक सद्भावना में प्रकाशशत की र्ई है नक लेखक का कायग
मौललक है । पुस्तक को त्रुटट मुक्त करने के ललए सभी प्रयास नकए र्ए
हैं । पुस्तक का कॉपीराइट लेखक के पास अनुरधित है और इस पुस्तक
का कोई भी हहस्सा प्रकाशक और लेखक की ललणखत अनुमनत के नबना
नकसी भी तरीके से पुनः उत्पन्न नहीं नकया जा सकता है ।

संतोष ससंह | ii
प्रस्तावना

मुझे पूिग नवश्वास है नक हहिंदी साहहि पढ़ने में हम में से बहुतों को अिंत
आनन्द का अनुभव होता है । हहिंदी प्रेममयों का हरदम मन करता है नक
नई हहिंदी रचनाओं को पढ़ा और सुना जाये । मैंने अपने आस-पास जो
देखा, महसूस नकया, वही ललखा है । इस नकताब की हर कनवता, मुझे
नकसी न नकसी घटना की याद टदलाती है । उदहारि के तौर पर, "हहन्द ू
की र्ीता" कनवता मैंने दंर्ो से प्रेररत होकर ललखी है ।

मैंने इस नकताब में णज़िंदर्ी के हर भाव को रखने की कोशशश की है,


चाहे वो णज़िंदर्ी के दााँव-पेच हों, या िमों की नासमझी, वीर जवानो
की र्ाथा हो या नई चुभन की व्यथा। मेरी कनवता नकसी भी िमग और
जाती के पि या नवपि में नहीं है । मेरी कनवता हर उस इंसान के ललए
है णजसके ललए िमग और जानत से ऊपर इंसाननयत है । मेरी इस नकताब
में मपता की लोरी, शशिक का मान, सैननकों से प्रेम, णज़िंदर्ी से बातचीत,
िमों के बीच भाईचारा और जीवन भर साथ ननभाने वाले दो टदलों की
ख्वाइश है ।

मेरी राय में यह पुस्तक बहुत अच्छी है और सभी को पढ़नी चाहहए । यह


मेरा पहला प्रयास है, हहिंदी सुनने वालों के टदल तक पहुंचने की और
उनके टदल पे असर करने की । मिर भी अर्र नकसी को मेरी कोई भी
कनवता से आहत होती है तो मैं माफ़ी मांर्ता हाँ । इस पुस्तक में लर्ाए
र्ए चचत्र र्ूर्ल से ललए र्ए हैं ।

संतोष ससंह | iii


मंटदर में भर्वान, अर्र हों तो बोलो हम चलते हैं !
हो मस्जज़द में अल्लाह बैठे, तो बोलो हम चलते हैं !
वना हमको माफ़ करो, हम अपने काम को चलते हैं !!
झूठ की दनु नया में अक्सर, लोर् सच को झूठ समझते हैं !
जो बैठा है सबके अंदर ,क्यों हम उसको बाहर ढू ंढते हैं !
करना है तो करो यक़ीन, हम सबको ये सच कहते हैं !!

संतोर् धसिंह

संतोष ससंह | iv
समर्पण

यह कनवता कोर् सममपित है, मेरे उन सभी हहिंदी पढ़ने और सुनने वालों
को, जो कनवता से और कनव की सोच से प्रेम करते हैं ! मैं सदा आभारी
रहाँर्ा मेरे उन दोस्तों का, णजन लोर्ों ने मुझे डायरी दी ललखने के ललए ।
मैं सदा आभारी रहाँर्ा उस वक़्त का णजसने मेरे अंदर अच्छा ललखने का
सामर्थ्ग पैदा नकया । मैं सदा आभारी रहाँर्ा इन सााँसों का, णजन्होंने मेरा
साथ टदया इन कनवताओं को ललखने में ।

यह मेरी कनवता कोर् नहीं, यह उन सभी लोर्ों की कनवता कोर् है जो


इसे अभी पढ़ रहे हैं । मेरी नवनती है उन सभी लोर्ों से नक अपनी राय
मुझे ज़रूर बताएं । यह कनवता कोर् आपको कै सी लर्ी मुझे ज़रूर
बताएाँ ।

आपका आभारी
संतोर् धसिंह

संतोष ससंह | v
अनुक्रमसणका
रोज थोड़ी सी दरू रयां ........................................................................................ 1
कब तक हमको बााँटोर्े .................................................................................... 2
ना टोपी न टीका .............................................................................................. 4
मैं शशिक हाँ ....................................................................................................... 6
पहचान करा दाँू .................................................................................................. 8
बाबूजी के ज़माने में ......................................................................................... 9
मेरे र्ांव सा ...................................................................................................... 11
कोई दोस्त ममला ............................................................................................ 13
तलाश .............................................................................................................. 15
कल की कहानी .............................................................................................. 18
बस इतने ही हैं उसूल ..................................................................................... 20
टदल का टु कड़ा .............................................................................................. 22
तेरे चेहरे पे ....................................................................................................... 24
पैसे हैं नहीं ....................................................................................................... 27
मेरे वसूल..........................................................................................................29
तुम कमग करो ................................................................................................... 31
ररश्तों में दरू ी ....................................................................................................32
ख्वाब क्या हैं...................................................................................................34
भारत और भारती .......................................................................................... 36
तुम्ह े याद होर्ा मप्रये ........................................................................................38
एक टदलरुबा.................................................................................................. 40

संतोष ससंह | vi
साथ उम्र भर का ............................................................................................. 41
उसका हाँसना ...................................................................................................43
ख्वाब हो पलें ..................................................................................................45
इक र्ीत........................................................................................................... 47
खुली वाटदयााँ ................................................................................................. 49
ललखता चला र्या .......................................................................................... 51
प्यार हमेशा ऐसा हो ....................................................................................... 53
मंणज़ल नहीं बदलते.........................................................................................54
कोई ग़ज़ल ...................................................................................................... 55

संतोष ससंह | vii


रोज थोड़ी सी दरू रयां

हहन्द ू की र्ीता पढ़ ली, मुस्लिम का कु रान पढ़ा !


मस्जिद में नमाज अदा की, मंटदर की सीटढयााँ चढ़ा !!

कहीं नहीं देखा हमने, हो ललखी निरत की बातें !


मिर कै से बढ़ते जा रही हैं, रोज थोड़ी सी दरू रयां !!

हहन्द ू की र्ीता पढ़ ली, मुस्लिम का कु रान पढ़ा !


मस्जिद में नमाज अदा की, मंटदर की सीटढयााँ चढ़ा !!

लह एक जैसा है सबका, अरमां एक जैसे हैं अंदर !


मिर क्यों करते हैं हम, टोपी-टीके का अंतर !!

हहन्द ू की र्ीता पढ़ ली, मुस्लिम का कु रान पढ़ा !


मस्जिद में नमाज अदा की, मंटदर की सीटढयााँ चढ़ा !!

संतोष ससंह | 1
कब तक हमको बााँटोर्े

राम का मंटदर, रहीम की मस्जिद


कब तक हमको बााँटोर्े
मैं तो हर जर्ह, हर टदल में, हर कि-कि में बस्ता हाँ !
सटदयों से ये बात पुरानी, हर युर् में मैं कहता हाँ !!
राम का मंटदर, रहीम की मस्जिद
कब तक हमको बााँटोर्े !!

लह का रंर् नहीं बदला, मौसम की चाल नहीं बदली !


कई बार जन्म, कई बार मरि मिर भी ये ख्याल नहीं बदली !!
राम का मंटदर, रहीम की मस्जिद
कब तक हमको बााँटोर्े !!

संतोष ससंह | 2
मंटदर में कहीं राम बनाया और कहीं घनश्याम बनाया !
मस्जिद में आकर पााँचों पहर, तुमने अपना शीश झुकाया !!
मिर भी कहो क्या तुमने मुझको, अपने पास कहीं पाया !!
राम का मंटदर, रहीम की मस्जज़द
कब तक हमको बााँटोर्े !!

मैं तो हर जर्ह, हर टदल में, हर कि-कि में बस्ता हाँ !


सटदयों से ये बात पुरानी, हर युर् में मैं कहता हाँ !!
राम का मंटदर, रहीम की मस्जज़द
कब तक हमको बााँटोर्े !!

मुझको पाना बहुत सहज है, मन में तेरे मैल बहुत है !


मैं तो हाँ तेरे ही अंदर, तू ही मुझसे दरू बहुत है !!
राम का मंटदर, रहीम की मस्जज़द
कब तक हमको बााँटोर्े !!

मैं तो हर जर्ह, हर टदल में, हर कि-कि में बस्ता हाँ !


सटदयों से ये बात पुरानी, हर युर् में मैं कहता हाँ !!
राम का मंटदर, रहीम की मस्जज़द
कब तक हमको बााँटोर्े !!

संतोष ससंह | 3
ना टोपी न टीका

ना टोपी सर पे, न टीका सर पे


ना देखो हमको, ऐसी नज़र से !!
कबीरा समझ के ही मपला दो
प्यार से बस पानी मपला दो !!

भूख अब लर्ती नहीं, जल र्या है पेट अब


प्यास है बस प्यार की, दे सको तो दे दो अब !!
ना टोपी सर पे, न टीका सर पे
ना देखो हमको, ऐसी नज़र से !!

आसमां से पूछ लो, जो भी टदल में है सवाल


क्यों दबा के रखते हो, टदल में कोई सुलर्ा ख्याल !!
दरू रयों से क्या ममलेर्ा, कु छ नहीं, कु छ नहीं
नज़दीक आकर देख लो, कोई रो रहा है तुम्हारा अपना !!

संतोष ससंह | 4
ना टोपी सर पे, न टीका सर पे
ना देखो हमको, ऐसी नज़र से !!
कबीरा समझ के ही मपला दो
प्यार से बस पानी मपला दो !!

संतोष ससंह | 5
मैं शशिक हाँ

मैं शशिक हाँ, शशिा देना मेरा कमग हैं !


मुझे नहीं लर्ता है, कोई इससे बड़ा भी िमग है !!

मैं भेद-भाव नहीं करता, मैं रूप-रंर् नहीं देखता !


मैं तलवार नहीं चलाता, मैं आवाज़ उठाता हाँ !
हर बच्चे का हक़ है, शशिा, ये सबको समझाता हाँ !!

मैं शशिक हाँ, शशिा देना मेरा कमग हैं !


मुझे नहीं लर्ता है, कोई इससे बड़ा भी िमग है !!

मैं समाज बनाता हाँ, मैं समाज बनाता हाँ !


हर बच्चों के सपनों में मैं ही पंख लर्ाता हाँ !

संतोष ससंह | 6
णज़म्मेदारी बड़ी है मेरी, ये बात खूब समझता हाँ !
इसललए हर र्ांव, हर कसबे को मैं शशधित करता हाँ !!

मैं शशिक हाँ, शशिा देना मेरा कमग हैं !


मुझे नहीं लर्ता है, कोई इससे बड़ा भी िमग है !!

संतोष ससंह | 7
पहचान करा दाँू

आ कं िे पे बैठ मेर,े इन र्ललयों से पहचान करा दाँू !


मैं दौड़ा हाँ इन र्ललयों में, तुझको भी दौड़ धसखा दाँू !!

मेरे पास कु छ हैं नहीं, जो दाँू तुझे नवरासत !


लेना चाहे तो ले लेना, मेरे शोख और मेरी आदत !!

आ कं िे पे बैठ मेर,े तुझको कु छ बात बता दाँू !


जो सीखा हाँ तुझे धसखा के , अपना िज़ग ननभा लूाँ !!

समय चक्र जब बदलेर्ा, तू मुझ सा और मैं तुझ सा हो जाऊंर्ा !


मिर तेरे कं िे पे ही, मैं इन र्ललयों से जाऊंर्ा !!!

आ कं िे पे बैठ मेर,े इन र्ललयों से पहचान करा दाँू !


मैं दौड़ा हाँ इन र्ललयों में, तुझको भी दौड़ धसखा दाँू !!

संतोष ससंह | 8
बाबूजी के ज़माने में

बाबूजी के ज़माने में, टदवाली अच्छी मनती थी !


नए-नए कपड़ो के संर्, खूब ममठाइयां बनती थी !!

रंर्-नबरंर्े झालर के संर्, सुबह से घर सजाते थे !


चार टदन पहले से ही, चमकदार स्टार बनाते थे !!

बाबूजी के ज़माने में, टदवाली अच्छी मनती थी !


नए-नए कपड़ो के संर्, खूब ममठाइयां बनती थी !!

मााँ टदवाली से पहले, र्ुणजया बनाती रहती थी !


मत जाओ नज़दीक पटाखों के , रसोई से कहा करती थी !!

संतोष ससंह | 9
दोस्त-यार जब हाथ में लेकर, बुलेट बम िोड़ा करते थे !
बाबूजी र्ुस्से में लाल, चचल्लाते घर ले जाया करते थे !!

बाबूजी के ज़माने में, टदवाली अच्छी मनती थी !


नए-नए कपड़ो के संर्, खूब ममठाइयां बनती थी !!

संतोष ससंह | 10
मेरे र्ांव सा

ये शहर नहीं मेरे र्ांव सा


ये लोर् नहीं मेरे लोर् से
मैं कै से रहं इक पल यहााँ
कै से बचूं निरत के रोर् से ।

आाँखों में नहीं टदखता है प्यार,


होठों पर नहीं, कोई मीठी बात
मुझे पार्ल ये कहने वाले,
कब समझेंर्े सच्ची बात ।

ये शहर नहीं मेरे र्ांव सा


ये लोर् नहीं मेरे लोर् से...

संतोष ससंह | 11
हर कोई यहााँ तैयार है,
अपनों पे वार करने को
हर सांस यहााँ तरसती हैं,
दो पल का प्यार पाने को ।

ये शहर नहीं मेरे र्ांव सा


ये लोर् नहीं मेरे लोर् से...

नींद से जार्-जार् कर देखे,


मााँ बच्चों की शक़्ले
क्या पता नकस घड़ी भीर् जाए,
नकस मााँ की पलकें ।

ये शहर नहीं मेरे र्ांव सा


ये लोर् नहीं मेरे लोर् से
मैं कै से रहं इक पल यहााँ
कै से बचूाँ निरत के रोर् से ।

संतोष ससंह | 12
कोई दोस्त ममला

कोई दोस्त ममला न जानशीं ममला...


कोई र्म ममला न हसीं ममला...
तेरे शहर में र्ुज़रे सालों का
मेरी यादों में न ननशााँ ममला...

कोई पल नहीं र्ुज़रा ऐसा, जो ख़्वाबों में आ सके !


कोई बात नहीं लर्ी अच्छी, जो तन्हाई में हाँसा सके !!

कोई दोस्त ममला न जानशीं ममला...


कोई र्म ममला न हसीं ममला...
तेरे शहर में र्ुज़रे सालों का
मेरी यादों में न ननशााँ ममला...

संतोष ससंह | 13
सांसों का बोझ यहााँ अब तो उठा नहीं पाएंर्े !
जाने के बाद यहााँ से, मिर लौट के ना आएंर्े !!

कोई दोस्त ममला न जानशीं ममला...


कोई र्म ममला न हसीं ममला...
तेरे शहर में र्ुज़रे सालों का
मेरी यादों में न ननशााँ ममला...!!

संतोष ससंह | 14
तलाश

मंणज़ल नहीं, साहहल नहीं,


हुआ कु छ भी हाधसल नहीं,
तलाश से मेरी !
तलाश ही मंणज़ल बनी, तलाश ही साहहल,
तलाश ये कै सी रही,
पूछो एहसास से मेरी !!

चलता रहा उर्ते सूरज संर्,


रुकता रहा ढलते सूरज संर् !
आाँखों में बस इक ख़्वाब ललए,
सारी रात र्ुज़ारे चााँद के संर् !!

संतोष ससंह | 15
मैं रुका जहां भी,
वहीं पेड़ों की शाखों पे अिसाने ललखे !
देख के सबने यही कहा,
कल होंर्े यहााँ दीवाने ममले !!

मंणज़ल नहीं, साहहल नहीं,


हुआ कु छ भी हाधसल नहीं,
तलाश से मेरी !
तलाश ही मंणज़ल बनी, तलाश ही साहहल,
तलाश ये कै सी रही,
पूछो एहसास से मेरी !!

इक मुसामिर से मंणज़ल,
दरू कब तक रहेर्ी
है चलना ही काम णजनका,
उनसे खिा नकस्मत कब तक रहेर्ी
पांव थके पर हौसले न कम हुए मेर,े
और थकावट की न आई बू कभी सांस से मेरी !
ममट भी र्ये ये णजस्म तो,
पसीने की खुशबू आती रहेर्ी लाश से मेरी !!

संतोष ससंह | 16
मंणज़ल नहीं, साहहल नहीं,
हुआ कु छ भी हाधसल नहीं,
तलाश से मेरी !
तलाश ही मंणज़ल बनी, तलाश ही साहहल,
तलाश ये कै सी रही,
पूछो एहसास से मेरी !!

संतोष ससंह | 17
कल की कहानी

चंद सांसों की णज़न्दर्ानी है


कई अरमानो की कहानी है
हमने णजतना समझा णज़न्दर्ी को
हर पल में र्ुज़रे कल की कहानी है !!

हर चेहरे पे खुशशयााँ, दम तोडती हुई टदखती हैं !


हर टदल में कु छ है, जो टदल को ही चुभती हैं !!
कई शशकवे णज़न्दर्ी से, मिर भी जीने की ललक !
कोई ख़ुशी नहीं है मिर भी, आाँखों में है उम्मीदों की झलक !!

चंद सांसों की णज़न्दर्ानी है !


कई अरमानो की कहानी है !!
हमने णजतना समझा णज़न्दर्ी को !
हर पल में र्ुज़रे कल की कहानी है !!

संतोष ससंह | 18
हर आाँखों में कई ख़्वाब जले, हर टदल में कई तस्वीर !
मिर भी ढू ंढ रहे हैं लोर्, ख़्वाबों में ही तक़दीर !!
हर कोई है जख़्मी यहााँ, जख़्म अभी मेरे भी ताज़े !
ढू ंढ रहा हाँ मैं भी उनको, जो तोड़ र्ए हैं टदल के िार्े !!

चंद सांसों की णज़न्दर्ानी है !


कई अरमानो की कहानी है !!
मेरे जाने से पहले आ जाओ !
नक ये आणखरी नग़्मा,
धसिग तुम्ही को सुनानी हैं !!

चंद सांसों की णज़न्दर्ानी है !


कई अरमानो की कहानी है !!
हमने णजतना समझा णज़न्दर्ी को !
हर पल में र्ुज़रे कल की कहानी है !!

संतोष ससंह | 19
बस इतने ही हैं उसूल

दोस्ती और णज़िंदर्ी के बस इतने ही हैं उसूल !


एक बार जो टू ट र्ई तो मिर सारी यादें हैं मिज़ूल !!

ख़्वाबों में टदखाई देता है,


र्ुज़रा हुआ वक़्त िुि
ं ला-िुि
ं ला सा !
सारे र्ुज़रे लम्हों को कै द कर लेता,
अर्र आसमां न होता खुला-खुला सा !!

दोस्ती और णज़िंदर्ी के बस इतने ही हैं उसूल !


एक बार जो टू ट र्ई तो मिर सारी यादें हैं मिज़ूल !!

संतोष ससंह | 20
साथ छू टने के बाद, कोई साथ था,
ये एहसास हुआ तो क्या हुआ !
सााँसें रुकने के बाद, णज़िंदर्ी थी पास,
ये एहसास हुआ तो क्या हुआ !!

एक छोटी से णजद्द पे अड़े रहे,


तुम दरू कहीं, हम दरू कहीं, यूाँ ही तनहा पड़े रहें !
ननकल र्ए नकतने मौसम,
और हम आज भी वहीं खड़े रहे !!

दोस्ती और णज़िंदर्ी के बस इतने ही हैं उसूल !


एक बार जो टू ट र्ई तो मिर सारी यादें हैं मिज़ूल !!

संतोष ससंह | 21
टदल का टु कड़ा

तू थोड़ा सा है मुझ सा, थोड़ा सा अपनी मााँ सा !


हम दोनों के टदल का टु कड़ा, हस्ता तू रहे यूाँ हमेशा !!

तेरी नन्ही बााँहों में, हमको तो ममली है दनु नयााँ


हम मिर से लर्े हैं जीने, प्यारी लर्ने लर्ी है दनु नयााँ !!

तू थोड़ा सा है मुझ सा, थोड़ा सा अपनी मााँ सा !


हम दोनों के टदल का टु कड़ा, हस्ता तू रहे यूाँ हमेशा !!

तू है इतना मासूम, तू है इतना प्यारा


नक देख के ही तुझको, मेरा ददग ममटे सारा !!

संतोष ससंह | 22
इस घर को बनाया घर, तेरा ये पहला कदम
तू लर् जा र्ले से मेर,े अब टदल में नहीं कोई र्म !!

तू थोड़ा सा है मुझ सा, थोड़ा सा अपनी मााँ सा !


हम दोनों के टदल का टु कड़ा, हस्ता तू रहे यूाँ हमेशा !!

जो मैं नहीं कर पाया, वो तुझको करना है !


मेरे सारे अिूरे ख़्वाबों का, तुझसे ये कहना है
मेरे नाम से तुझको, थोड़ी दनु नयााँ जानेर्ी !
तेरे नाम से हम दोनों को, सारी दनु नयााँ जानेर्ी !!

तू थोड़ा सा है मुझ सा, थोड़ा सा अपनी मााँ सा !


हम दोनों के टदल का टु कड़ा, हस्ता तू रहे यूाँ हमेशा !!

संतोष ससंह | 23
तेरे चेहरे पे

आज णज़िंदर्ी तेरे चेहरे पे शशकन देखी हमने !


क्या हुआ लोर् मरे हैं पहले की तरह,
पर पहली बार तेरे चेहरे पे शशकन देखी हमने !!

इससे पहले भी हुए हैं हादसे कई,


इससे पहले भी रोई हैं माएाँ कई !
तेरी आाँखों में न देखी थी नमी,
मिर इस बार कहााँ से बरसात हुई !!

तुम न कहो मिर भी,


अंदाज़ा तो लर्ा सकते हैं हम !

संतोष ससंह | 24
इस बार नकसी की सांसें टू टने का,
लर्ता है तुझे भी हुआ है र्म !!

आज णज़िंदर्ी तेरे चेहरे पे शशकन देखी हमने !


क्या हुआ लोर् मरे हैं पहले की तरह,
पर पहली बार तेरे चेहरे पे शशकन देखी हमने !!

दरर्ाहों में दआ
ु मांर्ते,
मेरी तरह तू भी आने लर्ी नज़र !
चौंकने की बात नहीं,
तू ही नहीं हम पे, हम भी रखते हैं तुझ पे नज़र !!

तेरी ही जुबानी हमने सुनी थी,


इन आती-जाती सााँसों की कहानी !
तेरी ही जुबानी सुनना चाहेंर्े,

क्यों छलक रहे आाँखों से पानी !!


आज णज़िंदर्ी तेरे चेहरे पे शशकन देखी हमने !
क्या हुआ लोर् मरे हैं पहले की तरह,
पर पहली बार तेरे चेहरे पे शशकन देखी हमने !!

ये रात भयंकर,
ये सुबह डरावनी !
ये जर्ह बनी है आज,
लाशे-बेकिन की छावनी !!

संतोष ससंह | 25
ये रोती हुई आाँखें देखकर,
मैं डरने लर्ा हाँ इनसे !
इन लाशों में वो भी पड़े हैं,
जो आज ममलने का वादा नकए थे हमसे !!

आज णज़िंदर्ी तेरे चेहरे पे शशकन देखी हमने !


क्या हुआ लोर् मरे हैं पहले की तरह,
पर पहली बार तेरे चेहरे पे शशकन देखी हमने !!

संतोष ससंह | 26
पैसे हैं नहीं

इस वक़्त हमारे पास,


तोहिे के ललए पैसे हैं नहीं !
मैं तुम्ह ें कु छ दे सकूाँ , इन अल्फाज़ों के धसवा,
हालात मेरे पहले जैसे है नहीं !!

मोहताज हुआ मैं इस शहर में,


पैसे-पैसे के ललए
एक पल भी न मााँर्ा नकसी ने दआ
ु ओं में बरकत,
हम जैसों के ललए !!

इस वक़्त हमारे पास,


तोहिे के ललए पैसे हैं नहीं !
मैं तुम्ह ें कु छ दे सकूाँ , इन अल्फाज़ों के धसवा,
हालात मेरे पहले जैसे है नहीं !!

आज के इस दौर से,
हमने सीखा है कल जीने का सबब !
नहीं ममलता है कु छ भी,
पकड़े रहने से दामन वसूलों का महज़ !!
टदया करता था कभी सौर्ाते,
तुझे आज के टदन मैं !
क्या कहाँ नकतना शममिंदा हाँ,
तुझे आज के टदन मैं !!

संतोष ससंह | 27
इस वक़्त हमारे पास,
तोहिे के ललए पैसे हैं नहीं !
मैं तुम्ह ें कु छ दे सकूाँ , इन अल्फाज़ों के धसवा,
हालात मेरे पहले जैसे है नहीं !!

सुना है मौसमो की तरह,


हालात भी बदलते हैं !
सुना है वक़्त की आर् में जलकर,
ख़्यालात भी बदलते हैं !!

अर्र मेरे ख़्यालात बदल र्ए,


मिर समझो की हालात बदल र्ए !
वना ये समझो की ये टदल,
मेरे ये पाओं बहक र्ए !!

इस वक़्त हमारे पास,


तोहिे के ललए पैसे हैं नहीं !
मैं तुम्ह ें कु छ दे सकूाँ , इन अल्फाज़ों के धसवा,
हालात मेरे पहले जैसे है नहीं !!

संतोष ससंह | 28
मेरे वसूल

शूल से चुभ रहे है, मेरे वसूल मुझको !


णजसने टदखाया रास्ता ये, अब ढू ाँढू कहााँ मैं उसको !!

सच का दामन थाम कर, क्या ममला कु छ भी नहीं


कु छ पाने का नवश्वास लेकर, मैं घूमता रहा यूाँ ही !!

मैं बदल सकता नहीं अके ला ही समाज को,


कहानी सुनने वाले कान, सुनते नहीं मेरी आवाज़ को !!

शूल से चुभ रहे है, मेरे वसूल मुझको !


णजसने टदखाया रास्ता ये, अब ढू ाँढू कहााँ मैं उसको !!

मैं जानता हाँ मैं सही हाँ, मिर भी मैं र्लत बहुत हाँ !
मैं चलते-चलते थक र्या, अब भी मंणज़ल कहती है, मैं तुमसे दरू बहुत हाँ
हर चीज़ मेरे पास थी, एक महकता चमन, एक मासूम सी कली
ले र्या सब कु छ उठा के , मैं सोया ही रहा, जाने कै सी थी हवा चली !!

शूल से चुभ रहे है, मेरे वसूल मुझको !


णजसने टदखाया रास्ता ये, अब ढू ाँढू कहााँ मैं उसको !!

वसूलो ने क्या टदया मुझे, बस एक सादा सा जीवन


वो भी हमने कर टदया, अपने वतन के नाम पे अपगि

संतोष ससंह | 29
कब बदलेर्ा सबकु छ, जब जल जायेर्ा जो है कु छ !
रोके न कोई मुझको, मैं चला यहााँ से, लेकर आया था जो कु छ !!

शूल से चुभ रहे है, मेरे वसूल मुझको !


णजसने टदखाया रास्ता ये, अब ढू ाँढू कहााँ मैं उसको !!

संतोष ससंह | 30
तुम कमग करो

र्ीता-वेद-पुराि पढ़ो, या मिर तुम कु रान पढ़ो !


सबने यही कहा है नक कमग करो तुम कमग करो !!

व्यथग की चचिंता में बैठे तुम, कोशशश तो कर के देखो !


ममल जायेंर्े नए सहारे, कु छ दरू चल कर तो देखो !!
राह कहठन है मंणज़ल दरू , पाना है तो चलना ही पड़ेर्ा !
िूप से णजतना तन जलेर्ा, अल्फ़ाज़ असर उतना ही करेर्ा !!

र्ीता-वेद-पुराि पढ़ो, या मिर तुम कु रान पढ़ो !


सबने यही कहा है नक कमग करो तुम कमग करो !!

मंटदर में भर्वान ममलेंर्े, अर्र बाहर सब खुशहाल ममलेंर्े !


वना हर इंसान में ईश्वर, हर जर्ह हर पल ममलेंर्े !!
आस का दीपक बुझने न दो, कदम बढ़ाओ रुकने न दो !
मंणज़ल है दो-चार कदम पे, कमी कोई भी रहने न दो !!

र्ीता-वेद-पुराि पढ़ो, या मिर तुम कु रान पढ़ो !


सबने यही कहा है नक कमग करो तुम कमग करो !!

संतोष ससंह | 31
ररश्तों में दरू ी

ररश्तों में थोड़ी सी दरू ी होनी ही चाहहए !


णज़िंदर्ी में मजबूरी होनी ही चाहहए !!

मजबूर न हो जब तक कोई, कु छ कर नहीं सकता !


दरू ना जब तक हो कोई, करीब हो नहीं सकता !!

ररश्तों में थोड़ी सी दरू ी होनी ही चाहहए !


णज़िंदर्ी में मजबूरी होनी ही चाहहए !!

मजबूररयां दे जाती हैं अक्सर नया अंजाम !


यकीं ना हो तो पूछो उनसे, जो आज कमा बैठे हैं नाम !!
जो खींचती हो अपनी ओर, उस तरि क्या जाना !
हर कोई नहीं है मेरे जैसा, मैं सबसे अलर् हाँ मैंने माना !!

संतोष ससंह | 32
ररश्तों में थोड़ी सी दरू ी होनी ही चाहहए !
णज़िंदर्ी में मजबूरी होनी ही चाहहए !!

ऐसा नहीं है नक मुझे प्यार नहीं है अपनो से !


लेनकन जो वो ढू ंढ़ते हैं, वो हैं नहीं अभी मुझमें !!
उनकी आाँखें कम मुझे, मेरे अंदर ज़्यादा देखती हैं !
उनकी आाँखों का वो सूनापन, मुझे घर जाने से रोकती हैं !!

ररश्तों में थोड़ी सी दरू ी होनी ही चाहहए !


णज़िंदर्ी में मजबूरी होनी ही चाहहए !!

संतोष ससंह | 33
ख्वाब क्या हैं

ख्वाब क्या हैं, रास्ता है, मंणज़ल को छू ने की !


ख्वाब ना होता तो चाहत, नकसकी होती जीने की !!

सून-े सूने टदल में ख़ुशी का, बैठे-बैठे जर्ाये अरमान !


णजन्हें टदखती हैं ख्वाब सुहानी, वो करते हैं इसका सम्मान !!

ख्वाब क्या हैं, रास्ता है, मंणज़ल को छू ने की !


ख्वाब ना होता तो चाहत, नकसकी होती जीने की !!

ख्वाब ही तो था णजसे, मजनू ने पाने की णजद्द ठानी !


मरकर भी उसने साथ ननभाया, पर हार उसने हरनर्ज़ ना मानी !!

संतोष ससंह | 34
जब णज़िंदर्ी बेरर्
ं सी हो, ख्वाब ही संभालता है !
जब कोई ना साथ हो, ख्वाब ही साथ ननभाता है !!

ख्वाब क्या हैं, रास्ता है, मंणज़ल को छू ने की !


ख्वाब ना होता तो चाहत, नकसकी होती जीने की !!

सोये-सोये जर् जाऊं, टदल चाहें कु छ कर र्ुज़र जाऊं !


ख्वाब के दामन में, णज़िंदर्ी का आईना !
वक़्त से पहले ही मैं देखता जाऊं !!

ख्वाब क्या हैं, रास्ता है, मंणज़ल को छू ने की !


ख्वाब ना होता तो चाहत, नकसकी होती जीने की !!

संतोष ससंह | 35
भारत और भारती

हम भारत और भारती की तक़दीर बदल देंर्े


हहिंदस्त
ु ान में दंर्ों का, हम इनतहास बदल देंर्े !!

कश्मीर के पत्थरबाजों तुम भी मेरे अपने हो


ममलके बात करो तुम हमसे, हम तेरी सोच बदल देंर्े !!

वीर जवानो का जो लोर्, सर कलम कर ले र्ए !


घर वाले और देश वाले अंनतम दशगन को तरस र्ए !
आने दो वक़्त मिर एक बार, इस बार लाहौर नहीं देंर्े !!

हम भारत और भारती की तक़दीर बदल देंर्े


हहिंदस्त
ु ान में दंर्ों का, हम इनतहास बदल देंर्े !!

संतोष ससंह | 36
राजनेताओं की राजनीनत को अब बदलना ही होर्ा !
ममल-बैठ के इस मुद्दे को, अब सुलझाना ही होर्ा !!
अब नहीं कोई वीर-जवान, कश्मीर की बलल चढ़ेर्ा !
अब सरहद के पार कोई, हहिंदस्त
ु ानी नहीं मरेर्ा !!

हम भारत और भारती की तक़दीर बदल देंर्े


हहिंदस्त
ु ान में दंर्ों का, हम इनतहास बदल देंर्े !!

संतोष ससंह | 37
तुम्ह े याद होर्ा मप्रये

तुम्ह े याद होर्ा मप्रये,


जब तुमने मुड़ के देखा था, और मुस्कुराया था
मैंने नकताबे पढ़ना छोड़ टदया था,
णज़िंदर्ी से ररश्ता जोड़ ललया था
न कर सकने वाला काम भी मैं कर र्या था,
तेरा नाम लेके हर र्ुनाह मैं कर र्या था !!
तुम्ह े याद होर्ा मप्रये...!!

तुम्ह े याद होर्ा मप्रये


तुम्ह े कानबल बनाने के ललए, मैं बेक़ानबल हो र्या था !
तेरे इश्क के दररया का मैं साहहल हो र्या था !!
न तू मुझसे दरू हुई न मैं तुझसे दरू हुआ !
कभी तू सावन के महीने में तो कभी मैं जेठ दप
ु हरी में !

संतोष ससंह | 38
उन र्ललयों में जाकर र्ुज़रे लम्हे को याद नकये !!
तुम्ह े याद होर्ा मप्रये, तुम्ह े याद होर्ा मप्रये...!!

संतोष ससंह | 39
एक टदलरुबा

ए खुदा एक टदलरुबा मुझे चाहहए ऐसी...

आाँचल हो सर पे णजसके , नबिंटदया लर्ी हो छोटी सी !


झुकती पलकों में, हया बनी हो काजल !
णजसके होठों पे हो, मीठे जल का कोई सार्र !
जब वो बोले तो, हर प्यासे टदल की प्यास बुझे !
मासूममयत चेहरे से, सावन की घटा के जैसी बरसे !!

ए खुदा एक टदलरुबा मुझे चाहहए ऐसी – २...

पायल छनकाती हुई मेरे टदल के हर साज को छेड़ती जाए !


चैन चुराके , बेचैन णजर्र को, चाहत भरी नज़रों से देखती जाए !!
जुल्फों की छाओं में णजसकी, मौसम भी पनाह लेता हो !
णजसका हर रूप, मेरे टदल को, एक नया सुकून देता हो !!

ए खुदा एक टदलरुबा मुझे चाहहए ऐसी – २...

नादाननयााँ णजसकी, हर पल मुझे भाती रहें !


बंद रहे आाँखें हमारी, सदा उसकी मर्र आती रहे !!
देख के णजसे हर तमन्ना, हर आरजू कहे ये हमसे !
देखे हमने कई नकस्मत, पर तुम खुशनकस्मत हो सबसे !!

ए खुदा एक टदलरुबा मुझे चाहहए ऐसी – २...!!

संतोष ससंह | 40
साथ उम्र भर का

तेरे टदल में रहना चाहता हाँ


ख्वाबो में बसना चाहता हाँ !
साथ उम्र भर का न दे सको तो
पल-दो-पल का साथ चाहता हाँ !!

एक पल में कई लम्हे, हर लम्हों में सौ साल णजयूंर्ा !


मैं तेरे साथ दो पल में ही, सातों जन्म जी लूंर्ा !!

तेरे आाँखों में रहना चाहता हाँ


सााँसों में बसना चाहता हाँ !
एक पल में सारी उम्र की,
बातें कहना चाहता हाँ !!

तुम्ह े हमसे बेहतर ममल जायेंर्े, हम जैसा ना ममल पायेर्ा !


जब आएंर्ी ये बहारें, तेरी यादों में टदल खो जाएर्ा !!

संतोष ससंह | 41
मैं आज हाँ तेरे प्यार में, कल तेरे इंतज़ार में !
मेरी दनु नया तुझ तक ही है, एक तू ही मेरे संसार में !!

तेरे टदल में रहना चाहता हाँ


ख्वाबो में बसना चाहता हाँ !
साथ उम्र भर का न दे सको तो
पल-दो-पल का साथ चाहता हाँ !!

संतोष ससंह | 42
उसका हाँसना

जाने नकस बात पे था, कल उसका हाँसना !


जाने नकस बात पे है, आज ये उदासी !!

कल आाँखों में सार्र, होठों पे हाँसी थी देखी !


आज मुझसे देखा ना जाए ऐसी है ख़ामोशी !!
लब खोलो कु छ बोलो, ज़रा सा तो मुस्कुरा दो !
है सारी उदास मिजायें, कु छ तो र्ुनर्ुना दो !!

जाने नकस बात पे था, कल उसका हाँसना !


जाने नकस बात पे है, आज ये उदासी !!

नाराज अर्र हो हमसे, तो नाराजर्ी टदखलाओ !


खामोश रह कर खुद अपनी जान ना जलाओ !!
तुम णजन ख़्यालों में होर्ी, वही रंर् मेरी ग़ज़ल में होर्ा !
तुम णजस नज़र से देखोर्ी, वही रंर् मेरे जीवन में होर्ा !!

संतोष ससंह | 43
जाने नकस बात पे था, कल उसका हाँसना !
जाने नकस बात पे है, आज ये उदासी !!

संतोष ससंह | 44
ख्वाब हो पलें

णजसके होठों से मेरे टदल की बात ननकले !


णजसके पलकों पे मेर,े कई ख्वाब हो पलें !!

णजसे मैं अपने, अंदर महसूस करूं !


णजसके अंदर जाकर, मैं कु छ पल रह सकूं !
वो ममले तो कह द,ाँू नक मुझसे जुदा ना होना !
वो ममले तो कह द,ाँू नक मुझसे खिा ना होना !
वो ना ममले तो कै से, कह दाँू और नकसी से !
नक उसके नबना इक पल भी मुझको नहीं है जीना !!

णजसके कदमों से चल कर, मैं अपनी मंणज़ल को छू लूाँ !


जो हाँसे तो उसकी हाँसी में, मैं हर ख़ुशी पा लूाँ !!
णजसकी दो आाँखों में, मैं अपने दो बच्चों को देखूाँ !
णजसकी दो बाहों में, मैं अपने जीवन को देखूाँ !!

संतोष ससंह | 45
वो ममले तो कह द,ाँू नक तुमसे नहीं कोई अच्छा !
वो ममले तो कह द,ाँू नक तुम रब से भी हो सच्चा !!
वो ममले तो कह द,ाँू नक बंि जाओ मेरे बंिन में !
वो ममले तो कह द,ाँू नक बस जाओ मेरी िड़कन में !
वो ना ममले तो कै से, कह दाँू और नकसी से
नक प्यार हमे है तुमसे, तुम आ जाओ जीवन में !!

णजसके होठों से मेरे टदल की बात ननकले !


णजसके पलकों पे मेर,े कई ख्वाब हो पलें !!

संतोष ससंह | 46
इक र्ीत

इक र्ीत ललख रहा हाँ, तुम्ह े देने के ललए !


कई सााँस खींच रहा हाँ, इन्हे संजोने के ललए !!

नबखरे हुए कई अल्फ़ाज़, मेरे ज़हन में तो हैं !


धसमटे हुए कई ख़्यालात, मेरी नज़र में तो हैं !!
पर सुकून नक वो कलम, पास नहीं है मेरे ललखने के ललए !
णज़िंदर्ी का पता नहीं, और काम कई हैं मेरे करने के ललए !!

इक र्ीत ललख रहा हाँ, तुम्ह े देने के ललए !


कई सााँस खींच रहा हाँ, इन्हे संजोने के ललए !!

अब टदल में कम उठते हैं, पहले जैसे जज़्बात


अब हम भी कमज़ोर हुए, कह सकते नहीं हर बात !!
मैं तन्हा टदल तन्हा ढू ंढे, नकसी अपने का साथ
अब ऐसा कु छ पास नहीं, मेरे खोने के ललए

संतोष ससंह | 47
इक र्ीत ललख रहा हाँ, तुम्ह े देने के ललए !
कई सााँस खींच रहा हाँ, इन्हे संजोने के ललए !!

कभी कभी मैं सोचता हाँ, क्यों चलता हाँ तुझे ख़्यालों में लेके !
बड़ी अजीब सी उलझन, णजसका नाम नहीं कोई !
बड़ी अजीब सी मेरी हर सुबह, णजसकी शाम नहीं कोई !!
मुझे रात नहीं ममलती, अब रोने के ललए

इक र्ीत ललख रहा हाँ, तुम्ह े देने के ललए !


कई सााँस खींच रहा हाँ, इन्हे संजोने के ललए !!

संतोष ससंह | 48
खुली वाटदयााँ

खुली वाटदयााँ, खुला आसमााँ !


ज़मीं से ये, ममलता हुआ आसमााँ !!

धछनतज पे कहीं, दरू है लाललमा !


मर्र रोशनी, इन अंिेरों में है !
इक तरि बादलों में है धछपता उजाला !
इक तरि बादलों में है, बाररश की ररमलझम !!

खुली वाटदयााँ, खुला आसमााँ !


ज़मीं से ये, ममलता हुआ आसमााँ !!

फ़फ़ज़ा मदहोश है ये क्यों !


हवाओं में सरर्ोशी क्यों !
पंछी चलें कहा नकस ओर !

संतोष ससंह | 49
करते चाहत का ये शोर !
ये सुन, टदल मेरा भी झूमा !!

खुली वाटदयााँ, खुला आसमााँ !


ज़मीं से ये, ममलता हुआ आसमााँ !!

संतोष ससंह | 50
ललखता चला र्या

तेरी आाँखों पे ललखता चला र्या !


तेरी बातों पे ललखता चला र्या !!
बस इसी तरहा .....
वो मुश्कश्कल रास्ता कटता चला र्या !!

तेरी दो नयनों की ज्योनत ने,


अंिेरों में नकया उजाला !
तेरी दो लबों की मीठी हाँसी ने,
हसीनो के बीच संभाला !
लम्बी आहों में नाम हमारा,
लेकर हमसे नज़र चुराना !
ख़ामोशी से ना प्यार छु पा,
मुश्कश्कल हो जाएर्ा भुलाना !!

तेरी आाँखों पे ललखता चला र्या !


तेरी बातों पे ललखता चला र्या !!
बस इसी तरहा .....
वो मुश्कश्कल रास्ता कटता चला र्या !!

लबों पे जो है कह दो,
अदाओं से अपनी !
मेरी बाहों में आ जाओ,

संतोष ससंह | 51
सुन के िड़कने अपनी !!
तेरी नज़रों में देखी है,
मैंने खुद की तस्वीर !
तेरा नहीं मैं, पर मेरी तो,
तू ही है तक़दीर !!

तेरी आाँखों पे ललखता चला र्या !


तेरी बातों पे ललखता चला र्या !!
बस इसी तरहा ....
हर पल, हर लम्हा कटता चला र्या !!

संतोष ससंह | 52
प्यार हमेशा ऐसा हो

प्यार हमेशा ऐसा हो, जहााँ दो टदल दआ


ु में कहता हो !
हर जन्म में तुम ममलो, मुझे हर जन्म में तुम ममलो !!

इज़हार हमेशा ऐसा हो, जहााँ झुकी नज़र भी कहती हो !


तुम क्यों नहीं पहले ममले, तुम क्यों नहीं पहले ममले !!

ग़मों का दौर ना होता, चुभन सीने में ना होती !


अर्र तुम बाहों में मेरी, इसी तरह बसी होती !!

ख़ुशी हमेशा ऐसी हो, जहााँ ग़म भी ये कहता हो !


मैं क्यों आया तेरे दर पे, मैं क्यों आया तेरे दर पे !!

प्यार हमेशा ऐसा हो, जहााँ दो टदल दआ


ु में कहता हो !
हर जन्म में तुम ममलो, मुझे हर जन्म में तुम ममलो !!

संतोष ससंह | 53
मंणज़ल नहीं बदलते

हम शहर बदलते रहते हैं, हमसफ़र नहीं बदलते हैं !


हम रास्ते बदलते रहते हैं, मंणज़ल नहीं बदलते !!

बदलना तक़दीर है कु दरत की, लड़कपन जवानी में बदली !


कभी णजससे मैं कहता था, मैं रूठा हाँ अभी तुझसे !
कभी णजससे मैं कहता था, नहीं प्यारा कोई तुझसे !!
वो बातें कल की जो भी थी, आज कहानी में बदली !!

हम शहर बदलते रहते हैं, हमसफ़र नहीं बदलते हैं !


हम रास्ते बदलते रहते हैं, मंणज़ल नहीं बदलते !!

जो तूने ख्वाब देखा था, वही मंणज़ल है मेरी अब !


कभी तुझपे जो ललखा था, वही जीवन है मेरा अब !
िड़कन के शोर होने तक, तुझे ऐसे ही ललखूंर्ा !
नज़र कमज़ोर होने तक, मंणज़ल पा ज़रूर लूंर्ा !!

हम शहर बदलते रहते हैं, हमसफ़र नहीं बदलते हैं !


हम रास्ते बदलते रहते हैं, मंणज़ल नहीं बदलते !!

संतोष ससंह | 54
कोई ग़ज़ल

नबना नकसी शायर के ख़्वाब के ,


कोई ग़ज़ल क्या र्ायेर्ा !
नबना नकसी आपके जवाब के ,
कोई कै से सुर ममला पायेर्ा !!

अपने ख़्वाबों को, कलम से ललखकर,


सारी दनु नया को ख़्वाब टदखाए जो
अपने टदल की हर बात को,
भरी महमिल में कह जाए जो

वो णज़िंदर्ी को दीवाना,
नकसी महमिल में नज़र ना आए तो
नबना उसकी यादों में खोए,
क्या ये टदल रह पायेर्ा !!

संतोष ससंह | 55
नबना नकसी शायर के ख़्वाब के ,
कोई ग़ज़ल क्या र्ायेर्ा !
नबना नकसी आपके जवाब के ,
कोई कै से सुर ममला पायेर्ा !!

कभी ख़ुशी के मौके पर,


दो शेर बोल जाएं हाँसते-हाँसते
कभी ग़मों के भाँवर में हो तो,
बहुत दरू ननकल जाए चलते-चलते !!

उसे वही समझ पायेर्ा,


जो हर हाल में उसके संर् रह पायेर्ा !
णजसके अंदर वो जाकर कु छ पल बैठ सकेर्ा,
उससे ही वो अपने टदल की बातें कह सकेर्ा !!

नबना नकसी शायर के ख़्वाब के ,


कोई ग़ज़ल क्या र्ायेर्ा !
नबना नकसी आपके जवाब के ,
कोई कै से सुर ममला पायेर्ा !!

संतोष ससंह | 56
मैं संतोर् धसिंह, बोकारो स्टील धसटी का रहने वाला हाँ । बोकारो मेरी
जन्म भूमम है ! अभी बोकारो झारखण्ड राज्य में आता है लेनकन मेरे
ललए वो आज भी नबहार ही है । सरहदे बदलने से यादे नहीं बदलती !
मैंने अपनी प्रारंलभक शशिा बोकारो से ही नकया है । उसके बाद आर्े
की पढाई के ललए मैं भारत के कई राज्यों में र्या और अपनी
पढाई की । मैं मास्टर ऑफ़ कं प्यूटर एलीके शनस (M.C.A., VTU
University, Belgaum) की पढाई पूरी करने के बाद आईटी में
कायगरत हाँ । मपछले १० साल से बैंर्लोर मेरी कमग भूमम है और जन्म से
हहिंदी मेरी मातृभार्ा । हहिंदी के प्रनत मेरा प्रेम कभी कम नहीं हुआ ।

..........आपका अपना
संतोर्
Email Id:
singhsanrec@gmail.com

संतोष ससंह | 57

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