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दोहा :

निश्चय प्रेम प्रतीनत ते, बििय करैं सिमाि।


तेहि के कारज सकल शुभ, ससद्ध करैं ििुमाि॥

चौपाई :
जय ििुमंत संत हितकारी। सुि लीजै प्रभु अरज िमारी॥
जि के काज बिलंि ि कीजै। आतुर दौरर मिा सुख दीजै॥
जैसे कूहद ससंधु महिपारा। सुरसा िदि पैहि बिस्तारा॥आगे जाय लंककिी रोका। मारे िु लात गई सुरलोका॥
जाय बिभीषि को सख
ु दीन्िा। सीता निरखख परमपद लीन्िा॥
िाग उजारर ससंधु मिँ िोरा। अनत आतुर जमकातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारर संिारा। लम
ू लपेहि लंक को जारा॥
लाि समाि लंक जरर गई। जय जय धुनि सुरपुर िभ भई॥
अि बिलंि केहि कारि स्वामी। कृपा करिु उर अंतरयामी॥जय जय लखि प्राि के दाता। आतरु ह्वै दख
ु करिु निपाता॥
जै ििुमाि जयनत िल-सागर। सुर-समूि-समरथ भि-िागर॥
ॐ ििु ििु ििु ििम
ु ंत ििीले। िैररहि मारु िज्र की कीले॥
ॐ ह्िीं ह्िीं ह्िीं ििुमंत कपीसा। ॐ िुं िुं िुं ििु अरर उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार िलवंता। शंकरसुवि िीर ििुमंता॥
िदि कराल काल-कुल-घालक। राम सिाय सदा प्रनतपालक॥भूत, प्रेत, पपसाच निसाचर। अगगि िेताल काल मारी मर॥
इन्िें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु िाथ मरजाद िाम की॥
सत्य िोिु िरर सपथ पाइ कै। राम दत
ू धरु मारु धाइ कै॥
जय जय जय ििुमंत अगाधा। दख
ु पावत जि केहि अपराधा॥
पूजा जप तप िेम अचारा। िहिं जाित कछु दास तुम्िारा॥
िि उपिि मग गगरर गि
ृ मािीं। तुम्िरे िल िौं डरपत िािीं॥जिकसुता िरर दास किावौ। ताकी सपथ बिलंि ि लावौ॥
जै जै जै धुनि िोत अकासा। सुसमरत िोय दस
ु ि दख
ु िासा॥
चरि पकरर, कर जोरर मिावौं। यहि औसर अि केहि गोिरावौं॥
उिु, उिु, चल,ु तोहि राम दि
ु ाई। पायँ परौं, कर जोरर मिाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ ििु ििु ििु ििु ििुमंता॥
ॐ िं िं िाँक दे त कपप चंचल। ॐ सं सं सिसम परािे खल-दल॥अपिे जि को तरु त उिारौ। ससु मरत िोय आिंद िमारौ॥
यि िजरं ग-िाण जेहि मारै । ताहि किौ किरर कवि उिारै ॥
पाि करै िजरं ग-िाण की। ििम
ु त रक्षा करै प्राि की॥
यि िजरं ग िाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सि कापैं॥
धूप दे य जो जपै िमेसा। ताके ति िहिं रिै कलेसा॥

दोहा : उर प्रतीनत दृढ़, सरि ह्वै, पाि करै धरर ध्याि।


िाधा सि िर, करैं सि काम सिल ििुमाि॥

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