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ये असं गति तिन्दगी के द्वार सौ-सौ बार रोई

बां ह में है और कोई चाह में है और कोई

सााँ प के आत ंगनों में

मौन चन्दन िन पडे हैं

से ि के सपनो भरे कुछ

फू मुर्दों पर चढे हैं

ये तिषमिा भािना ने तससतकयााँ भरिे समोई

र्दे ह में है और कोई, नेह में है और कोई

स्वप्न के शि पर खडे हो

मां ग भरिी हैं प्रथाएं

कंगनों से िोड हीरा

खा रही ं तकिनी व्यथाएं

ये कथाएं उग रही हैं नागफन िैसी अबोई

सृ ति में है और कोई, दृति में है और कोई

िो समपपण ही नही ं हैं

िे समपपण भी हुए हैं

र्दे ह सब िूठी पडी है

प्राण तफर भी अनछु ए हैं

ये तिक िा हर अधर ने कंठ के नीचे साँ िोई

हास में है और कोई, प्यास में है और कोई

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