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अंतरात्मा से निकली आवाज़ सु िता हूँ

अमल करिे की कोनिि करता हूँ

प्रयत्न करता हूँ एक िेक इं साि बिूँ

वक्त बे वक्त लोगों के काम आ सकूँ

सं सार में अिनगित जीव-जन्तु हैं

भाग्य से मिुष्य जन्म नमलता है

यह पवव जन्म का पररणाम है

इस जीवि में पश्चाताप क्या है ?

मािव-जीवि निर नमले ि नमले

िेक कमव कर लें िही ं तो पछताएूँ गे

यही मेरे मागव दिवि की नकरण है

सत्कमव ही मेरा धमव है , मंगल-पथ है

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