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यह न थी हमारी किस्मत जो किसाले यार होता

अगर और जीते रहते यही इन्तेज़ार होता


तेरे िादे पर कजऐं हम तो यह जान छूट जाना
कि खु शी से मर न जाते अगर ऐतबार होता
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तेरी नाज़ु िी से जाना कि बंधा था अहदे फ़दाा
िभी तू न तोड़ सिता अगर इस्ते िार होता
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यह िहााँ िी दोस्ती है (कि) बने हैं दोस्त नासेह
िोई चारासाज़ होता िोई ग़म गुसार होता
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हं किससे मैं िे क्या है शबे ग़म बुरी बला है
मु झे क्या बुरा था मरना, अगर एि बार होता
(ग़ाकलब)
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इशरते ित्ल गहे अहले तमन्ना मत पूछ
इदे -नज्जारा है शमशीर िी उररयााँ होना
िी तेरे क़त्ल िे बाद उसने ज़फा होना
कि उस ज़ु द पशे मााँ िा पशे मां होना
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है फ उस चारकगरह िपड़े िी कक़स्मत ग़ाकलब
कजस िी किस्मत में कलखा हो आकशक़ िा गरे बां होना
(ग़ाकलब)
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मैं शमां आखखर शब हाँ सुन सर गुज़श्त मेरी
कफर सुबह होने ति तो किस्सा ही मु ख़्तसर है
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अच्छा है कदल िे साथ रहे पासबाने अक़्ल
ले किन िभी – िभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
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न पूछ इक़बाल िा कििाना अभी िही िैकफ़यत है उस िी
िहीं सरे राह गुज़र बैिा कसतमिशे इन्तेज़ार होगा
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और ं िा पयाम और मे रा पयाम और है
इश्क िे ददा मन्ों िा तरज़े िलाम और है
(इक़बाल)
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अक्ल क्या चीज़ है एि िज़ा िी पाबन्ी है
कदल िो मु द्दत हुई इस िैद से आज़ाद किया
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नशा कपला िे कगराना तो सबिो आता है
मज़ा तो जब है कि कगरतों िो थाम ले सािी
(ग़ाकलब)
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भला कनभे गी तेरी हमसे क्यों िर ऍ िायज़
कि हम तो रस्में मोहब्बत िो आम िरते हैं
मैं उनिी महकफ़ल-ए-इशरत से िां प जाता हाँ
जो घर िो फूंि िे दु कनया में नाम िरते हैं ।
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िोई दम िा मे हमां हाँ ऐ अहले महकफ़ल
चरागे सहर हाँ बुझा चाहता हाँ ।
आबो हिा में रहे गी ख़्याल िी कबजली
यह मु श्ते ख़ाि है फ़ानी रहे न रहे
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खु दा िे आकशक़ तो हैं हजारों, बनों में कफरते हैं मारे -मारे
मै उसिा बन्ा बनूं गा कजसिो खु दा िे बन्ों से प्यार होगा
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मैं िो कचराग हाँ कजसिो फरोगेहस्ती में
िरीब सुबह र शन किया, बुझा भी कदया
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तुझे, शाख-ए-गुल से तोडें जहे नसीब तेरे
तड़पते रह गए गुलज़ार में रक़ीब तेरे।
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दहर िो दे ते हैं मु ए दीद-ए-कगररयााँ हम
आखखरी बादल हैं एि गुजरे हुए तूफां िे हम
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मैं ज़ु ल्मते शब में ले िे कनिलूं गा अपने दर मां दा िारिां िो
शरर फ़शां होगी आह मे री नफ़स मे रा शोला बार होगा
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जो शाख-ए- नाज़ु ि पे आकशयाना बने गा ना पाएदार होगा।

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