तेरे िादे पर कजऐं हम तो यह जान छूट जाना कि खु शी से मर न जाते अगर ऐतबार होता ------------------------------ तेरी नाज़ु िी से जाना कि बंधा था अहदे फ़दाा िभी तू न तोड़ सिता अगर इस्ते िार होता --------------------------- यह िहााँ िी दोस्ती है (कि) बने हैं दोस्त नासेह िोई चारासाज़ होता िोई ग़म गुसार होता -------------------------- हं किससे मैं िे क्या है शबे ग़म बुरी बला है मु झे क्या बुरा था मरना, अगर एि बार होता (ग़ाकलब) ---------------------------- इशरते ित्ल गहे अहले तमन्ना मत पूछ इदे -नज्जारा है शमशीर िी उररयााँ होना िी तेरे क़त्ल िे बाद उसने ज़फा होना कि उस ज़ु द पशे मााँ िा पशे मां होना -------------------------- है फ उस चारकगरह िपड़े िी कक़स्मत ग़ाकलब कजस िी किस्मत में कलखा हो आकशक़ िा गरे बां होना (ग़ाकलब) --------------------------------- मैं शमां आखखर शब हाँ सुन सर गुज़श्त मेरी कफर सुबह होने ति तो किस्सा ही मु ख़्तसर है ------------------------------- अच्छा है कदल िे साथ रहे पासबाने अक़्ल ले किन िभी – िभी इसे तन्हा भी छोड़ दे ----------------------------- न पूछ इक़बाल िा कििाना अभी िही िैकफ़यत है उस िी िहीं सरे राह गुज़र बैिा कसतमिशे इन्तेज़ार होगा ---------------------------- और ं िा पयाम और मे रा पयाम और है इश्क िे ददा मन्ों िा तरज़े िलाम और है (इक़बाल) ------------------------------- अक्ल क्या चीज़ है एि िज़ा िी पाबन्ी है कदल िो मु द्दत हुई इस िैद से आज़ाद किया ----------------------------- नशा कपला िे कगराना तो सबिो आता है मज़ा तो जब है कि कगरतों िो थाम ले सािी (ग़ाकलब) ------------------------------ भला कनभे गी तेरी हमसे क्यों िर ऍ िायज़ कि हम तो रस्में मोहब्बत िो आम िरते हैं मैं उनिी महकफ़ल-ए-इशरत से िां प जाता हाँ जो घर िो फूंि िे दु कनया में नाम िरते हैं । ----------------------------- िोई दम िा मे हमां हाँ ऐ अहले महकफ़ल चरागे सहर हाँ बुझा चाहता हाँ । आबो हिा में रहे गी ख़्याल िी कबजली यह मु श्ते ख़ाि है फ़ानी रहे न रहे -------------------------- खु दा िे आकशक़ तो हैं हजारों, बनों में कफरते हैं मारे -मारे मै उसिा बन्ा बनूं गा कजसिो खु दा िे बन्ों से प्यार होगा ------------------------------------ मैं िो कचराग हाँ कजसिो फरोगेहस्ती में िरीब सुबह र शन किया, बुझा भी कदया --------------------------- तुझे, शाख-ए-गुल से तोडें जहे नसीब तेरे तड़पते रह गए गुलज़ार में रक़ीब तेरे। ---------------------------- दहर िो दे ते हैं मु ए दीद-ए-कगररयााँ हम आखखरी बादल हैं एि गुजरे हुए तूफां िे हम ------------------------------- मैं ज़ु ल्मते शब में ले िे कनिलूं गा अपने दर मां दा िारिां िो शरर फ़शां होगी आह मे री नफ़स मे रा शोला बार होगा ------------------------------------ जो शाख-ए- नाज़ु ि पे आकशयाना बने गा ना पाएदार होगा।
The Happiness Project: Or, Why I Spent a Year Trying to Sing in the Morning, Clean My Closets, Fight Right, Read Aristotle, and Generally Have More Fun