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अलंकार

प्रेमचंद

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अध्याय 1
उन ददनों नील नदी के तट पर बहुतसे तपस्वी रहा करते थे। दोनों ही ककनारों पर ककतनी ही झोंपड़ियां
थो़िीथो़िी दरू पर बनी हुई थीं। तपस्वी लोग इनहीं में एकानतवास करते थे और जरूरत प़िने पर एकदस
ू रे
की सहायता करते थे। इनहीं झोंपड़ियों के बीच में जहांतहां गगरजे बने हुए थे। परायः सभी गगरजाघरों पर
सलीब का आकार ददखाई दे ता था। धमोर्तससवों पर साधस
ु नत दरू दरू से वहां आ जाते थे। नदी के ककनारे
जहांतहां मठ भी थे। जहां तपस्वी लोग अकेले छोटीछोटी गफ
ु ाओं में ससद्गध पराप्त करने का यर्तन करते
थे।

यह सभी तपस्वी ब़िेब़िे कदठन वरत धारण करते थे, केवल सय


ू ास्तस के बाद एक बार सक्ष्
ू म आहार
करते। रोटी और नमक के ससवाय और ककसी वस्तु का सेवन न करते थे। ककतने ही तो समागधयों या
कनदराओं में प़िे रहते थे। सभी बरह्मचारी थे, सभी समताहारी थे। वह ऊन का एक कुरता और कनटोप
पहनते थे; रात को बहुत दे र तक जागते और भजन करने के पीछे भसू म पर सो जाते थे। अपने पव
ू प
स रु
ु ष
के पापों का परायश्चचत करने के सलए वह अपनी दे ह को भोगववलास ही से दरू नहीं रखते थे, वरन उसकी
इतनी रक्षा भी न करते थे जो वतसमानकाल में अननवायस समझी जाती है । उनका ववचवास था कक दे ह को
श्जतना कष्ट ददया जाए, वह श्जतनी रुग्णावस्था में हो, उतनी ही आर्तमा पववत्र होती है । उनके सलए को ो़
और फो़िों से उत्तम शग
ं ार की कोई वस्तु न थी।

इस तपोभसू म में कुछ लोग तो ध्यान और तप में जीवन को सफल करते थे, पर कुछ ऐसे लोग भी
थे जो ता़ि की जटाओं को बटकर ककसानों के सलए रश्स्सयां बनाते या फल के ददनों में कषकों की
सहायता करते थे। शहर के रहने वाले समझते थे कक यह चोरों और डाकुओं का गगरोह है , यह सब अरब
के लट
ु े रों से समलकरा काकफलों को लट
ू लेते हैं। ककनतु यह भरम था। तपस्वी धन को तच्
ु छ समझते थे,
आर्तमोद्घार ही उनके जीवन का एकमात्र उद्दे चय था। उनके तेज की ज्योनत आकाश को भी आलोककत
कर दे ती थी।

स्वगस के दत
ू यव
ु कों या यात्रत्रयों का वेश रहकर इन मठों में आते थे। इसी परकार राक्षस और
दै र्तय हश्शशयों या पशओ
ु ं का रूप धरकर इस धमार्श्सम में तपश्स्वयों के बहकाने के सलए ववचरा करते थे।
जब ये भक्त गण अपनेअपने घ़िे लेकर परातःकाल सागर की ओर पानी भरने जाते थे तो उनहें राक्षसों
और दै र्तयों के पदगचह्न ददखाई दे ते थे। यह धमार्श्सम वास्तव में एक समरक्षेत्र था जहां ननर्तय और
ववशेषतः रात को स्वगस और नरक, धमस और अधमस में भीषण संगराम होता रहता था। तपस्वी लोग

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स्वगसदत
ू ों तथा ईचवर की सहायता से वरत, ध्यान और तप से इन वपशाचसेनाओं के आघातों का ननवारण
करते थे। कभी इश्नियजननत वासनाएं उनके ममसस्थल पर ऐसा अंकुश लगाती थीं कक वे पी़िा से ववकल
होकर चीखने लगते थे और उनकी आतसध्वनन वनपशओ
ु ं की गरज के साथ समलकर तारों से भवू षत
आकाश तक गज
ूं ने लगती थी। तब वही राक्षस और दै र्तय मनोहर वेश धारण कर लेते थे, क्योंकक यद्यवप
उनकी सरू त बहुत भयंकर होती है पर वह कभीकभी सन
ु दर रूप धर सलया करते हैं श्जसमें उनकी पहचान
न हो सके। तपश्स्वयों को अपनी कुदटयों में वासनाओं के ऐसे दृचय दे खकर ववस्मय होता था श्जन पर
उस समय धुरनधर ववलाससयों का गचत्त मग्ु ध हो जाता। लेककन सलीब की शरण में बैठे हुए तपश्स्वयों पर
उनके परलोभनों का कुछ असर न होता था, और यह दष्ु टार्तमाएं सय
ू ोदस य होते ही अपना यथाथस रूप धारण
करके भाग जाती थीं। कोई उनसे पछ
ू ता तो कहते 'हम इससलए रो रहे हैं कक तपश्स्वयों ने हमको मारकर
भगा ददया है ।'

धमार्श्सम के ससद्धपरु
ु षों का समस्त दे श के दज
ु न
स ों और नाश्स्तकों पर आतंकसा छाया हुआ था।
कभीकभी उनकी धमसपरायणता ब़िा ववकराल रूप धारण कर लेती थी। उनहें धमसस्मनतयों ने ईचवरववमख

पराणणयों को दण्ड दे ने का अगधकार परदान कर ददया था और जो कोई उनके कोप का भागी होता था
उसे संसार की कोई शश्क्त बचा न सकती थी। नगरों में , यहां तक कक इस्कश्निया में भी, इन भषण
यनत्रणाओं की अद्भत
ु दनतकथाएं फैली हुई थीं। एक महार्तमा ने कई दष्ु टों को अपने सोटे से मारा, जमीन
फट गयी और वह उसमें समा गये। अतः दष्ु टजन, ववशेषकर मदारी, वववादहत पादरी और वेचयाएं, इन
तपश्स्वयों से थरथर कांपते थे।

इन ससद्धपरु
ु षों के योगबल के सामने वनजनतु भी शीश झुकाते थे। जब कोई योगी मरणासनन
होता तो एक ससंह आकर पंजों से उसकी कबर खोदता था इससे योगी को मालम
ू होता था कक भगवान
उसे बल
ु ा रहे हैं। वह तरु नत जाकर अपने सहयोगगयों के मख
ु चूमता था। तब कबर में आकर समागधस्थ
हो जाता था।

अब तक इस तपार्श्म का परधान एण्तोनी था। पर अब उसकी अवस्था सौ वषस की हो चक


ु ी
थी। इसीसलए वह इस स्थान को र्तयाग कर अपने दो सशष्यों के साथ श्जनके नाम मकर और अमार्तय थे,
एक पहा़िी में ववर्श्ाम करने चला गया था। अब इस आर्श्म में पापनाशी नाम के एक साधू से ब़िा और
कोई महार्तमा न था। उसके सर्तकमों की कीनतस दरू दरू फैली हुई थी और कई तपस्वी थे श्जनके अनय
ु ानययों
की संख्या अगधक थी और जो अपने आर्श्मों के शासन में अगधक कुशल थे। लेककन पापनाशी वरत और

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तप में सबसे बा हुआ था, यहां तक कक वह तीनतीन ददन अनशन वरत रखता था रात को और
परातःकाल अपने शरीर को बाणों से छे दता था और वह घण्टों भसू म पर मस्तक नवाये प़िा रहता था।

उसके चौबीस सशष्यों ने अपनीअपनी कुदटया उसकी कुटी के आसपास बना ली थीं और
योगकियाओं में उसी के अनग
ु ामी थे। इन धमसपत्र
ु ों में ऐसेऐसे मनष्ु य थे श्जनहोंने वषों डकैनतयां डाली थीं,
श्जनके हाथ रक्त से रं गे हुए थे, पर महार्तमा पापनाशी के उपदे शों के वशीभत
ू होकर अब वह धासमसक
जीवन व्यतीत करते थे और अपने पववत्र आचरणों से अपने सहवगगसयों को चककत कर दे ते थे। एक
सशष्य, जो पहले हशश दे श की रानी का बावरची था, ननर्तय रोता रहता था। एक और सशष्य फलदा नाम का
था श्जसने परू ी बाइत्रबल कंठस्थ कर ली थी और वाणी में भी ननपण
ु था। लेककन जो सशष्य आर्तमशद्
ु गध
में इन सबसे बकर था वह पॉल नाम का एक ककसान यव
ु क था। उसे लोग मख
ू स पॉल कहा करते थे,
क्योंकक वह अर्तयनत सरल हृदय था। लोग उसकी भोलीभाली बातों पर हं सा करते थे, लेककन ईचवर की उस
पर ववशेष कपादृश्ष्ट थी। वह आर्तमदशी और भववष्यवक्ता था। उसे इलहाम हुआ करता था।

पापनाशी का जनमस्थान इस्कश्निया था। उसके मातावपता ने उसे भौनतक ववद्या की ऊंची सशक्षा
ददलाई थी। उसने कववयों के शग
ं ार का आस्वादन ककया था और यौवनकाल में ईचवर के अनाददर्तव, बश्कक
अश्स्तर्तव पर भी दस
ू रों से वादवववाद ककया करता था। इसके पचचात कुछ ददन तक उसने धनी परु
ु षों के
परथानस
ु ार ऐश्निय सख
ु भोग में व्यतीत ककये, श्जसे याद करके अब लज्जा और ग्लानन से उसको अर्तयनत
पी़िा होती थी। वह अपने सहचरों से कहा करता 'उन ददनों मझ
ु पर वासना का भत
ू सवार था।' इसका
आशय यह कदावप न था कक उसने व्यसभचार ककया था; बश्कक केवल इतना कक उसने स्वाददष्ट भोजन
ककया था और नाटयशालाओं में तमाशा दे खने जाएा करता था। वास्तव में बीस वषस की अवस्था तब
उसने उस काल के साधारण मनष्ु यों की भांनत जीवन व्यतीत ककया था। वही भोगसलप्सा अब उसके हृदय
में कांटे के समान चुभा करती थी। दै वयोग से उनहीं ददनों उसे मकर ऋवष के सदप
ु दे शों को सन
ु ने का
सौभाग्य पराप्त हुआ। उसकी कायापलट हो गयी। सर्तय उसके रोमरोम में व्याप्त हो गया, भाले के समान
उसके हृदय में चुभ गया। बपनतस्मा लेने के बाद वह साल भर तक और भि परु
ु षों में रहा, परु ाने संस्कारों
से मक्
ु त न हो सका। लेककन एक ददन वह गगरजाघर में गया और वहां उपदे शक को यह पद गाते हुए
सन
ु ा-'यदद तू ईचवरभश्क्त का इच्छुक है तो जा, जो कुछ तेरे पास हो उसे बेच डाल और गरीबों को दे दे ।'
वह तरु नत घर गया, अपनी सारी सम्पवत्त बेचकर गरीबों को दान कर दी और धमार्श्सम में परववष्ट हो गया
और दस साल तक संसार से ववरक्त होकर वह अपने पापों का परायश्चचत करता रहा।

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एक ददन वह अपने ननयमों के अनस
ु ार उन ददनों का स्मरण कर रहा था, जब वह ईचवरववमख

था और अपने दष्ु कमों पर एकएक करके ववचार कर रहा था। सहास याद आया कक मैंने इस्कश्निया की
एक नाटयशाला में थायस नाम की एक रूपवती नटी दे खी थी। वह रमणी रं गशालाओं में नर्तय करते
समय अंगपरर्तयंगों की ऐसी मनोहर छवव ददखाती थी कक दशसकों के हृदय में वासनाओं की तरं गें उठने
लगती थीं। वह ऐसा गथरकती थी, ऐसे भाव बताती थी, लालसाओं का ऐसा नग्न गचत्र खीचंती थी कक
सजीले यव
ु क और धनी वद्ध कामातरु होकर उसके गहद्वार पर फूलों की मालाएं भें ट करने के सलए
आते। थायस उसका सहषस स्वागत करती और उनहें अपनी अंकस्थली में आर्श्य दे ती। इस परकार वह
केवल अपनी ही आर्तमा का सवसनाश न करती थी, वरन दस
ू रों की आर्तमाओं का भी खून करती थी।

पापनाशी स्वयं उसके मायापाश में फंसतेफंसते रह गया था। वह कामतष्णा से उनमत्त
होकर एक बार उसके द्वार तक चला गया था। लेककन वारांगना के चौखट पर वह दठठक गया, कुछ तो
उठती हुई जवानी की स्वाभाववक कातरता के कारण और कुछ इस कारण कक उसकी जेब में रुपये न थे,
िूोंकक उसकी माता इसका सदै व ध्यान रखती थी कक वह धन का अपव्यय न कर सके। ईचवर ने इनहीं
दो साधनों द्वारा उसे पाप के अश्ग्नकुण्ड में गगरने से बचा सलया। ककनतु पापनाशी ने इस असीम दया के
लए ईचवर को धनयवाद ददया; क्योंकक उस समय उसके ज्ञानचक्षु बनद थे। वह न जानता था कक मैं
समथ्या आननदभोग की धुन में प़िा हूं। अब अपनी एकानत कुटी में उसने पववत्र सलीब के सामने मस्तक
झुका ददया और योग के ननयमों के अनस
ु ार बहुत दे र तक थायस का स्मरण करता रहा क्योंकक उसने
मख
ू त
स ा और अनधकार के ददनों में उसके गचत्त को इश्नियसख
ु -भोग की इच्छाओं से आनदोसलत ककया था।
कई घण्टे ध्यान में डूबे रहने के बाद थायस की स्पष्ट और सजीव मनू तस उसके हृदयनेत्रों के आगे आ ख़िी
हुई। अब भी उसकी रूपशोभा उतनी ही अनप
ु म थी श्जतनी उस समय जब उसने उसकी कुवासनाओं को
उत्तेश्जत ककया था। वह ब़िी कोमलता से गल
ु ाब की सेज पर ससर झुकाये लेटी हुई थी। उसके कमलनेत्रों
में एक ववगचत्र आिस ता, एक ववलक्षण ज्योनत थी। उसके नथुने फ़िक रहे थे, अधर कली की भांनत आधे
खुले हुए थे और उसकी बांहें दो जलधाराओं के सदृश ननमसल और उज्ज्वल थीं। यह मनू तस दे खकर
पापनाशी ने अपनी छाती पीटकर कहा-"भगवान तू साक्षी है कक मैं पापों को ककतना घोर और घातक
समझ रहा हूं।"

धीरे धीरे इस मनू तस का मख


ु ववकत होने लगा, उसके होंठ के दोनों कोने नीचे को झुककर उसकी
अनतवेदसना को परकट करने लगे। उसकी ब़िीब़िी आंखें सजल हो गयीं। उसका वक्ष उच््वासों से
आनदोसलत होने लगा मानो तफ
ू ान के पव
ू स हवा सनसना रही हो! यह कुतह
ू ल दे खकर पापनाशी को
ममसवेदना होने लगी। भसू म पर ससर नवाकर उसने यों पराथसना की-'करुणामय ! तन
ू े हमारे अनतःकरण को
दया से पररपरू रत कर ददया है , उसी भांनत उसे परभात के समय खेत दहमकणों से पररपरू रत होते हैं। मैं

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तझ
ु े नमस्कार करता हूं! तू धनय है । मझ
ु े शश्क्त दे कक तेरे जीवों को तेरी दया की ज्योनत समझाकर
परे म करुं , क्योंकक संसार में सब कुछ अननर्तय है , एक तू ही ननर्तय, अमर है । यदद इस अभागगनी स्त्री के
परनत मझ
ु े गचनता है तो इसका कारण है कक वह तेरी ही रचना है । स्वगस के दत
ू भी उस पर दयाभाव
रखते हैं। भगवान ्, क्या यह तेरी ही ज्योनत का परकाश नहीं है ? उसे इतनी शश्क्त दे कक वह इस कुमारी
को र्तयाग दे । तू दयासागर है , उसके पाप महाघोर, घणणत हैं और उनके ककपनामात्र ही से मझ
ु े रोमांच हो
जाता है । लेककन वह श्जतनी पावपष्ठा है , उतना ही मेरा गचत्त उसके सलए व्यगथत हो रहा है । मैं यह ववचार
करके व्यगर हो जाता हूं कक नरक के दत
ू अनतकाल तक उसे जलाते रहें गे।'

वह यही पराथसना कर रहा था कक उसने अपने पैरों के पास एक गीद़ि को प़िे हुए दे खा। उसे
ब़िा आचचयस हुआ, क्योंकक उसकी कुटी का द्वार बनद था। ऐसा जान प़िता था कक वह पशु उसके
मनोगत ववचारों को भांप रहा है वह कुत्ते की भांनत पछ
ूं दहला रहा था। पापनाशी ने तरु नत सलीब का
आकार बनाया और पशु लप्ु त हो गया। उसे तब ज्ञात हुआ कक आज पहली बार राक्षस ने मेरी कुटी में
परवेश ककया। उसने गचत्तशाश्नत के सलए छोटीसी पराथसना की और कफर थायस का ध्यान करने लगा।

उसने अपने मन में ननचचय ककया ? 'हरीच्छा से मैं अवचय उसका उद्घार करुं गा।' तब उसने ववर्श्ाम
ककया।

दस
ू रे ददन ऊषा के साथ उसकी ननिा भी खल
ु ी। उसने तरु नत ईशवंदना की और पालम सनत से
समलने गया श्जनका आर्श्म वहां से कुछ दरू था। उसने सनत महार्तमा को अपने स्वभाव के अनस
ु ार
परफुकलगचत्त से भसू म खोदते पाया। पालम बहुत वद्ध थे। उनहोंने एक छोटीसी फुलवा़िी लगा रखी थी।
वनजनतु आकर उनके हाथों को चाटते थे और वपशाचादद कभी उनहें कष्ट न दे ते थे।

उनहोंने पापनाशी को दे खकर नमसकार ककया।

पापनाशी ने उत्तर दे ते हुए कहा-'भगवान तम्


ु हें शाश्नत दे ।'

पालम-'तम्
ु हें भी भगवान शाश्नत दे ।' यह कहकर उनहोंने माथे का पसीना अपने कुरते की अस्तीन से
पौंछा।

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पापनाशी-बनधुवर, जहां भगवान की चचार होती है वहां भगवान अवचय वतसमान रहते हैं। हमारा धमस है कक
अपने सम्भाषणों में भी ईचवर की स्तनु त ही ककया करें । मैं इस समय ईचवर की कीनतस परसाररत करने के
सलए एक परस्ताव लेकर आपकी सेवा में उपश्स्थनत हुआ हूं।

पालम-'बनधु पापनाशी, भगवान तम्


ु हारे परस्ताव को मेरे काहू के बेलों की भांनत सफल करे । वह ननर्तय
परभात को मेरी वादटका पर ओसत्रबनदओ
ु ं के साथ अपनी दया की वषास करता है और उसके परदान ककए
हुए खोरों और खरबज
ू ों का आस्वादन करके मैं उसके असीम वार्तसकय की जयजयकार मानता हूं। उससे
यही याचना करनी चादहए कक हमें अपनी शाश्नत की छाया में रखे क्योंकक मन को उद्ववग्न करने वाले
भीषण दरु ावेगों से अगधक भयंकर और कोई वस्तु नहीं है । जब यह मनोवेग जागत हो जाते हैं तो हमारी
दशा मतवालों कीसी हो जाती है , हमारे पैर ल़िख़िाने लगते हैं और ऐसा जान प़िता है कक अब औंधे मह
ुं
गगरे ! कभीकभी इन मनोवेगों के वशीभत
ू होकर हम घातक सख
ु भोग में मग्न हो जाते हैं। लेककन
कभीकभी ऐसा भी होता है कक आर्तमवेदना और इश्नियों की अशांनत हमें नैराचयनद में डुबा दे ती हैं, जो
सख
ु भोग से कहीं सवसनाशक है । बनधुवर, मैं एक महान पापी पराणी हूं, लेककन मझ
ु े अपने दीघस जीवनकाल
में यह अनभ
ु व हुआ है कक योगी के सलए इस मसलनता से ब़िा और कोई शत्रु नहीं है । इससे मेरा
असभपराय उस असाध्य उदासीनता और क्षोभ से है जो कुहरे की भांनत आर्तमा पर परदा डाले रहती है
और ईचवर की ज्योनत को आर्तमा तक नहीं पहुंचने दे ती। मश्ु क्तमागस में इससे ब़िी और कोई बाधा नहीं है ,
और असरु राज की सबसे ब़िी जीत यही है कक वह एक साधु परु
ु ष के हृदय में क्षुशध और मसलन ववचार
अंकुररत कर दे । यदद वह हमारे ऊपर मनोहर परलोभनों ही से आिमण करता तो बहुत भय की बात न
थी। पर शोक ! वह हमें क्षुशध करके बाजी मार ले जाता है । वपता एण्तोनी को कभी ककसी ने उदास या
दःु खी नहीं दे खा। उनका मख
ु ़िा ननर्तय फूल के समान णखला रहता था। उनके मधरु मस
ु कान ही से भक्तों
के गचत्त को शाश्नत समलती थी। अपने सशष्यों में ककतने परसनन मस
ु कान गचत्त रहते थे। उनकी
मख
ु काश्नत कभी मनोमासलनय से धुंधली नहीं हुई। लेककन हां, तम
ु ककसी परस्ताव की चचार कर रहे थे ?'

पापनाशी-बनधु पालम, मेरे परस्ताव का उद्दे चय केवल ईचवर के माहार्तम्य को उज्ज्वल करना है । मझ
ु े
अपने सद्परामशस से अनग
ु हीत कीश्जए, क्योंकक आप सवसज्ञ है और पाप की वायु ने कभी आपको स्पशस
नहीं ककया।

पालम-बनधु पापनाशी, मैं इस योग्य भी नहीं हूं कक तम्


ु हारे चरणों की रज भी माथे पर लगाऊं और मेरे
पापों की गणना मरुस्थल के बालक
ु णों से भी अगधक है । लेककन मैं वद्ध हूं और मझ
ु े जो अनभ
ु व है ,
उससे तम्
ु हारी सहषस सेवा करुं गा।'

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पापनाशी-'तो कफर आपसे स्पष्ट कह दे ने में कोई संकोच नहीं है कक मैं इस्कश्नियः में रहने वाली थायस
नाम की एक पववत्र स्त्री की अधोगनत से बहुत दःु खी हूं। वह समस्त नगर के सलए कलंक है और अपने
साथ ककतनी ही आर्तमाओं का सवसनाश कर रही है ।

पालम-'बनधु पापनाशी, यह ऐसी व्यवस्था है श्जस पर हम श्जतने आंसू बहायें कम हैं। भिर्श्ेणी में ककतनी
ही रमणणयों का जीवन ऐसा ही पापमय है । लेककन इस दरु वस्था के सलए तम
ु ने कोई ननवारणववगध सोची
है ?'

पापनाशी-बनधु पालम, मैं इस्कश्निया जाऊंगा, इस वेचया की तलाश करुं गा और ईचवर की सहायता से
उसका उद्घार करुं गा। यही मेरा संककप है । आप इसे उगचत समझते हैं ?'

पालम-'वपरय बनध,ु मैं एक अधम पराणी हूं ककनतु हमारे पज्


ू य गरु
ु एण्तोनी का कथन था कक मनष्ु य को
अपना स्थान छो़िकर कहीं और जाने के सलए उतावली न करनीचादहए।'

पापनाशी-'पज्
ू य बनधु, क्या आपको मेरा परस्ताव पसनद नहीं है ?'

पालम-'वपरय पापनाशी, ईचवर न करे कक मैं अपने बनधु के ववशद्


ु ध भावों पर शंका करुं , लेककन हमारे
र्श्द्धेय गरु
ु एण्तोनी का यह भी कथन था कक जैसे मछसलयां सख
ू ी भसू म पर मर जाती हैं, वही दशा उन
साधओ
ु ं की होती है जो अपनी कुटी छो़िकर संसार के पराणणयों से समलतेजल
ु ते हैं। वहां भलाई की कोई
आशा नहीं।'

यह कहकर संत पालम ने कफर कुदाल हाथ में ली और धरती गो़िने लगे। वह फल से लदे
हुए एक अंजीर के वक्ष की ज़िों पर समट्टी चा रहे थे। वह कुदाल चला ही रहे थे कक झाड़ियों में
सनसनाहट हुई और एक दहरन बाग के बा़िे के ऊपर से कूदकर अनदर आ गया। वह सहमा हुआ था,
उसकी कोमल टांगें कांप रही थीं। वह सनत पालम के पास आया और अपना मस्तक उनकी छाती पर
रख ददया।

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पालम ने कहा-'ईचवर को धनय है श्जसने इस सन
ु दर वनजनतु की सश्ष्ट की।'

इसके पचचात पालम सनत अपने झोंप़िे में चले गये। दहरन भी उनके पीछे पीछे चला। सनत ने तब ज्वार
की रोटी ननकाली और दहरन को अपने हाथों से णखलायी।

पापनाशी कुछ दे र तक ववचार में मग्न ख़िा रहा। उसकी आंखें अपने पैरों के पास प़िे हुए पर्तथरों
पर जमी हुई थीं। तब वह पालम सनत की बातों पर ववचार करता हुआ धीरे धीरे अपनी कुटी की ओर
चला। उसके मन में इस समय भीषण संगराम हो रहा था।

उसने सोचा-सनत पालम की सलाह अच्छी मालम


ू होती है । वह दरू दशी परु
ु ष हैं। उनहें मेरे परस्ताव
के औगचर्तय पर संदेह है , तथावप थायस को घात वपशाचों के हाथों में छो़ि दे ना घोर ननदस यता होगी। ईचवर
मझ
ु े परकाश और बद्
ु गध दे ।

चलतेचलते उसने एक तीतर को जाल में फंसे हुए दे खा जो ककसी सशकारी ने त्रबछा रखा था। यह
तीतरी मालम
ू होती थी, क्योंकक उसने एक क्षण में नर को जाल के पास उ़िकर और जाल के फनदे को
चोंच से काटते दे खा, यहां तक कक जाल में तीतरी के ननकलने भर का नछि हो गया। योगी ने घटना को
ववचारपण
ू स नेत्रों से दे खा और अपनी ज्ञानशश्क्त से सहज में इसका आध्याश्र्तमक आशय समझ सलया।
तीतरी के रूप में थामस थी, जो पापजाल में फंसी हुई थी, और जैसे तीतर ने रस्सी का जाल काटकर उसे
मक्
ु त कर ददया था, वह भी अपने योगबल और सदप
ु दे श से उन अदृचय बंधनों को काट सकता था श्जनमें
थामस फंसी हुई थी। उसे ननचचय हो गया कक ईचवर ने इस रीनत से मझ ु े परामशस ददया है । उसने ईचवर
को धनयवाद ददया। उसका पव ू स संककप दृ ो़ हो गया; लेककन कफर जो दे खा, नर की टांग उसी जाल में फंसी
हुई थी श्जसे काटकर उसने मादा को ननवत्त ककया था तो वह कफर भरम में प़ि गया।

वह सारी रात करवटें बदलता रहा। उषाकाल के समय उसने एक स्वप्न दे खा, थायस की मनू तस
कफर उसके सम्मख
ु उपश्स्थत हुई। उसके मख
ु चनि पर कलवु षत ववलास की आभा न थी, न वह अपने
स्वभाव के अनस
ु ार रर्तनजदटल वस्त्र पहने हुए थी। उसका शरीर एक लम्बीचौ़िी चादर से का हुआ था,
श्जससे उसका मह
ुं भी नछप गया था केवल दो आंखें ददखाई दे रही थीं, श्जनमें से गाेेो़ आंसू बह रहे थे।

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यह स्वप्नदृचदे खकर पापनाशी शोक से ववह्वल हो रोने लगा और यह ववचवास करके कक यह
दै वी आदे श है , उसका ववककप शानत हो गया। वह तरु नत उठ बैठा, जरीब हाथ में ली जो ईसाई धमस का
एक गचह्न था। कुटी के बाहर ननकला, सावधानी से द्वारबनद ककया, श्जसमें वनजनतु और पक्षी अनदर
जाकर ईचवरगरनथ को गनदा न कर दें जो उसके ससरहाने रखा हुआ था। तब उसने अपने परधान सशष्य
फलदा को बल
ु ाया और उसे शेष तेईस सशष्यों के ननरीक्षण में छो़िकर, केवल एक ेीला ेाला चोगा पहने
हुए नील नदी की ओर परस्थान ककया। उसका ववचार था कक लाइत्रबया होता हुआ मकदनू नया नरे श
(ससकनदर) के बसाये हुए नगर में पहुंच जाऊं। वह भख
ू , प्यास और थकन की कुछ परवाह न करते हुए
परातःकाल से सय
ू ास्तस तक चलता रहा। जब वह नदी के समीप पहुंचा तो सय
ू स क्षक्षनतज की गोद में आर्श्य
ले चुका था और नदी का रक्तजल कंचन और अश्ग्न के पहा़िों के बीच में लहरें मार रहा था।

वह नदी के तटवती मागस से होता हुआ चला। जब भख


ू लगती ककसी झोंप़िी के द्वार पर
ख़िा होकर ईचवर के नाम पर कुछ मांग लेता। नतरस्कारों, उपेक्षाओं और कटुवचनों को परसननता से
सशरोधायस करता था। साधु को ककसी से अमषस नहीं होता। उसे न डाकुओं का भय था, न वन के जनतओ
ु ं
का, लेककन जब ककसी गांव या नगर के समीप पहुंचता तो कतराकर ननकल जाता। वह डरता था कक कहीं
बालवनद उसे आंखसमचौली खेलते हुए न समल जाएेेें अथवा ककसी कुएं पर पानी भरने वाली रमणणयों
से सामना न हो जाए जो घ़िों को उतारकर उससे हासपररहास कर बैठें। योगी के सलए यह सभी शंका की
बातें हैं, न जाने कब भत
ू वपशाच उसके कायस में ववघ्न डाल दें । उसे धमसगरनथों में यह पॄकर भी शंका होती
है कक भगवान नगरों की यात्रा करते थे और अपने सशष्यों के साथ भोजन करते थे। योगगयों की
आर्श्मवादटका के पष्ु प श्जतने सन
ु दर हैं, उतने ही कोमल भी होते हैं, यहां तक कक सांसाररक व्यवहार का
एक झोंका भी उनहें झुलसा सकता है , उनकी मनोरम शोभा को नष्ट कर सकता है । इनहीं कारणों से
पापनाशी नगरों और बश्स्तयों से अलगअलग रहता था कक अपने स्वजातीय भाईयों को दे खकर उसका
गचत्त उनकी ओर आकवषसत न हो जाए।

वह ननजसन मागों पर चलता था। संध्या समय जब पक्षक्षयों का मधुर कलरव सन


ु ाई दे ता और
समीर के मनद झोंके आने लगते तो अपने कनटोप को आंखों पर खींच लेता कक उस पर परकनतसौनदयस
का जाद ू न चल जाए। इसके परनतकूल भारतीय ऋवषमहार्तमा परकनतसौनदयस के रससक होते थे। एक
सप्ताह की यात्रा के बाद वह ससलससल नाम के स्थान पर पहुंचा। वहां नील नदी एक संकरी घाटी में
होकर बहती है और उसके तट पर पवसतर्श्ेणी की दहु री में ़िसी बनी हुई है । इसी स्थान पर समस्त्रननवासी
अपने वपशाचपज
ू ा के ददनों में मनू तसयां अंककत करते थे। पापनाशी को एक बहदाकार 'श्स्फक्र्स'* ठोस पर्तथर
का बना हुआ ददखाई ददया। इस भय से कक इस परनतमा में अब भी पैशागचक ववभनू तयां संगचत न हों,
पापनाशी ने सलीब का गचह्न बनाया और परभु मसीह का स्मरण ककया। तर्तक्षण उसने परनतमा के एक

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कान में से एक चमगाद़ि को उ़िकर भागते दे खा। पापनाशी को ववचवास हो गया कक मैंने उस वपशाच को
भगा ददया जो शताश्शदयों से इन परनतमा में अड्डा जमाये हुए था। उसका धमोर्तसासह बा, उसने एक पर्तथर
उठाकर परनतमा के मख
ु पर मारा। चोट लगते ही परनतमा का मख
ु इतना उदास हो गया कक पापनाशी
को उस पर दया आ गयी। उसने उसे सम्बोगधत करके कहा-हे परे त, तू भी उन परे तों की भांनत परभु पर
ईमान ला श्जनहें परातःस्मरणीय एण्तोनी ने वन में दे खा था, और मैं ईचवर, उसके पत्र
ु और अलख ज्योनत
के नाम पर तेरे उद्घार करुं गा।

यह वाक्य समाप्त होते ही ससंफक्स के नेत्रों में अश्ग्नज्योनत परस्फुदटत हुई, उसकी पलकें कांपने
लगीं और उसके ष्पााणमख
ु से 'मसीह' की ध्वनन ननकली; माना पापनाशी के शशद परनतध्वननत हो गये हों।
अतएव पापनाशी ने दादहना हाथ उठाकर उस मनू तस को आशीवादस ददया।

इस परकार ष्पााणहृदय में भश्क्त का बीज आरोवपत करके पापनाशी ने अपनी राह ली। थो़िी दे र
के बाद घाटी चौ़िी हो गयी। वहां ककसी ब़िे नगर के अवसशष्ट गचह्न ददखाई ददये। बचे हुए मश्नदर श्जन
खम्भों पर अवलश्म्बत थे, वास्तव के उन ब़िीब़िी ष्पााण मनू तसयों ने ईचवरीय पररे णा से पापनाशी पर एक
लम्बी ननगाह डाली। वह भय से कांप उठा। इस परकार वह सत्रह ददन तक चलता रहा, क्षुधा से व्याकुल
होता तो वनस्पनतयां उखा़िकर खा लेता और रात को ककसी भवन के खंडहर में , जंगली त्रबश्कलयों और
चूहों के बीच में सो रहता। रात को ऐसी श्स्त्रयां भी ददखायी दे ती थीं श्जनके पैरों की जगह कांटेदार पछ
ूं
थी। पापनाशी को मालम
ू था कक यह नारकीय श्स्त्रयां हैं और वह सलीब के गचह्न बनाकर उनहें भगा दे ता
था।

अठारहवें ददन पापनाशी को बस्ती से बहुत दरू एक दररि झोंप़िी ददखाई दी। वह खजरू के
पवत्तयों की थी और उसका आधा भाग बालू के नीचे दबा हुआ था। उसे आशा हुई कक इनमें अवचय कोई
सनत रहता होगा। उसने ननकट आकर एक त्रबल के रास्ते अनदर झांका (उसमें द्वार न थे) तो एक घ़िा,
प्याज का एक गट्ठा और सख
ू ी पवत्तयों का त्रबछावन ददखाई ददया। उसने ववचार ककया, यह अवचय ककसी
तपस्वी की कुदटया है , और उनके शीघर ही दशसन होंगे हम दोनों एकदस
ू रे के परनत शभ
ु कामनासच
ू क पववत्र
शशदों का उच्चारण करें गे। कदागचत ईचवर अपने ककसी कौए द्वारा रोटी का एक टुक़िा हमारे पास भेज
दे गा और हम दोनों समलकर भोजन करें गे।

मन में यह बातें सोचता हुआ उसने सनत को खोजने के सलए कुदटया की पररिमा की। एक सौ पग
भी न चला होगा कक उसे नदी के तट पर एक मनष्ु य पाकथी मारे बैठा ददखाई ददया। वह नग्न था।

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उसके ससर और दाी ो़ के बाल सन हो गये थे और शरीर ईंट से भी ज्यादा लाल था। पापनाशी ने साधओ
ु ं
के परचसलत शशदों में उसका असभवादन ककया-'बनध,ु भगवान तम्
ु हें शाश्नत दे , तम
ु एक ददन स्वगस के
आननदलाभ करो।'

पर उस वद्ध परु
ु ष ने इसका कुछ उत्तर न ददया, अचल बैठा रहा। उसने मानो कुछ सन
ु ा ही नहीं।
पापनाशी ने समझा कक वह ध्यान में मग्न है । वह हाथ बांधकर उकडूं बैठ गया और सय
ू ास्तस तक
ईशपराथसना करता रहा। जब अब भी वह वद्ध परु
ु ष मनू तसवत बैठा रहा तो उसने कहा-'पज्
ू य वपता, अगर
आपकी समागध टूट गयी है तो मझ
ु े परभु मसीह के नाम पर आशीवादस दीश्जए।'

वद्ध परु
ु ष ने उसकी ओर त्रबना ताके ही उत्तर ददया-

'पगथक, मैं तम्


ु हारी बात नहीं समझा और न परभु मसीह को ही जानता हूं।'

पापनाशी ने ववश्स्मत होकर कहा-'अरे श्जसके परनत ऋवषयों ने भववष्यवाणी की, श्जसके नाम पर लाखों
आर्तमाएं बसलदान हो गयीं, श्जसकी सीजर ने भी पज
ू ा की, और श्जसका जयघोष ससलससली की परनतमा ने
अभीअभी ककया है , क्या उस परभु मसीह के नाम से भी तम
ु पररगचत नहीं हो ? क्या यह सम्भव है ?'

वद्ध-'हां समत्रवर, यह सम्भव है , और यदद संसार में कोई वस्तु ननश्चचत होती तो ननश्चचत भी होता !'

पापनाशी उस परु
ु ष की अज्ञानावस्था पर बहुत ववश्स्मत और दख
ु ी हुआ। बोला-'यदद तम
ु परभु मसीह को
नहीं जानते तो तम्
ु हारा धमसकमस सब व्यथस है , तम
ु कभी अननतपद नहीं पराप्त कर सकते।'

वद्
ु ध-'कमस करना, या कमस से हटना दोनों ही व्यथस हैं। हमारे जीवन और मरण में कोई भेद नहीं।'

पापनाशी-'क्या, क्या? क्या तम


ु अननत जीवन के आकांक्षी नहीं हो ? लेककन तम
ु तो तपश्स्वयों की भांनत
वनयकुटी में रहते हो ?'

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'हां, ऐसा जान प़िता है ।'

'क्या मैं तम्


ु हें नग्न और ववरत नहीं दे खता ?'

'हां, ऐसा जान प़िता है ।'

'क्या तम
ु कनदमल
ू नहीं खाते और इच्छाओं का दमन नहीं करते ?'

'हां, ऐसा जान प़िता है ।'

'क्या तम
ु ने संसार के मायामोह को नहीं र्तयाग ददया है ?'

'हां, ऐसा जान प़िता है । मैंने उन समथ्या वस्तओ


ु ं को र्तयाग ददया है , श्जन पर संसार के पराणी जान दे ते
हैं।'

'तम
ु मेरी भांनत एकानतसेवी, र्तयागी और शद्
ु घाचरण हो। ककनतु मेरी भांनत ईचवर की भश्क्त और अननत
सख
ु की असभलाषा से यह वरत नहीं धारण ककया है । अगर तम्
ु हें परभु मसीह पर ववचवास नहीं है तो तम

क्यों साश्र्तवक बने हुए हो ? अगर तम्
ु हें स्वगस के अननत सख
ु की असभलाषा नहीं है तो संसार के पदाथों
को क्यों नहीं भोगते ?'

वद्
ु ध परु
ु ष ने गम्भीर भाव से जवाब ददया-'समत्र, मैंने संसार की उत्तम वस्तओ
ु ं का र्तयाग नहीं
ककया है और मझ
ु े इसका गवस है कक मैंने जो जीवनपथ गरहण ककया है वह सामानतयः सनटोषजनक है ,
यद्यवप यथाथस तो यह है कक संसार की उत्तम या ननकष्ट, भले या बरु े जीवन का भेद ही समथ्या है । कोई
वस्तु स्वतः भली या बरु ी, सर्तय या असर्तय, हाननकर या लाभकर, सख
ु मय या दख
ु मय नहीं होती। हमारा
ववचार ही वस्तओ
ु ं को इन गण
ु ों में आभवू षत करता है , उसी भांनत जैसे नमक भोजन को स्वाद परदान
करता है ।'

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पापनाशी ने अपवाद ककया-'तो तम्
ु हारे मतानस
ु ार संसार में कोई वस्तु स्थायी नहीं है ? तम
ु उस थके हुए
कुत्ते की भांनत हो, जो कीच़ि में प़िा सो रहा है -अज्ञान के अनधकार में अपना जीवन नष्ट कर रहे हो।
तम
ु परनतमावाददयों से भी गयेगज
ु रे हो।'

'समत्र, कुत्तों और ऋवषयों का अपमान करना समान ही व्यथस है । कुत्ते क्या हैं, हम यह नहीं जानते। हमको
ककसी वस्तु का लेशमात्र भी ज्ञान नहीं।'

'तो क्या तम
ु भरांनतवाददयों में हो ? क्या तम
ु उस ननबद्
ु गध, कमसहीन सम्परदाय में हो, जो सय
ू स के परकाश
में और रात्रत्र के अनधकार में कोई भेद नहीं कर सकते ?'

'हां समत्र, मैं वास्तव में भरमवादी हूं। मझ


ु े इस सम्परदाय में शाश्नत समलती है, चाहे तम्
ु हें हास्यास्पद
जान प़िता हो। क्योंकक एक ही वस्तु सभननसभनन अवस्थाओं में सभननसभनन रूप धारण कर लेती है । इस
ववशाल मीनारों ही को दे खो। परभात के पतीपरकाश में यह केशर के कंगरू ोंसे दे ख प़िते हैं। सनध्या समय
सय
ू स की ज्योनत दस
ू री ओर प़िती है और कालेकाले त्रत्रभज
ु ों के सदृश ददखाई दे ते हैं। यथाथस में ककस रं ग
के हैं, इसका ननचचय कौन करे गा ? बादलों ही को दे खो। वह कभी अपनी दमक से कुनदन को जलाते हैं,
कभी अपनी कासलमा से अनधकार को मात करते हैं। ववचव के ससवाय और कौन ऐसा ननपण
ु है जो उनके
ववववध आवरणों की छाया उतार सके ? कौन कह सकता है कक वास्तव में इस मेघसमह
ू का क्या रं ग है ?
सय
ू स मझ
ु े ज्योनतमसय दीखता है , ककनतु मैं उसके तत्त्व को नहीं जानता। मैं आग को जलते हुए दे खता हूं,
पर नहीं जानता कक कैसे जलती है और क्यों जलती है ? समत्रवर, तम
ु व्यथस मेरी उपेक्षा करते हो। लेककन
मझ
ु े इसकी भी गचनता नहीं कक कोई मझ
ु े क्या समझता है , मेरा मान करता है या नननदा।'

पापनाशी ने कफर शंका की-'अच्छा एक बात और बता दो। तम


ु इस ननजसन वन में प्याज और
छुहारे खाकर जीवन व्यतीत करते हो ? तम
ु इतना कष्ट क्यों भोगते हो। तम्
ु हारे ही समान मैं भी इश्नियों
का दमन करता हूं और एकानत में रहता हूं। लेककन मैं यह सब कुछ ईचवर को परसनन करने के सलए,
स्वगीयस आननद भोगने के सलए करता हूं। यह एक माजसनीय उद्दे चय है , परलोकसख
ु के सलए ही इस लोक
में कष्ट उठाना बद्
ु गधसंगत है । इसके परनतकूल व्यथस त्रबना ककसी उद्दे चय के संयम और वरत का पालन
करना, तपस्या से शरीर और रक्त तो घल
ु ाना ननरी मख
ू त
स ा है । अगर मझ
ु े ववचवास न होता-हे अनादद
ज्योनत, इस दव
ु च
स न के सलए क्षमा कर-अगर मझ
ु े उस सर्तय पर ववचवास है , श्जसका ईचवर ने ऋवषयों द्वारा
उपदे श ककया है , श्जसका उसके परमवपरय पत्र
ु ने स्वयं आचरण ककया है , श्जसकी धमस सभाओं ने और
आर्तमसमपसण करने वाले महान परु
ु षों ने साक्षी दी है -अगर मझ
ु े पण
ू स ववचवास न होता कक आर्तमा की

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मश्ु क्त के सलए शारीररक संयम और ननगरह परमावचयक है ; यदद मैं भी तम्
ु हारी ही तरह अज्ञेय ववषयों से
अनसभज्ञ होता, तो मैं तरु नत सांसाररक मनष्ु यों में आकर समल जाता, धनोपाजसन करता, संसार के सख
ु ी
परु
ु षों की भांनत सख
ु भोग करता और ववलासदे वी के पज
ु ाररयों से कहता-आओ मेरे समत्रो, मद के प्याले
भरभर वपलाओ, फूलों के सेज त्रबछाओ, इत्र और फुलेल की नददयां बहा दो। लेककन तम
ु ककतने ब़िे मख
ू स हो
कक व्यथस ही इन सख
ु ों को र्तयाग रहे हो, तम
ु त्रबना ककसी लाभ की आशा के यह सब कष्ट उठाते हो। दे ते
हो, मगर पाने की आशा नहीं रखते। और नकल करते हो हम तपश्स्वयों की, जैसे अबोध बनदर दीवार पर
रं ग पोतकर अपने मन में समझता है कक मैं गचत्रकार हो गया। इसका तम्
ु हारे पास क्या जवाब है ?'

वद्ध ने सदहष्णुता से उत्तर ददया-'समत्र, कीच़ि में सोने वाले कुत्ते और अबोध बनदर का जवाब ही क्या ?'

पापनाशी का उद्दे चय केवल इस वद्ध परु


ु ष को ईचवर का भक्त बनाना था। उसकी शाश्नतववत्त पर
वह लश्ज्जत हो गया। उसका िोध उ़ि गया। ब़िी नमरता से क्षमापराथसना की-'समत्रवर, अगर मेरा
धमोर्तसासह औगचर्तय की सीमा से बाहर हो गया है तो मझ
ु े क्षमा करो। ईचवर साक्षी है कक मझ
ु े तम
ु से नहीं,
केवल तम्
ु हारी भराश्नत से घणा है ! तम
ु को इस अनधकार में दे खकर मझ
ु े हाददस क वेदना होती है , और
तम्
ु हारे उद्घार की गचनता मेरे रोमरोम में व्याप्त हो रही है । तम
ु मेरे परचनों का उत्तर दो, मैं तम्
ु हारी
उश्क्तयों का खण्डन करने के सलए उर्तसक
ु हूं।'

वद्ध परु
ु ष ने शाश्नतपव
ू क
स कहा-'मेरे सलए बोलना या चप
ु रहना एक ही बात है । तम
ु पछ
ू ते हो,
इससलए सन
ु ो-श्जन कारणों से मैंने वह साश्र्तवक जीवन गरहण ककया है । लेककन मैं तम
ु से इनका परनतवाद
नहीं सन
ु ना चाहता। मझ
ु े तम्
ु हारी वेदना, शाश्नत की कोई परवाह नहीं, और न इसकी परवाह है कक तम

मझ
ु े क्या समझते हो। मझ
ु े न परे म है न घणा। बद्
ु गधमान परु
ु ष को ककसी के परनत ममर्तव या द्वेष न
होना चादहए। लेककन तम
ु ने श्जज्ञासा की है , उत्तर दे ना मेरा कतसव्य है । सन
ु ो, मेरा नाम दटमाक्लीज है । मेरे
मातावपता धनी सौदागर थे। हमारे यहां नौकाओं का व्यापार होता था। मेरा वपता ससकनदर के समान
चतरु और कायसकुशल था; पर वह उतना लोभी न था। मेरे दो भाई थे। वह भी जहाजों ही का व्यापार
करते थे। मझ
ु े ववद्या का व्यसन था। मेरे ब़िे भाई को वपताजी ने एक धनवान यव
ु ती से वववाह करने पर
बाध्य ककया, लेककन मेरे भाई शीघर ही उससे असनतष्ु ट हो गये। उनका गचत्त अश्स्थर हो गया। इसी बीच
में मेरे छोटे भाई का उस स्त्री से कुलवषत सम्बनध हो गया। लेककन वह स्त्री दोनों भाइयों में ककसी को
भी न चाहती थी। उसे एक गवैये से परे म था। एक ददन भेद खल
ु गया। दोनों भाइयों ने गवैये का वध
कर डाला। मेरी भावज शोक से अव्यवश्स्थतगचत्त हो गयी। यह तीनों अभागे पराणी बद्
ु गध को वासनाओं
की बसलदे वी पर चाकर शहर की गसलयों में कफरने लगे। नंगे, ससर के बाल बाये, मह
ुं से कफचकुर बहाते, कुत्ते

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की भांनत गचकलाते रहते थे। ल़िके उन पर पर्तथर फेंकते और उन पर कुत्ते दौ़िाते। अनत में तीनों मर गये
और मेरे वपता ने अपने ही हाथों से उन तीनों को कबर में सल
ु ाया। वपताजी को भी इतना शोक हुआ कक
उनका दानापानी छूट गया और वह अपररसमत धन रहते हुए भी भख
ू से त़िपत़िपकर परलोक ससधारे । मैं
एक ववपल
ु सम्पनत का वाररस हो गया। लेककन घर वालों की दशा दे खकर मेरा गचत्त संसार से ववरक्त हो
गया था। मैंने उस सम्पवत्त को दे शाटन में व्यय करने का ननचयच ककया। इटली, यन
ू ान, अफ्रीका आदद दे शों
की यात्रा की; पर एक पराणी भी ऐसा न समला जो सख
ु ी या ज्ञानी हो। मैंने इस्कश्निया और एथेनस में
दशसन का अध्ययन ककया और उसके अपवादों को सन
ु ते मेरे कान बहरे हो गये। ननदान दे शववदे श घम
ू ता
हुआ मैं भारतवषस में जा पहुंचा और वहां गंगातट पर मझ
ु े एक नग्न परु
ु ष के दशसन हुए जो वहीं तीस वषों
से मनू तस की भांनत ननचचल पद्मासन लगाये बैठा हुआ था। उसके तणवत शरीर पर लताएं च गयी थीं
और उसकी जटाओं में गचड़ियों ने घोंसले बना सलये थे, कफर भी वह जीववत था। उसे दे खकर मझ
ु े अपने
दोनों भाइयों की, भावज की, गवैये की, वपता की याद आयी और तब मझ
ु े ज्ञात हुआ कक यही एक ज्ञानी
परु
ु ष है । मेरे मन में ववचार उठा कक मनष्ु यों के दःु ख के तीन कारण होते हैं। या तो वह वस्तु नहीं
समलती श्जसकी उनहें असभलाषा होती है अथवा उसे पाकर उनहें उसके हाथ से ननकल जाने का भय होता
है अथवा श्जस चीज को वह बरु ा समझते हैं उसका उनहें सहन करना प़िता है । इन ववचारों को गचत्त से
ननकाल दो और सारे दःु ख आपही-आप शांत हो जाएेेेंगे। संसार के र्श्ेष्ठ पदाथों का पररर्तयाग कर दं ग
ू ा
और उसी भारतीय योगी की भांनत मौन और ननचचल रहूंगा।'

पापनाशी ने इस कथन को ध्यान से सन


ु ा और तब बोला-'दटमो, मैं स्वीकार करता हूं कक तम्
ु हारा
कथन त्रबककुल अथसशन
ू य नहीं है । संसार की धनसम्पवत्त को तच्
ु छ समझना बद्
ु गधमानों का काम है ।
लेककन अपने अननत सख
ु की उपेक्षा करना परले ससरे की नादानी है । इससे ईचवर के िोध की आशंका
है । मझ
ु े तम्
ु हारे अज्ञान पर ब़िा दःु ख है और मैं सर्तय का उपदे श करुं गा श्जसमें तम
ु को उसके अश्स्तर्तव
का ववचवास हो जाए और तम
ु आज्ञाकारी बालक के समान उसकी आज्ञा पालन करो।'

दटमाक्लीज ने बात काटकर कहा-'नहींनहीं, मेरे ससर अपने धमसससद्घानतों का बोझ मत लादो। इस
भल
ू में न प़िो कक तम
ु मझ
ु े अपने ववचारों के अनक
ु ू ल बना सकोगे। यह तकसववतकस सब समथ्या है । कोई
मत न रखना ही मेरा मत है । ककसी सम्परदाय में न होना ही मेरा सम्परदाय है । मझ
ु े कोई दःु ख नहीं,
इससल कक मझ
ु े ककसी वस्तु की ममता नहीं। अपनी राह जाओ, और मझ
ु े इस उदासीनावस्था से ननकालने
की चेष्टा न करो। मैंने बहुत कष्ट झेले हैं और यह दशा ठण्डे जल से स्नान करने की भांनत सख
ु कर
परतीत हो रही है ।'

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पापनाशी को मानव चररत्र का परू ा ज्ञान था। वह समझ गया कक इस मनष्ु य पर ईचवर की
कपादृश्ष्ट नहीं हुई है और उसकी आर्तमा के उद्घार का समय अभी दरू है । उसने दटमाक्लीज का खण्डन
न ककया कक कहीं उसकी उद्घारकशश्क्त घातक न बन जाए क्योंकक ववधसमसयों से शास्त्राथस करने में
कभीकभी ऐसा हो जाता है कक उनके उद्घार के साधन उनके अपकार के यनत्र बन जाते हैं। अतएव श्जनहें
सद्ज्ञान पराप्त है । उनहें ब़िी चतरु ाई से उसका परचार करना चादहए। उसने दटमाक्लीज को नमस्कार
ककया और एक लम्बी सांस खींचकर रात ही को कफर यात्रा पर चल प़िा।

सय
ू ोदस य हुआ तो उसने जलपक्षक्षयों को नदी के ककनारे एक पैर पर ख़िे दे खा। उनकी पीली और
गल
ु ाबी गदस नों को परनतत्रबम्ब जल में ददखाई दे ता था। कोमल बेत वक्ष अपनी हरीहरी पवत्तयों को जल पर
फैलाए हुए थे। स्वच्छ आकाश में सारसों का समह
ू त्रत्रभज
ु के आकर में उ़ि रहा था और झाड़ियों में नछपे
हुए बग
ु लों की आवाज सन
ु ाई दे ती थी। जहां तक ननगाह जाती थी नदी का हरा जल दहलकोरे मार रहा
था। उजले पाल वाली नौकाएं गचड़ियों की भांनत तैर रही थीं, और ककनारों पर जहांतहां चवेत भवन जगमगा
रहे थे। तटों पर हकका कुहरा छाया हुआ था और द्वीपों के आ़ि से जो, खजूर, फूल और फल के वक्षों से
के हुए थे; ये बत्तख, लालसर, हाररल आदद ये गचड़ियां कलरव करती हुई ननकल रही थी। बाईं ओर मरुस्थल
तक हरे भरे खेतों और वक्षपज
ुं ों की शोभा आंखों को मग्ु ध कर दे ती थी। पके हुए गेहूं के खेतों पर सय
ू स की
ककरणें चमक रही थीं और भसू म से भीनीभीनी सग
ु नध के झोके आते थे। यह परकनतशोभा दे खकर
पापनाशी ने घट
ु नों पर गगरकर ईचवर की वनदना की-'भगवान ्, मेरी यात्रा समाप्त हुई। तझ
ु े धनयवाद दे ता
हूं। दयाननगध, श्जस परकार तन
ू े इन अंजीर के पौधों पर ओस की बद
ूं ों की वषास की है , उसी परकार थायस
पर, श्जसे तन
ू े अपने परे म से रचा है , अपनी दया की दृश्ष्ट कर। मेरी हाददसक इच्छा है कक वह तेरी
परे ममयी रक्षा के अधीन एक नवववकससत पष्ु प की भांनत स्वगसतक
ु य जेरुशलम में अपने यश और कीनतस
का परसार करे ।' और तदप
ु रानत उसे जब कोई वक्ष फूलों से सश
ु ोसभत अथवा कोई चमकीले परों वाला पक्षी
ददखाई दे ता तो उसे थायस की याद आती। कई ददन तक नदी के बायें ककनारे पर, एक उवसर और आबाद
परानत में चलने के बाद, वह इस्कश्निया नगर में पहुंचा, श्जसे यन
ू ाननयों ने 'रमणीक' और 'स्वणसमयी' की
उपागध दे रखी थी। सय
ू ोदस य की एक घ़िी बीत चुकी थी, जब उसे एक पहा़िी के सशखर पर वह ववस्तत
नगर नजर आया, श्जसकी छतें कंचनमयी परकाश में चमक रही थीं। वह ठहर गया और मन में ववचार
करने लगा-'यही वह मनोरम भसू म है जहां मैंने मर्तयल
ु ोक में पदासपण ककया, यहीं मेरे पापमय जीवन की
उर्तपवत्त हुई, यहीं मैंने ववषाक्त वायु का आसलंगन ककया, इसी ववनाशकारी रक्तसागर में मैंने जलववहार
ककये ! वह मेरा पालना है श्जसके घातक गोद में मैंने काम की मधुर लोररयां सन
ु ीं। साधारण बोलचाल में
ककतना परनतभाशाली स्थान है , ककतना गौरव से भरा हुआ। इस्कश्निया ! मेरी ववशाल जनमभसू म ! तेरे
बालक तेरा पत्र
ु वत सम्मान करते हैं, यह स्वाभाववक है। लेककन योगी परकनत को अवहे लनीय समझता है ,
साधु बदहरूप को तच्
ु छ समझता है , परभु मसीह का दास जनमभसू म को ववदे श समझता है , और तपस्वी
इस पथ्वी का पराणी ही नहीं। मैंने अपने हृदय को तेरी ओर से फेर सलया है । मैं तम
ु से घणा करता हूं।

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मैं तेरी सम्पवत्त को, तेरी ववद्या को, तेरे शास्त्रों को, तेरे सख
ु ववलास को, और तेरी शोभा को घणणत समझता
हूं, तू वपशाचों का िी़िास्थल है , तझ
ु े गधक्कार है ! अथससेववयों की अपववत्र शय्या नाश्स्तकता का ववतण्डा
क्षेत्र, तझ
ु े गधक्कार है ! और श्जबरील, तू अपने पैरों से उस अशद्
ु ध वायु को शद्
ु ध कर दे श्जसमें मैं सांस
लेने वाला हूं, श्जसमें यहां के ववषैले कीटाणु मेरी आर्तमा को भरष्ट न कर दें ।'

इस तरह अपने ववचारोद्गारों को शानत करके पापनाशी शहर में परववष्ट हुआ। यह द्वार पर्तथर
का एक ववशाल मण्डप था। उसके मेहराब की छांह में कई दररि सभक्षुक बैठै हुए पगथकों के सामने हाथ
फैलाफैलाकर खैरात मांग रहे थे।

एक वद्घा स्त्री ने जो वहां घट


ु नों के बल बैठी थी, पापनाशी की चादर पक़ि ली और उसे चूमकर
बोली-'ईचवर के पत्र
ु , मझ
ु े आशीवादस दो कक परमार्तमा मझ
ु से सनतष्ु ट हो। मैंने परलौककक सख
ु के ननसमत्त
इस जीवन में अनेक कष्ट झेले। तम
ु दे व परु
ु ष हो, ईचवर ने तम्
ु हें दःु खी पराणणयों के ककयाण के सलए
भेजा है , अतएव तम्
ु हारी चरणरज कंचन से भी बहुमक
ू य है ।'

पापनाशी ने वद्ध को हाथों से स्पशस करके आशीवादस ददया। लेककन वह मश्ु चकल से बीस कदम
चला होगा कक ल़िकों के एक गोल ने उसको मह
ंु गचना और उस पर पर्तथर फेंकना शरू
ु ककया और
तासलयां बजाकर कहने लगे-'जरा अपनी ववशालमनू तस दे णखए ! आप लंगरू से भी काले हैं, और आपकी दाी ो़
बकरे की ेाढी से लम्बी है । त्रबककुल भत
ु ना मालम
ू होता है । इसे ककसी बाग में मारकर लटका दो, कक
गचड़ियां हौवा समझकर उ़िें। लेककन नहीं, बाग में गया तो सेंत में सब फूल नष्ट हो जाएेेेग
ं े। उसकी
सरू त ही मनहूस है । इसका मांस कौओं को णखला दो।' यह कहकर उनहोंने पर्तथर की एक बा ो़ छो़ि दी।

लेककन पापनाशी ने केवल इतना कहा-'ईचवर, तू इस अबोध बालकों को सब


ु द्
ु गध दे , वह नहीं जानते कक वे
क्या करते हैं।

वह आगे चला तो सोचने लगा-उस वद्घा स्त्री ने मेरा ककतना सम्मान ककया और इन ल़िकों ने ककतना
अपमान ककया। इस भांनत एक ही वस्तु को भरम में प़िे हुए पराणी सभननसभनन भावों से दे खते हैं। यह
स्वीकार करना प़िेगा कक दटमाक्लीज समथ्यावादी होते हुए भी त्रबककुल ननबद्
ु गध न था। वह अंधा तो
इतना जानता था कक मैं परकाश से वंगचत हूं। उसका वचन इन दरु ागरदहयों से कहीं उत्तम था जो घने

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अंधकार में बैठे पक
ु ारते हैं-'वह सय
ू स है !' वह नहीं जानते कक संसार में सब कुछ माया, मगतष्णा, उ़िता
हुआ बालू है । केवल ईचवर ही स्थायी है ।

वह नगर में ब़िे वेग से पांव उठाता हुआ चला। दस वषस के बाद दे खने पर भी उसे वहां का
एकएक पर्तथर पररचनत मालम
ू होता था, और परर्तयेक पर्तथर उसके मन में ककसी दष्ु कमस की याद ददलाता
था। इससलए उसने स़िकों से ज़िे हुए पर्तथरों पर अपने पैरों को पटकना शरू
ु ककया और जब पैरों से रक्त
बहने लगा तो उसे आननदसा हुआ। स़िक के दोनों ककनारों पर ब़िेब़िे महल बने हुए थे जो सग
ु नध की
लपटों से अलससत जान प़िते थे। दे वदार, छुहारे आदद के वक्ष ससर उठाये हुए इन भवनों को मानो
बालाकों की भांनत गोद में णखला रहे थे। अधखल
ु े द्वारों में से पीतल की मनू तसयां संगरममर के गमलों में
रखी हुई ददखाई दे रही थीं और स्वच्छ जल के हौज कंु जों की छाया में लहरें मार रहे थे। पण
ू स शाश्नत
छाई थी। शोरगल
ु का नाम न था। हां, कभीकभी द्वार से आने वाली वीणा की ध्वनन कान में आ जाती
थी। पापनाशी एक भवन के द्वार पर रुका श्जसकी सायबान के स्तम्भ यव
ु नतयों की भांनत सन
ु दर थे।
दीवारों पर यन
ू ान के सवसर्श्ेष्ठ ऋवषयों की परनतमाएं शोभा दे रही थीं। पापनाशी ने अफलात,ूं सक
ु रात
अरस्त,ू एवपक्यरु स और श्जनों की परनतमाएं पहचानीं और मन में कहा-इन समथ्याभरम में प़िने वाले
मनष्ु यों को कीनतसयों को मनू तसयों को मनू तसमान करना मख
ू त
स ा है । अब उनके समय्या ववचारों की कलई खुल
गयी। उनकी आर्तमा अब नरक में प़िी स़ि रही है , और यहां तक कक अफलातूं भी, श्जसने संसार को
अपनी परगकभता से गज
ुं ररत कर ददया था, अब वपशाचों के साथ तत
ू ू मैंमैं कर रहा है । द्वार पर एक
हथौ़िी रखी हुई थी। पापनाशी ने द्वार खटखटाया। एक गल
ु ाम ने तरु नत द्वार खोल ददया और एक साधु
को द्वार पर ख़िे दे खकर ककसश स्वर में बोला-'दरू हो यहां से, दस
ू रा द्वार दे ख, नहीं तो मैं डंडे से खबर
लग
ूं ा।'

पापनाशी ने सरल भाव से कहा-'मैं कुछ सभक्षा मांगने नहीं आया हूं। मेरी केवल यही इच्छा है कक मझ
ु े
अपने स्वामी ननससयास के पास ले चलो।'

गल
ु ाम ने और भी त्रबग़िकर जवाब ददया-'मेरा स्वामी तम
ु जैसे कुत्तों से मल
ु ाकात नहीं करता !'

पापनाशी-'पत्र
ु , जो मैं कहता हूं वह करो, अपने स्वामी से इतना ही कह दो कक मैं उससे समलना चाहता हूं।'

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दरबान ने िोध के आवेश में आकर कहा-'चला जा यहां से, सभखमंगा कहीं का !' और अपनी छ़िी उठाकर
उसने पापनाशी के मह
ुं पर जोर से लगाई। लेककन योगी ने छाती पर हाथ बांधे, त्रबना जरा भी उत्तेश्जत
हुए, शांत भाव से यह चोट सह ली और तब ववनयपव
ू क
स कफर वही बात कही-'पत्र
ु , मेरी याचना स्वीकार
करो।'

दरबान ने चककत होकर मन में कहा-यह तो ववगचत्र आदमी है जो मार से भी नहीं डरता और तरु नत
अपने स्वामी से पापनाशी का संदेशा कह सन
ु ाया।

ननससयास अभी स्नानागार से ननकला था। दो यव


ु नतयां उसकी दे ह पर तेल की मासलश कर रही
थीं। वह रूपवान परु
ु ष था, बहुत ही परसननगचत्त। उसके मख
ु पर कोमल व्यंग की आभा थी। योगी को
दे खते ही वह उठ ख़िा हुआ और हाथ फैलाये हुए उसकी ओर बा-आओ मेरे समत्र, मेरे बनधु, मेरे सहपाठी,
आओ। मैं तम्
ु हें पहचान गया, यद्यवप तम्
ु हारी सरू त इस समय आदसमयों कीसी नहीं, पशओ
ु ं कीसी है ।
आओ, मेरे गले से लग जाओ। तम्
ु हें वह ददन याद है जब हम व्याकरण, अलंकार और दशसन शास्त्र पॄते थे
? तम
ु उस समय भी तीवर और उद्दण्ड परकनत के मनष्ु य थे, पर पण
ू स सर्तयवादी तम्
ु हारी तश्प्त एक
चुटकी भर नमक में हो जाती थी पर तम्
ु हारी दानशीलता का वारापार न था। तम
ु अपने जीवन की भांनत
अपने धन की भी कुछ परवाह न करते थे। तम
ु में उस समय भी थो़िीसी झक थी जो बद्
ु गध की कुशलता
का लक्षण है । तम्
ु हारे चररत्र की ववगचत्रता मझ
ु े बहुत भली मालम
ू होती थी। आज तम
ु ने उस वषों के बाद
दशसन ददये हैं। हृदय से मैं तम्
ु हारा स्वागत करता हूं। तम
ु ने वनयजीवन को र्तयाग ददया और ईसाइयों की
दम
ु नस त को नतलांजसल दे कर कफर अपने सनातन धमस पर आऱु हो गये, इसके सलए तम्
ु हें बधाई दे ता हूं। मैं
सफेद पर्तथर पर इस ददन का स्मारक बनाऊंगा।

यह कहकर उसने उन दोनों यव


ु ती सन
ु दररयों को आदे श ददया-'मेरे प्यारे मेहमान से हाथोंपैरों और दाी ो़ में
सग
ु नध लगाओ।'

यव
ु नतयां हं सीं और तरु नत एक थाल, सग
ु नध की शीशी और आईना लायीं। लेककन पापनाशी ने
कठोर स्वर से उनहें मना ककया और आंखें नीची कर लीं कक उन पर ननगाह न प़ि जाए क्योंकक दोनों
नग्न थीं। ननससयास ने तब उसके सलए गावत ककये और त्रबस्तर मंगाये और नाना परकार के भोजन और
उत्तम शराब उसके सामने रखी। पर उसने घणा के साथ सब वस्तओ
ु ं को सामने से हटा ददया। तब बोला-
'ननससयास, मैंने उस सर्तपथ का पररर्तयाग नहीं ककया श्जसे तम
ु ने गलती से 'ईसाइयों की दम
ु नस त' कहा है ।
वही तो सर्तय की आर्तमा और ज्ञान का पराण है । आदद में केवल 'शशद' था और 'शशद' के साथ ईचवर था,

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और शशद ही ईचवर था। उसी ने समस्त बरह्माण्ड की रचना की। वही जीवन का स्त्रोत है और जीवन
मानवजानत का परकाश है ।'

ननससयास ने उत्तर ददया-'वपरय पापनाशी, क्या तम्


ु हें आशा है कक मैं अथसहीन शशदों के झंकार से
चककत हो जाऊंगा ? क्या तम
ु भल
ू गये कक मैं स्वयं छोटामोटा दाशसननक हूं? क्या तम
ु समझते हो कक मेरी
शांनत उन गचथ़िों से हो जाएेेगी जो कुछ ननबद्
ु सगध मनष्ु यों ने इमसलयस के वस्त्रों से फा़ि सलया है , जब
इससलयस, फलात,ंू और अनय तत्त्वज्ञाननयों से मेरी शांनत न हुई ? ऋवषयों के ननकाले हुए ससद्घानत केवल
कश्कपत कथाएं हैं जो मानव सरलहृदयता के मनोरं जन के ननसमत्त कही गयी है । उनको पक
ॄ र हमारा
मनोरं जन उसी भांनत होता है जैसे अनय कथाओं को पक
ॄ र।'

इसके बाद अपने मेहमान का हाथ पक़िकर वह उसे एक कमरे में ले गया जहां हजारों लपेटे हुए
भोजपत्र टोकरों में रखे हुए थे। उनहें ददखाकर बोला-'यही मेरा पस्
ु तकालय है । इसमें उन ससद्घानतों में से
ककतनों ही का संगरह है जो ज्ञाननयों ने सश्ष्ट के रहस्य की व्याख्या करने के सलए आववष्कत ककये हैं।
सेरावपयम* में भी अतल
ु धन के होते हुए; सब ससद्घानतों का संगरह नहीं है ! लेककन शोक ! यह सब
केवल रोगपीड़ित मनष्ु यों के स्वप्न हैं !'

उसने तब अपने मेहमान को एक हाथीदांत की कुरसी पर जबरदस्ती बैठाया और खद


ु भी बैठ गया।
पापनाशी ने इन पस्
ु तकों को दे खकर र्तयौररयां चायीं और बोला-'इन सबको अश्ग्न की भें ट कर दे ना
चादहए।'

ननससयास बोला-'नहीं वपरय समत्र, यह घोर अनथस होगा; क्योंकक रुग्ण परु
ु षों को समटा दें तो संसार शष्ु क
और नीरस हो जाएेेगा और हम सब ववचारशैगथकय के गे में जा प़िेंगे।

पापनाशी ने उसी ध्वनन में कहा-'यह सर्तय है कक मनू तसवाददयों के ससद्घानत समथ्या और
भराश्नतकारक हैं। ककनतु ईचवर ने, जो सर्तय का रूप है , मानवशरीर धारण ककया और अलौककक ववभनू तयों
द्वारा अपने को परकट ककया और हमारे साथ रहकर हमारा ककयाण करता रहा।'

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ननससयास ने उत्तर ददया-वपरय पापनाशी, तम
ु ने यह बात अच्छी कही कक ईचवर ने मानवशरीर धारण
ककया। तब तो वह मनष्ु य ही हो गया। लेककन तम
ु ईचवर और उसके रूपानतरों का समथसन करने तो नहीं
आये ? बतलाओ तम्
ु हें मेरी सहायता तो न चादहए ? मैं तम्
ु हारी क्या मदद कर सकता हूं ?'

पापनाशी बोला-'बहुत कुछ ! मझ


ु े ऐसा ही सग
ु श्नधत एक वस्त्र दे दो जैसा तम
ु पहने हुए हो।
इसके साथ सन
ु हरे ख़िाऊं और एक प्याला तेल भी दे दो कक मैं अपनी दाी ो़ और बालों में चप
ु ़ि ल।ंू मझ
ु े
एक हजार स्वणस मि
ु ाओं की एक थैली भी चादहए ननससयास ! मैं ईचवर के नाम पर और परु ानी समत्रता के
नाते तम
ु से सहायता मांगने आया हूं।'

ननससयास ने अपना सवोत्तसम वस्त्र मंगवा ददया। उस पर ककमख्वाब के बट


ू ों में फूलों और पशओ
ु ं
के गचत्र बने हुए थे। दोनों यव
ु नतयों ने उसे खोलकर उसका भ़िकीला रं ग ददखाया और परतीक्षा करने लगी
कक पापनाशी अपना ऊनी लबादा उतारे तो पहनायें, लेककन पापनाशी ने जोर दे कर कहा कक यह कदावप
नहीं हो सकता। मेरी खाल चाहे उतर जाए पर यह ऊनी लबादा नहीं उतर सकता। वववश होकर उनहोंने
उस बहुमक
ू य वस्त्र को लबादे के ऊपर ही पहना ददया। दोनों यव
ु नतयां सन
ु दरी थीं, और वह परु
ु षों से
शरमाती न थीं। वह पापनाशी को इस दरु ं गे भेष में दे खकर खूब हं सी। एक ने उसे अपना प्यारा सामनत
कहा, दस
ू री ने उसकी दाी ो़ खींच ली। लेककन पापनाशी ने उन दृश्ष्टपात तक न ककया। सन
ु हरी ख़िाऊं पैरों
में पहनकर और थैली कमरे में बांधकर उसने ननससयास से कहा, जो ववनोदभाव से उसकी ओर दे ख रहा
था-ननससयास, इन वस्तओ
ु ं के ववषय में कुछ सनदे ह मत करना, क्योंकक मैं इनका सदप
ु योग करुं गा।

ननससयास बोला-'वपय समत्र, मझ


ु े कोई सनदे ह नहीं हैं क्योंकक मेरा ववचवास है कक मनष्ु य में न भले
काम करने की क्षमता है न बरु े । भलाई व बरु ाई का आधार केवल परथा पर है । मैं उन सब कुश्र्तसत
व्यवहारों का पालन करता हूं जो इस नगर में परचसलत हैं। इससलए मेरी गणना सज्जन परु
ु षों में है ।
अच्छा समत्र, अब जाओ और चैन करो।'

लेककन पापनाशी ने उससे अपना उद्दे चय परकट करना अवचयक समझा। बोला-'तम
ु थायस को
जानते हो जो यहां की रं गशालाओं का शग
ं ार है ?' ननससयास ने कहा-'वह परम सन
ु दरी है और ककसी समय
मैं उसके परे समयों में था। उसकी खानतर मैंने एक कारखाना और दो अनाज के खेत बेच डाले और उसके
ववरहवणसन में ननकष्ट कववताओं से भरे हुए तीन गरनथ सलख डाले। यह ननववसवाद है कक रूपलासलर्तय
संसार की सबसे परबल शश्क्त है , और यदद हमारे शरीर की रचना ऐसी होती कक हम यावज्जीवन उस पर
अगधकत रह सकते तो हम दाशसननकों के जीवन और भरम, माया और मोह, परु
ु ष और परकनत की जरा भी

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परवाह न करते। लेककन समत्र, मझ
ु े यह दे खकर आचचयस होता है कक तम
ु अपनी कुटी छो़िकर केवल थायस
की चचार करने के सलए आये हो।'

यह कहकर ननससयास ने एक ठं डी सांस खींची। पापनाशी ने उसे भीतर नेत्रों से दे खा। उसकी यह
ककपना ही असम्भव मालम
ू होती थी कक कोई मनष्ु य इतनी सावधानी से अपने पापों को परकट कर
सकता है । उसे जरा भी आचचयस न होता, अगर जमीन फट जाती और उसमें से अश्ग्नज्वाला ननकलकर
उसे ननगल जाती। लेककन जमीन श्स्थर बनी रही, और ननससयास हाथ पर मसतक रखे चप
ु चाप बैठा हुआ
अपने पव
ू स जीवन की स्मनतयों पर म्लानमख
ु से मस्
ु कराता रहा। योगी तब उठा और गम्भीर स्वर में
बोला- 'नहीं ननससयास, मैं अपना एकानतवास छो़िकर इस वपशाच नगरी में थायस की चचार करने नहीं
आया हूं। बश्कक, ईचवर की सहायता से मैं इस रमणी को अपववत्र ववलास के बनधनों से मक्
ु त कर दं ग
ू ा
और उसे परभु मसीह की सेवाथस भें ट करुं गा। अगर ननराकार ज्योनत ने मेरा साथ न छो़िा तो थायस
अवचय इस नगर को र्तयागकर ककसी वननताधमार्श्सम में परवेश करे गी।'

ननससयास ने उत्तर ददया-'मधुर कलाओं और लासलर्तय की दे वी वीनस को रुष्ट करते हो तो


सावधान रहना। उसकी शश्क्त अपार है और यदद तम
ु उसकी परधान उपाससका को ले जाओगे तो वह
तम्
ु हारे ऊपर वजरघात करे गी।'

पापनाशी बोला-'परभु मसीह मेरी रक्षा करें गे। मेरी उनसे यह भी पराथसना है कक वह तम्
ु हारे हृदय में धमस
की ज्योनत परकासशत करें और तम
ु उस अनधकारमय कूप में से ननकल आओ श्जसमें प़िे हुए एड़ियां
रग़ि रहे हो।'

यह कहकर वह गवस से मस्तक उठाये बाहर ननकला। लेककन ननससयास भी उसके पीछे चला।
द्वार पर आतओते उसे पा सलया और तब अपना हाथ उसके कनधे पर रखकर उसके कान में बोला-'दे खो
वीनस को िुद्ध मत करना। उसका परर्तयाघात अर्तयनत भीषण होता है ।'

ककनतु पापनाशी ने इस चेतावनी को तच्


ु छ समझा, ससर फेरकर भी न दे खा। वह ननससयास को
पनतत समझता था, लेककन श्जस बात से उसे जलन होती थी वह यह थी कक मेरा परु ाना समत्र थायस का
परे ममात्र रह चक
ु ा है । उसे ऐसा अनभ
ु व होता था कक इससे घोर अपराध हो ही नहीं सकता। अब से वह
ननससयास को संसार का सबसे अधम, सबसे घणणत पराणी समझने लगा। उसने भरष्टाचार से सदै व

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नफरत की थी, लेककन आज के पहले यह पाप उसे इतना नारकीय कभी न परतीत हुआ था। उसकी
समझ में परभु मसीह के िोध और स्वगस दत
ू ों के नतरस्कार का इससे नननद्य और कोई ववषय ही न था।

उसके मन में थायस को इन ववलाससयों से बचाने के सलए और भी तीवर आकांक्षा जागत हुई। अब
त्रबना एक क्षण ववलम्ब ककये मझ
ु े थामस से भें ट करनी चादहए। लेककन अभी मध्याह्न काल था और जब
तक दोपहर की गरमी शानत न हो जाएेे, थायस के घर जाना उगचत न था। पापनाशी शहर की स़िकों
पर घम
ू ता रहा। आज उसने कुछ भोजन न ककया था श्जसमें उस पर ईचवर की दया दृश्ष्ट रहे । कभी वह
दीनता से आंखें जमीन की ओर झक
ु ा लेता था, और कभी अनरु क्त होकर आकाश की ओर ताकने लगता
था। कुछ दे र इधरउधर ननष्परयोजन घम
ू ने के बाद वह बनदरगाह पर जा पहुंचा। सामने ववस्तत बनदरगाह
था, श्जसमें असंख्य जलयान और नौकाएं लंगर डाले प़िी हुई थीं, और उनके आगे नीला समि
ु , चवेत चादर
ओो़े हं स रहा था। एक नौका ने, श्जसकी पतवार पर एक अप्सरा का गचत्र बना हुआ था अभी लंगर खोला
था। डांडें पानी में चलने लगे, मांणझयों ने गाना आरम्भ ककया और दे खतेदेखते वह चवेतवस्त्रधाररणी
जलकनया योगी की दृश्ष्ट में केवल एक स्वप्नगचत्र की भांनत रह गयी। बनदरगाह से ननकलकर, वह अपने
पीछे जगमगाता हुआ जलमागस छो़िती खुले समि
ु में पहुंच गयी।

पापनाशी ने सोचा-मैं भी ककसी समय संसारसागर पर गाते हुए यात्रा करने को उर्तसक
ु था लेककन मझ
ु े
शीघर ही अपनी भल
ू मालम
ू हो गयी। मझ
ु पर अप्सरा का जाद ू न चला।

इनहीं ववचारों में मग्न वह रश्स्सयों की गें डुली पर बैठ गया। ननिा से उसकी आंखें बनद हो गयीं।
नींद में उसे एक स्वप्न ददखाई ददया। उसे मालम
ू हुआ कक कहीं से तरु दहयों की आवाज कान में आ रही
है , आकाश रक्तवणस हो गया है । उसे ज्ञात हुआ कक धमाधसमस के ववचार का ददन आ पहुंचा। वह ब़िी
तनमयता से ईशवनदना करने लगा। इसी बीच में उसने एक अर्तयनत भयंकर जंतु को अपनी ओर आते
दे खा, श्जसके माथे पर परकाश का एक सलीव लगा हुआ था। पापनाशी ने उसे पहचान सलया-ससलससली
की वपशाचमनू तस थी। उस जनतु ने उसे दांतों के नीचे दबा सलया और उसे लेकर चला, जैसे त्रबकली अपने
बच्चे को लेकर चलती है । इस भांनत वह जनतु पापनाशी को ककतने ही द्वीपों से होता, नददयों को पार
करता, पहा़िों को फांदता अनत में एक ननजसन स्थान में पहुंचा, जहां दहकते हुए पहा़ि और झल
ु सते राख
के ेेरों के ससवाय और कुछ नजर न आता था। भसू म ककतने ही स्थलों पर फट गयी थी और उसमें से
आग की लपट ननकल रही थी। जनतु ने पापनाशी को धीरे से उतार ददया और कहा-'दे खो !'

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पापनाशी ने एक खोह के ककनारे झुककर नीचे दे खा। एक आग की नदी पथ्वी के अनतस्थल में दो
कालेकाले पवसतों के बीच से बह रही थी। वहां धध
ुं ले परकाश में नरक के दत
ू पापार्तमाओं को कष्ट दे रहे
थे। इन आर्तमाओं पर उनके मत शरीर का हलका आवरण था, यहां तक कक वह कुछ वस्त्र भी पहने हुए
थी। ऐसे दारुण कष्टों में भी यह आर्तमाएं बहुत दःु खी न जान प़िती थीं। उनमें से एक जो लम्बी, गौरवणस,
आंखें बनद ककये हुए थी, हाथ में एक तलवार सलये जा रही थी। उसके मधुर स्वरों से समस्त मरुभसू म
गज
ूं रही थी। वह दे वताओं और शरू वीरों की ववरुदावली गा रही थी। छोटे छोटे हरे रं ग के दै र्तय उनके होंठ
और कंठ को लाल लोहे की सलाखों से छे द रहे थे। यह अमर कवव होमर की परनतच्छाया थी। वह इतना
कष्ट झेलकर भी गाने से बाज न आती थी। उसके समीप ही अनकगोरस, श्जसके ससर के बाल गगर गये
थे, धूल में परकाल से शक्लें बना रहा था। एक दै र्तय उसके कानों में खौलता हुआ तेल डाल रहा था; पर
उसकी एकागरता को भंग न कर सकता था। इसके अनतररक्त पापनाशी को और ककतनी ही आर्तमाएं
ददखाई दीं जो जलती हुई नदी के ककनारे बैठी हुई उसी भांनत पठनपाठन, वादपरनतवाद, उपासनाध्यान में
मग्न थीं जैसे यन
ू ान के गरु
ु कुलों में गरु
ु सशष्य ककसी वक्ष की छाया में बैठकर ककया करते थे, वद्ध
दटमाक्लीज ही सबसे अलग था और भराश्नतवाददयों की भांनत ससर दहला रहा था। एक दै र्तय उसकी आंखों
के सामने एक मशाल दहला रहा था, ककनतु दटमाक्लीज आंखें ही न खोलता था।

इस दृचय से चककत होकर पापनाशी ने उस भयंकर जनतु की ओर दे खा जो उसे यहां लाया था।
कदागचत उससे पछ
ू ना चाहता था कक यह क्या रहस्य है ? पर वह जनतु अदृचय हो गया था और उसकी
जगह एक स्त्री मह
ुं पर नकाब डाले ख़िी थी। वह बोली-'योगी, खूब आंखें खोलकर दे ख ! इन भरष्ट
आर्तमाओं का दरु ागरह इतना जदटल है कक नरक में भी उनकी भराश्नत शानत नहीं हुई। यहां भी वह उसी
माया के णखलौने बने हुए हैं। मर्तयु ने उनके भरमजाल को नहीं तो़िा क्योंकक परर्तयक्ष ही, केवल मर जाने
से ही ईचवर के दशसन नहीं होते। जो लोग जीवनभर अज्ञानानधकार में प़िे हुए थे, वह मरने पर भी मख
ू स
ही बने रहें गे। यह दै र्तयगण ईचवरीय नयाय के यंत्र ही तो हैं। यही कारण है कक आर्तमाएं उनहें न दे खती हैं
न उनस भयभीत होती हैं। वह सर्तय के ज्ञान से शन
ू य थे, अतएव उनहें अपने अकमों का भी ज्ञान न था।
उनहोंने जो कुछ ककया अज्ञान की अवस्था में ककया। उन पर वह दोषारोपण नहीं कर सकता कफर वह
उनहें दण्ड भोगने पर कैसे मजबरू कर सकता है ?'

पापनाशी ने उत्तेश्जत होकर कहा-'ईचवर सवसशश्क्तमान है , वह सब कुछ कर सकता है ।

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नकाबपोश स्त्री ने उत्तर ददया-'नहीं, वह असर्तय को सर्तय नहीं कर सकता। उसको दं ड भोग के योग्य बनाने
के सलए पहले उनको अज्ञान से मक्
ु त करना होगा, और जब वह अज्ञान से मक्
ु त हो जाएेेेंगे तो वह
धमार्तमासओं की र्श्ेणी में आ जाएेेेंगे !'

पापनाशी उद्ववग्न और ममाहसत होकर कफर खोह के ककनारों पर झक


ु ा। उसने ननससयास की छाया
को एक पष्ु पमाला ससर पर डाले, और एक झल
ु से हुए मेंहदी के वक्ष के नीचे बैठे दे खा। उसकी बगल में
एक अनत रूपवती वेचया बैठी हुई थी और ऐसा ववददत होता था कक वह परे म की व्याख्या कर रहे हैं।
वेचया की मख
ु र्श्ी मनोहर और अवपरतम थी। उन पर जो अश्ग्न की वषास हो रही थी वह ओस की बद
ंू ों के
समान सख
ु द और शीतल थी, और वह झल
ु सती हुई भसू म उनके पैरों से कोमल तण के समान दब जाती
थी। यह दे खकर पापनाशी की िोधाश्ग्न जोर से भ़िक उठी। उसने गचकलाकर कहा-ईचवर, इस दरु ाचारी पर
वजरघात कर ! यह ननससयास है । उसे ऐसा कुचल कक वह रोये, कराहे और िोध से दांत पीसे। उसने
थायस को भरष्ट ककया है ।

सहसा पापनाशी की आंखंेे


े ं खुल गईं। वह एक बसलष्ठ मांझी की गोद में था। मांझी बोला-'बस समत्र,
शानत हो जाओ। जल दे वता साक्षी है कक तम
ु नींद में बरु ी तरह चौंक प़िते हो। अगर मैंने तम्
ु हें सम्हाल
न सलया होता तो तम
ु अब तक पानी में डुबककयां खाते होते। आज मैंने तम्
ु हारी जान बचाई।'

पापनाशी बोला-'ईचवर की दया है ।'

वह तरु नत उठ ख़िा हुआ और इस स्वप्न पर ववचार करता हुआ आगे बा। अवचय ही यह दस्
ु वप्न है ।
नरक को समथ्या समझना ईचवरीय नयाय का अपमान करना है । इस स्वप्न को परे षक कोई वपशाच है ।

ईसाई तपश्स्वयों के मन में ननर्तय यह शंका उठती रहती कक इस स्वप्न का हे तु ईचवर है या


वपशाच। वपशाचादद उनहें ननर्तय घेरे रहते थे। मनष्ु यों से जो मह
ुं मो़िता है , उसका गला वपशाचों से नहीं
छूट सकता। मरुभसू म वपशाचों का िी़िाक्षेत्र है । वहां ननर्तय उनका शोर सन
ु ाई दे ता है । तपश्स्वयों को परायः
अनभ
ु व से, स्वप्न की व्यवस्था से ज्ञान हो जाता है कक यह मदस ईचवरीय परे रणा है या वपशागचक
परलोभन। पर कभीकभी बहुत यर्तन करने पर भी उनहें भरम हो जाता था। तपश्स्वयों और वपशाचों में
ननरनतर और महाघोर संगराम होता रहता था। वपशाचों को सदै व यह धुन रहती थी कक योगगयों को ककसी
तरह धोखे में डालें और उनसे अपनी आज्ञा मनवा लें। सनत जॉन एक परससद्ध परु
ु ष थे। वपशाचों के

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राजा ने साठ वषस तक लगातार उनहें धोखा दे ने की चेष्टा की, पर सनत जॉन उसकी चालों को ता़ि सलया
करते थे। एक ददन वपशाचराजा ने एक वैरागी का रूप धारण ककया और जॉन की कुटी में आकर बोला-
'जॉन, कल शाम तक तम्
ु हें अनशन (वरत) रखना होगा।' जॉन ने समझा, वह ईचवर का दत
ू है और दो ददन
तक ननजसल रहा। वपशाच ने उन पर केवल यही एक ववजय पराप्त की, यद्यवप इससे वपशाचराज का कोई
कुश्र्तसत उद्दे चय न परू ा हुआ, पर सनत जॉन को अपनी पराजय का बहुत शोक हुआ। ककनतु पापनाशी ने
जो स्वप्न दे खा था उसका ववषय ही कहे दे ता था कक इसका कतास वपशाच है ।

वह ईचवर से दीन शशदों में कह रहा था-'मझ


ु से ऐसा कौनसा अपराध हुआ श्जसके दण्डस्वरूप तन
ू े
मझ
ु े वपशाच के फनदे में डाल ददया।' सहसा उसे मालम
ू हुआ कक मैं मनष्ु यों के एक ब़िे समह
ू में इधरउधर
धक्के खा रहा हूं। कभी इधर जा प़िता हूं, कभी उधर। उसे नगरों की भी़िभा़ि में चलने का अभ्यास न
था। वह एक ज़ि वस्तु की भांनत इधर उधर ठोकरें खाता कफरता था, और अपने कमख्वाब के कुरते के
दामन से उलझकर वह कई बार गगरतेगगरते बचा। अनत में उसने एक मनष्ु य से पछ
ू ा-'तम
ु लोग सबके-
सब एक ही ददशा में इतनी ह़िब़िी के साथ कहां दौ़िे जा रहे हो ? क्या ककसी सनत का उपदे श हो रहा है
?'

उस मनष्ु य ने उत्तर ददया-'यात्री, क्या तम्


ु हें मालम
ू नहीं कक शीघर ही तमाशा शरू
ु होगा और थायस
रं गमंच पर उपश्स्थत होगी। हम सब उसी गथयेटर में जा रहे हैं। तम्
ु हारी इच्छा हो तो तम
ु भी हमारे साथ
चलो। इस अप्सरा के दशसन मात्र ही से हम कताथस हो जाएेेेंगे।'

पापनाशी ने सोचा कक थायस को रं गशाला में दे खना मेरे उद्दे चय के अनक


ु ू ल होगा। वह उस
मनष्ु य के साथ हो सलया। उनके सामने थो़िी दरू पर रं गशाला श्स्थत थी। उसके मख्
ु य द्वार पर चमकते
हुए परदे प़िे थे और उसकी ववस्तत वत्ताकार दीवारें अनेक परनतमाओं से सजी हुई थीं। अनय मनष्ु यों के
साथ यह दोनों परु
ु ष भी तंग गली में दाणखल हुए। गली के दस
ू रे ससरे पर अद्सधचनि के आकार का
रं गमंच बना हुआ था जो इस समय परकाश से जगमगा रहा था। वे दशसकों के साथ एक जगह पर बैठे।
वहां नीचे की ओर ककसी तालाब के घाट की भांनत सीनयों की कतार रं गशाला तक चली गयी थी। रं गशाला
में अभी कोई न था, पर वह खूब सजी हुई थी। बीच में कोई परदा न था। रं गशाला के मध्य में कबर की
भांनत एक चबत
ू रासा बना हुआ था। चबत
ू रे के चारों तरफ रावदटयां थीं। रावदटयों के सामने भाले रखे हुए
थे और लम्बीलम्बी खदूं टयों पर सन
ु हरी ेालें लटक रही थीं। स्टे ज पर सननाटा छाया हुआ था। जब दशसकों
का अधसवत्त ठसाठस भर गया तो मधुमश्क्खयों की सभनसभनाहटसी दबी हुई आवाज आने लगी। दशसकों की
आंखें अनरु ाग से भरी हुई, वहद ननस्तशध रं गमंच की ओर लगी हुई थीं। श्स्त्रयां हंसती थीं और नींबू खाती
थीं और ननर्तयपरनत नाटक दे खने वाले परु
ु ष अपनी जगहों से दस
ू रों को हं सहं स पक
ु ारते थे।

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पापनाशी मन में ईचवर की पराथसना कर रहा था और मह
ंु से एक भी समथ्या शशद नहीं ननकलता
था, लेककन उसका साथी नाट्यकाल की अवननत की चचार करने लगा-'भाई, हमारी इस कला का घोर पतन
हो गया है । पराचीन समय में असभनेता चेहरे पहनकर कववयों की रचनाएं उच्च स्वर से गाया करते थे।
अब तो वह गग
ंू ों की भांनत असभनय करते हैं। वह परु ाने सामान भी गायब हो गये। न तो वह चेहरे रहे
श्जनमें आवाज को फैलाने के सलए धातु की जीभ बनी रहती थी, न वह ऊंचे ख़िाऊं ही रह गये श्जनहें
पहनकर असभनेतागण दे वताओं की तरह लम्बे हो जाते थे, न वह ओजश्स्वनी कववताएं रहीं और न वह
ममसस्पशी असभनयचातय
ु ।स अब तो परु
ु षों की जगह रं गमंच पर श्स्त्रयों का दौरदौरा है , जो त्रबना संकोच के
खल
ु े मह
ंु मंच पर आती हैं। उस समय के यन
ू ानननवासी श्स्त्रयों को स्टे ज पर दे खकर न जाने ददल में
क्या कहते। श्स्त्रयों के सलए जनता के सम्मख
ु मंच पर आना घोर लज्जा की बात है । हमने इस कुपरथा
को स्वीकार करके अपने माध्याश्र्तमक पतन का पररचय ददया है । यह ननववसवाद है कक स्त्री परु
ु ष का शत्रु
और मानवजानत का कलंक है ।

पापनाशी ने इसका समथसन ककया-'बहुत सर्तय कहते हो, स्त्री हमारी पराणघानतका है । उससे हमें कुछ
आननद पराप्त होता है और इससलए उससे सदै व डरना चादहए।'

उसके साथी ने श्जसका नाम डोररयन था, कहा-'स्वगस के दे वताओं की शपथ खाता हूं; स्त्री से
परु
ु ष को आननद नहीं पराप्त होता, बश्कक गचनता, दःु ख और अशाश्नत। परे म ही हमारे दारुणतम कष्टों का
कारण है । सन
ु ो समत्र, जब मेरी तरुणावस्था थी तो मैं एक द्वीप की सैर करने गया था और वहां मझ
ु े एक
बहुत ब़िा में हदी का वक्ष ददखाई ददया श्जसके ववषय में यह दनतकथा परचसलत है कक फीडरा श्जन ददनों
दहमोलाइट पर आसशक थी तो वह ववरहदशा में इसी वक्ष के नीचे बैठी रहती थी और ददल बहलाने के
सलए अपने बालों की सइ
ु यां ननकालकर इन पवत्तयों में चभ
ु ाया करती थी। सब पवत्तयां नछद गयीं। फीडरा
की परे मकथा तो तम
ु जानते ही होगे। अपने परे मी का सवसनाश करने के पचचात वह स्वयं गले में फांसी
डाल, एक हाथीदांत की खंट
ू ी से लटकर मर गयी। दे वताओं की ऐसी इच्छा हुई कक फीडरा की असह्य
ववरहवेदना के गचह्नस्वरूप इस वक्ष की पवत्तयों में ननर्तय छे द होते रहे । मैंने एक पत्ती तो़ि ली और लाकर
उसे अपने पलंग के ससरहाने लटका ददया कक वह मझ
ु े परे म की कुदटलता की याद ददलाती रहे और मेरे
गरु
ु , अमर एवपक्यरु स के ससद्घानतों पर अटल रखे, श्जसका उद्दे चय था कक कुवासना से डरना चादहए।
लेककन यथाथस में परे म श्जगर का एक रोग है और कोई यह नहीं कह सकता कक यह रोग मझ
ु े नहीं लग
सकता।'

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पापनाशी ने परचन ककया-'डोररयन, तम्
ु हारे आननद के ववषय क्या हैं ?'

डोररयन ने खेद से कहा-'मेरे आननद का केवल एक ववषय है , और वह भी बहुत आकषसक नहीं। वह ध्यान
है श्जसकी पाचनशश्क्त दवू षत हो गयी हो उसके सलए आननद का और क्या ववषय हो सकता है ?'

पापनाशी को अवसर समला कक वह इस आननदवादी को आध्याश्र्तमक सख


ु की दीक्षा दे जो ईचवराधना से
पराप्त होता है । बोला-'समत्र डोररयन; सर्तय पर कान धरो, और परकाश गरहण करो।'

लेककन सहसा उसने दे खा कक सबकी आंखें मेरी तरफ उठी हैं और मझ


ु े चुप रहने का संकेत कर रहे हैं।
नाट्यशाला में पण
ू स शाश्नत स्थावपत हो गयी और एक क्षण में वीरगान की ध्वनन सन
ु ाई दी।

खेल शरू
ु हुआ। होमर की इसलयड का एक दःु खानत दृचय था। ट्रोजन यद्
ु ध समाप्त हो चुका था।
यन
ू ान के ववजयी सरू मा अपनी छोलदाररयों से ननकलकर कूच की तैयारी कर रहे थे कक एक अद्भत

घटना हुई। रं गभसू म के मध्यश्स्थत समागध पर बादलों का एक टुक़िा छा गया। एक क्षण के बाद बादल
हट गया और एसशलीस का परे त सोने के शस्त्रों से सजा हुआ परकट हुआ। वह योद्घाओं की ओर हाथ
फैलाये मानो कह रहा है , हेलास के सपत
ू ो, क्या तम
ु यहां से परस्थान करने को तैयार हो ? तम
ु उस दे श
को जाते हो जहां जाना मझ
ु े कफर नसीब न होगा और मेरी समागध को त्रबना कुछ भें ट ककये ही छो़िे जाते
हो।

यन
ू ान के वीर सामनत, श्जनमें वद्ध नेस्टर, अगामेमनन, उलाइसेस आदद थे, समागध के समीप आकर
इस घटना को दे खने लगे। वपरस स ने जो एसशलीस का यव
ु क पत्र
ु था, भसू म पर मस्तक झक
ु ा ददया। उलीस
ने ऐसा संकेत ककया श्जससे ववददत होता था वह मतआर्तमा की इच्छा से सहमत है । उसने अगामेमनन से
अनरु ोध ककया-हम सबों को एसशलीस का यश मानना चादहए, क्योंकक हे लास ही की मानरक्षा में उसने
वीरगनत पायी है । उसका आदे श है कक परायम की पत्र
ु ी, कुमारी पॉसलक्सेना मेरी समागध पर समवपसत की
जाए। यन
ू ानवीरों, अपने नायक का आदे श स्वीकार करो !

ककनतु समराट अगामेमनन ने आपवत्त की-'ट्रोजन की कुमाररयों की रक्षा करो। परायम का यशस्वी पररवार
बहुत दःु ख भोग चक
ु ा है ।'

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उसकी आपवत्त का कारण यह था कक वह उलाइसेस के अनरु ोध से सहमत है । ननचचय हो गया कक
पॉसलक्सेना एसशलीस को बसल दी जाए। मत आर्तमा इस भांनत शानत होकर यमलोक को चली गयी।
चररत्रों के वात्तासलाप के बाद कभी उत्तेजक और कभी करुण स्वरों में गाना होता था। असभनय का एक
भाग समाप्त होते ही दशसकों ने तासलयां बजायीं।

पापनाशी जो परर्तयेक ववषय में धमसससद्घानतों का व्यवहार ककया करता था, बोला-'असभनय से ससद्ध होता
है कक सत्तहीन दे वताओं का उपासक ककतने ननदस यी होते हैं।

डोररयन ने उत्तर ददया-'यह दोष परायः सभी मतवादों में पाया जाता है । सौभाग्य से महार्तमा एवपक्यु रस
ने, श्जनहें ईचवरीय ज्ञान पराप्त था, मझ
ु े अदृचय की समथ्या शंकाओं से मक्
ु त कर ददया।'

इतने में असभनय कफर शरू


ु हुआ। हे क्यब
ु ा, जो पॉसलक्सेना की माता थी, उस छोलदारी से बाहर
ननकली श्जसमें वह कैद थी। उसके चवेत केश त्रबखरे हुए थे, कप़िे फटकर तारतार हो गये थे। उसकी
शोकमनू तस दे खते ही दशसकों ने वेदनापण
ू स आह भरी। हे क्यब
ु ा को अपनी कनया के ववषादमय अनत का एक
स्वप्न द्वारा ज्ञान हो गया था। अपने और अपनी पत्र
ु ी के दभ
ु ासग्य पर वह ससर पीटने लगी। उलाइसेस ने
उसके समीप जाकर कहा-'पॉसलक्सेना पर से अपना मातस्नेह अब उठा लो। वद्घा स्त्री ने अपने बाल नोच
सलये, मह
ंु का नखों से खसोटा और ननदस यी योद्घा उलाइसेस के हाथों को चम
ू ा, जो अब भी दयाशनू य
शाश्नत से कहता जान प़िता था-'हे क्यब
ु ा, धैयस से काम लो। श्जस ववपवत्त का ननवारण नहीं हो सकता, उसके
सामने ससर झक
ु ाओ। हमारे दे श में भी ककतनी ही माताएं अपने पत्र
ु ों के सलए रोती रही हैं जो आज यहां
वक्षों के नीचे मोहननिा में मग्न हैं। और हे क्यब
ु ा ने, जो पहले एसशया के सबसे समद्गधशाली राज्य की
स्वासमनी थी और इस समय गल
ु ामी की बेड़ियों में जक़िी हुई थी, नैराचय से धरती पर ससर पटक ददया।'

तब छोलदाररयों में से एक के सामने का परदा उठा और कुमारी पॉसलक्सेना परकट हुई। दशसकों में
एक सनसनीसी दौ़ि गयी। उनहोंने थायस को पहचान सलया। पापनाशी ने उस वेचया को कफर दे खा
श्जसकी खोज में वह आया था। वह अपने गोरे हाथ से भारी परदे को ऊपर उठाये हुए थी। वह एक
ववशाल परनतमा की भांनत श्स्थर ख़िी थी। उसके अपव
ू स लोचनों से गवस और आर्तमोर्तसगस झलक रहा था
और उसके परदीप्त सौनदयस से समस्त दशसकवनद एक ननरुपाय लालसा के आवेग से थरास उठे !

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पापनाशी का गचत्त व्यगर हो उठा। छाती को दोनों हाथों से दबाकर उसने एक ठण्डी सांस ली और बोला-
'ईचवर ! तन
ू े एक पराणी को क्योंकर इतनी शश्क्त परादान की है ?

ककनतु डोररयन जरा भी अशाश्नत न हुआ। बोला-'वास्तव में श्जन परमाणओ


ु ं के एकत्र हो जाने से
इस स्त्री की रचना हुई है उसका संयोग बहुत ही नयनासभराम है । लेककन यह केवल परकनत की एक िी़िा
है , और परमाणु ज़िवस्तु है । ककसी ददन वह स्वाभाववक रीनत से ववश्च्छनन हो जाएंगे। श्जन परमाणओ
ु ं से
लैला और श्क्लयोपेट्रा की रचना हुई थी वह अब कहां हैं ? मैं मानता हूं कक श्स्त्रयां कभीकभी बहुत रूपवती
होती हैं, लेककन वह भी तो ववपवत्त और घणोर्तपादक अवस्थाओं के वशीभत
ू हो जाती हैं। बद्
ु गधमानों को
यह बात मालम
ू है , यद्यवप मख
ू स लोग इस पर ध्यान नहीं दे त।े '

योगी ने भी थायस को दे खा। दाशसननक ने भी। दोनों के मन में सभननसभनन ववचार उर्तपनन हुए। एक ने
ईचवर से फररयाद की, दस
ू रे ने उदासीनता से तत्त्व का ननरूपण ककया। इतने में रानी हे क्यब
ु ा ने अपनी
कनया को इशारों से समझाया, मानो कह रही है -इस हृदयहीन उलाइसेस पर अपना जाद ू डाल ! अपने
रूपलावण्य, अपने यौवन और अपने अर्श्ुपरवाह का आर्श्य ले।

थायस, या कुमारी पॉसलक्सेना ने छोलदारी का परदा गगरा ददया। तब उसने एक कदम आगे बाया,
लोगों के ददल हाथ से ननकल गये। और जब वह गवस से तालों पर कदम उठाती हुई उलाइसेस की ओर
चली तो दशसकों को ऐसा मालम
ू हुआ मानो वह सौनदयस का केनि है । कोई आपे में न रहा। सबकी आंखें
उसी ओर लगी हुई थीं। अनय सभी का रं ग उसके सामने फीका प़ि गया। कोई उनहें दे खता भी न था।

उलाइसेस ने मह
ुं फेर सलया और मह
ुं चादर में नछपा सलया कक इस दया सभखाररनी के नेत्रकटाक्ष
और परे मासलंगन का जाद ू उस पर न चले। पॉसलक्सेना ने उससे इशारों से कहा-'मझ
ु से क्यों डरते हो ? मैं
तम्
ु हें परे मपाश में फंसाने नहीं आयी हूं। जो अननवायस है, वह होगा। उसके सामने ससर झुकाती हूं। मर्तयु
का मझ
ु े भय नहीं है । परायम की ल़िकी और वीर हेक्टर की बहन, इतनी गयीगज
ु री नहीं है कक उसकी
शय्या, श्जसके सलए ब़िेब़िे समराट लालानयत रहते थे, ककसी ववदे शी परु
ु ष का स्वागत करे । मैं ककसी की
शरणागत नहीं होना चाहती।'

हे क्यब
ु ा जो अभी तक भसू म पर अचेतसी प़िी थी सहसा उठी और अपनी वपरय पत्र
ु ी को छाती से
लगा सलया। यह उसका अश्नतम नैराचयपण
ू स आसलंगन था। पनतवंगचत मातहृदय के सलए संसार में कोई

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अवलम्ब न था। पॉसलक्सेना ने धीरे से माता के हाथों से अपने को छु़िा सलया, मानो उससे कह रही थी-
'माता, धैयस से काम लो ! अपने स्वामी की आर्तमा को दख
ु ी मत करो। ऐसा क्यों करती हो कक यह लोग
ननदयसता से जमीन पर गगरकर मझ
ु े अलग कर लें ?'

थायस का मख
ु चनि इस शोकावस्था में और भी मधरु हो गया था, जैसे मेघ के हलके आवरण से
चनिमा। दशसकवनद को उसने जीवन के आवेशों और भावों का ककतना अपव
ू स गचत्र ददखाया ! इससे सभी
मग्ु ध थे ! आर्तमसम्मान, धैय,स साहस आदद भावों का ऐसा अलौककक, ऐसा मग्ु धकर ददग्दशसन कराना थायस
का ही काम था। यहां तक कक पापनाशी को भी उस पर दया आ गयी। उसने सोचा, यह चमकदमक अब
थो़िे ही ददनों के और मेहमान हैं, कफर तो यह ककसी धमार्श्सम में तपस्या करके अपने पापों का परायश्चचत
करे गी।

असभनय का अनत ननकट आ गया। हे क्यब


ु ा मनू छस त होकर गगर प़िी, और पॉसलक्सेना उलाइसेस के
साथ समागध पर आयी। योद्घागण उसे चारों ओर से घेरे हुए थे। जब वह बसलवेदी पर ची तो एसशलीज
के पत्र
ु ने एक सोने के प्याले में शराब लेकर समागध पर गगरा दी। मातमी गीत गाये जा रहे थे। जब
बसल दे ने वाले पज
ु ाररयों ने उसे पक़िने को हाथ फैलाया तो उसने संकेत द्वारा बतलाया कक मैं स्वच्छनद
रहकर मरना चाहती हूं, जैसाकक राजकनयाओं का धमस है। तब अपने वस्त्रों को उतारकर वह वजर को
हृदयस्थल में रखने को तैयार हो गयी। वपरस स ने ससर फेरकर अपनी तलवार उसके वक्षस्थल में भोंक दी।
रुगधर की धारा बह ननकली। कोई लाग रखी गयी थी। थायस का ससर पीछे को लटक गया, उसकी आंखें
नतलसमलाने लगीं और एक क्षण में वह गगर प़िी।

योद्घागण तो बसल को कफन पहना रहे थे। पष्ु पवषास की जा रही थी। दशसकों की आतसध्वनन से हवा
गज
ंू रही थी। पापनाशी उठ ख़िा हुआ और उच्चस्वर से उसने यह भववष्यवाणी की-'समथ्यावाददयों, और
परे तों के पज
ू ने वालों ! यह क्या भरम हो गया है ! तम
ु ने अभी जो दृचय दे खा है वह केवल एक रूपक है ।
उस कथा का आध्याश्र्तमक अथस कुछ और है , और यह स्त्री थो़िे ही ददनों में अपनी इच्छा और अनरु ाग से,
ईचवर के चरणों में समवपसत हो जाएगी।

इसके एक घण्टे बाद पापनाशी ने थायस के द्वार पर जंजीर खटखटायी।

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थायस उस समय रईसों के मह
ु कले में , ससकनदर की समागध के ननकट रहती थी। उसके ववशाल
भवन के चारों ओर सायेदार वक्ष थे, श्जनमें से एक जलधारा कत्रत्रम चट्टानों के बीच से होकर बहती थी।
एक बनु य हश्शशन दासी ने जो मद
ुं ररयों से लदी हुई थी, आकर द्वार खोल ददया और पछ
ू ा-'क्या आज्ञा है
?'

पापनाशी ने कहा-'मैं थामस से भें ट करना चाहता हूं। ईचवर साक्षी है कक मैं यहां इसी काम के सलए आया
हूं।'

वह अमीरों केसे वस्त्र पहने हुए था और उसकी बातों से रोब पटकता था। अतएव दासी उसे अनदर ले
गयी। और बोली-'थायस पररयों के कंु ज में ववराजमान है ।'

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अध्याय 2
थायस ने स्वाधीन, लेककन ननधसन और मनू तसपज
ू क मातावपता के घर जनम सलया था। जब वह बहुत
छोटीसी ल़िकी थी तो उसका बाप एक सराय का भदटयारा था। उस सराय में परायः मकलाह बहुत आते
थे। बाकयकाल की अशख
ं ल, ककनतु सजीव स्मनतयां उसके मन में अब भी संगचत थीं। उसे अपने बाप की
याद आती थी जो पैर पर पैर रखे अंगीठी के सामने बैठा रहता था। लम्बा, भारीभरकम, शानत परकनत का
मनष्ु य था, उन कफर ऊनों की भांनत श्जनकी कीनतस स़िक के नक्
ु क़िों पर भाटों के मख
ु से ननर्तय अमर
होती रहती थी। उसे अपनी दब
ु ल
स माता की भी याद आती थी जो भख
ू ी त्रबकली की भांनत घर में चारों ओर
चक्कर लगाती रहती थी। सारा घर उसके तीक्ष्ण कंठ स्वर में गज
ूं ता और उसके उद्दीप्त नेत्रों की ज्योनत
से चमकता रहता था। प़िोस वाले कहते थे, यह डायन है , रात को उकलू बन जाती है और अपने परे समयों
के पास उ़ि जाती है । यह अफीमगचयों की गप थी। थामस अपनी मां से भलीभांनत पररगचत थी और
जानती थी कक वह जादट
ू ोना नहीं करती। हां, उसे लोभ का रोग था और ददन की कमाई को रातभर
गगनती रहती थी। असली वपता और लोसभनी माता थायस के लालनपालन की ओर ववशेष ध्यान न दे ते
थे। वह ककसी जंगली पौधे के समान अपनी बा ो़ से बती जाती थी। वह मतवाले मकलाहों के कमरबनद से
एकएक करके पैसे ननकालने में ननपण
ु हो गयी। वह अपने अचलील वाक्यों और बाजारी गीतों से उनका
मनोरं जन करती थी, यद्यवप वह स्वयं इनका आशय न जानती थी। घर शराब की महक से भरा रहता
था। जहांतहां शराब के चम़िे के पीपे रखे रहते थे और वह मकलाहों की गोद में बैठती कफरती थी। तब
मह
ंु में शराब का लसका लगाये वह पैसे लेकर घर से ननकलती और एक बनु य से गल
ु गल
ु े लेकर खाती।
ननर्तयपरनत एक ही असभनय होता रहता था। मकलाह अपनी जानजोणखम यात्राओं की कथा कहते, तब
चौसर खेलते, दे वताओं को गासलयां दे ते और उनमत्त होकर 'शराब, शराब, सबसे उत्तम शराब !' की रट
लगाते। ननर्तयपरनत रात को मकलाहों के हुकल़ि से बासलका की नींद उचट जाती थी। एकदस
ू रे को वे घोंघे
फेंककर मारते श्जससे मांस कट जाता था और भयंकर कोलाहल मचता था। कभी तलवारें भी ननकल
प़िती थीं और रक्तपात हो जाता था।

थायस को यह याद करके बहुत दःु ख होता था कक बाकयावस्था में यदद ककसी को मझ
ु से स्नेह था
तो वह सरल, सहृदय अहमद था। अहमद इस घर का हशशी गल
ु ाम था, तवे से भी ज्यादा काला, लेककन
ब़िा सज्जन, बहुत नेक जैसे रात की मीठी नींद। वह बहुधा थामस को घट
ु नों पर बैठा लेता और परु ाने
जमाने के तहखानों की अद्भत
ु कहाननयां सन
ु ाता जो धनलोलप
ु राजेमहाराजे बनवाते थे और बनवाकर
सशश्कपयों और कारीगरों का वध कर डालते थे कक ककसी को बता न दें । कभीकभी ऐसे चतरु चोरों की
कहाननयां सन
ु ाता श्जनहोंने राजाओं की कनया से वववाह ककया और मीनार बनवाये। बासलका थायस के
सलए अहमद बाप भी था, मां भी था, दाई था और कुत्ता भी था। वह अहमद के पीछे पीछे कफरा करती; जहां

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वह जाता, परछाईं की तरह साथ लगी रहती। अहमद भी उस पर जान दे ता था। बहुत रात को अपने
पआ
ु ल के गद्दे पर सोने के बदले बैठा हुआ वह उसके सलए कागज के गशु बारे और नौकाएं बनाया करता।

अहमद के साथ उसके स्वासमयों ने घोर ननदस यता का बतासव ककया था। एक कान कटा हुआ था और
दे ह पर को़िों के दागही-दाग थे। ककनतु उसके मख
ु पर ननर्तय सख
ु मय शाश्नत खेला करती थी और कोई
उससे न पछ
ू ता था कक इस आर्तमा की शाश्नत और हृदय के सनटोष का स्त्रोत कहां था। वह बालक की
तरह भोला था। काम करतेकरते थक जाता तो अपने भद्दे स्वर में धासमसक भजन गाने लगता श्जनहें
सन
ु कर बासलका कांप उठती और वही बातें स्वप्न में भी दे खती।

'हमसे बात मेरी बेटी, तू कहां गयी थी और क्या दे खा था ?'

'मैंने कफन और सफेद कप़िे दे खे। स्वगसदत


ू कबर पर बैठे हुए थे और मैंने परभु मसीह की ज्योनत दे खी।

थायस उससे पछ
ू ती-'दादा, तम
ु कबर में बैठै हुए दत
ू ों का भजन क्यों गाते हो।'

अहमद जवाब दे ता-'मेरी आंखों की ननही पत


ु ली, मैं स्वगसदत
ू ों के भजन इससलए गाता हूं कक हमारे परभु
मसीह स्वगसलोक को उ़ि गये हैं।'

अहमद ईसाई था। उसकी यथोगचत रीनत से दीक्षा हो चक


ु ी थी और ईसाइयों के समाज में उसका
नाम भी गथयोडोर परससद्ध था। वह रातों को नछपकर अपने सोने के समय में उनकी संगीतों में शासमल
हुआ करता था।

उस समय ईसाई धमस पर ववपवत्त की घटाएं छाई हुई थीं। रूस के बादशाह की आज्ञा से ईसाइयों के
गगरजे खोदकर फेंक ददये गये थे, पववत्र पस्
ु तकें जला डाली गयी थीं और पज
ू ा की सामगगरयां लट
ू ली गयी
थीं। ईसाइयों के सम्मानपद छीन सलये गये थे और चारों ओर उनहें मौतही-मौत ददखाई दे ती थी।
इस्कश्निया में रहने वाले समस्त ईसाई समाज के लोग संकट में थे। श्जसके ववषय में ईसावलम्बी होने
का जरा भी सनदे ह होता, उसे तरु नत कैद में डाल ददया जाता था। सारे दे श में इन खबरों से हाहाकार मचा
हुआ था कक स्याम, अरब, ईरान आदद स्थानों में ईसाई त्रबशपों और वरतधाररणी कुमाररयों को को़िे मारे

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गये हैं, सल
ू ी दी गयी हैं और जंगल के जानवरों के समान डाल ददया गया है । इस दारुण ववपवत्त के समय
जब ऐसा ननचचय हो रहा था कक ईसाइयों का नाम ननशान भी न रहे गा; एनथोनी ने अपने एकानतवास से
ननकलकर मानो मरु झाये हुए धान में पानी डाल ददया। एनथोनी समस्त्रननवासी ईसाइयों का नेता, ववद्वान ्,
ससद्धपरु
ु ष था, श्जसके अलौककक कर्तयों की खबरें दरू दरू तक फैली हुई थीं। वहआर्तमज्ञानी और तपस्वी
था। उसने समस्त दे श में भरमण करके ईसाई सम्परदाय मात्र को र्श्द्घा और धमोर्तसासह से प्लाववत कर
ददया। ववधसमसयों से गप्ु त रहकर वह एक समय में ईसाइयों की समस्त सभाओं में पहुंच जाता था, और
सभी में उस शश्क्त और ववचारशीलता का संचार कर दे ता था जो उसके रोमरोम में व्याप्त थी। गल
ु ामों
के साथ असाधारण कठोरता का व्यवहार ककया गया था। इससे भयभीत होकर ककतने ही धमसववमख
ु हो
गये, और अगधकांश जंगल को भाग गये। वहां या तो वे साधु हो जायेंगे या डाके मारकर ननवाहस करें गे।
लेककन अहमद पव
ू व
स त इन सभाओं में सश्म्मसलत होता, कैददयों से भें ट करता, आहत परु
ु षों का कियाकमस
ो़
करता और ननभसय होकर ईसाई धमस की घोषणा करता था। परनतभाशाली एनथोनी अहमद की यह दृता
और ननचचलता दे खकर इतना परसनन हुआ कक चलते समय उसे छाती से लगा सलया और ब़िे परे म से
आशीवादस ददया।

जब थायस सात वषस की हुई तो अहमद ने उसे ईचवरचचार करनी शरू


ु की। उसकी कथा सर्तय और
असर्तय का ववगचत्र समर्श्ण लेककन बाकयहृदय के अनक
ु ू ल थी।

ईचवर कफरऊन की भांनत स्वगस में , अपने हरम के खेमों और अपने बाग के वक्षों की छांह में रहता है ।
वह बहुत पराचीन काल से वहां रहता है , और दनु नया से भी परु ाना है । उसके केवल एक ही बेटा है , श्जसका
नाम परभु ईसू है । वह स्वगस के दत
ू ों से और रमणी यव
ु नतयों से भी सन
ु दर है । ईचवर उसे हृदय से प्यार
करता है । उसने एक ददन परभु मसीह से कहा-'मेरे भवन और हरम, मेरे छुहारे के वक्षों और मीठे पानी
की नददयों को छो़िकर पथ्वी पर जाओ और दीनदःु खी पराणणयों का ककयाण करो ! वहां तझ
ु े छोटे बालक
की भांनत रहना होगा। वहां दःु ख हो तेरा भोजन होगा और तझ
ु े इतना रोना होगा कक तझ
ु े आंसओ
ु ं से
नददयां बह ननकलें, श्जनमें दीनदःु खी जन नहाकर अपनी थकन को भल
ू जाएं। जाओ प्यारे पत्र
ु !'

परभु मसीह ने अपने पज्


ू य वपता की आज्ञा मान ली और आकर बेथलेहम नगर में अवतार सलया।
वह खेतों और जंगलों में कफरते थे और अपने सागथयों से कहते थे-मब
ु ारक हैं वे लोग जो भख
ू े रहते हैं,
क्योंकक मैं उनहें अपने वपता की मेज पर खाना णखलाऊंगा। मब
ु ारक हैं वे लोग जो प्यासे रहते हैं, क्योंकक
वह स्वगस की ननमसल नददयों का जल वपयेंगे और मब
ु ारक हैं वे जो रोते हैं, क्योंकक मैं अपने दामन से
उनके आंसू पोंछूंगा।

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यही कारण है कक दीनहीन पराणी उनहें प्यार करते हैं और उन पर ववचवास करते हैं। लेककन धनी
लोग उनसे डरते हैं कक कहीं यह गरीबों को उनसे ज्यादा धनी न बना दें । उस समय श्क्लयोपेट्रा और
सीजर पथ्वी पर सबसे बलवान थे। वे दोनों ही मसीह से जलते थे, इसीसलए पज
ु ाररयों और नयायाधीशों को
हुक्म ददया कक परभु मसीह को मार डालो। उनकी आज्ञा से लोगों ने एक सलीब ख़िी की और परभु को
सल
ू ी पर चा ददया। ककनतु परभु मसीह ने कबर के द्वार को तो़ि डाला और कफर अपने वपता ईचवर के
पास चले गये।

उसी समय से परभु मसीह के भक्त स्वगस को जाते हैं। ईचवर परे म से उनका स्वागत करता है और
उनसे कहता है -'आओ, मैं तम्
ु हारा स्वागत करता हूं क्योंकक तम
ु मेरे बेटे को प्यार करते हो। हाथ धोकर
मेज पर बैठ जाओ।' तब स्वगस अप्सराएं गाती हैं और जब तक मेहमान लोग भोजन करते हैं, नाच होता
रहता है । उनहें ईचवर अपनी आंखों की ज्योनत से अगधक प्यार करता है , क्योंकक वे उसके मेहमान होते हैं
और उनके ववर्श्ाम के सलए अपने भवन के गलीचे और उनके स्वादन के सलए अपने बाग का अनार
परदान करता है ।

अहमद इस परकार थायस से ईचवर चचार करता था। वह ववश्स्मत होकर कहती थी-'मझ
ु े ईचवर के
बाग के अनार समलें तो खूब खाऊं।'

अहमद कहता था-'स्वगस के फल वही पराणी खा सकते हैं जो बपनतस्मा ले लेते हैं।'

तब थायस ने बपनतस्मा लेने की आकांक्षा परकट की। परभु मसीह में उसकी भश्क्त दे खकर अहमद ने
उसे और भी धमसकथाएं सन
ु ानी शरू
ु कीं।

इस परकार एक वषस तक बीत गया। ईस्टर का शभ


ु सप्ताह आया और ईसाइयों ने धमोर्तससव मनाने
की तैयारी की। इसी सप्ताह में एक रात को थायस नींद से चौंकी तो दे खा कक अहमद उसे गोद में उठा
रहा है । उसकी आंखों में इस समय अद्भत
ु चमक थी। वह और ददनों की भांनत फटे हुए पाजामे नहीं,
बश्कक एक चवेत लम्बा ेीला चोगा पहने हुए था। उसके थायस को उसी चोगे में नछपा सलया और उसके
कान में बोला-'आ, मेरी आंखों की पत
ु ली, आ। और बपनतस्मा के पववत्र वस्त्र धारण कर।'

वह ल़िकी को छाती से लगाये हुए चला। थायस कुछ डरी, ककनतु उर्तसक
ु भी थी। उसने ससर चोगे से
बाहर ननकाल सलया और अपने दोनों हाथ अहमद की मदस न में डाल ददये। अहमद उसे सलये वेग से दौ़िा
चला जाता था। वह एक तंग अंधेरी गली से होकर गज
ु रा; तब यहूददयों के मह
ु कले को पार ककया, कफर एक

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कत्रबरस्तान के गगदस में घम
ू ते हुए एक खुले मैदान में पहुंचा जहां, ईसाई, धमाहसतों की लाशें सलीबों पर
लटकी हुई थीं। थायस ने अपना ससर चोगे में नछपा सलया और कफर रास्ते भर उसे मह
ुं बाहर ननकालने
का साहस न हुआ। उसे शीघर ज्ञात हो गया कक हम लोग ककसी तहखाने में चले जा रहे हैं। जब उसने
कफर आंखें खोलीं तो अपने को एक तंग खोह में पाया। राल की मशालें जल रही थीं। खोह की दीवारों पर
ईसाई ससद्ध महार्तमाओं के गचत्र बने हुए थे जो मशालों के अश्स्थर परकाश में चलतेकफरते, सजीव मालम

होते थे। उनके हाथों में खजूर की डालें थीं और उनके इदस गगदस मेमने, कबत
ू र, फाखते और अंगरू की बेलें
गचत्रत्रत थीं। इनहीं गचत्रों में थायस ने ईसू को पहचाना, श्जसके पैरों के पास फूलों का ेेर लगा हुआ था।

खोह के मध्य में , एक पर्तथर के जलकुण्ड के पास, एक वद्ध परु


ु ष लाल रं ग का ेीला कुरता पहने
ख़िा था। यद्यवप उसके वस्त्र बहुमक
ू य थे, पर वह अर्तयनत दीन और सरल जान प़िता था। उसका नाम
त्रबशप जीवन था, श्जसे बादशाह ने दे श से ननकाल ददया था। अब वह भे़ि का ऊन कातकर अपना ननवाहस
करता था। उसके समीप दो ल़िके ख़िे थे। ननकट ही एक बनु य हश्शशन एक छोटासा सफेद कप़िा सलये
ख़िी थी। अहमद ने थायस को जमीन पर बैठा ददया और त्रबशप के सामने घट
ु नों के बल बैठकर बोला-
'पज्
ू य वपता, यही वह छोटी ल़िकी है श्जसे मैं पराणों से भी अगधक चाहता हूं। मैं उसे आपकी सेवा में
लाया हूं कक आप अपने वचनानस
ु ार, यदद इच्छा हो तो, उसे बपनतस्मा परदान कीश्जए।'

यह सन
ु कर त्रबशप ने हाथ फैलाया। उनकी उं गसलयों के नाखून उखा़ि सलये गये थे क्योंकक आपवत्त के
ददनों में वह राजाज्ञा की परवाह न करके अपने धमस पर आऱु रहे थे। थायस डर गयी और अहमद की
गोद में नछप गयी, ककनतु त्रबशप के इन स्नेहमय शशदों ने उस आचवस्त कर ददया-'वपरय पत्र
ु ी, डरो मत।
अहमद तेरा धमसवपता है श्जसे हम लोग गथयोडोरा कहते हैं, और यह वद्घा स्त्री तेरी माता है श्जसने अपने
हाथों से तेरे सलए एक सफेद वस्त्र तैयार ककया। इसका नाम नीनतदा है । यह इस जनम में गल
ु ाम है; पर
स्वगस में यह परभु मसीह की परे यसी बनेगी।'

तब उसने थायस से पछ
ू ा-'थायस, क्या तू ईचवर पर, जो हम सबों का परम वपता है , उसके इकलौते पत्र

परभु मसीह पर श्जसने हमारी मश्ु क्त के सलए पराण अपसण ककये, और मसीह के सशष्यों पर ववचवास करती
हैं ?'

हशशी और हश्शशन ने एक स्वर से कहा-'हां।'

तब त्रबशप के आदे श से नीनतदा ने थायस के कप़िे उतारे । वह नग्न हो गयी। उसके गले में केवल
एक यनत्र था। ववशप ने उसे तीन बार जलकुण्ड में गोता ददया, और तब नीनतदा ने दे ह का पानी पोंछकर
अपना सफेद वस्त्र पहना ददया। इस परकार वह बासलका ईसा शरण में आयी जो ककतनी परीक्षाओं और
परलोभनों के बाद अमर जीवन पराप्त करने वाली थी।

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जब यह संस्कार समाप्त हो गया और सब लोग खोह के बाहर ननकले तो अहमद ने त्रबशप से कहा-
'पज्
ू य वपता, हमें आज आननद मनाना चादहए; क्योंकक हमने एक आर्तमा को परभु मसीह के चरणों पर
समवपसत ककया। आज्ञा हो तो हम आपके शभ
ु स्थान पर चलें और शेष रात्रत्र उर्तसव मनाने में काटें ।'

त्रबशप ने परसननता से इस परस्ताव को स्वीकार ककया। लोग त्रबशप के घर आये। इसमें केवल एक
कमरा था। दो चरखे रखे हुए थे और एक फटी हुई दरी त्रबछी थी। जब यह लोग अनदर पहुंचे तो त्रबशप
ने नीनतदा से कहा-'चूकहा और तेल की बोतल लाओ। भोजन बनायें।'

यह कहकर उसने कुछ मछसलयां ननकालीं, उनहें तेल में भन


ू ा, तब सबके-सब फशस पर बैठकर भोजन
करने लगे। त्रबशप ने अपनी यनत्रणाओं का वत्तानत कहा और ईसाइयों की ववजय पर ववचवास परकट
ककया। उसकी भाषा बहुत ही पेचदार, अलंकत, उलझी हुई थी। तत्त्व कम, शशदाडम्बर बहुत था। थायस
मंत्रमग्ु ध-सी बैठी सन
ु ती रही।

भोजन समाप्त हो जाने का त्रबशप ने मेहमानों को थो़िीसी शराब वपलाई। नशा चा तो वे बहकबहककर
बातें करने लगे। एक क्षण के बाद अहमद और नीनतदा ने नाचना शरू
ु ककया। यह परे तनर्तय था। दोनों
हाथ दहलादहलाकर कभी एकदस
ू रे की तरफ लपकते, कभी दरू हट जाते। जब सेवा होने में थो़िी दे र रह
गयी तो अहमद ने थायस को कफर गोद में उठाया और घर चला आया।

अनय बालकों की भांनत थायस भी आमोदवपरय थी। ददनभर वह गसलयों में बालकों के साथ
नाचतीगाती रहती थी। रात को घर आती तब भी वह गीत गाया करती, श्जनका ससरपैर कुछ न होता।

अब उसे अहमद जैसे शानत, सीधेसीधे आदमी की अपेक्षा ल़िकेल़िककयों की संगनत अगधक रुगचकर
मालम
ू होती ! अहमद भी उसके साथ कम ददखाई दे ता। ईसाइयों पर अब बादशाह की िुर दृश्ष्ट न थी,
इससलए वह अबाधरूप से धमस संभाएं करने लगे थे। धमसननष्ठ अहमद इन सभाओं में सश्म्मसलत होने से
कभी न चूकता। उसका धमोर्तसासह ददनोंददन बने लगा। कभीकभी वह बाजार में ईसाइयों को जमा करके
उनहें आने वाले सख
ु ों की शभ
ु सच
ू ना दे ता। उसकी सरू त दे खते ही शहर के सभखारी, मजदरू , गल
ु ाम, श्जनका
कोई आर्श्य न था, जो रातों में स़िक पर सोते थे, एकत्र हो जाते और वह उनसे कहता-'गल
ु ामों के मक्
ु त
होने के बदन ननकट हैं, नयाय जकद आने वाला है , धन के मतवाले चैन की नींद न सो सकेंगे। ईचवर के

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राज्य में गल
ु ामों को ताजा शराब और स्वाददष्ट फल खाने को समलेंगे, और धनी लोग कुत्ते की भांनत दब
ु के
हुए मेज के नीचे बैठे रहें गे और उनका जठ
ू न खायेंगे।'

यह शभ
ु सनदे श शहर के कोनेकोने में गज
ंू ने लगता और धनी स्वासमयों को शंका होती कक कहीं उनके
गल
ु ाम उत्तेश्जत होकर बगावत न कर बैठें। थायस का वपता भी उससे जला करता था। वह कुश्र्तसत भावों
को गप्ु त रखता।

एक ददन चांदी का एक नमकदान जो दे वताओं के यज्ञ के सलए अलग रखा हुआ था, चोरी हो गया।
अहमद ही अपराधी ठहराया गया। अवचय अपने स्वामी को हानन पहुंचाने और दे वताओं का अपमान करने
के सलए उसने यह अधमस ककया है ! चोरी को सात्रबत करने के सलए कोई परमाण न था और अहमद
पक
ु ारपक
ु ारकर कहता था-मझ
ु पर व्यथस ही यह दोषारोपण ककया जाता है । नतस पर भी वह अदालत में
ख़िा ककया गया। थायस के वपता ने कहा-'यह कभी मन लगाकर काम नहीं करता।' नयायाधीश ने उसे
पराणदण्ड का हुक्म दे ददया। जब अहमद अदालत से चलने लगा तो नयायधीश ने कहा-'तम
ु ने अपने
हाथों से अच्छी तरह काम नहीं सलया इससलए अब यह सलीब में ठोंक ददये जायेंगे !'

अहमद ने शाश्नतपव
ू क
स फैसला सन
ु ा, दीनता से नयायाधीश को परणाम ककया और तब कारागार में बनद
कर ददया गया। उसके जीवन के केवल तीन ददन और थे और तीनों ददनों ददन यह कैददयों को उपदे श
दे ता रहा। कहते हैं उसके उपदे शों का ऐसा असर प़िा कक सारे कैदी और जेल के कमसचारी मसीह की
शरण में आ गये। यह उसके अववचल धमानरुस ाग का फल था।

चौथे ददन वह उसी स्थान पर पहुंचाया गया जहां से दो साल पहले, थायस को गोद में सलये वह ब़िे
आननद से ननकला था। जब उसके हाथ सलीब पर ठोंक ददये गये, तो उसने 'उफ' तक न ककया, और एक
भी अपशशद उसके मह
ंु से न ननकला ! अनत में बोला-'मैं प्यासा हूं !

तीन ददन और तीन रात उसे असह्य पराणपी़िा भोगनी प़िी। मानवशरीर इतना दस्
ु सह अगंववच्छे द
सह सकता है , असम्भवसा परतीत होता था। बारबार लोगों को खयाल होता था कक वह मर गया।
मश्क्खयां आंखों पर जमा हो जातीं, ककनतु सहसा उसके रक्तवणस नेत्र खल
ु जाते थे। चौथे ददन परातःकाल
उसने बालकों केसे सरल और मदस्
ु वर में गाना शरू
ु ककया-मररयम, बता तू कहा गयी थी, और वहां क्या
दे खा? तब उसने मस्
ु कराकर कहा-

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'वह स्वगस के दत
ू तझ
ु े लेने को आ रहे हैं। उनका मख
ु ककतना तेजस्वी है । वह अपने साथ फल और
शराब सलये आते हैं। उनके परों से कैसी ननमसल, सख
ु द वायु चल रही है ।'

और यह कहतेकहते उसका पराणानत हो गया।

मरने पर भी उसका मख
ु मंडल आर्तमोकलास से उद्दीप्त हो रहा था। यहां तक कक वे ससपाही भी जो
सलीब की रक्षा कर रहे थे, ववस्मत हो गये। त्रबशप जीवन ने आकर शव का मतकसंस्कार ककया और
ईसाई समद
ु ाय ने महार्तमा गथयोडोर की कीनतस को परमाज्ज्वल अक्षरों में अंककत ककया।

अहमद के पराणदण्ड के समय थायस का ग्यारहवां वषस परू ा हो चुका था। इस घटना से उसके हृदय
को गहरा सदमा पहुंचा। उसकी आर्तमा अभी इतनी पववत्र न थी कक वह अहमद की मर्तयु को उसके जीवन
के समान ही मब
ु ारक समझती, उसकी मर्तयु को उद्घार समझकर परसनन होती। उसके अबोध मन में यह
भरानत बीज उर्तपनन हुआ कक इस संसार में वही पराणी दयाधमस का पालन कर सकता है जो कदठनसे-
कदठन यातनाएं सहने के सलए तैयार रहे । यहां सज्जनता का दण्ड अवचय समलता है । उसे सर्तकमस से भय
होता था कक कहीं मेरी भी यही दशा न हो। उसका कोमल शरीर पी़िा सहने में असमथस था

वह छोटी ही उमर में बादशाह के यव


ु कों के साथ िी़िा करने लगी। संध्या समय वह बेे
ू ो़ आदसमयों के
पीछे लग जाती और उनसे कुछन-कुछ ले मरती थी। इस भांनत जो कुछ समलता उससे समठाइयां और
णखलौने मोल लेती। पर उसकी लोसभनी माता चाहती थी कक वह जो कुछ पाये वह मझ
ु े दे । थायस इसे न
मानती थी। इससलए उसकी माता उसे मारापीटा करती थी। माता की मार से बचने के सलए वह बहुधा घर
से भाग जाती और शहरपनाह की दीवार की दरारों में वनय जनतओ
ु ं के साथ नछपी रहती।

एक ददन उसकी माता ने इतनी ननदस यता से उसे पीटा कक वह घर से भागी और शहर के फाटक के
पास चुपचाप प़िी सससक रही थी कक एक बनु य उसके सामने जाकर ख़िी हो गयी। वह थो़िी दे र तक
मग्ु धभाव से उसकी ओर ताकती रही और तब बोली-'ओ मेरी गल
ु ाब, मेरी गल
ु ाब, मेरी फूलसी बच्ची ! धनय
है तेरा वपता श्जसने तझ
ु े पैदा ककया और धनय है तेरी माता श्जसने तझ
ु े पाला।'

थायस चुपचाप बैठी जमीन की ओर दे खती रही। उसकी आंखें लाल थीं, वह रो रही थी।

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बनु य ने कफर कहा-'मेरी आंखों की पत
ु ली, मन
ु नी, क्या तेरी माता तझ
ु जैसी दे वकनया को पालपोसकर आननद
से फूल नहीं जाती, और तेरा वपता तझ
ु े दे खकर गौरव से उनमत्त नहीं हो जाता ?'

थायस ने इस तरह भन
ु भन
ु ाकर उत्तर ददया, मानो मन ही में कह रही है -मेरा बाप शराब से फूला हुआ पीपा
है और माता रक्त चस
ू ने वाली जोंक है ।

बनु य ने दायेंबायें दे खा कक कोई सन


ु तो नहीं रहा है, तब ननस्संक होकर अर्तयनत मद ु कंठ से बोली-'अरे
मेरी प्यारी आंखों की ज्योनत, ओ मेरी णखली हुई गल
ु ाब की कली, मेरे साथ चलो। क्यों इतना कष्ट सहती
हो ? ऐसे मांबाप की झा़ि मारो। मेरे यहां तम्
ु हें नाचने और हं सने के ससवाय और कुछ न करना प़िेगा। मैं
तम्
ु हें शहद के रसगक
ु ले णखलाऊंगी, और मेरा बेटा तम्
ु हें आंखों की पत
ु ली बनाकर रखेगा। वह ब़िा सन
ु दर
सजीला जबान है , उसकी दाी ो़ पर अभी बाल भी नहीं ननकले, गोरे रं ग का कोमल स्वभाव का प्यारा ल़िका
है ।'

थायस ने कहा-'मैं शौक से तम्


ु हें साथ चलग
ंू ी।' और उठकर बनु य के पीछे शहर के बाहर चली गयी।

बनु य का नाम मीरा था। उसके पास कई ल़िकेल़िककयों की एक मंडली थी। उनहें उसने नाचना, गाना,
नकलें करना ससखाया था। इस मंडली को लेकर वह नगरनगर घम
ू ती थी, और अमीरों के जलसों में उनका
नाचगाना कराके अच्छा परु स्कार सलया करती थी।

उसकी चतरु आंखों ने दे ख सलया कक यह कोई साधारण ल़िकी नहीं है । उसका उठान कहे दे ता था कक
आगे चलकर वह अर्तयनत रूपवती रमणी होगी। उसने उसे को़िे मारकर संगीत और वपंगल की सशक्षा दी।
जब ससतार के तालों के साथ उसके पैर न उठते तो वह उसकी कोमल वपंडसलयों में चम़िे के तस्में से
मारती। उसका पत्र
ु जो दहज़िा था, थायस से द्वेष रखता था, जो उसे स्त्री मात्र से था। पर वह नाचने में ,
नकल करने में , मनोगत भावों को संकेत, सैन, आकनत द्वारा व्यक्त करने में , परे म की घातों के दशासने में ,
अर्तयनत कुशल था। दहज़िों में यह गण
ु परायः ईचवरदत्त होते हैं। उसने थायस को यह ववद्या ससखाई,
खुशी से नहीं, बश्कक इससलए कक इस तरकीब से वह जी भरकर थायस को गासलयां दे सकता था। जब
उसने दे खा कक थायस नाचनेगाने में ननपण
ु होती जाती है और रससक लोग उसके नर्तयगान से श्जतने
मग्ु ध होते हैं उतना मेरे नर्तयकौशल से नहीं होते तो उसकी छाती पर सांप काटने लगा। वह उसके गालों
को नोच लेता, उसके हाथपैर में चुटककयां काटता। पर उसकी जलन से थायस को लेशमात्र भी दःु ख न

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होता था। ननदस य व्यवहार का उसे अभ्यास हो गया था। अश्नतयोकस उस समय बहुत आबाद शहर था।
मीरा जब इस शहर में आयी तो उसने रईसों से थायस की खूब परशंसा की। थायस का रूपलावण्य
दे खकर लोगों ने ब़िे चाव से उसे अपनी रागरं ग की मजसलसों में ननमश्नत्रत ककया, और उसके नर्तयगान
पर मोदहत हो गये। शनै:शनै: यही उसका ननर्तय का काम हो गया! नर्तयगान समाप्त होने पर वह परायः
सेठसाहूकारों के साथ नदी के ककनारे , घने कुञ्जों में ववहार करती। उस समय तक उसे परे म के मक
ू य का
ज्ञान न था, जो कोई बल
ु ाता उसके पास जाती, मानो कोई जौहरी का ल़िका धनरासश को कौड़ियों की भांनत
लट
ु ा रहा हो। उसका एकएक कटाक्ष हृदय को ककतना उद्ववग्न कर दे ता है , उसका एकएक कर स्पशस
ककतना रोमांचकारी होता है , यह उसके अज्ञात यौवन को ववददत न था।

एक रात को उसका मज
ु रा नगर के सबसे धनी रससक यव
ु कों के सामने हुआ। जब नर्तय बनद हुआ तो
नगर के परधान राज्यकमसचारी का बेटा, जवानी की उमंग और कामचेतना से ववह्वल होकर उसके पास
आया और ऐसे मधुर स्वर में बोला जो परे मरस में सनी हुई थी-

'थायस, यह मेरा परम सौभाग्य होता यदद तेरे अलकों में गथ


ुं ी हुई पष्ु पमाला या तेरे कोमल शरीर का
आभष
ू ण, अथवा तेरे चरणों की पादक
ु ा मैं होता। यह मेरी परम लालसा है कक पादक
ु ा की भांनत तेरे सन
ु दर
चरणों से कुचला जाता, मेरा परे मासलंगन तेरे सक
ु ोमल शरीर का आभष
ू ण और तेरी अलकरासश का पष्ु प
होता। सन
ु दरी रमणी, मैं पराणों को हाथ में सलये तेरी भें ट करने को उर्तसक
ु हो रहा हूं। मेरे साथ चल और
हम दोनों परे म में मग्न होकर संसार को भल
ू जायें।'

जब तक वह बोलता रहा, थायस उसकी ओर ववश्स्मत होकर ताकती रही। उसे ज्ञात हुआ कक उसका
रूप मनोहर है । अकस्मात उसे अपने माथे पर ठं डा पसीना बहता हुआ जान प़िा। वह हरी घास की भांनत
आिस हो गयी। उसके ससर में चक्कर आने लगे, आंखों के सामने मेघघटासी उठती हुई जान प़िी। यव
ु क ने
कफर वही परे माकांक्षा परकट की, लेककन थायस ने कफर इनकार ककया। उसके आतरु नेत्र, उसकी
परे मयाचना बस ननष्फल हुई, और जब उसने अधीर होकर उसे अपनी गोद में ले सलया और बलात खींच
ले जाना चाहा तो उसने ननष्ठुरता से उसे हटा ददया। तब वह उसके सामने बैठकर रोने लगा। पर उसके
हृदय में एक नवीन, अज्ञात और अलक्षक्षत चैतनयता उददत हो गयी थी। वह अब भी दरु ागरह करती रही।

मेहमानों ने सन
ु ा तो बोले-'यह कैसी पगली है ? लोलस कुलीन, रूपवान, धनी है , और यह नाचने वाली
यव
ु ती उसका अपमान करती हैं !'

लोलस का रात घर लौटा तो परे ममद तो मतवाला हो रहा था। परातःकाल वह कफर थायस के घर
आया, तो उसका मख
ु वववणस और आंखें लाल थीं। उसने थायस के द्वार पर फूलों की माला चाई। लेककन

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थायस भयभीत और अशानत थी, और लोलस से मह
ुं नछपाती रहती थी। कफर भी लोलस की स्मनत एक
क्षण के सलए भी उसकी आंखों से न उतरती। उसे वेदना होती थी पर वह इसका कारण न जानती थी।
उसे आचचयस होता था कक मैं इतनी णखनन और अनयमनस्क क्यों हो गयी हूं। यह अनय सब परे समयों से
दरू भागती थी। उनसे उसे घणा होती थी। उसे ददन का परकाश अच्छा न लगता, सारे ददन अकेले
त्रबछावन पर प़िी, तककये में मह
ुं नछपाये रोया करती। लोलस कई बार ककसीन-ककसी यश्ु क्त से उसके पास
पहुंचा, पर उसका परे मागरह, रोनाधोना, एक भी उसे न वपघला सका। उसके सामने वह ताक न सकती,
केवल यही कहती-'नहीं, नहीं।'

लेककन एक पक्ष के बाद उसकी श्जद्द जाती रही। उसे ज्ञात हुआ कक मैं लोलस के परे मपाश में फंस
गयी हूं। वह उसके घर गयी और उसके साथ रहने लगी। अब उनके आननद की सीमा न थी। ददन भर
एकदस
ू रे से आंखें समलाये बैठे परे मलाप ककया करते। संध्या को नदी के नीरव ननजसन तट पर हाथमें-हाथ
डाले टहलते। कभीकभी अरुणोदय के समय उठकर पहाड़ियों पर सम्बल
ु के फूल बटोरने चले जाते। उनकी
थाली एक थी। प्याला एक था, मेज एक थी। लोलस उसके मह
ुं के अंगरू ननकालकर अपने मह
ुं में खा
जाता।

तब मीरा लोलस के पास आकर रोनेपीटने लगी कक मेरी थायस को छो़ि दो। वह मेरी बेटी है , मेरी आंखों
की पत
ु ली ! मैंने इसी उदर से उसे ननकाल, इस गोद में उसका लालनपालन ककया और अब तू उसे मेरी
गोद से छीन लेना चाहता है।

लोलस ने उसे परचरु धन दे कर ववदा ककया, लेककन जब वह धनतष्णा से लोलप


ु होकर कफर
आयी तो लोलस ने उसे कैद करा ददया। नयायागधकाररयों को ज्ञात हुआ कक वह कुटनी है , भोली ल़िककयों
को बहका ले जाना ही उसका उद्यम है तो उसे पराणदण्ड दे ददया और वह जंगली जानवरों के सामने
फेंक दी गई।

लोलस अपनी अखंड, सम्पण


ू स कामना से थायस को प्यार करता था। उसकी परे म ककपना ने
ववराट रूप धारण कर सलया था, श्जससे उसकी ककशोर चेतना सशंक हो जाती थी। थायस अनतःकरण से
कहती-'मैंने तम्
ु हारे ससवाय और ककसी से परे म नहीं ककया।'

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लोलस जवाब दे ता-'तम
ु संसार में अद्ववतीय हो।' दोनों पर छः महीने तक यह नशा सवार रहा।
अनत में टूट गया। थायस को ऐसा जान प़िता कक मेरा हृदय शन
ू य और ननजसन है । वहां से कोई चीज
गायब हो गयी है । लोलस उसकी दृश्ष्ट में कुछ और मालम
ू होता था। वह सोचती-मझ
ु में सहसा यह
अनतर क्यों हो गया ? यह क्या बात है कक लोलस अब और मनष्ु यों कासा हो गया है , अपनासा नहीं रहा
? मझ
ु े क्या हो गया है ?

यह दशा उसे असह्य परतीत होने लगी। अखण्ड परे म के आस्वादन के बाद अब यह नीरस,
शष्ु क व्यापार उसकी तष्णा को तप्त न कर सका। वह अपने खोये हुए लोलस को ककसी अनय पराणी में
खोजने की गप्ु त इच्छा को हृदय में नछपाये हुए, लोलस के पास से चली गयी। उसने सोचा परे म रहने पर
भी ककसी परु
ु ष के साथ रहना। उस आदमी के साथ रहने से कहीं सख
ु कर है श्जससे अब परे म नहीं रहा।
वह कफर नगर के ववषयभोगगयों के साथ उन धमोर्तससवों में जाने लगी जहां वस्त्रहीन यव
ु नतयां मश्नदरों में
नर्तय ककया करती थीं, या जहां वेचयाओं के गोलके-गोल नदी में तैरा करते थे। वह उस ववलासवपरय और
रं गीले नगर के रागरं ग में ददल खोलकर भाग लेने लगी। वह ननर्तय रं गशालाओं में आती जहां चतरु गवैये
और नतसक दे शदे शानतरों से आकर अपने करतब ददखाते थे और उत्तेजना के भख
ू े दशसकवनद वाहवाह की
ध्वनन से आसमान ससर पर उठा लेते थे।

थायस गायकों, असभनेताओं, ववशेषतः उन श्स्त्रयों के चालाल को ब़िे ध्यान से दे खा करती थी


जो दःु खानत नाटकों में मनष्ु य से परे म करने वाली दे ववयों या दे वताओं से परे म करने वाली श्स्त्रयों का
असभनय करती थीं। शीघर ही उसे वह लटके मालम
ू हो गये, श्जनके द्वारा वह पात्राएं दशसकों का मन हर
लेती थीं, और उसने सोचा, क्या मैं जो उन सबों से रूपवती हूं, ऐसा ही असभनय करके दशसकों को परसनन
नहीं कर सकती? वह रं गशाला व्यवस्थापक के पास गयी और उससे कहा कक मझ
ु े भी इस नाट्यमंडली में
सश्म्मसलत कर लीश्जए। उसके सौनदयस ने उसकी पव
ू सस शक्षा के साथ समलकर उसकी ससफाररश की।
व्यवस्थापक ने उसकी पराथसना स्वीकार कर ली। और वह पहली बार रं गमंच पर आयी।

पहले दशसकों ने उसका बहुत आशाजनक स्वागत न ककया। एक तो वह इस काम में अभ्यस्त
न थी, दस
ू रे उसकी परशंसा के पल
ु बांधकर जनता को पहले ही से उर्तसक
ु न बनाया गया था। लेककन
कुछ ददनों तक गौण चररत्रों का पाटस खेलने के बाद उसके यौवन ने वह हाथपांव ननकाले कक सारा नगर
लोटपोट हो गया। रं गशाला में कहीं नतल रखने भर की जगह न बचती। नगर के ब़िेब़िे हाककम, रईस,
अमीर, लोकमत के परभाव से रं गशाला में आने पर मजबरू हुए। शहर के चौकीदार, पकलेदार, मेहतर, घाट
के मजदरू , ददनददन भर उपवास करते थे कक अपनी जगह सरु क्षक्षत करा लें। कववजन उसकी परशंसा में

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कववत्त कहते। लम्बी दानयों वाले ववज्ञानशास्त्री व्यायामशालाओं में उसकी नननदा और उपेक्षा करते। जब
उसका तामझाम स़िक पर से ननकलता तो ईसाई पादरी मह
ुं फेर लेते थे। उसके द्वार की चौखट
पष्ु पमालाओं से की रहती थी। अपने परे समयों से उसे इतना अतल
ु धन समलता कक उसे गगनना मश्ु चकल
था। तराजू पर तौल सलया जाता था। कपण बोंू ो़ की संगरह की हुई समस्त सम्पवत्त उसके ऊपर कौड़ियों
की भांनत लट
ु ाई जाती थी। पर उसे गवस न था। ऐंठ न थी। दे वताओं की कपादृश्ष्ट और जनता की
परशंसाध्वनन से उसके हृदय को गौरवयक्
ु त आननद होता था। सबकी प्यारी बनकर वह अपने को प्यार
करने लगी थी।

कई वषस तक ऐश्नटओकवाससयों के परे म और परशंसा का सख


ु उठाने के बाद उसके मन में
परबल उर्तकंठा हुई कक इस्कश्निया चलूं और उस नगर में अपना ठाटबाट ददखाऊं, जहां बचपन में मैं नंगी
और भख
ू ी, दररि और दब
ु ल
स , स़िकों पर मारीमारी कफरती थी और गसलयों की खाक छानती थी। इस्कश्नियां
आंखें त्रबछाये उसकी राह दे खता था। उसने ब़िे हषस से उसका स्वागत ककया और उस पर मोती बरसाये।
वह िी़िाभसू म में आती तो धूम मच जाती। परे समयों और ववलाससयों के मारे उसे सांस न समलती, पर वह
ककसी को मह
ुं न लगाती। दस
ू रा, लोलस उसे जब न समला तो उसने उसकी गचनता ही छो़ि दी। उस
स्वगससख
ु की अब उसे आशा न थी।

उसके अनय परे समयों में तत्त्वज्ञानी ननससयास भी था जो ववरक्त होने का दावा करने पर भी
उसके परे म का इच्छुक था। वह धनवान था पर अनय धनपनतयों की भांनत असभमानी और मनदबद्
ु गध न
था। उसके स्वभाव में ववनय और सौहादस की आभा झलकती थी, ककनतु उसका मधुरहास्य और
मदक
ु कपनाएं उसे ररझाने में सफल न होतीं। उसे ननससयास से परे म न था, कभीकभी उसके सभ
ु ावषतों से
उसे गच होती थी। उसके शंकावाद से उसका गचत्त व्यगर हो जाता था, क्योंकक ननससयास की र्श्द्घा ककसी
पर न थी और थायस की र्श्द्घा सभी पर थी। वह ईचवर पर, भत
ू परे तों पर जादट
ू ोने पर, जनत्रमनत्र पर परू ा
ववचवास करती थी। उसकी भश्क्त परभु मसीह पर भी थी, स्याम वालों की पन
ु ीता दे वी पर भी उसे
ववचवास था कक रात को जब अमक
ु परे त गसलयों में ननकलता है तो कुनतयां भक
ूं ती हैं। मारण, उच्चाटन,
वशीकरण के ववधानों पर और शश्क्त पर उसे अटल ववचवास था। उसका गचत्त अज्ञात न सलए उर्तसक

रहता था। वह दे वताओं की मनौनतयां करती थी और सदै व शभ
ु ाशाओं में मग्न रहती थी भववष्य से यह
शंका रहती थी, कफर भी उसे जानना चाहती थी। उसके यहां, ओझे, सयाने, तांत्रत्रक, मनत्र जगाने वाले, हाथ
दे खने वाले जमा रहते थे। वह उनके हाथों ननर्तय धोखा खाती पर सतकस न होती थी। वह मौत से डरती
थी और उससे सतकस रहती थी। सख
ु भोग के समय भी उसे भय होता था कक कोई ननदस य कठोर हाथ
उसका गला दबाने के सलए बा आता है और वह गचकला उठती थी।

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ननससयास कहता था-'वपरये, एक ही बात है , चाहे हम रुग्ण और जजसर होकर महारात्रत्र की गोद
में समा जायें, अथवा यहीं बैठे, आननदभोग करते, हं सतेखेलते, संसार से परस्थान कर जायें। जीवन का
उद्दे चय सख
ु भोग है । आओ जीवन की बाहार लट
ू ें । परे म से हमारा जीवन सफल हो जायेगा। इश्नियों
द्वारा पराप्त ज्ञान ही यथाथस ज्ञान है । इसके ससवाय सब समथ्या के सलए अपने जीवन सख
ु में क्यों बाधा
डालें ?'

थायस सरोष होकर उत्तर दे ती-'तम


ु जैसे मनष्ु यों से भगवान बचाये, श्जनहें कोई आशा नहीं, कोई
भय नहीं। मैं परकाश चाहती हूं, श्जससे मेरा अनतःकरण चमक उठे ।'

जीवन के रहस्य को समझने के सलए उसे दशसनगरनथों को पॄना शरू


ु ककया, पर वह उसकी
समझ में न आये। ज्योंज्यों बाकयावस्था उससे दरू होती जाती थी, र्तयोंर्तयों उसकी याद उसे ववकल करती
थी। उसे रातों को भेष बदलकर उन स़िकों, गसलयों, चौराहों पर घम
ू ना बहुत वपरय मालम
ू होता जहां उसका
बचपन इतने दःु ख से कटा था। उसे अपने मातावपता के मरने का दःु ख होता था, इस कारण और भी कक
वह उनहें प्यार न कर सकी थी।

जब ककसी ईसाई पज
ू क से उसकी भें ट हो जाती तो उसे अपना बपनतस्मा याद आता और
गचत्त अशानत हो जाता। एक रात को वह एक लम्बा लबादा ओो़े, सन
ु दर केशों को एक काले टोप से
नछपाये, शहर के बाहर ववचर रही थी कक सहसा वह एक गगरजाघर के सामने पहुंच गयी। उसे याद आया,
मैंने इसे पहले भी दे खा है । कुछ लोग अनदर गा रहे थे और दीवार की दरारों से उज्ज्वल परकाशरे खाएं
बाहर झांक रही थीं। इसमें कोई नवीन बात न थी, क्योंकक इधर लगभग बीस वषों से ईसाईधमस में को
ववघ्नबाधा न थी, ईसाई लोग ननरापद रूप से अपने धमोर्तससव करते थे। लेककन इन भजनों में इतनी
अनरु श्क्त, करुण स्वगसध्वनन थी, जो ममसस्थल में चट
ु ककयां लेती हुई जान प़िती थीं। थायस अनतःकरण के
वशीभत
ू होकर इस तरह द्वार, खोलकर भीतर घस
ु गयी मानो ककसी ने उसे बल
ु ाया है । वहां उसे बाल,
वद्ध, नरनाररयों का एक ब़िा समह
ू एक समागध के सामने ससजदा करता हुआ ददखाई ददया। यह कबर
केवल पर्तथर की एक ताबत
ू थी, श्जस पर अंगरू के गच्
ु छों और बेलों के आकार बने हुए थे। पर उस पर
लोगों की असीम र्श्द्घा थी। वह खजरू की टहननयों और गल
ु ाब की पष्ु पमालाओं से की हुई थी। चारों
तरफ दीपक जल रहे थे और उसके मसलन परकाश में लोबान, ऊद आदद का धआ
ु ं स्वगसदत
ू ों के वस्त्रों की
तहोंसा दीखता था, और दीवार के गचत्र स्वगस के दृचयों केसे। कई चवेत वस्त्रधारी पादरी कबर के पैरों पर
पेट के बल प़िे हुए थे। उनके भजन दःु ख के आननद को परकट करते थे और अपने शोकोकलास में दःु ख

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और सख
ु , हषस और शोक का ऐसा समावेश कर रहे थे कक थायस को उनके सन
ु ने से जीवन के सख
ु और
मर्तयु के भय, एक साथ ही ककसी जलस्त्रोत की भांनत अपनी सगचनतस्नायओ
ु ं में बहते हुए जान प़िे।

जब गाना बनद हुआ तो भक्तजन उठे और एक कतार मंेेें कबर के पास जाकर उसे चम
ू ा।
यह सामानय पराणी थे; जो मजरू ी करके ननवाहस करते थे। क्या ही धीरे धीरे पग उठाते, आंखों में आंसू भरे ,
ससर झक
ु ाये, वे आगे बते और बारीबारी से कबर की पररिमा करते थे। श्स्त्रयों ने अपने बालकों को गोद
में उठाकर कबर पर उनके होंठ रख ददये।

थायस ने ववश्स्मत और गचश्नतत होकर एक पादरी से पछ


ू ा-'पज्
ू य वपता, यह कैसा समारोह है ?'

पादरी ने उत्तर ददया-'क्या तम्


ु हें नहीं मालम
ू कक हम आज सनत गथयोडोर की जयनती मना रहे हैं ? उनका
जीवन पववत्र था। उनहोंने अपने को धमस की बसलवेदी पर चा ददया, और इसीसलए हम चवेत वस्त्र पहनकर
उनकी समागध पर लाल गल
ु ाब के फूल चाने आये हैं।'

यह सन
ु ते ही थायस घट
ु नों के बल बैठ गयी और जोर से रो प़िी। अहमद की अधसववस्मत
स्मनतयां जागरत हो गयीं। उस दीन, दख
ु ी, अभागे पराणी की कीनतस ककतनी उज्ज्वल है ! उसके नाम पर
दीपक जलते हैं, गल
ु ाब की लपटें आती हैं, हवन के सग
ु श्नधत धुएं उठते हैं, मीठे स्वरों का नाद होता है और
पववत्र आर्तमाएं मस्तक झुकाती हैं। थायस ने सोचा-अपने जीवन में वह पष्ु यार्तमा था, पर अब वह पज्
ू य
और उपास्य हो गया हैं ! वह अनय पराणणयों की अपेक्षा क्यों इतना र्श्द्घास्पद है ? वह कौनसी अज्ञात
वस्तु है जो धन और भोग से भी बहुमक
ू य है ?

वह आदहस्ता से उठी और उस सनत की समागध की ओर चली श्जसने उसे गोद में खेलाया
था। उसकी अपव
ू स आंखों में भरे हुए अर्श्ुत्रबनद ु दीपक के आलोक में चमक रहे थे। तब वह ससर झुकाकर,
दीनभाव से कबर के पास गयी और उस पर अपने अधरों से अपनी हाददस क र्श्द्घा अंककत कर दी-उनहीं
अधरों से जो अगणणत तष्णाओं का िी़िाक्षेत्र थे !

जब वह घर आयी तो ननससयास को बाल संवारे , वस्त्रों मंेे


े ं सग
ु नध मले, कबा के बनद खोले
बैठे दे खा। वह उसके इनतजार में समय काटने के सलए एक नीनतगरं थ पॄ रहा था। उसे दे खते ही वह बांहें
खोले उसकी बा और मदहु ास्य से बोला-'कहां गयी थीं, चंचला दे वी ? तम
ु जानती हो तम्
ु हारे इनतजार में

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बैठा हुआ, मैं इस नीनतगरं थ में क्या पॄ रहा था?' नीनत के वाक्य और शद्
ु घाचरण के उपदे श ?' 'कदावप
नहीं। गरं थ के पननों पर अक्षरों की जगह अगणणत छोटीछोटी थायसें नर्तय कर रही थीं। उनमें से एक भी
मेरी उं गली से ब़िी न थी, पर उनकी छवव अपार थी और सब एक ही थायस का परनतत्रबम्ब थीं। कोई तो
रर्तनजड़ित वस्त्र पहने अक़िती हुई चलती थी, कोई चवेत मेघसमह
ू के सदृचय स्वच्छ आवरण धारण ककये
हुए थी; कोई ऐसी भी थीं श्जनकी नग्नता हृदय में वासना का संचार करती थी। सबके पीछे दो, एक ही
रं गरूप की थीं। इतनी अनरू
ु प कक उनमें भेद करना कदठन था। दोनों हाथमें -हाथ समलाये हुए थीं, दोनों ही
हं सती थीं। पहली कहती थी-मैं परे म हूं। दस
ू री कहती थी-मैं नर्तय हूं।'

यह कहकर ननससयास ने थायस को अपने करपाश में खींच सलया। थायस की आंखें झक
ु ी हुई
थीं। ननससयास को यह ज्ञान न हो सका कक उनमें ककतना रोष भरा हुआ है । वह इसी भांनत सश्ू क्तयों की
वषास करता रहा, इस बात से बेखबर कक थायस का ध्यान ही इधर नहीं है । वह कह रहा था-'जब मेरी
आंखों के सामने यह शशद आये-अपनी आर्तमशद्
ु गध के मागस में कोई बाधा मत आने दो, तो मैंने पाॄ
'थायस के अधरस्पशस अश्ग्न से दाहक और मधु से मधरु हैं।' इसी भांनत एक पश्ण्डत दस
ू रे पश्ण्डतों के
ववचारों को उलटपलट दे ता है ; और यह तम्
ु हारा ही दोष है । यह सवसथा सर्तय है कक जब तक हम वही हैं
जो हैं, तब तक हम दस
ू रों के ववचारों में अपने ही ववचारों की झलक दे खते रहें गे।'

वह अब भी इधर मख
ु ानतब न हुई। उसकी आर्तमा अभी तक हशशी की कबर के सामने झुकी हुई
थी। सहसा उसे आह भरते दे खकर उसने उसकी गदस न का चुम्बन कर सलया और बोला-'वपरये, संसार में
सख
ु नहीं है जब तक हम संसार को भल
ू न जायें। आओ, हम संसार से छल करें , छल करके उससे सख

लें-परे म में सबकुछ भल
ू जायें।'

लेककन उसने उसे पीछे हटा ददया और व्यगथत होकर बोली-'तम


ु परे म का ममस नहीं जानते !
तम
ु ने कभी ककसी से परे म नहीं ककया। मैं तम्
ु हें नहीं चाहती, जरा भी नहीं चाहती। यहां से चले जाओ, मझ
ु े
तम
ु से घणा होती है । अभी चले जाओ, मझ
ु े तम्
ु हारी सरू त से नफरत है । मझ
ु े उन सब पराणणयों से घणा
है , धनी है , आननदभोगी हैं। जाओ, जाओ। दया और परे म उनहीं में है जो अभागे हैं। जब मैं छोटी थी तो
मेरे यहां एक हशशी था श्जसने सलीब पर जान दी। वह सज्जन था, वह जीवन के रहस्यों को जानता था।
तम
ु उसके चरण धोने योग्य भी नहीं हो। चले जाओ। तम्
ु हारा श्स्त्रयों कासा शग
ं ार मझ
ु े एक आंख नहीं
भाता। कफर मझ
ु े अपनी सरू त मत ददखाना।'

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यह कहतेकहते वह फशस पर मह
ुं के बल गगर प़िी और सारी रात रोकर काटी। उसने संककप ककया कक मैं
सनत गथयोडोर की भांनत और दररि दशा में जीवन व्यतीत करुं गी।

दस
ू रे ददन वह कफर उनहीं वासनाओं में सलप्त हो गयी श्जनकी उसे चाट प़ि गयी थी। वह
जानती थी कक उसकी रूपशोभा अभी परू े तेज पर है , पर स्थायी नहीं इसीसलए इसके द्वारा श्जतना सख

और श्जतनी ख्यानत पराप्त हो सकती थी उसे पराप्त करने के सलए वह अधीर हो उठी। गथयेटर में वह
पहले की अपेक्षा और दे र तक बैठकर पस्
ु तकावलोकन ककया करती। वह कववयों, मनू तसकारों और गचत्रकारों
की ककपनाओं को सजीव बना दे ती थी, ववद्वानों और तत्त्वज्ञाननयों को उसकी गनत, अगंववनयास और उस
पराकनतक माधय
ु स की झलक नजर आती थी जो समस्त संसार में व्यापक है और उनके ववचार में ऐसी
अपव
ूस शोभा स्वयं एक पववत्र वस्तु थी। दीन, दररि, मख
ू स लोग उसे एक स्वगीयस पदाथस समझते थे। कोई
ककसी रूप में उसकी उपासना करता था, कोई ककसी रूप में । कोई उसे भोग्य समझता था, कोई स्तर्तु य और
कोई पज्
ू य। ककनतु इस परे म, भश्क्त और र्श्द्घा की पात्रा होकर भी वह दःु खी थी, मर्तयु की शंका उसे अब
और भी अगधक होने लगी। ककसी वस्तु से उसे इस शंका से ननववत्त न होती। उसका ववशाल भवन और
उपवन भी, श्जनकी शोभा अकथनीय थी और जो समस्त नगर में जनर्श्ुनत बने हुए थे, उसे आचवस्त करने
में असफल थे।

इस उपवन में ईरान और दहनदस्


ु तान के वक्ष थे, श्जनके लाने और पालने में अपररसमत धन
व्यय हुआ था। उनकी ससंचाई के सलए एक ननमसल जल धारा बहायी गयी थी। समीप ही एक झील बनी
हुई थी। श्जसमें एक कुशल कलाकार के हाथों सजाये हुए स्तम्भगचह्नों और कत्रत्रम पहाड़ियों तक तट पर
की सन
ु दर मनू तसयों का परनतत्रबम्ब ददखाई दे ता था। उपवन के मध्य में 'पररयों का कंु ज' था। यह नाम
इससलए प़िा था कक उस भवन के द्वार पर तीन परू े कद की श्स्त्रयों की मनू तसयां ख़िी थीं। वह सशंक
होकर पीछे ताक रही थीं कक कोई दे खता न हो। मनू तसकार ने उनकी गचतवनों द्वारा मनू तसयों में जान डाल
दी थी। भवन में जो परकाश आता था वह पानी की पतली चादरों से छनकर मद्गधम और रं गीन हो
जाता था। दीवारों पर भांनतभांनत की झालरें , मालाएं और गचत्र लटके हुए थे। बीच में एक हाथीदांत की
परम मनोहर मनू तस थी जो ननससयास ने भें ट की थी। एक नतपाई पर एक काले ष्पााण की बकरी की मनू तस
थी, श्जसकी आंखें नीलम की बनी हुई थीं। उसके थनों को घेरे हुए छः चीनी के बच्चे ख़िे थे, लेककन बकरी
अपने फटे हुए खुर उठाकर ऊपर की पहा़िी पर उचक जाना चाहती थी। फशस पर ईरानी कालीनें त्रबछी हुई
थीं, मसनदों पर कैथे के बने हुए सन
ु हरे बेलबट
ू े थे। सोने के धूपदान से सग
ु श्नधत धुएं उठ रहे थे, और
ब़िेब़िे चीनी गमलों में फूलों से लदे हुए पौधे सजाये हुए थे। ससरे पर, ऊदी छाया में , एक ब़िे दहनदस्
ु तानी
कछुए के सन
ु हरे नख चमक रहे थे जो पेट के बल उलट ददया गया था। यही थायस का शयनागार था।

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इसी कछुए के पेट पर लेटी हुई वह इस सग
ु नध और सजावट और सष
ु मा का आननद उठाती थी, समत्रों से
बातचीत करती थी और या तो असभनयकला का मनन करती थी, या बीते हुए ददनों का।

तीसरा पहर था। थायस पररयों के कंु ज में शयन कर रही थी। उसने आईने में अपने सौनदयस
की अवननत के परथम गचह्न दे खे थे, और उसे इस ववचार से पी़िा हो रही थी कक झरु रस यों और चवेत बालों
का आिमण होने वाला है उसने इस ववचार से अपने को आचवासन दे ने की ववफल चेष्टा की कक मैं
ज़िीबदू टयों के हवन करके मंत्रों द्वारा अपने वणस की कोमलता को कफर से पराप्त कर लग
ंू ी। उसके कानों
में इन शशदों की ननदस य ध्वनन आयी-'थायस, तू बनु य हो जायेगी !' भय से उसके माथे पर ठण्डाठण्डा
पसीना आ गया। तब उसने पन
ु ः अपने को संभालकर आईने में दे खा और उसे ज्ञात हुआ कक मैं अब भी
परम सन
ु दरी और परे यसी बनने के योग्य हूं। उसने पल
ु ककत मन से मस्
ु कराकर मन में कहा-आज भी
इस्कश्निया में काई ऐसी रमणी नहीं है जो अंगों की चपलता और लचक में मझ
ु से टक्कर ले सके। मेरी
बांहों की शोभा अब भी हृदय को खींच सकती है , यथाथस में यही परे म का पाश है !

वह इसी ववचार में मग्न थी कक उसने एक अपररगचत मनष्ु य को अपने सामने आते दे खा।
उसकी आंखों में ज्वाला थी, दाी ो़ बी हुई थी और वस्त्र बहुमक
ू य थे। उसके हाथ में आईना छूटकर गगर प़िा
और वह भय से चीख उठी।

पापनाशी स्तश्म्भत हो गया। उसका अपव


ू स सौनदयस दे खकर उसने शद्
ु ध अनतःकरण से
पराथसना की-भगवान मझ
ु े ऐसी शश्क्त दीश्जए कक इस स्त्री का मख
ु मझ
ु े लशु ध न करे , वरन तेरे इस दास
की परनतज्ञा को और भी दृ ो़ करे ।

तब अपने को संभालकर वह बोला-'थायस, मैं एक दरू दे श में रहता हूं, तेरे सौनदयस की परशंसा सन
ु कर तेरे
पास आया हूं। मैंने सन
ु ा था तम
ु से चतरु असभनेत्री और तम
ु से मग्ु धकर स्त्री संसार में नहीं है । तम्
ु हारे
परे मरहस्यों और तम्
ु हारे धन के ववषय में जो कुछ कहा जाता है वह आचचयसजनक है , और उससे 'रोडोप'
की कथा याद आती है , श्जसकी कीनतस को नील के मांझी ननर्तय गाया करते हैं। इससलए मझ
ु े भी तम्
ु हारे
दशसनों की असभलाषा हुई और अब मैं दे खता हूं कक परर्तयक्ष सन
ु ीसन
ु ाई बातों से कहीं बकर है । श्जतना
मशहूर है उससे तम
ु हजार गन
ु ा चतरु और मोदहनी हो। वास्तव में तम्
ु हारे सामने त्रबना मतवालों की भांनत
डगमगाये आना असम्भव है।'

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यह शशद कत्रत्रम थे, ककनतु योगी ने पववत्र भश्क्त से परभाववत होकर सच्चे जोश से उनका
उच्चारण ककया। थायस ने परसनन होकर इस ववगचत्र पराणी की ओर ताका श्जससे वह पहले भयभीत हो
गयी थी। उसके अभि और उद्दण्ड वेश ने उसे ववश्स्मत कर ददया। उसे अब तक श्जतने मनष्ु य समले थे,
यह उन सबों से ननराला था। उसके मन में ऐसे अद्भत
ु पराणी के जीवनवत्तानत जानने की परबल उर्तकंठा
हुई। उसने उसका मजाक उ़िाते हुए कहा-'महाशय, आप परे मपरदशसन में ब़िे कुशल मालम
ू होते हैं।
होसशयार रदहयेगा कक मेरी गचतबनें आपके हृदय के पार न हो जायें। मेरे परे म के मैदान में जरा संभलकर
कदम रणखयेगा।'

पापनाशी बोला-'थामस, मझ
ु े तम
ु से अगाध परे म है । तम
ु मझ
ु े जीवन और आर्तमा से भी वपरय
हो। तम्
ु हारे सलए मैंने अपना वनयजीवन छो़िा है , तम्
ु हारे सलए मेरे होंठों से, श्जनहोंने मौनवरत धारण ककया
था, अपववत्र शशद ननकले हैं। तम्
ु हारे सलए मैंने वह दे खा जो न दे खना चादहए था, वह सन
ु ा है जो मेरे सलए
वश्जसत था। तम्
ु हारे सलए मेरी आर्तमा त़िप रही है , मेरा हृदय अधीर हो रहा है और जलस्त्रोत की भांनत
ववचार की धाराएं परवादहत हो रही हैं। तम्
ु हारे सलए मैं अपने नंगे पैर सपों और त्रबच्छुओं पर रखते हुए
भी नहीं दहचका हूं। अब तम्
ु हें मालम
ू हो गया होगा कक मझ
ु े तम
ु से ककतना परे म है । लेककन मेरा परे म
उन मनष्ु यों कासा नहीं है जो वासना की अश्ग्न से जलते हुए तम्
ु हारे पास जीवभक्षी व्याघरों की, और
उनमत्त सां़िों की भांनत दौ़िे आते हैं। उनका वही परे म होता है जो ससंह को मगशावक से। उनकी पाशववक
कामसलप्सा तम्
ु हारी आर्तमा को भी भस्मीभत
ू कर डालेगी। मेरा परे म पववत्र है , अननत है , स्थायी है । मैं
तम
ु से ईचवर के नाम पर, सर्तय के नाम पर परे म करता हूं। मेरा हृदय पनततोद्घार और ईचवरीय दया के
भाव से पररपण
ू स है । मैं तम्
ु हें फलों से की हुई शराब की मस्ती से और एक अकपरात्रत्र के सख
ु स्वप्न से
कहीं उत्तम पदाथों का वचन दे ने आया हूं। मैं तम्
ु हें महापरसाद और सध
ु ारसपान का ननमनत्रण दे ने आया
हूं। मैं तम्
ु हें उस आननद का सख
ु संवाद सन
ु ाने आया हूं जो ननर्तय, अमर, अखण्ड है । मर्तयल
ु ोक के पराणी
यदद उसको दे ख लें तो आचचयस से भर जायें।'

थायस ने कुदटल हास्य करके उत्तर ददया-'समत्र, यदद वह ऐसा अद्भत


ु परे म है तो तरु नत ददखा
दो। एक क्षण भी ववलम्ब न करो। लम्बीलम्बी वक्तताओं से मेरे सौनदयस का अपमान होगा। मैं आननद
का स्वाद उठाने के सलए रो रही हूं। ककनतु जो मेरे ददल की बात पछ
ू ो, तो मझ
ु े इस कोरी परशंसा के ससवा
और कुछ हाथ न आयेगा। वादे करना आसान है ; उनहें परू ा करना मश्ु चकल है । सभी मनष्यों में कोईन-कोई
गण
ु ववशेष होता है । ऐसा मालम
ू होता है कक तम
ु वाणी में ननपण
ु हो। तम
ु एक अज्ञात परे म का वचन
दे ते हो। मझ
ु े यह व्यापार करते इतने ददन हो गये और उसका इतना अनभ
ु व हो गया है कक अब उसमें
ककसी नवीनता की ककसी रहस्य की आशा नहीं रही। इस ववषय का ज्ञान परे समयों को दाशसननकों से
अगधक होता है ।'

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'थायस, ददकलगी की बात नहीं है , मैं तम्
ु हारे सलए अछूता परे म लाया हूं।'

'समत्र, तम
ु बहुत दे र में आये। मैं सभी परकार के परे मों का स्वाद ले चक
ु ी हूं।'

'मैं जो परे म लाया हूं, वह उज्ज्वल है , र्श्ेय है ! तम्


ु हें श्जस परे म का अनभ
ु व हुआ है वह ननंद्य और र्तयाज्य
है ।'

थायस ने गवस से गदस न उठाकर कहा-'समत्र, तम


ु मह
ुं फट जान प़िते हो। तम्
ु हें गहस्वासमनी के
परनत मख
ु से ऐसे शशद ननकालने में जरा भी संकोच नहीं होता ? मेरी ओर आंख उठाकर दे खो और तब
बताओ कक मेरा स्वरूप ननश्नदत और पनतत पराणणयों ही कासा है । नहीं, मैं अपने कर्तयों पर लश्ज्जत नहीं
हूं। अनय श्स्त्रयां भी, श्जनका जीवन मेरे ही जैसा है , अपने को नीच और पनतत नहीं समझतीं, यद्यवप,
उनके पास न इतना धन है और न इतना रूप। सख
ु मेरे पैरों के नीचे आंखें त्रबछाये रहता है , इसे सारा
जगत जानता है । मैं संसार के मक
ु ु टधाररयों को पैर की धूसल समझती हूं। उन सबों ने इनहीं पैरों पर शीश
नवाये हैं। आंखें उठाओ। मेरे पैरों की ओर दे खो। लाखों पराणी उनका चम्
ु बन करने के सलए अपने पराण
भें ट कर दें गे। मेरा डीलडौल बहुत ब़िा नहीं है , मेरे सलए पथ्वी पर बहुत स्थान की जरूरत नहीं। जो लोग
मझ
ु े दे वमश्नदर के सशखर पर से दे खते हैं, उनहें मैं बालू के कण के समान दीखती हूं, पर इस कण ने
मनष्ु यों में श्जतनी ईष्यार्, श्जतना द्वेष, श्जतनी ननराशा, श्जतनी असभलाषा और श्जतने पापों का संचार
ककया है उनके बोझ से अटल पवसत भी दब जायेगा। जब मेरी कीनतस समस्त संसार में परसाररत हो रही है
तो तम्
ु हारी लज्जा और ननिा की बात करना पागलपन नहीं तो और क्या है ?'

पापनाशी ने अववचसलत भाव से उत्तर ददया-'सन


ु दरी, यह तम्
ु हारी भल
ू है । मनष्ु य श्जस बात की सराहना
करते हैं वह ईचवर की दृश्ष्ट में पाप है । हमने इतने सभननसभनन दे शों में जनम सलया है कक यदद हमारी
भाषा और ववचार अनरू
ु प न हों तो कोई आचचयस की बात नहीं। लेककन मैं ईचवर को साक्षी दे कर कहता हूं
कक मैं तम्
ु हारे पास से जाना नहीं चाहता। कौन मेरे मख
ु में ऐसे आग्नेय शशदों को परे ररत करे गा जो तम्
ु हें
मोम की भांनत वपघला दें कक मेरी उं गसलयां तम्
ु हें अपनी इच्छा के अनस
ु ार रूप दे सकें ? ओ नारीरर्तन !
यह कौनसी शश्क्त है जो तम्
ु हें मेरे हाथों में सौंप दे गी कक मेरे अनतःकरण में ननदहत सद्परे रणा तम्
ु हारा
पन
ु सरं स्कार करके तम्
ु हें ऐसा नया और पररष्कत सौनदयस परदान करे कक तम
ु आननद से ववह्वल हो
पक
ु ार उठो, मेरा कफर से नया संस्कार हुआ ? कौन मेरे हृदय में उस सध
ु ास्त्रोत को परवादहत करे गा कक

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तम
ु उसमें नहाकर कफर अपनी मौसलक पववत्रता लाभ कर सको ? कौन मझ
ु े मदस न की ननमसल धारा में
पररवनतसत कर दे गा श्जसकी लहरों का स्पशस तम्
ु हें अननत सौनदयस से ववभवू षत कर दे ?'

थायस का िोध शानत हो गया। उसने सोचा-यह परु


ु ष अननत जीवन के रहस्यों में पररगचत है ,
और जो कुछ वह कह सकता है उसमें ऋवषवाक्यों कीसी परनतभा है । यह अवचय कोई कीसमयागर है और
ऐसे गप्ु तमनत्र जानता है जो जीणासवस्था का ननवारण कर सकते हैं। उसने अपनी दे ह को उसकी इच्छाओं
को समवपसत करने का ननचचय कर सलया। वह एक सशंक पक्षी की भांनत कई कदम पीछे हट गयी और
अपने पलंग पट्टी पर बैठकर उसकी परतीक्षा करने लगी। उसकी आंखें झक
ु ी हुई थीं और लम्बी पलकों
की मसलन छाया कपालों पर प़ि रही थी। ऐसा जान प़िता था कक कोई बालक नदी के ककनारे बैठा हुआ
ककसी ववचार में मग्न है ।

ककनतु पापनाशी केवल उसकी ओर टकटकी लगाये ताकता रहा, अपनी जगह से जौ भर भी न दहला।
उसके घट
ु ने थरथरा रहे थे और मालम
ू होता था कक वे उसे संभाल न सकेंगे। उसका तालू सख
ू गया था,
कानों में तीवर भनभनाहट की आवाज आने लगी। अकस्मात उसकी आंखों के सामने अनधकार छा गया,
मानो समस्त भवन मेघाच्छाददत हो गया है । उसे ऐसा भावषत हुआ कक परभु मसीह ने इस स्त्री को
नछपाने के ननसमत्त उसकी आंखों पर परदा डाल ददया है । इस गप्ु त करावलम्ब से आचवस्त और सशक्त
होकर उसने ऐसे गम्भीर भाव से कहा जो ककसी वद्ध तपस्वी के यथायोग्य था-क्या तम
ु समझती हो कक
तम्
ु हारा यह आर्तमहनन ईचवर की ननगाहों से नछपा हुआ है ?'

उसने ससर दहलाकर कहा-'ईचवर ? ईचवर से कौन कहता है कक सदै व पररयों के कंु ज पर आंखें
जमाये रखे ? यदद हमारे काम उसे नहीं भाते तो वह यहां से चला क्यों नहीं जाता ? लेककन हमारे कमस
उसे बरु े लगते ही क्यों हैं ? उसी ने हमारी सश्ष्ट की है । जैसा उसने बनाया है वैसे ही हम हैं। जैसी
ववत्तयां उसने हमें दी हैं उसी के अनस
ु ार हम आचरण करते हैं ! कफर उसे हमसे रुष्ट होने का, अथवा
ववश्स्मत होने का क्या अगधकार है ? उसकी तरफ से लोग बहुतसी मनगनत बातें ककया करते हैं और
उसको ऐसेऐसे ववचारों का र्श्ेय दे ते हैं जो उसके मन में कभी न थे। तम
ु को उसके मन की बातें जानने
का दावा है । तम
ु को उसके चररत्र का यथाथस ज्ञान है । तम
ु कौन हो कक उसके वकील बनकर मझ
ु े ऐसीऐसी
आशाएं ददलाते हो ?'

पापनाशी ने मंगनी के बहुमक


ू य वस्त्र उतारकर नीचे का मोटा कुरता ददखाते हुए कहा-'मैं
धमार्श्सम का योगी हूं। मेरा नाम पापनाशी है । मैं उसी पववत्र तपोभसू म से आ रहा हूं। ईचवर की आज्ञा से

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मैं एकानतसेवन करता हूं। मैंने संसार से और संसार के पराणणयों से मह
ुं मो़ि सलया था। इस पापमय
संसार में ननसलसप्त रहना ही मेरा उद्ददष्ट मागस है । लेककन तेरी मनू तस मेरी शाश्नतकुटीर में आकर मेरे
सम्मख
ु ख़िी हुई और मैंने दे खा कक तू पाप और वासना में सलप्त है , मर्तयु तझ
ु े अपना गरास बनाने को
ख़िी है । मेरी दया जागत हो गयी और तेरा उद्घार करने के सलए आ उपश्स्थत हुआ हूं। मैं तझ
ु े पक
ु ारकर
कहता हूं-थायस, उठ, अब समय नहीं है ।'

योगी के यह शशद सन
ु कर थायस भय से थरथर कांपने लगी। उसका मख
ु र्श्ीहीन हो गया, वह
केश नछटकाये, दोनों हाथ जो़िे रोती और ववलाप करती हुई उसके पैरों पर गगर प़िी और बोली-'महार्तमा
जी, ईचवर के सलए मझ
ु पर दया कीश्जए। आप यहां क्यों आये हैं ? आपकी क्या इच्छा है ? मेरा सवसनाश
न कीश्जए। मैं जानता हूं कक तपोभसू म के ऋवषगण हम जैसी श्स्त्रयों से घणा करते हैं, श्जनका जनम ही
दस
ू रों को परसनन रखने के सलए होता है । मझ
ु े भय हो रहा है कक आप मझ
ु से घणा करते हैं और मेरा
सवसनाश करने पर उद्यत हैं। कपया यहां से ससधाररए। मैं आपकी शश्क्त और ससद्गध के सामने ससर
झुकाती हूं। लेककन आपका मझ
ु पर कोप करना उगचत नहीं है , क्योंकक मैं अनय मनष्ु यों की भांनत आप
लोगों की सभक्षाववत्त और संयम की नननदा नहीं करती। आप भी मेरे भोगववलास को पाप न समणझए। मैं
रूपवती हूं और असभनय करने में चतरु हूं। मेरा काबू न अपनी दशा पर है , और न अपनी परकनत पर। मैं
श्जस काम के योग्य बनायी गयी हूं वही करती हूं। मनष्ु यों की मग्ु ध करने ही के ननसमत्त मेरी सश्ष्ट हुई
है । आप भी तो अभी कह रहे थे कक मैं तम्
ु हें प्यार करता हूं। अपनी ससद्गधयों से मेरा अनप
ु कार न
कीश्जए। ऐसा मनत्र न चलाइए कक मेरा सौनदयस नष्ट हो जाय, या मैं पर्तथर तथा नमक की मनू तस बन
जाऊं। मझ
ु े भयभीत न कीश्जए। मेरे तो पहले ही से पराण सख
ू े हुए हैं। मझ
ु े मौत का मह
ुं न ददखाइए,
मझ
ु े मौत से बहुत डर लगता है ।'

पापनाशी ने उसे उठने का इशारा ककया और बोला-'बच्चा, डर मत। तेरे परनत अपमान या घणा
का शशद भी मेरे मह
ुं से न ननकलेगा। मैं उस महान परु
ु ष की ओर से आया हूं, जो पावपयों को गले
लगाता था, वेचयाओं के घर भोजन करता था, हर्तयारों से परे म करता था, पनततों को सानर्तवना दे ता था। मैं
स्वयं पापमक्
ु त नहीं हूं कक दस
ू रों पर पर्तथर फेंकंू । मैंने ककतनी ही बार उस ववभनू त का दरु
ु पयोग ककया है
जो ईचवर ने मझ
ु े परदान की है । िोध ने मझ
ु े यहां आने पर उर्तसादहत नहीं ककया। मैं दया के वशीभत

होकर आया हूं। मैं ननष्कपट भाव से परे म के शशदों में तझ
ु े आचवासन दे सकता हूं, क्योंकक मेरा पववत्र
धमसस्नेह ही मझ
ु े यहां लाया है । मेरे हृदय में वार्तसकय की अश्ग्न परज्वसलत हो रही है और यदद तेरी
आंखें जो ववषय के स्थूल, अपववत्र दृचयों के वशीभत
ू हो रही हैं, वस्तओ
ु ं को उनके आध्याश्र्तमक रूप में
दे खतीं तो तझ
ु े ववददत होता कक मैं उस जलती हुई झा़िी का एक पकलव हूं जो ईचवर ने अपने परे म का
पररचय दे ने के सलए मस
ू ा को पवसत पर ददखाई थी-जो समस्त संसार में व्याप्त है, और जो वस्तओ
ु ं को

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भस्म कर दे ने के बदले, श्जस वस्तु में परवेश करती है उसे सदा के सलए ननमसल और सग
ु नधमय बना
दे ती है ।'

थायस ने आचवस्त होकर कहा-'महार्तमा जी, अब मझ


ु े आप पर ववचवास हो गया है । मझ
ु े आपसे
ककसी अननष्ट या अमंगल की आशंका नहीं है । मैंने धमार्श्सम के तपश्स्वयों की बहुत चचार सन
ु ी है ।
ऐण्तोनी और पॉल के ववषय में ब़िी अद्भत
ु कथाएं सन
ु ने में आयी हैं। आपके नाम से भी मैं अपररगचत
नहीं हूं और मैंने लोगों को कहते सन
ु ा है कक यद्यवप आपकी उमर अभी कम है , आप धमसननष्ठा में उन
तपश्स्वयों से भी र्श्ेष्ठ हैं श्जनहोंने अपना समस्त जीवन ईचवर आराधना में व्यतीत ककया। यद्यवप मेरा
अपसे पररचय न था, ककनतु आपको दे खते ही मैं समझ गयी कक आप कोई साधारण परु
ु ष नहीं हैं।
बताइये, आप मझ
ु े वह वस्तु परदान कर सकते हैं जो सारे संसार के ससद्ध और साधु, ओझे और सयाने,
कापासलक और वैतासलक नहीं कर सके ? आपके पास मौत की दवा है ? आप मझ
ु े अमर जीवन दे सकते
हैं ? यही सांसाररक इच्छाओं का सप्तम स्वगस है ।'

पापनाशी ने उत्तर ददया-'कासमनी, अमर जीवन लाभ करना परर्तयेक पराणी की इच्छा के अधीन
है । ववषयवासनाओं को र्तयाग दे , जो तेरी आर्तमा का सवसनाश कर रहे हैं। उस शरीर को वपशाचों के पंजे से
छु़िा ले श्जसे ईचवर ने अपने मह
ुं के पानी से साना और अपने चवास से श्जलाया, अनयथा परे त और
वपशाच उसे ब़िी िुरता से जलायेंगे। ननर्तय के ववलास से तेरे जीवन का स्त्रोत क्षीण हो गया है । आ, और
एकानत के पववत्र सागर में उसे कफर परवादहत कर दे । आ, और मरुभसू म में नछपे हुए सोतों का जल सेवन
कर श्जनका उफान स्वगस तक पहुंचता है । ओ गचनताओं में डूबी हुई आर्तमा ! आ, अपनी इश्च्छत वस्तु को
पराप्त कर ! जो आननद की भख
ू ी स्त्री ! आ, और सच्चे आननद का आस्वादन कर। दररिता का, ववराग
का, र्तयाग कर, ईचवर के चरणों में आर्तमसमपसण कर ! आ, ओ स्त्री, जो आज परभु मसीह की िोदहणी है ,
लेककन कल उसको परे यसी होगी। आ, उसका दशसन कर, उसे दे खते ही तू पक
ु ार उठे गी-मझ
ु े परे मधन समल
गया !'

थामस भववष्यगचनतन में खोयी हुई थी। बोली-'महार्तमा, अगर मैं जीवन के सख
ु ों को र्तयाग दं ू और कदठन
तपस्या करुं तो क्या यह सर्तय है कक मैं कफर जनम लग
ंू ी और मेरे सौनदयस को आंच न आयेगी ?'

पापनाशी ने कहा-'थायस, मैं तेरे सलए अननतजीवन का सनदे श लाया हूं। ववचवास कर, मैं जो
कुछ कहता हूं, सवसथा सर्तय है ।'

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थायस-'मझ
ु े उसकी सर्तयता पर ववचवास क्योंकर आये ?'

पापनाशी-'दाऊद और अनय नबी उसकी साक्षी दें गे, तझ


ु े अलौककक दृचय ददखाई दें गे, वह इसका समथसन
करें गे।'

थायस-'योगी जी, आपकी बातों से मझ


ु े बहुत संष्तोा हो रहा है , क्योंकक वास्तव में मझ
ु े इस
संसार में सख
ु नहीं समला। मैं ककसी रानी से कम नहीं हूं, ककनतु कफर भी मेरी दरु ाशाओं और गचनताओं का
अनत नहीं है । मैं जीने से उकता गयी हूं। अनय श्स्त्रयां मझ
ु पर ईष्यार करती हैं, पर मैं कभीकभी उस
दःु ख की मारी, पोपली बनु य पर ईष्यार करती हूं जो शहर के फाटक की छांह में बैठी तलाशे बेचा करती
है । ककतनी ही बार मेरे मन में आया है कक गरीब ही सख
ु ी, सज्जन और सच्चे होते हैं, और दीन, हीन,
ननष्परभ रहने में गचत्त को ब़िी शाश्नत समलती है । आपने मेरी आर्तमा में एक तफ
ू ानसा पैदा कर ददया है
और जो नीचे दबी प़िी थी उसे ऊपर कर ददया है । हां ! मैं ककसका ववचवास करुं ? मेरे जीवन का क्या
अनत होगा-जीवन ही क्या है ?'

पापनाशी ने उसे उठने का इशारा ककया और बोला-'बच्चा, डर मत। तेरे परनत अपमान या
घणा का शशद भी मेरे मह
ंु से न ननकलेगा। मैं उस महान परु
ु ष की ओर से आया हूं, जो पावपयों को गले
लगाता था, वेचयाओं के घर भोजन करता था, हर्तयारों से परे म करता था, पनततों को सानर्तवना दे ता था। मैं
स्वयं पापमक्
ु त नहीं हूं कक दस
ू रों पर पर्तथर फेंकंू । मैंने ककतनी ही बार उस ववभनू त का दरु
ु पयोग ककया है
जो ईचवर ने मझ
ु े परदान की है । िोध ने मझ
ु े यहां आने पर उर्तसादहत नहीं ककया। मैं दया के वशीभत

होकर आया हूं। मैं ननष्कपट भाव से परे म के शशदों में तझ
ु े आचवासन दे सकता हूं, क्योंकक मेरा पववत्र
धमसस्नेह ही मझ
ु े यहां लाया है । मेरे हृदय में वार्तसकय की अश्ग्न परज्वसलत हो रही है और यदद तेरी
आंखें जो ववषय के स्थल
ू , अपववत्र दृचयों के वशीभत
ू हो रही हैं, वस्तओ
ु ं को उनके आध्याश्र्तमक रूप में
दे खतीं तो तझ
ु े ववददत होता कक मैं उस जलती हुई झा़िी का एक पकलव हूं जो ईचवर ने अपने परे म का
पररचय दे ने के सलए मस
ू ा को पवसत पर ददखाई थी-जो समस्त संसार में व्याप्त है, और जो वस्तओ
ु ं को
भस्म कर दे ने के बदले, श्जस वस्तु में परवेश करती है उसे सदा के सलए ननमसल और सग
ु नधमय बना
दे ती है ।'

थायस ने आचवस्त होकर कहा-'महार्तमा जी, अब मझ


ु े आप पर ववचवास हो गया है । मझ
ु े
आपसे ककसी अननष्ट या अमंगल की आशंका नहीं है । मैंने धमार्श्सम के तपश्स्वयों की बहुत चचार सन
ु ी
है । ऐण्तोनी और पॉल के ववषय में ब़िी अद्भत
ु कथाएं सन
ु ने में आयी हैं। आपके नाम से भी मैं

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अपररगचत नहीं हूं और मैंने लोगों को कहते सन
ु ा है कक यद्यवप आपकी उमर अभी कम है , आप
धमसननष्ठा में उन तपश्स्वयों से भी र्श्ेष्ठ हैं श्जनहोंने अपना समस्त जीवन ईचवर आराधना में व्यतीत
ककया। यद्यवप मेरा अपसे पररचय न था, ककनतु आपको दे खते ही मैं समझ गयी कक आप कोई साधारण
परु
ु ष नहीं हैं। बताइये, आप मझ
ु े वह वस्तु परदान कर सकते हैं जो सारे संसार के ससद्ध और साधु, ओझे
और सयाने, कापासलक और वैतासलक नहीं कर सके ? आपके पास मौत की दवा है ? आप मझ
ु े अमर
जीवन दे सकते हैं ? यही सांसाररक इच्छाओं का सप्तम स्वगस है ।'

पापनाशी ने उत्तर ददया-'कासमनी, अमर जीवन लाभ करना परर्तयेक पराणी की इच्छा के
अधीन है । ववषयवासनाओं को र्तयाग दे , जो तेरी आर्तमा का सवसनाश कर रहे हैं। उस शरीर को वपशाचों के
पंजे से छु़िा ले श्जसे ईचवर ने अपने मह
ुं के पानी से साना और अपने चवास से श्जलाया, अनयथा परे त
और वपशाच उसे ब़िी िुरता से जलायेंगे। ननर्तय के ववलास से तेरे जीवन का स्त्रोत क्षीण हो गया है । आ,
और एकानत के पववत्र सागर में उसे कफर परवादहत कर दे । आ, और मरुभसू म में नछपे हुए सोतों का जल
सेवन कर श्जनका उफान स्वगस तक पहुंचता है । ओ गचनताओं में डूबी हुई आर्तमा ! आ, अपनी इश्च्छत
वस्तु को पराप्त कर ! जो आननद की भख
ू ी स्त्री ! आ, और सच्चे आननद का आस्वादन कर। दररिता
का, ववराग का, र्तयाग कर, ईचवर के चरणों में आर्तमसमपसण कर ! आ, ओ स्त्री, जो आज परभु मसीह की
िोदहणी है , लेककन कल उसको परे यसी होगी। आ, उसका दशसन कर, उसे दे खते ही तू पक
ु ार उठे गी-मझ
ु े
परे मधन समल गया !'

थामस भववष्यगचनतन में खोयी हुई थी। बोली-'महार्तमा, अगर मैं जीवन के सख
ु ों को र्तयाग दं ू और कदठन
तपस्या करुं तो क्या यह सर्तय है कक मैं कफर जनम लग
ूं ी और मेरे सौनदयस को आंच न आयेगी ?'

पापनाशी ने कहा-'थायस, मैं तेरे सलए अननतजीवन का सनदे श लाया हूं। ववचवास कर, मैं जो कुछ कहता
हूं, सवसथा सर्तय है ।'

थायस-'मझ
ु े उसकी सर्तयता पर ववचवास क्योंकर आये ?'

पापनाशी-'दाऊद और अनय नबी उसकी साक्षी दें गे, तझ


ु े अलौककक दृचय ददखाई दें गे, वह इसका समथसन
करें गे।'

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थायस-'योगी जी, आपकी बातों से मझ
ु े बहुत संष्तोा हो रहा है , क्योंकक वास्तव में मझ
ु े इस
संसार में सख
ु नहीं समला। मैं ककसी रानी से कम नहीं हूं, ककनतु कफर भी मेरी दरु ाशाओं और गचनताओं का
अनत नहीं है । मैं जीने से उकता गयी हूं। अनय श्स्त्रयां मझ
ु पर ईष्यार करती हैं, पर मैं कभीकभी उस
दःु ख की मारी, पोपली बनु य पर ईष्यार करती हूं जो शहर के फाटक की छांह में बैठी तलाशे बेचा करती
है । ककतनी ही बार मेरे मन में आया है कक गरीब ही सख
ु ी, सज्जन और सच्चे होते हैं, और दीन, हीन,
ननष्परभ रहने में गचत्त को ब़िी शाश्नत समलती है । आपने मेरी आर्तमा में एक तफ
ू ानसा पैदा कर ददया है
और जो नीचे दबी प़िी थी उसे ऊपर कर ददया है । हां ! मैं ककसका ववचवास करुं ? मेरे जीवन का क्या
अनत होगा-जीवन ही क्या है ?'

वह यह बातें कर रही थी कक पापनाशी के मख


ु पर तेज छा गया, सारा मख
ु मंडल आदद
ज्योनत से चमक उठा, उसके मह
ुं से यह परनतभाशाली वाक्य ननकले-'कासमनी, सन
ु , मैंने जब इस घर में
कदम रखा तो मैं अकेला न था। मेरे साथ कोई और भी था और वह अब भी मेरे बगल में ख़िा है । तू
अभी उसे नहीं दे ख सकती, क्योंकक तेरी आंखों में इतनी शश्क्त नहीं है । लेककन शीघर ही स्वगीयस परनतभा
से तू उसे आलोककत दे खेगी और तेरे मह
ुं से आपही-आप ननकल प़िेगा-यही मेरा आराध्य दे व है । तन
ू े
अभी उसकी आलौककक शश्क्त दे खी ! अगर उसने मेरी आंखों के सामने अपने दयालु हाथ न फैला ददये
होते तो अब तक मैं तेरे साथ पापाचरण कर चुका होता; क्योंकक स्वतः मैं अर्तयनत दब
ु ल
स और पापी हूं।
लेककन उसने हम दोनों की रक्षा की। वह श्जतना ही शश्क्तशाली है उतना ही दयालु है और उसका नाम है
मश्ु क्तदाता। दाऊद और अनय नत्रबयों ने उसके आने की खबर दी थी, चरवाहों और ज्योनतवषयों ने दहंडोले
में उसके सामने शीश झुकाया था। फरीससयों ने उसे सलीब पर चाया, कफर वह उठकर स्वगस को चला
गया। तझ
ु े मर्तयु से इतना सशंक दे खकर वह स्वयं तेरे घर आया है कक तझ
ु े मर्तयु से बचा ले। परभु
मसीह ! क्या इस समय तम
ु यहां उपश्स्थत नहीं हो, उसी रूप में जो तम
ु ने गैसलली के ननवाससयों को
ददखाया था। ककतना ववगचत्र समय था बैतल
ु हम के बालक तारागण को हाथ में लेकर खेलते थे जो उस
समय धरती के ननकट ही श्स्थत थे। परभु मसीह, क्या यह सर्तय नहीं है कक तम
ु इस समय यहां
उपश्स्थत हो और मैं तम्
ु हारी पववत्र दे ह को परर्तयक्ष दे ख रहा हूं ? क्या तेरी दयालु कोमल मख
ु ारत्रबनद यहां
नहीं है ? और क्या वह आंसू जो तेरे गालों पर बह रहे हैं, परर्तयक्ष आंसू नहीं हैं ? हां, ईचवरीय नयाय का
कत्तास उन मोनतयों के सलए हाथ रोपे ख़िा है और उनहीं मोनतयों से थायस की आर्तमा की मश्ु क्त होगी।
परभु मसीह, क्या तू बोलने के सलए होंठ नहीं खोले हुए है ? बोल, मैं सन
ु रहा हूं ! और थायस, सल
ु क्षण
थायस सन
ु , परभु मसीह तझ
ु से क्या कह रहे हैं-ऐ मेरी भटकी हुई मेषसन
ु दरी, मैं बहुत ददनों से तेरी खोज
में हूं। अनत में मैं तझ
ु े पा गया। अब कफर मेरे पास से न भागना। आ, मैं तेरा हाथ पक़ि लूं और अपने
कनधों पर त्रबठाकर स्वगस के बा़िे में ले चल।ूं आ मेरी थायस, मेरी वपरयतमा, आ ! और मेरे साथ रो।'

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यह कहतेकहते पापनाशी भश्क्त से ववह्वल होकर जमीन पर घट
ु नों के बल बैठ गया। उसकी आंखों से
आर्तमोकलास की ज्योनतरे खाएं ननकलने लगीं। और थायस को उसके चेहरे पर जीतेजागते मसीह का स्वरूप
ददखाई ददया।

वह करुण िंदन करती हुई बोली-'ओ मेरी बीती हुई बाकयावस्था, ओ मेरे दयालु वपता अहमद ! ओ सनत
गथयोडोर, मैं क्यों न तेरी गोद में उसी समय मर गयी जब तू अरुणोदय के समय मझ
ु े अपनी चादर में
लपेटे सलये आता था और मेरे शरीर से वपनतस्मा के पववत्र जल की बद
ंू ें टपक रही थीं।'

पापनाशी यह सन
ु कर चौंक प़िा मानो कोई अलौककक घटना हो गयी है और दोनों हाथ फैलाये
हुए थायस की ओर यह कहते हुए बा-'भगवान ्, तेरी मदहमा अपार है । क्या तू बपनतस्मा के जल से
प्लाववत हो चुकी है ? हे परमवपता, भक्तवर्तसल परभ,ु ओ बद्
ु गध के अगाध सागर ! अब मझ
ु े मालम
ू हुआ
कक वह कौनसी शश्क्त थी जो मझ
ु े तेरे पास खींचकर लायी। अब मझ
ु े ज्ञात हुआ कक वह कौनसा रहस्य
था श्जसने तझ
ु े मेरी दृश्ष्ट में इतना सन
ु दर, इतना गचत्ताकषसक बना ददया था। अब मझ
ु े मालम
ू हुआ कक मैं
तेरे परे मपाश में क्यों इस भांनत जक़ि गया था कक अपना शाश्नतवास छो़िने पर वववश हुआ। इसी
बपनतस्माजल की मदहमा थी श्जसने मझ
ु े ईचवर के द्वार को छु़िाकर मझ
ु े खोजने के सलए इस ववषाक्त
वायु से भरे हुए संसार में आने पर बाध्य ककया जहां मायामोह में फंसे हुए लोग अपना कलवु षत जीवन
व्यतीत करते हैं। उस पववत्र जल की एक बद
ूं -केवल एक ही बद
ूं मेरे मख
ु पर नछ़िक दी गयी है श्जसमें
तन
ू े स्नान ककया था। आ, मेरी प्यारी बदहन, आ, और अपने भाई के गले लग जा श्जसका हृदय तेरा
असभवादन करने के सलए त़िप रहा है ।'

यह कहकर पापनाशी ने बारांगना के सन


ु दर ललाट को अपने होंठों से स्पशस ककया।

इसके बाद वह चुप हो गया कक ईचवर स्वयं मधुर, सांर्तवनापरद शशदों में थायस को अपनी दयालत
ु ा का
ववचवास ददलाये। और 'पररयों के रमणीक कंु ज' में थायस की सससककयों के ससवा, जो जलधारा की कलकल
ध्वनन से समल गयी थीं, और कुछ न सन
ु ाई ददया।

वह इसी भांनत दे र तक रोती रही। अर्श्ुपरवाह को रोकने का परयर्तन उसने न ककया। यहां तक कक उसके
हशशी गल
ु ाम सन
ु दर वस्त्र; फूलों के हार और भांनतभांनत के इत्र सलये आ पहुंचे।

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उसने मस्
ु कराने की चेष्टा करके कहा-'अरे रोने का समय त्रबककुल नहीं रहा। आंसओ
ु ं से आंखें
लाल हो जाती हैं, और उनमें गचत्त को ववकल करने वाला पष्ु प ववकास नहीं रहता, चेहरे का रं ग फीका प़ि
जाता है , वणस की कोमलता नष्ट हो जाती है । मझ
ु े आज कई रससक समत्रों के साथ भोजन करना है । मैं
चाहती हूं कक मेरी मख
ु चनि सोलहों कला से चमके, क्योंकक वहां कई ऐसी श्स्त्रयां आयेंगी जो मेरे मख
ु पर
गचनता या ग्लानन के गचह्न को तरु नत भांप जायेंगी और मन में परसनन होंगी कक अब इनका सौनदयस
थो़िे ही ददनों का और मेहमान है , नानयका अब परौा ो़ हुआ चाहती है । ये गल
ु ाम मेरा शग
ं ार करने आये हैं।
पज्
ू य वपता आप कपया दस
ू रे कमरे में जा बैदठए और इन दोनों को अपना काम करने दीश्जए। यह अपने
काम में ब़िे परवीण और कुशल हैं। मैं उनहें यथेष्ट परु स्कार दे ती हूं। वह जो सोने की अंगदू ठयां पहने हैं
और श्जनके मोती केसे दांत चमक रहे हैं, उसे मैंने परधानमनत्री की पर्तनी से सलया है ।'

पापनाशी की पहले तो यह इच्छा हुई कक थायस को इस भोज में सश्म्मसलत होने से यथाशश्क्त रोके। पर
पन
ु ः ववचार ककया तो ववददत हुआ कक यह उतावली का समय नहीं है । वषों का जमा हुआ मनोमासलनय
एक रग़ि से नहीं दरू हो सकता। रोग का मल
ू नाश शनै:शनै:, िमिम से ही होगा। इससलए उसने
धमोर्तसासह के बदले बद्
ु गधमत्ता से काम लेने का ननचचय ककया और पछ
ू ा-वाह ककनककन मनष्ु यों से भेंट
होगी ?

उसने उत्तर ददया-'पहले तो वयोवद्ध कोटा से भें ट होगी जो यहां के जलसेना के सेनापनत हैं।
उनहीं ने यह दावत दी है । ननससयास और अनय दाशसननक भी आयेंगे श्जनहें ककसी ववषय की मीमांसा करने
ही में सबसे अगधक आननद पराप्त होता है । इनके अनतररक्त कववसमाजभष
ू ण कसलिानत, और दे वमश्नदर
के अध्यक्ष भी आयेंगे। कई यव
ु क होंगे श्जनको घो़िे ननकालने ही में परम आननद आता है और कई
श्स्त्रयां समलेंगी श्जनके ववषय में इसके ससवाय और कुछ नहीं कहा जा सकता कक वे यव
ु नतयां हैं।'

पापनाशी ने ऐसी उर्तसक


ु ता से जाने की सम्मनत दी मानो उसे आकाशवाणी हुई है । बोला-'तो
अवचय जाओ थायस, अवचय जाओ। मैं तम्
ु हें सहषस आज्ञा दे ता हूं। लेककन मैं तेरा साथ न छोडूग
ं ा। मैं भी
इस दावत में तम्
ु हारे साथ चलग
ंू ा। इतना जानता हूं कक कहां बोलना और कहां चप
ु रहना चादहए। मेरे
साथ रहने से तम्
ु हें कोई असवु वधा अथवा झेंप न होगी।'

दोनों गल
ु ाम अभी उसको आभष
ू ण पहना ही रहे थे कक थायस णखलणखलाकर हं स प़िी और बोली-'वह
धमार्श्सम के एक तपस्वी को मेरे परे समयों में दे खकर कहें गे ?'

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अध्याय 3
जब थायस ने पापनाशी के साथ भोजशाला में पदापसण ककया तो मेहमान लोग पहले ही से आ चुके थे।
वह गद्दे दार कुरससयों पर तककया लगाये, एक अद्सधचनिाकार मेज के सामने बैठे हुए थे। मेज पर
सोनेचांदी के बरतन जगमगा रहे थे। मेज के बीच में एक चांदी का थाल था श्जसके चारों पायों की जगह
चार पररयां बनी हुई थीं जो कराबों में से एक परकार का ससरका उं ़िेलउं ़िेलकर तली हुई मछसलयों को
उनमें तैरा रही थीं। थायस के अनदर कदम रखते ही मेहमानों ने उच्चस्वर से उसकी अभ्यथसना की।

एक ने कहा-सक्ष्
ू म कलाओं की दे वी को नमस्कार !

दस
ू रा बोला-उस दे वी को नमस्कार जो अपनी मख
ु ाकनत से मन के समस्त भावों को परकट कर सकती
है ।

तीसरा बोला-दे वता और मनष्ु य की ला़िली को सादर परणाम !

चौथे ने कहा-उसको नमस्कार श्जसकी सभी आकांक्षा करते हैं !

पांचवां बोला-उसको नमस्कार श्जसकी आंखों में ववष है और उसका उतार भी।

छठा बोला-स्वगस के मोती को नमस्कार !

सातवां बोला-इस्कश्निया के गल
ु ाब को नमस्कार !

थायस मन में झुंझला रही थी कक असभवादनों का यह परवाह कब शानत होता है । जब लोग चप


ु हुए तो
उसने गहस्वामी कोटा से कहा-'लसू शयस, मैं आज तम्
ु हारे पास एक मरुस्थलननवासी तपस्वी लायी हूं जो
धमार्श्सम के अध्यक्ष हैं। इनका नाम पापनाशी है । यह एक ससद्धपरु
ु ष हैं श्जनके शशद अश्ग्न की भांनत
उद्दीपक होते हैं।'

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लसू शयस ऑरे सलयस कोटा ने, जो जलसेना का सेनापनत था, ख़िे होकर पापनाशी का सम्मान ककया और
बोला-'ईसाई धमस के अनग
ु ामी संत पापनाशी का मैं हृदय से स्वागत करता हूं। मैं स्वयं उस मत का
सम्मान करता हूं जो अब सामराज्यव्यापी हो गया है । र्श्द्धेय महाराज कॉनसटै नटाइन ने तम्
ु हारे
सहधसमसयों को सामराज्य के शभ
ु ेच्छकों की परथम र्श्ेणी में स्थान परदान ककया है । लेदटन जानत की
उदारता का कत्तसव्य है कक वह तम्
ु हारे परभु मसीह को अपने दे वमश्नदर में परनतष्ठत करे । हमारे परु खों का
कथन था कक परर्तयेक दे वता में कुछन-कुछ अंश ईचवर का अवचय होता है । लेककन यह इन बातों का
समय नहीं है । आओ, प्याले उठायें और जीवन का सख
ु भोगें । इसके सवा और सब समथ्या है ।'

वयोवद्ध कोटा ब़िी गम्भीरता से बोलते थे। उनहोंने आज एक नये परकार की नौका का नमन
ू ा सोचा था
और अपने 'काथेज जानत का इनतहास' का छठवां भाग समाप्त ककया था। उनहें संष्तोा था कक आज का
ददन सफल हुआ, इससलए वह बहुत परसनन थे।

एक क्षण के उपरानत वह पापनाशी से कफर बोले-'सनत पापनाशी, यहां तम्


ु हें कई सज्जन बैठे ददखाई दे रहे
हैं श्जनका सर्तसंग ब़िे सौभाग्य से पराप्त होता है -यह सरापीज मश्नदर के अध्यक्ष हरमोडोरस हैं; यह तीनों
दशसन के ज्ञाता ननससयास, डोररयन और जेनी हैं; यह कवव कसलिानत हैं, यह दोनों यव
ु क चेररया और
अररस्टो परु ाने समत्रों के पत्र
ु हैं और उनके ननकट दोनों रमणणयां कफसलना और ड्रोससया हैं श्जनकी रूपछवव
पर हृदय मग्ु ध हो जाता है ।'

ननससयास ने पापनाशी से श्आंलगन ककया और उसके कान में बोला-'बनधुवर मैंने तम्
ु हें पहले ही सचेत
कर ददया था कक बीनस (शग
ं ार की दे वी-यन
ू ान के लोग शि
ु को वीनस कहते थे) ब़िी बलवती है । यह
उसी की शश्क्त है जो तम्
ु हंेेें इच्छा न रहने पर भी यहां खींच लायी है । सन
ु ो, तम
ु वीनस के आगे ससर
न झुकाओगे, उसे सब दे वताओं की माता न स्वीकार करोगे, तो तम्
ु हारा पतन ननश्चचत है । तम
ु उसकी
अवहे लना करके सख
ु ी नहीं रह सकते। तम्
ु हें ज्ञात नहीं है कक गणणतशास्त्र के उद्भट ज्ञाता समलानथस का
कथन था मैं वीनस की सहायता के त्रबना त्रत्रभज
ु ों की व्याख्या भी नहीं कर सकता।'

डोररयन, जो कई पल तक इस नये आगनतक


ु की ओर ध्यान से दे खता रहा था, सहसा तासलयां बजाकर
बोला-'यह वही हैं, समत्रो, यह वही महार्तमा हैं। इनका चेहरा इनकी दाी,ो़ इनके वस्त्र वही हैं। इसमें लेशमात्र
भी संदेह नहीं। मेरी इनसे नाट्यशाला में भें ट हुई थी जब हमारी थायस असभनय कर रही थी। मैं शतस
बदकर कह सकता हूं कक इनहें उस समय ब़िा िोध आ गया था, और उस आवेश में इनके मह
ुं में उद्दण्ड

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शशदों का परवाहसा आ गया था। यह धमार्तमास परु
ु ष हैं, पर हम सबों को आ़िे हाथों लेंगे। इनकी वाणी में
ब़िा तेज और ववलक्षण परनतभा है । यदद माकसस* ईसाईयों का प्लेटो** है तो पापनाशी ननसनदे ह
डेमॉश्स्थनीज*** है ।'

ककनतु कफसलना और ड्रोससया की टकटकी थायस पर लगी हुई थी, मानो वे उसका भक्षण कर लेंगी। उसने
अपने केशों में बनशे के पीलेपीले फूलों का हार गथ
ंू ा था, श्जसका परर्तयेक फूल उसकी आंखों की हककी
आभा की सच
ू ना दे ता था। इस भांनत के फूल तो उसकी कोमल गचतवनों के सदृश थीं। इस रमणी की
छवव में यही ववशेषता थी। इसकी दे ह पर परर्तयेक वस्तु णखल उठती थी। सजीव हो जाती थी। उसके
चांदी के तारों से सजी हुई पेशवाज के पांयचे फशस पर लहराते थे। उसके हाथों में न कंगन थे, न गले में
हार। इस आभष
ू णहीन छवव में ज्योर्तस्ना की म्लान शोभा थी, एक मनोहर उदासी, जो कत्रत्रम बनावसंवार
से अगधक गचत्ताकषसक होती है ! उसके सौनदयस का मख
ु आधार उसकी दो खुली हुई नमस, कोमल, गोरीगोरी
बांहें थी। कफसलना और ड्रोससया को भी वववश होकर थायस के जू़िे और पेशवाज की परशंसा करनी प़िी,
यद्यवप उनहोंने थायस से इस ववषय में कुछ नहीं कहा।

कफसलना ने थायस से कहा-'तम्


ु हारी रूपशोभा ककतनी अद्भत
ु है ! जब तम
ु पहलेपहल इस्कश्निया आयी
थीं, उस समय भी तम
ु इससे अगधक सन
ु दर न रही होगी। मेरी माता को तम्
ु हारी उस समय की सरू त याद
है । यह कहती है कक उस समय समस्त नगर में तम्
ु हारे जो़ि की एक भी रमणी न थी। तम्
ु हारा सौनदयस
अतल
ु नीय था।'

ड्रोससया ने मस्
ु कराकर पछ
ू ा-'तम्
ु हारे साथ यह कौन नया परे मी आया है ? ब़िा ववगचत्र, भयंकर रूप है । अगर
हागथयों के चरवाहे होते हैं तो इस परु
ु ष की सरू त अवचय उनसे समलती होगी। सच बताना बहन, यह
वनमानस
ु तम्
ु हें कहां समल गया ? क्या यह उन जनतओ
ु ं में तो नहीं है जो रसातल में रहते हैं और वहां के
धम
ू र परकाश से काले हो जाते हैं।'

लेककन कफसलना ने ड्रोससया के होंठों पर उं गली रख दी और बोली-'चुप ! परणय के रहस्य अभेद्य होते हैं
और उनकी खोज करना वश्जसत है । लेककन मझ
ु से कोई पछ
ू े तो मैं इस अद्भत
ु मनष्ु य के होठों की अपेक्षा,
एटना के जलते हुए, अश्ग्नपरसारक मख
ु से चुश्म्बत होना अगधक पसनद करुं गी। लेककन बहन, इस ववषय
में तम्
ु हारा कोई वश नहीं। तम
ु दे ववयों की भांनत रूपगण
ु शील और कोमल हृदय हो, और दे ववयों ही की
भांनत तम्
ु हें छोटे ब़िे, भलेबरु े , सभी का मन रखना प़िता है , सभी के आंसू पोंछने प़िते हैं। हमारी तरह केवल
सन
ु दर सक
ु ु मार ही की याचना स्वीकार करने से तम्
ु हारा यह लोकसम्मान कैसे होगा ?'

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थायस ने कहा-'तम
ु दोनों जरा मह
ंु संभाल कर बातें करो। यह ससद्ध और चमर्तकारी परु
ु ष है । कानों में
कहीं कई बातें ही नहीं, मनोगत ववचारों को भी जान लेता है । कहीं उसे िोध आ गया तो सोते में हृदय
को चीर ननकालेगा और उसके स्थान पर एक स्पंज रख दे गा, दस
ू रे ददन जब तम
ु पानी वपयोगी तो दम
घट
ु ने से मर जाओगी।'

थायस ने दे खा कक दोनों यव
ु नतयों के मख
ु वणसहीन हो गये हैं जैसे उ़िा हुआ रं ग। तब वह उनहें इसी दशा
में छो़िकर पापनाशी के समीप एक कुसीर पर जा बैठी सहसा कोटा की मद,ु पर गवस से भरी हुई
कण्ठध्वनन कनफुसककयों के ऊपर सन
ु ाई दी-

'समत्रो, आप लोग अपनेअपने स्थानों पर बैठ जायें। ओ गल


ु ामो ! वह शराब लाओ श्जसमें शहद समली है ।'

तब भरा हुआ प्याला हाथ में लेकर वह बोला-'पहले दे वतक


ु य समराट और सामराज्य के कणसधार समराट
कानसटै नटाइन की शभ
ु ेच्छा का प्याला वपयो। दे श का स्थान सवोपसरर है , दे वताओं से भी उच्च, क्योंकक
दे वता भी इसी के उदर में अवतररत होते हैं।'

सब मेहमानों ने भरे हुए प्याले होंठों से लगाये; केवल पापनाशी ने न वपया, क्योंकक कानसटै नटाइन ने
ईसाई सम्परदाय पर अर्तयाचार ककये थे, इससल भी कक ईसाई मत मत्र्यलोक में अपने स्वदे श का अश्स्तर्तव
नहीं मानता।

डोररयन ने प्याला खाली करके कहा-'दे श का इतना सम्मान क्यों ? दे श है क्या ? एक बहती हुई नदी।
ककनारे बदलते रहते हैं और जल में ननत नयी तरं गें उठती रहती हैं।

जलसेनानायक ने उत्तर ददया-'डोररयन, मझ


ु े मालम
ू है कक तम
ु नागररक ववषयों की परवाह नहीं करते और
तम्
ु हारा ववचार है कक ज्ञाननयों को इन वस्तओ
ु ं से अलगअलग रहना चादहए। इसके परनतकूल मेरा ववचार
है कक एक सर्तयवादी परु
ु ष के सलए सबसे महान इच्छा यही होनी चादहए कक वह सामराज्य में ककसी पद
पर अगधश्ष्ठत हो। सामराजय एक महर्तवशाली वस्तु है ।'

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दे वालय के अध्यक्ष हरमोडोरस ने उत्तर ददया-'डोररयन महाशय ने श्जज्ञासा की

है कक स्वदे श क्या है ? मेरा उत्तर है कक दे वताओं की बसलवेदी और वपतरों के समागधस्तप


ू ही स्वदे श के
पयापस हैं। नागररकता समनतयों और आशाओं के समावेश से उर्तपनन होती है ।'

यवु क एररस्टोबोलस ने बात काटते हुए कहा-'भाई, ईचवर जानता है , आज मैंने एक सन ु दर घो़िा दे खा।
डेमोफून का था। उननत मस्तक है , छोटा मह
ुं और सदृ ु ो़ टांगें। ऐसा गदस न उठाकर अलबेली चाल से चलता
है जैसे मग
ु ार्।'

लेककन चेररयास ने ससर दहलाकर शंका की-'ऐसा अच्छा घो़िा तो नहीं है । एररस्टोबोलस, जैसा तम
ु बतलाते
हो। उसके सम
ु पतले हैं और गामगचयां बहुत छोटी हैं। चाल का सच्चा नहीं, जकद ही सम
ु लेने लगेगा,
लंग़िे हो जाने का भय है ।'

यह दोनों यही वववाद कर रहे थे। कक ड्रोससया ने जोर से चीर्तकार ककया। उसकी आंखों में पानी भर आया,
और वह जोर से खांसकर बोली-'कुशल हुई नहीं तो यह मछली का कांटा ननगल गयी थी। दे खो सलाई के
बराबर है और उससे भी कहीं तेज। वह तो कहो, मैंने जकदी से उं गली डालकर ननकाल ददया। दे वताओं की
मझ
ु पर दया है । वह मझ
ु े अवचय प्यार करते हैं।'

ननससयास ने मस्
ु कराकर कहा-'ड्रोससया, तम
ु ने क्या कहा कक दे वगण तम्
ु हें प्यार करते हैं। तब तो वह
मनष्ु यों ही की भांनत सख
ु दख
ु का अनभ
ु व कर सकते होंगे। यह ननववसवाद है कक परे म से पीड़ित मनष्ु य को
कष्टों का सामना अवचय करना प़िता है , और उसके वशीभत
ू हो जाना मानससक दब
ु ल
स ता का गचह्न है ।
ड्रोससया के परनत दे वगणों को जो परे म है , इससे उनकी दोषपण
ू त
स ा ससद्ध होती है ।'

ड्रोससया यह व्याख्या सन
ु कर त्रबग़ि गयी और बोली-'ननससयास, तम्
ु हारा तकस सवसथा अनगसल और तत्त्वहीन
है । लेककन वह तो तम्
ु हारा स्वभाव ही है । तम
ु बात तो समझते नहीं, ईचवर ने इतनी बद्
ु गध ही नहीं दी,
और ननरथसक शशदों में उत्तर दे ने की चेष्टा करते हो।'

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ननससयास मस्
ु कराया-'हां, हां, ड्रोससया, बातें ककये जाओ चाहे वह गासलयां ही क्यों न हों। जबजब तम्
ु हारा मह
ुं
खुलता है , हमारे नेत्र तप्त हो जाते हैं। तम्
ु हारे दांतों की बत्तीसी ककतनी सन
ु दर है -जैसे मोनतयों की माला !'

इतने में एक वद्ध परु


ु ष, श्जसकी सरू त से ववचारशीलता झलकती थी और जो वेशवस्त्र से बहुत
सव्ु यवश्स्थत न जान प़िता था, मश्स्तष्क गवस से उठाये मनदगनत से चलता हुआ कमरे में आया। कोटा ने
अपने ही गद्दे पर उसे बैठने का संकेत ककया और बोला- 'यि
ू ाइटीज, तम
ु खब
ू आये। तम्
ु हें यहां दे खकर
गचत्तबहुत परसनन हुआ। इस मास में तम
ु ने दशसन पर कोई नया गरनथ सलखा ? अगर मेरी गणना गलत
नहीं है तो यह इस ववषय का 92वां ननबनध है जो तम्
ु हारी लेखनी से ननकला है । तम्
ु हारी नरकट की
कलम में ब़िी परनतभा है । तम
ु ने यन
ू ान को भी मात कर ददया।'

यि
ू ाइटीज ने अपनी चवेत दाी ो़ पर हाथ फेरकर कहा-'बल
ु बल
ु का जनम गाने के सलए हुआ है । मेरा जनम
दे वताओं की स्तनु त के सलए, मेरे जीवन का यही उद्दे चय है ।'

डोररयन-'हम यि
ू ाइटीज को ब़िे आदर के साथ नमस्कार करते हैं, जो ववरागवाददयों में जब अकेले ही बच
रहे हैं। हमारे बीच में वह ककसी ददव्य परु
ु ष की परनतभा की भांनत गम्भीर, परौ, ो़ चवेत ख़िे हैं। उनके सलए
मेला भी ननजसन, शानत स्थान है और उनके मख
ु से जो शशद ननकलते हैं वह ककसी के कानों में नहीं
प़िते।'

यि
ू ाइटीज-'डोररयन, यह तम्
ु हारा भरम है । सर्तय वववेचन अभी संसार से लप्ु त नहीं हुआ है । इस्कश्निया,
रोम, कुस्तन
ु तनु नया आदद स्थानों में मेरे ककतने ही अनय
ु ायी हैं। गल
ु ामों की एक ब़िी संख्या और कैसर के
कई भतीजों ने अब यह अनभ
ु व कर सलया है कक इश्नियों का क्योंकर दमन ककया जा सकता है , स्वच्छनद
जीवन कैसे उपलशध हो सकता है ? वह सांसाररक ववषयों से ननसलसप्त रहते हैं, और असीम आननद उठाते
हैं। उनमें से कई मनष्ु यों ने अपने सर्तकमों द्वारा एवपक्टीटस और माकसस ऑरे सलयस का पन
ु ः संस्कार
कर ददया है । लेककन अगर यही सर्तय हो कक संसार से सर्तकमस सदै व के सलए उठ गया, तो इस क्षनत से
मेरे आननद में क्या बाधा हो सकती है , क्योंकक मझ
ु े इसकी परवाह नहीं है कक संसार में सर्तकमस है या उठ
गया। डोररयन, अपने आननद को अपने अधीन न रखना मख
ू ों और मनदबद्
ु गध वालों का काम है । मझ
ु े
ऐसी ककसी वस्तु की इच्छा नहीं है जो ववधाता की इच्छा के अनक
ु ू ल है । इस ववगध से मैं अपने को उनसे
असभनन बना लेता हूं और उनके ननभरानतस सनटोष में सहभागी हो जाता हूं। अगर सर्तकमों का पतन हो
रहा है तो हो, मैं परसनन हूं, मझ
ु े कोई आपवत्त नहीं। यह ननरापवत्त मेरे गचत्त आननद से भर दे ती है , क्योंकक
यह मेरे तकस या साहस की परमोज्ज्वल कीनतस है । परर्तयेक ववषय में मेरी बद्
ु गध दे वबद्
ु गध का अनस
ु रण

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करती है , और नकल असल से कहीं मक
ू यवान होती है । वह अववर्श्ानत सश्च्चनता और सदद्
ु योग का फल
होती है ।'

ननससयास-'आपका आशय समझ गया। आप अपने को ईचवर इच्छा के अनरू


ु प बनाते हैं। लेककन अगर
उद्योग ही से सब कुछ हो सकता है , अगर लगन ही मनष्ु य को ईचवरतक
ु य बना सकती, और साधनों से
ही आर्तमा परमार्तमा में ववलीन होती है , तो उस मेंक ने, जो अपने को फुलाकर बैल बना लेना चाहता था,
ननस्सनदे ह वैराग्य का सवसर्श्ेष्ठ ससद्घानत चररताथस कर ददया।'

यि
ु ाइटीज-'ननससयास, तम
ु मसखरापन करते हो। इसके ससवा तम्
ु हें और कुछ नहीं आता। लेककन जैसा तम

कहते हो वही सही। अगर वह बैल श्जसको तम
ु ने उकलेख ककया है वास्तव में एवपस* की भांनत दे वता है
या उस पाताललोक के बैल के सदृश है श्जसके मश्नदर** के अध्यक्ष को हम यहां बैठे हुए दे ख रहे हैं।
और उस मेक ने सद्पररे णा से अपने को उस बैल के समतक
ु य बना सलया, तो क्या वह बैल से अगधक
र्श्ेष्ठ नहीं है ? यह सम्भव है कक तम
ु उस ननहें से पशु के साहस और परात्र्कम की परशंसा न करो।'

चार सेवकों ने एक जंगली सअ


ु र, श्जसके अभी तक बाल भी अलग नहीं ककये गये थे, लाकर मेज पर रखा।
चार छोटे छोटे सअ
ु र जो मैदे के बने थे, मानो उसका दध
ू पीने के सलए उर्तसक
ु हैं। इससे परकट होता था
कक सअ
ु र मादा है ।

जेनाथेमीज ने पापनाशी की ओर दे खकर कहा-'समत्रो, हमारी सभा को आज एक नये मेहमान ने अपनी


चरणों से पववत्र ककया है । र्श्द्धेय सनत पापनाशी, जो मरुस्थल में एकानतननवासी और तपस्या करते हैं,
आज संयोग से हमारे मेहमान हो गये हैं।'

कोटा-'समत्र जेनाथेमीज, इतना और बा दो कक उनहोंने त्रबना ननमश्नत्रत हुए यह कपा की है , इससलए उनहीं
को सम्मानपद की शोभा बानी चादहए।

जेनाथेमीज-इससलए समत्रवरो, हमारा कतसव्य है कक उनके सम्मानाथस वही बातें करें जो उनको रुगचकर हों।
यह तो स्पष्ट है कक ऐसा र्तयागी परु
ु ष मसालों की गनध को इतना रुगचकर नहीं समझता श्जतना पववत्र
ववचारों की सग
ु नध को। इसमें कोइे सनदे ह नहीं है कक श्जतना आननद उनहें ईसाई धमसससद्घानतों के
वववेचन से पराप्त होगा, श्जनके वह अनय
ु ायी हैं, उतना और ववषय से नहीं हो सकता। मैं स्वयं इस

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वववेचन का पक्षपाती हूं, क्योंकक इसमें ककतने ही सवारं गसन
ु दर और ववगचत्र रूपकों का समावेश है जो मझ
ु े
अर्तयनत वपरय हैं। अगर शशदों से आशय का अनम
ु ान ककया जा सकता है , तो ईसाई ससद्घानतों में सर्तय
की मात्रा परचुर है और ईसाई धमसगरनथ ईचवरज्ञान से पररपण
ू स है । लेककन सनत पापनाशी, मैं यहूदी
धमसगरनथों को इनके समान सम्मान के योग्य नहीं समझता। उनकी रचना ईचवरीय ज्ञान द्वारा नहीं हुई
है , वरन एक वपशाच द्वारा जो ईचवर का महान शत्रु था। इसी वपशाच ने, श्जसका नाम आइवे था उन
गरनथों को सलखवाया। वह उन दष्ु टार्तमाओं में से था जो नरकलोक में बसते हैं और उन समस्त
ववडम्बनाओं के कारण हैं श्जनसे मनष्ु य मात्र पीड़ित हैं। लेककन आइवे अज्ञान, कुदटलता और त्र्कूरता में
उन सबों से बकर था। इसके ववरुद्ध, सोने के परों कासा सपस जो ज्ञानवद्ध से सलपटा हुआ था, परे म और
परकाश से बनाया था। इन दोनों शश्क्तयों में एक परकाश की थी और दस
ू री अंधकार की थी-ववरोध होना
अननवायस था। यह घटना संसार की घटनासश्ष्ट के थो़िे ही ददनों पचचात घटी। दोनों ववरोधी शश्क्तयों से
यद्
ु ध नछ़ि गया। ईचवर अभी कदठन पररर्श्म के बाद ववर्श्ाम न करने पाये थे; आदम और हौवा, आदद
परु
ु ष, आदद स्त्री, अदन के बाग में नंगे घम
ू ते और आननद से जीवन व्यतीत कर रहे थे। इतने में दभ
ु ासग्य
से आइवे को सझ
ू ी कक इन दोनों पराणणयों पर और उनकी आने वाली सनतानों पर आगधपर्तय जमाऊं।
तरु नत अपनी दरु रच्छा को परू ा करने का परयर्तन वह करने लगा। वह न गणणत में कुशल था, न संगीत
में ; न उस शास्त्र से पररचनत था। जो राज्य का संचालन करता है ; न उस लसलतकला से जो गचत्त को मग्ु ध
करती है । उसने इन दोनों सरल बालकों कीसी बद्
ु गध रखने वाले पराणणयों को भयंकर वपशाचलीलाओं से,
शंकोर्तपादक त्र्कोध से और मेघगजसनों से भयभीत कर ददया। आदम और हौवा अपने ऊपर उसकी छाया
का अनभ
ु व करके एकदस
ू रे से गचमट गये और भय ने उनके परे म को और भी घननष्ठ कर ददया। उस
समय उस ववराट संसार में कोई उनकी रक्षा करने वाला न था। श्जधर आंख उठाते थे, उधर सननाटा
ददखाई दे ता था। सपस को उनकी यह ननस्सहाय दशा दे खकर दया आ गयी और उसने उनके अनतःकरण
को बद्
ु गध के परकाश से आलोककत करने का ननचचय ककया, श्जसमें ज्ञान से सतकस होकर वह समथ्या, भय,
और भयंकर परे तलीलाओं से गचश्नतत न हों। ककनतु इस कायस को सच
ु ारु रूप से परू ा करने के सलए ब़िी
सावधानी और बद्
ु गधमत्ता की आवचयकता थी और पव
ू स दम्पनत की सरलहृदयता ने इसे और भी कदठन
बना ददया। ककनतु दयालु सपस से न रहा गया। उसने गप्ु त रूप से इन पराणणयों के उद्घार करने का
ननचचय ककया। आइवे डींग तो यह मारता था कक वह अनतयामी है लेककन यथाथस में वह बहुत सक्ष्
ू मदशी
न था। सपस ने इन पराणणयों के पास आकर पहले उनहंेेें अपने पैरों की सन
ु दरता और खाल की चमक
से मग्ु ध कर ददया। दे ह से सभननसभनन आकार बनाकर उसने उनकी ववचारशश्क्त को जागत कर ददया।
यन
ू ान के गणणतआचायों ने उन आकारों के अद्भत
ु गण
ु ों को स्वीकार ककया है । आदम इन आकारों पर
हौवा की अपेक्षा अगधक ववचारता था, ककनतु जब सपस ने उनसे ज्ञानतत्त्वों का वववेचन करना शरू
ु ककया-उन
रहस्यों का जो परर्तयक्षरूप से ससद्ध नहीं ककये जा सकते-तो उसे ज्ञात हुआ कक आदम लाल समट्टी से
बनाये जाने के कारण इतना स्थल
ू बद्
ु गध था कक इन सक्ष्
ू म वववेचनों को गरहण नहीं कर सकता था,
लेककन हौवा अगधक चैतनय होने के कारण इन ववषयों को आसानी से समझ जाती थी। इससलए सपस से

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बहुधा अकेले ही इन ववषयों का ननरूपण ककया करती थी, श्जसमें पहले खद
ु दीक्षक्षत होकर तब अपने पनत
को दीक्षक्षत करे ....'

डोररयन-'महाशय जेनाथेमीज, क्षमा कीश्जएगा, आपकी बात काटता हूं। आपका यह कथन सन
ु कर मझ
ु े शंका
होती है कक सपस उतना बद्
ु गधमान और ववचारशील न था श्जतना आपने उसे बताया है । यदद वह ज्ञानी
होता तो क्या वह इस ज्ञान को हौवा के छोटे से मश्स्तष्क में आरोवपत करता जहां काफी स्थान न था ?
मेरा ववचार है कक वह आइवे के समान ही मख
ू स और कुदटल था और हौवा को एकानत में इसीसलए उपदे श
दे ता था कक स्त्री को बहकाना बहुत कदठन न था। आदमी अगधक चतरु और अनभ
ु वशील होने के कारण,
उसकी बरु ी नीयत को ता़ि लेता। यहां उसकी दाल न गलती इससलए मैं सपस की साधत
ु ा का कायल हूं, न
कक उसकी बद्
ु गधमत्ता का।'

जेनाथेमीज-'डोररयन, तम्
ु हारी शंका ननमल
ू स है । तम्
ु हें यह नहीं मालम
ू है कक जीवन के सवोच्चस और गतम
ू ो़
रहस्य बद्
ु गध और अनम
ु ान द्वारा गरहण नहीं ककये जा सकते, बश्कक अनतज्योनतस द्वारा ककये जाते हैं।
यही कारण है कक श्स्त्रयां जो परु
ु षों की भांनत सहनशील नहीं होती हैं पर श्जनकी चेतनाशश्क्त अगधक
तीवर होती है , ईचवरववषयों को आसानी से समझ जाती है । श्स्त्रयों को सर्तस्वप्न ददखाई दे ते हैं, परु
ु षों को
नहीं। स्त्री का पत्र
ु या पनत दरू दे श में ककसी संकट में प़ि जाए तो स्त्री को तरु नत उसकी शंका हो जाती
है । दे वताओं का वस्त्र श्स्त्रयों कासा होता है , क्या इसका कोई आशय नहीं है ? इससलए सपस की यह
दरू दसशसता थी कक उसने ज्ञान का परकाश डालने के सलए मनदबद्
ु गध आदम को नहीं; बश्कक चैतनयशील
हौवा को पसनद ककया, जो नक्षत्रों से उज्ज्वल और दध
ू से श्स्नग्ध थी। हौवा ने सपस के उपदे श को सहषस
सन
ु ा और ज्ञानवक्ष के समीप जाने पर तैयार हो गयी, श्जसकी शाखाएं स्वगस तक ससर उठाये हुए थीं और
जो ईचवरीय दया से इस भांनत आच्छाददत था, मानो ओस की बद
ूं ों में नहाया हुआ हो। इस वक्ष की पवत्तयां
समस्त संसार के पराणणयों की बोसलयां बोलती थीं और उनके शशदों के सश्म्मर्श्ण से अर्तयनत मधुर
संगीत की ध्वनन ननकलती थी। जो पराणी इसका फल खाता था, उसे खननज पदाथों का, पर्तथरों का,
वनस्पनतयों का, पराकनतक और नैनतक ननयमों का सम्पण
ू स ज्ञान पराप्त हो जाता था। लेककन इसके फल
अश्ग्न के समान थे और संशयार्तमा भीरु पराणी भयवश उसे अपने होंठों पर रखने का साहस न कर
सकते थे। पर हौवा ने तो सपस के उपदे शों को ब़िे ध्यान से सन
ु ा था इससलए उसने इन ननमल
ू स शंकाओं
को तच्
ु छ समझा और उस फल को चखने पर उद्यत हो गयी, श्जससे ईचवर ज्ञान पराप्त हो जाता था।
लेककन आदम के परे मसत्र
ू में बंधे होने के कारण उसे यह कब स्वीकार हो सकता था कक उसका पनत का
हाथ पक़िा और ज्ञानवक्ष के पास आयी। तब उसने एक तपता हुआ फल उठाया, उसे थो़िासा काटकर
खाया और शेष अपने गचरसंगी को दे ददया। मस
ु ीबत यह हुई कक आइवे उसी समय बगीचे में टहल रहा
था। ज्योंही हौवा ने फल उठाया, वह अचानक उनके ससर पर आ पहुंचा और जब उसे ज्ञात हुआ कक इन

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पराणणयों को ज्ञानचक्षु खुल गये हैं तो उसके त्र्कोध की ज्वाला दहक उठी। अपनी समगर सेना को
बल
ु ाकर उसने पथ्वी के गभस में ऐसा भयंकर उर्तपात मचाया कक यह दोनों शश्क्तहीन पराणी थरथर कांपने
लगे। फल आदम के हाथ से छूट प़िा और हौवा ने अपने पनत की गदस न में हाथ डालकर कहा-'मैं भी
अज्ञानननी बनी रहूंगी और अपने पनत की ववपवत्त में उसका साथ दं ग
ू ी।' ववजयी आइवे आदम और हौवा
और उनकी भववष्य सनतानों को भय और कापरु
ु षता की दशा में रखने लगा। वह ब़िा कलाननगध था। वह
ब़िे वहदाकार आकाशवजरों के बनाने में ससद्धहस्त था। उसके कलानैपण्
ु य ने सपस के शास्त्र को परास्त
कर ददया अतएव उसने पराणणयों को मख
ू ,स अनयायी, ननदस य बना ददया और संसार में कुकमस का ससक्का
चला ददया। तब से लाखों वषस व्यतीत हो जाने पर भी मनष्ु य ने धमसपथ नहीं पाया यन
ू ान के कनतपय
ववद्वानों तथा महार्तमाओं ने अपने बद्
ु गधबल से उस मागस को खोज ननकालने का परयर्तन ककया।
पीथागोरस, प्लेटो आदद तत्त्वज्ञाननयों के हम सदै व ऋणी रहें गे, लेककन वह अपने परयर्तन में सफलीभत
ू नहीं
हुए, यहां तक कक थो़िे ददन हुए नासरा के ईसू ने उस पथ को मनष्ु यमात्र के सलए खोज ननकाला।'

डोररयन-'अगर मैं आपका आर्श्य ठीक समझ रहा हूं तो आपने यह कहा है कक श्जस मागस को खोज
ननकालने में यन
ू ान के तत्त्वज्ञाननयों को सफलता नहीं हुई, उसे ईसू ने ककन साधनों द्वारा पा सलया ? ककन
साधनों के द्वारा वह मश्ु क्तज्ञान पराप्त कर सलया जो प्लेटो आदद आर्तमदशी महापरु
ु षों को न पराप्त हो
सका।'

जेनाथेमीज-'महाशय डोररयन, क्या यह बारबार बतलाना प़िेगा कक बद्


ु गध और तकस ववद्या पराश्प्त के
साधन हैं, ककनतु पराववद्या आर्तमोकलास द्वारा ही पराप्त हो सकती है । प्लेटो पीथागोरस अरस्तू आदद
महार्तमाओं में अपार बद्
ु गधशश्क्त थी, पर वह ईचवर की उस अननय भश्क्त से वंगचत थे। श्जसमें ईसू
सराबोर थे। उनमें वह तनमयता न थी। जो परभु मसीह में थी।'

हरमोडोरस-'जेनाथेमीज, तम्
ु हारा यह कथन सवसथा सर्तय है कक जैसे दब
ू ओस पीकर जीती और फैलती है ,
उसी परकार जीवार्तमा का पोषण परं म आननद द्वारा होता है । लेककन हम इसके आगे भी जा सकते हैं
और कह सकते हैं कक केवल बद्
ु गध ही में परम आननद भोगने की क्षमता है । मनष्ु य में सवसपरधान बद्
ु गध
ही है । पंचभत
ू ों का बना हुआ शरीर तो ज़ि है , जीवार्तमा अगधक सक्ष्
ू म है , पर वह भी भौनतक है , केवल
बद्
ु गध ही ननववसकार और अखण्ड है । जब वह भवनरूपी शरीर से परस्थान करके-जो अकस्मात ननजसन और
शन
ू य हो गया हो-आर्तमा के रमणीक उद्यान में ववचरण करती हुई ईचवर में समाववष्ट हो जाती है तो वह
पव
ू स ननश्चचत मर्तयु या पन
ु जसनम के आननद उठाती है , क्योंकक जीवन और मर्तयु में कोई अनतर नहीं। और

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उस अवस्था में उसे स्वगीयस पाववत्र्य में मग्न होकर परम आननद और संपण
ू स ज्ञान पराप्त हो जाता है ।
वह उसमें ऐक्य परववष्ट हो जाती है जो सवसव्यापी है । उसे परमपद या ससद्गध पराप्त हो जाती है ।'

ननससयास-'ब़िी ही सन
ु दर यश्ु क्त है , लेककन हरमोडोरस, सच्ची बात तो यह है कक मझ
ु े 'अश्स्त' और 'नाश्स्त'
में कोई सभननता नहीं दीखती। शशदों में इस सभननता को व्यक्त करने की सामथ्र्य नहीं है । 'अननत' और
'शन
ू य' की समानता ककसी भयावह है । दोनों में से एक भी बद्
ु गधगराह्य नहीं हैं मश्स्तष्क इन दोनों ही की
ककपना में असमथस है । मेरे ववचार में तो श्जस परमपद या मोक्ष की आपने चचार की है वह बहुत ही
महं गी वस्तु है । उसका मक
ू य हमारा समस्त जीवन, नहीं, हमारा अश्स्तर्तव है । उसे पराप्त करने के सलए
हमें पहले अपने अश्स्तर्तव को समटा दे ना चादहए। यह एक ऐसी ववपवत्त है श्जससे परमेचवर भी मक्
ु त नहीं,
क्योंकक दशसनों के ज्ञाता और भक्त उसे सम्पण
ू स और ससद्ध परमाणणत करने में ए़िीचोटी का जोर लगा रहे
हैं। सारांश यह है कक यदद हमें 'अश्स्त' का कुछ बोध नहीं तो, 'नाश्स्त' से भी हम उतने ही अनसभज्ञ हैं।
हम कुछ जानते ही नहीं।'

कोटा-'मझ
ु े भी दशसन से परे म है और अवकाश के समय उसका अध्ययन ककया करता हूं। लेककन इसकी
बातें मेरी समझ में नहीं आतीं। हां, सससरो* के गरनथों में अवचय इसे खूब समझ लेता हूं। रासो, कहां मर
गये, मधुसमगर्श्त वस्तु प्यालों में भरो।'

कसलत्र्कानत-'यह एक ववगचत्र बात है , लेककन न जाने क्यों जब मैं क्षुधातरु होता हूं तो मझ
ु े उस नाटक
रचने वाले कववयों की याद आती है जो बादशाहों की मेज पर भोजन ककया करते थे और मेरे मह
ंु में
पानी भर आता है । लेककन जब मैं वह सध
ु ारस पान करके तप्त हो जाता हूं, श्जसकी महाशय कोटा के
यहां कोई कमी नहीं मालम
ू होती, और श्जसके वपलाने में वह इतने उदार हैं, तो मेरी ककपना वीररस में
मग्न हो जाती है , योद्घाओं के वीरचररत्र आंखों में कफरने लगते हैं, घो़िों की टापों और तलवार की
झनकारों की ध्वनन कान में आने लगती है । मझ
ु े लज्जा और खेद है कक मेरा जनम ऐसी अधोगनत के
समय हुआ। वववश होकर मैं भावना के ही द्वार उस रस का आननद उठाता हूं, स्वाधीनता दे वी की
आराधना करता हूं और वीरों के साथ स्वयं वीरगनत पराप्त कर लेता हूं।'

कोटा-'रोम के परजासत्तार्तमक राज्य के समय मेरे परु खों ने बरूट्स के साथ अपने पराण स्वाधीनता दे वी
की भें ट ककये थे। लेककन यह अनम
ु ान करने के सलए परमाणों की कमी नहीं है कक रोम ननवासी श्जसे
स्वाधीनता कहते थे, वह केवल अपनी व्यवस्था आप करने का-अपने ऊपर आप शासन करने का अगधकार
था। मैं स्वीकार करता हूं कक स्वाधीनता सवोत्तसम वस्तु है , श्जस पर ककसी राष्ट्र को गौरव हो सकता है ।

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लेककन ज्योंज्यों मेरी आयु गज
ु रती जाती है और अनभ
ु व बता जाता है , मझ
ु े ववचवास होता है कक एक
सशक्त और सव्ु यवश्स्थत शासन ही परजा को यह गौरव परदान कर सकता है । गत चालीस वषों से मैं
सभननसभनन उच्चपदों पर राज्य की सेवा कर रहा हूं और मेरे दीघस अनभ
ु व ने ससद्ध कर ददया है कक जब
शासकशश्क्त ननबसल होती है, तो परजा को अनयायों का सशकर होना प़िता है । अतएव वह वाणी कुशल,
जमीन और आसमान के कुलाबे समलाने वाले व्याख्याता जो शासन को ननबसल और अपंग बनाने की चेष्टा
करते हैं, अर्तयनत नननदनीय कायस करते हैं, सम्भवतः कभीकभी परजा को घोर संकट में डाल दे ता है , लेककन
अगर वह परजामत के अनस
ु ार शासन करता है तो कफर उसके ववष का मंत्र नहीं वह ऐसा रोग है श्जसकी
औषगध नहीं, रोमराज्य के शस्त्रबल द्वारा संसार में शाश्नत स्थावपत होने के पहले, वही राष्ट्र सख
ु ी और
समद्ध थे, श्जनका अगधकार कुशल ववचारशील स्वेच्छाचारी राजाओं के हाथ में था।'

हरमोडोरस-'महाशय कोटा, मेरा तो ववचार है कक सव्ु यवश्स्थत शासन पद्धनत केवल एक कश्कपत वस्तु है
और हम उसे पराप्त करने में सफल नहीं हो सकते, क्योंकक यन
ू ान के लोग भी, जो सभी ववषयों में इतने
ननपण
ु और दक्ष थे, ननदोष शासनपरणाली का आववभासव न कर सके। अतएव इस ववषय में हमें सफल
होने की कोई आशा भी नहीं। हम अननतदरू भववष्य में उसकी ककपना नहीं कर सकते। ननभरानतस लक्षणों
से परकट हो रहा है कक संसार शीघर ही मख
ू त
स ा और बबसरता के अनधकार में मग्न हुआ चाहता है । कोटा,
हमें अपने जीवन में इनहीं आंखों से ब़िीब़िी भयंकर दघ
ु ट
स नाएं दे खनी प़िी हैं। ववद्या, बद्
ु गध और सदाचरण
से श्जतनी मानससक सानर्तवनाएं उपलशध हो सकती हैं, उनमें अब जो शेष रह गया वह यही है कक
अधःपतन का शोक दृचय दे खें।'

कोटा-'समत्रवर, यह सर्तय है कक जनता की स्वाथसपरता और असभ्य म्लेच्छों की दद्दण्डता, ननतानत भयंकर


ु ो़ सेना, सस
सम्भावनाएं हैं, लेककन यदद हमारे पास सदृ ु ग
ं दठत नाववकशश्क्त और परचरु धनबल हो तो....'

हरमोडोरस-'वर्तस, क्यों अपने को भरम में डालते हो ? यह मरणासनन सामराज्य म्लेच्छों के पशब
ु ल का
सामना नहीं कर सकता। इनका पतन अब दरू नहीं है । आह ! वह नगर श्जनहें यन
ू ान की ववलक्षण बद्
ु गध
या रोमनवाससयों के अनप
ु म धैयस ने ननसमसत ककया था; शीघर ही मदोनमत्त नरपशओ
ु ं के पैरों तले रौंदे
जायेंगे, लट
ु ें गे और ेाहे जायेंगे। पथ्वी पर न कलाकौशल का गचह्न रह जायेगा, न दशसन का, न ववज्ञान
का। दे वताओं की मनोहर परनतमाएं दे वालयों में तहसनहस कर दी जायेंगी। मानवहृदय में भी उनकी
स्मनत न रहे गी। बद्
ु गध पर अनधकार छा जायेगा और यह भम
ू ण्डल उसी अनधकार में ववलीन हो जायेगा।
क्या हमें यह आशा हो सकती है कक म्लेच्छ जानतयां संसार में सब
ु द्
ु गध और सन
ु ीनत का परसार करें गी ?
क्या जमसन जानत संगीत और ववज्ञान की उपासना करे गी ? क्या अरब के पशु अमर दे वताओं का सम्मान

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करें गे ? कदावप नहीं। हम ववनाश की ओर भयंकर गनत से कफसलते चले जा रहे हैं। हमारा प्यारा समत्र जो
ककसी समय संसार का जीवनदाता था, जो भम
ू ण्डल में परकाश फैलाता था, उसका समागधस्तप
ू बन
जायेगा। वह स्वयं अंधकार में लप्ु त हो जायेगा। मर्तयद
ु े व रासेपीज मानवभश्क्त की अंनतम भें ट पायेगा
और मैं अंनतम दे वता का अश्नतम पज
ु ारी ससद्ध हूंगा।'

इतने में एक ववगचत्र मनू तस ने परदा उठाया और मेहमानों के सम्मख


ु एक कुब़िा, नाटा मनष्ु य उपश्स्थत
हुआ श्जसकी चांद पर एक बाल भी न था। वह एसशया ननवाससयों की भांनत एक लाल चोगा और असभ्य
जानतयों की भांनत लाल पाजामा पहने हुए था श्जस पर सन
ु हरे बट
ू े बने हुए थे। पापनाशी उसे दे खते ही
पहचान गया और ऐसा भयभीत हुआ मानो आकाश से वजर गगर प़िेगा। उसने तरु नत ससर पर हाथ रख
सलये और थरथर कांपने लगा यह पराणी माकसस एररयन था श्जसने ईसाई धमस में नवीन ववचार का
परचार ककया था। वह ईसू के अनाददर्तव पर ववचवास नहीं करता था। उसका कथन था कक श्जसने जनम
सलया, वह कदावप अनादद नहीं हो सकता। परु ाने ववचार के ईसाई, श्जनका मख
ु पात्र नीसा था, कहते हैं कक
यद्यवप मसीह ने दे ह धारण की ककनतु वह अननतकाल से ववद्यमान है । अतएव नीसा के भक्त एररयन
को ववधमीर कहते थे। और एररयन के अनय
ु ायी नीसा को मख
ू ,स मंदबद्
ु गध, पागल आदद उपागधयां दे ते थे।
पापनाशी नीसा का भक्त था। उसकी दृश्ष्ट में ऐसे ववधमीर को दे खना भी पाप था। इस सभा को वह
वपशाचों की सभा समझता था। लेककन इस वपशाचसभा से परकनतवाददयों के उपवाद और ववज्ञाननयों का
दष्ु ककपनाओं से भी वह इतना सशंक और चंचल न हुआ था। लेककन इस ववधमीर की उपश्स्थनत मात्र ने
उसके पराण हर सलये। वह भागने वाला ही था कक सहसा उसकी ननगाह थायस पर जा प़िी और उसकी
दहम्मत बंध गयी। उसने उसके लम्बे, लहराते हुए, लंहगे का ककनारा पक़ि सलया और मन में परभू मसीह
की वनदना करने लगा।

उपश्स्थत जनों ने उस परनतभाशली ववद्वान परु


ु ष का ब़िे सम्मान से स्वागत ककया, श्जसे लोग ईसाई धमस
का प्लेटो कहते थे। हरमोडोरस सबसे पहले बोला-

'परम आदरणीय माकसस, हम आपको इस सभा में पदापसण करने के सलए हृदय से धनयवाद दे ते हैं। आपका
शभ
ु ागमन ब़िे ही शभ
ु अवसर पर हुआ है । हमें ईसाई धमस का उससे अगधक ज्ञान नहीं है , श्जतना परकट
रूप से पाठशालाओं के पाठ्यत्र्कम में रखा हुआ है । आप ज्ञानी परु
ु ष हैं, आपकी ववचार शैली साधारण
जनता की ववचार शैली से अवचय सभनन होगी। हम आपके मख
ु से उस धमस के रहस्यों की मीमांसा सन
ु ने
के सलए उर्तसक
ु हैं श्जनके आप अनय
ु ायी हैं। आप जानते हैं कक हमारे समत्र जेनाथेमीज को ननर्तय रूपकों
और दृष्टानतों की धुन सवार रहती है , और उनहोंने अभी पापनाशी महोदय से यहूदी गरनथों के ववषय में

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कुछ श्जज्ञासा की थी। लेककन उक्त महोदय ने कोई उत्तर नहीं ददया और हमें इसका कोई आचचयस न
होना चादहए क्योंकक उनहोंने मौन वरत धारण ककया है । लेककन आपने ईसाई धमससभाओं में व्याख्यान
ददये हैं। बादशाह कांनसटै नटाइन की सभा को भी आपने अपनी अमतवाणी से कताथस ककया है । आप चाहें
तो ईसाई धमस का ताश्त्त्वक वववेचन और उन गप्ु त आशयों का स्पष्टीकरण करके, जो ईसाई दनतकथाओं
में ननदहत हैं, हमें सनतष्ु ट कर सकते हैं। क्या ईसाइयों का मख
ु ससद्घानत तौहीन (अद्वैतवाद) नहीं है ,
श्जस पर मेरा ववचवास होगा ?'

माकसस-'हां, सवु वज्ञ समत्रो, मैं अद्वैतवादी हूं ! मैं उस ईचवर को मानता हूं जो न जनम लेता है , न मरता है ,
जो अननत है , अनादद है , सश्ष्ट का कतास है ।'

ननससयास-'महाशय माकसस, आप एक ईचवर को मानते हैं, यह सन


ु कर हषस हुआ। उसी ने सश्ष्ट की रचना
की, यह ववकट समस्या है । यह उसके जीवन में ब़िा त्र्काश्नतकारी समय होगा। सश्ष्ट रचना के पहले भी
वह अननतकाल से ववद्यमान था। बहुत सोचववचार के बाद उसने सश्ष्ट को रचने का ननचचय ककया।
अवचय ही उस समय उसकी अवस्था अर्तयनत शोचनीय रही होगी। अगर सश्ष्ट की उर्तपवत्त करता है तो
उसकी अखण्डता, सम्पण
ू त
स ा में बाधा प़िती है । अकमसण्य बना बैठा रहता है तो उसे अपने अश्स्तर्तव ही पर
भरम होने लगता है , ककसी को उसकी खबर ही नहीं होती, कोई उसकी चचार ही नहीं करता। आप कहते
हैं, उसने अनत में संसार की रचना को ही आवचयक समझा। मैं आपकी बात मान लेता हूं, यद्यवप एक
सवसशश्क्तमान ईचवर के सलए इतना कीनतसलोलप
ु होना शोभा नहीं दे ता। लेककन यह तो बताइए उसने
क्योंकर सश्ष्ट की रचना की।'

माकसस-'जो लोग ईसाई न होने पर भी, हरमोडोरस और जेनाथेमीज की भांनत ज्ञान के ससद्घानतों से
पररगचत हैं, वह जानते हैं कक ईचवर ने अकेले, त्रबना सहायता के सश्ष्ट नहीं की। उसने एक पत्र
ु को जनम
ददया और उसी के हाथों सश्ष्ट का बीजारोपण हुआ।'

हरमोडोरस-'माकसस, यह सवसथा सर्तय है । यह पत्र


ु सभननसभनन नामों से परससद्ध है , जैसे हे रमीज, अपोलो
और ईस।ू '

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माकसस-'यह मेरे सलए कलंक की बात होगी अगर मैं त्र्काइस्ट, ईसू और उद्घारक के ससवाय और ककसी
नाम से याद करुं । वही ईचवर का सच्चा बेटा है । लेककन वह अनादद नहीं है , क्योंकक उसने जनम धारण
ककया। यह तकस करना कक जनम से पव
ू स भी उसका अश्स्तर्तव था, समथ्यावादी नीसाई गधों का काम है ।

यह कथन सन
ु कर पापनाशी अनतवेदसना से ववकल हो उठा। उसके माथे पर पसीने की बद
ंू ें आ गयीं। उसने
सलीब का आकार बनाकर अपने गचत्त को शानत ककया, ककनतु मख
ु से एक शशद भी न ननकाला।

माकसस ने कहा-'यह ननववसवाद ससद्ध है कक बद्


ु गधहीन नीसाइयों ने सवसशश्क्तमान ईचवर को अपने
करावलम्ब का इच्छुक बनाकर ईसाई धमस को कलंककत और अपमाननत ककया है । वह एक है , अखंड है ।
पत्र
ु के सहयोग का आगर्श्सत बन जाने से उसके यह गण
ु कहां रह जाते हैं ? ननससयास, ईसाइयों के सच्चे
ईचवर का पररहास न करो। वह सागर के सप्तदलों के सदृश केवल अपने ववकास की मनोहरता परदसशसत
करता है , कुदाल नहीं चलाता, सत
ू नहीं कातता। सश्ष्ट रचना का र्श्म उसने नहीं उठाया। यह उसके पत्र

ईसू का कर्तय था। उसी ने इस ववस्तत भम
ू ण्डल को उर्तपनन ककया और तब अपने र्श्मफल का
पन
ु सरं स्कार करने के ननसमत्त कफर संसार में अवतररत हुआ, क्योंकक सश्ष्ट ननदोष नहीं थी, पण्
ु य के साथ
पाप भी समला हुआ था, धमस के साथ अधमस भी, भलाई के साथ बरु ाई भी।'

ननससयास-'भलाई और बरु ाई में क्या अनतर है ?'

एक क्षण के सलए सभी ववचार में मग्न हो गये। सहसा हरमोडोरस ने मेज पर अपना एक हाथ फैलाकर
एक गधे का गचत्र ददखाया श्जस पर दो टोकरे लदे हुए थे। एक में चवेत जैतन
ू के फूल थे; दस
ू रे में चयाम
जैतरू के।

उन टोकरों की ओर संकेत करके उसने कहा-'दे खो, रं गों की ववसभननता आंखों को ककतनी वपरय लगती है ।
हमें यही पसनद है कक एक चवेत हो, दस
ू रा चयाम। दोनों एक ही रं ग के होते तो उनका मेल इतना सन
ु दर
न मालम
ू होता। लेककन यदद इन फूलों में ववचार और ज्ञान होता तो चवेत पष्ु प कहते-जैतन
ू के सलए चवेत
होना ही सवोत्तसम है । इसी तरह काले फूल सफेद फूलों से घणा करते। हम उनके गण
ु अवगण
ु की परख
ननरपेक्ष भाव से कर सकते हैं, क्योंकक हम उनसे उतने ही ऊंचे हैं श्जसने दे वतागण हमसे। मनष्ु य के सलए,
जो वस्तओ
ु ं का एक ही भाग दे ख सकता है , बरु ाई बरु ाई है । ईचवर की आंखों में , जो सवसज्ञ है; बरु ाई भलाई
है । ननस्सनदे ह ही करूपता कुरूप होती है , सन
ु दर नहीं होती, ककनतु यदद सभी वस्तए
ु ं सन
ु दर हो जाएं तो

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सन
ु दरता का लोप हो जायेगा। इससलए परमावचयक है कक बरु ाई का नाश न हो; नहीं तो संसार रहने के
योग्य न रह जायेगा।'

यत्र्ू काइटीज-'इस ववषय पर धासमसक भाव से ववचार करना चादहए। बरु ाई बरु ाई है लेककन संसार के सलए
नहीं, क्योंकक इसका माधय
ु स अनचवर और स्थायी है , बश्कक उस पराणी के सलए जो करता है और त्रबना
ककये रह नहीं सकता।'

कोटा-'जवू पटर साक्षी है , यह ब़िी सन


ु दर यश्ु क्त है !'

यत्र्ू काइटीज-'एक ममसज्ञ कवव ने कहा है कक संसार एक रं गभसू म है । इसके ननमातास ईचवर ने हममें से
परर्तयेक के सलए कोईन-कोई असभनय भाग दे रखा है । यदद उसकी इच्छा है कक तम
ु सभक्षुक, राजा या
अपंग हो तो व्यथस रोरोकर ददन मत काटो, वरन तम्
ु हें जो काम सौंपा गया है , उसे यथासाध्य उत्तम रीनत
से परू ा करो।'

ननससयास-'तब कोई झंझट ही नहीं रहा। लंग़िे को चादहए कक लंग़िाये, पागल को चादहए कक खूब द्वनद्ध
मचाये; श्जतना उर्तपात कर सके, करे । कुलटा को चादहए श्जतने घर घालते बने घाले; श्जतने घाटों का पानी
पी सके, वपये; श्जतने हृदयों का सवसनाश कर सके, करे । दे शिोही को चादहए कक दे श में आग लगा दे , अपने
भाइयों का गला कटवा दे , झूठे को झूठ का ओो़नात्रबछौना बनवाना चादहए, हर्तयारे को चादहए कक रक्त को
नदी बहा दे , और असभनय समाप्त हो जाने पर सभी णखला़िी, राजा हो या रं ग, नयायी हो या अनयायी, खूनी
जासलम, सती, कामननयां; कुलकलंककनी श्स्त्रयां, सज्जन, दज
ु न
स , चोर, साहू सबके-सब उन कवव महोदय के
परशंसापात्र बन जायें, सभी समान रूप से सराहे जायें। क्या कहना !'

यत्र्ू काइटीज-'ननससयास, तम
ु ने मेरे ववचार को त्रबककुल ववकत कर ददया, एक तरुण यव
ु ती सन
ु दरी को भयंकर
वपशागचनी बना ददया। यदद तम
ु दे वताओं की परकनत, नयाय और सवसव्यापी ननयमों से इतने अपररगचत हो
तो तम्
ु हारी दशा पर श्जतना खेद ककया जाय, उतना कम है ।'

जेनाथेमीज-'समत्रो, मेरा तो भलाई और बरु ाई, सक


ु मस और कुकमस दोनों ही का सत्ता पर अटल ववचवास है ।
लेककन मझ
ु े यह ववचवास है कक मनष्ु य का एक भी ऐसा काम नहीं है -चाहे वह जद
ू ा का पकटव्यवहार ही
क्यों न हो-श्जसमें मश्ु क्त का साधन बीज रूप में परस्तत
ु न हो। अधमस मानव जानत के उद्घार का कारण

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हो सकता है , और इस हे तु से, वह धमस का एक अंश है और धमस के फल का भागी है । ईसाई धमसगरनथों
में इस ववषय की ब़िी सन
ु दर व्याख्या की गयी है । ईसू के एक सशष्य ही ने उनका शाश्नत चुम्बन करके
उनहें पक़िा ददया। ककनतु ईसू के पक़िे जाने का फल क्या हुआ? वह सलीब पर खींचे गये और पराणणमात्र
के उद्घार की व्यावस्था ननश्चचत कर दी, अपने रक्त से मनष्ु यमात्र के पापों का परायश्चचत कर ददया।
अतएव मेरी ननगाह में वह नतरस्कार और घणा सवसथा अनयायपण
ू स और नननदनीय है जो सेनट पॉल के
सशष्य के परनत लोग परकट करते हैं। वह यह भल
ू जाते हैं कक स्वयं मसीह ने इस चुम्बन के ववषय में
भववष्यवाणी की थी जो उनहीं के ससद्घानतों के अनस
ु ार मानवजानत के उद्घार के सलए आवचयक था और
यदद जूदा तीस मि
ु ाएं न सलया होता तो ईचवरीय व्यवस्था में बाधा प़िती, पव
ू नस नश्चचत घटनाओं की शख
ं ला
टूट जाती; दै वी ववधानों में व्यनतत्र्कम उपश्स्थत हो जाता और संसार में अववद्या, अज्ञान और अधमस की
तत
ू ी बोलने लगती।'*

माकसस-'परमार्तमा को ववददत था कक जूदा, त्रबना ककसी के दबाव के कपट कर जायेगा, अतएवं उसने जूदा
के पाप को मश्ु क्त के ववशाल भवन का एक मख्
ु य स्तम्भ बना सलया।'

जेनाथेमीज-'माकसस महोदय, मैंने अभी जो कथन ककया है , वह इस भाव से ककया है मानो मसीह के सलीब
पर चने से मानव जानत का उद्घार पण
ू स हो गया। इसका कारण है कक मैं ईसाइयों ही के गरनथों और
ससद्घानतों से उन लोगों को भरांनत ससद्ध करना चाहता था, जो जूदा को गधक्कारने से बाज नहीं आते !
लेककन वास्तव में ईसा मेरी ननगाह में तीन मश्ु क्तदाताओं में से केवल एक था। मश्ु क्त के रहस्य के
ववषय में यदद आप लोग जानने के सलए उर्तसक
ु हो तो मैं बताऊ कक संसार में उस समस्या की पनू तस क्यों
कर हुई ?'

उपश्स्थत जनों ने चारों ओर से 'हां, हां' की। इतने में बारह यव


ु ती बासलकाएं, अनार, अंगरू , सेब आदद से भरे
हुए टोकरे ससर पर रखे हुए, एक अंतदहसत वीणा के तालों पर पैर रखती हुई, मनदगनत से सभा में आयी
और टोकरों को मेज पर रखकर उलटे पांव लौट गयीं। वीणा बनद हो गयी और जेनाथेमीज ने यह कथा
कहनी शरू
ु की-'जब ईचवर की ववचारशश्क्त ने श्जसका नाम योननया है , संसार की रचना समाप्त कर ली
तो उसने उसका शासनागधकार स्वगसदत
ू ों को दे ददया। लेककन इन शासकों में यह वववेक न था जो
स्वासमयों में होना चादहए। जब उनहोंने मनष्ु यों की रूपवती कनयाएं दे खीं तो कामातरु हो गये, संध्या समय
कुएं पर अचानक आकर उनहें घेर सलया, और अपनी कामवासना परू ी की। इस संयोग से एक अपरड जानत
उर्तपनन हुई श्जसने संसार में अनयाय और त्र्कूरता से हाहाकार मचा ददया, पथ्वी ननरपरागधयों के रक्त से

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तर हो गयी, बेगन
ु ाहों की लाशों से स़िकें पट गयीं और अपनी सश्ष्ट की यह दद
ु स शा दे खकर योननयां
उर्तयनत शोकातरु हुईं।

'उसने वैराग्य से भरे हुए नेत्रों से संसार पर दृश्ष्टपात ककया और लम्बी सांस लेकर कहा-यह सब मेरी
करनी है , मेरे पत्र
ु ववपवत्तसागर में डूबे हुए हैं और मेरे ही अववचार से उनहें मेरे पापों का फल भोगना प़ि
रहा है और मैं इसका परायश्चचत करुं गी। स्वयं ईचवर, जो मेरे ही द्वारा ववचार करता है , उनमें आददम
सर्तयाननष्ठा का संचार नहीं कर सकता। जो कुछ हो गया, हो गया, यह सश्ष्ट अननतकाल तक दवू षत
रहे गी। लेककन कमसे-कम मैं अपने बालकों को इस दशा में न छोडूे
ं ो़गी। उनकी रक्षा करना मेरा कत्तसव्य
है । यदद मैं उनहें अपने समान सख
ु ी नहीं बना सकती तो अपने को उनके समान दःु खी तो बना सकती हूं।
मैंने ही दे हधारी बनाया है , श्जससे उनका अपकार होता है ; अतएव मैं स्वयं उनहीं कीसी दे ह धारण करुं गी
और उनहीं के साथ जाकर रहूंगी।'

'यह ननचचय करके योननया आकाश से उतरी और यन


ू ान की एक स्त्री के गभस में परववष्ट हुई। जनम के
समय वह ननहींसी दबु ल
स पराणहीन सशशु थी। उसका नाम हे लेन रखा गया। उसकी बाकयावस्था ब़ि ़ॣ
तकलीफ से कटी, लेककन यवु ती होकर वह अतीव सन
ु दरी रमणी हुई, श्जसकी रूपशोभा अनप
ु म थी। यही
उसकी इच्छा थी, क्योंकक वह चाहती थी कक उसका नचवर शरीर घोरतम सलप्साओं की परीक्षाश्ग्न में जले।
कामलोलप
ु और उद्दण्ड मनष्ु यों से अपहररत होकर उसने समस्त संसार के व्यसभचार, बलार्तकार और
दष्ु टता के दण्डस्वरूप, सभी परकार की अमानष
ु ीय यातनाएं सही; और अपने सौनदयस द्वारा राष्ट्रों का
संहारा कर ददया, श्जसमें ईचवर भम
ू ण्डल के कुकमों को क्षमा कर दे । और वह ईचवरीय ववचारशश्क्त, वह
योननया, कभी इतनी स्वगीयस शोभा को पराप्त न हुई थी, अब वह नारी रूप धारण करके योद्घाओं और
ग्वालों को यथावसर अपनी शय्या पर स्थान दे ती थी। कववजनों ने उससे दै वी महर्तव का अनभ
ु व करके ही
उसके चररत्र का इतना शानत, इतना सन
ु दर, इतना घातक गचत्रण ककया है और इन शशदों में उसका
सम्बोधन ककया है -तेरी आर्तमा ननचचल सागर की भांनत शानत है !

'इस परकार पचचात्ताप और दया ने योननया से नीचसे-नीच कमस कराये और दारुण दःु ख झेलवाया। अनत
में उसकी मर्तयु हो गयी और उसकी जनमभसू म में अभी तक उसकी कबर मौजद
ू है। उसका मरना
आवचयक था, श्जसमें वह भोगववलास के पचचात मर्तयु की पी़िा का अनभ
ु व करे और लगाये हुए वक्ष के
कडुए फल चखे। लेककन हेलेन के शरीर को र्तयाग करने के बाद उसने कफर स्त्री का जनम सलया और कफर
नाना परकार के अपमान और कलंक सहे । इसी भांनत जनमजनमानतरों से वह पथ्वी का पापभार अपने
ऊपर लेती चली आती है । और उसका यह अननत आर्तमसमपसण ननष्फल न होगा ! हमारे परे मसत्र
ू में बंधी

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हुई वह हमारी दशा पर रोती है , हमारे कष्टों से पीड़ित होती है , और अनत में अपना और अपने साथ
हमारा उद्घार करे गी और हमें अपने उज्ज्वल, उदार, दयामय हृदय से लगाये हुए स्वगस के शाश्नतभवन में
पहुंचा दे गी।'

हरमोडोरस-'यह कथा मझ
ु े मालम
ू थी। मैंने कहीं पाॄ या सन
ु ा है कक अपने एक जनम में यह सीमन
जादग
ू र के साथ रही। मैंने ववचार ककया था कक ईचवर ने उसे यह दण्ड ददया होगा।'

जेनाथेमीज-'यह सर्तय है हरमोडोरस, कक जो लोग इन रहस्यों का मंथन नहीं करते, उनको भरम होता है
कक योननया ने स्वेच्छा से यह यंत्रणा नहीं झेली, वरन अपने कमों का दण्ड भोगा। परनतु यथाथस में ऐसा
नहीं है ।'

कसलत्र्कानत-'महाराज जेनाथेमीज, कोई बतला सकता है कक वह बारबार जनम लेने वाली हे लेन इस समय
ककस दे श में , ककस वेश में , ककस नाम से रहती है ?'

जेनाथेमीज-'इस भेद को खोलने के सलए असाधारण बद्


ु गध चादहए और नाराज न होना कसलत्र्कानत, कववयों
के दहस्से में बद्
ु गध नहीं आती। उनहें बद्
ु गध लेकर करना ही क्या है ? वह तो रूप के संसार में रहते हैं
और बालकों की भांनत शशदों और णखलौनों से अपना मनोरं जन करते हैं।'

कसलत्र्कानत-'जेनाथेमीज, जरा जबान संभालकर बातें करो। जानते हो दे वगण कववयों से ककतना परे म करते
हैं ? उनके भक्तों की नननदा करोगे तो वह रुष्ट होकर तम्
ु हारी दग
ु नस त कर डालेंगे। अमर दे वताओं ने स्वयं
आददम नीनत पदों ही में घोवषत की और उनकी आकाशवाणणयां पदों ही में अवतररत होती हैं। भजन
उनके कानों को ककतने वपरय हैं। कौन नहीं जानता कक कववजन ही आर्तमज्ञानी होते हैं, उनसे कोई बात
नछपी नहीं रहती ? कौन नवी, कौन पैगम्बर, कौन अवतार था जो कवव न रहा हो ? मैं स्वयं कवव हूं और
कववदे व अपोलो का भक्त हूं। इससलए मैं योननया के वतसमान रूप का रहस्य बतला सकता हूं। हे लेन हमारे
समीप ही बैठी हुई है । हम सब उसे दे ख रहे हैं। तम
ु लोग उसी रमणी को दे ख रहे हो जो अपनी कुरसी
पर तककया लगाये बैठी हुई है -आंखों में आंसू की बद
ूं ें मोनतयों की तरह झलक रही हैं और अधरों पर
अतप्त पेरम की इच्छा ज्योर्तसना की भांनत छाई हुई है। यह वही स्त्री है । वही अनप
ु म सौनदयस वाली
योननया, वही ववशालरूपधाररणी हे लेन, इस जनम में मनमोदहनी थायस है !'

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कफसलना-'कैसी बातें करते हो कसलत्र्कानत ? थायस ट्रोजन की ल़िाई में ? क्यों थायस, तम
ु ने एसशलीज
आजक्स, पेररस आदद शरू वीरों को दे खा था? उस समय के घो़िे ब़िे होते थे ?'

एररस्टाबोलस-'घो़िों की बातचीत कौन करता है ? मझ


ु से करो। मैं इस ववद्या का अद्ववतीय ज्ञाता हूं।'

चेररयास ने कहा-'मैं बहुत पी गया।' और वह मेज के नीचे गगर प़िा।

कसलत्र्कानत ने प्याला भरकर कहा-'जो पीकर गगर प़िे उन पर दे वताओं का कोप हो ?'

वद्ध कोटा ननिा में मग्न थे।

डोररयन थो़िी दे र से बहुत व्यगर हो रहे थे। आंखें च गयी थीं और नथुने फूल गये थे। वह ल़िख़िाते हुए
थायस की कुरसी के पास आकर बोले-

'थायस, मैं तम
ु से परे म करता हूं, यद्यवप परे मासक्त होना ब़िी नननदा की बात है ।'

थायस-'तम
ु ने पहले क्यों मझ
ु पर परे म नहीं ककया ?'

डोररयन-'तब तो वपया ही न था।'

थायस-'मैंने तो अब तक नहीं वपया, कफर तम


ु से परे म कैसे करुं ?'

डोररयन उसके पास से ड्रोससया के पास पहुंचा, श्जसने उसे इशारे से अपने पास बल
ु ाया था। उसके पास
जाते ही उसके स्थान पर जेनाथेमीज आ पहुंचा और थायस के कपोलों पर अपना परे म अंककत कर ददया।
थायस ने त्र्कुद्ध होकर कहा-'मैं तम्
ु हें इससे अगधक धमार्तमास समझती थी !'

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जेनाथेमीज-'लेककन तम्
ु हें यह भय नहीं है कक स्त्री के श्आंलगन से तम्
ु हारी आर्तमा अपववत्र हो जायेगी।'

जेनाथेमीज-'दे ह के भरष्ट होने से आर्तमा भरष्ट नहीं होती। आर्तमा को पथक रखकर ववषयभोग का सख

उठाया जा सकता है ।'

थायस-'तो आप यहां से णखसक जाइए। मैं चाहती हूं कक जो मझ


ु े प्यार करे वह तनमन से प्यार करे ।
कफलॉसफर सभी बड्
ु ढे बकरे होते हैं।' एकएक करके सभी दीपक बझ
ु गये। उषा की पीली ककरणें जो परदों
की दरारां से भीतर आ रही थीं, मेहमानों की चाई हुई आंखों और सौंलाए हुए चेहरों पर प़ि रही थीं।
एररस्टोबोलस चेररयास की बगल में प़िा खरासटे ले रहा था। जेनाथेमीज महोदय, जो धमस और अधमस की
सत्ता के कायल थे, कफसलना को हृदय से लगाये प़िे हुए थे। संसार से ववरक्त डोररयन महाशय ड्रोससया के
आवरणहीन वक्ष पर शराब की बद
ूं ें टपकाते थे जो गोरी छाती पर लालों की भांनत नाच रही थी और वह
ववरागी परु
ु ष उन बद
ूं ों को अपने होंठ से पक़िने की चेष्टा कर रहा था। ड्रोससया णखलणखला रही थी और
बद
ूं ें गद
ु गद
ु े वक्ष पर, आया कक भांनत डोररयन के होंठों के सामने से भागती थीं।

सहसा यत्र्ू काइटीज उठा और ननससयास के कनधे पर हाथ रखकर उसे दस


ू रे कमरे के दस
ू रे ससरे पर ले
गया।

उसने मस्
ु कराते हुए कहा-'समत्र, इस समय ककस ववचार में हो, अगर तम
ु में अब भी ववचार करने की
सामथ्र्य है ।'

ननससयास ने कहा-'मैं सोच रहा हूं कक श्स्त्रयों का परे म अडॉननस* की वादटका के समान है ।'

'उससे तम्
ु हारा क्या आशय है ?'

ननससयास-'क्यों, तम्
ु हें मालम
ू नहीं कक श्स्त्रयां अपने आंगन में वीनस के परे मी के स्मनतस्वरूप, समट्टी के
गमलों में छोटे छोटे पौधे लगाती हैं ? यह पौधे कुछ ददन हरे रहते हैं, कफर मरु झा जाते हैं।'

'इसका क्या मतलब है ननससयास ? यही कक मरु झाने वाली नचवर वस्तओ
ु ं पर परे म करना मख
ू त
स ा है ।'

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ननससयास के गम्भीर स्वर में उत्तर ददया-'समत्र यदद सौंदयस केवल छाया मात्र है , तो वासना भी दासमनी की
दमक से श्स्थर नहीं। इससलए सौनदयस की इच्छा करना पागलपन नहीं तो क्या है ? यह बद्
ु गधसंगत नहीं
है । जो स्वयं स्थायी नहीं है उसका भी उसी के साथ अनत हो जाना अश्स्थर है । दासमनी णखसकती हुई
छांह को ननगल जाय, यही अच्छा है ।'

यत्र्ू काइटीज ने ठण्डी सांस खींचकर कहा-'ननससयास, तम


ु मझ
ु े उस बालक के समान जान प़िते हो जो
घट
ु नों के बल चल रहा हो। मेरी बात मानो-स्वाधीन हो जाओ। स्वाधीन होकर तम
ु मनष्ु य बन जाते हो।'

'यह क्योंकर हो सकता है यत्र्ू काइटीज, कक शरीर के रहते हुए मनष्ु य मक्
ु त हो जाये?'

'वपरय पत्र
ु , तम्
ु हें यह शीघर ही ज्ञात हो जायेगा। एक क्षण में तम
ु कहोगे यत्र्ू काइटीज मक्
ु त हो गया।'

वद्ध परु
ु ष एक संगमरमर के स्तम्भ से पीठ लगाये यह बातें कर रहा था और सय
ू ोदस य की परथम
ज्योनतरे खाएं उसके मख
ु को आलोककत कर रही थीं। हरमोडोरस और माकसस भी उसके समीप आकर
ननससयास की बगल में ख़िे थे और चारों पराणी, मददरासेववयों के हं सीठट्ठे की परवाह न करके ज्ञानचचार
में मग्न हो रहे थे। यत्र्ू काइटीज का कथन इतना ववचारपण
ू स और मधुर था कक माकसस ने कहा-'तम
ु सच्चे
परमार्तमा को जानने के योग्य हो।'

यत्र्ू काइटीज ने कहा-'सच्चा परमार्तमा सच्चे मनष्ु य के हृदय में रहता है ।'

तब वह लोग मर्तयु की चचार करने लगे।

यत्र्ू काइटीज ने कहा-'मैं चाहता हूं कक जब वह आये तो मझ


ु े अपने दोषों को सध
ु ारने और कत्तसव्यों का
पालन करने में लगा हुआ दे खे। उसके सम्मख
ु मैं अपने ननमसल हाथों को आकाश की ओर उठाऊंगा और
दे वताओं से कहूंगा-पज्
ू य दे वों, मैंने तम्
ु हारी परनतमाओं का लेशमात्र भी अपमान नहीं ककया जो तम
ु ने मेरी
आर्तमा के मश्नदर में परनतश्ष्ठत कर दी हैं। मैंने वहीं अपने ववचारों को, पष्ु पमालाओं को, दीपकों को, सग
ु ध

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को तम्
ु हारी भें ट ककया है । मैंने तम्
ु हारे ही उपदे शों के अनस
ु ार जीवन व्यतीत ककया है , और अब जीवन से
उकता गया हूं।'

यह कहर उसने अपने हाथों को ऊपर की तरफ उठाया और एक पल ववचार में मग्न रहा। तब वह
आननद से उकलससत होकर बोला-'यत्र्ू काइटीज, अपने को जीवन से पथक कर ले, उस पके फल की भांनत
जो वक्ष से अलग होकर जमीन पर गगर प़िता है , उस वक्ष को धनयवाद दे श्जसने तझ
ु े पैदा ककया और
उस भसू म को धनयवाद दे श्जसने तेरा पालन ककया !'

यह कहने के साथ ही उसने अपने वस्त्रों के नीचे से नंगी कटार ननकाली और अपनी छाती में चुभा ली।

जो लोग उसके सम्मख


ु ख़िे थे, तरु नत उसका हाथ पक़िने दौ़िे, लेककन फौलादी नोक पहले ही हृदय के
पार हो चुकी थी। यत्र्ू काइटीज ननवाणसपद पराप्त कर चक
ु ा था ! हरमोडोरस और ननससयास ने रक्त में सनी
हुई दे ह को एक पलंग पर सलटा ददया। श्स्त्रयां चीखने लगीं, नींद से चौंके हुए मेहमान गरु ासने लगे !
वयोवद्ध कोटा; जो परु ाने ससपादहयों की भांनत कुकुरनींद सोता था, जागे प़िा, शव के समीप आया, घाव को
दे खा और बोला-'मेरे वैद्य को बल
ु ाओ।'

ननससयास ने ननराश से ससर दहलाकर कहा-'यत्र्ू काइटीज का पराणानत हो गया। और लोगों को जीवन से
श्जतना परे म होता है , उतना ही परे म इनहें मर्तयु से था। हम सबों की भांनत इनहोंने भी अपनी परम इच्छा
के आगे ससर झुका ददया, और अब वह दे वताओं के तक
ु य हैं श्जनहें कोई इच्छा नहीं होती।'

कोटा ने ससर पीट सलया और बोला-'मरने की इतनी जकदी ! अभी तो वह बहुत ददनों तक सामराज्य की
सेवा कर सकते थे। कैसी ववडम्बना है !'

पापनाशी और थायस पासपास स्तश्म्भत और अवाक्य बैठे रहे । उनके अनतःकरण घणा, भय और आशा से
आच्छाददत हो रहे थे।

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सहसा पापनाशी ने थायस का हाथ पक़ि सलया और शरात्रबयों को फांदते हुए, जो ववषयभोगगयों के पास ही
प़िे हुए थे, और उस मददरा और रक्त को पैरों से कुचलते हुए जो फशस पर बहा हुआ था, वह उसे 'पररयों
के कंु ज' की ओर ले चला।

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अध्याय 4
नगर में सय
ू स का परकाश फैल चुका था। गसलयां अभी खाली प़िी हुई थीं। गली के दोनों तरफ ससकनदर
की कबर तक भवनों के ऊंचेऊंचे सतन
ू ददखाई दे ते थे। गली के संगीन फशस पर जहांतहां टूटे हुए हार और
बझ
ु ी मशालों के टुक़िे प़िे हुए थे। समि
ु की तरफ से हवा के ताजे झोंके आ रहे थे। पापनाशी ने घणा से
अपने भ़िकीले वस्त्र उतार फेंके और उसके टुक़िेटुक़िे करके पैरों तले कुचल ददया।

तब उसने थायस से कहा-'प्यारी थायस, तन


ू े इन कुमानष
ु ों की बातें सन
ु ीं ? ऐसे कौन से दव
ु च
स न और
अपशशद हैं जो उनके मह
ंु से न ननकले हों, जैसे मोरी से मैला पानी ननकलता है । इन लोगों ने जगत के
कत्तास परमेचवर को नरक की सीनयों पर घसीटा, धमस और अधमस की सत्ता पर शंका की, परभु मसीह का
अपमान ककया, और जूदा का यश गया। और वह अनधकार का गीद़ि वह दग
ु न
स धमय राक्षस, जो इन सभी
दरु ार्तमाओं का गरू
ु घंटाल था, वह पापी माकसस एररयन खुदी हुई कबर की भांनत मह
ुं खोल रहा था। वपरय,
तन
ू े इन ववष्ठामय गोबरै लों को अपनी ओर रें गकर आते और अपने को उनके गनदे स्पशस से अपववत्र
करते दे खा है । तन
ू े औरों को पशओ
ु ं की भांनत अपने गल
ु ामों के पैरों के पास सोते दे खा है । तन
ू े उनहें
पशओ
ु ं की भांनत उसी फशस पर संभोग करते दे खा है श्जस पर वह मददरा से उनमत्त होकर कै कर चक
ु े थे
! तन
ू े एक मनदबद्
ु गध, सदठयाये हुए बड्
ु ढे को अपना रक्त बहाते दे खा है जो उस शराब से भी गनदा था
जो इन भरष्टाचाररयों ने बहाई थी। ईचवर को धनय है ! तन
ू े कुवासनाओं का दृचय दे खा और तझ
ु े ववददत
हो गया कक यह ककतनी घणोर्तपादक वस्तु है ? थायस, थामस, इन कुमागीर दाशसननकों की भरष्टाताओं को
याद कर और तब सोच कक तू भी उनहीं के साथ अपने को भरष्ट करे गी ? उन दोनों कुलटाओं के कटाक्षों
को, हावभाव को, घणणत संकेतों को याद कर, वह ककतनी ननलसज्जता से हं सती थीं, ककतनी बेहयाई से लोगों
को अपने पास बल
ु ाती थीं और तब ननणसय कर कक तू भी उनहीं के सदृश अपने जीवन का सवसनाश करती
रहे गी ? ये दाशसननक परु
ु ष थे जो अपने को सभ्य कहते हैं, जो अपने ववचारों पर गवस करते हैं पर इन
वेचयाओं पर ऐसे गगरे प़िते थे जैसे कुत्ते दहड्डयों पर गगरें !'

थायस ने रात को जो कुछ दे खा और सन


ु ा था उससे उसका हृदय ग्लाननत और लश्ज्जत हो रहा था। ऐसे
दृचय दे खने का उसे यह पहला ही अवसर न था, पर आज कासा असर उसके मन पर कभी न हुआ था।
पापनाशी की सतत्त
ु ेजनाओं ने उसके सद्भाव को जगा ददया था। कैसे हृदयशन
ू य लोग हैं जो स्त्री को
अपनी वासनाओं का णखलौना मात्र समझते हैं ! कैसी श्स्त्रयां हैं जो अपने दे हसमपसण का मक
ू य एक प्याले
शराब से अगधक नहीं समझतीं। मैं यह सब जानते और दे खते हुए भी इसी अनधकार में प़िी हुई हूं। मेरे
जीवन को गधक्कार है ।

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उसने पापनाशी को जवाब ददया-'वपरय वपता, मझ
ु में अब जरा भी दम नहीं है । मैं ऐसी अशक्त हो रही हूं
मानो दम ननकल रहा है । कहां ववर्श्ाम समलेगा, कहां एक घ़िी शाश्नत से लेटूं ? मेरा चेहरा जल रहा है ,
आंखों से आंचसी ननकल रही है , ससर में चक्कर आ रहा है , और मेरे हाथ इतने थक गये हैं कक यदद
आननद और शाश्नत मेरे हाथों की पहुंच में भी आ जाय तो मझ
ु में उसके लेने की शश्क्त न होगी।'

पापनाशी ने उस स्नेहमय करुणा से दे खकर कहा-'वपरय भगगनी ! धैयस और साहस ही से तेरा उद्घार
होगा। तेरी सख
ु शाश्नत का उज्ज्वल और ननमसल परकाश इस भांनत ननकल रहा है जैसे सागर और वन से
भाप ननकलती है ।'

यह बातें करते हुए दोनों घर के समीप आ पहुंचे। सरो और सनोवर के वक्ष जो 'पररयों के कंु ज' को घेरे
हुए थे, दीवार के ऊपर ससर उठाये परभातसमीर से कांप रहे थे। उनके सामने एक मैदान था। इस समय
सननाटा छाया हुआ था। मैदान के चारों तरफ योद्घाओं की मनू तसयां बनी हुई थीं और चारों ससरों पर
अधसचनिाकार संगमरमर की चौककयां बनी हुई थीं, जो दै र्तयों की मनू तसयों पर श्स्थत थीं। थायस एक चौकी
पर गगर प़िी। एक क्षण ववर्श्ाम लेने के बाद उसने सगचनत नेत्रों से पापनाशी की ओर दे खा पछ
ू ा-'अब मैं
कहां जाऊ ?'

पापनाशी ने उत्तर ददया-'तझ


ु े उसके साथ जाना चादहए जो तेरी खोज में ककतनी ही मंश्जलें मारकर आया
है । वह तझ
ु े इस भरष्ट जीवन से पथक कर दे गा जैसे अंगरू बटोरने वाला माली उन गच्
ु छों को तो़ि लेता
है जो पे़ि में लगेलगे स़ि जाते हैं और उनहें कोकहू में ले जाकर सग
ु ध
ं पण
ू स शराब के रूप में पररणत कर
दे ता है । सन
ु , इस्कश्निया से केवल बारह घण्टे की राह पर, समि
ु तट के समीप वैरागगयों का एक आर्श्म है
श्जसके ननयम इतने सन
ु दर, बद्
ु गधमत्ता से इतने पररपण
ू स हैं कक उनको पद्य का रूप दे कर ससतार और
तम्बरू े पर गाना चादहए। यह कहना लेशमात्र भी अर्तयश्ु क्त नहीं है कक जो श्स्त्रयां यहां पर रहकर उन
ननयमों का पालन करती हैं उनके पैर धरती पर रहते हैं और ससर आकाश पर। वह धन से घणा करती हैं
श्जसमें परभु मसीह उन पर परे म करें ; लज्जाशील रहती हैं कक वह उन पर कपादृश्ष्टपात करें , सती रहती
हैं कक वह उनहें परे यसी बनायें। परभु मसीह माली का वेश धारण करके, नंगे पांव, अपने ववशाल बाहु को
फैलाये, ननर्तय दशसन दे ते हैं। उसी तरह उनहोंने माता मररयम को कबर के द्वार पर दशसन ददये थे। मैं
आज तझ
ु े उस आर्श्म में ले जाऊंगा, और थो़िे ही ददन पीछे , तझ
ु े इन पववत्र दे ववयों के सहवास में उनकी
अमतवाणी सन
ु ने का आननद पराप्त होगा। वह बहनों की भांनत तेरा स्वागत करने को उर्तसक
ु हैं। आर्श्म

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के द्वार पर उसकी अध्यक्षक्षणी माता अलबीना तेरा मख
ु चूमेंगी और तझ
ु से सपरे म स्वर से कहें गी, बेटी,
आ तझ
ु े गोद में ले ल,ूं मैं तेरे सलए बहुत ववकल थी।'

थायस चककत होकर बोली-'अरे अलबीना ! कैसर की बेटी, समराट केरस की भतीजी ! वह भोगववलास
छो़िकर आर्श्म में तप कर रही है ?'

पापनाशी ने कहा-'हां, हां, वही ! अलबीना, जो महल में पैदा हुई और सन


ु हरे वस्त्र धारण करती रही, जो
संसार के सबसे ब़िे नरे श की पत्र
ु ी है , उसे मसीह की दासी का उच्चपद पराप्त हुआ है । वह अब झोंप़िे में
रहती है , मोटे वस्त्र पहनती है और कई ददन तक उपवास करती है । वह अब तेरी माता होगी, और तझ
ु े
अपनी गोद में आर्श्य दे गी।'

थायस चौकी पर से उठ बैठी और बोली-'मझ


ु े इसी क्षण अलबीना के आर्श्म में ले चलो।'

पापनाशी ने अपनी सफलता पर मग


ु ध होकर कहा-'तझ
ु े वहां अवचय ले चलग
ूं ा और वहां तझ
ु े एक कुटी में
रख दं ग
ू ा जहां तू अपने पापों का रोरोकर परायश्चचत करे गी, क्योंकक जब तक तेरे पाप आंसओ
ु ं से धुल न
जायें, तू अलबीना की अनय पत्रु त्रयों से समलजुल नहीं सकती और न समलना उगचत ही है । मैं द्वार पर
ताला डाल दं ग
ू ा, और तू वहां आंसओ
ु ं से आि होकर परभु मसीह की परतीक्षा करे गी, यहां तक कक वह तेरे
पापों को क्षमा करने के सलए स्वयं आयेंगे और द्वार पर ताला खोलेंगे। और थायस, इसमें अणुमात्र भी
संदेह न कर कक वह आयेंग।े आह ! जब वह अपनी कोमल, परकाशमय उं गसलयां तेरी आंखों पर रखकर
तेरे आंसू पोंछे गे, उस समय तेरी आर्तमा आननद से कैसी पल
ु ककत होगी ! उनके स्पशसमात्र से तझ
ु े ऐसा
अनभ
ु व होगा कक कोई परे म के दहंडोले में झुला रहा है ।'

थायस ने कफर कहा-'वपरय वपता, मझ


ु े अलबीना के घर ले चलो।'

पापनाशी का हृदय आननद से उर्तफुकल हो गया। उसने चारों तरफ गवस से दे खा मानो कोई गंगाल कुबेर
का खजाना पा गया हो। ननस्संक होकर सश्ष्ट की अनप
ु म सष
ु मा का उसने आस्वादन ककया। उसकी आंखें
ईचवर के ददये हुए परकाश को परसनन होकर पी रही थीं। उसके गालों पर हवा के झोंके न जाने ककधर
से आकर लगते थे। सहसा मैदान के एक कौने पर थायस के मकान का छोटासा द्वार दे खकर और यह
याद करके कक श्जन पवत्तयों की शोभा का वह आननद उठा रहा था वह थायस के बाग के पे़िों की हैं। उसे

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उन सब अपावन वस्तओ
ु ं की याद आ गयी जो वहां की वायु को, जो आज इतनी ननमसल और पववत्र थी,
दवू षत कर रही थी, और उसकी आर्तमा को इतनी वेदना हुई कक उसकी आंखों में आंसू बहने लगे।

उसने कहा-'थायस, हमें यहां से त्रबना पीछे म़ि


ु कर दे खे हुए भागना चादहए। लेककन हमें अपने पीछे तेरे
संस्कार के साधनों, साक्षक्षयों और सहयोगगयों को भी न छो़िना चादहए। वह भारीपरदे , वह सन
ु दर पलंग, वह
कालीनें, वह मनोहर गचत्र और मनू तसयां, वह धप
ू आदद जलाने के स्वणसकुण्ड, यह सब गचकलागचकलाकर तेरे
पापाचरण की घोषणा करें ग।े क्या तेरी इच्छा है कक ये घणणत सामगगरयां, श्जनमें परे तों का ननवास है ,
श्जनमें पापार्तमाएं त्र्की़िा करती हैं मरुभसू म में भी तेरा पीछा करें , यही संस्कार वहां तेरी भी आर्तमा को
चंचल करते रहें ? यह ननरी ककपना नहीं है कक मेजें पराणाघातक होती हैं, कुरससयां और गद्दे परे तों के
यनत्र बनकर बोलते हैं, चलतेकफरते हैं, हवा में उ़िते हैं, गाते हैं। उन समगर वस्तओ
ु ं को, जो तेरी
ववलसलोलप
ु ता के साथी हैं; समआ दे , सवसनाश कर दे । थायस, एक क्षण भी ववलम्ब न कर अभी सारा नगर
सो रहा है , कोई हलचल न मचेगी, अपने गल
ु ामों को हुक्म दे कक वह स्थान के मध्य में एक गचता बनाये,
श्जस पर हम तेरे भवन की सारी सम्पदा की आहुनत कर दें । उसी अश्ग्नरासश में तेरे कुसंस्कार जलकर
भस्मीभत
ू हो जायें !'

थायस ने सहमत होकर कहा-'पज्


ू य वपता, आपकी जैसी इच्छा हो, वह कीश्जये। मैं भी जानती हूं कक बहुधा
परे तगण ननजीवस वस्तओ
ु ं में रहते हैं। रात सजावट की कोईकोई वस्तु बातें करने लगती हैं, ककनतु शशदों में
नहीं या तो थो़िीथो़िी दे र में खटखट की आवाज से या परकाश की रे खाएं परस्फुदटत करके। और एक
ववगचत्र बात सनु नए। पज्
ू य वपता, आपने पररयों के कंु ज के द्वार पर, दादहनी ओर एक नग्न स्त्री की मनू तस
को ध्यान से दे खा है ? एक ददन मैंने आंखों से दे खा कक उस मनू तस ने जीववत पराणी के समान अपना
ससर फेर सलया और कफर एक पल में अपनी पव
ू स दशा में आ गयी, मैं भयभीत हो गयी। जब मैंने
ननससयास से यह अद्भत
ु लीला बयान की तो वह मेरी हं सी उ़िाने लगा। लेककन उस मनू तस में कोई जाद ू
अवचय है ; क्योंकक उसने एक ववदे शी मनष्ु य को, श्जस पर मेरे सौनदयस का जाद ू कुछ असर न कर सका
था, अर्तयनत परबल इच्छाओं से पररपरू रत कर ददया। इसमें कोई सनदे ह नहीं है कक घर की सभी वस्तओ
ु ं
में परे तों का बसेरा है और मेरे सलए यहां रहना जानजोणखम था, क्योंकक कई आदमी एक पीतल की मनू तस
से आसलंगन करते हुए पराण खो बैठे हैं। तो भी उन वस्तओ
ु ं को नष्ट करना जो अद्ववतीय कलानै पण्
ु य
परदसशसत कर रही हैं और मेरी कालीनों और परदों को जलाना घोर अनयाय होगा। यह अद्भत
ु वस्तए
ु ं
सदै व के सलए संसार से लप्ु त हो जाएंगी। उमें से कई इतने सन
ु दर रं गों से सश
ु ोसभत हैं कक उनकी शोभा
अवणसनीय है , और लोगों ने उनहें मझ
ु े उपहार दे ने के सलए अतल
ु धन व्यय ककया था। मेरे पास अमक
ू य
प्याले, मनू तसयां और गचत्र हैं। मेरे ववचार में उनको जलाना भी अनगु चत होगा। लेककन मैं इस ववषय में कोई
आगरह नहीं करती। पज्
ू य वपता, आपकी जैसी इच्छा हो कीश्जए।'

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यह कहकर वह पापनाशी के पीछे पीछे अपने गहद्वार पर पहुंची श्जस पर अगणणत मनष्ु यों के हाथों से
हारों और पष्ु पमालाओं की भें ट पा चक
ु ी थी, और जब द्वार खल
ु ा तो उसने द्वारपाल से कहा कक घर के
समस्त सेवकों को बल
ु ाओ। पहले चार भारतवासी आये जो रसोई का काम करते थे। वह सब सांवले रं ग
के और काने थे। थायस को एक ही जानत के चार गल
ु ाम, और चारों काने, ब़िी मश्ु चकल से समले, पर यह
उसकी एक ददकलगी थी और जब तक चारों समल न गये थे, उसे चैन न आता था। जब वह मेज पर
भोज्यपदाथस चन
ु ते थे तो मेहमानों को उनहें दे खकर ब़िा कुतह
ू ल होता था। थायस परर्तयेक का वत्तानत
उसके मख
ु से कहलाकर मेहमानों का मनोरं जन करती थी। इस चारों के उनके सहायक आये। तब
ु ो़ थीं, दो कुशल
बारीबारी से साईस, सशकारी, पालकी उठाने वाले, हरकारे श्जनकी मासपेसशयां अर्तयनत सदृ
माली, छः भयंकर रूप के हशशी और तीन यन
ू ानी गल
ु ाम, श्जनमें एक वैयाकरण था, दस
ू रा कवव और तीसरा
गायक सब आकर एक लम्बी कतार मंेे
े ं ख़िे हो गये। उनके पीछे हश्शशनें आयीं श्जनकी ब़िीब़िी गोल
आंखों में शंका, उर्तसक
ु ता और उद्ववग्नता झलक रही थी, और श्जनके मख
ु कानों तक फटे हुए थे। सबके
पीछे छः तरुणी रूपवती दाससयां, अपनी नकाबों को संभालती और धीरे धीरे बेड़ियों से जक़िे हुए पांव
उठाती आकर उदासीन भाव से ख़िी हुईं।

जब सबके-सब जमा हो गये तो थायस ने पापनाशी की ओर उं गली उठाकर कहा-'दे खो, तम्
ु हें यह महार्तमा
जो आज्ञा दें उसका पालन करो। यह ईचवर के भक्त हैं। जो इनकी अवज्ञा करे गा वह ख़िेख़िे मर
जायेगा।'

उसने सन
ु ा था और इस पर ववचवास करती थी कक धमार्श्सम के संत श्जस अभागे परु
ु ष पर कोप करके
छ़िी से मारते थे, उसे ननगलने के सलए पथ्वी अपना मह
ंु खोल दे ती थी।

पापनाशी ने यन
ू ानी दासों और दाससयों को सामने से हटा ददया। वह अपने ऊपर उनका साया भी न प़िने
दे ना चाहता था और शेष सेवकों से कहा-'यहां बहुतसी लक़िी जमा करो, उसमें आग लगा दो और जब
अश्ग्न की ज्वाला उठने लगे तो इस घर के सब साजसामान समट्टी के बतसन से लेकर सोने के थालों तक,
टाट के टुक़िे से लेकर, बहुमक
ू य कालीनों तक, सभी मनू तसयां, गचत्र, गमले, गड्डमड्ड करके इसी गचता में डाल
दो, कोई चीज बाकी न बचे।'

यह ववगचत्र आज्ञा सन
ु कर सबके-सब ववश्स्मत हो गये, और अपनी स्वासमनी की ओर कातर नेत्रों से ताकते
हुए मनू तसवत ख़िे रह गये। वह अभी इसी अकमसण्य दशा में अवाक और ननचचल ख़िे थे, और एकदस
ू रे को

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कुहननयां ग़िाते थे, मानो वह इस हुक्म को ददकलगी समझ रहे हैं कक पापनाशी ने रौिरूप धारण करके
कहा-'क्यों त्रबलम्ब हो रहा है ?'

इसी समय थायस नंगे पैर, नछटके हुए केश कनधों पर लहराती घर में से ननकली। वह भद्दे मोटे वस्त्र
धारण ककये हुए थी, जो उसके दे हस्पशस मात्र से स्वगीयस, कामोत्तेजक सग
ु श्नध से पररपरू रत जान प़िते थे।
उसके पीछे एक माली एक छोटीसी हाथीदांत की मनू तस छाती से लगाये सलये आता था।

पापनाशी के पास आकर थायस ने मनू तस उसे ददखाई और कहा-'पज्


ू य वपता, क्या इसे भी आग में डाल दं ू ?
पराचीन समय की अद्भत
ु कारीगरी का नमन
ू ा है और इसका मक
ू य शतगण
ु स्वणस से कम नहीं। इस क्षनत
की पनू तस ककसी भांनत न हो सकेगी, क्योंकक संसार में एक भी ऐसा ननपण
ु स मनू तसकार नहीं है जो इतनी
सन
ु दर एरास (परे म का दे वता) की मनू तस बना सके। वपता, यह भी स्मरण रणखए कक यह परे म का दे वता
है ; इसके साथ ननदस यता करना उगचत नहीं। वपता, मैं आपको ववचवास ददलाती हूं कक परे म का अधमस से
कोई सम्बनध नहीं, और अगर मैं ववषयभोग में सलप्त हुई तो परे म की परे रणा से नहीं, बश्कक उसकी
अवहे लना करके, उसकी इच्छा के ववरुद्ध व्यवहार करके। मझ
ु े उन बातों के सलए कभी पचचात्ताप न होगा
जो मैंने उसके आदे श का उकलंघन करके की हैं। उसकी कदावप यह इच्छा नहीं है कक श्स्त्रयां उन परु
ु षों
का स्वागत करें जो उसके नाम पर नहीं आते। इस कारण इस दे वता की परनतष्ठा करनी चादहए। दे णखए
वपताजी, यह छोटासा एरास ककतना मनोहर है । एक ददन ननससयास ने, जो उन ददनों मझ
ु पर परे म करता
था इसे मेरे पास लाकर कहा-आज तो यह दे वता यहीं रहे गा और तम्
ु हें मेरी याद ददलायेगा। पर इस
नटखट बालक ने मझ
ु े ननससयास की याद तो कभी नहीं ददलाई; हां, एक यव
ु क की याद ननर्तय ददलाता रहा
जो एश्नटओक में रहता था और श्जसके साथ मैंने जीवन का वास्तववक आननद उठाया। कफर वैसा परु
ु ष
नहीं समला यद्यवप मैं सदै व उसकी खोज में तर्तपर रही। अब इस अश्ग्न को शानत होने दीश्जए, वपताजी !
अतल
ु धन इसकी भेंट हो चुका। इस बालमनू तस को आर्श्य दीश्जए और इसे स्वरक्षक्षत ककसी धमसशाला में
स्थान ददला दीश्जए। इसे दे खकर लोगों के गचत्त ईचवर की ओर परवत्त होंगे, क्योंकक परे म स्वभावतः मन
में उर्तकष्ट और पववत्र ववचारों को जागत करता है ।'

थायस मन में सोच रही थी कक उसकी वकालत का अवचय असर होगा और कमसे-कम यह मनू तस तो बच
जायेगी। लेककन पापनाशी बाज की भांनत झपटा, माली के हाथ से मनू तस छीन ली, तरु नत उसे गचता में डाल
ददया और ननदस य स्वर में बोला-'जब यह ननससयास की चीज है और उसने इसे स्पशस ककया है तो मझ
ु से
इसकी ससफाररश करना व्यथस है । उस पापी का स्पशसमात्र समस्त ववकारों से पररपरू रत कर दे ने के सलए
काफी है ।'

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तब उसने चमकते हुए वस्त्र, भांनतभांनत के आभष
ू ण, सोने की पादक
ु ाएं, रर्तनजदटत कंनघयां, बहुमक
ू य आईने,
भांनतभांनत के गानेबजाने की वस्तए
ु ं सरोद, ससतार, वीण, नाना परकार के फानस
ू , अंकवारों में उठाउठाकर
झोंकना शरू
ु ककया। इस परकार ककतना धन नष्ट हुआ, इसका अनम
ु ान करना है । इधर तो ज्वाला उठ
रही थी, गचनगाररयां उ़ि रही थीं, चटाकपटाक की ननरनतर ध्वनन सन
ु ाई दे ती थी, उधर हशशी गल
ु ाम इस
ववनाशक दृचय से उनमत्त होकर तासलयां बजाबजाकर और भीषण नाद से गचकलागचकलाकर नाच रहे थे।
ववगचत्र दृचय था, धमोर्तसासह का ककतना भयंकर रूप !

इन गल
ु ामों में से कई ईसाई थे। उनहोंने शीघर ही इस परकार का आचय समझ सलया और घर में ईंधन
और आग लाने गये। औरों ने भी उनका अनक
ु रण ककया, क्योंकक यह सब दररि थे और धन से घणा
करते थे और धन से बदला लेने की उनमें स्वाभाववक परववत्त थी-जो धन हमारे काम नहीं आता, उसे नष्ट
ही क्यों न कर डालें ! जो वस्त्र हमें पहनने को नहीं समल सकते, उनहें जला ही क्यों न डालें ! उनहें इस
परववत्त की शांत करने का यह अच्छा अवसर समला। श्जन वस्तओ
ु ं ने हमें इतने ददनों तक जलाया है ,
उनहें आज जला दें गे। गचता तैयार हो रही थी और घर की वस्तए
ु ं बाहर लाई जा रही थीं कक पापनाशी ने
थायस से कहा-पहले मेरे मन में यह ववचार हुआ कक इस्कश्निया के ककसी चचस के कोषाध्यक्ष को लाऊं
(यदद अभी कोई ऐसा स्थान है श्जसे चचस कहा जा सके, और श्जसे एररयन के भरष्टाचरण से भरष्ट न
कर ददया।) और उसे तेरी सम्पण
ू स सम्पवत्त दे दं ू कक वह उनहें अनाथ ववधवाओं और बालकों को परदान
कर दे और इस भांनत पापोपाश्जसत धन का पन
ु ीत उपयोग हो जाये। लेककन एक क्षण में यह ववचार जाता
रहा; क्योंकक ईचवर ने इसकी परे रणा न की थी। मैं समझ गया कक ईचवर को कभी मंजूर न होगा कक तेरे
पाप की कमाई ईसू के वपरय भक्तों को दी जाये। इससे उनकी आर्तमा को घोर दःु ख होगा। जो स्वयं
दररि रहना चाहते हैं, स्वयं कष्ट भोगना चाहते हैं, इससलए कक इससे उनकी आर्तमा शद्
ु ध होगी, उनहें यह
कलवु षत धन दे कर उनकी आर्तमशद्
ु गध के परर्तयन को ववफल करना उनके साथ ब़िा अनयाय होगा।
इससलए मैं ननचचय कर चक
ु ा हूं कक तेरा सवसस्व अश्ग्न का भोजन बन जाये, एक धागा भी बाकी न रहे !
ईचवर को कोदट धनयवाद दे ता हूं कक तेरी नाकबें और चोसलयां और कुनतसयां श्जनहोंने समि
ु की लहरों से
भी अगण्य चम्
ु बनों का आस्वादन ककया है , आज ज्वाला के मख
ु और श्जह्वा का अनभ
ु व करें गी। गल
ु ामो,
दौ़िो और लक़िी लाओ, और आग लाओ, तेल के कुप्पे लाकर लका
ु ो़ दो, अगर और कपरू और लोहबान
नछ़िक दो श्जसमें ज्वाला और भी परचण्ड हो जाये ! और थायस, तू घर में जा, अपने घणणत वस्त्रों को
उतार दे , आभष
ू णों को पैरों तले कुचल दे , और अपने सबसे दीन गल
ु ाम से पराथसना कर कक वह तझ
ु े
अपना मोटा कुरता दे दे ; यद्यवप तू इस दान को पाने योग्य नहीं है , श्जसे पहनकर वह तेरे फशस पर झा़ि
लगाता है ।

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थायस ने कहा-'मैंने इस आज्ञा को सशरोधायस ककया।'

जब तक चारों भारतीय काने बैठकर आग झोंक रहे थे, हशशी गल


ु ामों ने गचता में ब़िेब़िे हाथीदांत, आबनस

और सागौन के सनदक
ू डाल ददये जो धमाके से टूट गये और उनमें से बहुमक
ू य रर्तनजदटत आभष
ू ण
ननकल प़िे। अलाव में से धए
ु ं के कालेकाले बादल उठ रहे थे। तब अश्ग्न जो अभी तक सल
ु ग रही थी,
इतना भीषण शशद करके धंधक उठी, मानो कोई भयंकर वनपशु गरज उठा, और ज्वालाश्जह्वा जो सय
ू स के
परकाश में बहुत धध
ंु ली ददखाई दे ती थी, ककसी राक्षस की भांनत अपने सशकार को ननगलने लगी। ज्वाला
ने उत्तेश्जत होकर गल
ु ामों को भी उत्तेश्जत ककया। वे दौ़िदौ़िकर भीतर से चीजें बाहर लाने लगे। कोई
मोटीमोटी कालीनें घसीटे चला आता था, कोई वस्त्र के गट्ठर सलये दौ़िा आता था। श्जन नकाबों पर
सन
ु हरा काम ककया हुआ था, श्जन परदों पर सन
ु दर बेलबट
ू े बने हुए थे, सभी आग में झोंक ददये गये।
अश्ग्न मह
ुं पर नकाब नहीं डालना चाहती और न उसे परदों से परे म है । वह भीषण और नग्न रहना
चाहती है । तब लक़िी के सामानों की बारी आयी। भारी मेज, कुसससयां, मोटे मोटे गद्दे , सोने की पररयों से
सश
ु ोसभत पलंग गल
ु ामों से उठते ही न थे। तीन बसलष्ठ हशशी पररयों की मनू तसयां छाती से लगाये हुए
लाये। इन मनू तसयों में एक इतनी सन
ु दर थी कक लोग उससे स्त्री कासा परे म करते थे। ऐसा जान प़िता था
कक तीन जंगली बनदर तीन श्स्त्रयों को उठाये भागे जाते हैं ! और जब यह तीनों सन
ु दर नग्न मनू तसयां, इन
दै र्तयों के हाथ से छूटकर गगरीं और टुक़िेटुक़िे हो गयीं, तो गहरी शोकध्वनन कानों में आयी।

यह शोर सन
ु कर प़िोसी एकएक करके जागने लगे और आंखें मलमलकर णख़िककयों से दे खने लगे कक यह
धुआं कहां से आ रहा है । तब उसकी अधसनग्न दशा में बाहर ननकल प़िे और अलाव के चारों ओर जमा
हो गये।

यह माजरा क्या है ? यही परचन एक दस


ू रे से करता था।

इन लोगों में वह व्यापारी थे श्जनसे थायस इत्र, तेल, कप़िे आदद सलया करती थी, और वह सगचनत भाव से
मह
ुं लटकाये ताक रहे थे। उनकी समझ में कुछ न आता था कक यह क्या हो रहा है । कई ववषयभोगी
परु
ु ष जो रात भर के ववलास के बाद ससर पर हार लपेटे, कुरते पहने गल
ु ामों के पीछे जाते हुए उधर से
ननकले तो यह दृचय दे खकर दठठक गये और जोरजोर से तासलयां बजाकर गचकलाने लगे। धीरे धीरे
कुतह
ू लवश और लोग आ गये और ब़िी भी़ि जमा हो गयी। तब लोगों को ज्ञात हुआ कक थायस धमार्श्सम
के तपस्वी पापनाशी के आदे श से अपनी समस्त सम्पवत्त जलाकर ककसी आर्श्म में परववष्ट होने आ रही
है ।

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दक
ु ानदानों ने ववचार ककया-थायस यह नगर छो़िकर चली जा रही है । अब हम ककसके हाथ अपनी चीजें
बेचेंगे ? कौन हमें मह
ंु मांगे दाम दे गा। यह ब़िा घोर अनथस है । थायस पागल हो गयी है क्या ? इस योगी
ने अवचय उस पर कोई मनत्र डाल ददया है , नहीं तो इतना सख
ु ववलास छो़िकर तपश्स्वनी बन जाना सहज
नहीं है । उसके त्रबना हमारा ननवाहस क्योंकर होगा! वह हमारा सवसनाश ककये डालती है । योगी को क्यों ऐसा
करने ददया जाये? आणखर कानन
ू ककससलए है ? क्या इस्कश्निया में कोई नगर का शासक नहीं ? थायस
को हमारे बालबच्चों की जरा भी गचनता नहीं है उसे शहर में रहने के सलए मजबरू करना चादहए। धनी
लोग इसी भांनत नगर छो़िकर चले जायेंगे तो हम रह चुके। हम राज्यकर कहां से दें गे ?

यव
ु कगण को दस
ू रे परकार की गचनता थी-अगर थायस इस भांनत ननदस यता से नगर से जायेगी तो
नाट्यशालाओं को जीववत कौन रखेगा ? शीघर ही उनमें सननाटा छा जायेगा, हमारे मनोरं जन की मख्
ु य
सामगरी गायब हो जायेगी, हमारा जीवन शष्ु क और नीरस हो जायेगा। वह रं गभसू म का दीपक, आननद,
सम्मान, परनतभा और पराण थी। श्जनहोंने उसके परे म का आननद नहीं उठाया था, वह उसके दशसन मात्र
ही से कताथस हो जाते थे। अनय श्स्त्रयों से परे म करते हुए भी वह हमारे नेत्रों के सामने उपश्स्थत रहती
थी। हम ववलाससयों की तो जीवनधारा थी। केवल यह ववचार कक वह इस नगर में उपश्स्थत है , हमारी
वासनाओं को उद्दीप्त ककया करता था। जैसे जल की दे वी वश्ष्ट करती है , अश्ग्न की दे वी जलाती है , उसी
भांनत यह आननद की दे वी हृदय में आननद का संचार करती थी।

समस्त नगर में हलचल मची हुई थी। कोई पापनाशी को गासलयां दे ता था, कोई ईसाई धमस को और कोई
स्वयं परभु मसीह को सलवातें सन
ु ाता था। और थायस के र्तयाग की भी ब़िी तीवर आलोचना हो रही थी।
ऐसा कोई समाज न था जहां कुहराम न मचा हो।

'यों मह
ुं नछपाकर जाना लज्जास्पद है !'

'यह कोई भलमनसाहत नहीं है !'

'अजी, यह तो हमारे पेट की रोदटयां छीने लेती है !'

'वह आने वाली सनतान को अरससक बनाये दे ती है । अब उनहें रससकता का उपदे श कौन दे गा ?'

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'अजी, उसने तो अभी हमारे हारों के दाम भी नहीं ददये।'

'मेरे भी पचास जो़िों के दाम आते हैं।'

'सभी का कुछन-कुछ उस पर आता है ।'

'जब वह चली जायेगी तो नानयकाओें का पाटस कौन खेलेगा ?'

'इस क्षनत की पनू तस नहीं हो सकती।'

'उसका स्थान सदै व ररक्त रहे गा।'

'उसके द्वार बनद हो जायेंगे तो जीवन का आननद ही जाता रहे गा।'

'वह इस्कश्निया के गगन का सय


ू स थी।'

इतनी दे र में नगर भर के सभक्षुक, अपंग, लल


ू े, लंग़िे, कोी,ो़ अनधे सब उस स्थान पर जमा हो गये और जली
हुई वस्तओ
ु ं को टटोलते हुए बोले-अब हमारा पालन कौन करे गा ? उसकी मेज का जूठन खाकर दो सौ
अभागों के पेट भर जाते थे ? उसके परे मीगण चलते समय हमें मट्
ु दठयां भर रुपयेपस
ै े दान कर दे ते थे।

चोरचकारों की भी बन आयी। वह भी आकर इस भी़ि में समल गये और शोर मचामचाकर अपने पास के
आदसमयों को केलने लगे कक दं गा हो जाये और उस गोलमाल में हम भी ककसी वस्तु पर हाथ साफ करें ।
यद्यवप बहुत कुछ जल चक
ु ा था, कफर भी इतना शेष था कक नगर के सारे चोरचंडाल अयाची हो जाते !

इस हलचल में केवल एक वद्ध मनष्ु य श्स्थरगचत्त ददखाई दे ता था। वह थायस के हाथों दरू दे शों से
बहुमक
ू य वस्तु लालाकर बेचता था और थायस पर उसके बहुत रुपये आते थे। वह सबकी बातें सन
ु ता था,

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दे खता था कक लोग क्या करते हैं। रहरहकर दाी ो़ पर हाथ फेरता था और मन में कुछ सोच रहा था।
एकाएक उसने एक यव
ु क को सन
ु दर वस्त्र पहने पास ख़िे दे खा। उसने यव
ु क से पछ
ू ा-'तम
ु थायस के
परे समयों में नहीं हो !'

यव
ु क-'हां, हूं तो बहुत ददनों से।'

वद्ध-तो जाकर उसे रोकते क्यों नहीं ?'

यव
ु क-'और क्या तम
ु समझते हो कक उसे जाने दं ग
ू ा ? मन में यही ननचचय करके आया हूं। शेखी तो नहीं
मारता लेककन इतना तो मझ
ु े ववचवास है कक मैं उसके सामने जाकर ख़िा हो जाऊंगा तो वह इस बंदरमह
ुं े
पादरी की अपेक्षा मेरी बातों पर अगधक ध्यान दे गी।'

वद्ध-'तो जकदी जाओ। ऐसा न हो कक तम्


ु हारे पहुंचतेपहुंचते वह सवार हो जाये।'

यव
ु क-'इस भी़ि को हटाओ।'

वद्ध व्यापारी ने 'हटो, जगह दो' का गल


ु मचाना शरू
ु ककया और यव
ु क घस
ू ों और ठोकरों से आदसमयों को
हटाता, वद्धों को गगराता, बालकों को कुचलता, अनदर पहुंच गया और थायस का हाथ पक़िकर धीरे से
बोला-'वपरय, मेरी ओर दे खो। इतनी ननष्ठुरता ! याद करो, तम
ु ने मझ
ु से कैसीकैसी बातें की थीं, क्याक्या वादे
ककये थे, क्या अपने वादों को भल
ू जाओगी ? क्या परे म का बनधन इतना ेीला हो सकता है ?'

थायस अभी कुछ जवाब न दे पायी थी कक पापनाशी पलककर उसके और थामस के बीच में ख़िा हो गया
और डांटकर बोला-'दरू हट, पापी कहीं का ! खबरदार जो उसकी दे ह को स्पशस ककया। वह अब ईचवर की है ,
मनष्ु य उसे नहीं छू सकता।'

यव
ु क ने क़िककर कहा-'हट यहां से, वनमानष
ु ! क्या तेरे कारण अपनी वपरयतमा से न बोलंू ? हट जाओ,
नहीं तो यह दाी ो़ पक़िकर तम्
ु हारी गनदी लाश को आग के पास खींच ले जाऊंगा और कबाब की तरह भन

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डालग
ूं ा। इस भरम में मत रह कक तू मेरे पराणाधार को यों चुपके से उठा ले जायेगा। उसके पहले मैं तझ
ु े
संसार से उठा दं ग
ू ा !'

यह कहकर उसने थायस के कनधे पर हाथ रखा। लेककन पापनाशी ने इतनी जोर से धक्का ददया कक वह
कई कदम पीछे ल़िख़िाता हुआ चला गया और त्रबखरी हुई राख के समीप चारों खाने गचत्त गगर प़िा।

लेककन वद्ध सौदागर शानत न बैठा। वह परर्तयेक मनष्ु य के पास जाजाकर गल


ु ामों के कान खींचता, और
स्वासमयों के हाथों को चूमता और सभी को पापनाशी के ववरुद्ध उत्तेश्जत कर रहा था कक थो़िी दे र में
उसने एक छोटासा जर्तथा बना सलया जो इस बात पर कदटबद्ध था कक पापनाशी को कदावप अपने कायस
में सफल न होने दे गा। मजाल है कक यह पादरी हमारे नगर की शोभा को भगा ले जाये ! गदस न तो़ि
दें गे। पछ
ू ो, धमार्श्सम में ऐसी रमणणयों की क्या जरूरत ? क्या संसार में ववपवत्त की मारी बनु यों की कमी है
? क्या उनके आंसओ
ु ं से इन पादररयों को सनटोष नहीं होता कक यव
ु नतयों को भी रोने के सलए मजबरू
ककया जाये!

यव
ु क का नाम ससरोन था। वह धक्का खाकर गगरा, ककनतु तरु नत गदस झा़िकर उठ ख़िा हुआ। उसका मह
ंु
राख से काला हो गया था, बाल झल
ु स गये थे, त्र्कोध और धए
ु ं से दम घट
ु रहा था। वह दे वताओं को
गासलयां दे ता हुआ उपिववयों को भ़िकाने लगा। पीछे सभखाररयों का दल उर्तपात मचाने पर उद्यत था।
एक क्षण में पापनाशी तने हुए घस
ंू ों, उठी हुई लादठयों और अपमानसच
ू क अपशशदों के बीच में नघर गया।

एक ने कहा-'मारकर कौवों को णखला दो !'

'नहीं जला दो, जीता आग में डाल दो, जलाकर भस्म कर दो !'

लेककन पापनाशी जरा भी भयभीत न हुआ। उसने थायस को पक़िकर खींच सलया और मेघ की भांनत
गरजकर बोला-'ईचवरिोदहयों, इस कपोत को ईचवरीय बीज के चंगल
ु से छु़िाने की चेष्टा मत करो, तम

आज श्जस आग में जल रहे हो, उसमें जलने के सलए उसे वववश मत करो बश्कक उसकी रीस करो और
उसी की भांनत अपने खोटे को भी खरा कंचन बना दो। उसका अनक
ु रण करो, उसके ददखाये हुए मागस पर
अगरसर हो, और उस ममता को र्तयाग दो जो तम्
ु हें बांधे हुए है और श्जसे तम
ु समझते हो कक हमारी है ।
ववलंब न करो, दहसादा का ददन ननकट है और ईचवर की ओर से वजराघात होने वाला ही है । अपने पापों

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पर पछताओ, उनका परायश्चचत करो, तौबा करो, रोओ और ईचवर से क्षमापराथसना करो। थायस के
पदगचह्नों पर चलो। अपनी कुवासनाओं से घणा करो जो उससे ककसी भांनत कम नहीं हैं। तम
ु में से कौन
इस योग्य है , चाहे वह धनी हो या कंगाल, दास हो या स्वामी, ससपाही हो या व्यापारी, जो ईचवर के सम्मख

ख़िा होकर दावे के साथ कह सके कक मैं ककसी वेचया से अच्छा हूं ? तम
ु सबके-सब सजीव दग
ु नस ध के
ससवा और कुछ नहीं हो और यह ईचवर की महान दया है कक वह तम्
ु हें एक क्षण में कीच़ि की मोररयां
नहीं बना डालता।'

जब तक वह बोलता रहा, उसकी आंखों से ज्वालासी ननकल रही थी। ऐसा जान प़िता था कक उसके मख

से आग के अंगारे बरस रहे हैं। जो लोग वहां ख़िे थे, इच्छा न रहने पर भी मनत्र मग्ु ध से ख़िे उसकी
बातें सन
ु रहे थे।

ककनतु वह वद्ध व्यापारी ऊधम मचाने में अर्तयनत परवीण था। वह अब भी शांत न हुआ। उसने जमीन
से पर्तथर के टुक़िे और घोंघे चुन सलये और अपने कुरते के दामन में नछपा सलये, ककनतु स्वयं उनहें फेंकने
का साहस न करके उसने वह सब चीजें सभक्षुकों के हाथों में दे दीं। कफर क्या था ? पर्तथरों की वषास होने
लगी और एक घोंघा पापनाशी के चेहरे पर ऐसा आकर बैठा कक घाव हो गया। रक्त की धारा पापनाशी के
चेहरे पर बहबहकर र्तयागगनी थायस के ससर पर टपकने लगी, मानो उसे रक्त के बपनतस्मा से पन
ु ः
संस्कत ककया जा रहा था। थायस को योगी ने इतनी जोर से भींच सलया था कक उसका दम घट
ु रहा था
और योगी के खुरखुरे वस्त्र से उसका कोमल शरीर नछला जाता था। इस असमंजस में प़िे हुए, घणा और
त्र्कोध से उसका मख
ु लाल हो रहा था।

इतने में एक मनष्ु य भ़िकीले वस्त्र पहने, जंगली फूलों की एक माला ससर पर लपेटे भी़ि को हटाता हुआ
आया और गचकलाकर बोला-'ठहरो, ठहरो, यह उर्तपात क्यों मचा रहे हो ? यह योगी मेरा भाई है ।'

यह ननससयास था, जो वद्ध यत्र्ू कसइटीज कसे कबर में सल


ु ाकर इस मैदान में होता हुआ घर लौटा जा रहा
था। दे खा तो अलाव जल रहा है , उसमें भांनतभांनत की बहुमक
ू य वस्तए
ु ं प़िी सल
ु ग रही हैं, थायस एक मोटी
चादर ओो़े ख़िी है और पापनाशी पर चारों ओर से पर्तथरों की बौछार हो रही है । वह यह दृचय दे खकर
ववश्स्मत तो नहीं हुआ, वह आवेशों से वशीभत
ू न होता था। हां, दठठक गया और पापनाशी को इस
आत्र्कमण से बचाने की चेष्टा करने लगा।

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उसने कफर कहा-'मैं मना कर रहा हूं, ठहरो, पर्तथर न फेंको। यह योगी मेरा वपरय सहपाठी है । मेरे वपरय
समत्र पापनाशी पर अर्तयाचार मत करो।'

ककनतु उसकी ललकार का कुछ असर न हुआ। जो परु


ु ष नैयानयकों के साथ बैठा हुआ बाल की खाल
ननकालने ही में कुशल हो, उसमें वह नेतर्तवशश्क्त कहां श्जसके सामने जनता के ससर झक
ु जाते हैं। पर्तथरों
और घोघों की दस
ू री बौछार प़िी, ककनतु पापनाशी थायस को अपनी दे ह से रक्षक्षत ककये हुए पर्तथरों की
चोटें खाता था और ईचवर को धनयवाद दे ता था श्जसकी दयादृश्ष्ट उनके घावों पर मरहम रखती हुई जान
प़िती थी। ननससयास ने जब दे खा कक यहां मेरी कोई नहीं सन
ु ता और मन में यह समझकर कक मैं अपने
समत्र की रक्षा न तो बल से कर सकता हूं न वाक्चातरु ी से, उसने सब कुछ ईचवर पर छो़ि ददया। (यद्यवप
ईचवर पर उसे अणुमात्र भी ववचवास न था।) सहसा उसे एक उपाय सझ
ू ा। इन पराणणयों को वह इतना
नीच समझता था कक उसे अपने उपाय की सफलता पर जरा भी सनदे ह न रहा। उसने तरु नत अपनी थैली
ननकाल ली, श्जसमें रुपये और अशकफस यां भरी हुई थीं। वह ब़िा उदार, ववलासपरे मी परु
ु ष था, और उन
मनष्ु यों के समीप जाकर जो पर्तथर फेंक रहे थे, उनके कानों के पास मि
ु ाओं को उसने खनखनाया। पहले
तो वे उससे इतने झकलाये हुए थे, लेककन शीघर ही सोने की झंकार ने उनहें लशु ध कर ददया, उनके हाथ
नीचे को लटक गये। ननससयास ने जब दे खा कक उपिवकारी उसकी ओर आकवषसत हो गए तो उसने कुछ
रुपये और मोहरें उनकी ओर फेंक दीं। उनमें से जो ज्यादा लोभी परकनत के थे, वह झुकझुककर उनहें
चुनने लगे। ननससयास अपनी सफलता पर परसनन होकर मट्
ु दठयां भरभर रुपये आदद इधरउधर फेंकने
लगा। पक्की जमीन पर अशकफस यों के खनकने की आवाज सन
ु कर पापनाशी के शत्रओ
ु ं का दल भसू म पर
ससजदे करने लगा। सभक्षु गल
ु ाम छोटे मोटे दक
ु ानदार, सबके-सब रुपये लट
ू ने के सलए आपस में धींगामचु ती
करने लगे और ससरोन तथा अनय भिसमाज के पराणी दे र से यह तमाशा दे खते थे और हं सतेहंसते लोट
जाते थे। स्वयं ससरोन का त्र्कोध शानत हो गया। उसके समत्रों ने लट
ू ने वाले परनतद्वनद्ववयां को भ़िकाना
शरू
ु ककया मानो पशओ
ु ं को ल़िा रहे हों। कोई कहता था, अब की यह बाजी मारे गा, इस पर शतस बदता हूं,
कोई ककसी दस
ू रे योद्घा का पक्ष लेता था, और दोनों परनतपक्षक्षयों में सैक़िों की हारजीत हो जाती थी। एक
त्रबना टांगों वाले पंगल
ु ने जब एक मोहर पायी तो उसके साहस पर तासलयां बजने लगीं। यहां तक कक
सबने उस पर फूल बरसाये। रुपये लट
ु ाने का तमाशा दे खतेदेखते यह यव
ु क वनद इतने खुश हुए कक स्वयं
लट
ु ाने लगे और एक क्षण में समस्त मैदान में ससवाय पीठों के उठने और गगरने के और कुछ ददखाई ही
न दे ता था, मानो समि
ु की तरं गें चांदीसोने के ससक्कों के तफ
ू ान से आनदोसलत हो रही हों। पापनाशी को
ककसी की सध
ु ही न रही।

तब ननससयास उसके पास लपककर गया, उसने अपने लबादे में नछपा सलया और थायस को उसके साथ
एक पास की गली में खींच ले गया जहां वविोदहयों से उनका गला छूटा। कुछ दे र तक तो वह चुपचाप

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दौ़िे, लेककन जब उनहें मालम
ू हो गया कक हम काफी दरू ननकल आये और इधर कोई हमारा पीछा करने
न आयेगा तो उनहोंने दौ़िना छो़ि ददया। ननससयास ने पररहासपण
ू स स्वर में कहा-'लीला समाप्त हो गयी।
असभनय का अंत हो गया। थायस अब नहीं रुक सकती। वह अपने उद्घारकतास के साथ अवचय जायेगी,
चाहे वह उसे जहां ले जाये।'

थायस ने उत्तर ददया-'हां, ननससयास, तम्


ु हारा कथन सवसथा ननमल
ू स नहीं है । मैं तम
ु जैसे मनष्ु यों के साथ
रहतेरहते तंग आ गयी हूं, जो सग
ु नध से बसे, ववलास में डूबे हुए, सहृदय आर्तमसेवी पराणी हैं। जो कुछ मैंने
अनभ
ु व ककया है , उससे मझ
ु े इतनी घणा हो गई है कक अब मैं अज्ञात आननद की खोज में जा रही हूं।
मैंने उस सख
ु को दे खा है जो वास्तव में सख
ु नहीं था, और मझ
ु े एक गरु
ु समला है जो बतलाता है कक
दःु ख और शोक ही में सच्चा आननद है । मेरा उस पर ववचवास है क्योंकक उसे सर्तय का ज्ञान है ।'

ननससयास ने मस्
ु कराते हुए कहा-'और वपरये, मझ
ु े तो सम्पण
ू स सर्तयों का ज्ञान पराप्त है । वह केवल एक ही
सर्तय का ज्ञाता है , मैं सभी सर्तयों का ज्ञाता हूं। इस दृश्ष्ट से तो मेरा पद उसके पद से कहीं ऊंचा है ,
लेककन सच पछ
ू ो तो इससे न कुछ गौरव पराप्त होता है , न कुछ आननद।'

तब यह दे खकर कक पापनाशी मेरी ओर तापमय नेत्रों से ताक रहा है , उसने सम्बोगधत करके कहा-'वपरय
समत्र पापनाशी, यह मत सोचो कक मैं तम्
ु हें ननरा बद्
ु घ,ू पाखण्डी या अनधववचवासी समझता हूं। यदद मैं
अपने जीवन की तम्
ु हारे जीवन से तल
ु ना करुं , तो मैं स्वयं ननचचय न कर सकंू गा कक कौन र्श्ेष्ठ है । मैं
अभी यहां से जाकर स्नान करुं गा, दासों ने पानी तैयार कर रखा होगा, तब उत्तम वस्त्र पहनकर एक तीतर
के डैनों का नाचता करुं गा, और आननद से पलंग पर लेटकर कोई कहानी पग
ंू ो़ ा या ककसी दाशसननक के
ववचारों का आस्वादन करुं गा। यद्यवप ऐसी कहाननयां बहुत पॄ चक
ु ा हूं और दाशसननकों के ववचारों में भी
कोई मौसलकता या नवीनता नहीं रही। तम
ु अपनी कुटी में लौटकर जाओगे और वहां ककसी ससधाये हुए
ऊंट की भांनत झंक
ु कर कुछ जग
ु ालीसी करोगे, कदागचत कोई एक हजार बार के चबाये हुए शशदाडम्बर को
कफर से चबाओगे, और सनध्या समय त्रबना बघारी हुई भाजी खाकर जमीन पर लेटे रहोगे। ककनतु बनधव
ु र,
यद्यवप हमारे और तम्
ु हारे मागस पथक है , यद्यवप हमारे ओर तम्
ु हारे कायसत्र्कम में ब़िा अनतर ददखाई
प़िता है , लेककन वास्तव में हम दोनों एक ही मनोभाव के अधीर कायस कर रहे हैं-वही जो समस्त मानव
कर्तयों का एकमात्र कारण है। हम सभी सख
ु के इच्छुक हैं, सभी एक ही लक्ष्य पर पहुंचना चाहते हैं। सभी
का अभीष्ट एक ही है-आननद, अपराप्त आननद, असम्भव आननद। यही मेरी मख
ू त
स ा होगी अगर में कहूं
कक तम
ु गलती पर हो यद्यवप मेरा ववचार है कक मैं सर्तय पर हूं।

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'और वपरये थायस, तम
ु से भी मैं यही कहूंगा कक जाओ और अपनी श्जनदगी के मजे उठाओ, और यदद यह
बात असम्भव न हो, तो र्तयाग और तपस्या में उससे अगधक आननदलाभ करो श्जतना तम
ु ने भोग और
ववलास में ककया है । सभी बातों का ववचार करके मैं कह सकता हूं कक तम्
ु हारे ऊपर लोगों को हसद होता
था क्योंकक यदद पापनाशी ने और मैंने अपने समस्त जीवन में एक ही एक परकार के आननदों का
आस्वादन ककया है जो त्रबरले ही ककसी मनष्ु य को पराप्त हो सकते हैं। मेरी हाददसक असभलाषा है कक एक
घण्टे के सलए मैं बनधु पापनाशी की तरह सनत हो जाता। लेककन यह सम्भव नहीं। इससलए तम
ु को भी
ववदा करता हूं, जाओ जहां परकनत की गप्ु त शश्क्तयां और तम्
ु हारा भाग्य तम्
ु हें ले जाय ! जाओ जहां
तम्
ु हारी इच्छा हो, ननससयास की शभ
ु ेच्छाएं तम्
ु हारे साथ रहें गी। मैं जानता हूं कक इस समय अनगसल बातें
कर रहा हूं, इस पर असार शभ
ु कामनाओं और ननमल
ूस पछतावे के ससवाय, मैं उस सख
ु मय भरांनत का क्या
मक
ू य दे सकता हूं जो तम्
ु हारे परे म के ददनों में मझ
ु पर छायी रहती थीं और श्जसकी स्मनत छाया की
भांनत मेरे मन में रह गयी है ? जाओ मेरी दे वी, जाओ, तम
ु परोपकार की मनू तस हो श्जसे अपने अश्स्तर्तव का
ज्ञान नहीं, तम
ु लीलामयी सष
ु मा हो। नमस्कार है उस सवसर्श्ेष्ठ, सवोर्तकस ष्ट मायामनू तस को जो परकनत ने
ककसी अज्ञात कारण से इस असार, मायावी संसार को परदान की है ।'

पापनाशी के हृदय पर इस कथन का एकएक शशद वजर के समान प़ि रहा था। अनत में वह इन
अपशशदों से परनतध्वननत हुआ-हा ! दज
ु न
स , दष्ु ट, पापी ! मैं तझ
ु से घणा करता हूं और तझ
ु े तच्
ु छ समझता
हूं ! दरू हो यहां से, नरक के दत
ू , उन दब
ु ल
स , दःु खी म्लेच्छों से भी हजार गन
ु ा ननकष्ट, जो अभी मझ
ु े पर्तथरों
और दव
ु च
स नों का ननशाना बना रहे थे ! वह अज्ञानी थे, मख
ू स थे; उनहें कुछ ज्ञान न था कक हम क्या कर रहे
हैं और सम्भव है कक कभी उन पर ईचवर की दयादृश्ष्ट कफरे और मेरी पराथसनाओं के अनस
ु ार उनके
अनतःकरण शद्
ु ध हो जायें लेककन ननससयास, अस्पचय पनतत ननससयास, तेरे सलए कोई आशा नहीं है , तू
घातक ववष है । तेरे मख
ु से नैराचय और नाश के शशद ही ननकलते हैं। तेरे एक हास्य से उससे कहीं
अगधक नाश्स्तकता परवादहत होती है श्जतनी शैतान के मख
ु से सौ वषों में भी न ननकलती होगी।

ननससयास ने उसकी ओर ववनोदपण


ू स नेत्रों से दे खकर कहा-'बनधुवर, परणाम ! मेरी यही इच्छा है कक अनत
तक तम
ु ववचवास, घणा और परे म के पथ पर आऱु रहो। इसी भांनत तम
ु ननर्तय अपने शत्रओ
ु ं को कोसते
और अपने अनय
ु ानययों से परे म करते रहो। थायस, गचरं जीवी रहो। तम
ु मझ
ु े भल
ू जाओगी, ककनतु मैं तम्
ु हें
न भल
ू ग
ूं ा। तम
ु यावज्जीवन मेरे हृदय में मनू तसमान रहोगी।'

उनसे त्रबदा होकर ननससयास इस्कश्निया की कत्रबरस्तान के ननकट पेचदार गसलयों में ववचारपण
ू स गनत से
चला। इस मागस में अगधकतर कुम्हार रहते थे, जो मद
ु ों के साथ दफन करने के सलए णखलौने, बतसन आदद

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बनाते थे। उनकी दक
ु ानें समट्टी की सन
ु दर रं गों से चमकती हुई दे ववयों, श्स्त्रयों उ़िने वाले दत
ू ों और ऐसी
ही अनय वस्तओ
ु ं की मनू तसयों से भरी हुई थीं। उसे ववचार हुआ, कदागचत इन मनू तसयों में कुछ ऐसी भी हों
जो महाननिा में मेरा साथ दें और उसे ऐसा परतीत हुआ मानो एक छोटी परे म की मनू तस मेरा उपहास कर
रही है । मर्तयु की ककपना ही से उसे दःु ख हुआ। इस वववाद को दरू करने के सलए उसने मन में तकस
ककया-इसमें तो कोई सनदे ह ही नहीं कक काल या समय कोई चीज नहीं। वह हमारी बद्
ु गध की भरांनतमात्र
है , धोखा है । तो जब इसकी सत्ता ही नहीं तो वह मेरी मर्तयु को कैसे ला सकता है। क्या इसका यह आशय
है कक अननतकाल तक मैं जीववत रहूंगा ? क्या मैं भी दे वताओं की भांनत अमर हूं ? नहीं, कदावप नहीं।
लेककन इससे यह अवचय ससद्गध होता है कक वह इस समय है , सदै व से है , और सदै व रहे गा। यद्यवप मैं
अभी इसका अनभ
ु व नहीं कर रहा हूं, पर यह मझ
ु में ववद्यमान है और मझ
ु े उससे शंका न करनी चादहए,
क्योंकक उस वस्तु के आने से डरना, जो पहले ही आ चक
ु ी है दहमाकत है । यह ककसी पस्
ु तक के अश्नतम
ष्पठ के समान उपश्स्थत है , श्जसे मैंने पॄा है , पर अभी समाप्त नहीं कर चुका हूं।

उसका शेष रास्ता इस वाद में कट गया, लेककन इससे उसके गचत्त को शाश्नत न समली, और जब यह घर
पहुंचा तो उसका मन वववादपण
ू स ववचारों से भरा हुआ था। उसकी दोनों यव
ु ती दाससयां परसनन, हं सहं सकर
टे ननस खेल रही थीं। उनकी हास्यध्वनन ने अनत में उसके ददल का बोझ हकका ककया।

पापनाशी और थामस भी शहर से ननकलकर समि


ु के ककनारे ककनारे चले। रास्ते में पापनाशी बोला-'थायस,
इस ववस्तत सागर का जल भी तेरी कासलमाओं को नहीं धो सकता।' यह कहतेकहते उसे अनायास िोध
आ गया। थायस को गधक्कारने लगा-'तू कुनतयों और शक
ू ररयों से भी भरष्ट है , क्योंकक तन
ू े उस दे ह को
जो ईचवर ने तझ
ु े इस हे तु ददया था कक तू उसकी मनू तस स्थावपत करे , ववधसमसयों और म्लेच्छों द्वारा दसलत
कराया है और तेरा दरु ाचरण इतना अगधक है कक तू त्रबना अनतःकरण में अपने परनत घणा का भाव
उर्तपनन ककये न ईचवर की पराथसना कर सकती है न वनदना।'

धप
ू के मारे जमीन से आंच ननकल रही थी और थायस आपने नये गरु
ु के पीछे ससर झक
ु ाये पथरीली
स़िकों पर चली जा रही थी। थकान के मारे उसके घट
ु नों में पी़िा होने लगी और कंठ सख
ू गया। लेककन
पापनाशी के मन में दयाभाव का जागना तो दरू रहा, (जो दरु ार्तमाओं को भी नमस कर दे ता है ) वह उलटे
उस पराणी के परायश्चचत पर परसनन हो रहा था श्जस के पापों का वारापार न था। वह धमोर्तसासह से
इतना उत्तेश्जत हो रहा था कक उसे दे ह को लोहे के सांगों से छे दने में भी उसे संकोच न होता श्जसका
सौनदयस उसकी कलष
ु ता का मानो उज्ज्वल परमाण था। ज्योंज्यों वह ववचार में मग्न होता था, उसका
परकोप औरभी परचण्ड होता जाता था। जब उसे याद आता था कक ननससयास उसके साथ सहयोग

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करचुका है तो उसका रक्त खौलने लगता था और ऐसा जान प़िता था कक उसकी छाती फट जायेगी।
अपशशद उसके होंठों पर आआकर रुक जाते थे और वह केवल दांत पीसपीसकररह जाता था। सहसा वह
उछलकर, ववकराल रूप धारण ककये हुए उसके सम्मख
ु ख़िा हो गया और उसके मह
ुं पर थूक ददया। उसकी
तीवर दृश्ष्ट थायस के हृदय में चुभी जाती थी!

थायस ने शाश्नतपव
ू क
स अपना मह
ंु पोंछ सलया और पापनाशी के पीछे चलती रही। पापनाशी उसकी ओर
ऐसी कठोर दृश्ष्ट से ताकता था मानो वह सनदे ह नरक है । उसे यह गचनता हो रही थी कक मैं इससे परभु
मसीह का बदला क्योंकर ल,ंू क्योंकक थायस ने मसीह को अपने कुकर्तयों से इतना उर्तपीड़ित ककया था कक
उनहें स्वयं उसे दण्ड दे ने का कष्ट न उठाना प़िे। अक्समात उसे रुगधर की एक बद
ंू ददखाई दी जो थायस
के पैरों से बहकर मागस पर गगरी थी। उसे दे खते ही पापनाशी का हृदय दया से प्लाववत हो गया, उसकी
कठोर आकनत शानत हो गयी। उसके हृदय में एक ऐसा भाव परववष्ट हुआ श्जससे वह अभी अनसभज्ञ था।
वह रोने लगा, सससककयों का तार बंध गया, तब वह दौ़िकर उसके सामने माथा ठोंककर बैठ गया और
उसके चरणों पर गगरकर कहने लगा-'बहन, मेरी माता, मेरी दे वी'-और उसके रक्त प्लाववत चरणों को चूमने
लगा।

तब उसने शद्
ु ध हृदय से यह पराथसना की-ऐ स्वगस के दत
ू ो ! इस रक्त की बद
ूं को सावधानी से उठाओ
और इसे परम वपता के ससंहासन के सम्मख
ु ले जाओ। ईचवर की इस पववत्र भसू म पर, जहां यह रक्त बहा
है , एक अलौककक पष्ु पवक्ष उर्तपनन हो। उसमें स्वगीयस सग
ु नधयक्
ु त फूल सलखें और श्जन पराणणयों की
दृश्ष्ट उस पर प़िे और श्जनकी नाक में उसकी सग
ु नध पहुंचे, उनके हृदय शद्
ु ध और उनके ववचार पववत्र
हो जायें। थायस परमपज्
ू य थायस ! तझ
ु े धनय है ; आज तन
ू े वह पद पराप्त कर सलया श्जसके सलए ब़िेब़िे
ससद्ध योगी भी लालानयत रहते हैं।

श्जस समय वह यह पराथसना और शभ


ु ाकांक्षा करने में मग्न था। ल़िका गधे पर सवार जाता हुआ समला।
पापनाशी ने उसे उतरने की आज्ञा दी; थायस को गधे पर त्रबठा ददया और तब उसकी बागडोर पक़िकर ले
चला। सय
ू ास्तस के समय वे एक नहर पर पहुंचे श्जस पर सघन वक्षों का साया था। पापनाशी ने गधे को
एक छुहारे के वक्ष से बांध ददया और काई से की हुई चट्टान पर बैठकर उसने एक रोटी ननकाली और
उसे नमक और तेल के साथ दोनों ने खाया, गचकलू से ताजा पानी वपया और ईचवरीय ववषय पर सम्भाषण
करने लगे।

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थायस बोली-'पज्
ू य वपता, मैंने आज तक कभी ऐसा ननमसल जल नहीं वपया, और न ऐसी पराणपरद स्वच्छ
वायु में सांस सलया। मझ
ु े ऐसा अनभ
ु व हो रहा है कक इस समीकरण में ईचवर की ज्योनत परवादहत हो
रही है ।'

पापनाशी बोला-'वपरय बहन, दे खो संध्या हो रही है । ननशा की सच


ू ना दे ने वाली चयामला पहाड़ियों पर छाई
हुई है । लेककन शीघर ही मझ
ु े ईचवरीय ज्योनत, ईचवरीय उषा के सन
ु हरे परकाश में चमकती हुई ददखाई
दे गी, शीघर ही तझ
ु े अननत परभाव के गल
ु ाबपष्ु पों की मनोहर लासलमा आलोककत होती हुई दृश्ष्टगोचर
होगी।

दोनों रात भर चलते रहे । अद्सधचनि की ज्योनत लहरों के उज्ज्वल मक


ु ु ट पर जगमगा रही थी; नौकाओं के
सफेद पाल उस शाश्नतमय ज्योर्तस्ना में ऐसे जान प़िते थे मानो पन
ु ीत आर्तमाएं स्वगस को परयाण कर
रही हैं। दोनों पराणी स्तनु त और भजन गाते हुए चले जाते थे। थायस के कण्ठ का माधुय,स पापनाशी की
पंचम ध्वनन के साथ समगर्श्त होकर ऐसा जान प़िता कक सन
ु दर वस्त्र पर टाट का बणखया कर ददया गया
है ! जब ददनकर ने अपना परकाश फैलाया, तो उनके सामने लाइत्रबया की मरुभसू म एक ववस्तत ससंह चमस
की भांनत फैली हुई ददखाई दी। मरुभसू म के उस ससरे पर कई छुहारे के वक्षों के मध्य में कई सफेद
झोंपड़ियां परभात के मनद परकाश में झलक रही थीं।

थायस ने पछ
ू ा-'पज्
ू य वपता, क्या वह ईचवरीय ज्योनत का मश्नदर है ?'

'हां वपरय बहन, मेरी वपरय पत्र


ु ी, वही मश्ु क्तगह है , जहां मैं तझ
ु े अपने ही हाथों से बनद करुं गा।'

एक क्षण में उनहें कई श्स्त्रयां झोंपड़ियों के आसपास कुछ काम करती हुई ददखाई दीं, मानो मधुमश्क्खयां
अपने छत्तों के पास सभनसभना रही हों। कई श्स्त्रयां रोदटयां पकाती थीं, कई शाकभाजी बना रही थीं, बहुतसी
श्स्त्रयां ऊन कात रही थीं और आकाश की ज्योनत उन पर इस भांनत प़ि रही थी मानो परम वपता की
मधुर मस्
ु कान है , और ककतनी ही तपश्स्वननयां झाऊ के वक्षों के नीचे बैठी ईचवरवनदना कर रही थीं, उनके
गोरे गोरे हाथ दोनों ककनारे लटके हुए थे क्योंकक ईचवर के परे म से पररपण
ू स हो जाने के कारण वह हाथों से
कोई काम न करती थीं; केवल ध्यान, आराधना और स्वगीयस आननद में ननमग्न रहती थीं। इससलए उनहें
'माता मररयम की पत्रु त्रयां' कहते थे, और वह उज्ज्वल वस्त्र ही घारण करती थीं। जो श्स्त्रयां हाथों से
कामधनधा करती थीं, वह 'माथी की पत्रु त्रयां' कहलाती थीं और नीचे वस्त्र पहनती थीं। सभी श्स्त्रयां कनटोप

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लगाती थीं, केवल यव
ु नतयां बालों के दोचार गच्
ु छे माथे पर ननकाले रहती थीं-सम्भवतः वह आपही-आप
बाहर ननकल आते थे, क्योंकक बालों को संवारना या ददखाना ननयमों के ववरुद्ध था। एक बहुत लम्बी, गोरी,
वद्ध मदहला, एक कुटी से ननकलकर दस
ू री कुटी में जाती थी। उसके हाथ में लक़िी की एक जरीब थी।
पापनाशी ब़िे अदब के साथ उसके समीप गया, उसकी नकाब के ककनारों का चुम्बन ककया और बोला-
'पज्
ू या अलबीना, परम वपता तेरी आर्तमा को शाश्नत दें ! मैं उस छत्ते के सलए श्जसकी तू रानी है , एक
मक्खी लाया हूं जो पष्ु पहीन मैदानों में इधरउधर भटकती कफरती थी। मैंने इसे अपनी हथेली में उठा
सलया और अपने चवासोच््वास से पन
ु जीववसत ककया। मैं इसे तेरी शरण में लाया हूं।'

यह कहकर उसने थायस की ओर इशारा ककया। थायस तरु नत कैसर की पत्र


ु ी के सम्मख
ु घट
ु नों के बल
बैठ गयी।

अलबीना ने थायस पर एक ममसभेदी दृश्ष्ट डाली, उसे उठने को कहा, उसके मस्तक का चम्
ु बन ककया और
तब योगी से बोली-'हम इसे 'माता मररयम की पत्रु त्रयों' के साथ रखें गे।'

पापनाशी ने तब थायस के मश्ु क्तगह में आने का परू ा वत्तानत कह सन


ु ाया। ईचवर ने कैसे उसे पररे णा की,
कैसे वह इस्कश्निया पहुंचा और ककनककन उपायों से उसके मन में उसने परभु मसीह का अनरु ाग उर्तपनन
ककया। इसके बाद उसने परस्ताव ककया कक थायस को ककसी कुटी में बनद कर ददया जाय श्जससे वह
एकानत में अपने पव
ू ज
स ीवन पर ववचार करे , आर्तमशद्
ु गध के मागस का अवलम्बन करे ।

मठ की अध्यक्षक्षणी इस परस्ताव से सहमत हो गयी। वह थायस को एक कुटी में ले गयी श्जसे कुमारी
लीटा ने अपने चरणों से पववत्र ककया था और जो उसी समय से खाली प़िी हुई थी। इस तंग कोठरी में
केवल एक चारपाई, एक मेज और एक घ़िा था, और जब थायस ने उसके अनदर कदम रखा, तो चौखट को
पार करते ही उसे कथनीय आननद का अनभ
ु व हुआ।

पापनाशी ने कहा-'मैं स्वयं द्वार को बनद करके उस पर एक मह


ु र लगा दे ना चाहता हूं, श्जसे परभु मसीह
स्वयं आकर अपने हाथों से तो़िेंगे।'

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वह उसी क्षण पास की जलधारा के ककनारे गया, उसमें से मट्
ु ठी भर समट्टी ली, उसमें अपने मह
ुं का थूक
समलाया और उसे द्वार के दरवाजों पर म़ ददया। तब णख़िकी के पास आकर जहां थायस शानतगचत्त और
परसननमख
ु बैठी हुई थी उसने भसू म पर ससर झुकाकर तीन बार ईचवर की वनदना की।

'ओ हो ! उस स्त्री के चरण ककतने सन


ु दर हैं जो सनमागस पर चलती है ! हां, उसके चरण ककतने सन
ु दर,
ककतने कामल और ककतने गौरवशील हैं, उसका मख
ु ककतना काश्नतमय!'

यह कहकर वह उठा, कनटोप अपनी आंखों पर खींच सलया और मनदगनत से अपने आर्श्म की ओर चला।

अलबीना ने अपनी एककुमारी को बल


ु ाकर कहा-'वपरय पत्र
ु ी, तम
ु थायस के पास आवचयक वस्तु पहुंचा दो,
रोदटयां, पानी और एक तीन नछिों वाली बांसरु ी।

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अध्याय 5
पापनाशी ने एक नौका पर बैठकर, जो ससरावपयन के धमार्श्सम के सलए खाद्यपदाथस सलये जा रही थी,
अपनी यात्रा समाप्त की और ननज स्थान को लौट आया। जब वह ककचती पर से उतरा तो उसके सशष्य
उसका स्वागत करने के सलए नदी तट पर आ पहुंचे और खुसशयां मनाने लगे। ककसी ने आकाश की ओर
हाथ उठाये, ककसी ने धरती पर ससर झुकाकर गरु
ु के चरणों को स्पशस ककया। उनहें पहले ही से अपनी गरु

के कतकायस होने का आर्तमज्ञान हो गया था। योगगयों को ककसी गप्ु त और अज्ञात रीनत से अपने धमस की
ववजय और गौरव के समाचार समल जाते थे, और इतनी जकद कक लोगों को आचचयस होता था। यह
समाचार भी समस्त धमार्श्समों में , जो उस परानत में श्स्थत थे, आंधी के वेग के साथ फैल गया।

जब पापनाशी बलव
ु े मागस पर चला तो उसके सशष्य उसके पीछे पीछे ईचवरकीतसन करते हुए चले।
लेववयन उस संस्था का सबसे वद्ध सदस्य था। वह धमोनमसत्त होकर उच्चस्वर से यह स्वरगचत गीत गाने
लगा-

आज का शभ
ु ददन है ,

कक हमारे पज्
ू य वपता ने कफर हमें गोद में सलया।

वह धमस का सेहरा ससर बांधे हुए आये हैं,

श्जसने हमारा गौरव बा ददया है ।

क्योंकक वपता का धमस ही,

सनतान का यथाथस धन है ।

हमारे वपता की सक
ु ीनतस की ज्योनत से,

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हमारी कुदटयों में परकाश फैल गया है ।

हमारे वपता पापनाशी,

परभु मसीह के सलए नयी एक दक


ु हन लाये हैं।

अपने अलौककक तेज और ससद्गध से,

उनहोंने एक काली भे़ि को।

जो अंधेरी घादटयों से मारीमारी कफरती थी,

उजली भे़ि बना ददया है ।

इस भांनत ईसाई धमस की ध्वजा फहराते हुए,

वह कफर हमारे ऊपर हाथ रखने के सलए लौट आये हैं।

उन मधुमश्क्खयों की भांनत,

जो अपने छत्तों से उ़ि जाती है ।

और कफर जंगलों से फूलों की,

मधुसध
ु ा सलये हुए लौटती हैं।

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नयत्रु बया के मेष की भांनत,

जो अपने ही ऊन का बोझ नहीं उठा सकता।

हम आज के ददन आननदोर्तसव मनायें,

अपने भोजन में तेल को चप


ु ़िकर।।

जब वह लोग पापनाशी की कुटी के द्वार पर आये तो सबके-सब घट


ु ने टे ककर बैठ गये और
बोले-'पज्
ू य वपता ! हमें आशीवादस दीश्जए और हमें अपनी रोदटयों को चुप़िने के सलए थो़िासा तेल परदान
कीश्जए कक हम आपके कुशलपव
ू क
स लौट आने पर आननद मनायें।'

मख
ू स पॉल अकेला चप
ु चाप ख़िा रहा। उसने न घाट ही पर आननद परकट ककया था, और न इस
समय जमीन पर गगरा। वह पापनाशी को पहचानता ही न था और सबसे पछ
ू ता था, 'यह कौन आदमी है
?' लेककन कोई उसकी ओर ध्यान नहीं दे ता था, क्योंकक सभी जानते थे कक यद्यवप यह ससद्गध पराप्त है ,
पर है ज्ञानशन
ू य।

पापनाशी जब अपनी कुटी में सावधान होकर बैठा तो ववचार करने लगा-अनत में मैं अपने
आननद और शाश्नत के उद्ददष्ट स्थान पर पहुंच गया। मैं अपने सनटोष से सरु क्षक्षत ग में परववष्ट हो
गया, लेककन यह क्या बात है कक यह नतनकों का झोंप़िा जो मझ
ु े इतना वपरय है , मझ
ु े समत्रभाव से नहीं
दे खता और दीवारें मझ
ु से हवषसत होकर नहीं कहतीं-'तेरा आना मब
ु ारक हो !' मेरी अनप
ु श्स्थनत में यहां ककसी
परकार का अनतर होता हुआ नहीं दीख प़िता। झोंप़िा ज्योंका-र्तयों है , यही परु ानी मेज और मेरी परु ानी
खाट है । वह मसालों से भरा ससर है , श्जसने ककतनी ही बार मेरे मन में पववत्र ववचारों की पररे णा की है ।
वह पस्
ु तक रखी हुई है श्जसके द्वारा मैंने सैक़िों बार ईचवर का स्वरूप दे खा है । नतस पर भी यह सभी
चीजें न जाने क्यों मझ
ु े अपररगचतसी जान प़िती हैं, इनका वह स्वरूप नहीं रहा। ऐसा परतीत होता है कक
उनकी स्वाभाववकता शोभा का अपहरण हो गया है , मानो मझ
ु पर उनका स्नेह ही नहीं रहा। और मैं
पहली ही बार उनहें दे ख रहा हूं। जब मैं इस मेज और इस पलंग पर, जो मैंने ककसी समय अपने हाथों से
बनाये थे, इन मसालों से सख
ु ाई खोप़िी पर, इस भोजपत्र के पसु लनदों पर श्जन पर ईचवर के पववत्र वाक्य

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अंककत हैं, ननगाह डालता हूं तो मझ
ु े ऐसा ज्ञात होता है कक यह सब ककसी मत पराणी की वस्तए
ु ं हैं।
इनसे इतना घननष्ठ सम्बनध होने पर भी, इनसे रातददन का संग रहने पर भी मैं अब इनहें पहचान नहीं
सकता। आह ! यह सब चीजें ज्योंकी-र्तयों हैं इनमें जरा भी पररवतसन नहीं हुआ। अतएव मझ
ु में ही
पररवतसन हो गया है , मैं जो पहले था वह अब नहीं रहा। मैं कोई और ही पराणी हूं। मैं ही मत आर्तमा हूं !
हे भगवान ! यह क्या रहस्य है ? मझ
ु में से कौनसी वस्तु लप्ु त हो गयी है , मझ
ु में अब क्या शेष रह गया
है ? मैं कौन हूं ?

और सबसे ब़िी आशंका की बात यह थी कक मन को बारबार इस शंका की ननमल


ू त
स ा का
ववचवास ददलाने पर भी उसे ऐसा भावषत होता था कक उसकी कुटी बहुत तंग हो गयी यद्यवप धासमसक
भाव से उसे इस स्थान को अनंत समझना चादहए था, क्योंकक अननत का भाग भी अननत ही होता है ,
क्योंकक यहीं बैठकर वह ईचवर की अननतता में ववलीन हो जाता था।

उसने इस शंका के दमनाथस धरती पर ससर रखकर ईचवर की पराथसना की और इससे उसका
गचत्त शानत हुआ। उसे पराथसना करते हुए एक घण्टा भी न हुआ होगा कक थायस की छाया उसकी आंखों
के सामने से ननकल गयी। उसने ईचवर को धनयवाद दे कर कहा-परभू मसीह, तेरी ही कपा से मझ
ु े उसके
दशसन हुए। यह तेरी असीम दया और अनग
ु रह है , इसे मैं स्वीकार करता हूं। तू उस पराणी को मेरे सम्मख

भेजकर, श्जसे मैंने तेरी भेंट ककया है , मझ
ु े सनतष्ु ट, परसनन और आचवस्त करना चाहता है । तू उसे मेरी
आंखों के सामने परस्तत
ु करता है , क्योंकक अब उसकी मस्
ु कान नन:शास्त्र, उसका सौनदयस ननष्कलंक और
उसके हावभाव उद्दे चयहीन हो गये हैं। मेरे दयालु पनततपावन परभ,ु तू मझ
ु े परसनन करने के ननसमत्त उसे
मेरे सम्मख
ु उसी शद्
ु ध और पररमाश्जसत स्वरूप में लाता है जो मैंने तेरी इच्छाओं के अनक
ु ू ल उसे ददया
है , जैसे एक समत्र परसनन होकर दस
ू रे समत्र को उसके ददये हुए उपहार की याद ददलाता है । इस कारण मैं
इस स्त्री को दे खकर आनश्नदत होता हूं, क्योंकक तू ही इसका परे क्षक है । तू इस बात को नहीं भल
ू ता कक
मैंने उसे तेरे चरणों पर ससमसपत ककया है । उससे तझ
ु े आननद पराप्त होता है , इससलए उसे अपनी सेवा में
रख और अपने ससवाय ककसी अनय पराणी को उसके सौनदयस से मग्ु ध न होने दे ।

उसे रात भर नींद नहीं आयी और थायस को उसने उससे भी स्पष्ट रूप में दे खा जैसे पररयों के
कंु ज में दे खा था। उसने इन शशदों में अपनी आर्तमस्तनु त की-मैंने जो कुछ ककया है, ईचवर ही के ननसमत्त
ककया है ।

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लेककन इस आचवासन और पराथसना पर भी उसका हृदय ववकल था। उसने आह भरकर कहा-'मेरी आर्तमा,
तू क्यों इतनी शोकासक्त है, और क्यों मझ
ु े यह यातना दे रही है ?'

अब भी उसके गचत्त की उद्ववग्नता शानत न हुई। तीन ददन तक वह ऐसे महान शोक और दःु ख
की अवस्था में प़िा रहा जो एकानतवासी योगगयों की दस्
ु सह परीक्षाओं का पव
ू ल
स क्षण है । थायस की सरू त
आठों पहर उसकी आंखों के आगे कफरा करती। वह इसे अपनी आंखों के सामने से हटाना भी न चाहता
था, क्योंकक अब तक वह समझता था कक यह मेरे ऊपर ईचवर की ववशेष कपा है और वास्तव में यह एक
योगगनी की मनू तस है । लेककन एक ददन परभात की सष
ु प्ु तावस्था में उसने थायस को स्वप्न में दे खा। उसके
केशों पर पष्ु पों का मक
ु ु ट ववराज रहा था और उसका माधय
ु स ही भयावह ज्ञात होता था कक वह भयभीत
होकर चीख उठा और जागा तो ठण्डे पसीने से तर था, मानो बफस के कंु ड में से ननकला हो। उसकी आंखें
भय की ननिा से भारी हो रही थीं कक उसे अपने मख
ु पर गमसगमस सांसों के चलने का अनभ
ु व हुआ। एक
छोटासा गीद़ि उसकी चारपाई की पट्टी पर दोनों अगले पैर रखे हांफहांफकर अपनी दग
ु नस धयक्
ु त सांसें
उसके मख
ु पर छो़ि रहा था, और उसे दांत ननकालननकालकर ददखा रहा था।

पापनाशी को अर्तयनत ववस्मय हुआ। उसे ऐसा जान प़िा, मेरे पैरों के नीचे की जमीन धंस गयी।
और वास्तव में वह पनतत हो गया था। कुछ दे र तक तो उसमें ववचार करने की शश्क्त ही न रही और
जब वह कफर सचेत भी हुआ तो ध्यान और ववचार से उसकी अशाश्नत और भी ब गई।

उसने सोचा-इन दो बातों में से एक बात है या तो वह स्वप्न की भांनत ईचवर का परे ररत ककया हुआ था
और शभ
ु स्वप्न था, और यह मेरी स्वाभाववक दब
ु द्
ु सगध है श्जसने उसे यह भयंकर रूप दे ददया है , जैसे गनदे
प्याले में अंगरू का रस खट्टा हो जाता है , मैंने अपने अज्ञानवश ईचवरीय आदे श को ईचवरीय नतरस्कार का
रूप दे ददया और इस गीद़ि रूपी शैतान ने मेरी शंकाश्नवत दशा से लाभ उठाया, अथवा इस स्वप्न का
परे रक ईचवर नहीं, वपशाच था। ऐसी दशा में यह शंका होती है कक पहले के स्वप्नों को दे वकत समझने में
मेरी भरांनत थी। सारांश यह कक इस समय मझ
ु में वह धमाधसमस का ज्ञान नहीं रहा जो तपस्वी के सलए
परमावचयक है और श्जसके त्रबना उसके पगपग पर ठोकर खाने की आशंका रहती है कक ईचवर मेरे साथ
नहीं रहा-श्जसके कुफल मैं भोग रहा हूं, यद्यवप उसके कारण नहीं ननश्चचत कर सकता।

इस भांनत तकस करके उसने ब़िी ग्लानन के साथ श्जज्ञासा की-दयालु वपता! तू अपने भक्त से क्या
परायश्चचत कराना चाहता है, यदद उसकी भावनाएं ही उसकी आंखों पर परदा डाल दें , दभ
ु ासवनाएं ही उसे

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व्यगथत करने लगें ? मैं क्यों ऐसे लक्षणों का स्पष्टीकरण नहीं कर दे ता श्जसके द्वारा मझ
ु े मालम
ू हो
जाया करे कक तेरी इच्छा क्या है , और क्यों तेरे परनतपक्षी की ?

ककनतु ईचवर ने, श्जसकी माया अभेद्य है , अपने इस भक्त की इच्छा परू ी न की ओर उसे
आर्तमज्ञान न परदान ककया तो उसने शंका और भरांनत वशीभत
ू होकर ननचचय ककया अब मैं थायस की
ओर मन को जाने ही न दं ग
ू ा। लेककन उसका यह परयर्तन ननष्फल हुआ। उससे दरू रहकर भी थायस
ननतय उसके साथ रहती थी। जब वह कुछ पत
ॄ ा था, ईचवर का ध्यान करता था तो वह सामने बैठी उसकी
ओर ताकती रहती, वह श्जधर ननगाह डालता, उसे उसी की मनू तस ददखाई दे ती, यहां तक कक उपासना के
समय भी वह उससे जद
ु ा न होती। ज्योंही वह पापनाशी के ककपना क्षेत्र में पदापसण करती, वह योगी के
कानों में कुछ धीमी आवाज सन
ु ाई दे ती, जैसी श्स्त्रयों के चलने के समय उनके वस्त्रों से ननकलती है , और
इन छायाओं में यथाथस से भी अगधक श्स्थरता होती थी। स्मनतगचत्र अश्स्थर, आक्षज्ञक और अस्पष्ट होता
है । इसके परनतकूल एकानत में जो छाया उपश्स्थत होती है , वह श्स्थर और सद
ु ीघस होती है । इसके
परनतकूल एकानत में जो छाया उपश्स्थत होती है , वह श्स्थर और सद
ु ीघस होती है । वह नाना परकार के रूप
बदलकर उसके सामने आती-कभी मसलनवदन केशों में अपनी अश्नतम पष्ु पमाला गथ
ूं े, वही सन
ु हरे काम के
वस्त्र धारण ककये जो उसने इस्कश्निया में कोटा के परीनतभोज के अवसर पर पहने थे, कभी महीन वस्त्र
पहने पररयों के कंु ज में बैठी हुई, कभी मोटा कुरता पहने, ववरक्त और आध्याश्र्तमक आननद से ववकससत,
कभी शोक में डूबी आंखें मर्तयु की भयंकर आशंकाओं से डबडबाई हुई, अपना आवरणहीन हृदयस्थल खोले,
श्जस पर आहतहृदय से रक्तधारा परवादहत होकर जम गयी थी। इन छायामनू तसयों में उसे श्जस बात का
सबसे अगधक खेद और ववस्मय होता था वह यह थी कक वह पष्ु पमालाएं, वह सन
ु दर वस्त्र, वह महीन
चादरें , वह जरी के काम की कुनतसयां जो उसने जला डाली थीं, कफर जैसे लौट आयीं। उसे अब यह ववददत
होता था कक इन वस्तओ
ु ं में भी कोई अववनाशी आर्तमा है और उसने अनतवेदसना से ववकल होकर कहा-

'कैसी ववपवत्त है कक थायस के असंख्य पापों की आर्तमाएं यों मझ


ु पर आत्र्कमण कर रही हैं।'

जब उसने पीछे की ओर दे खा तो उसे ज्ञात हुआ कक थायस ख़िी है , और इससे उसकी अशाश्नत
और भी ब गई। असह्य आर्तमवेदना होने लगी लेककन चंकू क इन सब शंकाओं और दष्ु ककपनाओं में भी
उसकी छाया और मन दोनों ही पववत्र थे, इससलए उसे ईचवर पर ववचवास था। अतएव वह इन करुण शशदों
में अनन
ु यववनय करता था-भगवान ्, तेरी मझ
ु पर यह अकपा क्यों ? यदद मैं उनकी खोज में ववधसमसयों के
बीच गया, तो तेरे सलए, अपने सलए नहीं। क्या यह अनयाय नहीं है कक मझ
ु े उन कमों का दण्ड ददया जाये
जो मैंने तेरा माहार्तम्य बाने के ननसमत्त ककये हैं ? प्यारे मसीह, आप इस घोर अनयाय से मेरी रक्षा कीश्जए।

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मेरे त्राता, मझ
ु े बचाइए। दे ह मझ
ु पर जो ववजय पराप्त न कर सकी, वह ववजयकीनतस उसकी छाया को न
परदान कीश्जए। मैं जानता हूं कक मैं इस समय महासंकटों में प़िा हुआ हूं। मेरा जीवन इतना शंकामय
कभी न था। मैं जानता हूं और अनभ
ु व करता हूं कक स्वप्न में परर्तयक्ष से अगधक शश्क्त है और यह कोई
आचचयस की बात नहीं, क्योंकक स्वप्न में स्वयं आश्र्तमक वस्तु होने के कारण भौनतक वस्तु होने के कारण
भौनतक वस्तओ
ु ं से उच्चतर है । स्वप्न वास्तव में वस्तओ
ु ं की आर्तमा है । प्लेटो यद्यवप मनू तसवादी था,
तथावप उसने ववचारों के अश्स्तर्तव को स्वीकार ककया है । भगवान नरवपशाचों के उस भोज में जहां तू मेरे
साथ था, मैंने मनष्ु यों को-वह पापमसलन अवचय थे, ककनतु कोई उनहें ववचार और बद्
ु गध से रदहत नहीं कह
सकता-इस बात पर सहमत होते सन
ु ा कक योगगयों को एकानत, ध्यान और परम आननद की अवस्था में
परर्तयक्ष वस्तए
ु ं ददखाई दे ती हैं। परम वपता, आपने पववत्र गरनथ स्वयं ककतनी ही बार स्वप्न के गण
ु ों को
और छायामनू तसयों की शश्क्तयों को, चाहे वह तेरी ओर से हों या तेरे शत्रु की ओर से, स्पष्ट और कई
स्थानों पर स्वीकार ककया है। कफर यदद मैं भरांनत में जा प़िा तो मझ
ु े क्यों इतना कष्ट ददया जा रहा है
?

पहले पापनाशी ईचवर से तकस न करता था। वह ननरापद भाव से उसके आदे शों का पालन करता
था। पर अब उसमें एक नये भाव का ववकास हुआ-उसने ईचवर से परचन और शंकाएं करनी शरू
ु कीं,
ककनतु ईचवर ने उसे वह परकाश न ददखाया श्जसका वह इच्छुक था। उसकी रातें एक दीघस स्वप्न होती
थीं, और उसके ददन भी इस ववषय में रातों ही के सदृश होते थे। एक रात वह जागा तो उसके मख
ु से
ऐसी पचचात्तापपण
ू स आहें ननकल रही थीं, जैसी चांदनी रात में पापाहत मनष्ु यों की कबरों से ननकला करती
हैं। थायस आ पहुंची थी, और उसके जख्मी पैरों से खून बह रहा था। ककनतु पापनाशी रोने लगा कक वह
धीरे से उसकी चारपाई पर आकर लेट गयी। अब कोई सनदे ह न रहा, सारी शंकाएं ननवत्त हो गयीं। थायस
की छाया वासनायक्
ु त थी।

उसके मन में घणा की एक लहर उठी। वह अपनी अपववत्र शैया से झपटकर नीचे कूद प़िा
और अपना मह
ंु दोनों हाथों से नछपा सलया कक सय
ू स का परकाश न प़िने पाये। ददन की घड़ियां गज
ु रती
जाती थीं, ककनतु उसकी लज्जा और ग्लानन शानत न होती थी। कुटी में परू ी शाश्नत थी। आज बहुत ददनों
के पचचात परथम बार थायस को एकानत समला। आणखर में छाया ने भी उसका साथ छो़ि ददया, और अब
उसकी ववलीनता भी भयंकर परतीत होती थी। इस स्वप्न को ववस्मत करने के सलए, इस ववचार से उसके
मन को हटाने के सलए अब कोई अवलम्ब, कोई साधन, कोई सहारा नहीं था। उसने अपने को गधक्कारा-
मैंने क्यों उसे भगा न ददया ? मैंने अपने को उसके घणणत आसलंगन और तापमय करों से क्यों न छु़िा
सलया ?

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अब वह उस भरष्ट चारपाई के समीप ईचवर का नाम लेने का भी साहस न कर सकता था,
और उसे यह भय होता था कक कुटी के अपववत्र हो जाने के कारण वपशाचगण स्वेच्छानस
ु ार अनदर
परववष्ट हो जायेंगे, उनके रोकने का मेरे पास अब कौनसा मनत्र रहा ? और उसका भय ननमल
ू स न था। वह
सातों गीद़ि जो कभी उसकी चौखट के भीतर न आ सके थे, अब कतार बांधकर आये और भीतर आकर
उसके पलंग के नीचे नछप गये। संध्या पराथसना के समय एक और आठवां गीद़ि भी आया, श्जसकी दग
ु नस ध
असह्य थी। दस
ू रे ददन नवां गीद़ि भी उनमें आ समला और उनकी संख्या बतेबढते तीस से साठ और साठ
से अस्सी तक पहुंच गयी। जैसेजैसे उनकी संख्या बती थी, उनका आहार छोटा होता जाता था, यहां तक
कक वह चूहों के बराबर हो गये और सारी कुटी में फैल गये-पलंग, मेज, नतपाई, फशस एक भी उनसे खाली न
बचा। उनमें से एक मेज पर कूद गया और उसके तककये पर चारों पैर रखकर पापनाशी के मख
ु की ओर
जलती हुई आंखों से दे खने लगा। ननर्तय नयेनये गीद़ि आने लगे।

अपने स्वप्न के भीषण पाप का परायश्चचत करने और भरष्ट ववचारों से बचने के सलए पापनाशी
ने ननचचय ककया कक अपनी कुटी से ननकल जाऊं तो अब पाप का बसेरा बन गयी है और मरुभसू म में दरू
जाकर कदठनसे-कदठन तपस्याएं करुं , ऐसीऐसी ससद्गधयों में रत हो जाऊं जो ककसी ने सन
ु ी भी न हों,
परोपकार और उद्घार के पथ पर और भी उर्तसाह से चल।ूं लेककन इस ननचचय को कायसरूप में लाने से
पहले वह सनत पालम के पास उससे परामशस करने गया।

उसने पालम को अपने बगीचे में पौधों को सींचते हुए पाया। संध्या हो गयी थी। नील नदी की
नीली धारा ऊंचे पवसतों के दामन में बह रही थी। वह साश्त्त्वक हृदय वद्ध साधु धीरे धीरे चल रहा था कक
कहीं वह कबत
ू र चौंककर उ़ि न जाये जो उसके कनधे पर आ बैठा था।

पापनाशी को दे खकर उसने कहा-'भाई पापनाशी को नमस्कार करता हूं। दे खो, परम वपता ककतना
दयालु है ; वह मेरे पास अपने रचे हुए पशओ
ु ं को भेजता है कक मैं उनके साथ उनका कीनतसगान करुं और
हवा में उ़िने वाले पक्षक्षयों को दे खकर उनकी अननतलीला का आननद उठाऊं। इस कबत
ू र को दे खो, उसकी
गदस न के बदलते हुए रं गों को दे खो, क्या वह ईचवर की सन
ु दर रचना नहीं है ? लेककन तम
ु तो मेरे पास
ककसी धासमसक ववषय पर बातें करने आये हो न ? यह लो, मैं अपना डोल रखे दे ता हूं और तम्
ु हारी बातें
सन
ु ने को तैयार हूं।'

पापनाशी ने वद्ध साधु से अपनी इस्कश्निया की यात्रा, थायस के उद्घार, वहां से लौटने-ददनों
की दवू षत ककपनाओं और रातों के दःु स्वप्नों-का सारा वत्तानत कह सन
ु ाया। उस रात के पापस्वप्न और

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गीद़िों के झुंड की बात भी न नछपाई और तब उससे पछ
ू ा-'पज्
ू य वपता, क्या ऐसीऐसी असाधारण
योगगत्र्कयाएं करनी चादहए कक परे तराज भी चककत हो जायें ?'

पालम सनत ने उत्तर ददया-'भाई पापनाशी, मैं क्षुि पापी परु


ु ष हूं और अपना सारा जीवन बगीचे
में दहरनों, कबत
ू रों और खरहों के साथ व्यतीत करने के कारण, मझ
ु े मनष्ु यों का बहुत कम ज्ञान है । लेककन
मझ
ु े ऐसा परतीत होता है कक तम्
ु हारी दश्ु चचनताओं का कारण कुछ और ही है । तम
ु इतने ददनों तक
व्यावहाररक संसार में रहने के बाद यकायक ननजसन शांनत में आ गये हों। ऐसे आकश्स्मक पररवतसनों से
आर्तमा का स्वास्थ्य त्रबग़ि जाये तो आचचयस की बात नहीं। बनधव
ु र, तम्
ु हारी दशा उस पराणी कीसी है जो
एक ही क्षण में अर्तयागधक ताप से शीत में आ पहुंचे। उसे तरु नत खांसी और ज्वर घेर लेते हैं। बनधु,
तम्
ु हारे सलए मेरी यह सलाह है कक ककसी ननजसन मरुस्थल में जाने के बदले, मनबहलाव के ऐसे काम करो
जो तपश्स्वयों और साधओ
ु ं के सवसथा योग्य हैं। तम्
ु हारी जगह मैं होता तो समीपवती धमार्श्समों की सैर
करता। इनमें से कई दे खने के योग्य हैं, लोग उनकी ब़िी परशंसा करते हैं। ससरै वपयन के ऋवषगह में एक
हजार चार सौ बत्तीस कुदटयां बनी हुई हैं, और तपश्स्वयों को उतने वगों में ववभक्त ककया गया है श्जतने
अक्षर यन
ू ानी सलवप में हैं। मझ
ु से लोगों ने यह भी कहा है कक इस वगीकसरण में अक्षर, आकार और
साधकों की मनोववत्तयों में एक परकार की अनरू
ु पता का ध्यान रखा जाता है । उदाहरणतः वह लोग जो र
वगस के अनतगसत रखे जाते हैं चंचल परकनत के होते हैं, और जो लोग शानतपरकनत के हैं वह प के
अनतगसत रखे जाते हैं। बनधव
ु र, तम्
ु हारी जगह मैं होता तो अपनी आंखों से इस रहस्य को दे खता और जब
तक ऐसे अद्भत
ु स्थान की सैर न कर लेता, चैन न लेता। क्या तम
ु इसे अद्भत
ु नहीं समझते ? ककसी की
मनोववत्तयों का अनम
ु ान कर लेना ककतना कदठन है और जो लोग ननम्न र्श्ेणी में रखा जाना स्वीकार कर
लेते हैं, वह वास्तव में साधु हैं, क्योंकक उनकी आर्तमशद्
ु गध का लक्ष्य उनके सामने रहता है । वह जानते हैं
कक हम ककस भांनत जीवन व्यतीत करने से सरल अक्षरों के अनतगसत हो सकते हैं। इसके अनतररक्त
वरतधाररयों के दे खने और मनन करने योग्य और भी ककतनी ही बातें हैं। मैं सभननसभनन संगतों को जो
नील नदी के तट पर फैली हुई हैं, अवचय दे खता, उनके ननयमों और ससद्घानतों का अवलोकन करता, एक
आर्श्म की ननयमावली की दस
ू रे से तल
ु ना करता कक उनमें क्या अनतर है , क्या दोष है , क्या गण
ु है । तम

जैसी धमार्तमास परु
ु ष के सलए यह आलोचना सवसथा योग्य है । तम
ु ने लोगों से यह अवचय ही सन
ु ा होगा कक
ऋवष एनफरे म ने अपने आर्श्म के सलए ब़िे उर्तकष्ट धासमसक ननयमों की रचना की है । उनकी आज्ञा लेकर
तम
ु इस ननयमावली की नकल कर सकते हो क्योंकक तम्
ु हारे अक्षर ब़िे सन
ु दर होते हैं। मैं नहीं सलख
सकता क्योंकक मेरे हाथ फाव़िा चलातेचलाते इतने कठोर हो गये हैं कक उनमें पतली कलम को भोजपत्र
पर चलाने की क्षमता ही नहीं रही। सलखने के सलए हाथों का कोमल होना जरूरी है । लेककन बनधुवर, तम

तो सलखने में चतरु हो, और तम्
ु हें ईचवर को धनयवाद दे ना चादहए कक उसने तम्
ु हें यह ववद्या परदान की,
क्योंकक सनु दर सलवपयों की श्जतनी परशंसा की जाये थो़िी है । गरनथों की नकल करना और पॄना बरु े
ववचारों से बचने का बहुत ही उत्तम साधन हैं। बनधु पापनाशी, तम
ु हमारे र्श्द्धेय ऋवषयों, पालम और

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एनतोनी के सदप
ु दे शों को सलवपबद्ध क्यों नहीं कर डालते ? ऐसे धासमसक कामों में लगे रहने से शनै:शैनः
तम
ु गचत्त और आर्तमा की शांनत को पन
ु ः लाभ कर लोगे, कफर एकांत तम्
ु हें सख
ु द जान प़िेगा और शीघर
ही तम
ु इस योग्य हो जाओगे कक आर्तमशद्
ु गध की उन त्रत्र ्कयाओं में परवत्त हो जाओगे श्जनमें तम्
ु हारी
यात्रा ने ववघ्न डाल ददया था। लेककन कदठन कष्टों और दमनकारी वेदनाओं के सहन से तम्
ु हें बहुत आशा
न रखनी चादहए। जब वपता एनतोनी हमारे बीच में थे तो कहा करते थे-'बहुत वरत रखने से दब
ु ल
स ता
आती है औद दब
ु ल
स ता से आलस्य पैदा होता है । कुछ ऐसे तपस्वी हैं जो कई ददनों तक लगातार अनशन
वरत रख अपने शरीर को चौपट कर डालते हैं। उनके ववषय में यह कहना सवसथा सर्तय है कक वह अपने
ही हाथों से अपनी छाती पर कटार मार लेते हैं और अपने को ककसी परकार की रुकावट के शैतान के
हाथों में सौंप दे ते हैं।' यह उस पन
ु ीतार्तमा एनतोनी के ववचार थे ! मैं अज्ञानी मख
ू स बड्
ु ढा हूं; लेककन गरु
ु के
मख
ु से जो कुछ सन
ु ा था वह अब तक याद है ।'

पापनाशी ने पालम सनत को इस शभ


ु ादे श के सलए धनयवाद ददया और उस पर ववचार करने का
वादा ककया। जब वह उससे ववदा होकर नरकटों के बा़िे के बाहर आ गया जो बगीचे के चारों ओर बना
हुआ था, तो उसने पीछे कफरकर दे खा। सरल, जीवनमक्
ु त साधु पालम पौधों को पानी दे रहा था, और उसकी
झुकी हुई कमर पर कबत
ू र बैठा उसके साथसाथ घम
ू ता था। इस दृचय को दे खकर पापनाशी रो प़िा।

अपनी कुटी में जाकर उसने एक ववगचत्र दृचय दे खा। ऐसा जान प़िता था कक अगणणत बालक
ु रण
ककसी परचण्ड आंधी से उ़िकर कुटी में फैल गये हैं। जब उसने जरा ध्यान से दे खा तो परर्तयेक बालक
ु रण
यथाथस में एक अनत सक्ष्
ू म आकार का गीद़ि था, सारी कुटी शग
ं ालमय हो गयी थी।

उसी रात को पापनाशी ने स्वप्न दे खा कक एक बहुत ऊंचा पर्तथर का स्तम्भ है , श्जसके सशखर पर एक
आदमी का चेहरा ददखाई दे रहा है । उसके कान में कहीं से यह आवाज आयी-इस स्तम्भ पर च !

पापनाशी जागा तो उसे ननचचय हुआ कक यह स्वप्न मझ


ु े ईचवर की ओर से हुआ है । उसने अपने
सशष्यों को बल
ु ाया और उनको इन शशदों में सम्बोगधत ककया-'वपरय पत्र
ु ो, मझ
ु े आदे श समला है कक तम
ु से
कफर ववदा मांगू और जहां ईचवर ले जाये वहां जाऊं। मेरी अनप
ु श्स्थनत में लेववयन की आज्ञाओं को मेरी
ही आज्ञाओं की भांनत मानना और बनधु पालम की रक्षा करते रहना। ईचवर तम्
ु हें शांनत दे । नमस्कार !'

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जब वह चला तो उसके सभी सशष्य साष्टांग दण्डवत करने लगे और जब उनहोंने ससर उठाया तो उनहें
अपने गरु
ु की लस्बी, चयाममनू तस क्षक्षनतज में ववलीन होती हुई ददखाई दी।

वह रात और ददन अववर्श्ानत चलता रहा। यहां तक कक वह उस मश्नदर में जा पहुंचा, जो


पराचीन काल में मनू तसपज
ू कों ने बनाया था और श्जसमें वह अपनी ववगचत्र पव
ू य
स ात्रा में एक रात सोया था।
अब इस मश्नदर का भग्नावशेष मात्र रह गया था और सपस, त्रबच्छू, चमगाद़ि आदद जनतओ
ु ं के अनतररक्त
परे त भी इसमें अपना अड्डा बनाये हुए थे। दीवारें श्जन पर जाद ू के गचह्न बने हुए थे, अभी तक ख़िी
थीं। तीस वहदाकार स्तम्भ श्जनके सशखरों पर मनष्ु य के ससर अथवा कमल के फूल बने हुए थे, अभी तक
एक भारी चबत
ू रे को उठाये हुए थे। लेककन मश्नदर के एक ससरे पर एक स्तम्भ इस चबत
ू रे के बीच से
सरक गया था और अब अकेला ख़िा था। इसका कलश एक स्त्री को मस्
ु कराता हुआ मख
ु मण्डल था।
उसकी आंखें लम्बी थीं, कपोल भरे हुए, और मस्तक पर गाय की सींगें थीं।

पापनाशी ने स्तम्भ को दे खते ही पहचान गया कक यह वह स्तम्भ है श्जसे उसने स्वप्न में
दे खा था और उसने अनम
ु ान ककया कक इसकी ऊंचाई बत्तीस हाथों से कम न होगी। वह ननकट गांव में
गया और उतनी ही ऊंची एक सीी ो़ बनाई और जब सीी ो़ तैयार हो गयी तो वह स्तम्भ से लगाकर ख़िी की
गयी। वह उस पर चा और सशखर पर जाकर उसने भसू म पर मस्तक नवाकर यों पराथसना की-'भगवान ्,
यही वह स्थान है जो तन
ू े मेरे सलए बताया है । मेरी परम इच्छा है कक मैं यहीं तेरी दया की छाया में
जीवनपयसनत रहूं।'

वह अपने साथ भोजन की सामगगरयां न लाया था। उसे भरोसा था कक ईचवर मेरी सगु ध
अवचय लेगा और यह आशा थी कक गांव के भश्क्तपरायण जन मेरे खानेपीने का परबनध कर दें गे और
ऐसा भी। दस
ू रे ददन तीसरे पहर श्स्त्रयां अपने बालकों के साथ रोदटयां, छुहारे और ताजा पानी सलये हुए
आयीं, श्जसे बालकों ने स्तम्भ के सशखर पर पहुंचा ददया।

स्तम्भ का कलश इतना चौ़िा न था कक पापनाशी उस पर पैर फैलाकर लेट सकता, इससलए वह
पैरों को नीचेऊपर ककये, ससर छाती पर रखकर सोता था और ननिा जागत रहने से भी अगधक कष्टदायक
थी। परातःकाल उकाब अपने पैरों से उसे स्पशस करता था और वह ननिा, भय तथा अंगवेदना से पीड़ित
उठ बैठता था।

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संयोग से श्जस बई ने यह सीी ो़ बनायी थी, वह ईचवर का भक्त था। उसे यह दे खकर गचनता हुई
कक योगी को वषास और धप
ू से कष्ट हो रहा है । और इस भय से कक कहीं ननिा में वह नीचे न गगर प़िे,
उस पण्
ु यार्तमा परु
ु ष ने स्तम्भ के सशखर पर छत और कठघरा बना ददया।

थो़िे ही ददनों में उस असाधारण व्यश्क्त की चचार गांवों में फैलने लगी और रवववार के ददन
र्श्मजीववयों के दलके-दल अपनी श्स्त्रयों और बच्चों के साथ उसके दशसनाथस आने लगे। पापनाशी के सशष्यों
ने जब सन
ु ा कक गरु
ु जी ने इस ववगचत्र स्थान में शरण ली है तो वह चककत हुए, और उसकी सेवा में
उपश्स्थत होकर उससे स्तम्भ के नीचे अपनी कुदटया बनाने की आज्ञा पराप्त की। ननर्तयपरनत परातःकाल
वह आकर अपने स्वामी के चारों ओर ख़िे हो जाते और उसके सदप
ु दे श सन
ु ते थे।

वह उनहें ससखाता था-वपरय पत्र


ु ो, उनहीं ननहें बालकों के समान बन रहो श्जनहें परभु मसीह प्यार
ककया करते थे। वही मश्ु क्त का मागस है । वासना ही सब पापों का मल
ू है । वह वासना से उसी भांनत
उर्तपनन होते हैं जैसे सनतान वपता से। अहं कार, लोभ, आलस्य, त्र्कोध और ईष्यार उनकी वपरय सनतान हैं।
मैंने इस्कश्निया में यही कुदटल व्यापार दे खा। मैंने धन सम्पनन परु
ु षों को कुचेष्टाओं में परवादहत होते
दे खा है जो उस नदी की बा ो़ की भांनत हैं श्जसमें मैला जल भरा हो। वह उनहें दःु ख की खा़िी में बहा ले
जाता है ।

एफरायम और ससरावपयन के अगधष्ठाताओं ने इस अद्भत


ु तपस्या का समाचार सन
ु ा तो उसके
दशसनों से अपने नेत्रों को कताथस करने की इच्छा परकट की। उनकी नौका के त्रत्रकोण पालों को दरू से नदी
में आते दे खकर पापनाशी के मन में अननवायसतः यह ववचार उर्तपनन हुआ कक ईचवर ने मझ
ु े एकानत से
भी योगगयों के सलए आदशस बना ददया है । दोनों महार्तमाओं ने जब उसे दे खा तो उनहें ब़िा कुतह
ू ल हुआ
और आपस में परामशस करके उनहोंने सवससम्मनत से ऐसी अमानवु षक को तपस्या का र्तयाज्य ठहराया।
अतएव उनहोंने पापनाशी से नीचे उतर आने का अनरु ोध ककया।

वह बोला-'यह जीवनपरणाली परम्परागत व्यवहार के सवसथा ववरुद्ध है । धमसससद्घानत इसकी आज्ञा नहीं
दे त।े '

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लेककन पापनाशी ने उत्तर ददया-'योगी जीवन के ननयमों और परम्परागत व्यवहारों की परवाह
नहीं करता। योगी स्वयं असाधारण व्यश्क्त होता है , इससलए यदद उसका जीवन भी असाधारण हो तो
आचचयस की क्या बात है । मैं ईचवर की परे रणा से यहां चा हूं। उसी के आदे श से उतरुं गा।'

ननर्तयपरनत धमस के इच्छुक आकर पापनाशी के सशष्य बनते और उसी स्तम्भ के नीचे अपनी
कुदटया बनाते थे। उनमें से कई सशष्यों ने अपने गरु
ु का अनक
ु रण करने के सलए मश्नदर के दस
ू रे स्तम्भों
पर चकर तप करना शरू
ु ककया। पर जब उनके अनय सहचरों ने इसकी नननदा की, और वह स्वयं धप

और कष्ट न सह सके, तो नीचे उतर आये।

दे श के अनय भागों से पावपयों और भक्तों के जर्तथेके-जर्तथे आने लगे। उनमें से ककतने ही बहुत
दरू से आते थे। उनके साथ भोजन की कोई वस्तु न होती थी। एक वद्घा ववधवा को सझ
ू ी कक उनके हाथ
ताजा पानी, खरबज
ू े आदद फल बेचे जायें तो लाभ हो। स्तम्भ के समीप ही उसने समट्टी के कुकह़ि जमा
ककये। एक नीली चादर तानकर उसने नीचे फलों की टोकररयां सजाईं और पीछे ख़िी होकर हांक लगाने
लगी-ठं डा पानी, ताजा फल, श्जसे खाना या पानी पीना हो चला आवे। इसकी दे खादे खी एक नानबाई थो़िीसी
लाल ईंटें लाया और समीप ही अपना तनदरू बनाया। इसमें सादी और खमीरी रोदटयां सेंककर वह गराहकों
को णखलाता था। यात्रत्रयों की संख्या ददनपरनतददन बने लगी। समस्त्र दे श के ब़िेब़िे शहरों से भी लोग आने
लगे। यह दे खकर एक लोभ आदमी ने मस
ु ाकफरों और नौकरों, ऊंटों, खच्चरों आदद को ठहराने के सलए एक
सराय बनवाई। थो़िे ही ददन में उस स्तम्भ के सामने एक बाजार लग गया जहां मदए
ु अपनी मछसलयां
और ककसान अपने फलमेवे लालाकर बेचने लगे। एक नाई भी आ पहुंचा जो ककसी वक्ष की छांह में
बैठकर यात्रत्रयों की हजामत बनाता था और ददकलगी की बातें करके लोगों को हं साता था। परु ाना मश्नदर
इतने ददन उज़िे रहने के बाद कफर आबाद हुआ। जहां रातददन ननजसनता और नीरवता का आगधपर्तय रहता
था, वहां अब जीवन के दृचय और गचह्न ददखाई दे ने लगे। हरदम चहलपहल रहती। भदठयारों ने परु ाने
मश्नदर के तहखानों के शराबखाने बना ददये और स्तम्भ पर पापनाशी के गचत्र लटकाकर उसके नीचे
यन
ू ानी और समस्त्री सलवपयों में यह ववज्ञापन लगा ददये-'अनार की शराब, अंजीर की शराब और सससलससया
की सच्ची जौ की शराब यहां समलती है ।' दक
ु ानदारों ने उन दीवारों पर श्जन पर पववत्र और सन
ु दर बेलबट
ू े
अंककत ककये हुए थे, रश्स्सयों से गथ
ूं कर प्याज लटका ददये। तली हुई मछसलयां, मरे हुए खरहे और भे़िों
की लाशें सजाई हुई ददखाई दे ने लगीं। संध्या समय इस खंडहर के परु ाने ननवासी अथासत चूहे सफ बांधकर
नदी की ओर दौ़िते और बगल
ु े सनदे हार्तमक भाव से मदस न उठाकर ऊंची कारननसों पर बैठ जाते; लेककन
वहां भी उनहें पाकशालाओं के धुएं, शरात्रबयों के शोरगल
ु और शराब बेचने वालों की हांकपक
ु ार से चैन न
समलता। चारों तरफ कोठी वालों ने स़िकें, मकान, चचस धमसशालाएं और ऋवषयों के आर्श्म बनवा ददये। छः
महीने न गज
ु रने पाये थे कक वहां एक अच्छाखासा शहर बस गया, जहां रक्षाकारी ववभाग, नयाय, कारागार,

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सभी बन गये और वद्ध मश
ुं ी ने एक पाठशाला भी खोल ली। जंगल में मंगल हो गया, ऊसर में बाग
लहराने लगा।

यात्रत्रयों का रातददन तांता लगा रहता। शैनःशैनः ईसाई धमस के परधान पदागधकारी भी र्श्द्घा के
वशीभत
ू होकर आने लगे। ऐश्नटयोक का परधान जो उस समय संयोग से समस्त्र में था, अपने समस्त
अनय
ु ानययों के साथ आया। उसने पापनाशी के असाधारण तप की मक्
ु तकंठ से परशंसा की। समस्त्र के
अनय उच्च महारगथयों ने इस सम्मनत का अनम
ु ोदन ककया। एफरायम और ससरावपयन के अध्यक्षों ने यह
बात सन
ु ी तो उनहोंने पापनाशी के पास आकर उसके चरणों पर ससर झक
ु ाया और पहले इस तपस्या के
ववरुद्ध जो ववचार परकट ककये थे उनके सलए लश्ज्जत हुए और क्षमा मांगी। पापनाशी ने उत्तर ददया-
'बनधुओ,ं यथाथस यह है कक मैं जो तपस्या कर रहा हूं वह केवल उन परलोभनों और दरु रच्छाओं के
ननवारण के सलए है जो सवसत्र मझ
ु े घेरे रहते हैं और श्जनकी संख्या तथा शश्क्त को दे खकर मैं दहल उठता
हूं। मनष्ु य का बाह्यरूप बहुत ही सक्ष्
ू म और स्वकप होता है । इस ऊंचे सशखर पर से मैं मनष्ु यों की
चींदटयों के समान जमीन पर रें गते दे खता हूं। ककनतु मनष्ु य को अनदर से दे खो तो यह अननत और
अपार है । वह संसार के समाकार है क्योंकक संसार उसके अनतगसत है । मेरे सामने जो कुछ है-यह आर्श्य,
यह अनतगथशालाएं, नदी पर तैरने वाली नौकाएं, यह गराम खेत, वनउपवन, नददयां, नहरें , पवसत, मरुस्थल वह
उसकी तल
ु ना नहीं कर सकते जो मझ
ु में है । मैं अपने ववराट अनतस्थल में असंख्य नगरों और सीमाशन
ू य
पवसतों को नछपाये हुए हूं, और इस ववराट अनतस्थल पर इच्छाएं उसी भांनत आच्छाददत हैं जैसे ननशा पथ्वी
पर आच्छाददत हो जाती है । मैं, केवल मैं, अववचार एक जगत हूं।'

सातवें महीने में इस्कश्निया से बब


ु ेस्तीस और सायम नाम की दो वंध्या श्स्त्रयां, इस लालसा में
आयीं कक महार्तमा के आशीवादस और स्तम्भ के अलौककक गण
ु ों से उनके संतान होगी। अपनी ऊसर दे ह
को पर्तथर से रग़िा। इन श्स्त्रयों के पीछे जहां तक ननगाह पहुंचती थी, रथों, पालककयों और डोसलयों का एक
जुलस
ू चला आता था जो स्तम्भ के पास आकर रुक गया और इस दे वपरु
ु ष के दशसन के सलए
धक्काधक्का करने लगा। इन सवाररयों में से ऐसे रोगी ननकले श्जनको दे खकर हृदय कांप उठता था।
ो़
माताएं ऐसे बालकों को लायी थीं श्जनके अंग टे ेे हो गये थे, आंखें ननकल आयी थीं और गले बैठ गये थे।
पापनाशी ने उनकी दे ह पर अपना हाथ रखा। तब अनधे, हाथों से टटोलते, पापनाशी की ओर दो रक्तमय
नछिों से ताकते हुए आये। पक्षाघात पीड़ित पराणणयों ने अपने गनतशन
ू य सख
ू े तथा संकुगचत अंगों की
पापनाशी के सम्मख
ु उपश्स्थत ककया। लंग़िों ने अपनी टांगें ददखायीं। कछुई के रोग वाली श्स्त्रयां दोनों
हाथों से अपनी छाती को दबाये हुए आयी और उसके सामने अपने जजसर वक्ष खोल ददये। जलोदर के
रोगी, शराब के पीपों की भांनत फूले हुए, उसके सममख
ु भसू म पर लेटाये गये। पापनाशी ने इन समस्त रोगी
पराणणयों को आशीवादस ददया। फीलपांव से पीड़ित हशशी संभलसंभलकर चलते हुए आये और उसकी ओर

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करुण नेत्रों से ताकने लगे। उसने उनके ऊपर सलीब का गचह्न बना ददया। एक यव
ु ती ब़िी दरू से डोली
में लायी गयी थी। रक्त उगलने के बाद तीन ददन से उसने आंखें न खोली थीं। वह एक मोम की मनू तस
की भांनत दीखती थी और उसके मातावपता ने उसे मद
ु ास समझकर उसकी छाती पर खजूर की एक पत्ती
रख दी थी। पापनाशी ने ज्योंही ईचवर से पराथसना की, यव
ु ती ने ससर उठाया और आंखें खोल दीं।

यात्रत्रयों ने अपने घर लोटकर इन ससद्गधयों की चचार की तो समरगी के रोगी भी दौ़िे। समस्त्र के


सभी परानतों से अगणणत रोगी आकर जमा हो गये। ज्योंही उनहोंने यह स्तम्भ दे खा तो मनू छस त हो गये,
जमीन पर लौटने लगे और उनके हाथपैर अक़ि गये। यद्यवप यह ककसी को ववचवास न आयेगा, ककनतु
वहां श्जतने आदमी मौजद
ू थे, सबके-सब बौखला उठे और रोगगयों की भांनत कुलांचें खाने लगे। पंडडत और
पज
ु ारी, स्त्री और परु
ु ष सबके-सब तलेऊपर लोटनेपोटने लगे। सबों के अंग अक़िे हुए थे, मह
ुं से कफचकुर
बहता था, समट्टी से मट्
ु दठयां भरभरकर फांकते और अनगसल शशद मह
ुं से ननकालते थे।

पापनाशी ने सशखर पर से यह कुतह


ू लजनक दृचय दे खा तो उसके समस्त शरीर में ववप्लवसा होने
लगा। उसने ईचवर से पराथसना की-'भगवान ्', मैं ही छो़िा हुआ बकरा हूं, और मैं अपने ऊपर इन सारे
पराणणयों के पापों का भार लेता हूं, और यही कारण है कक मेरा शरीर परे तों और वपशाचों से भरा हुआ है ।'

जब कोई रोगी चंगा होकर जाता था तो लोग उसका स्वागत करते थे, उसका लज
ु स
ू ननकालते थे, बाजे
बजाते, फूल उ़िाते और उसके घर तक पहुंचाते थे, और लाखों कंठों से यह ध्वनन ननकलती थी-'हमारे परभु
मसीह कफर अवतररत हुए !'

बैसाणखयों के सहारे चलने वाले दब


ु ल
स रोगी जब आरोग्य लाभ कर लेते थे तो अपनी बैसाणखयां
इसी स्तम्भ में लटका दे ते थे। हजारों बैसाणखयां लटकती हुई ददखाई दे ती थीं और परनतददन उनकी संख्या
बती ही जाती थी। अपनी मरु ाद पाने वाली श्स्त्रयां फूल की माला लटका दे ती थीं। ककतने ही यन
ू ानी
यात्रत्रयों ने पापनाशी के परनत र्श्द्घामय दोहे अंककत कर ददये। जो यात्री आता था, वह स्तम्भ पर अपना
नाम अंककत कर दे ता था। अतएव स्तम्भ पर जहां तक आदमी के हाथ पहुंच सकते थे, उस समय की
समस्त सलवपयों-लैदटन, यन
ू ानी, समस्त्री, इबरानी, सरु यानी और जनदी-का ववगचत्र सश्म्मर्श्ण दृश्ष्टगोचर था।

जब ईस्टर का उर्तसव आया तो इस चमर्तकारों और ससद्गधयों के नगर में इतनी भी़िभा़ि हुई
दे शदे शानतरों के यात्रत्रयों का ऐसा जमघट हुआ कक ब़िेब़िे बड्
ु ढे कहते कक परु ाने जादग
ू रों के ददन कफर

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लौट आये। सभी परकार के मनष्ु य, नाना परकार के वस्त्र पहने हुए वहां नजर आते थे। समस्त्रननवाससयों
के धरीदार कप़िे, अरबों में ेीले पाजामे, हश्शशयों के चवेत जांनघए, यन
ू ाननयों के ऊंचे चुगे, रोमननवाससयों के
नीचे लबादे , असभ्य जानतयों के लाल सथ
ु ने और वेचयाओं की ककमखाब की पेशवाजें, भांनतभांनत की
टोवपयों, म़ि
ु ासों, कमरबनदों और जूतों-इन सभी कलेवरों की झांककयां समल जाती थीं। कहीं कोई मदहला मह
ुं
पर नकाब डाले, गधे पर सवार चली जाती थी, श्जसके आगओगे हशशी खोजे मस
ु ाकफरों को हटाने के सलए
छड़ियां घम
ु ाते, 'हटो, बचो, रास्ता दो' का शोर मचाते रहते थे। कहीं बाजीगरों के खेल होते थे। बाजीगर
जमींन पर एक जाश्जम त्रबछाये, मौन दशसकों के समान अद्भत
ु छलांगें मारता और भांनतभांनत के करतब
ददखाता था। कभी रस्सी पर चकर ताली बाजाता, कभी बांस गा़िकर उस पर च जाता और सशखर पर ससर
नीचे पैर ऊपर करके ख़िा हो जाता। कहीं मदाररयों के खेल थे, कहीं बनदरों के नाच, कहीं भालओ
ु ं की
भद्दी नकलें। सपेरे वपटाररयों में से सांप ननकालकर ददखाते, हथेली पर त्रबच्छू ददखाते और सांप का ववष
उतारने वाली ज़िी बेचते थे। ककतना शोर था, ककतना धूल, ककतनी चकमदमक। कहीं ऊंटवान ऊंटों को पीट
रहा है । और जोरजोर से गासलयां दे रहा है , कहीं फेहरी वाले गली में एक झोली लटकाये गचकलागचकलाकर
को ो़ की बातीजें और भत
ू परे त आदद व्यागधयों के मंत्र बेचते कफरते हैं, कहीं साधुगण स्वर समलाकर बाइत्रबल
के भजन गा रहे हैं, कहीं भे़िें समसमया रही हैं कहीं गधे रं ेेेंग रहे हैं, मकलाह यात्रत्रयों को पक
ु ारते हैं 'दे र
मत करो !' कहीं सभननसभनन परानतों की श्स्त्रयां अपने खोये हुए बालकों को पक
ु ार रही हैं, कोई रोता है
और कहीं खुशी में लोग आनतशबाजी छो़िते हैं। इन समस्त ध्वननयों के समलने से ऐसा शोर होता था कक
कान के परदे फटे जाते थे। और इन सबसे परबल ध्वनन उन हशशी ल़िकों की थी जो गले फा़िकर खजूर
बेचते कफरते थे। और इन समस्त जनसमह
ू को खुले हुए मैदान में भी सांस लेने को हवा न मयस्सर
होती थी। श्स्त्रयों के कप़िों की महक, हश्शशयों के वस्त्रों की दग
ु नस ध, खाना पकाने के धए
ु ं, और कपरू ,
लोहबान आदद की सग
ु नध से, जो भक्तजन महार्तमा पापनाशी के सम्मख
ु जलाते थे, समस्त वायम
ु ड
ं ल
दवू षत हो गया था, लोगों के दम घट
ु ने लगते थे।

जब रात आयी तो लोगों ने अलाव जलाये, मशालें और लालटे नें जलायी गयीं, ककनतु लाल
परकाश की छाया और काली सरू तों के ससवा और कुछ न ददखाई दे ता था। मेले के एक तरफ एक वद्ध
परु
ु ष तेली धआ
ु ंती कुप्पी जलाये, परु ाने जमाने की एक कहानी कह रहा था। र्श्ोता लोग घेरा बनाये हुए थे।
बड्
ु ेे का चेहरा धुंधले परकाश में चमक रहा था। वह भाव बनाबनाकर कहानी कहता था, और उसकी
परछाईं उसके परर्तयेक भाव को बाबढाकर ददखाती थी। र्श्ोतागण परछाईं के ववकत असभनय दे खदे खकर
खुश होते थे। यह कहानी त्रबट्रीऊ की परे मकथा थी। त्रबट्रीऊ ने अपने हृदय पर जाद ू कर ददया था और
छाती से ननकालकर एक बबल
ू के वक्ष में रखकर स्वयं वक्ष का रूप धारण कर सलया था। कहानी परु ानी
थी। र्श्ोताओं ने सैक़िों ही बार इसे सन
ु ा होगा, ककनतु वद्ध की वणसशल
ै ी ब़िी गचत्ताकषसक थी। इसने कहानी
को मजेदार बना ददया था। शराबखानों में मद के प्यासे कुरससयों पर लेटे हुए भांनतभांनत के सध
ु ारस पान

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कर रहे थे और बोतलें खाली करते चले जाते थे। नतसककयां आंखों में सरु मा लगाये और पेट खोले उनके
सामने नाचती और कोई धासमसक या शग
ं ार रस का असभनय करती थीं।

एकांत कमरों में यव


ु कगण चौप़ि या कोई खेल खेलते थे, और वद्धजन वेचयाओं से ददल बहला
रहे थे। इन समस्त दृचयों के ऊपर वह अकेला, श्स्थर, अटल स्तम्भ ख़िा था। उसका गोरूपी कलश परकाश
की छाया में मह
ंु फैलाये ददखाई दे ता था, और उसके ऊपर पथ्वीआकाश के मध्य पापनाशी अकेला बैठा
हुआ यह दृचय दे ख रहा था। इतने में चांद ने नल के अंचल में से ससर ननकाला, पहाड़ियां नीले परकाश में
चमक उठीं और पापनाशी को ऐसा भाससत हुआ मानो थायस की सजीव मनू तस नाचते हुए जल के परकाश
में चमकती, नीले गगन में ननरालंब ख़िी है ।

ददन गज
ु रते जाते थे और पापनाशी ज्यों का र्तयों स्तम्भ पर आसन जमाये हुए था। वषासकाल
आया तो आकाश का जल लक़िी की छत से टपकटपक उसे सभगोने लगा। इससे सरदी खाकर उसके
हाथपांव अक़ि उठे , दहलनाडोलना मश्ु चकल हो गया। उधर ददन को धूप की जलन और रात को ओस की
शीत खातेखाते उसके शरीर की खाल फटने लगी और समस्त दे ह में घाव, छाले और गगश्कटयां प़ि गयीं।
लेककन थायस की इच्छा अब भी उसके अनतःकरण में व्याप्त थी और वह अनतवेदसना से पीड़ित होकर
गचकला उठता था- 'भगवान ! मेरी ओर भी सांसत कीश्जए, और भी यातनाएं अभी पीछे प़िी हुई हैं, ववनाश
वासनाएं अभी तक मन का मंथन कर रही हैं। भगवान ्, मझ
ु पर पराणणमात्र की ववषयवासनाओं का भार
रख दीश्जए, उन सबों को पराश्चयचत करुं गा। यद्यवप यह असर्तय है कक यन
ू ानी कुनतये ने समस्त संसार
का पापभार अपने ऊपर सलया था, जैसा मैंने ककसी समय एक समथ्यावादी मनष्ु य को कहते सन
ु ा था,
लेककन उस कथा में कुछ आशय अवचय नछपा हुआ है श्जसकी सचाई अब मेरी समझ में आ रही है ,
क्योंकक इसमें कोई सनदे ह नहीं है कक जनता के पाप धमार्तमासओं की आर्तमाओं में परववष्ट होते हैं और
वह इस भांनत ववलीन हो जाते हैं, मानो कुएं में गगरे प़िे हों। यही कारण है कक पण्
ु यार्तमाओं के मन में
श्जतना मल भरा रहता है , उतना पावपयों के मन में कदावप नहीं रहता। इससलए भगवान ्, मैं तझ
ु े धनयवाद
दे ता हूं कक तन
ू े मझ
ु े संसार का मलकंु ड बना ददया है ।

एक ददन उस पववत्र नगर में यह खबर उ़िी, और पापनाशी के कानों में भी पहुंची कक एक उच्च
राज्यपदागधकारी, जो इस्कश्निया की जलसेना का अध्यक्ष था, शीघर ही उस शहर की सैर करने आ रहा है -
नहीं बश्कक रवाना हो चुका है ।

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यह समाचार सर्तय था। वयोवद्ध कोटा, जो उस साल नील सागर की नददयों और जलमागों का
ननरीक्षण कर रहा था, कई बार इस महार्तमा और इस नगर को दे खने की इच्छा परकट कर चुका था। इस
नगर का नाम पापनाशी ही के नाम पर 'पापमोचन' रखा गया था। एक ददन परभातकाल इस पववत्र भसू म
के ननवाससयों ने दे खा कक नील नदी चवेत पालों से आच्छनन हो गयी है । कोटा एक सन
ु हरी नौका पर,
श्जस पर बैंगनी रं ग के पाल लगे हुए थे, अपनी समस्त नाववकशश्क्त के आगओगे ननशाना उ़िाता चला
आता है । घाट पर पहुंचकर वह उतर प़िा और अपने मनत्री तथा अपने वैद्य अररस्टीयस के साथ नगर
की तरफ चला। मनत्री के हाथ में नदी के मानगचत्र आदद थे। और वैद्य से कोटा स्वयं बातें कर रहा था।
वद्घावस्था में उसे वैद्यराज की बातों में आननद समलता था।

कोटा के पीछ सहस्त्रों मनष्ु यों का जुलस


ू चला और जलतट पर सैननकों की वददस यां और
राज्यकमसचाररयों के चुगेही-चुगे ददखाई दे ने लगे। इन चुगों में चौ़िी बैंगनी रं ग की गांठ लगी थी, जो रोम
की व्यवस्थापकसभा के सदस्यों का सम्मानगचह्न थी। कोटा उस पववत्र स्तम्भ के समीप रुक गया और
महार्तमा पापनाशी को ध्यान से दे खने लगा। गरमी के कारण अपने चुगे के दामन से मह
ुं पर का पसीना
वह पोंछता था। वह स्वभाव से ववगचत्र अनभ
ु वों का परे मी था, और अपनी जलयात्राओं में उसने ककतनी ही
अद्भत
ु बातें दे खी थीं। वह उनहें स्मरण रखना चाहता था। उसकी इच्छा थी कक अपना वतसमान
इनतहासगरनथ समाप्त करने के बाद अपनी समस्त यात्राओं का वत्तानत सलखे और जोजो अनोखी बातें
दे खी हैं उसका उकलेख करे । यह दृचय दे खकर उसे बहुत ददलचस्पी हुई।

उसने खांसकर कहा-'ववगचत्र बात है ! और यह परु


ु ष मेरा मेहमान था। मैं अपने यात्रावत्तानत में
वह अवचय सलखूंगा। हां, गतवषस इस परु
ु ष ने मेरे यहां दावत खायी थी, और उसके एक ही ददन बाद एक
वेचया को लेकर भाग गया था।'

कफर अपने मनत्री से बोला-'पत्र


ु , मेरे पत्रों पर इसका उकलेख कर दो। इसे स्तम्भ की
लम्बाईचौ़िाई भी दजस कर दे ना। दे खना, सशखर पर जो गाय की मनू तस बनी हुई है , उसे न भल
ू ना।'

तब कफर अपना मह
ुं पोंछकर बोला-'मझ
ु से ववचवस्त पराणणयों ने कहा है कक इस योगी ने साल
भर से एक क्षण के सलए भी नीचे कदम नहीं रखा। क्यों अररस्टीयस यह सम्भव है ! कोई परु
ु ष परू े साल
भर तक आकाश में लटका रह सकता है ?'

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अररस्टीयस ने उत्तर ददया-ककसी अस्वस्थ या उनमत्त पराणी के सलए जो बात सम्भव है । आपको
शायद यह बात न मालम
ू होगी कक कनतपय शरीररक और मानससक ववकार न हो, असम्भव है । आपको
शायद यह बात न मालम
ू होगी कक कनतपय शारीररक और मानससक ववकारों से इतने अद्भत
ु शश्क्त आ
जाती है जो तनदरु
ु स्त आदसमयों में कभी नहीं आ सकती। क्योंकक यथाथस में अच्छा स्वास्थ्य या बरु ा
स्वास्थ्य स्वयं कोई वस्तु नहीं है । वह शरीर के अंगपरर्तयंग की सभननसभनन दशाओं का नाममात्र है । रोगों
के ननदान से मैंने वह बात ससद्ध की है कक वह भी जीवन की आवचयक अवस्थाएं हैं। मैं ब़िे परे म से
उनकी मीमांसा करता हूं, इससलए कक उन पर ववजय पराप्त कर सकंू । उनमें से कई बीमाररयां परशंसनीय
है और उनमें बदहववसकार के रूप में अद्भत
ु आरोग्यवद्सधक शश्क्त नछपी रहती है । उदाहरणः कभीकभी
शारीररक ववकारों से बद्
ु गधशश्क्तयां परखर हो जाती हैं, ब़िे वेग से उनका ववकास होने लगता है । आप
ससरोन को तो जानते हैं। जब वल बालक था तो वह तत
ु लाकर बोलता था और मनदबद्
ु गध था। लेककन
जब एक सीी ो़ पर से गगर जाने के कारण उसकी कपासलत्र्कया हो गयी तो वह उच्चर्श्ेणी का वकील
ननकला, जैसाकक आप स्वयं दे ख रहे हैं। इस योगी का कोई गप्ु त अंग अवचय ही ववकत हो गया है । इनके
अनतररक्त इस अवस्था में जीवन व्यतीत करना इतनी असाधारण बात नहीं है , श्जतनी आप समझ रहे हैं।
आपको भारतवषस के योगगयों की याद है ? वहां के योगीगण इसी भांनत बहुत ददनों तक ननचचल रह सकते
हैं-एकदो वषस नहीं, बश्कक बीस, तीस, चालीस वषों तक। कभीकभी इससे भी अगधक। यहां तक कक मैंने तो
सन
ु ा है कक वह ननजसल; ननराहार सौसौ वषों तक समागधस्थ रहते हैं।'

कोटा ने कहा-ईचवर की सौगनध से कहता हूं, मझ


ु े यह दशा अर्तयनत कुतह
ू लजनक मालम
ू हो रही
है । यह ननराले परकार का पागलपन है । मैं इसकी परशंसा नहीं कर सकता, क्योंकक मनष्ु य का जनम
चलने और काम करने के ननसमत्त हुआ है और उद्योगहीनता सामराज्य के परनत अक्षम्य अर्तयाचार है ।
मझ
ु े ऐसे ककसी धमस का ज्ञान नहीं है जो ऐसी आपवत्तजनक त्रत्र ्कयाओं का आदे श करता हो। सम्भव है ,
एसशयाई सम्परदायों में इसकी व्यवस्था हो। जब मैं शाम (सीररया) का सब
ू द
े ार था तो मैंने 'हे रा' नगर के
द्वार पर एक ऊंचा चबत
ू रा बना हुआ दे खा। एक आदमी साल में दो बार उस पर चता था और वहां सात
ददनों तक चुपचाप बैठा रहता था। लोगों को ववचवास था कक यह पराणी दे वताओं से बातें करता था और
शाम दे श को धनधानयपण
ू स रखने के सलए उनसे ववनय करता था। मझ
ु े यह परथा ननरथसकसी जान प़िी,
ककनतु मैंने उसे उठाने की चेष्टा नहीं की। क्योंकक मेरा ववचार है कक राज्यकमसचाररयों को परजा के
रीनतररवाजों में हस्तक्षेप न करना चादहए, बश्कक इनको मयाददस त रखना उनका कतसव्य है । शासकों की
नीनत कदावप न होनी चादहए कक परजा को ककसी ववशेष मत की ओर खींचें, बश्कक उथको 'उसी मत की
रक्षा करनी चादहए जो परचसलत हो, चाहे वह अच्छा हो या बरु ा, क्योंकक दे श, काल और जानत की
पररश्स्थनत के अनस
ु ार ही उसका जनम और ववकास हुआ है । अगर शासन ककसी मत को दमन करने की
चेष्टा करता है , तो वह अपने को ववचारों में त्र्काश्नतकारी और व्यवहारों में अर्तयाचारी ससद्ध करता है , और
परजा उससे घणा करे तो सवसथा क्षम्य है । कफर आप जनता के समथ्या ववचारों का सध
ु ार क्योंकर कर

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सकते हैं अगर तम
ु उनको समझने और उनहें ननरक्षेप भाव से दे खने में असमथस हैं ? अररस्टोयस, मेरा
ववचार है कक इस पक्षक्षयों के बसाये हुए मेघनगर को आकाश में लटका रहने दं ।ू उस पर नैसगगसक
शश्क्तयों का कोप ही क्या कम है कक मैं भी उसको उजा़िने में अगरसर बन।ूं उसके उजा़िने से मझ
ु े
अपयश के ससवा और कुछ हाथ न लगेगा। हां, इस आकाश ननवासी योगी के ववचारों और ववचवासों को
लेखबद्ध करना चादहए।

यह कहकर उसने कफर खांसा और अपने मनत्री के कनधे पर हाथ रखकर बोला-'पत्र
ु , नोट कर लो
कक ईसाई सम्परदाय के कुछ अनय
ु ानययों के मतानस
ु ार स्तम्भों के सशखर पर रहना और वेचयाओं को ले
भागना सराहनीय कायस है । इतना और बा दो कक यह परथाएं सश्ष्ट करने वाले दे वताओं की उपासना के
परमाण हैं। ईसाई धमस ईचवरवादी होकर दे वताओं के परभाव को अभी तक नहीं समटा सका। लेककन इस
ववषय में हमें स्वयं इस योगी ही से श्जज्ञासा करनी चादहए।

तब कफर उठाकर और धप
ू से आंखों को बचाने के सलए हाथों की आ़ि करके उसने उच्चस्वर में
कहा-इधर दे खो पापनाशी ! अगर तम
ु अभी यह नहीं भल
ू े हो कक तम
ु एक बार मेरे मेहमान रह चुके हो
तो मेरी बातों का उत्तर दो। तम
ु वहां आकाश पर बैठे क्या कर रहे हो ? तम्
ु हारे वहां जाने का और रहने
का क्या उद्दे चय है ? क्या तम्
ु हारा ववचार है कक इस स्तम्भ पर चकर तम
ु दे श का कुछ ककयाण कर
सकते हो ?

पापनाशी ने कोटा को केवल परनतमावादी तच्


ु छ दृश्ष्ट से दे खा और उसे कुछ उत्तर दे ने योग्य न
समझा। लेककन उसका सशष्य लेववयन समीप आकर बोला-'मानयवर, वह ऋवष समस्त भम
ू ण्डल के पापों
को अपने ऊपर लेता और रोगगयों को आरोग्य परदान करता है ।'

कोटा-'कसम खुदा की, यह तो ब़िी ददकलगी की बात है तम


ु कहते हो अररस्टीयस, यह आकाशवासी
महार्तमा गचककर्तसा करता है । यह तो तम्
ु हारा परनतवादी ननकला। तम
ु ऐसे आकाशरोही वैद्य से क्योंकर
पेश पा सकोगे ?'

अररस्टीयस ने ससर दहलाकर कहा-यह बहुत सम्भव है कक वह बाजेबाजे रोगों की गचककर्तसा करने
में मझ
ु से कुशल हो। अदाहरणतः समरगी ही को ले लीश्जए। गंवारी बोलचाल में लोग इसे 'दे वरोग' कहते हैं,
यद्यवप सभी रोग दै वी हैं, क्योंकक उनके सजन करने वाले तो दे वगण ही हैं। लेककन इस ववशेष रोग का

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कारण अंशतः ककपनाशश्क्त में है और आप यह रोगगयों की ककपना पर श्जतना परभाव डाल सकता है ,
उतना मैं अपने गचककर्तसालय में खरल और दस्ते से औषगधयों घोंटकर कदावप नहीं डाल सकता। महाशय,
ककतनी ही गप्ु त शश्क्तयां हैं जो शास्त्र और बद्
ु गध से कहीं बकर परभावोर्तपादक हैं।'

कोटा-'वह कौन शश्क्तयां हैं ?'

अररस्टीयस-'मख
ू त
स ा और अज्ञान।'

कोटा-'मैंने अपनी ब़िीब़िी यात्राओं में भी इससे ववगचत्र दृचय नहीं दे खा, और मझ
ु े आशा है कक
कभी कोई सय
ु ोग्य इनतहासलेखक 'मोचननगर' की उर्तपवत्त का सववस्तार वणसर करुं गा। लेककन हम जैसी
बहुधनधी मनष्ु यों को ककसी वस्तु के दे खने में चाहे वह ककतनाही कुतह
ू लजनक क्यों न हो, अपना बहुत
समय न गंवाना चादहए। चसलए, अब नहरों का ननरीक्षण करें । अच्छा पापनाशी, नमस्कार। कफर कभी
आऊंगा। लेककन अगर तम
ु कफर कभी पथ्वी पर उतरो और इस्कश्निया आने का संयोग हो तो मझ
ु े न
भल
ू ना। मेरे द्वार तम्
ु हारे स्वागत के सलए ननर्तय खल
ु े हैं। मेरे यहां आकर अवचय भोजन करना।'

हजारों मनष्ु यों ने कोटा के यह शशद सन


ु े। एक ने दस
ू रे से कहा-ईसाइयों में और भी नमक समचस
लगाया। जनता ककसी की परशंसा ब़िे अगधकाररयों के मह
ुं से सन
ु ती है तो उसकी दृश्ष्ट में उस परशंससत
मनष्ु य का आदरसम्मान सतगण
ु अगधक हो जाता है । पापनाशी की ओर भी ख्यानत होने लगी। सरलहृदय
मतानरु ागगयों ने इन शशदों को और भी पररमाश्जसत और अनतशयोश्क्तपण
ू स रूप दे ददया। ककं वदश्नतयां होने
लगीं कक महार्तमा पापनाशी ने स्तम्भ के सशखर पर बैठेबठ
ै े , जलसेना के अध्यक्ष को ईसाई धमस का
अनग
ु ामी बना सलया। उसके उपदे शों में यह चमर्तकार है कक सन
ु ते ही ब़िेब़िे नाश्स्तक भी मस्तक झक
ु ा
दे ते हैं। कोटा के अश्नतम शशदों में भक्तों को गप्ु त आशय नछपा हुआ परतीत हुआ। श्जस स्वागत की उस
उच्च अगधकारी ने सच
ू ना दी थी वह साधारण स्वागत नहीं था। वह वास्तव में एक आध्याश्र्तमक भोज,
एक स्वगीयस सम्मेलन, एक पारलौककक संयोग का ननमंत्रण था। उस सम्भाषण की कथा का ब़िा अद्भत

और अलंकत ववस्तार ककया गया। और श्जनश्जन महानभ
ु ावों ने यह रचना की उनहोंने स्वयं पहले उस पर
ववचवास ककया। कहा जाता था कक जब कोटा ने ववशद तकसववतकस के पचचात सर्तय को अंगीकार ककया
और परभु मसीह की शरण में आया तो एक स्वगसदत
ू आकाश से उसके मह
ुं का पसीना पोंछने आया। यह
भी कहा जाता था कक कोटा के साथ उसके वैद्य और मनत्री ने भी ईसाई धमस स्वीकार ककया। मख्
ु य
ईसाई संस्थाओं के अगधष्ठाताओें ने यह अलौककक समाचार सन
ु ा तो ऐनतहाससक घटनाओं में उसका
उकलेख ककया। इतने ख्यानतलाभ के बाद यह कहना ककं गचत मात्र भी अनतशयोश्क्त न थी कक सारा संसार

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पापनाशी के दशसनों के सलए उर्तकंदठत हो गया। पराच्य और पाचचार्तय दोनों ही दे शों के ईसाइयों की
ववश्स्मत आंखें उनकी ओर उठने लगीं। इटली के परधान नगरों ने उसके नाम असभननदनपत्र भेजे और
रोम के कैं सर कॉनस्टै नटाइन ने, जो ईसाई धमस का पक्षपाती था उनके पास एक पत्र भेजा। ईसाई दत
ू इस
पत्र को ब़िे आदरसम्मान के साथ पापनाशी के पास लाये। लेककन एक रात को जब वह नवजात नगर
दहम की चादर ओो़े सो रहा था, पापनाशी के कानों में यह शशद सन
ु ाई ददये-पापनाशी, तू अपने कमों से
परससद्ध और अपने शशदों से शश्क्तशाली हो गया है । ईचवर ने अपनी कीनतस को उज्ज्वल करने के सलए
तझ
ु े इस सवोच्चस पद पर पहुंचाया है । उसने तझ
ु े अलौककक लीलाएं ददखाने, रोगगयों को आरोग्य परदान
करने, नाश्स्तकों को सनमागस पर लाने, पावपयों का उद्घार करने, एररयन के मतानय
ु ानययों के मख
ु में
कासलमा लगाने और ईसाई जगत में शाश्नत और सख
ु सामराज्य स्थावपत करने के सलए ननयक्
ु त ककया है ।'

पापनाशी ने उत्तर ददया-'ईचवर की जैसी आज्ञा।'

कफर आवाज आयी थी-'पापनाशी, उठ जा, और ववधमीर कॉनसटे नस को उसके राज्यपरासाद में
सनमागस पर ला, जो अपने पज्
ू य बनधु कॉनसटे नटाइन का अनक
ु रण न करके एररयस और माक्र्स के
समथ्यावाद में फंसा हुआ है । जा, ववलम्ब न कर। अष्टधातु के फाटक तेरे पहं ेुचते ही आपही-आप खुल
जायेंगे, और तेरी पादक
ु ाओं की ध्वनन; कैसरों के ससंहासन के सम्मख
ु सजे भवन की स्वणसभसू म पर
परनतध्वननत होगी और तेरी परनतभामय वाणी कॉनस्टै नटाइन के पत्र
ु के हृदय को परास्त कर दे गी।
संयक्
ु त और अखण्ड ईसाई सामराज्य पर राज्य करे गा और श्जस परकार जीव दे ह पर शासन करता है ,
उसी परकार ईसाई धमस सामराज्य पर शासन करे गा। धनी, रईस, राजयागधकारी, राज्यसभा के सभासद सभी
तेरे अधीन हो जायेंगे। तू जनता को लोभ से मक्
ु त करे गा और असभ्य जानतयों के आत्र्कमणों का
ननवारण करे गा। वद्ध कोटा जो इस समय नौकाववभाग का परधान है । तझ
ु े शासन का कणसधार बना हुआ
दे खकर तेरे चरण धोयेगा। तेरे शरीरानत होने पर तेरी मतदे ह इस्कश्निया जायेगी और वहां का परधान
मठधारी उसे एक ऋवष का स्मारकगचह्न समझकर उसका चुम्बन करे गा ! जा !'

पापनाशी ने उत्तर ददया-'ईचवर की जैसी आज्ञा !'

यह कहकर उसने उठकर ख़िे होने की चेष्टा की, ककनतु उस आवाज ने उसकी इच्छा को ता़िकर
कहा-'सबसे महर्तव की बात यह है कक तू सीी ो़ द्वारा मत उतर ! यह तो साधारण मनष्ु यों कीसी बात
होगी। ईचवर ने तझ
ु े अद्भत
ु शश्क्त परदान की है । तझ
ु जैसे परनतभाशाली महार्तमा को वायु में उ़िना
चादहए। नीचे कूद प़ि, स्वगस के दत
ू तझ
ु े संभालने के सलए ख़िे हैं, तरु नत कूद प़ि।'

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पापनाशी न उत्तर ददया-'ईचवर की इस संसार में उसी भांनत ववषय हो जैसे स्वगस में है !'

अपनी ववशाल बांहें फैलाकर, मानो कक बहदाकर पक्षी ने अपने नछदरे पंख फैलाये हों, वह नीचे
कूदने वाला ही था कक सहसा एक डरावनी, उपहाससच
ू क हास्यध्वनन उसके कानों में आयी। भीत होकर
उसने पछ
ू ा-यह कौन हं स रहा है ।'

उस आवाज ने उत्तर ददया-'चौंकते क्यों हो ? अभी तो तम्


ु हारी समत्रता का आरम्भ हुआ है । एक
ददन ऐसा आयेगा जब मझ
ु से तम्
ु हारा पररचय घननष्ठ हो जायेगा। समत्रवर, मैंने ही तझ
ु े इस स्तम्भ पर
चने की परे रणा की थी और श्जस ननरापदभाव से तम
ु ने मेरी आज्ञा सशरोधायस की उससे मैं बहुत परसनन
हूं। पापनाशी, मैं तम
ु से बहुत खश
ु हूं।'

पापनाशी ने भयभीत होकर कहा-'परभ,ु परभु ! मैं तझ


ु े अब पहचान गया, खूब पहचान गया। तू ही
वह पराणी है जो परभु मसीह को मश्नदर के कलश पर ले गया था और भम
ू ड
ं ल के समस्त सामराज्यों
का ददग्दशसन कराया था।'

'तू शैतान है ! भगवान ्, तम


ु मझ
ु से क्यों पराङ्मख
ु हो ?'

वह थरथर कांपता हुआ भसू म पर गगर प़िा और सोचने लगा-

मझ
ु े पहले इसका ज्ञान क्यों न हुआ ? मैं उन नेत्रहीन, वगधर और अपंग मनष्ु यों से भी अभागा हूं
जो ननर्तय शरण आते हैं। मेरी अनतदृसश्ष्ट सवसथा ज्योनतहीन हो गयी है , मझ
ु े दै वी घटनाओं का अब
लेशमात्र भी ज्ञान नहीं होता और अब मैं उन भरष्टबद्
ु गध पागलों की भांनत हूं जो समट्टी फांकते हैं और
मद
ु ों की लाशें घसीटते हैं। मैं अब नरक के अमंगल और स्वगस के मधुर शशदों में भेद करने के योग्य नहीं
रहा। मझ
ु से अब उस नवजात सशशु का नैसगगसक ज्ञान भी नहीं रहा जो माता के स्तनों के मह
ुं से ननकल
जाने पर रोता है , उस कुत्ते कासा भी, जो अपने स्वामी के पद गचह्नों की गनध पहचानता है , उस पौधे
(सय
ू म
स ख
ु ी) कासा भी जो सय
ू स की ओर अपना मख
ु फेरता रहता है । मैं परे तों और वपशाचों के पररहास का
केनि हूं। यह सब मझ
ु पर तासलयां बजा रहे हैं, जो अब ज्ञात हुआ, कक शैतान ही मझ
ु े यहां खींचकर लाया।
जब उसने मझ
ु े इस स्तम्भ पर चाया तो वासना और अहं कार दोनों ही मेरे साथ च आये ! मैं केवल

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अपनी इच्छाओं के ववस्तार ही से शंकायमान नहीं होता। एटोनी भी अपनी पवसतगफ
ु ा में ऐसे ही परलोभनों
से पीड़ित है । मैं चाहता हूं कक इन समस्त वपशाचों की तलवार मेरी दे ह को छे द स्वगसदत
ू ों के सम्मख
ु मेरी
धश्ज्जयां उ़िा दी जायें। अब मैं अपनी यातनाओं से परे म करना सीख गया हूं। लेककन ईचवर मझ
ु से नहीं
बोलता, उसका एक शशद भी मेरे कानों में नहीं आता। उसका यह ननदस य मौन, यह कठोर ननस्तशधता
आचचयसजनक है । उसने मझ
ु े र्तयाग ददया है -मझ
ु ,े श्जसका उसके ससवा और कोई अवलम्ब न था। वह मझ
ु े
इस आफत में अकेला ननस्सहाय छो़िे हुए है । वह मझ
ु से दरू भागता है , घणा करता है । लेककन मैं उसका
पीछा नहीं छो़ि सकता। यहां मेरे पैर जल रहे हैं, मैं दौ़िकर उसके पास पहुंचूंगा।

यह कहते ही उसने वह सीी ो़ थाम ली जो स्तम्भ के सहारे ख़िी थी, उस पर पैर रखे और एक
डण्डा नीचे उतरा कक उसका मख
ु गोरूपी कलश के सम्मख
ु आ गया। उसे दे खकर गोमनू तस ववगचत्र रूप से
मस्
ु कराई। उसे अब इसमें कोई सनदे ह न था कक श्जस स्थान को उसने शांनतलाभ और सर्तकीनतस के सलए
पसंद ककया था, वह उसके सवसनाश और पतन का ससद्ध हुआ। वह ब़िे वेग से उतरकर जमीन पर आ
पहुंचा। उसके पैरों को अब ख़िे होने का भी अभ्यास न था, वे डगमगाते थे। लेककन अपने ऊपर इस
पैशागचक स्तंभ की परछाईं प़िते दे खकर वह जबरदस्ती दौ़िा, मानो कोइर कैदी भाग जाता हो। संसार
ननिा में मग्न था। वह सबसे नछपा हुआ उस चौक से होकर ननकला श्जसके चारों ओर शराब की दक
ु ानें,
सराएं, धमसशालाएं बनी हुई थीं और एक गली में घस
ु गया, जो लाइत्रबया की पहाड़ियों की ओर जाती थी।
ववगचत्र बात यह थी कक एक कुत्ता भी भक
ूं ता हुआ उसका पीछा कर रहा था और जब एक मरुभसू म के
ककनारे तक उसे दौ़िा न ले गया, उसका पीछा न छो़िा। पापनाशी ऐसे दे हातों में पहुंचा जहां स़िकें या
पगडंडडयां न थीं, केवल वनजनतओ
ु ं के पैरों के ननशान थे। इस ननजसन परदे श में वह एक ददन और रात
लगातार अकेला भागता चला गया।

अनत में जब वह भख
ू , प्यास और थकान से इतना बेदम हो गया कक पांव ल़िख़िाने लगे, ऐसा
जान प़िने लगा कक अब जीता न बचूंगा तो वह एक नगर में पहुंचा जो दायेंबायें इतनी दरू तक फैला
हुआ था कक उसकी सीमाएं नीले क्षक्षनतज में ववलीन हो जाती थीं। चारों ओर ननस्तशधता छायी हुई थी,
ककसी पराणी का नाम न था। मकानों की कमी न थी, पर वह दरू दरू पर बने हुए थे, और उन समस्त्री
मीनारों की भांनत दीखते थे जो बीच में काट सलये गये हों। सबों की बनावट एकसी थी, मानो एक ही
इमारत की बहुतसी नकलें की गयी हों। वास्तव में यह सब कबरें थीं। उनके द्वार खुले ओर टूटे हुए थे,
और उनके अनदर भेड़ियों और लक़िबग्घों की चमकती हुई आंखें नजर आती थीं, श्जनहोंने वहां बच्चे ददये
थे। मद
ु े कबरों के सामने बाहर प़िे हुए थे श्जनहें डाकुओं ने नोचखसोट सलया था और जंगली जानवरों ने
जगहजगह चबा डाला था। इस मतपरु ी में बहुत दे श तक चलने के बाद पापनाशी एक कबर के सामने
थककर गगर प़िा, जो छुहारे के वक्षों से ेंके हुए एक सोते के समीप थी। यह कबर खूब सजी हुई थी,

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उसके ऊपर बेलबट
ू े बने हुए थे, ककनतु कोई द्वार न था। पापनाशी ने एक नछि में से झांका तो अनदर
एक सन
ु दर, रं गा हआ तहखाना ददखाई प़िा श्जसमें सांपों के छोटे छोटे बच्चे इधरउधर रें ग रहे थे। उसे अब
भी यही शंका हो रही थी कक ईचवर ने मेरा हाथ छो़ि ददया है और मेरा कोई अवलम्ब नहीं है ।

उसने एक ददन दीघस नन:चवास लेकर कहा-'इसी स्थान में मेरा ननवास होगा, यही कबर अब मेरे परायश्चचत
और आर्तमदमन का आर्श्यस्था न होगी।'

उसके पैर तो उठ न सकते थे, लेटेलेटे णखसकता हुआ वह अनदर चला गया, सांपों को अपने पैरों
से भगा ददया और ननरनतर अठारह घण्टों तक पक्की भसू म पर ससर रखे हुए औंधे मह
ुं प़िा रहा। इसके
पचचात वह उस जलस्त्रोत पर गया और गचकलू से पेट भर पानी वपया। तब उसने थो़िे छुहारे तो़िे और
कई कमल की बेलें ननकाकर कमल गट्टे जमा ककये। यही उसका भोजन था। क्षुआ और तषा शानत होने
पर उसे ऐसा अनम
ु ान हुआ कक यहां वह सभी ववघ्नबाधाओं से मक्
ु त होकर कालक्षेप कर सकता है ।
अतएव उसने इसे अपने जीवन का ननयम बना सलया। परातःकाल से संध्या तक वह एक क्षण के सलए
भी ससर ऊपर न उठाता था।

एक ददन जब वह इस भांनत औंधे मह


ंु प़िा हुआ था तो उसके कानों में ककसी के बोलने की आवाज
आयी-ष्पााणागचत्रों को दे ख, तझ
ु े ज्ञान पराप्त होगा।

यह सन
ु ते ही उसने ससर उठाया और तहखाने की दीवारों पर दृश्ष्टपात ककया तो उसे चारों ओर
सामाश्जक दृचय अंककत ददखाई ददये। जीवन की साधारण घटनाएं जीतीजागती मनू तसयों द्वारा परकट की
गयी थीं। यह ब़िे पराचीन समय की गचत्रकारी थी और इतनी उत्तम कक जान प़िता मनू तसयां अब बोलना
ही चाहती हैं। गचत्रकार ने उनमें जान डाल दी थी। कहीं कोई नानबाई रोदटयां बना रहा था और गोलों को
कुप्पी की तरह फुलाकर आग फूंकता था, कोई बतखों के पर नोंच रहा था ओैर कोई पतीसलयों में मांस
पका रहा था। जरा और हटकर एक सशकारी कनधों पर दहरन सलये जाता था श्जसकी दे ह में बाण चुभे
ददखाई दे ते थे। एक स्थान पर ककसान खेती का कामकाज करते थे। कोई बोता था, कोई काटता था, कोई
अनाज बखारों से भर रहा था। दस
ू रे स्थान पर कई श्स्त्रयां वीणा, बांसरु ी और तम्बरू ों पर नाच रही थीं।
एक सन
ु दर यव
ु ती ससतार बजा रही थी। उसके केशों में कमल का पष्ु प शोभा दे रहा था। केश ब़िी
सन
ु दरता से गथ
ुं े हुए थे। उसके स्वच्छ महीन कप़िों से उसके ननमसल अंगों की आभा झलकती थी। उसके
मख
ु और वक्षस्थल की शोभा अद्ववतीय थी। उसका मख
ु एक ओर को कफरा हुआ था, पर कमलनेत्र सीधे
ही ताक रहे थे। सवारं ग अनप
ु म, अद्ववतीय, मग्ु धकर था। पापनाशी ने उसे दे खते ही आंखें नीची कर लीं

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और उस आवाज को उत्तर ददया-'तू मझ
ु े इन तस्वीरों का अवलोकन करने का आदे श क्यों दे ता है । इसमें
तेरी क्या इच्छा है ? यह सर्तय है कक इन गचत्रों में परनतमावादी परु
ु ष के सांसाररक जीवन का अंकन ककया
गया है जो यहां मेरे पैरों के नीचे* एक कुएं की तह में, काले पर्तथर के सनदक
ू में बनद, ग़िा हुआ है ।
उनसे एक मरे हुए पराणी की याद आती है , और यद्यवप उनके रूप बहुत चमकीले हैं, पर यथाथस में वह
केवल छाया नहीं, छाया की छाया है , क्योंकक मानवजीवन स्वयं छायामात्र है । मतदे ह का इतना महर्तव
इतना गवस !'

उस आवाज ने उत्तर ददया-'अब वह मर गया है लेककन एक ददन जीववत था। लेककन तू एक ददन
मर जायेगा और तेरा कोई ननशान न होगा। तू ऐसा समट जायेगा मानो कभी तेरा जनम ही नहीं हुआ
था।'

उस ददन से पापनाशी का गचत्त आठों पहर चंचल रहने लगा। एक पल के सलए उसे शाश्नत न
समलती। उस आवाज की अववर्श्ानत ध्वनन उसके कानों में आया करती। ससतार बजाने वाली यव
ु ती अपनी
लम्बी पलकों के नीचे सक उसकी ओर टकटकी लगाये रहती। आणखर एक ददन वह भी बोली-'पापनाशी,
इधर दे ख ! मैं ककतनी मायाववनी और रूपवती हूं ! मझ
ु े प्यार क्यों नहीं करता ? मेरे परे मासलंगन में उस
परे मदाह को शानत कर दे जो तझ
ु े ववकल कर रहा है । मझ
ु से तू व्यथस आशंककत है । तू मझ
ु से बच नहीं
सकता, मेरे परे मपाशों से भाग नहीं सकता ! मैं नारी सौनदयस हूं। हतबद्
ु गध ! मख
ू स ! तू मझ
ु से कहां भाग
जाने का ववचार करता है ? तझ
ु े कहां शरण समलेगी ? तझ
ु े सन
ु दर पष्ु पों की शोभा में , खजूर के वक्षों के
फूलों में , उसकी फलों से लदी हुई डासलयों में , कबत
ू रों के पर में , मगाओं की छलांगों में , जलपरपातों के
मधुर कलरव में , चांद की मनद ज्योर्तस्ना में , नततसलयों के मनोहर रं गों में , और यदद अपनी आंखें बंद कर
लेगा, तो अपने अंतस्तल में , मेरा ही स्वरूप ददखाई दे गा। मेरा सौंदयस सवसव्यापक है । एक हजार वषों से
अगधक हुए कक उस परु
ु ष ने जो यहां महीन कफन में वेश्ष्टत, एक काले पर्तथर की शय्या पर ववर्श्ाम कर
रहा है , मझ
ु े अपने हृदय से लगाया था। एक हजार वषों से अगधक हुआ कक उसने मेरे सध
ु ामय अधरों का
अश्नतम बार रसास्वादन ककया था और उसकी दीघस ननिा अभी तक उसकी सग
ु नध से महक रही है ।
पापनाशी, तम
ु मझ
ु े भलीभांनत जानते हो ? तम
ु मझ
ु े भल
ू कैसे गये ? मझ
ु े पहचाना क्यों नहीं ! इसी पर
आर्तमज्ञानी बनने का दावा करते हो ? मैं थायस के असंख्य अवतारों में से एक हूं। तम
ु ववद्वान हो और
जीवों के तत्त्व को जानते हो। तम
ु ने ब़िीब़िी यात्राएं की हैं और यात्राओं ही से मनष्ु य आदमी बनता है ,
उसके ज्ञान और बद्
ु सगध का ववकास होता है । यात्रा के ददनों में बहुधा इतनी नवीन वस्तए
ु ं दे खने में आ
जाती हैं, श्जतनी घर पर बैठे हुए दस वषस में भी न आयेंगी। तम
ु ने सन
ु ा है कक पव
ू क
स ाल में थायस हे लेन के
नाम से यन
ू ान में रहती थी। उसने थीशस में कफर दस
ू रा अवतार सलया। मैं ही थीशस की थायस थी।
इसका कारण क्या है कक तम
ु इतना भी न भांप सके। पहचानो, यह ककसकी कबर है ? क्या तम
ु त्रबककुल

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भल
ू गये कक हमने कैसेकैसे ववहार ककये थे। जब मैं जीववत थी तो मैंने इस संसार के पापों का ब़िा भार
अपने ससर पर सलया था और अब केवल छायामात्र रह जाने पर भी एक गचत्र के रूप में भी, मझ
ु में इतनी
समाथ्र्य है कक मैं तम्
ु हारे पापों को अपने ऊपर ले सकंू । हां, मझ
ु में इतनी सामथ्र्य है । श्जसने जीवन में
समस्त संसार के पापों का भार उठाया, क्या उसका गचत्र अब एक पराणी के पापों को भार न उठा सकेगा।
ववश्स्मत क्यों होते हो? आचचयस की कोई बात नहीं। ववधाता ही ने यह व्यवस्था कर दी कक तम
ु जहां
जाओगे, थायस तम्
ु हारे साथ रहे गी। अब अपनी गचरसंगगनी थायस की क्यों अवहेलना करते हो ? तम

ववधाता के ननयम को नहीं तो़ि सकते।'

पापनाशी ने पर्तथर के फशस पर अपना ससर पटक ददया और भयभीत होकर चीख उठा। अब यह
ससतारवाददनी ननर्तयपरनत दीवार से न जाने ककस तरह अलग होकर उसके समीप आ जाती और
मनदचवास लेते हुए उससे स्पष्ट शशदों में वातासलाप करती। और जब वह ववरक्त पराणी उसकी क्षुशध
चेष्टाओं का बदहष्कार करता तो वह उससे कहती-'वपरयतम! मझ
ु े प्यार क्यों नहीं करते ? मझ
ु से इतनी
ननठुराई क्यों करते हो ? जब तक तम
ु मझ
ु से दरू भागते रहोगे, मैं तम्
ु हें ववकल करती रहूंगी, तम्
ु हें यातनाएं
दे ती रहूंगी। तम्
ु हें अभी यह नहीं मालम
ू है कक मत स्त्री की आर्तमा ककतनी धैयश
स ासलनी होती है । अगर
आवचयकता हो तो मैं उस समय तक तम्
ु हारा इनतजार करुं गी जब तक तम
ु मर न जाओगे। मरने के
बाद भी मैं तम्
ु हारा पीछा न छोडूग
ं ी। मैं जादग
ू रनी हूं, मझ
ु े मंत्रों का बहुत अभ्यास है । मैं तम्
ु हारी मतदे ह
में नया जीव डाल दं ग
ू ी। जो उसे चैतनय कर दे गा और जो मझ
ु े वह वस्तु परदान करके अपने को धनय
मानेगा जो मैं तम
ु से मांगतेमांगते हार गयी और न पा सकी ! मैं उस पन
ु जीववसत शरीर के साथ मनमाना
सख
ु भोग करुं गी। और वपरय पापनाशी, सोचो, तम्
ु हारी दशा ककतनी करुणाजनक होगी जब तम्
ु हारी
स्वगसवाससनी आर्तमा उस ऊंचे स्थान पर बैठे हुए दे खग
े ी कक मेरी ही दे ह की क्या छीछालेदर हो रही है ।
स्वयं ईचवर श्जसने दहसाब के ददन के बाद तम्
ु हें अननतकाल तक के सलए यह दे ह लौटा दे ने का वचन
ददया है चक्कर में प़ि जायेगा कक क्या करुं । वह उस मानव शरीर को स्वगस के पववत्र धाम में कैसे स्थान
दे गा श्जसमें एक परे त का ननवास है और श्जससे एक जादग
ू रनी की माया सलपटी हुई है ? तम
ु ने उस
कदठन समस्या का ववचार नहीं ककया। न ईचवर ही ने उस पर ववचार करने का कष्ट उठाया। तम
ु से कोई
परदा नहीं। हम तम
ु दोनों एक ही हैं ईचवर बहुत ववचारशील नहीं जान प़िता। कोई साधारण जादग
ू र उसे
धोखें में डाल सकता है ; और यदद उसके पास आकाश, वजर और मेघों की जलसेना न होती तो दे हाती
लौंडे उसकी दाी ो़ नोचकर भाग जाते, उससे कोई भयभीत न होता, और उसकी ववस्तत सश्ष्ट का अनत हो
जाता। यथाथस में उसका परु ाना शत्रु सपस उससे कहीं चतरु और दरू दशी है । सपसराज के कौशल का पारावार
नहीं है । यह कलाओं में परवीण हैं यदद मैं ऐसी सन
ु दरी हूं तो इसका कारण यह है कक उसने मझ
ु े अपने
ही हाथों से रचा और यह शोभा परदान की। उसी ने मझ
ु े बालों का गथ
ूं ना, अधसकुससु मत अधरों से हं सना
और आभष
ू णों से अंगों को सजाना ससखाया। तम
ु अभी तक उसका माहार्तम्य नहीं जानते। जब तम
ु पहली
बार इस कबर में आये तो तम
ु ने अपने पैरों से उन सपों को भगा ददया जो यहां रहते थे और उनके अंडों

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को कुचल डाला। तम्
ु हें इसकी लेशमात्र भी गचनता न हुई कक यह सपसराज के आर्तमीय हैं। समत्र, मझ
ु े भय है
कक इस अववचार का तम
ु को क़िा दं ड समलेगा। सपसराज तम
ु से बदला सलये त्रबना न रहे गा। नतस पर भी
तम
ु इतना तो जानते ही थे कक वह संगीत में ननपण
ु और परे मकला में ससद्धहस्त है । तम
ु ने यह जानकर
भी उसकी अवज्ञा की। कला और सौनदयस दोनों ही से झग़िा कर बैठे, दोनों को ही पांव तले कुचलने की
चेष्टा की। और अब तम
ु दै दहक और मानससक आतंकों से गरस्त हो रहे हो। तम्
ु हारा ईचवर क्यों तम्
ु हारी
सहायता नहीं करता ? उसके सलए यह असम्भव है । उसका आकार भम
ू ड
ं ल के आकार के समान ही है ,
इससलए उसे चलने की जगह ही कहां है , और अगर असम्भव को सम्भव मान लें, तो उसकी भम
ू ड
ं लव्यापी
दे ह के ककं गचतमात्र दहलने पर सारी सश्ष्ट अपनी जगह से णखसक जायेगी, संसार का नाम ही न रहे गा।
तम्
ु हारे सवसज्ञाता ईचवर ने अपनी सश्ष्ट में अपने को कैद कर रखा है ।

पापनाशी को मालम
ू था कक जाद ू द्वारा ब़िेब़िे अनैसगगसक कायस ससद्ध हो जाया करते हैं। यह
ववचार करके उसको ब़िी घबराहट हुई-

शायद वह मत परु
ु ष जो मेरे पैरों के नीचे समागधस्थ है उन मनत्रों को याद रखे हुए है जो 'गप्ु त
गरं थ' में गप्ु त रूप से सलखे हुए हैं। वह गरं थ अवचय ही ककसी बादशाह की कबर ननकट होगी। उन मनत्रों
के बल से मद
ु े वही दे ह धारण कर लेते हैं जो उनहोंने इस लोक में धारण ककया था, और कफर सय
ू स के
परकाश और रमणणयों की मनद मस्
ु कान का आननद उठाते हैं।

उसको सबसे अगधक भय इस बात का था कक कहीं यह ससतार बजाने वाली सन


ु दरी और वह मत
परु
ु ष ननकल न आये और उसके सामने उसी भांनत संभोग न करने लगें , जैसे वह अपने जीवन में ककया
करते थे। कभीकभी उसे ऐसा मालम
ू होता था कक चम्
ु बन का शशद सन
ु ाई दे रहा है ।

वह मानससक ताप से जला जाता था, और अब ईचवर की दयादृश्ष्ट से वंगचत होकर उसे ववचारों
से उतना ही भय लगता था, श्जतना भावों से। न जाने मन में कब क्या भाव जागत हो जाय।

एकददन संध्या समय जब वह अपने ननयमानस


ु ार औंधे मह
ुं प़िा ससजदा कर रहा था; ककसी अपररगचत
पराणी ने उससे कहा-

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'पापनाशी, पथ्वी पर उससे ककतने ही अगधक और ककतने ही ववगचत्र पराणी बसते हैं श्जतना तम

अनम
ु ान कर सकते हो, और यदद मैं तम्
ु हें यह सब ददखा सकंू श्जसका मैंने अनभ
ु व ककया है तो तम

आचचयस से भर जाओगे। संसार में ऐसे मनष्ु य भी हैं श्जनके ललाट के मध्य में केवल एक ही आंख होती
है और वह जीवन का सारा काम उसी एक आंख से करते हैं। ऐसे पराणी भी दे खे गये हैं श्जनके एक ही
टांग होती है और वह उछलउछलकर चलते हैं। इन एक टांगों से एक परू ा परानत बसा हुआ। ऐसे पराणी
भी हैं जो इच्छानस
ु ार स्त्री या परु
ु ष बन जाते हैं। उनके सलंगभेद नहीं होता। इतना ही सन
ु कर न चकराओ;
पथ्वी पर मानव वक्ष हैं श्जनकी ज़िें जमीन में फैलती हैं, त्रबना ससर वाले मनष्ु य हैं। श्जनकी छाती में
मह
ुं , दो आंखें और एक नाक रहती है । क्या तम
ु शद्
ु ध मन से ववचवास करते हो कक परभु मसीह ने इन
पराणणयों की मश्ु क्त के ननसमत्त ही शरीरर्तयाग ककया ? अगर उसने इन दणु खयों को छो़ि ददया है तो यह
ककसी शरण जायेंगे, कौन इनकी मश्ु क्त का दायी होगा ?'

इसके कुछ समय बाद पापनाशी को एक स्वप्न हुआ। उसने ननमसल परकाश में एक चौ़िी स़िक,
बहते हुए नाले और लहलहाते हुए उद्यान दे खे। स़िक पर अररस्टोबोलस और चेररयास अपने अरबी घो़िों
को सरपट दौ़िाये चले जाते थे और इस चौगान दौ़ि से उनका गचत्त इतना उकलससत हो रहा था कक उनमें
मह
ुं अरुणवणस हुए जाते थे। उनके समीप ही के एक पेशताक में ख़िा कवव कसलत्र्कानत अपने कववत्त पॄ
रहा था। सफल वगस उसके स्वर में कांपता था और उसकी आंखों में चमकता था। उद्यान में जेनाथेमीज
पके हुए सेब चुन रहा था और एक सपस को थपककयां दे रहा था श्जसके नीले पर थे। हरमोडोरस चवेत
वस्त्र पहने, ससर पर एक रर्तनजदटत मक
ु ु ट रखे, एक वक्ष के नीचे ध्यान में मग्न बैठा था। इस वक्ष में
फूलों की जगह छोटे छोटे ससर लटक रहे थे जो समस्त्र दे श की दे ववयों की भांनत गगद्ध; बाज या उज्ज्वल
चनिमण्डल का मक
ु ु ट पहने हुए थे। पीछे की ओर एक जलकुण्ड के समीप बैठा हुआ ननससयास नक्षत्रों की
अननत गनत का अवलोकन कर रहा था।

तब एक स्त्री मह
ुं पर नकाब डाले और हाथ में में हदी की एक टहनी सलये पापनाशी के पास
आयी और बोली-'पापनाशी, इधर दे ख ! कुछ लोग ऐसे हैं जो अननत सौनदयस के सलए लालानयत रहते हैं,
और अपने नचवर जीवन को अमर समझते हैं। कुछ ऐसे पराणी भी हैं जो ज़ि और ववचार शनू य हैं, जो
कभी जीवन के तत्त्वों पर ववचार ही नहीं करते लेककन दोनों ही केवल जीवन के नाते परकनत दे वी की
आज्ञाओं का पालन करते हैं; वह केवल इतने ही से सनतष्ु ट और सख
ु ी हैं कक हम जीते हैं, और संसार के
अद्ववतीय कलाननगध का गण
ु गान करते हैं क्योंकक मनष्ु य ईचवर की मनू तसमान स्तनु त है । पराणी मात्र का
ववचार है कक सख
ु एक ननष्पाप, ववशद्
ु ध वस्तु है , और सख
ु भोग मनष्ु य के सलए वश्जसत नहीं है । अगर इन
लोगों का ववचार सर्तय है तो पापनाशी, तम
ु कहीं के न रहे । तम्
ु हारा जीवन नष्ट हो गया। तम
ु ने परकनत
के ददये हुए सवोत्तसम पदाथस को तच्
ु छ समझा। तम
ु जानते हो, तम्
ु हें इसका क्या दण्ड समलेगा?'

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पापनाशी की नींद टूट गयी।

इसी भांनत पापनाशी को ननरनतर शारीररक तथा मानससक परलोभनों का सामना करना प़िता था।
यह दष्ु परे रणाएं उसे सवसत्र घेरे रहती थीं। शैतान एक पल के सलए भी उसे चैन न लेने दे ता। उस ननजसन
कबर में ककसी ब़िे नगर की स़िकों से भी अगधक पराणी बसे हुए जान प़िते थे। भत
ू वपशाच हं सहं सकर
शोर मचाया करते और अगणणत परे त, चु़िल
ै आदद और नाना परकार की दरु ार्तमाएं जीवन का साधारण
व्यवहार करती रहती थीं। संध्या समय जब वह जलधारा की ओर जाता तो पररयां उसे चु़िल
ै े उसके चारों
ओर एकत्र हो जातीं और उसे अपने कामोत्तेजक नर्तयों में खींच ले जाने की चेष्टा करतीं। वपशाचों को अब
उससे जरा भी भय न होता था। वे उसका उपहास करते, उस पर अचलील व्यंग करते और बहुधा उस पर
मश्ु ष्टपरहार भी कर दे त।े वह इन अपमानों से अर्तयनत दःु खी होता था। एक ददन एक वपशाच, जो उसकी
बांह से ब़िा नहीं था, उस रस्सी को चुरा ले गया जो वह अपनी कमर में बांधे था। अब वह त्रबककुल नंगा
था। आवरण की छाया भी उसकी दे ह पर न थी। यह सबसे घोर अपमान था जो एक तपस्वी का हो
सकता था।

पापनाशी ने सोचा-मन तू मझ
ु े कहां सलये जाता है ?

उस ददन से उसने ननचचय ककया कक अब हाथों से र्श्म करे गा श्जसमें ववचारे दियों को वह शाश्नत
समले श्जसकी उनहें ब़िी आवचयकता थी। आलस्य का सबसे बरु ा फल कुपरववत्तयों को उकसाना है ।

जलधारा के ननकट, छुहारे के वक्षों के नीचे कई केले के पौधे थे श्जनकी पवत्तयां बहुत ब़िीब़िी थीं।
पापनाशी ने उनके तने काट सलये और उनहें कबर के पास लाया। उनहें उसने एक पर्तथर से कुचला और
उनके रे शे ननकाले। रस्सी बनाने वालों को उसने केले के तार ननकालते दे खा था। वह उस रस्सी की जगह
जो एक वपशाच चुरा ले गया था कमरे में लपेटने के सलए दस
ू री रस्सी बनाना चाहता था। परे तों ने उसकी
ददनचायस में यह पररवतसन दे खा तो त्र्कुद्ध हुए। ककनतु उसी क्षण से उनका शोर बनद हो गया, और ससतार
वाली रमणी ने भी अपनी अलौककक संगीतकला को बनद कर ददया और पव
ू व
स त दीवार से जा समली और
चुपचाप ख़िी हो गयी।

पापनाशी ज्योंज्यों केले के तनों को कुचलता था, उसका आर्तमववचवास, धैयस और धमसबल बता जाता था।

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उसने मन में ववचार ककया-ईचवर की इच्छा है तो अब भी इश्नियों का दमन कर सकता हूं। रही
आर्तमा, उसकी धमसननष्ठा अभी तक ननचचल और अभेद्य है । ये परे त, वपशाच, गण और वह कुलटा स्त्री, मेरे
मन में ईचवर के सम्बनध में भांनतभांनत की शंकाएं उर्तपनन करते रहते हैं। मैं ऋवष जॉन के शशदों में
उनको यह उत्तर दं ग
ू ा-आदद में शशद था और शशद भी ननराकार ईचवर था। यह मेरा अटल ववचवास है , और
यदद मेरा ववचवास समथ्या और भरममल ो़ से उस पर ववचवास करता हूं। वास्तव में इसे
ू क है तो मैं दृता
समथ्या ही होना चादहए। यदद ऐसा न होता तो मैं 'ववचवास' करता, केवल ईमान न लाता, बश्कक अनभ
ु व
करता, जानता। अनभ
ु व से अननत जीवन नहीं पराप्त होता ज्ञान हमें मश्ु क्त नहीं दे सकता। उद्घार करने
वाला केवल ववचवास है । अतः हमारे उद्घार की सभवत्त समथ्या और असर्तय है ।

यह सोचतेसोचते वह रुक गया। तकस उसे न जाने ककधर सलये जाता था।

वह इन त्रबखरे हुए रे शों को ददनभर धप


ू में सख
ु ाता और रातभर ओस में भीगने दे ता। ददन में कई
बार वह रे शों को फेरता था कक कहीं स़ि न जायें। अब उसे यह अनभ
ु व करके परम आननद होता था कक
बालकों के समान सरल और ननष्कपट हो गया है ।

रस्सी बट चुकने के बाद उसने चटाइयां और टोकररयां बनाने के लए नरकट काटकर जमा
ककया। वह समागधकुटी एक टोकरी बनाने वाले की दक
ू ान बन गयी। और अब पापनाशी जब चाहता
ईशपराथसना करता, जब चाहता काम करता; लेककन इतना संयम और यर्तन करने पर भी ईचवर की उस
दयादृश्ष्ट न हुई। एक रात को वह एक ऐसी आवाज सन
ु कर जाग प़िा श्जसने उसका एकएक रोआं ख़िा
कर ददया। यह उसी मरे हुए आदमी की आवाज थी जो उस कबर के अनदर दफन था। और कौन बोलने
वाला था ?

आवाज सायंसायं करती हुई जकदीजकदी यों पक


ु ार रही थी-हे लेन, हे लेन, आओ, मेरे साथ स्नान करो !'

एक स्त्री ने श्जसका मह
ुं पापनाशी के कानों के समीप ही जान प़िता था, उत्तर ददया-वपरयतम, मैं
उठ नहीं सकती। मेरे ऊपर एक आदमी सोया हुआ है ।

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सहसा पापनाशी को ऐसा मालम
ू हुआ कक वह अपना गाल ककसी स्त्री के हृदयस्थल पर रखे हुए
है । वह तरु नत पहचान गया कक वही ससतार बजाने वाली यव
ु ती है । वह ज्योंही जरासा णखसका तो स्त्री का
बोझ कुछ हलका हो गया और उसने अपनी छाती ऊपर उठायी। पापनाशी तब कामोनमत्त होकर, उस
कोमल, सग
ु ध
ं मय, गमस शरीर से गचमट गया और दोनों हाथों से उसे पक़िकर भींच सलया ! सवसनाशी
दद
ु स मनीय वासना ने उसे परास्त कर ददया। गग़िगग़िाकर वह कहने लगा-'ठहरो, ठहरो, वपरये ! ठहरो, मेरी
जान !'

लेककन यव
ु ती एक छलांग में कबर के द्वार पर जा पहुंची। पापनाशी को दोनों हाथ फैलाये दे खकर वह
हं स प़िी और उसकी मस्
ु कराहट रासश की उज्ज्वल ककरणों में चमक उठी।

उसने ननष्ठुरता से कहा-'मैं क्यों ठहरुं ? ऐसे परे मी के सलए श्जसकी भावनाशश्क्त इतनी सजीव
और परखर हो, छाया ही काफी है । कफर तम
ु अब पनतत हो गये, तम्
ु हारे पतन में अब कोई कसर नहीं
रही। मेरी मनोकामना परू ी हो गयी, अब मेरा तम
ु से क्या नाता ?'

पापनाशी ने सारी रात रोरोकर काटी और उषाकाल हुआ तो उसने परभु मसीह की वंदना की
श्जसमें भश्क्तपण
ू स व्यंग भरा हुआ था-ईस,ू परभू ईस,ू तन
ू े क्यों मझ
ु से आंखें फेर लीं ! तू दे ख रहा है कक मैं
ककतनी भयावह पररश्स्थनतयों में नघरा हुआ हूं। मेरे प्यारे मश्ु क्तदाता आ, मेरी सहायता कर। तेरा वपता
मझ
ु से नाराज है , मेरी अनन
ु यववनय कुछ नहीं सन
ु ता, इससलए याद रख कक तेरे ससवाय मेरा अब कोई नहीं
है । तेरे वपता से अब मझ
ु े कोई आशा नहीं है मैं उसके रहस्य को समझ नहीं सकता और न उसे मझ
ु पर
दया आती है । ककनतु तन
ू े एक स्त्री के गभस से जनम सलया है , तन
ू े माता का स्नेहभोग ककया है और
इससलए तझ
ु पर मेरी र्श्द्घा है । याद रख कक तू भी एक समय मानवदे हधारी था। मैं तेरी पराथसना करता
हूं, इस कारण नहीं कक तू ईचवर का ईचवर, ज्योनत की ज्योनत परमवपता है , बश्कक इस कारण कक तन
ू े इस
लोक में , जहां अब मैं नाना यातनाएं भोग रहा हूं, दररि ओैर दीन पराणणयों कासा जीवन व्यतीत ककया है ,
इस कारण कक शैतान ने तझ
ु े भी कुवासनाओं के भंवर में डालने की चेष्टा की है , और मानससक वेदना ने
तेरे भी मख
ु को पसीने से तर ककया है । मेरे मसीह, मेरे बनधु मसीह, मैं तेरी दया का, तेरी मनष्ु यता का
पराथी हूं।

जब वह अपने हाथों को मलमलकर यह पराथसना कर रहा था, तो अट्टाहास की परचंड ध्वनन से


कबर की दीवारें दहल गयीं और वही आवाज, जो स्तम्भ सशखर पर उसके कानों में आयी थी, अपमानसच
ू क

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शशदों में बोली-'यह पराथसना तो ववधमीर माकसस के मख
ु से ननकलने के योग्य है ! पापनाशी भी माकसस का
चेला हो गया। वाह वाह! क्या कहना ! पापनाशी ववधमीर हो गया !'

पापनाशी पर मानो वजरघात हो गया। वह मनू छस त होकर पथ्वी पर गगर प़िा।

जब उसने कफर आंखें खोलीं, तो उसने दे खा कक तपस्वी काले कनटोप पहने उसके चारों ओर ख़िे
हैं, उसके मख
ु पर पानी के छींटे दे रहे हैं और उसकी झा़िफूंक, यनत्रमनत्र में लगे हुए हैं। कोई आदमी हाथों
में खजूर की डासलयां सलये बाहर ख़िे हैं।

उनमें से एक ने कहा-'हम लोग इधर से होकर जा रहे थे तो हमने इस कबर से गचकलाने की


आवाज ननकलती हुई सन
ु ी, और जब अनदर आये तो तम्
ु हें पथ्वी पर अचेत प़िे दे खा। ननस्सनदे ह परे तों ने
तम्
ु हें पछा़ि ददया था और हमको दे खकर भाग ख़िे हुए।'

पापनाशी ने ससर उठाकर क्षीण स्वर में पछ


ू ा-'बनधुवर, आप लोग कौन है ? आप लोग क्यों खजूर
की डासलयां सलये हुए हैं ? क्या मेरी मतककिया करने तो नहीं आये हैं?'

उनमें से एक तपस्वी बोला-'बनधुवर, क्या तम्


ु हें खबर नहीं कक हमारे पज्
ू यवपता एण्तोनी, श्जनकी
अवस्था अब एक सौ पांच वषों की हो गयी है , अपने अश्नतम काल की सच
ू ना पाकर उस पवसत से उतर
आये हैं जहां वह एकांत सेवन कर रहे थे ? उनहोंने अपने अगणणत सशष्यों और भक्तों को जो उनकी
आध्याश्र्तमक सनतानें हैं, आशीवादस दे ने के ननसमत्त यह कष्ट उठाया है । हम खजूर की डासलयां सलये (जो
शाश्नत की सच
ू क हैं) अपने वपता की अभ्यथसना करने जा रहे हैं। लेककन बनधुवर, यह क्या बात है कक
तम
ु को ऐसी महान घटना की खबर नहीं। क्या यह सम्भव है कक कोई दे वदत
ू यह सच
ू ना लेकर इस कबर
में नहीं आया ?'

पापनाशी बोला-'आह ! मेरी कुछ न पछ


ू ो। मैं अब इस कपा के योगय नहीं हूं और इस मर्तयप
ु रु ी
में परे तों और वपशाचों के ससवा और कोई नहीं रहता। मेरे सलए ईचवर से पराथसना करो। मेरा नाम
पापनाशी है जो एक धमार्श्सम का अध्यक्ष था। परभु के सेवकों में मझ
ु से अगधक दःु खी और कोई न होगा।'

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पापनाशी का नाम सन
ु ते ही सब योगगयों ने खजूर की डासलयां दहलायीं और एक स्वर से उसकी
परशंसा करने लगे। वह तपस्वी जो पहले बोला था, ववस्मय से चौंककर बोला-'क्या तम
ु वही सनत
पापनाशी हो श्जसकी उज्ज्वल कीनतस इतनी ववख्यात हो रही है कक लोग अनम
ु ान करने लगे थे कक ककसी
ददन वह पज्
ू य एण्तोनी की बराबरी करने लगेगा? र्श्द्धेय वपता, तम्
ु हीं ने थायस नाम की वेचया को ईचवर
के चरणों में रत ककया ? तम्
ु हीं को तो दे वदत
ू उठाकर एक उच्च स्तम्भ के सशखर पर त्रबठा आये थे, जहां
तम
ु ननर्तय परभु मसीह के भोज में सश्म्मसलत होते थे। जो लोग उस समय स्तम्भ के नीचे ख़िे थे,
उनहोंने अपने नेत्रों से तम्
ु हारा स्वगोर्तथासन दे खा। दे वदत
ू ों के पास चवेत मेघावरण की भांनत तम्
ु हारे चारों
ओर मंडल बनाये थे और तम
ु दादहना हाथ फैलाये मनष्ु यों को आशीवादस दे ते जाते थे। दस
ू रे ददन जब
लोगों ने तम्
ु हें वहां न पाया तो उनकी शोकध्वनन उस मक
ु ु टहीन स्तम्भ के सशखर पर जा पहुंची। चारों
ओर हाहाकार मच गया। लेककन तम्
ु हारे सशष्य लेववयन ने तम्
ु हारे आर्तमोर्तसगस की कथा कही और तम्
ु हारे
आर्श्म का अध्यक्ष बनाया गया। ककनतु वहां पॉल नाम का एक मख
ू स भी था ! शायद वह भी तम्
ु हारे
सशष्यों में था। उने जनसम्मनत के ववरोध करने की चेष्टा की। उसका कहना था कक उसने स्वप्न दे खा है
कक वपशाच तम्
ु हें पक़िे सलये जाता है । जनता को यह सन
ु कर ब़िा त्र्कोध आया। उनहोंने उसको पर्तथर से
मारना चाहा। चारों ओर से लोग दौ़ि प़िे। ईचवर ही जाने कैसे मख
ू स की जान बची। हां, वह बच अवचय
गया। मेरा नाम जोजीमस है । मैं इन तपश्स्वयों का अध्यक्ष हूं जो इस समय तम्
ु हारे चरणों पर गगरे हुए
हैं। अपने सशष्यों की भांनत मैं भी तम्
ु हारे चरणों पर ससर रखता हूं कक पत्र
ु ों के साथ वपता को भी तम्
ु हारे
शभ
ु शशदों का फल समल जाये। हम लोगों को अपने आशीवादस से शाश्नत दीश्जये। उसके बाद उन
अलौककक कर्तयों का भी वणसन कीश्जए जो ईचवर आपके द्वारा परू ा करना चाहता है । हमारा परम सौभाग्य
है कक आप जैसे महान परु
ु ष के दशसन हुए।'

नाशी ने उत्तर ददया-'बनधुवर, तम


ु ने मेरे ववषय में जो धारणा बना रखी है वह यथाथस से कोसों दरू
है । ईचवर की मझ
ु पर कपादृश्ष्ट होती तो दरू की बात है , मैं उसके हाथों कठोरतम यातनायें भोग रहा हूं।
मेरी जो दग
ु नस त हुई है उसका वत्तानत सन
ु ाना व्यथस है । मझ
ु े स्तम्भ के सशखर पर दे वदत
ू नहीं ले गये थे।
यह लोगों की समथ्या ककपना है । वास्तव में मेरी आंखों के सामने एक पदास प़ि गया है और मझ
ु े कुछ
सझ
ू नहीं प़िता मैं स्वप्नवत जीवन व्यतीत कर रहा हूं। ईचवरववमख
ु होकर मानवजीवन स्वप्न के समान
है । जब मैंने इस्कंदिया की यात्रा की थी तो थो़िे ही समय में मझ
ु े ककतने ही वादों के सन
ु ने का अवसर
समला और मझ
ु े ज्ञात हुआ कक भरांनत की सेवा गणना से परे है । वह ननर्तय मेरा पीछा ककया करती है
और मेरे चारों तरफ संगीनों की दीवार ख़िी है ।'

जोश्जमस ने उत्तर ददया-'पज्


ू य वपता, आपको स्मरण रखना चादहए कक संतगण और मख्
ु यतः
एकानतसेवी सनतगण भयंकर यातनाओं से पीड़ित होते रहते हैं। अगर यह सर्तय नहीं है कक दे वदत
ू तम्
ु हें

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ले गये तो अवचय ही यह सम्मान तम्
ु हारी मनू तस अथवा छाया का हुआ होगा, क्योंकक लेववयन, तपस्वीगण
और दशसकों ने अपनी आंखों से तम्
ु हें ववमान पर ऊपर जाते दे खा।'

पापनाशी ने सनत एण्तोनी के पास जाकर उनसे आशीवादस लेने का ननचचय ककया। बोला-'बनधु
जोजीमस, मझ
ु े भी खजरू की एक डाली दे दो और मैं भी तम्
ु हारे साथ वपता एण्तोनी का दशसन करने
चलग
ंू ा।'

जोजीमस ने कहा-'बहुत अच्छी बात है । तपश्स्वयों के सलए सैननक ववधान ही उपयक्


ु त है क्योंकक
हम लोग ईचवर के ससपाही हैं। हम और तम
ु अगधष्ठाता हैं, इससलए आगओगे चलेंगे और यह लोग भजन
गाते हुए हमारी पीछे पीछे चलेंगे।'

जब सब लोग यात्रा को चले तो पापनाशी ने कहा-'बराह्मा एक है क्योंकक वह सर्तय है और संसार


अनेक है क्योंकक वह असर्तय है । हमें संसार की सभी वस्तओ
ु ं से मह
ंु मो़ि लेना चादहए, उनमें भी जो दे खने
में सवसदा ननदोष जान प़िती हैं। उनकी बहुरूपता उनहें इतनी मनोहाररणी बना दे ती है जो इस बात का
परर्तयक्ष परमाण है कक वह दवू षत हैं। इसी कारण मैं ककसी कमल को भी शांत ननमसल सागर में दहलते
हुए दे खता हूं तो मझ
ु े आर्तमवेदना होने लगती है , और गचत्त मसलन हो जाता है । श्जन वस्तओ
ु ं का ज्ञान
इश्नियों द्वारा होता है , वे सभी र्तयाज्य हैं। रे णक
ु ा का एक अणु भी दोषों से रदहत नहीं, हमें उससे सशंक
रहना चादहए। सभी वस्तए
ु ं हमें बहकाती हैं, हमें राग में रत कराती हैं। और स्त्री तो उन सारे परलोभनों
का योग मात्र है जो वायम
ु ड
ं ल में फूलों से लहराती हुई पथ्वी पर और स्वच्छ सागर में ववचरण करते हैं।
वह परु
ु ष धनय है श्जसकी आर्तमा बनद द्वार के समान है । वही परु
ु ष सख
ु ी है जो गग
ंू ा, बहरा, अनधा होना
जानता है , और जो इससलए सांसाररक वस्तओ
ु ं से अज्ञात रहता है कक ईचवर का ज्ञान पराप्त करे ।'

जोजीमस ने इस कथन पर ववचार करने के बाद उत्तर ददया-'पज्


ू य वपता, तम
ु ने अपनी आर्तमा
मेरे सामने खोलकर रख दी है , इससलए आवचयक है कक मैं अपने पापों को तम्
ु हारे सामने स्वीकार करुं ।
इस भांनत हम अपनी धमसपरथा के अनस
ु ार परस्पर अपनेअपने अपराधों को स्वीकार कर लेंगे। यह वरत
धारण करने के पहले मेरा सांसाररक जीवन अर्तयनत दव
ु ाससनामय था। मदौरा नगर में , जो वेचयाओं के सलए
परससद्ध था, मैं नाना परकार के ववलासभोग ककया करता था। ननर्तयपरनत रात्रत्र समय जवान
ववषयगासमयों और वीणा बजाने वाली श्स्त्रयों के साथ शराब पीता, और उनमें जो पसनद आती उसे अपने
साथ घर ले जाता। तम
ु जैसा साधु परु
ु ष ककपना भी नहीं कर सकता कक मेरी परचण्ड कामातरु ता मझ
ु े
ककसी सीमा तक ले जाती थी, इस इतना ही कह दे ता पयाप्तस है कक मझ
ु से न वववादहत बचती थी न

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दे वकनया, और मैं चारों ओर व्यसभचार और अधमस फैलाया करता था। मेरे हृदय में कुवासनाओं के ससवा
ककसी बात का ध्यान ही न आता था। मैं अपनी इश्नियों को मददरा से उत्तेश्जत करता था और यथाथस में
मददरा का सबसे ब़िा वपयक्क़ि समझा जाता था। नतस पर मैं ईसाई धमावसलस्बी था, और सलीब पर चाये
गये मसीह पर मेरा अटल ववचवास था। अपनी सम्पण
ू स सम्पवत्त भोगववलास में उ़िाने के बाद मैं अभाव की
वेदनाओं से ववकल होने लगा था कक मैंने रं गीले सहचरों में सबसे बलवान परु
ु ष को एकाएक एक भयंकर
रोग में गरस्त होते दे खा। उसका शरीर ददनोंददन क्षीण होने लगा। उसकी टांगें अब उसे संभाल न सकतीं,
उसके कांपते हुए हाथ सशगथल प़ि गये, उसकी ज्योनतहीन आंखें बनद रहने लगीं। उसके कंठ से कराहने के
ससवा और कोई ध्वनन न ननकलती। उसका मन, जो उसकी दे ह में भी अगधक आलस्यपरे मी था, ननिा में
मग्न रहता पशओ
ु ं की भांनत व्यवहार करने के दण्डस्वरूप ईचवर ने उसे पशु ही का अनरू
ु प बना ददया।
अपनी सम्पवत्त के हाथ से ननकल जाने के कारण मैं पहले ही से कुछ ववचारशील और संयमी हो गया था।
ककनतु एक परम समत्र की दद
ु स शा से वह रं ग और भी गहरा हो गया। इस उदाहरण ने मेरी आंखें खेल दीं।
इसका मेरे मन पर इतना गहरा परभाव प़िा कक मैंने संसार को र्तयाग ददया और इस मरुभसू म में चला
आया। वहां गत बीस वषों से मैं ऐसी शाश्नत का आननद उठा रहा हूं, श्जसमें कोई ववघ्न न प़िा। मैं अपने
तपस्वी सशष्यों के साथ यथासमय जुलाहे , राज, बई अथवा लेखक का काम ककया करता हूं, लेककन जो सच
पछ
ू ो तो मझ
ु े सलखने में कोई आननद नहीं आता, क्योंकक मैं कमस को ववचार से र्श्ेष्ठ समझता हूं। मेरे
ववचार हैं कक मझ
ु पर ईचवर की दयादृश्ष्ट है क्योंकक घोर से घोर पापों में आसक्त रहने पर भी मैंने कभी
आशा नहीं छो़िी। यह भाव मन से एक क्षण के सलए भी दरू हुआ कक परम वपता मझ
ु पर अवचय अकपा
करें गे। आशादीपक को जलाये रखने से अनधकार समट जाता है ।

यह बातें सन
ु कर पापनाशी ने अपनी आंखें आकाश की ओर उठायीं और यों गगला की-'भगवान !
तम
ु इस पराणी पर दयादृश्ष्ट रखते हो श्जस पर व्यसभचार, अधमस और ववषयभोग जैसे पापों की कासलमा
पत
ु ी हुई है , और मझ
ु पर, श्जसने सदै व तेरी आज्ञाओं का पालन ककया, कभी तेरी इच्छा और उपदे श के
ववरुद्ध आचरण नहीं ककया, तेरी इतनी अकपा ? तेरा नयाय ककतना रहस्यमय है और तेरी व्यवस्थाएं
ककतनी दग
ु ाह्यस ?'

जोजीमस ने अपने हाथ फैलाकर कहा-पज्


ू य वपता, दे णखये, क्षक्षनतज के दोनों ओर कालीकाली शख
ं लाएं चली
आ रही हैं, मानो चीदटयां ककसी अनय स्थान को जा रही हों। यह सब हमारे सहयात्री हैं जो वपता एण्तोनी
के दशसन को आ रहे हैं।'

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जब यह लोग उन यात्रत्रयों के पास पहुंचे तो उनहें एक ववशाल दृचय ददखाई ददया। तपश्स्वयों की
सेना तीन वहद अधसगोलाकार पंश्क्तयों में दरू तक फैली हुई थी। पहली र्श्ेणी में मरुभसू म के वद्ध तपस्वी
थे, श्जनके हाथों में सलीबें थीं और श्जनकी दानयं जमीन को छू रही थीं। दस
ू री पंश्क्त में एफ्रायम और
सेरावपयन के तपस्वी और नील के तटवती परानत के वरतधारी ववराज रहे थे। उनके पीछे के महार्तमागण
थे जो अपनी दरू वती पहाड़ियों से आये थे ? कुछ लोग अपने संवलाये और सख
ू े हुए शरीर को त्रबना ससले
हुए चीथ़िों से के हुए थे, दस
ू रे लोगों की दे ह पर वस्त्रों की जगह केवल नरकट की दहड्डयां थीं जो बेंत की
डासलयों को ऐंठकर बांध ली गयी थीं। ककतने ही त्रबककुल नंगे थे लेककन ईचवर ने उनकी नग्नता को भे़ि
के घनेघने बालों में नछपा ददया था। सभी के हाथों में खजूर की डासलयां थीं। उनकी शोभा ऐसी थी मानो
पनने के इनिधनष
ु हों अथवा उनकी उपमा स्वगस की दीवारों से जी सकती थी।

इतने ववस्तत जनसमह


ू में ऐसी सव्ु यवस्था छाई हुई थी कक पापनाशी को अपने अधीनस्थ तपश्स्वयों को
खोज ननकालने में लेशमात्र भी कदठनाई न प़िी। वह उनके समीप जाकर ख़िा हो गया, ककनतु पहले अपने
मह
ुं को कनटोप से अच्छी तरह ेंक सलया कक उसे कोई पहचान न सके और उनकी धासमसक आकांक्षा में
बाधा न प़िे।

सहसा असंख्य कण्ठों से गगन भेदी नाद उठा-वह महार्तमा, वह महार्तमा आये! दे खो वह मक्
ु तार्तमा
है श्जसने नरक और शैतान को परास्त कर ददया है , जो ईचवर का चहे ता, हमारा पज्
ू य वपता एण्तोनी है !

तब चारों ओर सननाटा छा गया और परर्तयेक मस्तक पथ्वी पर झक


ु गया।

उस ववस्तीणस मरुस्थल में एक पवसत के सशखर पर से महार्तमा एण्तोनी अपने दो वपरय सशष्यों के
हाथों के सहारे , श्जनके नाम मकेररयस और अमेथस थे आदहस्ता से उतर रहे थे। वह धीरे धीरे चलते थे पर
उनका शरीर अभी तक तीर की भांनत सीधा था और उससे उनकी असाधारण शश्क्त परकट होती थी।
उनकी चवेत दाी ो़ चौ़िी छाती पर फैली हुई थी और उनके म़ि
ुं े हुए गचकने ससर पर परकाश की रे खाएं, यों
जगमगा रही थीं मानो मस
ू ा पैगम्बर का मस्तक हो। उनकी आंखों में उकाव की आंखों कीसी तीवर
ज्योनत थी, और उनके गोल कपोलों पर बालकों कीसी मधुर मस्
ु कान थी। अपने भक्तों को आशीवादस दे ने
के सलए वह अपनी बाहें उठाये हुए थे, जो एक शताशदी के असाधारण और अववर्श्ांत पररर्श्म से जजसर हो
गयी थीं। अनत में उनके मख
ु से यह परे ममय शशद उच्चररत हुए-'ऐ जेकब, तेरे मण्डप ककतने ववशाल, और
ऐ इसराइल, तेरे शासमयाने ककतने सख
ु मय हैं।'

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इसके एक क्षण के उपरानत वह जीतीजागती दीवार एक ससरे से दस
ू रे ससरे तक मधुर मेघध्वनन की भांनत
इस भजन से गञ्
ु जररत हो गयी-धनय है वह पराणी जो ईचवर भीरू है !

एण्तोनी अमेथस और मकेररयस के साथ वद्ध तपश्स्वयों, वरतधाररयों और बरह्मचाररयों के बीच


में से होते हुए ननकले। यह महार्तमा श्जसने स्वगस और नरक दोनों ही दे खा था, यह तपस्वी श्जसने एक
पवसत के सशखर पर बैठे हुए ईसाई धमस का संचालन ककया था, यह ऋवष श्जसने ववधसमसयों और नाश्स्तकों
का काकफया तंग कर ददया था, इस समय अपने परर्तयेक पत्र
ु से स्नेहमय शशदों में बोलता था, और
परसननमख
ु उसने ववदा मांगता था ककनतु आज उसकी स्वगसयात्रा का शभ
ु ददवस था। परमवपता ईचवर ने
आज अपने ला़िले बेटे को अपने यहां आने का ननमनत्रण ददया था।

उसने एफ्रायम और ससरे वपयन के अध्यक्षों से कहा-'तम


ु दोनों बहुसंख्यक सेनाओं के नेतर्तव और
संचालन में कुशल हो, इससलए तम
ु दोनों स्वगस में स्वणस के सैननकवस्त्र धारण करोगे और दे वदत
ू ों के नेता
मीकायेल अपनी सेनाओं के सेनापनत की पदवी तम्
ु हें परदान करें गे।'

वद्ध पॉल को दे खकर उनहोंने उसे आसलंगन ककया और बोले-'दे खो, यह मेरे समस्त पत्र
ु ों में सज्जन
और दयालु है । इसकी आर्तमा से ऐसी मनोहर सरु सभ परस्फुदटत होती है जैसी गल
ु ाब की कसलयों के फूलों
से, श्जनहें वह ननर्तय बोता है ।'

सनत जोजीमस को उनहांेेेंने इन शशदों में सम्बोगधत ककया-'तू कभी ईचवरीय दया और क्षमा से
ननराश नहीं हुआ, इससलए तेरी आर्तमा में ईचवरीय शाश्नत का ननवास है । तेरी सक
ु ीनतस का कमल तेरे
कुकमों के कीच़ि से उदय हुआ है ।'

उनके सभी भाषाओं से दे वबद्


ु गध परकट होती थी।

वद्धजनों से उनहोंने कहा-ईचवर के ससंहासन के चारों ओर अस्सी वद्धपरु


ु ष उज्ज्वल वस्त्र पहने,
ससर पर स्वणसमक
ु ु ट धारण ककये बैठे रहते हैं।

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यव
ु कवनद को उनहोंने इन शशदों में सानर्तवना दी-'परसनन रहो, उदासीनता उस लोगों के सलए छो़ि
दो जो संसार का सख
ु भोग रहे हैं !'

इस भांनत सबसे हं सहं सकर बातें करते, उपदे श दे ते वह अपने धमसपत्र


ु ों की सेना के सामने से चले
जाते थे। सहसा पापनाशी उनहें समीप आते दे खकर उनके चरणों पर गगर प़िा। उसका हृदय आशा और
भय से ववदीणस हो रहा था।

'मेरे पज्
ू य वपता, मेरे दयालु वपता !'-उसने मानससक वेदना से पीड़ित होकर कहा-'वपरय वपता, मेरी बांह
पकड़िए, क्योंकक मैं भंवर में बहा जाता हूं। मैंने थायस की आर्तमा को ईचवर के चरणों पर समवपसत ककया;
मैंने एक ऊंचे स्तम्भ के सशखर पर और एक कबर की कनदरा में तप ककया है , भसू म पर रग़ि खातेखाते
मेरे मस्तक में ऊंट के घट
ु नों के समान घट्ठे प़ि गये हैं, नतस पर भी ईचवर ने मझ
ु से आंखें फेर ली हैं।
वपता, मझ
ु े आशीवादस दीश्जए इससे मेरा उद्घार हो जायेगा।'

ककनतु एण्तोनी ने इसका उत्तर न ददया-उसने पापनाशी के सशष्यों को ऐसी तीवर दृश्ष्ट से दे खा
श्जसके सामने ख़िा होना मश्ु चकल था। इतने में उनकी ननगाह मख
ू स पॉल पर जा प़िी। वह जरा दे र उसकी
तरफ दे खते रहे , कफर उसे अपने समीप आने का संकेत ककया। चंकू क सभी आदसमयों को ववस्मय हुआ कक
वह महार्तमा इस मख
ू स और पागल आदमी से बातें कर रहे हैं, अतएव उनकी शंका का समाधान करने के
सलए उनहोंने कहा-'ईचवर ने इस व्यश्क्त पर श्जतनी वर्तसलता परकट की है उतनी तम
ु में से ककसी पर
नहीं। पत्र
ु पॉल, अपनी आंखें ऊपर उठा और मझ
ु े बतला कक तझ
ु े स्वगस में क्या ददखाई दे ता है ।'

बद्
ु गधहीन पॉल ने आंखें उठायीं। उसके मख
ु पर तेज छा गया और उसकी वाणी मक्
ु त हो गयी।
बोला-'मैं स्वगस में एक शय्या त्रबछी हुई दे खता हूं श्जसमें सन
ु हरी और बैंगनी चादरें लगी हुई हैं। उसके
पास तीन दे वकनयाएं बैठी हुई ब़िी चौकसी से दे ख रही हैं कक कोई अनय आर्तमा उसके ननकट न आने
पाये। श्जस सम्माननत व्यश्क्त के सलए शय्या त्रबछाई गयी है उसके ससवाय कोई ननकट नहीं जा सकता।

पापनाशी ने यह समझकर कक यह शय्या उसकी सर्तकीनतस की पररचायक है , ईचवर को धनयवाद


दे ना शरू
ु ककया। ककनतु सनत एण्तोनी ने उसे चुप रहने और मख
ू स पॉल की बातों को सन
ु ने का संकेत
ककया। पॉल उसी आर्तमोकलास की धुन में बोला-'तीनों दे वकनयाएं मझ
ु से बातें कर रही हैं। वह मझ
ु से
कहती हैं कक शीघर ही एक ववदष
ु ी मर्तयल
ु ोक से परस्थान करने वाली है । इस्कश्निया की थायस

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मरणासनन है ; और हमने यह शय्या उसके आदरसर्तकार के ननसमत्त तैयार की है , क्योंकक हम तीनों उसी की
ववभनू तयां हैं। हमारे नाम हैं भश्क्त, भय और परे म!'

एण्तोनी ने पछ
ू ा-'वपरय पत्र
ु , तझ
ु े और क्या ददखाई दे ता है ?'

मख
ू स पॉल ने अधः से ऊध्र्व तक शन
ू य दृश्ष्ट से दे खा, एक क्षक्षनतज से दस
ू री क्षक्षनतज तक नजर
दौ़िायी। सहसा उसकी दृश्ष्ट पापनाशी पर जा प़िी। दै वी भय से उसका मह
ुं पीला प़ि गया और उसके
नेत्रों से अदृचय ज्वाला ननकलने लगी।

उसने एक लम्बी सांस लेकर कहा-'मैं तीन वपशाचों को दे ख रहा हूं जो उमंग से भरे हुए इस
मनष्ु य को पक़िने की तैयारी कर रहे हैं। उनमें से एक का आकार एक स्तम्भ की भांनत है , दस
ू रे का एक
स्त्री की भांनत और तीसरे का एक जादग
ू र की भांनत। तीनों के नाम गमस लोहे से दाग ददये हैं-एक का
मस्तक पर, दस
ू रे के पेट पर और तीसरे का छाती पर और वे नाम हैं-अहं कार, ववलासपरे म और शंका। बस,
मझ
ु े और कुछ नहीं सझ
ू ता।'

यह कहने के बाद पॉल की आंखें कफर ननष्परभ हो गयीं, मह


ुं नीचे को लटक गया और वह पव
ू व
स त
सीधासादा मालम
ू होने लगा।

जब पापनाशी ने सशष्यगण एण्तोनी की ओर सगचनत और सशंक भाव से दे खने लगे तो उनहोंने यह शशद
कहे -'ईचवर ने अपनी सच्चाई व्यवस्था सन
ु ा दी। हमारा कतसव्य है कक हम उसको सशरोधायस करें और चुप
रहें । असनटोष और गगला उसके सेवकों के सलए उपयक्
ु त नहीं।

यह कहकर वह आगे ब गये। सय


ू स ने अस्ताचल को परयाण ककया और उसे अपने अरुण परकाश
से आलोककत कर ददया। सनत एण्तोनी की छाया दे ेैवी लीला से अर्तयनत दीघस रूप धारण करके उसके
पीछे , एक अननत गलीचे की भांनत फैली हुई थी, कक सनत एण्तोनी की स्मनत भी इस भांनत दीघसजीवी
होगी, और लोग अननतकाल तक उसका यश गाते रहें ग।े

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ककनतु पापनाशी वजराहत की भांनत ख़िा रहा। उसे न कुछ सझ
ू ता था, न कुछ सन
ु ाई दे ता था।
यही शशद उसके कानों में गज
ूं रहे थे-थायस मरणासनन है !

उसे कभी इस बात का ध्यान ही न आया था। बीस वषों तक ननरनतर उसने मोसमयाई के ससर
को दे खा था, मर्तयु का स्वरूप उसकी आंखों के सम्मख
ु रहता था। पर यह ववचार कक मर्तयु एक ददन
थायस की आंखें बनद कर दे गी, उसे घोर आचचयस में डाल रहा था।

'थायस मर रही है !'-इन शशदों में ककतनी ववस्मयकारी और भयंकर आशय है ! थायस मर रही है , वह
अब इस लोक में न रहे गी, तो कफर सय
ू स का, फूलों का, सरोवरों का और समस्त सश्ष्ट का उद्दे चय ही क्या
? इस बरह्माण्ड ही की क्या आवचयकता है । सहसा वह झपटकर चला-'उसे दे खूंगा, एक बार कफर उससे
समलग
ूं ा !' वह दौ़िने लगा। उसे कुछ खबर न थी कक वह कहां जा रहा है , ककनतु अनतःपरे रणा उसे अववचल
रूप से लक्ष्य की ओर सलये जाती थी, वह सीधे नील नदी की ओर चला जा रहा था। नदी पर उसे पालों
का एक समह
ू तैरता हुआ ददखाई प़िा। वह कूदकर एक नौका में जा बैठा, श्जसे हशशी चला रहे थे, और
वहां नौका के मस्
ु तल
ू पर पीठ टे ककर मदु दत आंखों से यात्रा मागस का स्मरण करता हुआ, वह त्र्कोध और
वेदना से बोला-आह ! मैं ककतना मख
ू स हूं कक थायस को पहले ही अपना न कर सलया जब समय था !
ककतना मख
ू स हूं कक समझा कक संसार में थायस के ससवा और भी कुछ है ! ककतना पागलपन था ! मैं
ईचवर के ववचार में , आर्तमोद्घार की गचनता में , अननत जीवन की आकांक्षा में रत रहता; मानो थामस को
दे खने के बाद भी इन पाखण्डों में कुछ महर्तव था। मझ
ु े उस समय कुछ न सझ
ू ा कक उस स्त्री के चुम्बन
में अननत सख
ु भरा हुआ है , और उसके त्रबना जीवन ननरथसक है , श्जसका मक
ू य एक दःु स्वप्न से अगधक
नहीं। मख
ू स ! तन
ू े उसे दे खा, कफर भी तझ
ु े परलोक के सख
ु ों की इच्छा बनी रही ! अरे कायर, तू उसे दे खकर
भी ईचवर से डरता रहा ! ईचवर स्वगस ! अनादद ! यह सब क्या गोरखधनधा है ! उनमें रखा ही क्या है , और
क्या वह उस आननद का अकपांश नहीं दे सकते हैं जो तझ
ु े उससे समलता। अरे अभागे, ननबद्
ु गस ध,
समथ्यावादी, मख
ू स जो थायस के अधरों को छो़िकर ईचवरीय कपा को अनयत्र खोजता रहा ! तेरी आंखों पर
ककसने पदास डाल ददया था? उस पराणी का सर्तयानाश हो जाय श्जसने उस समय तझ
ु े अनधा बना ददया
था। तझ
ु े दै वी कोप का क्या भय था जब तू उसके परे म का एक क्षण भी आननद उठा लेता। पर तन
ू े
ऐसा न ककया। उसने तेरे सलए अपनी बांहें फैला दी थीं, श्जनमें मांस के साथ फूलों की सग
ु नध समगर्श्त थी,
और तन
ू े उसके उनमक्
ु त वक्ष के अनप
ु म सध
ु ासागर में अपने को प्लाववत न कर ददया। तू ननर्तय उस
द्वेषध्वनन पर कान लगाये रहा जो तझ
ु से कहती थी, भागभाग ! अनधे ! हा शोक ! पचचात्ताप ! हा ननराश
! नरक में उसे कभी न भल
ू ने वाली घ़िी की आननदस्मनत ले जाने का और ईचवर से यह कहने का
अवसर हाथों से ननकल गया कक 'मेरे मांस को जला मेरी धमननयों में श्जतना रक्त है उसे चूस ले, मेरी
सारी दहड्डयों को चूरचूर कर दे , लेककन तू मेरा हृदय से उस सख
ु दस्मनत को नहीं ननकाल सकता, जो

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गचरकाल तक मझ
ु े सग
ु श्नधत और परमदु दत रखेगी ! थायस मर रही है ! ईचवर तू ककतना हास्यास्पद है !
तझ
ु े कैसे बताऊं कक मैं तेरे नरकलोक को तच्
ु छ समझता हूं, उसकी हं सी उ़िाता हूं ! थायस मर रही है , वह
मेरी कभी न होगी, कभी नहीं, कभी नहीं !

नौका तेज धारा के साथ बहती जाती थी और वह ददनके-ददन पेट के बल प़िा हुआ बारबार कहता था-
कभी नहीं ! कभी नहीं !! कभी नहीं !!

तब यह ववचार आने पर कक उसने औरों को अपना परे मरस चखाया, केवल मैं ही वंगचत रहा।
उसने संसार को अपने परे म की लहरों से प्लाववत कर ददया और मैं उसके होंठों को भी न तर कर सका।
वह दांत पीसकर उठ बैठा और अनतवेदसना से गचकलाने लगा। वह अपने नखों से अपनी छाती को खरोंचने
और अपने हाथों को दातों से काटने लगा।

उसके मन में यह ववचार उठा-यदद मैं उसके सारे परे समयों का संहारा कर दे ता तो ककतना अच्छा
होता।

इस हर्तयाकाण्ड की ककपना ने उसे सरल हर्तयातष्णा से आनदोसलत कर ददया। वह सोचने लगा कक


वह ननससयास का खूब आराम से मजे लेलेकर वध करे गा और उसके चेहरे को बराबर दे खता रहे गा कक
कैसे उसकी जान ननकलती है । तब अकस्मात उसका त्र्कोधावेग िवीभत
ू हो गया। वह रोने और सससकने
लगा; वह दीन और नमर हो गया। एक अज्ञात ववनयशीलता ने उसके गचत्त को कोमल बना ददया। उसे
यह आकांक्षा हुई कक अपने बालपन के साथी ननससयास के गले में बांहें डाल दे और उससे कहे -ननससयास
मैं तम्
ु हें प्यार करता हूं क्योंकक तम
ु ने उससे परे म ककया है । मझ
ु से उसकी परे मचचार करो। मझ
ु से वह
बातें कहो जो वह तम
ु से ककया करती थी।

लेककन अभी तक उसके हृदय में इन वाक्यबाण की नोक ननरनतर चुभ रही थी-थायस मर रही है !

कफर वह परे मोनमत्त होकर कहने लगा-ओ ददन के उजाले ! ओ ननशा के आकाशदीपकों की रौप्य
छटा, ओ आकाश, ओ झूमती हुई चोदटयों वाले वक्षों! ओ वनजनतओ
ु ं ! ओ गहपशओ
ु ं ! ओ मनष्ु यों के
गचश्नतत हृदयों ! क्या तम्
ु हारे कान बहरे हो गये हैं ? तम्
ु हें सन
ु ाई नहीं दे ता कक थायस मर रही है ? मनद
समीरण, ननमसल परकाश, मनोहर सग
ु नध ! इनकी अब क्या जरूरत है ? तम
ु भाग जाओ, लप्ु त हो जाओ !

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ओ भम
ू ण्डल के रूप और ववचार ! अपने मह
ुं नछपा लो, समट जाओ ! क्या तम
ु नहीं जानते कक थायस मर
रही है ? वह संसार के माधय
ु स का केनि थी जो वस्तु उसके समीप आती थी वह उसकी रूपज्योनत से
परनतत्रबश्म्बत होकर चमक उठती थी। इस्कश्निया के भोज में श्जतने ववद्वान ्, ज्ञानी, वद्ध उसके समीप
बैठते थे उनके ववचार ककतने गचत्ताकषसक थे, उनके भाषण ककतने सरस ! ककतने हंसमख
ु लोग थे ! उनके
अधरों पर मधुर मस्
ु कान की शोभा थी और उनके ववचार आननदभोग की सग
ु नध में डूबे हुए थे। थायस
की छाया उनके ऊपर थी, इससलए उनके मख
ु से जो कुछ ननकलता वह सन
ु दर, सर्तय और मधुर होता था !
उनके कथन एक शभ
ु र अभश्क्त से अलंकत हो जाते थे। शोक ! वह शोक सब अब स्वप्न हो गया। उस
सख
ु मय असभनय का अनत हो गया। थायस मर रही है ! वह मौत मझ
ु े क्यों नहीं आती। उसकी मौत से
मरना मेरे सलए ककतना स्वाभाववक और सरल है ! लेककन ओ अभागे, ननकम्मे, कायर परु
ु ष, ओ ननराश
और ववषाद में डूबी हुई दरु ार्तमा, क्या तू मरने के सलए ही बनायी गयी है ? क्या तू समझता है कक तू
मर्तयु का स्वाद रख सकेगा ? श्जसने अभी जीवन का ममस नहीं जाना, वह मरना क्या जाने ? हां, अगर
ईचवर है , और मझ
ु े दण्ड दे , तो मैं करने को तैयार हूं। सन
ु ता है ओ ईचवर, मैं तझ
ु से घणा करता हूं सन
ु ता
है ! मैं तझ
ु े कोसता हूं! मझ
ु े अपने अश्ग्नवजरों से भस्म कर दे , मैं इसका इच्छुक हूं, यहां मेरी ब़िी
असभलाषा है । तू मझ
ु े अश्ग्नकुण्ड में डाल दे । तझ
ु े उत्तेश्जत करने के सलए, दे ख, मैं तेरे मख
ु पर थूकता हूं।
मेरे सलए अननत नरकवास की जरूरत है । इसके त्रबना यह अपार त्र्कोध शानत न होगा जो मेरे हृदय में
ख़िक रहा है ।

दस
ू रे ददन परातःकाल अलबीना ने पापनाशी को अपने आर्श्म में ख़िे पाया। वह उसका स्वागत
करती हुई बोली-'पज्
ू य वपता, हम अपने शाश्नतभवन में तम्
ु हारा स्वागत करते हैं, क्योंकक आप अवचय ही
उस ववदष
ु ी की आर्तमा को शाश्नत परदान करने आये हैं श्जसे अपने यहां आर्श्म ददया है । आपको ववददत
होगा कक ईचवर ने अपनी असीम कपा से उसे अपने पास बल
ु ाया है । यह समाचार आपसे क्योंकर नछपा
रह सकता था श्जसे स्वगस के दत
ू ों ने मरुस्थल के इस ससरे से उस ससरे तक पहुंचा ददया है ? यथाथस में
थायस का शभ
ु अंत ननकट है । उसके आर्तमोद्घार की त्रत्र ्कया परू ी हो गयी और मैं सक्ष्
ू मतः आप पर यह
परकट कर दे ना उगचत समझती हूं कक जब तक वह यहां रही, उसका व्यवहार और आचरण कैसा रहा।
आपके चले जाने के पचचात जब वह अपनी मह
ु र लगाई हुई कुटी में एकानत सेवन के सलए रखी गयी, तो
मैंने उसके भोजन के साथ बांसरु ी भी भेज दी, जो ठीक उसी परकार की थी जैसी नतसककयां भोज के
अवसरों पर बजाया करती हैं। मैंने यह व्यवस्था इससलए की श्जसमें उसका गचत्त उदास न हो और वह
ईचवर के सामने उससे कम संगीतचातय
ु स और कुशागरता न परकट करे श्जतनी वह मनष्ु यों के सामने
ददखाती थी। अनभ
ु व से ससद्ध हुआ कक मैंने व्यवस्था करने में दरू दवषसता और चररत्रपररचय से काम
सलया, क्योंकक थायस ददनभर बांसरु ी बजाकर ईचवर का कीनतसगान करती रहती थी और अनय दे वकनयाएं,
जो उसकी वंशी की ध्वनन से आकवषसत होती थीं, कहतीं-हमें इस गान में स्वगसकंु जों की बल
ु बल
ु की चहक
का आननद समलता है ! उसके स्वगससग
ं ीत से सारा आर्श्म गज
ुं ररत हो जाता था। पगथक भी अनायास ख़िे

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होकर उसे सन
ु कर अपने कान पववत्र कर लेते थे। इस भांनत थायस तपचचयार करती रही। यहां तक कक
साठ ददनों के बाद वह द्वार श्जस पर आपने मह
ुं र लगा दी थी, आपही-आप खुल गया और वह समट्टी की
मह
ु र टूट गयी। यद्यवप उसे ककसी मनष्ु य ने छुआ तक नहीं। इस लक्षण से मझ
ु े ज्ञात हुआ कक आपने
उसके सलए जो परायश्चचत ननयत ककया था, वह परू ा हो गया और ईचवर ने उसके सब अपराध क्षमा कर
ददये। उसी समय से वह मेरी अनय दे वकनयाओं के साधारण जीवन में भाग लेने लगी है । उनहीं के साथ
कामधनधा करती है , उनहीं के साथ ध्यानउपासना करती है । वह अपने वचन और व्यवहार की नमरता से
उनके सलए एक आदशसचररत्र थी, और उनके बीच में और व्यवहार की नमरता से उनके सलए एक
आदशसचररत्र थी, और उनके बीच में पववत्रता की एक मनू तससी जान प़िती थी। कभीकभी वह मनमसलन हो
जाती थी, ककनतु वे घटाएं जकद ही कट जाती थीं और कफर सय
ू स का ववहससत परकाश फैल जाता था। जब
मैंने दे खा कक उसके हृदय में ईचवर के परनत भश्क्त, आशा और परे म के भाव उददत हो गये हैं तो कफर
मैंने उनके असभनयकलानैपण्ु य का उपयोग करने में ववलम्ब नहीं ककया। यहां तक कक मैं उसके सौनदयस
को भी उसकी बहनों की धमोननसनत के सलए काम में लाई। मैंने उससे सद्गरं थ में वणणसत दे वकनयाओं और
ववदवु षयों की कीनतसयों का असभनय करने के सलए आदे श ककया। उसने ईचवर, डीबोरा, जूडडथ, लाजरस की
बहन मररयम, तथा परभु मसीह की माता मररयम का असभनय ककया। पज्
ू य वपता, मैं जानती हूं कक
आपका संयमशील मन इन कर्तयों के ववचार ही से कश्म्पत होता है , लेककन आपने भी यदद उसे इन
धासमसक दृचयों में दे खा होता तो आपका द्गदय पल
ु ककत हो जाता। जब वह अपने खजूर के पत्तों से सन
ु दर
हाथ आकाश की ओर उठाती थी, तो उसके लोचनों से सच्चे आंसओ
ु ं की वषास होने लगती थी। मैंने बहुत
ददनों तक स्त्रीसमद
ु ाय पर शासन ककया है और मेरा यह ननयम है कक उनके स्वभाव और परववत्तयों की
अवहे लना न की जाय। सभी बीजों में एक समान फूल नहीं लगते, न सभी आर्तमाएं समान रूप में ननवत्त
होती हैं। यह बात भी न भल
ू नी चादहए कक थायस ने अपने को ईचवर के चरणों पर उस समय अवपसत
ककया जब उसका मख
ु कमल पण
ू स ववकास पर था और ऐसा आर्तमसमपसण अगर अद्ववतीय नहीं, तो ववरला
अवचय है । यह सौनदयस जो उसका स्वाभाववक आवरण है , तीस मास के ववषम ताप पर भी अभी तक
ननष्परभ नहीं हुआ है । अपनी इस बीमारी में उसकी ननरनतर यही इच्छा रही है कक आकाश को दे खा करे ।
इससलए मैं ननर्तय परातःकाल उसे आंगन में कुएं के पास, परु ाने अंजीरे के वक्ष के नीचे, श्जसकी छाया में
इस आर्श्म की अगधष्ठात्रत्रयां उपदे श ककया करती हैं, ले जाती हूं। दयालु वपता, वह आपको वहीं समलेगी।
ककनतु जकदी कीश्जए, क्योंकक ईचवर का आदे श हो चक
ु ा है और आज की रात वह मख
ु कफन से ेंक
जायेगा जो ईचवर ने इस जगत को लश्ज्जत और उर्तसादहत करने के सलए बनाया है । यही स्वरूप आर्तमा
का संहार करता था, यही उसका उद्घार करे गा।

पापनाशी अलबीना के पीछे पीछे आंगन में गया जो सय


ू स के परकाश से आच्छाददत हो रहा था।
ईंटों की छत के ककनारों पर चवेत कपोतों की एक मक्
ु तामालासी बनी हुई थी। अंजीर के वक्ष की छांह में

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एक शय्या पर थायस हाथपर-हाथ रखे लेटी हुई थी। उसका मख
ु र्श्ीववहीन हो गया था। उसके पास कई
श्स्त्रयां मह
ुं पर नकाब डाले ख़िी अश्नतम संस्कारसच
ू क गीत गा रही थीं-

'परम वपता, मझ
ु दीन पराणी पर

अपनी सपरे म वर्तसलता से दया कर।

अपनी करुणादृश्ष्ट से

मेरे अपराधों को क्षमा कर।'

पापनाशी ने पक
ु ारा-'थायस !'

थायस ने पलकें उठायी और अपनी आंखों की पत


ु सलयां उस कंठध्वनन की ओरफेरीं।

अलबीना ने दे वकनयाओं को पीछे हट जाने की आज्ञा दी, क्योंकक पापनाशी पर उनकी छाया प़िना भी
धमसववरुद्ध था।

पापनाशी ने कफर पक
ु ारा-'थायस।'

उसने अपना ससर धीरे से उठाया। उसके पीले होंठों से एक हककी सांस ननकलआयी।

उसने क्षीण स्वर में कहा-'वपता, क्या आप हैं ? आपको याद है कक हमने सोते से पानी वपया था
और छुहारे तो़िे थे ? वपता, उसी ददन मेरे हृदय में परे म का अभ्यद
ु य हुआ- अननत जीवन के परे म का !'

यह कहकर वह चप
ु हो गयी। उसका ससर पीछे को झक
ु गया।

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यमदत
ू ों ने उसे घेर सलया था और इश्नतम पराणवेदना चवेत बद
ंू ों ने उसके माथे को आिस कर ददया था।
एक कबत
ू र अपने अरुण त्र्कनदन से उस स्थान की नीरवता भंग कर रहा था। तब पापनाशी की
सससककयां दे वकनयाओं के भजनों के साथ सश्म्मर्श्त हो गयीं।

'मझ
ु े मेरी कासलमाओं से भलीभांनत पववत्र कर दे और मेरे पापों को धो दे , क्योंकक मैं अपने कुकमों को
स्वीकार करती हूं, और मेरे पातक मेरे नेत्रों के सम्मख
ु उपश्स्थत हैं।'

सहसा थायस उठकर शय्या पर बैठ गयी। उसकी बैंगनी आंखें फैल गयीं, और वह तकलीन होकर बांहों को
फैलाये हुए दरू की पहाड़ियों की ओर ताकने लगी। तब उसने स्पष्ट और उर्तफुकल स्वर में कहा-'वह दे खो,
अननत परभात के गल
ु ाब णखले हैं।'

उसकी आंखों में एक ववगचत्र स्फूनतस आ गयी, उसके मख


ु पर हककासा रं ग छा गया। उसकी जीवनज्योनत
चमक उठी थी, और वह पहले से भी अगधक सन
ु दर और परसननवदन हो गयी थी।

पापनाशी घट
ु नों के बल बैठ गया; अपनी लम्बी, पतली बांहें उसके गले में डाल दीं, और बोला-ऐसे
स्वरों में श्जसे स्वयं न पहचान सकता था कक यह मेरी ही आवाज है - 'वपरये, अभी मरने का नाम न ले !
मैं तझ
ु पर जान दे ता हूं। अभी न मर ! थायस, सन
ु , कान धरकर सन
ु , मैंने तेरे साथ छल ककया है , तझ
ु े
दगा ददया है । मैं स्वयं भरांनत में प़िा हुआ था। ईचवर, स्वगस आदद यह सब ननरथसक शशद हैं, समथ्या हैं।
इस ऐदहक जीवन से बकर और कोई वस्त;ु और कोई पदाथस नहीं है । मानवपरे म ही संसार में सबसे उत्तम
रर्तन है । मेरा तझ
ु पर अननत परे म है । अभी न मर। यह कभी नहीं हो सकता, तेरा महत्त्व इससे कहीं
अगधक है , तू मरने के सलए बनाई ही नहीं गयीं। आ, मेरे साथ चल ! यहां से भाग चलें। मैं तझ
ु े अपनी
गोद में उठाकर पथ्वी की उस सीमा तक ले जा सकता हूं। आ, हम परे म में मग्न हो जायें। वपरये, सन
ु , मैं
क्या कहता हूं। एक बार कह दे , मैं श्जऊंगी-मैं जीना चाहती हूं ! थायस उठ, उठ !'

थायस ने एक शशद भी न सन
ु ा। उसकी दृश्ष्ट अननत की ओर लगी हुई थी।

अनत में वह ननबसल स्वर में बोली-'स्वगस के द्वार खुल रहे हैं, मैं दे वदत
ू ों को, नत्रबयों को और
सनतों को दे ख रही हूं-मेरा सरल हृदय गथयोडर उनहीं में है । उसके ससर पर फूलों का मक
ु ु ट है , वह

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मस्
ु कराता है , मझ
ु े पक
ु ार रहा है । दो दे वदत
ू मेरे पास आये हैं, वह इधर चले आ रहे हैं....वह ककतने सन
ु दर
हैं ! मैं ईचवर के दशसन कर रही हूं !'

उसने एक परफुकल उच्छवास सलया और उसका ससर तककये पर पीछे गगर प़िा। थायस का पराणानत हो
गया ! सब दे खते ही रह गये, गचड़िया उ़ि गयी।

पापनाशी ने अंनतम बार, ननराश होकर, उसको गले से लगा सलया। उसकी आंखें उसे तष्णा, परे म और
त्र्कोध से फा़िे खाती थीं।

अलबीना ने पापनाशी से कहा-'दरू हो, पापी वपशाच !'

और उसने ब़िी कोमलता से अपनी उं गसलयां मत बासलका की पलकों पर रखीं। पापनाशी पीछे हट गया,
जैसे ककसी ने धक्का दे ददया हो। उसकी आंखों में ज्वाला ननकल रही थी। ऐसा मालम
ू होता था कक
उसके पैरों के तले पथ्वी फट गयी है ।

दे वकनयाएं जकररया का भजन गा रही थीं-

'इजराइसलयों के खद
ु ा को कोदट धनयवाद !'

अकस्मात उनके कंठ अवरुद्ध हो गये, मानो ककसी ने गला बनद कर ददया। उनहोंने दादरु !!!

वह इतना नघनौना हो गया था कक जब उसने अपना हाथ अपने मह


ुं पर फेरा, तो उसे स्वयं ज्ञात हुआ कक
उसका स्वरूप ककतना ववकत हो गया है !

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