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Dear friends.
Here I tried to put together works of Kabir. If you find it
interesting and want to write comments on any of the verse
in English or want to translate in English then please feel
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॥ कबीर के दोह ॥
दु ख म सुमिरन सब करे , सुख मे करे न कोय ।
जो सुख मे सुमिरन करे , दु ख कहे को होय ॥ 1 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
माली स चे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥ 12 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल म लय होएगी, बहु िर करे गा कब ॥ 24 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
हीरा वहाँ न खोिलये, जहाँ कुंजड़ की हाट ।
बांधो चुप की पोटरी, लागहु अपनी बाट ॥ 35 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
हर चाले तो मानव, बेहद चले सो साध ।
हद बेहद दोन तजे, ताको भता अगाध ॥ 46 ॥
जाके िज या ब धन नह , दय म नह साँच ।
वाके संग न लािगये, खाले विटया काँच ॥ 48 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
जागन म सोवन करे , साधन म लौ लाय ।
सूरत डोर लागी रहे , तार टूट ना ह जाय ॥ 57 ॥
अ तय मी एक तुम, आ मा के आधार ।
जो तुम छोड़ो हाथ तो, कौन उतारे पार ॥ 62 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
छीर प सतनाम है, नीर प यवहार ।
हंस प कोई साधु है, सत का छाननहार ॥ 68 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
फूटी आँख िववेक की, लखे ना स त अस त ।
जाके संग दस-बीस ह, ताको नाम मह त ॥ 79 ॥
जब म था तब गु नह , अब गु ह म नाय ।
ेम गली अित साँकरी, ता मे दो न समाय ॥ 82 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
जब ही नाम दय धरयो, भयो पाप का नाश ।
मानो िचनगी अि की, पिर पुरानी घास ॥ 90 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
तब लग जीव जग कमवश, य लग ान न पूर ॥ 101 ॥
सब आए इस एक म, डाल-पात फल-फूल ।
॥ कबीर के दोह ॥
किबरा पीछा या रहा, गह पकड़ी जब मूल ॥ 112 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
चाहे बोले केस रख, चाहे घ ट भु डाय ॥ 123 ॥
स त पु ष की आरसी, स त की ही दे ह ।
लखा जो चहे अलख को, उ ह म लख लेह ॥ 127 ॥
एक ते अन त अ त एक हो जाय ।
॥ कबीर के दोह ॥
एक से परचे भया, एक मोह समाय ॥ 134 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
सूरत सँभाल ए कािफला, अपना आप प चान ॥ 145 ॥
एक ते जान अन त, अ य एक हो आय ।
एक से परचे भया, एक बाहे समाय ॥ 152 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
होमी च दन बासना, नीम न कहसी कोय ॥ 156 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
दे ह खेह हो जाएगी, कौन कहे गा दे ह ॥ 167 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
केतन िदन ऐसे गए, अन चे का नेह ।
अवसर बोवे उपजे नह , जो न ह बरसे मे ह ॥ 179 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
जो तोकंू काँटा बुवै, तािह बोय तू फूल ।
ू ॥ 190 ॥
तोकू फूल के फूल है, बाँकू है ितरशल
॥ कबीर के दोह ॥
ते िदन गये अकारथी, संगत भई न संत ।
ेम िबना पशु जीवना, भि िबना भगवंत ॥ 201 ॥
ू न होय ।
तीर तुपक से जो लड़े , सो तो शर
माया तिज भि करे , सूर कहावै सोय ॥ 202 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
पाहन पूजे हिर िमल, तो म पूज पहार ।
याते ये च ी भली, पीस खाय संसार ॥ 212 ॥
ू कौन उपाय ।
ब धे को बँनधा िमले, छटे
कर संगित िनरब ध की, पल म लेय छु ड़ाय ॥ 215 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
माया छाया एक सी, िबरला जाने कोय ।
भागत के पीछे लगे, स मुख भागे सोय ॥ 223 ॥
ये तो घर है ेम का, खाला का घर ना ह ।
सीस उतारे भुई
ँ धरे , तब बैठ घर मा ह ॥ 227 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
साँझ पड़े िदन बीतबै, चकवी दी ही रोय ।
चल चकवा वा दे श को, जहाँ रैन न ह होय ॥ 234 ॥
ु
लकड़ी कहै लहार की, तू मित जारे मो ह ।
एक िदन ऐसा होयगा, म जार गी तोिह ॥ 237 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
सतगुर हम सूं रीिझ किर, एक क ा कर संग ।
बर या बादल ेम का, भ िज गया अब अंग ॥ 245 ॥
ू सीष ।
कबीर सतगुर ना िम या, रही अधरी
वाँग जती का पहिर किर, धिर-धिर माँगे भीष ॥ 246 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
लोही स चो तेल यूं, कब मुख दे ख पिठउं ॥ 256 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
भारी कह तो बहु डर , हलका कहू ं तौ झूठ ।
म का जाणी राम कंू नैनंू कबहू ं न दीठ ॥ 268 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
यानी मूल गँवाइया, आपण भये करना।
ताथ संसारी भला, मन म रहै डरना ॥ 289 ॥
ा ण गु जग का, साधू का गु ना ह ।
उरिझ-पुरिझ किर भिर र ा, चािरउं बेदा मांिह ॥ 294 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
कोिट म िसिर ले च या, चेत न दे खै म ॥ 300 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
माया तजी तौ या भया, मािन तिज नही जाइ।
मािन बड़े मुिनयर िमले, मािन सबिन को खाइ ॥ 312 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
तीरथ तो सब बेलड़ी, सब जग मे या छाय ।
कबीर मूल िनकंिदया, कौण हलाहल खाय ॥ 323 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
कबीर तास िमलाइ, जास िहयाली तू बसै ।
न हतर बेिग उठाइ, िनत का गंजर को सहै ॥ 334 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
कहै कबीर कैसे ित ँ, पंच कुसंगी संग ॥ 354 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
म-म बड़ी बलाइ है सकै तो िनकसौ भािज ।
कब लग राखौ हे सखी, ई लपेटी आिग ॥ 366 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
गाँठी दाम न बांधई, न ह नारी स नेह ।
कह कबीर ता साध की, हम चरनन की खेह ॥ 377 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
काबा िफर कासी भया, राम भया रे रहीम ।
मोट चून मैदा भया, बैिठ कबीरा जीम ॥ 388 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
कबीर सोई सूिरमा, मन सूँ मांडै झूझ ।
पंच पयादा पािड़ ले, दू िर करै सब दू ज ॥ 399 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
कबीर ऐस होइ र ा, यूँ पाऊँ तिल घास ॥ 410 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
गो यंद के गुण बहु त ह, िलखै जु िहरदै मांिह ।
डरता पाणी जा पीऊं, मित वै धोये जािह ॥ 422 ॥
जो ऊ या सो आंथवै, फू या सो कुिमलाइ ।
जो िचिणयां सो ढिह पड़ै, जो आया सो जाइ ॥ 423 ॥
॥ गु के िवषय म दोहे ॥
॥ कबीर के दोह ॥
बहु तक भोदूँ बिह गये, रािख जीव अिभमान ॥ 432 ॥
गु की आ ा आवै, गु की आ ा जाय ।
कह कबीर सो स त ह, आवागमन नशाय ॥ 436 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
गु स ीित िनबािहये, जेिह तत िनबटै स त ।
ेम िबना िढग दू र है, ेम िनकट गु क त ॥ 443 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
कह कबीर जिज भरम को, न हा है कर पीव ।
तिज अहं गु चरण गहु , जमस बाचै जीव ॥ 454 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
साबुन िबचारा या करे , गाँठे राखे मोय ।
जल सो अरसां न ह, य कर ऊजल होय ॥ 465 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
कबीर समूझा कहत है, पानी थाह बताय ।
ताकूँ सतगु का करे , जो औघट डूबे जाय ॥ 475 ॥
॥ गु पारख पर दोहे ॥
॥ कबीर के दोह ॥
गु लोभ िशष लालची, दोन खेले दाँव ।
दोन बूड़े बापुरे, चिढ़ पाथर की नाँव ॥ 485 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
सोचे गु के प म, मन को दे ठहराय ।
चंचल से िन ल भया, न ह आवै नह जाय ॥ 496 ॥
ू कौन उपाय ।
बँधे को बँधा िमला, छटै
कर सेवा िनरब ध की पल म लेय छु ड़ाय ॥ 504 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
कहता हू ँ किह जात हू ँ, दे ता हू ँ हे ला ।
गु की करनी गु जाने चेला की चेला ॥ 507 ॥
॥ गु िश य के िवषय मे दोहे ॥
॥ कबीर के दोह ॥
कबीर गु की भि िबन, राजा ससभ होय ।
माटी लदै कु हार की, घास न डारै कोय ॥ 516 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
शुकदे व सरीखा फेिरया, तो को पावे पार ।
िबनु गु िनगुरा जो रहे , पड़े चौरासी धार ॥ 527 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
खसम कहावै बैरनव, घर म साकट जोय ।
एक धरा म दो मता, भि कहाँ ते होय ॥ 538 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
पाख-पाख न ह किर सकै, मास मास क जाय ।
याम दे र न लाइये, कह कबीर समुदाय ॥ 549 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
कबीर ल ग-इलायची, दातुन, माटी पािन ।
कहै कबीर स तन को, दे त न कीजै कािन ॥ 560 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
िबरछा कबहु ँ न फल भखै, नदी न अंचय नीर ।
परमारथ के कारने, साधु धरा शरीर ॥ 571 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
वेद थके, ा थके, याके सेस महे स ।
गीता हू ँ िक गत नह , स त िकया परवेस ॥ 582 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
साधु सती औ स को, य लेघन य शोभ ।
सह न मारे मे ढ़का, साधु न बाँघै लोभ ॥ 593 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
जौन चाल संसार की जौ साधु को ना ह ।
डभ चाल करनी करे , साधु कहो मत ता ह ॥ 604 ॥
एक छािड़ पय को गह, य रे गऊ का ब छ ।
अवगुण छाड़ै गुण गहै, ऐसा साधु ल छ ॥ 612 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
तन म शीतल श द है, बोले वचन रसाल ।
कह कबीर ता साधु को, गंिज सकै न काल ॥ 615 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
सो िदन गया इकारथे , संगत भई न स त ।
ान िबना पशु जीवना, भि िबना भटक त ॥ 626 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
हे त िबना आवै नह , हे त तहाँ चिल जाय ।
कबीर जल और स तजन, नव तहाँ ठहराय ॥ 637 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
तब गु आ ा लेय के, रहे दे शा तर जाय ॥ 647 ॥
घर म रहै तो भि क ँ, ना त क बैराग ।
बैरागी ब ध करै , ताका बड़ा अभाग ॥ 656 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
कह कबीर अिधका गहै, तािक गित न मोष ॥ 657 ॥
॥ संगित पर दोहे ॥
॥ कबीर के दोह ॥
कबीर संगत साधु की, करै कोिट अपराध ॥ 667 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
मूरख होय न ऊजला, य कालर का खेत ॥ 678 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
तारै पर बोरे नह , बाँह गहे की लाज ॥ 689 ॥
॥ सेवक पर दोहे ॥
॥ कबीर के दोह ॥
जहाँ जाय तहँ काल है, कह कबीर समझाय ॥ 699 ॥
गु आ ा लै आवही, गु आ ा लै जाय ।
कह कबीर सो स त ि य, बहु िविध अमृत पाय ॥ 709 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
कह कबीर िबसरे नह , यह गु मुख के अंग ॥ 710 ॥
यह सब त छन िचतधरे , अप ल छन सब याग ।
सावधान सम यान है, गु चरनन म लाग ॥ 711 ॥
॥ दासता पर दोहे ॥
॥ कबीर के दोह ॥
िफर िफर वाकंू ब दये, दास ल छन है सोय ॥ 720 ॥
॥ भि पर दोहे ॥
॥ कबीर के दोह ॥
भ लीन गु चरण म, भेष जगत की आश ॥ 730 ॥
कबीर गु की भि क ँ, तज िनषय रस च ज ।
बार-बार न ह पाइये, मानुष ज म की मौज ॥ 731 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
करम जाल भौजाल म, भ फँसे न ह कोय ॥ 741 ॥
और कम सब कम है, भि कम िनहकम ।
कह कबीर पुकािर के, भि करो तिज भम ॥ 751 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
सुखदाई सब जीव स , यही भि परमान ॥ 752 ॥
॥ चेतावनी ॥
॥ कबीर के दोह ॥
यह पुर पटृन यह गली, बहु िर न दे खहु आय ॥ 762 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
ह ये-ह ये तिर गये, बूड़े िजन िसर भार ॥ 773 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
अब पिछतावा या करे , िचिड़या चुग गई खेत ॥ 784 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
अजहु ँ झोला बहु त है, घर आवै तब जान ॥ 795 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
ते भी होते मानवी, करते रंग रिलयाय ॥ 806 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
अटकेगा कहु ँ बेिल म, तड़िफ- तड़िफ िजय दे य ॥ 817 ॥
ू गािड़ ।
या मन गिह जो िथर रहै, गहरी धनी
चलती िबरयाँ उिठ चला, ह ती घोड़ा छािड़ ॥ 820 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
एक ह गु ँ के ान िबनु, िधक दाढ़ी िधक मूछ
ँ ॥ 828 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
जो तू परा है फंद म िनकसेगा कब अंध ।
माया मद तोकूँ चढ़ा, मत भूले मितमंद ॥ 840 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
आँिख न दे खे बावरा, श द सुनै न ह कान ।
िसर के केस उ वल भये, अबहु िनपट अजान ॥ 851 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
िबिरया बीती बल घटा, केश पलिट भये और ।
ू
िबगरा काज सँभािर ले, किर छटने की ठौर ॥ 861 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
ू भराय ।
हाथी परबत फाड़ते, समु दर छट
ते मुिनवर धरती गले, का कोई गरब कराय ॥ 871 ॥
ू ।
संसै काल शरीर म, जािर करै सब धिर
काल से बांचे दास जन िजन पै ाल हु जूर ॥ 878 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
पात झर ता दे िख के, हँसती कूपिलयाँ ।
हम चाले तु मचािलह , धीरी बापिलयाँ ॥ 882 ॥
॥ उपदे श ॥
॥ कबीर के दोह ॥
लेना है सो ज द ले, कही सुनी मान ।
कह सुनी जुग जुग चली, आवागमन बँधान ॥ 892 ॥
ु
खाय-पकाय लटाय के, किर ले अपना काम ।
चलती िबिरया रे नरा, संग न चले छदाम ॥ 893 ॥
ु
खाय-पकाय लटाय के, यह मनुवा िमजमान ।
लेना होय सो लेई ले, यही गोय मैदान ॥ 894 ॥
॥ कबीर के दोह ॥
कबीर यह तन जात है, सको तो राखु बहोर ।
खाली हाथ वह गये, िजनके लाख करोर ॥ 903 ॥
॥ कबीर के दोह ॥