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TANTRA, MANTRA & YANTRA

िजस तरह पि म के बु जीिवयों, िज हम वै ािनक कहते ह उ ोंन संसार के क ाण के िलए पूरी दु िनया की दशा और िदशाओं को
बदल कर रख दे ने वाली खोज की, आिव ार िकये, िजनके बदौलत आज हम चम ारी चीजों, तकनीकों का योग करके अपने जीवन
को सुख साधनों से प रपूण पाते ह, शारी रक म शू हो गया है I थामस एिडसन के ब के आिव ार ने आज पूरी दु िनया को रोशन
कर िदया, राइट दस के हवाई जहाज ने लाखों िकलोमीटर दू र की या ा को सुखद और सहज बना िदया, आई ीन के सू ों ने हों,

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ऊजाओं के बारे म बताया तो हम चाँद की सैर कर आये I


ठीक इसी कार हमारे यहाँ के मनीिषयों ने इस संसार, कृित, संसार को बनाने वाले पंच त ों के बारे म, आ ा- परमा ा जैसी जिटल
गु यों को सुलझाने के साथ- साथ मानव जीवन के इहलोक और परलोक को सुधारने वाली िवशेष िविधयों को खोजा िज हम त -
म -य कहते ह I

Tantra Mantra Yantra


Tantra
उ गणपित योग
सव एवं सव थम सम पूजा आिद मां गिलक काय म तथा सम सां सा रक काय म िव नाश हे तु तथा काय िक
प रपूणता हे तु भगवान गणपित का रण िकया जाता है I काम, ोध आिद आं त रक श ु होँ अथवा रोजमरा के
जीवन म उप थत होने वाले अडचन पी बा श ु होँ I दोनों के िनवारण हे तु सव थम भगवान गणेश जी का रण
िकया जाता है I गणेश जी की उपासना से ही भगवान िव ु ने मधु- कैटभ का वध िकया I गणेश जी के वार से ही िशव
जी ने ि पुरा सुर का वध िकया I भगवती दु गा जी ने भी गणेश जी की वंदना करके मिहषासुर का वध िकया I ज ासुर
का वध करके गणेश जी ने ा-िव ु-महे श की सहायता की I िस दुरासुर ने जब पावती जी का हरण िकया तो
"मयुरेश गणेश जी" ने अवतार लेकर उनके क ों को हरा I
एक समय जब कामदे व की भ ी से उ ए भंडासुर नाम के महा तापी दै ने ा-िव ु-महे श सिहत सभी दे वों
को परा कर िदया, नए- नए लोकों की रचना की और उससे लड़ने वाली माँ ि पुर सु री की सेना को भी जब उसने
अपने माया त से स ोिहत कर िदया तो उस समय माँ के रण करने पर भगवान गणेश जी का "ह र ा गणपित" नाम का त प कट आ एवं
रा स के बनाए मायामय िव य को तोड़कर माँ ि पुर सु री को िजतने म सहायता दान की I ऐसे अनेक लीलाओं को स करने वाले भगवान
गणेश जी को त , म एवं यं ों को िस करने से पहले पूजना चािहए I शा ों म भगवान गणेश जी के अनेक िवधान िदए ए ह िजनको स करके
आप सां सा रक एवं दै वी िस याँ ा कर सकते ह :-

उ गणपित योग

योग करने म अ सरल, शी फल को दान करने वाला, अ और धन की वृ के िलए, वशीकरण को दान करने वाला भगवान गणेश जी का ये
िद तां ि क योग है I इसी िस के बल पर ाचीन काल म साधु लोग थोड़े से साद से पूरे गां व को भरपेट भोजन करवा दे ते थे I इसकी साधना करते
ए मुह को जूठा रखा जाता है I
िविनयोग : ॐ अ ीउ गणपित मं कंकोल ऋिष:, िवराट छ :उ गणपित दे वता सवाभी िस थ जपे िविनयोग: I

म : ॐ गं ह िपशािच िलखे ाहा I

अगर िकसी पर तामसी कृ ा योग आ हो तो उ गणपित श ु की ग ी ि याओं को न करके र ा करते ह I यिद आप भी त ारा परे शान ह तो
सं था के ता कों ारा यह तां ि क साधना स करवा सकते ह I
मू मा Rs . 41000 /-
स ूण साधना िविध इसके षडां ग सिहत मंगवाने के िलए सं था से संपक कर I
मू मा Rs . 250 /-

चौर गणपित त

तामसी ि याओं के ारा साधक दू सरे के तप, तेज एवं िस का हरण करके यं उनका मािलक बन सकता है I दू सरों की िव ा एवं दू सरों के धन को
खींचने के िलए इस त का योग िकया जाता है I यम वानर राज बाली ने इसकी िस की ई थी I इस त को िस करने से अपने िस एवं

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सफलताओं की हािन नहीं होती एवं तामसी तां ि कों से अपना बचाव कर सकते ह I

म : ों ी ं ी ं ी ं ी ं ी ं ी ं ी ं ी ं ं ं ं ं ीं ीं ीं ी ं हसौ: ूं ं ॐ I

इस त का कोई दु पयोग न करे इसिलए इसका िव ृत िववरण नहीं िदया जा रहा I

खड् गरावण त

सम त श के नाश के िलए मारण योगों को न करने के िलए कृ ा ोह नाम के त उ ूलन के िलए इस


योग को िकया जाता है I इससे त के छ: कार के अिभचार कम का नाश होकर र ा की ा होती है I

म : ॐ नमो भगवते पशुपतये ॐ नमो भूतािधपतये ॐ नमो खड् गरावण लं लं िवहर िवहर सर सर नृ
नृ सनं भ ािचत शरीराय घ ा कपाल- मालाधराय ा चमप रधानाय शशांककृतशेखराय कृ सप
य ोपवीितने चल चल बल बल अितवितकपािलने जिह जिह भुतान् नाशय नाशय म लाय फट् फट्
ाद् कुश शमय शमय वेशय वेशय आवेणय आवेणय र ांिस धरािधपित ो ापयित ाहा I

श ुओं के योगों के ारा जो ल े समय से तरह- तरह के क झेलते आ रहे ह और िकसी कार भी इससे मु
नहीं िमल पा रही हो तो इस योग को अव स कर I ि लोक िवजयी रावण इसी म के बल पर ही महा को स करके उस युग के त - म
वे ा, ऋिष- मुिनयों का भी स ाट बना I
पूण य , अंग ास, साधना िविध र सिहत ा कर I मा Rs . 250 /-
इस म की पूण िस 200000 मं ों से होती है एवं अंत म भूतािधपित के िलए राजस व पंच रांध बिल दी जाती है I इस दु र साधना को
सं था के ारा स कराने का िवशेष मू Rs. 251000 /-

शरभ त

सम तं ों म सवािधक घातक त शरभ त कहलाता है I जब िहर क प का वध करने के उपरा भी


भगवान नृिसंह का ोध शां त नहीं आ और तीनों लोकों को खाने को उ त ए तब सम दे वों के ारा ाथना िकये
जाने पर भगवान िशव न एक िविच प ी का प धारण िकया िजसका मुह उ ू की तरह, ने म अि , सूय एवं च
का वास था I दो पंखों म िजनके दु गा और काली का वास था I कमर के बाद का िह ा िहरण की तरह एवं पूंछ शेर
की तरह थी I िजनके पेट म ािध एवं मृ ु का वास था ऐसे शरभ प प ी राज न नृिसंह भगवान को चोंच मारकर
मूिछत कर िदया I अपने हाथों से उनको पकड़कर आकाश की तरफ उड़ चले I इनको शा ों म आकाश भैरव भी
कहा गया है I इस गा डी िव ा को गु रखना चािहए I
इस साधना की िवशेष िविधयां आकाश भैरव क , शरभाचापा रजात, आशुग ड़ इ ािद त ंथों म दी गयी ह I
कृ प की अ मी से लेकर चतुदशी तक इसकी साधना े मानी गयी है I
िविनयोग : ॐ अ म ीवासुदेव ऋिष: जगतीछ :, कालाि शरभ दे वता, खं बीजं, ाहा श :, मम सवश ु याथ सव प व

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शमनाथ जपे िविनयोग: I

II ानम् II
िवद् ु य ंव नखं वडवा ुदरं तथा
ािधमृ ु रपु ं च वाताित वेिगनम् I
द् भैरव पं च वै रवृ िनषूदनं
मृगे क्- छरीरे S प ा ां च चुनारव: I
अघोव तु ाद उ ि तुभुज:
काला - दहन- ो नीलजीमूत- िन: न: I
अ रयद् दशनादे व िवन बलिव म:
सटाि गृह ाय प िवि - भूभृते I
अ पादाय ाय नमः शरभमूतये II

म : ॐ ख खां खं फट् ाण हािस ाण हािस ं फट् सवश ु संहारणाय शरभशालुवाय पि राजाय ं फट् ाहा I

इस म को छ: महीने तक ितिदन दस मालाओं का जाप करके एक माला के ारा अथात 108 आ ितयों से िन ित हवन कर, इससे इस म का एक
पुर रण हो जाता है और इस कार के 18 पुर रण करने पर म िस होने लगता है I

इस शरभ त के अनेक म ह, अनेक योग ह I संसार म रोग िनवारण से लेकर श ु को न करने तक, समृ वान बनने तक सभी काय इसके ारा
संभव ह I वा व म यह यं म महातं है I

जैसे श ु नाश के िलए श ु के पैरों की िम ी से पुतला बनाकर, ाण ित ा करके आँ क या धतूरे की जड़ म दबा करके उसके सामने बैठकर यिद इस म
का 125000 जाप िकया जाए तो उस पुतले के साथ जो िकया जाए श ु को वैसे ही पीड़ा ा होती है I यिद उस पुतले को शमशान के अंगारे से तपा िदया
जाएं तो श ु को कभी न ठीक होने वाला बुखार हो जाता है और यिद िपघले ए लाख से उसको लपेटकर यिद उसे आँ क की लकिड़यों म जला िदया जाए
तो तीन िदन म श ु न हो जाता है I

आकषण के िलए ीं बीज से संपुिटत करके इस म का जाप करना चािहए I


श ुओं के म झगडे कराने के िलए म के दोनों तरफ बीज " ौं" या "हौं" लगा करके जाप करना चािहए I
श ुओं के उ ाटन के िलए म के दोनों तरफ वायु बीज "यं" या "हं " लगा करके जाप करना चािहए I
मो ा के िलए "ऐं" बीज व "िचंतामिण बीजम " से पुिटत करके जाप कर I

भैरव त

उ कोिट की त साधनों एवं िस म भैरव िस का मह पूण थान है I सम असंभव काय को संभव करने
के िलए, भा की रे ख को मेख म बदलने के िलए भैरवों की साधना की जाती है I किलयुग म भी इनकी साधना करना
संभव है , इसी युग मे भी अनेको िस महा ा, अघोरी आिद ए ह I िज ोंने भैरव िस के ारा अपने अनुयािययों
को कृित से परे जाकर चम ार िदखाए ह I
वैसे तो त शा म काल भैरव, भैरव, महाभैरव, संहार भैरव, भैरव आिद बावन भैरव ह और उनम से
आठ महा भैरव कहे गए ह I ेक भैरव अपार श से स स होने पर भ ों के काय को यं से स
करने वाला लय की अि समान तेज से यु है I यहाँ पर उ भैरव की साधना एवं िस की संि िविध दी जा
रही है I

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िविनयोग : ॐ अ उ भैरव मं अघोर ऋिष:, िवराट छं द: भैरवो दे वता भं बीजं, फट श :, सवाथ िस े य जपे िविनयोग: I

II ानम् II
काला ुज ामल मानता म्
कराल भ ाहतम मेयम् I
लोला लकम लोक िवनाश हे तुम
लु ठि पुं नौिम धृतअ हासम् I

साधना िविध : उ भैरव जी की य सिहत पूजा करके साधक लाल आसन पर राि समय िकसी तीथ म या शमशान म बैठकर 14 िदनों म 125000
मं ों का जाप कर I इससे उ भैरव ारं भ म तो साधक को भय िदखलाकर साधना से िवचिलत करने की कोिशश करते ह िक ु ढ़ता बनी रहने पर स
होकर अपनी िस दान कर दे ते ह और एक बार म िस होने पर साधक अनेकों काय कर सकता है I और इस कार से िस म को िजतने म
म अ र ह उतने सवा लाख जाप करने पर यं भैरव िस हो जाते ह और वह साधक भी यं भैरव प हो जाता है I
व ुत: यह एक वीर एवं अघोर साधना है और इसकी िस से पूव अनेक मं ों एवं ु दे वों की साधना करनी पड़ती है ोंिक इस साधना म चूक हो जाने
पर भैरव साधक को या तो मार दे ते ह या पागल कर दे ते ह I
इस कार की साधना से पूव सं था के त गु से संपक कर ल I

ंिगरा त

श ु की बल से बलतम तां ि क ि याओं को वािपस लौटने वाली एवं र ा करने वाली ये िद श है I पर योग
को नाश करने के िलए, श ुओं के िकये-करायों को नाश करने के िलए इस त का योग िकया जाता है I एक त
िस एवं चलन ि याओं को जानने वाला तां ि क ही इस िव ा का योग कर सकता है ोंिक इस िव ा को योग
करने से पूव श ुओं के त श , उसकी कृित एवं उसकी मारक मता का ान होना अित आव क है ोंिक
साधारण यु म भी श ु की गित और श को न पहचानने वाला, उसको कम आं कने वाला हमेशा मारा जाता है I
िफर यह तो तरं गों से होने वाला अ यु है I
वा वम ंिगरा यं म श न होकर नारायण, , कृ , भ काली आिद महा श यों की संवाहक है I जैसे
तार यं म िवद् ु यत् न होकर करं ट की स ािहकाएँ ह I
आईये ंिगरा के कुछ मं ों को जान एवं अपनी िच अनुसार इनको साध :

II ानम् II
नानार ािचरा ा ं वृ ा : व??युतम् I
ा ािदपशुिभ ा ं सानुयु ं िगरी रे त् II
म कूमािदबीजा ं नवर समा तम् I
घन ायां सक ोलम कूपारं िविच येत् II
ालावलीसमा ा ं जग ी तयमद् ु भतम् I
पीतवण महावि ं सं रे ुशा ये II
रा समु रावौघमिलनं भूिवदम् I
पवनं सं रे ि जीवनं ाण पत: II
नदी पवत वृ ािदकािलता ास संकुला I
आधारभूता जगतो ेया पृ ीह मंि णा II
सूयािद ह न कालच सम ताम् I
िनमलं गगनं ायेत् ािणनामा यं पदम् II

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II ंिगरा माला य II
ॐ ी ं नमः कृ वाससेशते िव सह िहं िसिन सह वदने महाबलेSपरािजतो ंिगरे परसै परकम िव ंिसिन परमं ो ािदिन सवभूतदमिन
सवदे वान् वंध बंध सविव ां िछ ोभय ोमय परयं ािण ोटय ोटय सव ृंखलान् ोटय ोटय ालािज े करालवदने ंिगरे ी ं नमः I

िविनयोग अ मं ा ऋिष अनु प् छं द: दे वी ंिगरा दे वता ॐ बीजं, ी ं श ं, कृ ानाशने जपे िविनयोग: I

II ानम् II
िसंहा ढाितकृ ांगी ालाव ा भयंकरराम् I
शूलखड् गकरां व े दधती ं नूतने भजे II

1.अ मं - ॐ ी ं कृ वाससे नारिसंहवदे महाभैरिव ल- ल िवद् ु य वल ालािज े करालवदने ंिगरे ीं ैम् नमो नारायणाय
ि णु: सूयािद ों सह ार ं फट् I

2 . ॐ ी ं यां क य नोSरय: ू रां कृ ां वधूिमव I


तां णाSपािननु क् क ारिम तु ी ं ॐ II

II ानम् II
खड् गचमधरां कृ ाम मु केशी ं िववाससम् I
दं ाकरालवदनां भीषाभां सवभूषणाम् I
स ी ं वै रणं ायेत् ेरीतां िशवतेजसा I

II ंिगरा म भेदा: II
(क) ा ी ंिगरा - ॐ आं ीं ों ॐ नमः कृ वसने िसंहवदने महाभैरिव ल ालािज े करालवदने ंिगरे ों I ॐ नमो नारायणाय घृिणसय
आिद ोम् I सह ार ं फट् I अव ि षो जिह I
(ख) नारायणी ंिगरा - ॐ ीं ख भ ालािज े करालवदने कालराि ंिगरे ों ों ीं नम ु ं हन हन मां र र मम श ून् भ य भ य ं
फट् ाहा I
(ग) रौ ी ंिगरा - ीं ीं ॐ नमः कृ वाससेशते िव सह िहं िसिन सह वदने महाबलेSपरािजतो ंिगरे परसै परकम िव ंिसिन परमं ो ािदिन
सवभूतदमिन सवदे वान् वंध बंध सविव ां िछ ोभय ोमय परयं ािण ोटय ोटय सव ृंखलान् ोटय ोटय ालािज े करालवदने ंिगरे ीं नमः
I
(घ) उ कृ ा ंिगरा - ीं यां क य नोSरय ू रां कृ ां वधूिमव I तां णाप िनणु क् कतारिम तु II
(ड.) अथवण भ काली ंिगरा - ऐं ीं ीं ल ालािज े करालदं े ंिगरे ीं ीं ं फट् I

आज के इस ाथ और होड़ भरी दु िनया म लोग अपने ाथ के िलए, कभी स ि ा के िलए, कभी अपने कॉ िटटर को िमटाने के िलए,
कभी पद ा के िलए, कभी मा ई ा से े रत होकर घातक त योगों का अ िधक सहारा लेने लगे ह I आम आदमी तो समझ ही नही ं
पाता की आज के इस अ ाधुिनक एवं तकनीकी युग म भी ा कोई इस तरह की चीजों का सहारा लेता होगा ? लेिकन नही ं, ये सरासर आपकी
भूल है I यिद आप भी िकसी कार की त ि या के िशकार ह और बार ार अपनी र ा के िलए उपाय करते- करते थक चुके ह तो एक बार
इस ि या को अव स करवाएं और अपने को सुरि त कर I इस किठन त ि या को आपके िहत के िलए करवाने का शु
मा Rs. 31000 /-

ि ी ि
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िवपरीत ंिगरा त

श ु ारा बार ार त ि याओं के िकये जाने पर श ु यिद कने की बजाए और गहरे त आघात दे ने लग, ाण
हरण पर ही उतर आएँ अथात मानव संवेदनाओं की सीमा को लाँ घ कर िघनौनी हरकतों पर उतर आएँ तो उसकी
ि या को उस पर वािपस इस तरह से लौटना की श ु को आपके दद का एहसास हो इसे िवपरीत ंिगरा कहा
जाता है I ंिगरा और िवपरीत ंिगरा म ये भेद है की ंिगरा श तो िसफ वािपस लौटती है िक ु िवपरीत
ंिगरा श ु को ही वािपस चोट प ं चाती है और खुद की िनि त प से र ा करती है I इस योग के बाद श ु आप
पर दोबारा यह योग कभी नहीं कर सकता I उसकी वह श ख हो जाती है I

म : ॐ ऐं ीं ीं ंिगरे मां र र मम श ून् भंजय भंजय फ ं फट् ाहा I

िविनयोग : अ ी िवपरीत ंिगरा मं भैरव ऋिष:, अनु टुप् छ :, ी िवपरीत ंिगरा दे वता ममाभी िस यथ जपे िविनयोग: I
II माला म II
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ कंु कंु कंु मां सां खां पां लां ां ॐ ी ं ी ं ॐ ॐ ी ं बां धां मां सां र ां कु I ॐ ी ं ी ं ॐ स: ं ॐ ौ ं वां लां धां मां सा र ां
कु Iॐॐ ं ुं र ा कु I ॐ नमो िवपरीत ंिगरायै िव ारा ी ैलो वंशक र तुि पुि क र सवपीड़ापहा रिण सवाप ािशिन
सवमंगलमांग े िशवे सवाथसािधिन मोिदिन सवश ाणां भेिदिन ोिभिण तथा I परमं तं यं िवषचूण सव योगादीन् अ ेषां िनवतिय ा
य ृ तं त ेS ु कपािलिन सविहं सा मा कारयित अनुमोदयित मनसा वाचा कमणा ये दे वासुर रा सा य ोिन सविहं सका िव पकं कुव
मम मं तं य िवषचूण सव योगादीना hasten

मातंगी त

जीवन म सां सा रक साधनों जैसे भूिम, महल, वाहन, े तम व , महं गे आभूषण, र एवं जवाहरात, धन, पु एवं ी
आिद की प रपूण ा के िलए अथात एक वैभवशाली जीवन की ा के िलए मातंगी त म विणत दे िवयों की
उपासना सबसे अ ी एवं शी फलदायी मानी जाती है I
मु प से इस त की चार अिध ा ी दे िवयाँ या श यां ह I

1. सु मुखी मातं गी

2. ामा मातंगी
3. राज मातं गी

4. शा रका मातं गी

इनम से िकसी एक की भी उपासना या इनकी िस या िफर िकसी तं िवद से इसकी उपासना करवाना अपने आप म हर मनचाही उपल यों को दे ने
वाली है I
पहाड़ को तोड़ने सा कठोर म करके भी यिद आप नही ं कर पा रहे ह अपने सपनों को साकार तो अव करवाएं इस िद साधना को एक
बार मा Rs. 151000/-

वाराही त

ता कों को अदभुत एवं चम ा रक िस याँ जैसे दू र घिटत होने वाली घटनाओं को दे खने की दू रदशन श , दू र होने वाली बातों को सुन लेने की
दू र वण नाम की श , दू सरे के मन को पढ़ लेने की परिच िभ ता नाम की िस , िकसी के अतीत, वतमान एवं भिव को जानने की कला दान करने

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वाली ये िद वाराही श यां ह I


साधना भेद से इनके कुछ कार नीचे िदए गए ह :

1. वाराही म योग (आिथक उ ित हे तु)


2. वाताली योग (दू सरे की गु बातों को जानने हे तु)
3. श ु घाितनी िन हवाराही योग (श ुओ ं की गु चालों को जानने एवं उ ने नाबूद करने हे तु)
4. धू वाराही योग ( यं को गु रखने हे तु)
5. अ वाराही योग (श ुओ ं के हर म -त से र ा हे तु)
6. वाराही योग ( म भिव म होने वाली घटनाओं को जानने हे तु)

वीर साधना योग

कुछ तां ि क िस यों एवं महा श यों को पाने के िलए हठ पूवक साधना करते ह जैसे बारह वष तक लगातार खड़े
रहकर त म का जाप करना, पंचाि तप करना, ढ़ता पूवक कृित के िवपरीत जाकर िकसी कठोर िनयम को
धारण कर लेना एवं िविश साधना करना आिद I इन साधकों को अघोरी कहा जाता है एवं इन साधनाओं को अघोर
या वीर साधना कहा जाता है I करने म अ ू र कृित की, कठोर एवं महा भावशाली ये साधनाएं कोई- कोई
साधक िजनका अपने मन, वाणी एवं इ यों पर पूण िनयं ण होता है वही यह कठोर या वीर साधना को स कर
सकते ह I
वीर साधना िविध के कुछ भेद :-

1. े ेष वीर साधना
2. अघोर िशव साधना

3. ोध भैरव साधना
4. जयच ी वीर साधना
5. वीरादन साधना

6. मु ासन साधना
7. िचता साधना

8. शव साधना

एक साधारण साधक इन साधनाओं की तरफ वृ न हो I मा त एवं कलाओं के ान हे तु एवं इस िवषयक िज ासाओं को शां त करने के िलए ये ान
िदया गया है I
इसी भाँ ित जो उ म कोिट के साधक इन सां सा रक पंचों से दू र रहकर अपने आ उ ान हे तु िव ा को जानने के इ ु क ह या मो ा करना
चाहते ह उनके िलए त शा म गाय ी, सािव ी आिद महािव ाएँ विणत ह िजनके कुछ भेद नीचे िदए गए ह :

1. ा म योग ( ाजी के सृि रह ों को जानने हे तु)


2. दं डा म योग (काल के रह ों को जानने हे तु)
3. िशरा म योग ( े तम िव ा को जानने हे तु)
4. गाय ी पाशु पता म योग (भगवान शंकर जी की श यों एवं रह ों को जानने हे तु)

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Mantra

म मा अ रों का समूह नहीं है I इसको बनाने वाले उस तप ी ने अपने अनेकों वष की तप ा से, साधना से,
दै वी कृपा से िकसी वै ािनक खोज की तरह ये पाया की कुछ श , अ र िवशेषों को एक िनधा रत समूह म, म म,
एक िवशेष लय म, एक र िवशेष म, एक िनि त सं ा म, एक आसन िवशेष म और एक प र थित िवशेष म
उ ारण िकये जाने पर वातावरण म ा ईथर नाम के त म फैलकर कृित की एक श िवशेष को आकिषत
करता है ठीक वैसे ही जैसे िबना कान वाला सां प बीन से उ होने वाली तरं गों से भािवत होकर सपेरे के सामने
नाचने लगता है और उसकी टोकरी म बंद हो जाता है I जैसे रले सटर से छोड़ी गई िनि त ी सी की तरं ग
अ र म थािपत िकये गए सैटेलाईट से भािवत होकर आपकी िकसी चैनल िवशेष म उ ीं ितिब ों को उ ीं
ि या कलापों को, उ ीं रं गों तथा ों को दिशत करता है जैसा की भेजने वाला िदखाना चाहता है ठीक इसी
कार से जापक या साधक के मं ों से उ ई तरं ग उसके मनचाहे काय को िस करने म स म होती ह ोंिक मन और म से बढ़कर इस
संसार म दू सरा कोई जिटल य नहीं है I अब तक हो चुके लाखों आिव ार इसी मानव मन और म ने खोजे ह तो िफर इसी मन की स ा से कट
होने वाला म अपार श से स ों नहीं होगा ? आव कता है तो बस मं ों को सं ा रत करके, िनयम पूवक जाप करके, अपने इ दे व के ित
एका ता को बढ़ा करके थोडा सा तप करने की I और यिद एक बार आप अपने म को जागृत, ाण िति त, चैत , सं ा रत करने म सफल हो जाते ह
तो वह म िस होकर आपके िलए अपने भीतर छु पी ई श यों को कट करने लगता है और िकसी वायुयान की भाँ ित आपको इस ा की अनंत
गहराईयों म ले जाता है िक ु इन सु मं ों को सूखे बीज की अव था से लहराते ए, फलों से भरे ए वृ की भाँ ित जागृत करने की िविध अ
दु र, अनुभवाकं ी कण एवं जिटलता से प रपूण होती है िजसे एक यो गु , मा क एवं मागदशक ही बता सकता है I अगर है आपम भी ललक अपने
पूवजों की इस थाती (िवरासत) को पाने की, उन िद ि यों से स ऋिषयों के ारा िनिमत मं ों को साधने की, अपने दु भा को सौभा म बदलने की
तो सं था के ारा आप अपने अभी त (मनचाहे ) म की 100% शु एवं पूण िविध से उ ारण सिहत जागृित करवा सकते ह
इसके िलए यो ता :- आपके जीवन की िनि त मा ा म पिव ता, आपकी दे वताओं के ित अख ा, िस को पाने की ललक, आपकी
पर म मता, इस िव ा के ित अख िव ास एवं सं था की कायशीलता को बनाए रखने के िलए एवं िव ानों के िलए अनुदान रािश Rs.
41000/- ेक म के िलए I
(यो , पिव , िनधन एवं िन ल मन वाले अिववािहत युवाओं के िलए म मु म सं ा रत िकया जा सकता है और उनकी म िस म
पूण सहायता की जा सकती है )
इन मं ों को जब कोई साधक त यता से जाप करता है तो उसे साधारण काय िस के अलावा अलौिकक िस याँ भी ा होने लगती ह I आईये
आपको म एवं साधनों से ा होने वाली िस यों के बारे म बताएं I

महािस याँ
ये मु िस याँ आठ कार की होती ह I इनम से एक भी महा िस के ा हो जाने के बाद के िलए संसार म कुछ भी असंभव नहीं रह जाता I
ये आठों िस याँ यिद िकसी को ा हो जाएं तो समिझये की वो सा ात् ई र है I इनके कार :-

अिणमा : इस िस को ा करने वाला सम अणु एवं परमाणुओं की श से स हो जाता है I एक भौितक वै ािनक अ े से


जानता है की एक- एक परमाणु अपने म िकतनी ऊजा को समािहत िकये ए है I एक ाम यूरेिनयम के संवधन से इतनी ऊजा िनकलती है की
पलक झपकने की दे री म 13 बार पृ ी को न िकया जा सकता है तो इस अिणमा की िस से स योगी को िकतनी श ा होती होगी I
मिहमा : इस िस से स आ महायोगी ई र की तरह कृित को बढ़ाने म स म होता है I ोंिक सा ात् ी ह र अपनी इसी िस से ा
का िव ार करते ह I ऋिष िव ािम को ये िस ा ई थी I
लिघमा : इस िद महािस के भाव से योगी सुदूर अन तक फैले ए ा के िकसी भी पदाथ को अपने पास बुलाकर उसको लघु करके
अपने िहसाब से उसम प रवतन कर सकता है I भगवान िव ु जी अपनी इसी कला से इस अन ां डों के समूह के कण- कण के ऊपर िनयं ण
रखते है I
ा : इस िस के बल पर जो कुछ भी पाना चाह उसको पाया जा सकता है I
ाका : इस िस के िस हो जाने पर आपके मन के िवचार घनीभूत होकर ठोस पदाथ म त ील होने लगते ह अथात आपकी सोच जीव
संसार बनने लगती है I उन परमे र ने अपनी इसी कला से इस ा का िनमाण िकया I उ ोंनउड़ने की इ ा की तो पि यों की सृि ई,
उ ोन चमकना चाह तो हीरे बन गए, उ ोन दे खना चाहा तो सूय और िटमिटमाना चाहा तो तारे बन गए I

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ईिशता : इस संसार को नचाने वाली ा जैसे सृि कता को मोिहत करने वाली माया इस िस से सुस महायोिगयों के िनयं ण म हो जाती है
अथात वो ईश जैसा ही बन जाता है I
विशता : िजस िस को साधने पर संसार के जड़, चेतन, जीव-ज ु, पदाथ- कृित, दे व- दानव सब वश म हो जाते ह उसे विशता कहते ह I
ाित : िजस िस को ा करने पर योगी अ ल ी का ामी बन जाता है , सम भौितक और परमािथक सुख संपदाएं ा बन जाती ह I
भगवान नारायण को इसी कला के भाव से समु की पु ी महा ल ी ने वारन िकया I

इसके अलावा दस िस यां और भी ह िजनके बल पर कोई िस कहलाता है इसं ेप म इनके बारे म सुिनए :

1. अनू िम िस (भूख, ास, शोक, मोह, जरा, मृ ु पर िनयं ण)


2. दू र वण िस (दू र थ बातों का ान)
3. दू रदशन िस (संसार के िकसी भी पदाथ को दे ख पाने की श )
4. मनोजव िस (मन के वेग से कहीं भी थानां त रत होने की श )
5. काम प िस (अपने शरीर को िकसी भी प म बदलने की श )
6. परकाया वेश िस (अपनी आ ा को िकसी भी जीव- ज ु म वेश करा दे ने की श )
7. छं दमरण िस (अपनी इ ा से मृ ु की श )
8. दे व ीडानुदशन िस ( ग तक म हो रही गितिविधयों को दे खने की श )
9. यथासं क िस (संक ों, िवचारों को पूण करने की श )
10. अ ितहतगित िस (अबािधत गित की श )

इसके अलावा काफी सारी ु िस यां होती ह जो ज ी ही ा हो जाती ह इनसे साधक चम ा रक बन जाता है िक ु इनम न ककर बड़ी िस यों
की तरफ जुटना चािहए I

II माला चयन II

त िस के िलए शमशान म लागे ए धतूरे की माला सव े होती है I


सभी िस यों के िलए, सभी मं ों के िलए ा की माला योग कर सकते ह I
महाल ी की ा के िलए कमलग े की माला योग करनी चािहए I
पाप नाश के िलए कुशमूल की माला से जाप करना चािहए I
भ की ा के िलए या मो ा के िलए तुलसी की माला योग करनी चािहए I
वशीकरण से संबंिधत काय म मूंगे की माला से जाप करना चािहए I
पु ा के िलए पु जीवा की माला से जाप कर I
नौकरी की ा के िलए लाल हकीक की माला से जाप कर I
िव ा ा के िलए िटक माला से म जप I

माला जाप करते व सावधािनयां

माला के मनके एक जैसे होँ, छोटे - बड़े नहीं I


माला म साधारणतया 108 मनके एक सुमे िमलाकर कुल 109 दान होने चािहय I
माला का धागा शु से अंत तक एक ही होना चािहए बीच म गां ठ नहीं आनी चािहए I
सुमे को बाँ धन के िलए ढाई फेरों वाली ंिथ का योग करना चािहए न की साधारण गां ठ का I
ा की माला को बनाते समय मुख से मुख और पु से पु िमलाने चािहय तभी िस होती है I
वशीकरण के काय म लाल, शां ित काय म सफ़ेद, धन ा के िलए पीले रे शमी सूत का योग करना चािहए I
अ ी िस के िलए कुंवारी ा ण क ा के हाथ से कता आ सूत योग करना चािहए I
भली कार से बनी ई माला को सं ा रत करना चािहए तभी म चैत होकर मनोकामना को पूण करते ह I
जाप करते ए न तो माला को िहलाएं न यं िहल I
म जाप करते ए आवाज न आएँ I
माला फेरते समय इसे गौमुखी या व के अ र रख तािक माला िकसी को िदखे नहीं I
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माला को हमेशा शु जगह रख और माला एवं आसन िकसी से शेयर न कर I


जाप करते व इसे तजनी उं गली का (अंगूठे के साथ वाली) श न होने दे न I

इस कार से े तम पदाथ , पूण िविध से बने ए एवं मं ों ारा सं ा रत उ म मालाएं सं था के ारा उपल कराई जाती ह I आप चाह तो अपनी माला
को सं था के िव ानों ारा पूण िविध- िवधान से Online or Offline सं ा रत करवा सकते ह I शु माला ा कर ORDER NOW

आसन संबंिधत िनयम


म एवं साधनाओं म आसन का भी अपना िविश मह है और इसे नज़र अंदाज करके आप िस की ा नहीं कर सकते I आईये जािनए कौन सा
आसन दे सकता है आपको िस :-

कामना िस के िलए ऊनी व का आसन


धन ा के िलए रे शम का आसन
ान ा के िलए कुशासन
श ु नाश के िलए ा आसन
सफलता के िलए मृगचम आसन
स ान के िलए कुशासन
गृह थ सुख के िलए ऊन का आसन
शी िववाह के िलए लाल रे शम का आसन
भा ोदय के िलए लाल क ल का आसन
सभी साधनाओं के िलए काले क ल का आसन

गणपित म

सम दे वताओं म अ ग , िव िवनाशक भगवान गणेश जी सभी शुभ फलों को दे ने वाले ह I इनकी साधना के िबना
िस यां संभव नहीं I अकेले गणेश जी ही सब कुछ दे ने म स म ह I
िस ल ी गणपित योग ल ी गणेश जी के संयु प का ान करते ए इस म का जाप कर I
िविनयोग: ॐ अ ी गणपित महा मं गणक ऋिष, िनचृद गाय ी छ :, महागणपित: दे वता, िस
ल ी गणपित म जपे िविनयोग: I
म : ॐ ीं ीं ीं ौ ं गं गणपतये वर वरदे नमः II
इस म का िनि त समय म, िनयमों म, ह ी माला से पीले आसन म बैठकर, पीला भोजन करते ए सवा लाख जाप
कर I जाप के अंत म दशां श हवन कर I इससे म िस होकर गणेश एवं ल ी जी की कृपा को दान करके
सां सा रक उ ित दे ता है I
इससे संबंिधत पूण साधना िविध, शु साम ी एवं िदशा िनदश, शु उ ारण ा कर मा Rs. 1100/-
II मंगल गणपित ो II
प पुराण के अनुसार जो इस ो का िदन म एक बार पाठ करता है उसके रोजमरा के जीवन से अडचन दू र होकर सफलताएँ िमलने लगती ह I
आप इसे आजमाएं I

II ो II

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गणपित: िव राजो ल तु ड़ो गजानन: I


ै मातुर हे र एकदं तो गणािधप: II
िवनायक: चा कण: पशुपालो भवा ज: I
ादश एतािन नामािन ात: उ ाय य: पठे त् II
िव म त भवेद् व म् न च िव म् भवेत् िचत् I

ल ी ा हे तु म

भगवती महा ल ी सम संपदाओं को दे ने वाली, जीवन को प रपूणता दान करने वाली एवं अभावों को िमटाने
वाली ह I आईये इन े मं ों एवं िवधानों से उ स कर I
म : ी ं ि यै नमः I
जाप िविध : कमल ग े की माला से, पीले व धारण करके, पीले ऊनी आसन पर बैठकर 25 िदनों मे 5 लाख जाप
कर I इससे महा ल ी जी स होकर द र ता दू र कर दे ती ह I ऐ यमयी जीवन दान करती ह I साधारण धन
ा के िलए रोजाना 5 माला जाप कर सकते ह I
इस साधना की िविध, य , िच , माला, आसन ा कर मा Rs. 500/- म Order Now

षोडशा री महाल ीम

म : ी ं ी ं ी ं कमले कमलालये सीद सीद ी ं ी ं ी ं ॐ महाल ै नमः I


िविध : िटक ी य को महाल ी के धनविषणी िच के स ुख रखकर इस म का कमल ग े की माला से
सवा लाख जाप कर I इससे सफलताएं , संपदाएं एवं वसाियक उ ित की ा होती है I
इस साधना की िविध, य , िच , माला, आसन ा कर मा Rs. 500/- म Order Now

बाधा मु म

ितपल अनाव क बाधाओं से यिद आप परे शान होँ, िकसी काय को करने म या आपका काम बनने म दू सरों से ादा बाधाएं आती होँ तो इस म को
योग म लाय I
म : ी ं सवाबाधा िविनमु ो धनधा सुता त: I
मनु ो मत् सादे न भिव ित न संशय: II
िविध: माँ दु गा जी के िच एवं दु गा य को सामने रखकर लाल हकीक की माला से लाल ऊनी आसन पर बैठकर इस म का जाप कर I
इस साधना की िविध, य , िच , माला, आसन ा कर मा Rs. 500/- म Order Now

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मातंगी साधना

जीवन म पूण गृह थ सुख और िववाह बाधा को दू र करने के िलए, सु रता बढ़ाने के िलए इस
साधना को स करना चािहए I
म : ॐ ीं ी ं ं मातं ै फट् ाहा I
िविध : ाण- िति त मातंगी य एवं िच के सामने मूंगा माला से इस म का िन ित 3 माला
जाप कर तो शी काय िस होती है I
इस साधना की िविध, य , िच , माला, आसन ा कर मा Rs. 500/- म Order Now

िछ म ाम

अमीर बनने के िलए, श ु नाश, मुक मों म िवजय अथवा िव ा ा एवं िव ा के फल प ऊंची नौकरी की ा
के िलए इस म का योग अ फलदायी है I
म : ीं ीं ी ं ऐं व वैरोचनीयै ं ं फट् ाहा I
िविध : आधी रात के समय िन ित िनि त सं ा म िछ म ाय एवं िच के सामने जाप करते ए सवा लाख
जाप करने से वाक् एवं न िस ा होती है िजसके बल पर साधक े थित को ा कर सकता है I
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बगलामुखी म

िव िव ात यह साधना भाव म अचूक, काय को गोली की गित से िस करने वाली, हर मनोकामना को पूण करने वाली, श ु नाश, क़ानूनी जीत,
राजनैितक उ ित, े ित ा, एकछ ापार, IAS सरीखे उ ितयोिगताओं म सफलता आिद उ फल दान करती है I इस साधना को अ
सावधानी से करना चािहए ोंिक थोड़ी सी गलती से ब त अिन हो जाता है I
म : ॐ ी ं बगलामुखी सव दु ानाम् वाचं मुखं पदम् य िज ाम् कीलय बु म् नाशय ी ं ॐ ाहा I
िविध : पीले व ों म, पीले आसन म, पीला भोजन करते ए बगलामुखी य एवं िच के सामने ह ी गां ठ की माला से चौदह राि यों म इस म का
सवा लाख जाप कर I
इस साधना की िविध, य , िच , माला, आसन ा कर मा Rs. 500/- म Order Now

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धूमावती म

पु लाभ, धन र ा, े तम ापार, श ुओं पर िवजय ा करने के िलए इस म का उपयोग िकया जाता है I


यह म तुरंत फलदायी और अचूक है I
म : धूं धूं धूमावती ठ: ठ: I
िविध : धूमावती य एवं माता के िच के स ुख िचतकबरे आसन पर बैठकर राि काल म आठ िदनों म इस
म के सवा लाख जाप कर I
इस साधना की िविध, य , िच , माला, आसन ा कर मा Rs. 500/- म Order Now

Yantra

य यं म इस ा की मूल कृित श यों को समािहत िकये ए है I एक- एक य सुपर क ूटर के सिकट


की तरह उससे संबंिधत दे वताओं की, श यों की ो ािमंग को छु पाये ए है I आव कता होती है उस य को
अपने म , अपने इ दे व, अपनी आ कश से जोड़ने की, उसकी श यों को खोलने की और एक बारे अपने
इस य को िस िकया नहीं की उसका ामी दे वता आपके और उस य के वशीभूत होकर आपकी आ ाओं का
पालन करता है I ी य से संपदाओं की ा के साथ माँ ि पुर सु री की साधना करके आप कु िलनी श
को जागृत कर सकते ह I महा मृ ुंजय य से रोगी को ठीक कर सकते ह, माँ कनकधारा के य से अपनी द र ता
को दू र कर सकते ह, स ोहन य से अपने ापार वसाय एवं अपनी िस को बढ़ा सकते ह, कुबेर य को
िस करके अकूत संपदाओं को ा कर सकते ह I आईये ा कर म िस एवं ाण िति त य को.......

ी यं े र

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ि पुरारी के िव ह िशविलंग म यूं तो श समािहत होती है पर ु यिद धन- वैभव- ऐ य एवं श की अिध ा ी मां
ि पुर सुंदरी यं अपने यं राज ि पुर सुंदरी यं अपने यं राज ि पुर सु री यं अथात ीयं के साथ िवराजमान हो
जाए तो इस अदभुत युित को ीयं े र कहा जाता है I यिद ीयं े र का िनमाण शु िटक मानी पर िकया जाए
तो वह अित क ाणकारी एवं शुभ प रणामों का करक बन जाता है यिद हमारे पूव के िक ीं अशुभ कम की वजह
से ा र ता व दु भा तमाम साधनाओं और उपायों के बावजूद हमारा पीछा नहीं छोड़ रहे ह तो इसके िलए
िशव- श युित ीयं े र उपासना अव करनी चािहए I

स ूण वा ु यं

वा ुदोष के िनवारण के िलए हमारे ऋिष- मुिनयों ने कई कार के यं बताये ह I मानव अपने जीवन को सुखी रखे,
यही कामना इन यं ों िक८ रचना के पीछे थी I वा ु के अनुसार गृह िनमाण करने के प ात् उसम आवास करने से
पहले वा ु शां ित करनी चािहए I दू सरी बात गृह का िनमाण भी वा ु अनु प ही करना चािहए अ था वा ुदोष
िविभ कार की ािधयां उ करता है जो िक ब त ही क कारक होती है I स ूण वा ु यं को आप अपने घर
के दरवाजे पर टां ग द, इसके भाव से आपके घर के, आिफस के, कायालय के, फै ी आिद के सम कार के
वा ुदोषों का शमन होगा I

सवक िनवारण यं

सव क िनवारण यं म ऐसे सभी यं ों को स िलत िकया गया है जो िक ेक कार के क ों का िनवारण करने म


स म ह I इसम ीयं , ी नव ह यं , ापार वृ यं , ी बगलामुखी महायं , कालसपयोग यं , ी सर ती यं ,
कायिस यं , ी महामृ ुंजय महायं , वा ुदोष िनवारण ी सुदशन यं , वाहन दु घटना नाशक यं , सुख- समृ
यं , ी वशीकरण यं तथा साथ ही स ूण महाल ी यं ह I यह यं आपकी गृह ेश सिहत सभी कार िक
सम ाओं को दू र करने म सहायक है I यह यं ाण- िति त एवं पूण प से िस िकया आ है , इसे केवल
आपको अपने पूजा घर म थािपत करना है I

पारद कुबेर यं

िजस कार जल के दे वता व ण दे व और रस के दे वता सूयदे व है , वषा के अिधपित इ ह, ताप के दे वता अि दे व ह, ाण के दे वता वायुदेव ह, उसी कार
धन- स ि के अिधपित ी कुबेरदे व ह I ये य पित ह और सम ५ संसार िक भौितक संपदा का ािम इ ा है I भौितक स ता से अभाव ,
द र ता पीिड़त जो धन- संपदा िक, वैभव- िवलास िक कामना रखते ह, उनके िलए कुबेर दे वता का यह यं उनकी ितमा के तु भावशाली
माना गया है I इसकी िनयिमत प से पूजा करने वाला द र ता के अिभशाप से मु होकर सुखी व स जीवन तीत करता है I अतः आज ही

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इस यं को अपने घर म थािपत कीिजये I

ी सुमे पृ ीयं

ीयं अपने आप म े है और आिथक उ ित तथा भौितक सुख- संपदा के िलए तो इससे बढ़कर कोई यं संसार म
नहीं है I जैन शा ों म भी इस य के भाव की शंसा िक गयी है I इसम कोई दो राय नहीं है िक ' ीयं ' म त: ही
कई िस यों का वास है I योिगयों, स ािसयों, ता कों, ापा रयों, गृह थ यों एवं िवदे िशयों ने एक रम
इसकी मह ा को ीकार िकया है I आिथक उ ित एवं ापा रक सफलता के िलए यह यं बेजोड़ है I उिचत भाव
के िलए म िस , ाण- ित ायु ीयं का थािपत होना ही पया है I जीवन म सुख- समृ के िलए आज ही
अपने घर म आपको इसे थािपत करना चािहए I

आप कोई भी त या म की िस म जुटे ए ह और यिद आपको इसम िस पानी हो तो आपके िलए "त पूजा िविध" का पालन एवं सुधा
कंु भ की थापना एवं अनेक अशुभ श यों से, िव ों से, शापों से बचने के िलए आपको र ो मं ों की अिनवाय प से आव कता होती है
जोिक पु कों से नही ं िस यों से ा होती है I आईये सं था से संपक करके गु म ल का ान, अपने म की एवं यं की भूत
शु एवं अनेक कार के बीज ास जैसे पंच , ेत बीज, काण बीज, स बीज, ाण बीज, घंटा बीज, ामरी बीज, आकुित ास, काल
बीज, िव ा बीज आिद अनेक त ास नाम की िविधयों की आव कता पड़ती है I इनको जानकार एवं इनको स करके ही कोई साधक
िकसी बड़े दे व, दे वी, भैरव, भैरवी, य , यि णी, ग व आिद को साध सकता है I इनको न जानने की वजह से ही अनेक साधको न अपने जीवन
को तबाह िकया है I आईये अपनी ार की ई साधना म आपको पूणता िदलाएं I जािनए सं था से इन गूढ़तम िविधयों को I

जो साधक त िव ा म िन ात होना चाहते ह, तांि क िस यों को करके यं का एवं संसार का क ाण करना चाहते ह उ िन ित
तांि क सं ा करनी चािहए जोिक दु लभ है I अपनी यो ता को िस करके एवं Rs. 5100/- का सहयोग शु अदा करके इस दु लभ त
सं ा को ा कर I

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