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िस भै रवी च साधना का मूल प और साधना िवधान ा है ? https://www.shripeeth.in/bhairavichakra.

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ी ोितमिण पीठ !
मिणकूट - नीलक

मुखपृ ी पीठ सं पक कर जानकारी साधनाय साधना िशिवर दी ाएं िवशेष अनु ान पूजा िविधयां दे वभू िम उ राख िविच बाजार िविवध Donate Us

िस भैरवी च साधना का मूल प और साधना िवधान ा है ?


श पात यि णी साधना िशिवर ! श पात अ रा साधना िशिवर ! श पात ग व साधना िशिवर ! िनःशु साधना िश ण िशिवर ! पूवाभास साधना िशिवर !
अ ा जागरण साधना िशिवर ! आ संजीवनी साधना िशिवर ! या दे वी सवभूतेषु श पेण सं थता, नम ै, नम ै, नम ै नमो नमः । माँ भगवती आप सब के जीवन
को अन खुिशयों से प रपूण कर ।

ीिव ा के बारे म

ीिव ा की अिध ा ी दे वी िस भै रवी च इस सृि की एक अद् ु भत व रह मय सं रचना है , जो िक ेक जीव की दे ह व आ ा से लेकर


सृ ि के सभी गहन रह ों को अपने अ र समेटे ए है । हमारे वेदों व अगम िनगम ं थों म इस भै रवी च को
गु गाय ी
सं हार च व सृि च के प म जाना गया है !
ीिव ा की उ ि व िव ार
उ त भैरवी च म तीन धान ि कोणों से सृ िजत ए कुल नौ ि कोण होते ह इसिलए इस च को नवयौ ा क
ीिव ा के स दाय व कुल च व नव योिन च भी कहते ह, तथा इसके ेक ि कोण की एक एक अिध ा ी श यां होती ह ।

ीिव ा साधना के भेद वेदों व अगम िनगम शा ों म भैरवी च पां च कार के होते ह िजनके सृजन की ि या पृथक पृथक होती है , िक ु
उनम से िस भैरवी च वह होता है िजसम तीन धान ि कोणों से कुल नौ ि कोणों का सृजन हो रहा हो !
ीिव ा पूणािभषेक दी ा
हमारे मू ल वेदों म कही ं पर भी ीच का वणन नहीं है , वेदों म केवल सं हार च व सृि च का ही वणन है ! और
ीिव ा मदी ा ा है ? सं हार च व सृ ि च का ामी अव था (समय/काल) है िजसे हम ज के बाद बा , त ण, ौढ़ व वृ ाव था के
बाद पुनिवलय (मृ ु) के प म जानते ह ! िस भैरवी च को ही आनं दभैरव, कुबेर व ीव ारा अंतदशार,
ीिव ा या महािव ा साधना ?
वा दशार व चतुदशार का सृ ि म म िव ार कर ीच के प म िव ार िकया गया है ।
ीिव ा साधना
िस भैरवी च की साधना :- (अथात जप, तप, आ संधान, य आिद के ारा इसकी श के साथ अपना आ साम ज थािपत करने की ि या) िविभ साधना
शा वी साधना प ितयों म दीि त ए साधकों ारा कौलाचार, दि णाचार, वामाचार, समयाचार आिद िविधयों से वेद व अगम िनगम ंथों म उपल अने क कार से की जाती है !

ीिव ा दय थ साधना िस भैरवी च की उपासना :- (अथात िविभ कार से पूजा, पाठ, अचना, य , ो , भ , आिद के ारा िस कर इसकी श को यं म िवलय करने की ि या)
िविभ साधना प ितयों म दीि त ए साधकों ारा कौलाचार, दि णाचार, वामाचार, समयाचार आिद िविधयों से की जाती है , व इसकी उपासना वा ा र आन से प रपू ण
ी िव ा से मो का परमस होती है ।

ीिव ा के नाम पर मो का म िस भै रवी च की साधना व उपासना के िन िल खत दो मु माग ह :-

दी ा ा होती है ? 1 :- उ रकौलाचार व वामाचार की तामसी प ित :- म पंच "म"कार (मां स, मिदरा, मीन, मै थुन व मु ा) की दै िहक धानता से यु श (भै रवी) प ी योनी व िशव
(भै रव) प पु ष िलंग की षोडशोपचार पू जा व (सव प) भैरवी च पूजा, पाठ, म जप, तप, आ संधान, य व साधक भैरव भै रवी ारा ृि संधान (मैथुन) आिद कर
साधक के ल ण व यो ताएं
पूजन स िकया जाता है ! इस साधना म हमारे शरीर के मूलाधार, मिणपू रक व ािध ान च म थत काम ऊजा का उ करण करना ही मु ल होता है , िजससे वह
मन की श व पू वाभास साधना ऊजा सुषु णा नाड़ी के मा म से ऊ गित करते ए हमारे शरीर म थत सोलह श क ों म वािहत हो दशम ार का भेदन करते ए भै रवी च व अ खल ा की
सव श यों के साथ पू ण ता से हमारा स थािपत कराती है ! यह साधना सदै व सम अथात 2, 4, 6 आिद सं ा म साधक सािधकाओं के समूह म ही स की जा
हमारा उ े सकती है !
िक ु इस प ित म पं च "म"कारों का योग होने के कारण इस प ित से यह साधना करना सव ा नहीं होती है , और इस प ित म आ ा व साधना से कही ं अिधक
चलिच सं ह
पंच "व"कार (िवषय, वासना, ाकुलता, िवकृित व िभचार) के ा होने की स ावनाएं बल होती ह ! और इसी कारण से ी ोितमिण पीठ पर भी इस प ित से साधना
Join Us करने का िनषे ध है !

2 :- पूवकौलाचार, दि णाचार व समयाचार की सा क प ित :- म पंच "म"कार (मां स, मिदरा, मीन, मैथुन व मु ा) के सा क िवक ों ारा श (भैरवी) प
आ योनी, योिनमु ा व च थ ि कोण तथा िशव (भै रव) प आ िलंग व पु ष िलंग की षोडशोपचार पूजा व (सव प) भैरवी च पू जा, पाठ, म जप, तप, य व
साधक ारा ृि संधान का कृ यं को अधनारी र मानकर अपने यं के शरीर म थत ईडा व िपं गला नाड़ी के रमण ारा सुषु णा नाड़ी का भेदन कर आ संधान कर
पूजन स िकया जाता है ! इस साधना म हमारे शरीर के मूलाधार, मिणपू रक व ािध ान च म थत काम ऊजा का उ करण करना ही मु ल होता है , िजससे वह
ऊजा सुषु णा नाड़ी के मा म से ऊ गित करते ए हमारे शरीर म थत सोलह श क ों म वािहत हो दशम ार का भेदन करते ए भै रवी च व अ खल ा की
सव श यों के साथ पू ण ता से हमारा स थािपत कराती है ! यह साधना सदै व िवषम अथात 3, 5, 7 आिद सं ा म साधकों के समूह म ही स की जा सकती
है !
इस प ित म पंच "म"कारों का भौितक प म योग न होकर सा क िवक ों का योग होने के कारण इस प ित से यह साधना करना िनि त ही सव ा होता है , और
इस प ित म साधना करने म िकसी भी कार से िभचार के ा होने की स ावनाएं नहीं होती ह, तथा इस प ित से यह िस भैरवी च साधना करना सव म व
सव ा होता है !

ी िस भैरवी च की साधना को िविधवत् सं प करके िस भैरवी च के रह को जान लेने वाला साधक इस साधना के प रणाम प अपने जीवन व इस सृ ि के
सम रह ों को जान लेता है , तथा अनाहक ही असं श यों एवं िस यों िव ा व ीिव ा जै सी सव िव ाओं को ा कर थर िच व पू ण वे ा बन जाता है !
ऐसा साधक अपने जीवन म सम गु िव ाओं, गु त , अथ, काम, धन, धा , यश, कीित, ऐ य, िव ा सिहत सम भौितक सुख, सौभा , यश, समृ व सव य को
भोगते ए सव म जीवन जीता है !

यह साधना गु ग होकर िविधवत् "कौिलक दी ा" सं ार स कराकर साधना के भे द के अनु सार पृथक पृथक समय म िविधवत् स कर ली जाती है !

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1 of 1 5/21/2018, 1:47 AM

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