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कुछ साये, कुछ परछाइयाां ,

कुछ चाहत के सजदे ,


कुछ बहते बादल ां पे रक्खी
उम्मीदें बरसती रहीां,
बरसती रही ां
चाां द आसमान में जडे
सुराख की तरह झाां कता रहा...
और रात..ककसी अांधे कूएां की तरह
मुांह ख ले हाां फती रही....
रास्ते पाां व तले से कनकलते रहे ....
न रुके, न थमे...

न र का, न पूछा….

क़िन्दगी ककस तलाश में है .


कजन्दगी थकने लगी है ....!!!!

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