कुछ बहते बादल ां पे रक्खी उम्मीदें बरसती रहीां, बरसती रही ां चाां द आसमान में जडे सुराख की तरह झाां कता रहा... और रात..ककसी अांधे कूएां की तरह मुांह ख ले हाां फती रही.... रास्ते पाां व तले से कनकलते रहे .... न रुके, न थमे...
The Happiness Project: Or, Why I Spent a Year Trying to Sing in the Morning, Clean My Closets, Fight Right, Read Aristotle, and Generally Have More Fun