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सनातन हहन्दू धर्म को फााँ क करने को अब्राहर्ी योजना ने यह शब्द गढ़ा हजसे हहन्हदयोों ने भी
काले अोंग्रेजोों के अनुकरण र्ें प्रचहलत कर हदया।
न हह वे रेन वे राहन सम्मन्तीध कुदाचनों।
अवे रेन च सम्मन्ति एस धम्मो सनन्तनो॥
(1.5, धम्मपद)
स्वयों बु द्ध की वाणी है जोहक आज तक 'प्राहणयोों र्ें सद्भावना हो, सबका कल्याण हो' के सनातन उद् घोष र्ें अहभव्यक्त होती
रहती है। आषम एवों पुरातन साहहत्य र्ें ऐसे अनेक उद्धरण हर्ल जायें गे।
हर्ारे धर्म के हलये सदा से ही सदातन सनातन शब्द का प्रयोग होता चला आया है।
हबना सम्पूणमता र्ें पढ़े हुये हनहित वै चाररकी से प्रेररत हो औसत या हनम्न कोहि का अकादहर्क कर्म अब हहन्दी र्ें र्हार्ारी बन
चु का है ।
रही सही न्यूनता केंचु आ कहवता के प्रहत अहत आसन्तक्त ने पूरी कर दी है । आज ही एक को दो क'वी'ताओों के बारे र्ें न चाहते
हुये भी कड़वी औषहध हपलानी पड़ी। हहोंदी क्षेत्र क'वी'ता एवों गोर्य-र्य है ! अण्ड बण्ड लोग कुछ भी हलखे जा रहे हैं , न
अध्ययन है , न करने की आकाों क्षा है ।
इन सज्जन ने भी नाथ एवों हसद्ध साहहत्य का सम्पूणमता र्ें स्वाध्याय नहीों हकया है , कुछ प्रचहलत आग्रह स्थापनाओों को ही आगे
बढ़ा रहे हैं । हहन्दी हवभागाध्यक्ष हैं ।
कई जन तो अपने हशष्ोों से अोंग्रेजी का गुगल अनुवाद करा कर भेजने से नहीों चू कते , दे खते भी नहीों हक क्या है ?