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वभाजन क कहा नयाँ/(मु सूची)
टटवाल का कु ा
सआदत हसन मंटो
(उदू कहानी : अनुवाद : श ु यादव)
व व ालय क प काएँ
कई दन से दोन तरफ से सपाही अपने-अपने मोच पर जमे ए थे। दन म इधर और उधर से दस-बारह गो लयाँ चल जात , जनक
आवाज़ के साथ कोई इनसानी चीख बुल नह होती थी। मौसम ब त खुशनुमा था। हवा जंगली फू ल क महक म बसी ई थी।
पहा डय़ क ऊँ चाइय और ढलान पर लड़ाई से बेखबर कु दरत, अपने रोज के काम-काज म थी। च डय़ाँ उसी तरह चहचहाती
थ । फू ल उसी तरह खल रहे थे और धीमी ग त से उडऩे वाली मधुम याँ, उसी पुराने ढंग से उन पर ऊँ घ-ऊँ घ कर रस चूसती थ ।
जब गो लयाँ चलने पर पहा डय़ म आवाज़ गूँजती और चहचहाती ई च डय़ाँ च ककर उडऩे लगत , मानो कसी का हाथ साज के
गलत तार से जा टकराया हो और उनके कान को ठे स प ँ ची हो। सत र का अ अ ूबर क शु आत से बड़े गुलाबी ढंग से गले मल
रहा था। ऐसा लगता था क जाड़े और गम म सुलह-सफाई हो रही है। नीले-नीले आसमान पर धुनी ई ई जैसे, पतले-पतले और
ह े -ह े बादल य तैरते थे, जैसे अपने सफे द बजर म नदी क सैर कर रहे ह।
पहाड़ी मोच पर दोन ओर से सपाही कई दन से बड़ी ऊब महसूस कर रहे थे क कोई नणया क बात नह होती। ऊबकर उनका लेखक दीघा
जी चाहता क मौका-बे-मौका एक-दूसरे को शेर सुनाएँ । कोई न सुने तो ऐसे ही गुनगुनाते रह। वे पथरीली ज़मीन पर धे या सीधे लेटे
रहते और जब मलता, एक-दो फायर कर देते। उप ास
दोन मोच बड़े सुर त ान पर थे। गो लयाँ पूरे जोर से आत , और प र क ढाल से टकराकर, वह च हो जात । दोन पहा डय़
क ऊँ चाई, जन पर ये मोच थे, लगभग एक ही जैसी थ । बीच म छोटी-सी हरी-भरी घाटी थी, जसके सीने पर एक नाला, मोटे साँप क कहा नयां
तरह लोटता रहता था। क वता
हवाई जहाज का कोई खतरा नह था। तोप न इनके पास थ , न उनके पास, इस लए दोन तरफ बेखटके आग लगाई जाती थी। उससे
धुएँ के बादल उठते और हवा म घुल- मल जाते। रात को चूँ क बलकु ल $खामोशी थी, इस लए कभी-कभी दोन मोच के आलोचना
सपा हय को, कसी बात पर लगाए ए, एक-दूसरे के ठहाके सुनाई दे जाते थे। कभी कोई लहर म आकर गाने लगता तो दूसरी आवाज़
नाटक
गूँजती तो ऐसा लगता, मानो पहा डय़ाँ सबक दोहरा रही ह ।
हदु ानी क परंपरा
चाय का दौर ख़ हो चुका था। प र के चू े म चीड़ के ह े -ह े कोयले करीब-करीब ठं डे हो चुके थे। आसमान साफ था। मौसम
म खुनक थी। हवा म फू ल क महक नह थी, जैसे रात को उ ने अपने इ दान ब कर लये थे। अलब ा, चीड़ के पसीने, यानी वभाजन क कहा नयाँ
बरोजे क बू थी। पर यह भी कु छ ऐसी नागवार नह थी। सब क ल ओढ़े सो रहे थे, पर कु छ इस तरह, क ह े -से इशारे पर उठकर व वध
लडऩे-मरने के लए तैयार हो सकते थे। जमादार हरनाम सह खुद पहरे पर था। उसक रासकोप घड़ी म दो बजे तो उसने गंडा सह को
जगाया और पहरे पर खड़ा कर दया। उसका जी चाहता था क सो जाएे, पर जब लेटा तो आँ ख से न द को इतना दूर पाया जतने क क वता पाठ वी डयो
आसमान म सतारे थे। जमादार हरनाम सह चत लेटा उनक तरफ देखता रहा...और फर गुनगुनाने लगा।
कु ी लेनी आ सतारेयाँ वाली... ई-पु क
सतारेयाँ वाली...
वे हरनाम सहा, ओ यारा, भाव तेरी मह बक जाएे
और हरनाम सह को आसमान पर हर तरफ सतार वाले जूते बखरे नज़र आये जो झल मल- झल मल कर रहे थे। You are visitor no
जु ी ले देआँ सतारेयाँ वाली...
सतारेयाँ वाली...
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