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मधश

ु ाला - ब
चन । Madhushaalaa - Harivanshrai Bachchan. Kaavyaalaya: The House of Hindi Poetry Page 1

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मधश
ु ाला
मदृ ु भाव के अंगरू  क आज बना लाया हाला,
!यतम, अपने ह$ हाथ से आज पलाऊँगा )याला,
पहले भोग लगा लँ ू तेरा +फर !साद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा .वागत करती मेर$ मधश ु ाला।।१।

)यास तुझे तो, व2 तपाकर पूण 4 5नकालँ ग


ू ा हाला,
एक पाँव से साक बनकर नाचूँगा लेकर )याला,
जीवन क मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज 5नछावर कर दँ गू ा म7 तझ
ु पर जग क मधश ु ाला।।२।

!यतम, तू मेर$ हाला है, म7 तेरा )यासा )याला,


अपने को मुझम: भरकर तू बनता है पीनेवाला,
म7 तुझको छक छलका करता, म.त मुझे पी तू होता,
एक दस ू रे क हम दोन आज पर.पर मधश ु ाला।।३।

भावक
ु ता अंगूर लता से खींच क=पना क हाला,
क व साक बनकर आया है भरकर क वता का )याला,
कभी न कण-भर खाल$ होगा लाख पएँ, दो लाख पएँ!
पाठकगण ह7 पीनेवाले, प.
ु तक मेर$ मधश
ु ाला।।४।

मधरु भावनाओं क सम ु धुर 5नBय बनाता हूँ हाला,


भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का )यासा )याला,
उठा क=पना के हाथ से .वयं उसे पी जाता हू,ँ
अपने ह$ म: हूँ म7 साक, पीनेवाला, मधश
ु ाला।।५।

मFदरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,


'+कस पथ से जाऊँ?' असमंजस म: है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर म7 यह बतलाता हूँ -
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधश ु ाला।'। ६।

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मधश
ु ाला - ब
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चलने ह$ चलने म: +कतना जीवन, हाय, Lबता डाला!


'दरू अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
FहNमत है न बढूँ आगे को साहस है न +फPँ पीछे ,
+कंकत4Qय वमढ़ ू मझु े कर दरू खड़ी है मधश
ु ाला।।७।

मखु से तू अ वरत कहता जा मध,ु मFदरा, मादक हाला,


हाथ म: अनभु व करता जा एक लTलत कि=पत )याला,
Vयान +कए जा मन म: सम ु धुर सुखकर, सुंदर साक का,
और बढ़ा चल, पXथक, न तुझको दरू लगेगी मधश ु ाला।।८।

मFदरा पीने क अTभलाषा ह$ बन जाए जब हाला,


अधर क आतरु ता म: ह$ जब आभाTसत हो )याला,
बने Vयान ह$ करते-करते जब साक साकार, सखे,
रहे न हाला, )याला, साक, तझ
ु े Tमलेगी मधश
ु ाला।।९।

सन
ु , कलक\ , छलछ\ मधुघट से Xगरती )याल म: हाला,
सनु , ^नझन
ु ^नझन ु चल वतरण करती मधु साकबाला,
बस आ पहुंच,े दरु नह$ं कुछ, चार कदम अब चलना है,
चहक रहे, सनु , पीनेवाले, महक रह$, ले, मधश
ु ाला।।१०।

जलतरं ग बजता, जब चंबु न करता )याले को )याला,


वीणा झंकृत होती, चलती जब ^नझन ु साकबाला,
डाँट डपट मधु व`ेता क Vव5नत पखावज करती है,
मधुरव से मधु क मादकता और बढ़ाती मधश ु ाला।।११।

म: हद$ रं िजत मद
ृ ल
ु हथेल$ पर माaणक मधु का )याला,
अंगूर$ अवगुंठन डाले .वण4 वण4 साकबाला,
पाग ब7जनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले,
इbcधनष ु से होड़ लगाती आज रं गील$ मधश ु ाला।।१२।

हाथ म: आने से पहले नाज़ Fदखाएगा )याला,


अधर पर आने से पहले अदा Fदखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार करे गा साक आने से पहले,
पXथक, न घबरा जाना, पहले मान करे गी मधश ु ाला।।१३।

लाल सरु ा क धार लपट सी कह न इसे दे ना eवाला,


फे5नल मFदरा है, मत इसको कह दे ना उर का छाला,
दद4 नशा है इस मFदरा का वगत .म5ृ तयाँ साक ह7,
पीड़ा म: आनंद िजसे हो, आए मेर$ मधशु ाला।।१४।

जगती क शीतल हाला सी पXथक, नह$ं मेर$ हाला,


जगती के ठं डे )याले सा पXथक, नह$ं मेरा )याला,
eवाल सरु ा जलते )याले म: दfध gदय क क वता है,

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जलने से भयभीत न जो हो, आए मेर$ मधश


ु ाला।।१५।

बहती हाला दे खी, दे खो लपट उठाती अब हाला,


दे खो )याला अब छूते ह$ हठ जला दे नेवाला,
'हठ नह$ं, सब दे ह दहे, पर पीने को दो बंद
ू Tमले'
ऐसे मधु के द$वान को आज बल ु ाती मधशु ाला।।१६।

धम4ibथ सब जला चुक है, िजसके अंतर क eवाला,


मंFदर, मसिजद, Xगjरजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंkडत, मोTमन, पाFदरय के फंद को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का .वागत मेर$ मधश ु ाला।।१७।

लाला5यत अधर से िजसने, हाय, नह$ं चम ू ी हाला,


हष4- वकं पत कर से िजसने, हा, न छुआ मधु का )याला,
हाथ पकड़ लिeजत साक को पास नह$ं िजसने खींचा,
Qयथ4 सुखा डाल$ जीवन क उसने मधम ु य मधश ु ाला।।१८।

बने पुजार$ !ेमी साक, गंगाजल पावन हाला,


रहे फेरता अ वरत ग5त से मधु के )याल क माला'
'और Tलये जा, और पीये जा', इसी मंl का जाप करे '
म7 Tशव क !5तमा बन बैठूं, मंFदर हो यह मधश
ु ाला।।१९।

बजी न मंFदर म: घkड़याल$, चढ़$ न !5तमा पर माला,


बैठा अपने भवन मअ ु िeज़न दे कर मि.जद म: ताला,
लुटे ख़जाने नर पतय के Xगर$ं गढ़ क द$वार: ,
रह: मुबारक पीनेवाले, खुल$ रहे यह मधश
ु ाला।।२०।

बड़े बड़े परवार Tमट: य, एक न हो रोनेवाला,


हो जाएँ सन ु सान महल वे, जहाँ Xथरकतीं सरु बाला,
राeय उलट जाएँ, भप ू  क भाfय सल
ु nमी सो जाए,
जमे रह: गे पीनेवाले, जगा करे गी मधशु ाला।।२१।

सब Tमट जाएँ, बना रहेगा सुbदर साक, यम काला,


सूख: सब रस, बने रह: ग,े +कbत,ु हलाहल औ' हाला,
धम
ू धाम औ' चहल पहल के .थान सभी सन
ु सान बन: ,
झगा करे गा अ वरत मरघट, जगा करे गी मधशु ाला।।२२।

भरु ा सदा कहलायेगा जग म: बाँका, मदचंचल )याला,


छै ल छबीला, रTसया साक, अलबेला पीनेवाला,
पटे कहाँ से, मधु औ' जग क जोड़ी ठoक नह$ं,
जग जज4र !5तदन, !5तpण, पर 5नBय नवेल$ मधश ु ाला।।२३।

Lबना पये जो मधश ु ाला को बुरा कहे, वह मतवाला,


पी लेने पर तो उसके मह ु पर पड़ जाएगा ताला,

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दास cोFहय दोन म: है जीत सुरा क, )याले क,


व2 वज5यनी बनकर जग म: आई मेर$ मधश ु ाला।।२४।

हरा भरा रहता मFदरालय, जग पर पड़ जाए पाला,


वहाँ मह
ु र4 म का तम छाए, यहाँ होTलका क eवाला,
.वग4 लोक से सीधी उतर$ वसध ु ा पर, दख
ु rया जाने,
पढ़े मTस4या द5ु नया सार$, ईद मनाती मधश ु ाला।।२५।

एक बरस म: , एक बार ह$ जगती होल$ क eवाला,


एक बार ह$ लगती बाज़ी, जलती द$प क माला,
द5ु नयावाल, +कbत,ु +कसी Fदन आ मFदरालय म: दे खो,
Fदन को होल$, रात Fदवाल$, रोज़ मनाती मधशु ाला।।२६।

नह$ं जानता कौन, मनज


ु आया बनकर पीनेवाला,
कौन अ पjरचत उस साक से, िजसने दध
ू पला पाला,
जीवन पाकर मानव पीकर म.त रहे, इस कारण ह$,
जग म: आकर सबसे पहले पाई उसने मधशु ाला।।२७।

बनी रह: अंगूर लताएँ िजनसे Tमलती है हाला,


बनी रहे वह Tमटट$ िजससे बनता है मधु का )याला,
बनी रहे वह मFदर पपासा तt ृ न जो होना जाने,
बन: रह: ये पीने वाले, बनी रहे यह मधश
ु ाला।।२८।

सकुशल समझो मुझको, सकुशल रहती यFद साकबाला,


मंगल और अमंगल समझे म.ती म: rया मतवाला,
Tमl, मेर$ pेम न पूछो आकर, पर मधश
ु ाला क,
कहा करो 'जय राम' न Tमलकर, कहा करो 'जय मधश ु ाला'।।२९।

सयू 4 बने मधु का व`ेता, Tसंधु बने घट, जल, हाला,


बादल बन-बन आए साक, भTू म बने मधु का )याला,
झड़ी लगाकर बरसे मFदरा jरमaझम, jरमaझम, jरमaझम कर,
बेTल, वटप, तण ृ बन म7 पीऊँ, वषा4 ऋतु हो मधशु ाला।।३०।

तारक मaणय से सिeजत नभ बन जाए मधु का )याला,


सीधा करके भर द$ जाए उसम: सागरजल हाला,
मv=तऌा समीरण साक बनकर अधर पर छलका जाए,
फैले ह जो सागर तट से व2 बने यह मधश
ु ाला।।३१।

अधर पर हो कोई भी रस िजहवा पर लगती हाला,


भाजन हो कोई हाथ म: लगता रrखा है )याला,
हर सूरत साक क सूरत म: पjरव5त4त हो जाती,
आँख के आगे हो कुछ भी, आँख म: है मधशु ाला।।३२।

पौधे आज बने ह7 साक ले ले फूल का )याला,

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भर$ हुई है िजसके अंदर परमल-मध-ु सुjरभत हाला,


माँग माँगकर xमर के दल रस क मFदरा पीते ह7,
झम
ू झपक मद-झं पत होते, उपवन rया है मधश ु ाला!।३३।

!5त रसाल त^ साक सा है, !5त मंजjरका है )याला,


छलक रह$ है िजसके बाहर मादक सौरभ क हाला,
छक िजसको मतवाल$ कोयल कूक रह$ डाल$ डाल$
हर मधुऋतु म: अमराई म: जग उठती है मधशु ाला।।३४।

मंद झकोर के )याल म: मधुऋतु सौरभ क हाला


भर भरकर है अ5नल पलाता बनकर मध-ु मद-मतवाला,
हरे हरे नव प=लव, त^गण, नत ू न डाल: , व=लjरयाँ,
छक छक, झक ु झकु झमू रह$ ह7, मधबु न म: है मधश ु ाला।।३५।

साक बन आती है !ातः जब अPणा ऊषा बाला,


तारक-मaण-मंkडत चादर दे मोल धरा लेती हाला,
अगaणत कर-+करण से िजसको पी, खग पागल हो गाते,
!5त !भात म: पूण 4 !कृ5त म: मुaखरत होती मधश
ु ाला।।३६।

उतर नशा जब उसका जाता, आती है संVया बाला,


बड़ी परु ानी, बड़ी नशील$ 5नBय ढला जाती हाला,
जीवन के संताप शोक सब इसको पीकर Tमट जाते
सुरा-सुt होते मद-लोभी जागतृ रहती मधशु ाला।।३७।

अंधकार है मधु व`ेता, सुbदर साक शTशबाला


+करण +करण म: जो छलकाती जाम जN ु हाई का हाला,
पीकर िजसको चेतनता खो लेने लगते ह7 झपक
तारकदल से पीनेवाले, रात नह$ं है, मधशु ाला।।३८।

+कसी ओर म7 आँख: फे^ँ, Fदखलाई दे ती हाला


+कसी ओर म7 आँख: फे^ँ, Fदखलाई दे ता )याला,
+कसी ओर म7 दे ख,ूं मुझको Fदखलाई दे ता साक
+कसी ओर दे ख,ूं Fदखलाई पड़ती मुझको मधश ु ाला।।३९।

साक बन मुरल$ आई साथ Tलए कर म: )याला,


िजनम: वह छलकाती लाई अधर-सध ु ा-रस क हाला,
योXगराज कर संगत उसक नटवर नागर कहलाए,
दे खो कैस-कैस को है नाच नचाती मधश ु ाला।।४०।

वादक बन मधु का व`ेता लाया सुर-सम ु धुर-हाला,


राXग5नयाँ बन साक आई भरकर तार का )याला,
व`ेता के संकेत पर दौड़ लय, आलाप म: ,
पान कराती zोतागण को, झंकृत वीणा मधश ु ाला।।४१।

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Xचlकार बन साक आता लेकर तूल$ का )याला,


िजसम: भरकर पान कराता वह बहु रस-रं गी हाला,
मन के Xचl िजसे पी-पीकर रं ग-Lबरं गे हो जाते,
Xचlपट$ पर नाच रह$ है एक मनोहर मधश ु ाला।।४२।

घन {यामल अंगरू लता से aखंच aखंच यह आती हाला,


अ^ण-कमल-कोमल कTलय क )याल$, फूल का )याला,
लोल Fहलोर: साक बन बन माaणक मधु से भर जातीं,
हंस मv=तऌा होते पी पीकर मानसरोवर मधशु ाला।।४३।

Fहम zेणी अंगूर लता-सी फैल$, Fहम जल है हाला,


चंचल नFदयाँ साक बनकर, भरकर लहर का )याला,
कोमल कूर-कर म: अपने छलकाती 5नTशFदन चलतीं,
पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधशु ाला।।४४।

धीर सुत के gदय र| क आज बना रk|म हाला,


वीर सुत के वर शीश का हाथ म: लेकर )याला,
अ5त उदार दानी साक है आज बनी भारतमाता,
.वतंlता है त ृ षत काTलका बTलवेद$ है मधश
ु ाला।।४५।

दतु कारा मि.जद ने मझ ु को कहकर है पीनेवाला,


ठुकराया ठाकुर}ारे ने दे ख हथेल$ पर )याला,
कहाँ Fठकाना Tमलता जग म: भला अभागे का+फर को?
शरण.थल बनकर न मुझे यFद अपना लेती मधश ु ाला।।४६।

पXथक बना म7 घम ू रहा हू,ँ सभी जगह Tमलती हाला,


सभी जगह Tमल जाता साक, सभी जगह Tमलता )याला,
मझु े ठहरने का, हे Tमl, क~ नह$ं कुछ भी होता,
Tमले न मंFदर, Tमले न मि.जद, Tमल जाती है मधश ु ाला।।४७।

सज: न मि.जद और नमाज़ी कहता है अ=लाताला,


सजधजकर, पर, साक आता, बन ठनकर, पीनेवाला,
शेख, कहाँ तुलना हो सकती मि.जद क मFदरालय से
Xचर वधवा है मि.जद तेर$, सदा सह
ु ाXगन मधश
ु ाला।।४८।

बजी नफ़र$ और नमाज़ी भल ू गया अ=लाताला,


गाज Xगर$, पर Vयान सरु ा म: मfन रहा पीनेवाला,
शेख, बरु ा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मि.जद को
अभी यग ु  तक Tसखलाएगी Vयान लगाना मधश ु ाला!।४९।

मुसलमान औ' Fहbद ू है दो, एक, मगर, उनका )याला,


एक, मगर, उनका मFदरालय, एक, मगर, उनक हाला,
दोन रहते एक न जब तक मि.जद मिbदर म: जाते,

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बैर बढ़ाते मि.जद मिbदर मेल कराती मधश


ु ाला!।५०।

कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंkडत जपता माला,


बैर भाव चाहे िजतना हो मFदरा से रखनेवाला,
एक बार बस मधश ु ाला के आगे से होकर 5नकले,
दे खूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधश ु ाला!।५१।

और रस म: .वाद तभी तक, दरू जभी तक है हाला,


इतरा ल: सब पाl न जब तक, आगे आता है )याला,
कर ल: पूजा शेख, पुजार$ तब तक मि.जद मिbदर म:
घूँघट का पट खोल न जब तक झाँक रह$ है मधशु ाला।।५२।

आज करे परहेज़ जगत, पर, कल पीनी होगी हाला,


आज करे इbकार जगत पर कल पीना होगा )याला,
होने दो पैदा मद का महमूद जगत म: कोई, +फर
जहाँ अभी ह7 मन ्ि◌दर मि.जद वहाँ बनेगी मधश
ु ाला।।५३।

यv अिfन सी धधक रह$ है मधु क भटठo क eवाला,


ऋ ष सा Vयान लगा बैठा है हर मFदरा पीने वाला,
म5ु न कbयाओं सी मधघ
ु ट ले +फरतीं साकबालाएँ,
+कसी तपोवन से rया कम है मेर$ पावन मधश ु ाला।।५४।

सोम सुरा पुरखे पीते थे, हम कहते उसको हाला,


cोणकलश िजसको कहते थे, आज वह$ मधुघट आला,
वेFदवFहत यह र.म न छोड़ो वेद के ठे केदार,
यगु यगु से है पुजती आई नई नह$ं है मधश ु ाला।।५५।

वह$ वा^णी जो थी सागर मथकर 5नकल$ अब हाला,


रं भा क संतान जगत म: कहलाती 'साकबाला',
दे व अदे व िजसे ले आए, संत महंत Tमटा द: ग!े
+कसम: +कतना दम खम, इसको खूब समझती मधश ु ाला।।५६।

कभी न सन ु पड़ता, 'इसने, हा, छू द$ मेर$ हाला',


कभी न कोई कहता, 'उसने जूठा कर डाला )याला',
सभी जा5त के लोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते ह7,
सौ सध
ु ारक का करती है काम अकेले मधश ु ाला।।५७।

zम, संकट, संताप, सभी तम ु भलू ा करते पी हाला,


सबक बड़ा तम ु सीख चुके यFद सीखा रहना मतवाला,
Qयथ4 बने जाते हो Fहरजन, तम ु तो मधुजन ह$ अ
छे ,
ठुकराते Fहर मंि◌दरवाले, पलक Lबछाती मधश ु ाला।।५८।

एक तरह से सबका .वागत करती है साकबाला,


अv वv म: है rया अंतर हो जाने पर मतवाला,

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रं क राव म: भेद हुआ है कभी नह$ं मFदरालय म: ,


साNयवाद क !थम !चारक है यह मेर$ मधश ु ाला।।५९।

बार बार म7ने आगे बढ़ आज नह$ं माँगी हाला,


समझ न लेना इससे मझ ु को साधारण पीने वाला,
हो तो लेने दो ऐ साक दरू !थम संकोच को,
मेरे ह$ .वर से +फर सार$ गूँज उठे गी मधश
ु ाला।।६०।

कल? कल पर व2ास +कया कब करता है पीनेवाला


हो सकते कल कर जड़ िजनसे +फर +फर आज उठा )याला,
आज हाथ म: था, वह खोया, कल का कौन भरोसा है,
कल क हो न मझु े मधश
ु ाला काल कुFटल क मधश
ु ाला।।६१।

आज Tमला अवसर, तब +फर rय म7 न छकँू जी-भर हाला


आज Tमला मौका, तब +फर rय ढाल न लँ ू जी-भर )याला,
छे ड़छाड़ अपने साक से आज न rय जी-भर कर लँ ,ू
एक बार ह$ तो Tमलनी है जीवन क यह मधशु ाला।।६२।

आज सजीव बना लो, !ेयसी, अपने अधर का )याला,


भर लो, भर लो, भर लो इसम: , यौवन मधरु स क हाला,
और लगा मेरे होठ से भल
ू हटाना तमु जाओ,
अथक बनू म7 पीनेवाला, खलु े !णय क मधशु ाला।।६३।

समु ुखी तN
ु हारा, सुbदर मुख ह$, मुझको कbचन का )याला
छलक रह$ है िजसमं◌े माaणक ^प मधुर मादक हाला,
म7 ह$ साक बनता, म7 ह$ पीने वाला बनता हूँ
जहाँ कह$ं Tमल बैठे हम त‚ ु वह$ं गयी हो मधश
ु ाला।।६४।

दो Fदन ह$ मधु मझ
ु े पलाकर ऊब उठo साकबाला,
भरकर अब aखसका दे ती है वह मेरे आगे )याला,
नाज़, अदा, अंदाज से अब, हाय पलाना दरू हुआ,
अब तो कर दे ती है केवल फ़ज़4 -अदाई मधशु ाला।।६५।

छोटे -से जीवन म: +कतना )यार कPँ , पी लँ ू हाला,


आने के ह$ साथ जगत म: कहलाया 'जानेवाला',
.वागत के ह$ साथ वदा क होती दे खी तैयार$,
बंद लगी होने खलु ते ह$ मेर$ जीवन-मधशु ाला।।६६।

rया पीना, 5न}4 bद न जब तक ढाला )याल पर )याला,


rया जीना, 5नरं ि◌चत न जब तक साथ रहे साकबाला,
खोने का भय, हाय, लगा है पाने के सुख के पीछे ,
Tमलने का आनंद न दे ती Tमलकर के भी मधश ु ाला।।६७।

मझ
ु े पलाने को लाए हो इतनी थोड़ी-सी हाला!

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मुझे Fदखाने को लाए हो एक यह$ 5छछला )याला!


इतनी पी जीने से अ
छा सागर क ले )यास मPँ ,
Tसंधँ◌-ु तष
ृ ा द$ +कसने रचकर Lबंद-ु बराबर मधश
ु ाला।।६८।

rया कहता है, रह न गई अब तेरे भाजन म: हाला,


rया कहता है, अब न चलेगी मादक )याल क माला,
थोड़ी पीकर )यास बढ़$ तो शेष नह$ं कुछ पीने को,
)यास बुझाने को बुलवाकर )यास बढ़ाती मधशु ाला।।६९।

Tलखी भाfय म: िजतनी बस उतनी ह$ पाएगा हाला,


Tलखा भाfय म: जैसा बस वैसा ह$ पाएगा )याला,
लाख पटक तू हाथ पाँव, पर इससे कब कुछ होने का,
Tलखी भाfय म: जो तेरे बस वह$ Tमलेगी मधश
ु ाला।।७०।

कर ले, कर ले कंजूसी तू मुझको दे ने म: हाला,


दे ले, दे ले तू मुझको बस यह टूटा फूटा )याला,
म7 तो सƒ इसी पर करता, तू पीछे पछताएगी,
जब न रहूँगा म7, तब मेर$ याद करे गी मधशु ाला।।७१।

Vयान मान का, अपमान का छोड़ Fदया जब पी हाला,


गौरव भल ू ा, आया कर म: जब से Tम„ी का )याला,
साक क अंदाज़ भर$ aझड़क म: rया अपमान धरा,
द5ु नया भर क ठोकर खाकर पाई म7ने मधशु ाला।।७२।

pीण, pुc, pणभंगुर, दब ु ल


4 मानव Tमटट$ का )याला,
भर$ हुई है िजसके अंदर कटु-मधु जीवन क हाला,
मBृ यु बनी है 5नद4 य साक अपने शत-शत कर फैला,
काल !बल है पीनेवाला, संस5ृ त है यह मधश ु ाला।।७३।

)याले सा गढ़ हम: +कसी ने भर द$ जीवन क हाला,


नशा न भाया, ढाला हमने ले लेकर मधु का )याला,
जब जीवन का दद4 उभरता उसे दबाते )याले से,
जगती के पहले साक से जूझ रह$ है मधश
ु ाला।।७४।

अपने अंगूर से तन म: हमने भर ल$ है हाला,


rया कहते हो, शेख, नरक म: हम: तपाएगी eवाला,
तब तो मFदरा खब ू aखंचेगी और पएगा भी कोई,
हम: नमक क eवाला म: भी द$ख पड़ेगी मधश ु ाला।।७५।

यम आएगा लेने जब, तब खूब चलँ गा ू पी हाला,


पीड़ा, संकट, क~ नरक के rया समझेगा मतवाला,
`ूर, कठोर, कुFटल, कु वचार$, अbयायी यमराज के
डंड क जब मार पड़ेगी, आड़ करे गी मधशु ाला।।७६।

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यFद इन अधर से दो बात: !ेम भर$ करती हाला,


यFद इन खाल$ हाथ का जी पल भर बहलाता )याला,
हा5न बता, जग, तेर$ rया है, Qयथ4 मुझे बदनाम न कर,
मेरे टूटे Fदल का है बस एक aखलौना मधश ु ाला।।७७।

याद न आए दख ू मय जीवन इससे पी लेता हाला,


जग Xचंताओं से रहने को मु|, उठा लेता )याला,
शौक, साध के और .वाद के हेतु पया जग करता है,
पर मै वह रोगी हूँ िजसक एक दवा है मधशु ाला।।७८।

Xगरती जाती है Fदन !5तदन !णयनी !ाण क हाला


भfन हुआ जाता Fदन !5तदन सभ ु गे मेरा तन )याला,
^ठ रहा है मझु से ^पसी, Fदन Fदन यौवन का साक
सखू रह$ है Fदन Fदन सb ु दर$, मेर$ जीवन मधश ु ाला।।७९।

यम आयेगा साक बनकर साथ Tलए काल$ हाला,


पी न होश म: +फर आएगा सुरा- वसधु यह मतवाला,
यह अंि◌तम बेहोशी, अं5तम साक, अं5तम )याला है,
पXथक, )यार से पीना इसको +फर न Tमलेगी मधश ु ाला।८०।

ढलक रह$ है तन के घट से, संXगनी जब जीवन हाला


पl गरल का ले जब अं5तम साक है आनेवाला,
हाथ .पश4 भूले )याले का, .वाद सुरा जीQहा भूले
कानो म: तम
ु कहती रहना, मधु का )याला मधश ु ाला।।८१।

मेरे अधर पर हो अंि◌तम व.तु न तुलसीदल )याला


मेर$ जीQहा पर हो अं5तम व.तु न गंगाजल हाला,
मेरे शव के पीछे चलने वाल याद इसे रखना
राम नाम है सBय न कहना, कहना स
ची मधश ु ाला।।८२।

मेरे शव पर वह रोये, हो िजसके आंसू म: हाला


आह भरे वो, जो हो सुjरभत मFदरा पी कर मतवाला,
दे मुझको वो काbधा िजनके पग मद डगमग होते ह
और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रह$ हो मधश ु ाला।।८३।

और Xचता पर जाये उं ढे ला पl न 5…त का, पर )याला


कंठ बंधे अंगरू लता म: मVय न जल हो, पर हाला,
!ाण !ये यFद zाध करो तम ु मेरा तो ऐसे करना
पीने वालां◌े को बुलवा कऱ खुलवा दे ना मधशु ाला।।८४।

नाम अगर कोई पूछे तो, कहना बस पीनेवाला


काम ढालना, और ढालना सबको मFदरा का )याला,
जा5त !ये, पूछे यFद कोई कह दे ना द$वान क

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धम4 बताना )याल क ले माला जपना मधश


ु ाला।।८५।

vात हुआ यम आने को है ले अपनी काल$ हाला,


पंि◌डत अपनी पोथी भल ू ा, साधू भल
ू गया माला,
और पज ु ार$ भल ू ा पज
ू ा, vान सभी vानी भल ू ा,
+कbतु न भल ू ा मरकर के भी पीनेवाला मधश ु ाला।।८६।

यम ले चलता है मुझको तो, चलने दे लेकर हाला,


चलने दे साक को मेरे साथ Tलए कर म: )याला,
.वग4, नरक या जहाँ कह$ं भी तेरा जी हो लेकर चल,
ठौर सभी ह7 एक तरह के साथ रहे यFद मधश ु ाला।।८७।

पाप अगर पीना, समदोषी तो तीन - साक बाला,


5नBय पलानेवाला )याला, पी जानेवाल$ हाला,
साथ इbह: भी ले चल मेरे bयाय यह$ बतलाता है,
कैद जहाँ म7 हू,ँ क जाए कैद वह$ं पर मधश
ु ाला।।८८।

शांत सक हो अब तक, साक, पीकर +कस उर क eवाला,


'और, और' क रटन लगाता जाता हर पीनेवाला,
+कतनी इ
छाएँ हर जानेवाला छोड़ यहाँ जाता!
+कतने अरमान क बनकर कƒ खड़ी है मधश ु ाला।।८९।

जो हाला म7 चाह रहा था, वह न Tमल$ मुझको हाला,


जो )याला म7 माँग रहा था, वह न Tमला मुझको )याला,
िजस साक के पीछे म7 था द$वाना, न Tमला साक,
िजसके पीछे था म7 पागल, हा न Tमल$ वह मधश ु ाला!।९०।

दे ख रहा हूँ अपने आगे कब से माaणक-सी हाला,


दे ख रहा हूँ अपने आगे कब से कंचन का )याला,
'बस अब पाया!'- कह-कह कब से दौड़ रहा इसके पीछे ,
+कंतु रह$ है दरू ‡p5तज-सी मुझसे मेर$ मधश
ु ाला।।९१।

कभी 5नराशा का तम 5घरता, 5छप जाता मधु का )याला,


5छप जाती मFदरा क आभा, 5छप जाती साकबाला,
कभी उजाला आशा करके )याला +फर चमका जाती,
आँaखमचौल$ खेल रह$ है मझ
ु से मेर$ मधश
ु ाला।।९२।

'आ आगे' कहकर कर पीछे कर लेती साकबाला,


हठ लगाने को कहकर हर बार हटा लेती )याला,
नह$ं मुझे मालम
ू कहाँ तक यह मुझको ले जाएगी,
बढ़ा बढ़ाकर मुझको आगे, पीछे हटती मधश ु ाला।।९३।

हाथ म: आने-आने म: , हाय, +फसल जाता )याला,


अधर पर आने-आने म: हाय, ढुलक जाती हाला,

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द5ु नयावालो, आकर मेर$ +क.मत क ख़ूबी दे खो,


रह-रह जाती है बस मुझको Tमलते-ि◌मलते मधश ु ाला।।९४।

!ा)य नह$ है तो, हो जाती लt ु नह$ं +फर rय हाला,


!ा)य नह$ है तो, हो जाता लt ु नह$ं +फर rय )याला,
दरू न इतनी FहNमत हाPँ , पास न इतनी पा जाऊँ,
Qयथ4 मुझे दौड़ाती मP म: मगृ जल बनकर मधशु ाला।।९५।

Tमले न, पर, ललचा ललचा rय आकुल करती है हाला,


Tमले न, पर, तरसा तरसाकर rय तड़पाता है )याला,
हाय, 5नय5त क वषम लेखनी म.तक पर यह खोद गई
'दरू रहेगी मधु क धारा, पास रहेगी मधश
ु ाला!'।९६।

मFदरालय म: कब से बैठा, पी न सका अब तक हाला,


यˆ सFहत भरता हू,ँ कोई +कंतु उलट दे ता )याला,
मानव-बल के आगे 5नब4ल भाfय, सन ु ा व‰ालय म: ,
'भाfय !बल, मानव 5नब4ल' का पाठ पढ़ाती मधश ु ाला।।९७।

+क.मत म: था खाल$ ख)पर, खोज रहा था म7 )याला,


ढूँढ़ रहा था म7 मग
ृ नयनी, +क.मत म: थी मगृ छाला,
+कसने अपना भाfय समझने म: मझ ु सा धोखा खाया,
+क.मत म: था अवघट मरघट, ढूँढ़ रहा था मधश ु ाला।।९८।

उस )याले से )यार मुझे जो दरू हथेल$ से )याला,


उस हाला से चाव मुझे जो दरू अधर से है हाला,
)यार नह$ं पा जाने म: है, पाने के अरमान म: !
पा जाता तब, हाय, न इतनी )यार$ लगती मधश ु ाला।।९९।

साक के पास है 5तनक सी zी, सख ु , सं पत क हाला,


सब जग है पीने को आतरु ले ले +क.मत का )याला,
रे ल ठे ल कुछ आगे बढ़ते, बहुतेरे दबकर मरते,
जीवन का संघष4 नह$ं है, भीड़ भर$ है मधश ु ाला।।१००।

साक, जब है पास तN ु हारे इतनी थोड़ी सी हाला,


rय पीने क अTभलषा से, करते सबको मतवाला,
हम पस पसकर मरते ह7, तम ु 5छप 5छपकर मस ु काते हो,
हाय, हमार$ पीड़ा से है `ड़ा करती मधश ु ाला।।१०१।

साक, मर खपकर यFद कोई आगे कर पाया )याला,


पी पाया केवल दो बूंद से न अXधक तेर$ हाला,
जीवन भर का, हाय, परzम लूट Tलया दो बूंद ने,
भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है मधशु ाला।।१०२।

िजसने मझ
ु को )यासा रrखा बनी रहे वह भी हाला,

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िजसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी )याला,


मतवाल क िजहवा से ह7 कभी 5नकलते शाप नह$ं,
दख
ु ी बनाय िजसने मुझको सुखी रहे वह मधश
ु ाला!।१०३।

नह$ं चाहता, आगे बढ़कर छoनँू और क हाला,


नह$ं चाहता, धrके दे कर, छoनँू और का )याला,
साक, मेर$ ओर न दे खो मुझको 5तनक मलाल नह$ं,
इतना ह$ rया कम आँख से दे ख रहा हूँ मधश ु ाला।।१०४।

मद, मFदरा, मध,ु हाला सनु -सन


ु कर ह$ जब हूँ मतवाला,
rया ग5त होगी अधर के जब नीचे आएगा )याला,
साक, मेरे पास न आना म7 पागल हो जाऊँगा,
)यासा ह$ म7 म.त, मबु ारक हो तम
ु को ह$ मधश
ु ाला।।१०५।

rया मुझको आव{यकता है साक से माँगूँ हाला,


rया मुझको आव{यकता है साक से चाहूँ )याला,
पीकर मFदरा म.त हुआ तो )यार +कया rया मFदरा से!
म7 तो पागल हो उठता हूँ सन
ु लेता यFद मधशु ाला।।१०६।

दे ने को जो मझ
ु े कहा था दे न सक मझ ु को हाला,
दे ने को जो मझु े कहा था दे न सका मझ ु को )याला,
समझ मनज ु क दब ु ल
4 ता म7 कहा नह$ं कुछ भी करता,
+कbतु .वयं ह$ दे ख मुझे अब शरमा जाती मधश ु ाला।।१०७।

एक समय संत~ ु बहुत था पा म7 थोड़ी-सी हाला,


भोला-सा था मेरा साक, छोटा-सा मेरा )याला,
छोटे -से इस जग क मेरे .वग4 बलाएँ लेता था,
व.तत ृ जग म: , हाय, गई खो मेर$ नbह$ मधश ु ाला!।१०८।

बहुतेरे मFदरालय दे ख,े बहुतेर$ दे खी हाला,


भाँि◌त भाँि◌त का आया मेरे हाथ म: मधु का )याला,
एक एक से बढ़कर, सुbदर साक ने सBकार +कया,
जँ ची न आँख म: , पर, कोई पहल$ जैसी मधश ु ाला।।१०९।

एक समय छलका करती थी मेरे अधर पर हाला,


एक समय झम ू ा करता था मेरे हाथ पर )याला,
एक समय पीनेवाले, साक आTलंगन करते थे,
आज बनी हूँ 5नज4न मरघट, एक समय थी मधश ु ाला।।११०।

जला gदय क भ„ी खींची म7ने आँसू क हाला,


छलछल छलका करता इससे पल पल पलक का )याला,
आँख: आज बनी ह7 साक, गाल गुलाबी पी होते,
कहो न वरह$ मुझको, म7 हूँ चलती +फरती मधश ु ाला!।१११।

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+कतनी ज=द$ रं ग बदलती है अपना चंचल हाला,


+कतनी ज=द$ 5घसने लगता हाथ म: आकर )याला,
+कतनी ज=द$ साक का आकष4ण घटने लगता है,
!ात नह$ं थी वैसी, जैसी रात लगी थी मधश
ु ाला।।११२।

बँद
ू बँद
ू के हेतु कभी तझ
ु को तरसाएगी हाला,
कभी हाथ से 5छन जाएगा तेरा यह मादक )याला,
पीनेवाले, साक क मीठo बात म: मत आना,
मेरे भी गुण य ह$ गाती एक Fदवस थी मधश ु ाला।।११३।

छोड़ा म7ने पथ मत को तब कहलाया मतवाला,


चल$ सरु ा मेरा पग धोने तोड़ा जब म7ने )याला,
अब मानी मधश ु ाला मेरे पीछे पीछे +फरती है,
rया कारण? अब छोड़ Fदया है म7ने जाना मधश ु ाला।।११४।

यह न समझना, पया हलाहल म7न,े जब न Tमल$ हाला,


तब म7ने ख)पर अपनाया ले सकता था जब )याला,
जले gदय को और जलाना सूझा, म7ने मरघट को
अपनाया जब इन चरण म: लोट रह$ थी मधशु ाला।।११५।

+कतनी आई और गई पी इस मFदरालय म: हाला,


टूट चक
ु  अब तक +कतने ह$ मादक )याल क माला,
+कतने साक अपना अपना काम खतम कर दरू गए,
+कतने पीनेवाले आए, +कbतु वह$ है मधश
ु ाला।।११६।

+कतने होठ को रrखेगी याद भला मादक हाला,


+कतने हाथ को रrखेगा याद भला पागल )याला,
+कतनी शrल को रrखेगा याद भला भोला साक,
+कतने पीनेवाल म: है एक अकेल$ मधश
ु ाला।।११७।

दर दर घमू रहा था जब म7 Xच=लाता - हाला! हाला!


मुझे न Tमलता था मFदरालय, मुझे न Tमलता था )याला,
Tमलन हुआ, पर नह$ं Tमलनसुख Tलखा हुआ था +क.मत म: ,
म7 अब जमकर बैठ गया हँ◌,ू घम
ू रह$ है मधशु ाला।।११८।

म7 मFदरालय के अंदर हू,ँ मेरे हाथ म: )याला,


)याले म: मFदरालय Lबंि◌बत करनेवाल$ है हाला,
इस उधेड़-बनु म: ह$ मेरा सारा जीवन बीत गया -
म7 मधशु ाला के अंदर या मेरे अंदर मधश ु ाला!।११९।

+कसे नह$ं पीने से नाता, +कसे नह$ं भाता )याला,


इस जगती के मFदरालय म: तरह-तरह क है हाला,
अपनी-अपनी इ
छा के अनुसार सभी पी मदमाते,

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एक सभी का मादक साक, एक सभी क मधश


ु ाला।।१२०।

वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर क eवाला,


िजसम: म7 Lबंि◌बत-!5तबंि◌बत !5तपल, वह मेरा )याला,
मधश ु ाला वह नह$ं जहाँ पर मFदरा बेची जाती है,
भ: ट जहाँ म.ती क Tमलती मेर$ तो वह मधश ु ाला।।१२१।

मतवालापन हाला से ले म7ने तज द$ है हाला,


पागलपन लेकर )याले से, म7ने Bयाग Fदया )याला,
साक से Tमल, साक म: Tमल अपनापन म7 भूल गया,
Tमल मधश ु ाला क मधुता म: भूल गया म7 मधशु ाला।।१२२।

मFदरालय के }ार ठकता +क.मत का छं छा )याला,


गहर$, ठं डी सांस: भर भर कहता था हर मतवाला,
+कतनी थोड़ी सी यौवन क हाला, हा, म7 पी पाया!
बंद हो गई +कतनी ज=द$ मेर$ जीवन मधश ु ाला।।१२३।

कहाँ गया वह .वXग4क साक, कहाँ गयी सुjरभत हाला,


कहँ◌ा गया .व पनल मFदरालय, कहाँ गया .वaण4म )याला!
पीनेवाल ने मFदरा का म=
ू य, हाय, कब पहचाना?
फूट चकु ा जब मधु का )याला, टूट चकु  जब मधश
ु ाला।।१२४।

अपने यगु म: सबको अनुपम vात हुई अपनी हाला,


अपने यग
ु म: सबको अदभुत vात हुआ अपना )याला,
+फर भी वŠृ  से जब पूछा एक यह$ उv=तऌार पाया -
अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रह$ वह मधश
ु ाला!।१२५।

'मय' को करके शŠ ु Fदया अब नाम गया उसको, 'हाला'


'मीना' को 'मधप
ु ाl' Fदया 'सागर' को नाम गया ')याला',
rय न मौलवी च‹क:, Lबचक: 5तलक-Llपंड ु ी पंि◌डत जी
'मय-मFहफल' अब अपना ल$ है म7ने करके 'मधश ु ाला'।।१२६।

+कतने मम4 जता जाती है बार-बार आकर हाला,


+कतने भेद बता जाता है बार-बार आकर )याला,
+कतने अथŒ को संकेत से बतला जाता साक,
+फर भी पीनेवाल को है एक पहेल$ मधश
ु ाला।।१२७।

िजतनी Fदल क गहराई हो उतना गहरा है )याला,


िजतनी मन क मादकता हो उतनी मादक है हाला,
िजतनी उर क भावुकता हो उतना सुbदर साक है,
िजतना ह$ जो jरसक, उसे है उतनी रसमय मधश ु ाला।।१२८।

िजन अधर को छुए, बना दे म.त उbह: मेर$ हाला,


िजस कर को छू◌ू दे , कर दे व‡pt उसे मेरा )याला,

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आँख चार ह िजसक मेरे साक से द$वाना हो,


पागल बनकर नाचे वह जो आए मेर$ मधश ु ाला।।१२९।

हर िजहवा पर दे खी जाएगी मेर$ मादक हाला


हर कर म: दे खा जाएगा मेरे साक का )याला
हर घर म: चचा4 अब होगी मेरे मधु व`ेता क
हर आंगन म: गमक उठे गी मेर$ सुjरभत मधश ु ाला।।१३०।

मेर$ हाला म: सबने पाई अपनी-अपनी हाला,


मेरे )याले म: सबने पाया अपना-अपना )याला,
मेरे साक म: सबने अपना )यारा साक दे खा,
िजसक जैसी Pि◌च थी उसने वैसी दे खी मधश ु ाला।।१३१।

यह मFदरालय के आँसू ह7, नह$ं-नह$ं मादक हाला,


यह मFदरालय क आँख: ह7, नह$ं-नह$ं मधु का )याला,
+कसी समय क सुखद.म5ृ त है साक बनकर नाच रह$,
नह$ं-नह$ं +कव का gदयांगण, यह वरहाकुल मधश ु ाला।।१३२।

कुचल हसरत: +कतनी अपनी, हाय, बना पाया हाला,


+कतने अरमान को करके ख़ाक बना पाया )याला!
पी पीनेवाले चल द: ग,े हाय, न कोई जानेगा,
+कतने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधश ु ाला!।१३३।

व2 तN ु हारे वषमय जीवन म: ला पाएगी हाला


यFद थोड़ी-सी भी यह मेर$ मदमाती साकबाला,
शूbय तNु हार$ घkड़याँ कुछ भी यFद यह गुंिजत कर पाई,
जbम सफल समझेगी जग म: अपना मेर$ मधश ु ाला।।१३४।

बड़े-बड़े नाज़ से म7ने पाल$ है साकबाला,


+कलत क=पना का ह$ इसने सदा उठाया है )याला,
मान-दल ु ार से ह$ रखना इस मेर$ सुकुमार$ को,
व2, तN ु हारे हाथ म: अब स‹प रहा हूँ मधश
ु ाला।।१३५।

पjरश~ से

.वयं नह$ं पीता, और को, +कbतु पला दे ता हाला,


.वयं नह$ं छूता, और को, पर पकड़ा दे ता )याला,
पर उपदे श कुशल बहुतेर से म7ने यह सीखा है,
.वयं नह$ं जाता, और को पहुंचा दे ता मधश
ु ाला।

म7 काय.थ कुलोदभव मेरे पुरख ने इतना ढ़ाला,


मेरे तन के लोहू म: है पचहv=तऌार !5तशत हाला,
प{ु तैनी अXधकार मुझे है मFदरालय के आँगन पर,

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मेरे दाद परदाद के हाथ Lबक थी मधश


ु ाला।

बहुत के Tसर चार Fदन तक चढ़कर उतर गई हाला,


बहुत के हाथ म: दो Fदन छलक झलक र$ता )याला,
पर बढ़ती तासीर सरु ा क साथ समय के, इससे ह$
और परु ानी होकर मेर$ और नशील$ मधश
ु ाला।

पl पp म: पुl उठाना अVय4 न कर म: , पर )याला


बैठ कह$ं पर जाना, गंगा सागर म: भरकर हाला
+कसी जगह क Tमटट$ भीगे, त5ृ t मुझे Tमल जाएगी
तप4ण अप4ण करना मुझको, पढ़ पढ़ कर के मधश ु ाला।

- ब
चन

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