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।अपने आप वचार कर क इसक ूतीित हो रह है , इसका अनुभव हो रहा है , और म वह हँू जो
इसका अनुभव कर रहा है ।अतः म इस अनुभव से अलग हँू । म अनुभव करने वाला हँू । जस चीज
का अनुभव हो रहा है , वह म नह हँू ।
भगवान ् ौी शंकराचाय जब ब चे ह थे , अभी गु के पास पढ़ रहे थे , तब िभ ा लेने के िलए कसी
कु टया म गये । वधवा ॄा णी थी उसने दे खा क अ य त तेजःवी बालक िभ ा लेने के िलए
आया हआ
ु है , पर तु उसके घर म कुछ नह था । बड़ गर ब थी । फर भी यथा स भव उसने
अपनी मट कय म जाकर दे खा ले कन कह कुछ िमला नह । बड़ दःखी
ु हो कर आई और कहने
लगी क " म दे ना तो चाहती हँू ले कन भगवान ् ने मुझे इस लायक नह बनाया क म तु हे कुछ दे
सकूँ ।" आचाय शंकर ने कहा " िभतर दे खो , कुछ न कुछ िमल ह जायेगा , जा करके ढँू ढो । अपने
ु
उपर व ास करो , कुछ न कुछ िमलेगा ह ।" वह गई तो उसे एक सुखे आँवले का टकरा िमला
जसे वह लेकर के आ गई । आचाय शंकर ने उसको बड़े ूेम से खाया और साथ ह भगवती लआमी
जी से ूाथना क । उनका िच सवथा परमे र को सम पत था । लआमी जी तुर त ूकट हो गई ।
कहने लगी " तु हार या इ छा है ? " आचायपा बोले " इस वधवा का दय इतना अ छा है
और इसके घर म कुछ नह है , यह तो ठ क नह ।" लआमी जी कहने लगी " इसके कम ह ऐसे ह ,
म या क ँ । " आचायपा ने कहा " कम पछले जो भी रह हो , अभी तो इसने मुझे आँवले का
ु
टकड़ा दया है । म कौन हँू यह आप जानती ह ह । अिततीो पु य या पाप तीन ण म भी फल दे ने
यो य हो जाता है यह शा म म बताया है । अतः ौ ापूवक मुझे आँवला दे ने का जो फल होवे ,
वह इसको िमल जाये । " नतीजा यह हआ
ु क लआमी जी ने उसके घड़ के अ दर सोने के अस फय
को भर दया , सोने के आँवल को भर दया । यह है आ म व ास । इसने मुझे यह दया है ,
इसका भाव शु है . इसक मुझको मदद करनी चा हए । यह व ास हो तो आदमी बैठ जाता है -
अगर इसका ूार इतना फूटा है तो म या कर सकता हँू ? यह आ म व ास क कमी है ।
महा माओ मे एक कथा ूिस है । कसी भ को नारद जी ने कहा " तुमको कुछ चा हए तो मांग
लो ।" उसने नारद जी से कह दया " मेर स तित नह है , स तित हो जाये । " नारद जी ने जाकर
भगवान से पूछा । भगवान ने कह दया " उसे सात ज म म भी स तित न होगी ।" नारद ने
आकर कह दया क " सात ज म म भी तु हार स तित न होगी ।" भ था इस िलए संतोष
करके रह गया । थोड़े दन म वहाँ से एक परमहं स महा मा िनकले । उनसे भी ऐसे ह बात हई
ु ।
उसने कहा " महाराज कुछ िमलना तो है नह ।" म मांग कर या क ँ ।" महा मा बोले , " नह ,
मांगो तो सह ।" भ ने कहा क नारद जी कह के गये ह क मुझे सात ज म म भी ब चे नह होने
है । ब चे क ह कमी है , और कोई कभी नह है । " महा मा ने कहा जा तेरे सात ब चे इसी ज म
म हो जायगे । " महा मा चले गये । धीरे - धीरे सात ब चे उ प न हो गये । नारद जी को इस बात
का पता चला तो वे बड़े नाराज हए
ु और भगवान ् से कहने लगे " आपने मुझे गलत य बतलाया ?
" भगवान ने उ र दया " तुमने तो यह पुछा था क इसके ूार म या है । महा मा ने तो ूार
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नह पुछा वर दे आये । तू भी य द दे आया होता तो तेर बात मुझे रखनी पड़ती । " इसी ूकार
आचाय शंकर ने उसी समय उसको दे दया । उनको ढ आ म व ास है क " म दँ ग
ू ा , तो िमलेगा
कैसे नह ? " साथ म यह भी बताया क जहाँ तक स भव हो सके य द कसी को आिथक
आवँयकता है तो उसके सामने यह न सुनाने लग जाये क अरे धन तो दःख
ू का कारण है । काहे के
िलए धन चाहता है ।उसक आवँयकता पूित करने के बाद फर उसको उपदे श द । यह है आ म
व ास ।
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अप र छ न श वकिसत हो जायेगी यानी आ म- श वकिसत हो जायेगी । इसके िलय
भगवान ौी शंकराचाय जी ने साधना का एक बम बनाया । बड़ा ह वै ािनक बम है ।
सबसे पहली साधना उ होने रखी " ववेक " । ववेक का मतलब है क या चीज स य है या
अस य है , या िन य है या अिन य है , या कत य है या अकत य है - मेरे नारायण । य
अलग - अलग कर समझगे । ू येक चीज म अपनी बु का ूयोग करगे , समझने का ूय
करगे । कसी चीज को िलखा है , केवल इतने माऽ से न मान । आचायपा शंकर से बड़ा कोई
वचारक नह हआ
ु और उनसे बड़ा कोई शा को सवथा ःवीकार करने वाला भी नह हआ
ु । वे
कहते है क म इसिलए वेद क ौुित को ःवीकार करता हँू , यो क वह सवथा यु संगत है ।
आचाय शंकर के एक िशंय " आचाय प पाद "ने कहा है क य द उनके म थ को दे ख तो
अनुमानतः म थ म आधा यु योग है और आधा शा का ूमाण है । जतना शा का ूमाण
दया है , उतनी ह उनको पु करने वाली यु याँ ह । जस ूकार से जब हम कहते ह क ' युटन '
या ' आइ साटाइन ' ने इस िस ा त को बतलाया तो हम आँख ब द करके नह मान रहे ह । उसका
ूयोग करके दे खने पर वह स य िस होता है , इसिलए मान रहे ह । आचाय शंकर कहते ह क
इसी ूकार " ौुित " क बात हम इसिलए मानते ह य क वह अनुभव और यु क कसौट पर
खर उतरती है । इसिलए नह मानते ह क वहाँ कुछ कह दया गया है , आचाय शंकर एक जगह
भांय म िलखते हए
ु वे कहते ह - " सैकड़ो वेद भी अगर कह द क आग ठ ड होती है तो आग ठ ड
नह हो सकती । " शा तो मेरे नारायण ापक है । हमको बतलाना है क स ची बात यह है और
उसको ूयोग एवं यु से िस करके जीवन म लाना है । अतः पहला साधन उ ह ने बतलाया - "
ववेक बु पूव वचार " । जब बु पूवक वचार हमारा ढ हो जाय और समझ ल क गलत या है
, तब अगला सोपान है , मेरे नारायण । " वैरा य " । ने कहा है क य द उनके म थ को दे ख तो
अनुमानतः म थ म आधा यु योग है और आधा शा का ूमाण है । जतना शा का ूमाण
दया है , उतनी ह उनको पु करने वाली यु याँ ह । जस ूकार से जब हम कहते ह क ' युटन '
या ' आइ साटाइन ' ने इस िस ा त को बतलाया तो हम आँख ब द करके नह मान रहे ह । उसका
ूयोग करके दे खने पर वह स य िस होता है , इसिलए मान रहे ह । आचाय शंकर कहते ह क
इसी ूकार " ौुित " क बात हम इसिलए मानते ह य क वह अनुभव और यु क कसौट पर
खर उतरती है । इसिलए नह मानते ह क वहाँ कुछ कह दया गया है , आचाय शंकर एक जगह
भांय म िलखते हए
ु वे कहते ह - " सैकड़ो वेद भी अगर कह द क आग ठ ड होती है तो आग ठ ड
नह हो सकती । " शा तो मेरे नारायण ापक है । हमको बतलाना है क स ची बात यह है और
उसको ूयोग एवं यु से िस करके जीवन म लाना है । अतः पहला साधन उ ह ने बतलाया - "
ववेक बु पूव वचार " । जब बु पूवक वचार हमारा ढ हो जाय और समझ ल क गलत या है
, तब अगला सोपान है , मेरे नारायण । " वैरा य " । गलत चीज को गलत समझते ह छोड़ने का
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साम य अपने अ दर पैदा होना चा हए । अभी बहत
ु सी बात म अकेले म हम कहते ह , " हाँ है तो
यह गलत , ले कन र ित - रवाज चला आया है , मान लेना चा हए , या हज है ? " कई वषय म
हम कसी बहाने से उसे ःवीकारते चलते ह जसे मानते गलत ह । जस चीज को हम स य मान ,
उसके उपर ःथर रहने का साहस होना चा हए । हो सकता है क हमने जो चीज समझी है , वह
गलत है पर तु जब तक हम उसको ठ क समझ रहे ह तब तो हम उसके उपर ःथर रहना पड़े गा ।
जस चीज को गलत समझा , उसको छोड़ने का साहस , यह दसरा
ू साधन " वैरा य " है ।
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महादे व ःथत है । मेरे नारायण । जैसे - जैसे हम अपने " य भाव " को छोड़कर " सम भाव "
क तरफ जायेग , वैसे - वैसे यह श वकिसत होती जायेगी और इस श के वकास से ह दे श ,
रा , धम सभी का उ ार स भव है ।