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गोःवामी तुलसीदास
िवरिचत
रामचिरतमानस
बालकाण्ड
Sant Tulsidas’s
Rāmcharitmānas
Bāl Kānd
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रामचिरतमानस - 2- बालकांड
RAMCHARITMANAS: AN INTRODUCTION
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रामचिरतमानस - 3- बालकांड
ौीगणेशाय नमः
बालकाण्ड
ोक
वणानामथसंघानां रसानां छन्दसामिप ।
म गलानां च क ारौ वन्दे वाणीिवनायकौ ॥१॥
भवानीश करौ वन्दे ौ ािव ास िपणौ ।
या यां िवना न पँय न्त िस ाःःवान्तःःथमी रम ् ॥२॥
वन्दे बोधमयं िन यं गु ं श कर िपणम ् ।
यमािौतो िह वबोऽिप चन्िः सवऽ वन् ते ॥३॥
सीताराम गुणमाम पुण्यारण्य िवहािरणौ ।
वन्दे िवशु िव ानौ कबी र कपी रौ ॥४॥
उ व ःथितसंहारकािरणीं लेशहािरणीम ् ।
सवौेयःकर ं सीतां नतोऽहं रामव लभाम ् ॥५॥
यन्मायावशवित िव म खलं ॄ ािददे वासुरा
य स वादमृषैव भाित सकलं र जौ यथाहे ॅमः ।
य पाद लवमेकमेव िह भवा भोधे ःततीषावतां
वन्दे ऽहं तमशेषकारणपरं रामा यमीशं हिरम ् ॥६॥
नानापुराण िनगमागम स मतं य
रामायणे िनगिदतं विचदन्यतोऽिप ।
ःवान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
भाषा िनबन्धमितम जुलमातनोित ॥७॥
सोरठा
जो सुिमरत िसिध होइ गन नायक किरबर बदन ।
करउ अनुमह सोइ बुि रािस सुभ गुन सदन ॥१॥
मूक होइ बाचाल पंगु चढइ िगिरबर गहन ।
जासु कृ पाँ सो दयाल िवउ सकल किल मल दहन ॥२॥
नील सरो ह ःयाम त न अ न बािरज नयन ।
करउ सो मम उर धाम सदा छ रसागर सयन ॥३॥
कुंद इं द ु सम दे ह उमा रमन क ना अयन ।
जािह दन पर नेह करउ कृ पा मदन मयन ॥४॥
बंदउ गु पद कंज कृ पा िसंधु नर प हिर ।
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रामचिरतमानस - 4- बालकांड
बंदउ गु पद पदम
ु परागा । सु िच सुबास सरस अनुरागा ॥
अिमय मूिरमय चूरन चा । समन सकल भव ज पिरवा ॥१॥
सुकृित संभु तन िबमल िबभूती । मंजुल मंगल मोद ूसूती ॥
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी । िकएँ ितलक गुन गन बस करनी ॥२॥
ौीगुर पद नख मिन गन जोती । सुिमरत िद य ििृ िहयँ होती ॥
दलन मोह तम सो सूकासू । बड़े भाग उर आवइ जासू ॥३॥
उघरिहं िबमल िबलोचन ह के । िमटिहं दोष दख
ु भव रजनी के ॥
सूझिहं राम चिरत मिन मािनक । गुपुत ूगट जहँ जो जेिह खािनक ॥४॥
दोहरा
जथा सुअंजन अं ज ग साधक िस सुजान ।
कौतुक दे खत सैल बन भूतल भूिर िनधान ॥१॥
दोहरा
सुिन समुझिहं जन मुिदत मन म जिहं अित अनुराग ।
लहिहं चािर फल अछत तनु साधु समाज ूयाग ॥२॥
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रामचिरतमानस - 5- बालकांड
दोहरा
बंदउँ संत समान िचत िहत अनिहत निहं कोइ ।
अंजिल गत सुभ सुमन जिम सम सुगंध कर दोइ ॥३(क)॥
संत सरल िचत जगत िहत जािन सुभाउ सनेहु ।
बालिबनय सुिन किर कृ पा राम चरन रित दे हु ॥३(ख)॥
बहिर
ु बंिद खल गन सितभाएँ । जे िबनु काज दािहनेहु बाएँ ॥
पर िहत हािन लाभ जन्ह केर । उजर हरष िबषाद बसेर ॥१॥
हिर हर जस राकेस राहु से । पर अकाज भट सहसबाहु से ॥
जे पर दोष लखिहं सहसाखी । पर िहत घृत जन्ह के मन माखी ॥२॥
तेज कृ सानु रोष मिहषेसा । अघ अवगुन धन धनी धनेसा ॥
उदय केत सम िहत सबह के । कुंभकरन सम सोवत नीके ॥३॥
पर अकाजु लिग तनु पिरहरह ं । जिम िहम उपल कृ षी दिल गरह ं ॥
बंदउँ खल जस सेष सरोषा । सहस बदन बरनइ पर दोषा ॥४॥
पुिन ूनवउँ पृथुराज समाना । पर अघ सुनइ सहस दस काना ॥
बहिर
ु सब सम िबनवउँ तेह । संतत सुरानीक िहत जेह ॥५॥
बचन बळ जेिह सदा िपआरा । सहस नयन पर दोष िनहारा ॥६॥
दोहरा
उदासीन अिर मीत िहत सुनत जरिहं खल र ित ।
जािन पािन जुग जोिर जन िबनती करइ सूीित ॥४॥
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रामचिरतमानस - 6- बालकांड
दोहरा
भलो भलाइिह पै लहइ लहइ िनचाइिह नीचु ।
सुधा सरािहअ अमरताँ गरल सरािहअ मीचु ॥५॥
दोहरा
जड़ चेतन गुन दोषमय िबःव क न्ह करतार ।
संत हं स गुन गहिहं पय पिरहिर बािर िबकार ॥६॥
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रामचिरतमानस - 7- बालकांड
दोहरा
मह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग ।
होिह कुबःतु सुबःतु जग लखिहं सुल छन लोग ॥७(क)॥
सम ूकास तम पाख दहँु ु नाम भेद िबिध क न्ह ।
सिस सोषक पोषक समु झ जग जस अपजस द न्ह ॥७(ख)॥
जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जािन ।
बंदउँ सब के पद कमल सदा जोिर जुग पािन ॥७(ग)॥
दे व दनुज नर नाग खग ूेत िपतर गंधब ।
बंदउँ िकंनर रजिनचर कृ पा करहु अब सब ॥७(घ)॥
दोहरा
भाग छोट अिभलाषु बड़ करउँ एक िबःवास ।
पैहिहं सुख सुिन सुजन सब खल करहिहं उपहास ॥८॥
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रामचिरतमानस - 8- बालकांड
दोहरा
भिनित मोिर सब गुन रिहत िबःव िबिदत गुन एक ।
सो िबचािर सुिनहिहं सुमित जन्ह क िबमल िबवेक ॥९॥
एिह महँ रघुपित नाम उदारा । अित पावन पुरान ौुित सारा ॥
मंगल भवन अमंगल हार । उमा सिहत जेिह जपत पुरार ॥१॥
भिनित िबिचऽ सुकिब कृ त जोऊ । राम नाम िबनु सोह न सोऊ ॥
िबधुबदनी सब भाँित सँवार । सोन न बसन िबना बर नार ॥२॥
सब गुन रिहत कुकिब कृ त बानी । राम नाम जस अंिकत जानी ॥
सादर कहिहं सुनिहं बुध ताह । मधुकर सिरस संत गुनमाह ॥३॥
जदिप किबत रस एकउ नाह । राम ूताप ूकट एिह माह ं ॥
सोइ भरोस मोर मन आवा । केिहं न सुसंग बड पनु पावा ॥४॥
धूमउ तजइ सहज क आई । अग ूसंग सुगंध बसाई ॥
भिनित भदे स बःतु भिल बरनी । राम कथा जग मंगल करनी ॥५॥
छं द
मंगल करिन किल मल हरिन तुलसी कथा रघुनाथ क ॥
गित कूर किबता सिरत क य सिरत पावन पाथ क ॥
ूभु सुजस संगित भिनित भिल होइिह सुजन मन भावनी ॥
भव अंग भूित मसान क सुिमरत सुहाविन पावनी ॥
दोहरा
िूय लािगिह अित सबिह मम भिनित राम जस संग ।
दा िबचा िक करइ कोउ बंिदअ मलय ूसंग ॥१०(क)॥
ःयाम सुरिभ पय िबसद अित गुनद करिहं सब पान ।
िगरा मा य िसय राम जस गाविहं सुनिहं सुजान ॥१०(ख)॥
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रामचिरतमानस - 9- बालकांड
मिन मािनक मुकुता छिब जैसी । अिह िगिर गज िसर सोह न तैसी ॥
नृप िकर ट त नी तनु पाई । लहिहं सकल सोभा अिधकाई ॥१॥
तैसेिहं सुकिब किबत बुध कहह ं । उपजिहं अनत अनत छिब लहह ं ॥
भगित हे तु िबिध भवन िबहाई । सुिमरत सारद आवित धाई ॥२॥
राम चिरत सर िबनु अन्हवाएँ । सो ौम जाइ न कोिट उपाएँ ॥
किब कोिबद अस हृदयँ िबचार । गाविहं हिर जस किल मल हार ॥३॥
क न्ह ूाकृ त जन गुन गाना । िसर धुिन िगरा लगत पिछताना ॥
हृदय िसंधु मित सीप समाना । ःवाित सारदा कहिहं सुजाना ॥४॥
ज बरषइ बर बािर िबचा । होिहं किबत मुकुतामिन चा ॥५॥
दोहरा
जुगुित बेिध पुिन पोिहअिहं रामचिरत बर ताग ।
पिहरिहं स जन िबमल उर सोभा अित अनुराग ॥११॥
दोहरा
सारद सेस महे स िबिध आगम िनगम पुरान ।
नेित नेित किह जासु गुन करिहं िनरं तर गान ॥१२॥
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रामचिरतमानस - 10 - बालकांड
दोहरा
अित अपार जे सिरत बर ज नृप सेतु करािहं ।
चिढ िपपीिलकउ परम लघु िबनु ौम पारिह जािहं ॥१३॥
दोहरा
सरल किबत क रित िबमल सोइ आदरिहं सुजान ।
सहज बयर िबसराइ िरपु जो सुिन करिहं बखान ॥१४(क)॥
सो न होइ िबनु िबमल मित मोिह मित बल अित थोर ।
करहु कृ पा हिर जस कहउँ पुिन पुिन करउँ िनहोर ॥१४(ख)॥
किब कोिबद रघुबर चिरत मानस मंजु मराल ।
बाल िबनय सुिन सु िच लख मोपर होहु कृ पाल ॥१४(ग)॥
सोरठा
बंदउँ मुिन पद कंजु रामायन जेिहं िनरमयउ ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रिहत दषन
ू सिहत ॥१४(घ)॥
बंदउँ चािरउ बेद भव बािरिध बोिहत सिरस ।
जन्हिह न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर िबसद जसु ॥१४(ङ)॥
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रामचिरतमानस - 11 - बालकांड
दोहरा
िबबुध िबू बुध मह चरन बंिद कहउँ कर जोिर ।
होइ ूसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोिर ॥१४(छ)॥
दोहरा
सपनेहुँ साचेहुँ मोिह पर ज हर गौिर पसाउ ।
तौ फुर होउ जो कहे उँ सब भाषा भिनित ूभाउ ॥१५॥
बंदउँ अवध पुर अित पाविन । सरजू सिर किल कलुष नसाविन ॥
ूनवउँ पुर नर नािर बहोर । ममता जन्ह पर ूभुिह न थोर ॥१॥
िसय िनंदक अघ ओघ नसाए । लोक िबसोक बनाइ बसाए ॥
बंदउँ कौस या िदिस ूाची । क रित जासु सकल जग माची ॥२॥
ूगटे उ जहँ रघुपित सिस चा । िबःव सुखद खल कमल तुसा ॥
दसरथ राउ सिहत सब रानी । सुकृत सुमंगल मूरित मानी ॥३॥
करउँ ूनाम करम मन बानी । करहु कृ पा सुत सेवक जानी ॥
जन्हिह िबरिच बड़ भयउ िबधाता । मिहमा अविध राम िपतु माता ॥४॥
सोरठा
बंदउँ अवध भुआल स य ूेम जेिह राम पद ।
िबछुरत द नदयाल िूय तनु तृन इव पिरहरे उ ॥१६॥
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रामचिरतमानस - 12 - बालकांड
सोरठा
ूनवउँ पवनकुमार खल बन पावक यानधन ।
जासु हृदय आगार बसिहं राम सर चाप धर ॥१७॥
दोहरा
िगरा अरथ जल बीिच सम किहअत िभन्न न िभन्न ।
बदउँ सीता राम पद जन्हिह परम िूय खन्न ॥१८॥
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रामचिरतमानस - 13 - बालकांड
दोहरा
बरषा िरतु रघुपित भगित तुलसी सािल सुदास ॥
राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास ॥१९॥
दोहरा
एकु छऽु एकु मुकुटमिन सब बरनिन पर जोउ ।
तुलसी रघुबर नाम के बरन िबराजत दोउ ॥२०॥
दोहरा
राम नाम मिनद प ध जीह दे हर ार ।
तुलसी भीतर बाहे रहँु ज चाहिस उ जआर ॥२१॥
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रामचिरतमानस - 14 - बालकांड
दोहरा
सकल कामना हन जे राम भगित रस लीन ।
नाम सुूेम िपयूष हद ितन्हहँु िकए मन मीन ॥२२॥
दोहरा
िनरगुन त एिह भाँित बड़ नाम ूभाउ अपार ।
कहउँ नामु बड़ राम त िनज िबचार अनुसार ॥२३॥
राम भगत िहत नर तनु धार । सिह संकट िकए साधु सुखार ॥
नामु सूेम जपत अनयासा । भगत होिहं मुद मंगल बासा ॥१॥
राम एक तापस ितय तार । नाम कोिट खल कुमित सुधार ॥
िरिष िहत राम सुकेतुसुता क । सिहत सेन सुत क न्ह िबबाक ॥२॥
सिहत दोष दख
ु दास दरासा
ु । दलइ नामु जिम रिब िनिस नासा ॥
भंजेउ राम आपु भव चापू । भव भय भंजन नाम ूतापू ॥३॥
दं डक बनु ूभु क न्ह सुहावन । जन मन अिमत नाम िकए पावन ॥ ।
िनिसचर िनकर दले रघुनंदन । नामु सकल किल कलुष िनकंदन ॥४॥
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रामचिरतमानस - 15 - बालकांड
दोहरा
सबर गीध सुसेवकिन सुगित द न्ह रघुनाथ ।
नाम उधारे अिमत खल बेद िबिदत गुन गाथ ॥२४॥
दोहरा
ॄ राम त नामु बड़ बर दायक बर दािन ।
रामचिरत सत कोिट महँ िलय महे स जयँ जािन ॥२५॥
दोहरा
नामु राम को कलपत किल क यान िनवासु ।
जो सुिमरत भयो भाँग त तुलसी तुलसीदासु ॥२६॥
चहँु जुग तीिन काल ितहँु लोका । भए नाम जिप जीव िबसोका ॥
बेद पुरान संत मत एहू । सकल सुकृत फल राम सनेहू ॥१॥
यानु ूथम जुग मखिबिध दज
ू । ापर पिरतोषत ूभु पूज ॥
किल केवल मल मूल मलीना । पाप पयोिनिध जन जन मीना ॥२॥
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रामचिरतमानस - 16 - बालकांड
दोहरा
राम नाम नरकेसर कनककिसपु किलकाल ।
जापक जन ूहलाद जिम पािलिह दिल सुरसाल ॥२७॥
दोहरा
सठ सेवक क ूीित िच र खहिहं राम कृ पालु ।
उपल िकए जलजान जेिहं सिचव सुमित किप भालु ॥२८(क)॥
हौहु कहावत सबु कहत राम सहत उपहास ।
सािहब सीतानाथ सो सेवक तुलसीदास ॥२८(ख)॥
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रामचिरतमानस - 17 - बालकांड
दोहरा
ूभु त तर किप डार पर ते िकए आपु समान ॥
तुलसी कहँू न राम से सािहब सीलिनधान ॥२९(क)॥
राम िनका रावर है सबह को नीक ।
ज यह साँची है सदा तौ नीको तुलसीक ॥२९(ख)॥
एिह िबिध िनज गुन दोष किह सबिह बहिर
ु िस नाइ ।
बरनउँ रघुबर िबसद जसु सुिन किल कलुष नसाइ ॥२९(ग)॥
दोहरा
मै पुिन िनज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत ।
समुझी निह तिस बालपन तब अित रहे उँ अचेत ॥३०(क)॥
ौोता बकता यानिनिध कथा राम कै गूढ़ ।
िकिम समुझ मै जीव जड़ किल मल मिसत िबमूढ़ ॥३०(ख)
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रामचिरतमानस - 18 - बालकांड
दोहरा
राम कथा मंदािकनी िचऽकूट िचत चा ।
तुलसी सुभग सनेह बन िसय रघुबीर िबहा ॥३१॥
दोहरा
कुपथ कुतरक कुचािल किल कपट दं भ पाषंड ।
दहन राम गुन माम जिम इं धन अनल ूचंड ॥३२(क)॥
रामचिरत राकेस कर सिरस सुखद सब काहु ।
स जन कुमुद चकोर िचत िहत िबसेिष बड़ लाहु ॥३२(ख)॥
क न्ह ूःन जेिह भाँित भवानी । जेिह िबिध संकर कहा बखानी ॥
सो सब हे तु कहब म गाई । कथाूबंध िबिचऽ बनाई ॥१॥
जेिह यह कथा सुनी निहं होई । जिन आचरजु कर सुिन सोई ॥
कथा अलौिकक सुनिहं जे यानी । निहं आचरजु करिहं अस जानी ॥२ ॥
रामकथा कै िमित जग नाह ं । अिस ूतीित ितन्ह के मन माह ं ॥
नाना भाँित राम अवतारा । रामायन सत कोिट अपारा ॥३॥
कलपभेद हिरचिरत सुहाए । भाँित अनेक मुनीसन्ह गाए ॥
किरअ न संसय अस उर आनी । सुिनअ कथा सारद रित मानी ॥४॥
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रामचिरतमानस - 19 - बालकांड
दोहरा
राम अनंत अनंत गुन अिमत कथा िबःतार ।
सुिन आचरजु न मािनहिहं जन्ह क िबमल िबचार ॥३३॥
एिह िबिध सब संसय किर दरू । िसर धिर गुर पद पंकज धूर ॥
पुिन सबह िबनवउँ कर जोर । करत कथा जेिहं लाग न खोर ॥१॥
सादर िसविह नाइ अब माथा । बरनउँ िबसद राम गुन गाथा ॥
संबत सोरह सै एकतीसा । करउँ कथा हिर पद धिर सीसा ॥२॥
नौमी भौम बार मधु मासा । अवधपुर ं यह चिरत ूकासा ॥
जेिह िदन राम जनम ौुित गाविहं । तीरथ सकल तहाँ चिल आविहं ॥३॥
असुर नाग खग नर मुिन दे वा । आइ करिहं रघुनायक सेवा ॥
जन्म महो सव रचिहं सुजाना । करिहं राम कल क रित गाना ॥४॥
दोहरा
म जिह स जन बृंद बहु पावन सरजू नीर ।
जपिहं राम धिर यान उर सुंदर ःयाम सर र ॥३४॥
दोहरा
जस मानस जेिह िबिध भयउ जग ूचार जेिह हे तु ।
अब सोइ कहउँ ूसंग सब सुिमिर उमा बृषकेतु ॥३५॥
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रामचिरतमानस - 20 - बालकांड
दोहरा
सुिठ सुंदर संबाद बर िबरचे बुि िबचािर ।
तेइ एिह पावन सुभग सर घाट मनोहर चािर ॥३६॥
दोहरा
पुलक बािटका बाग बन सुख सुिबहं ग िबहा ।
माली सुमन सनेह जल सींचत लोचन चा ॥३७॥
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रामचिरतमानस - 21 - बालकांड
दोहरा
जे ौ ा संबल रिहत निह संतन्ह कर साथ ।
ितन्ह कहँु मानस अगम अित जन्हिह न िूय रघुनाथ ॥३८॥
दोहरा
ौोता िऽिबध समाज पुर माम नगर दहँु ु कूल ।
संतसभा अनुपम अवध सकल सुमंगल मूल ॥३९॥
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रामचिरतमानस - 22 - बालकांड
दोहरा
बालचिरत चहु बंधु के बनज िबपुल बहरंु ग ।
नृप रानी पिरजन सुकृत मधुकर बािरिबहं ग ॥४०॥
दोहरा
समन अिमत उतपात सब भरतचिरत जपजाग ।
किल अघ खल अवगुन कथन ते जलमल बग काग ॥४१॥
दोहरा
अवलोकिन बोलिन िमलिन ूीित परसपर हास ।
भायप भिल चहु बंधु क जल माधुर सुबास ॥४२॥
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रामचिरतमानस - 23 - बालकांड
दोहरा
मित अनुहािर सुबािर गुन गिन मन अन्हवाइ ।
सुिमिर भवानी संकरिह कह किब कथा सुहाइ ॥४३(क)॥
अब रघुपित पद पंक ह िहयँ धिर पाइ ूसाद ।
कहउँ जुगल मुिनबज कर िमलन सुभग संबाद ॥४३(ख)॥
दोहरा
ॄ िन पम धरम िबिध बरनिहं त व िबभाग ।
कहिहं भगित भगवंत कै संजुत यान िबराग ॥४४॥
एिह ूकार भिर माघ नहाह ं । पुिन सब िनज िनज आौम जाह ं ॥
ूित संबत अित होइ अनंदा । मकर म ज गवनिहं मुिनबृंदा ॥१॥
एक बार भिर मकर नहाए । सब मुनीस आौमन्ह िसधाए ॥
जगबािलक मुिन परम िबबेक । भर दाज राखे पद टे क ॥२॥
सादर चरन सरोज पखारे । अित पुनीत आसन बैठारे ॥
किर पूजा मुिन सुजस बखानी । बोले अित पुनीत मृद ु बानी ॥३॥
नाथ एक संसउ बड़ मोर । करगत बेदत व सबु तोर ॥
कहत सो मोिह लागत भय लाजा । जौ न कहउँ बड़ होइ अकाजा ॥४॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 24 - बालकांड
दोहरा
ूभु सोइ राम िक अपर कोउ जािह जपत िऽपुरािर ।
स यधाम सब य तु ह कहहु िबबेकु िबचािर ॥४६॥
दोहरा
कहउँ सो मित अनुहािर अब उमा संभु संबाद ।
भयउ समय जेिह हे तु जेिह सुनु मुिन िमिटिह िबषाद ॥४७॥
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रामचिरतमानस - 25 - बालकांड
दोहरा
अदयँ िबचारत जात हर केिह िबिध दरसनु होइ ।
गु प अवतरे उ ूभु गएँ जान सबु कोइ ॥४८(क)॥
सोरठा
संकर उर अित छोभु सती न जानिहं मरमु सोइ ॥
तुलसी दरसन लोभु मन ड लोचन लालची ॥४८(ख)॥
दोहरा
अित िविचऽ रघुपित चिरत जानिहं परम सुजान ।
जे मितमंद िबमोह बस हृदयँ धरिहं कछु आन ॥४९॥
दोहरा
ॄ जो यापक िबरज अज अकल अनीह अभेद ।
सो िक दे ह धिर होइ नर जािह न जानत वेद ॥५०॥
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रामचिरतमानस - 26 - बालकांड
छं द
मुिन धीर जोगी िस संतत िबमल मन जेिह यावह ं ।
किह नेित िनगम पुरान आगम जासु क रित गावह ं ॥
सोइ रामु यापक ॄ भुवन िनकाय पित माया धनी ।
अवतरे उ अपने भगत िहत िनजतंऽ िनत रघुकुलमिन ॥
सोरठा
लाग न उर उपदे सु जदिप कहे उ िसवँ बार बहु ।
बोले िबहिस महे सु हिरमाया बलु जािन जयँ ॥५१॥
दोहरा
पुिन पुिन हृदयँ िवचा किर धिर सीता कर प ।
आग होइ चिल पंथ तेिह जेिहं आवत नरभूप ॥५२॥
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रामचिरतमानस - 27 - बालकांड
दोहरा
राम बचन मृद ु गूढ़ सुिन उपजा अित संकोचु ।
सती सभीत महे स पिहं चलीं हृदयँ बड़ सोचु ॥५३॥
दोहरा
सती िबधाऽी इं िदरा दे खीं अिमत अनूप ।
जेिहं जेिहं बेष अजािद सुर तेिह तेिह तन अनु प ॥५४॥
दोहरा
गई समीप महे स तब हँ िस पूछ कुसलात ।
लीन्ह पर छा कवन िबिध कहहु स य सब बात ॥५५॥
मासपारायण, दसरा
ू िवौाम
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रामचिरतमानस - 28 - बालकांड
दोहरा
परम पुनीत न जाइ तज िकएँ ूेम बड़ पापु ।
ूगिट न कहत महे सु कछु हृदयँ अिधक संतापु ॥५६॥
दोहरा
सतीं हृदय अनुमान िकय सबु जानेउ सब य ।
क न्ह कपटु म संभु सन नािर सहज जड़ अ य ॥५७॥
हृदयँ सोचु समुझत िनज करनी । िचंता अिमत जाइ निह बरनी ॥
कृ पािसंधु िसव परम अगाधा । ूगट न कहे उ मोर अपराधा ॥१॥
संकर ख अवलोिक भवानी । ूभु मोिह तजेउ हृदयँ अकुलानी ॥
िनज अघ समु झ न कछु किह जाई । तपइ अवाँ इव उर अिधकाई ॥२॥
सितिह ससोच जािन बृषकेतू । कह ं कथा सुंदर सुख हे तू ॥
बरनत पंथ िबिबध इितहासा । िबःवनाथ पहँु चे कैलासा ॥३॥
तहँ पुिन संभु समु झ पन आपन । बैठे बट तर किर कमलासन ॥
संकर सहज स प स हारा । लािग समािध अखंड अपारा ॥४॥
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रामचिरतमानस - 29 - बालकांड
दोहरा
सती बसिह कैलास तब अिधक सोचु मन मािहं ।
मरमु न कोऊ जान कछु जुग सम िदवस िसरािहं ॥५८॥
दोहरा
तौ सबदरसी सुिनअ ूभु करउ सो बेिग उपाइ ।
होइ मरनु जेह िबनिहं ौम दसह
ु िबपि िबहाइ ॥५९(क)॥
सोरठा
जलु पय सिरस िबकाइ दे खहु ूीित िक र ित भिल ।
िबलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुिन ॥५९(ख)॥
दोहरा
द छ िलए मुिन बोिल सब करन लगे बड़ जाग ।
नेवते सादर सकल सुर जे पावत मख भाग ॥६०॥
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रामचिरतमानस - 30 - बालकांड
दोहरा
िपता भवन उ सव परम ज ूभु आयसु होइ ।
तौ मै जाउँ कृ पायतन सादर दे खन सोइ ॥६१॥
दोहरा
किह दे खा हर जतन बहु रहइ न द छकुमािर ।
िदए मु य गन संग तब िबदा क न्ह िऽपुरािर ॥६२॥
दोहरा
िसव अपमानु न जाइ सिह हृदयँ न होइ ूबोध ।
सकल सभिह हिठ हटिक तब बोलीं बचन सबोध ॥६३॥
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रामचिरतमानस - 31 - बालकांड
दोहरा
सती मरनु सुिन संभु गन लगे करन मख खीस ।
ज य िबधंस िबलोिक भृगु र छा क न्ह मुनीस ॥६४॥
दोहरा
सदा सुमन फल सिहत सब िम
ु नव नाना जाित ।
ूगट ं सुंदर सैल पर मिन आकर बहु भाँित ॥६५॥
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रामचिरतमानस - 32 - बालकांड
दोहरा
िऽकाल य सब य तु ह गित सबऽ तु हािर ॥
कहहु सुता के दोष गुन मुिनबर हृदयँ िबचािर ॥६६॥
कह मुिन िबहिस गूढ़ मृद ु बानी । सुता तु हािर सकल गुन खानी ॥
सुंदर सहज सुसील सयानी । नाम उमा अंिबका भवानी ॥१॥
सब ल छन संपन्न कुमार । होइिह संतत िपयिह िपआर ॥
सदा अचल एिह कर अिहवाता । एिह त जसु पैहिहं िपतु माता ॥२॥
होइिह पू य सकल जग माह ं । एिह सेवत कछु दलभ
ु नाह ं ॥
एिह कर नामु सुिमिर संसारा । िऽय चढ़हिहँ पितॄत अिसधारा ॥३॥
सैल सुल छन सुता तु हार । सुनहु जे अब अवगुन दइु चार ॥
अगुन अमान मातु िपतु ह ना । उदासीन सब संसय छ ना ॥४॥
दोहरा
जोगी जिटल अकाम मन नगन अमंगल बेष ॥
अस ःवामी एिह कहँ िमिलिह पर हःत अिस रे ख ॥६७॥
दोहरा
कह मुनीस िहमवंत सुनु जो िबिध िलखा िललार ।
दे व दनुज नर नाग मुिन कोउ न मेटिनहार ॥६८॥
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रामचिरतमानस - 33 - बालकांड
ज अिह सेज सयन हिर करह ं । बुध कछु ितन्ह कर दोषु न धरह ं ॥
भानु कृ सानु सब रस खाह ं । ितन्ह कहँ मंद कहत कोउ नाह ं ॥३॥
सुभ अ असुभ सिलल सब बहई । सुरसिर कोउ अपुनीत न कहई ॥
समरथ कहँु निहं दोषु गोसाई । रिब पावक सुरसिर क नाई ॥४॥
दोहरा
ज अस िहिसषा करिहं नर जिड़ िबबेक अिभमान ।
परिहं कलप भिर नरक महँु जीव िक ईस समान ॥६९॥
दोहरा
अस किह नारद सुिमिर हिर िगिरजिह द न्ह असीस ।
होइिह यह क यान अब संसय तजहु िगर स ॥७०॥
दोहरा
िूया सोचु पिरहरहु सबु सुिमरहु ौीभगवान ।
पारबितिह िनरमयउ जेिहं सोइ किरिह क यान ॥७१॥
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रामचिरतमानस - 34 - बालकांड
दोहरा
सुनिह मातु म दख अस सपन सुनावउँ तोिह ।
सुंदर गौर सुिबूबर अस उपदे सेउ मोिह ॥७२॥
दोहरा
बेदिसरा मुिन आइ तब सबिह कहा समुझाइ ॥
पारबती मिहमा सुनत रहे ूबोधिह पाइ ॥७३॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 35 - बालकांड
दोहरा
िचदानन्द सुखधाम िसव िबगत मोह मद काम ।
िबचरिहं मिह धिर हृदयँ हिर सकल लोक अिभराम ॥७५॥
कतहँु मुिनन्ह उपदे सिहं याना । कतहँु राम गुन करिहं बखाना ॥
जदिप अकाम तदिप भगवाना । भगत िबरह दख
ु द ु खत सुजाना ॥१॥
एिह िबिध गयउ कालु बहु बीती । िनत नै होइ राम पद ूीती ॥
नैमु ूेमु संकर कर दे खा । अिबचल हृदयँ भगित कै रे खा ॥२॥
ूगटै रामु कृ त य कृ पाला । प सील िनिध तेज िबसाला ॥
बहु ूकार संकरिह सराहा । तु ह िबनु अस ॄतु को िनरबाहा ॥३॥
बहिबिध
ु राम िसविह समुझावा । पारबती कर जन्मु सुनावा ॥
अित पुनीत िगिरजा कै करनी । िबःतर सिहत कृ पािनिध बरनी ॥४॥
दोहरा
अब िबनती मम सुनेहु िसव ज मो पर िनज नेहु ।
जाइ िबबाहहु सैलजिह यह मोिह माग दे हु ॥७६॥
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रामचिरतमानस - 36 - बालकांड
दोहरा
पारबती पिहं जाइ तु ह ूेम पिर छा लेहु ।
िगिरिह ूेिर पठएहु भवन दिर
ू करे हु संदेहु ॥७७॥
दोहरा
सुनत बचन िबहसे िरषय िगिरसंभव तब दे ह ।
नारद कर उपदे सु सुिन कहहु बसेउ िकसु गेह ॥७८॥
दोहरा
अब सुख सोवत सोचु निह भीख मािग भव खािहं ।
सहज एकािकन्ह के भवन कबहँु िक नािर खटािहं ॥७९॥
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रामचिरतमानस - 37 - बालकांड
दोहरा
महादे व अवगुन भवन िबंनु सकल गुन धाम ।
जेिह कर मनु रम जािह सन तेिह तेह सन काम ॥८०॥
दोहरा
तु ह माया भगवान िसव सकल जगत िपतु मातु ।
नाइ चरन िसर मुिन चले पुिन पुिन हरषत गातु ॥८१॥
दोहरा
सब सन कहा बुझाइ िबिध दनुज िनधन तब होइ ।
संभु सुब संभूत सुत एिह जीतइ रन सोइ ॥८२॥
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रामचिरतमानस - 38 - बालकांड
दोहरा
सुरन्ह कह ं िनज िबपित सब सुिन मन क न्ह िबचार ।
संभु िबरोध न कुसल मोिह िबहिस कहे उ अस मार ॥८३॥
छं द
भागेउ िबबेक सहाय सिहत सो सुभट संजुग मिह मुरे ।
सदमंथ पबत कंदर न्ह महँु जाइ तेिह अवसर दरेु ॥
होिनहार का करतार को रखवार जग खरभ परा ।
दइु माथ केिह रितनाथ जेिह कहँु कोिप कर धनु स धरा ॥
दोहरा
जे सजीव जग अचर चर नािर पु ष अस नाम ।
ते िनज िनज मरजाद तज भए सकल बस काम ॥८४॥
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रामचिरतमानस - 39 - बालकांड
छं द
भए कामबस जोगीस तापस पावँर न्ह क को कहै ।
दे खिहं चराचर नािरमय जे ॄ मय दे खत रहे ॥
अबला िबलोकिहं पु षमय जगु पु ष सब अबलामयं ।
दइु दं ड भिर ॄ ांड भीतर कामकृ त कौतुक अयं ॥
सोरठा
धर न काहँू िधर सबके मन मनिसज हरे ।
जे राखे रघुबीर ते उबरे तेिह काल महँु ॥८५॥
छं द
जागइ मनोभव मुएहँु मन बन सुभगता न परै कह ।
सीतल सुगंध सुमंद मा त मदन अनल सखा सह ॥
िबकसे सर न्ह बहु कंज गुंजत पुंज मंजुल मधुकरा ।
कलहं स िपक सुक सरस रव किर गान नाचिहं अपछरा ॥
दोहरा
सकल कला किर कोिट िबिध हारे उ सेन समेत ।
चली न अचल समािध िसव कोपेउ हृदयिनकेत ॥८६॥
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रामचिरतमानस - 40 - बालकांड
छं द
जोिग अकंटक भए पित गित सुनत रित मु िछत भई ।
रोदित बदित बहु भाँित क ना करित संकर पिहं गई ।
अित ूेम किर िबनती िबिबध िबिध जोिर कर सन्मुख रह ।
ूभु आसुतोष कृ पाल िसव अबला िनर ख बोले सह ॥
दोहरा
अब त रित तव नाथ कर होइिह नामु अनंगु ।
िबनु बपु यािपिह सबिह पुिन सुनु िनज िमलन ूसंगु ॥८७॥
जब जदबं
ु स कृ ंन अवतारा । होइिह हरन महा मिहभारा ॥
कृ ंन तनय होइिह पित तोरा । बचनु अन्यथा होइ न मोरा ॥१॥
रित गवनी सुिन संकर बानी । कथा अपर अब कहउँ बखानी ॥
दे वन्ह समाचार सब पाए । ॄ ािदक बैकुंठ िसधाए ॥२॥
सब सुर िबंनु िबरं िच समेता । गए जहाँ िसव कृ पािनकेता ॥
पृथक पृथक ितन्ह क न्ह ूसंसा । भए ूसन्न चंि अवतंसा ॥३॥
बोले कृ पािसंधु बृषकेतू । कहहु अमर आए केिह हे तू ॥
कह िबिध तु ह ूभु अंतरजामी । तदिप भगित बस िबनवउँ ःवामी ॥४॥
दोहरा
सकल सुरन्ह के हृदयँ अस संकर परम उछाहु ।
िनज नयन न्ह दे खा चहिहं नाथ तु हार िबबाहु ॥८८॥
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रामचिरतमानस - 41 - बालकांड
दोहरा
कहा हमार न सुनेहु तब नारद क उपदे स ।
अब भा झूठ तु हार पन जारे उ कामु महे स ॥८९॥
दोहरा
िहयँ हरषे मुिन बचन सुिन दे ख ूीित िबःवास ॥
चले भवािनिह नाइ िसर गए िहमाचल पास ॥९०॥
दोहरा
लगे सँवारन सकल सुर बाहन िबिबध िबमान ।
होिह सगुन मंगल सुभद करिहं अपछरा गान ॥९१॥
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रामचिरतमानस - 42 - बालकांड
दोहरा
िबंनु कहा अस िबहिस तब बोिल सकल िदिसराज ।
िबलग िबलग होइ चलहु सब िनज िनज सिहत समाज ॥९२॥
छं द
तन खीन कोउ अित पीन पावन कोउ अपावन गित धर ।
भूषन कराल कपाल कर सब स सोिनत तन भर ॥
खर ःवान सुअर सृकाल मुख गन बेष अगिनत को गनै ।
बहु जनस ूेत िपसाच जोिग जमात बरनत निहं बनै ॥
सोरठा
नाचिहं गाविहं गीत परम तरं गी भूत सब ।
दे खत अित िबपर त बोलिहं बचन िबिचऽ िबिध ॥९३॥
जस दलह
ू ु तिस बनी बराता । कौतुक िबिबध होिहं मग जाता ॥
इहाँ िहमाचल रचेउ िबताना । अित िबिचऽ निहं जाइ बखाना ॥१॥
सैल सकल जहँ लिग जग माह ं । लघु िबसाल निहं बरिन िसराह ं ॥
बन सागर सब नद ं तलावा । िहमिगिर सब कहँु नेवत पठावा ॥२॥
काम प सुंदर तन धार । सिहत समाज सिहत बर नार ॥
गए सकल तुिहनाचल गेहा । गाविहं मंगल सिहत सनेहा ॥३॥
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रामचिरतमानस - 43 - बालकांड
छं द
लघु लाग िबिध क िनपुनता अवलोिक पुर सोभा सह ।
बन बाग कूप तड़ाग सिरता सुभग सब सक को कह ॥
मंगल िबपुल तोरन पताका केतु गृह गृह सोहह ं ॥
बिनता पु ष सुंदर चतुर छिब दे ख मुिन मन मोहह ं ॥
दोहरा
जगदं बा जहँ अवतर सो पु बरिन िक जाइ ।
िरि िसि संपि सुख िनत नूतन अिधकाइ ॥९४॥
छं द
तन छार याल कपाल भूषन नगन जिटल भयंकरा ।
सँग भूत ूेत िपसाच जोिगिन िबकट मुख रजनीचरा ॥
जो जअत रिहिह बरात दे खत पुन्य बड़ तेिह कर सह ।
दे खिह सो उमा िबबाहु घर घर बात अिस लिरकन्ह कह ॥
दोहरा
समु झ महे स समाज सब जनिन जनक मुसुकािहं ।
बाल बुझाए िबिबध िबिध िनडर होहु ड नािहं ॥९५॥
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रामचिरतमानस - 44 - बालकांड
छं द
कस क न्ह ब बौराह िबिध जेिहं तु हिह सुंदरता दई ।
जो फलु चिहअ सुरत िहं सो बरबस बबूरिहं लागई ॥
तु ह सिहत िगिर त िगर पावक जर जलिनिध महँु पर ॥
घ जाउ अपजसु होउ जग जीवत िबबाहु न ह कर ॥
दोहरा
भई िबकल अबला सकल द ु खत दे ख िगिरनािर ।
किर िबलापु रोदित बदित सुता सनेहु सँभािर ॥९६॥
छं द
जिन लेहु मातु कलंकु क ना पिरहरहु अवसर नह ं ।
दखु
ु सुखु जो िलखा िललार हमर जाब जहँ पाउब तह ं ॥
सुिन उमा बचन िबनीत कोमल सकल अबला सोचह ं ॥
बहु भाँित िबिधिह लगाइ दषन
ू नयन बािर िबमोचह ं ॥
दोहरा
तेिह अवसर नारद सिहत अ िरिष स समेत ।
समाचार सुिन तुिहनिगिर गवने तुरत िनकेत ॥९७॥
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रामचिरतमानस - 45 - बालकांड
छं द
िसय बेषु सती जो क न्ह तेिह अपराध संकर पिरहर ं ।
हर िबरहँ जाइ बहोिर िपतु क ज य जोगानल जर ं ॥
अब जनिम तु हरे भवन िनज पित लािग दा न तपु िकया ।
अस जािन संसय तजहु िगिरजा सबदा संकर िूया ॥
दोहरा
सुिन नारद के बचन तब सब कर िमटा िबषाद ।
छन महँु यापेउ सकल पुर घर घर यह संबाद ॥९८॥
छं द
गार ं मधुर ःवर दे िहं सुंदिर िबं य बचन सुनावह ं ।
भोजनु करिहं सुर अित िबलंबु िबनोद ु सुिन सचु पावह ं ॥
जेवँत जो बकयो अनंद ु सो मुख कोिटहँू न परै क ो ।
अचवाँइ द न्हे पान गवने बास जहँ जाको र ो ॥
दोहरा
बहिर
ु मुिनन्ह िहमवंत कहँु लगन सुनाई आइ ।
समय िबलोिक िबबाह कर पठए दे व बोलाइ ॥९९॥
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रामचिरतमानस - 46 - बालकांड
छं द
कोिटहँु बदन निहं बनै बरनत जग जनिन सोभा महा ।
सकुचिहं कहत ौुित सेष सारद मंदमित तुलसी कहा ॥
छिबखािन मातु भवािन गवनी म य मंडप िसव जहाँ ॥
अवलोिक सकिहं न सकुच पित पद कमल मनु मधुक तहाँ ॥
दोहरा
मुिन अनुसासन गनपितिह पूजेउ संभु भवािन ।
कोउ सुिन संसय करै जिन सुर अनािद जयँ जािन ॥१००॥
छं द
दाइज िदयो बहु भाँित पुिन कर जोिर िहमभूधर क ो ।
का दे उँ पूरनकाम संकर चरन पंकज गिह र ो ॥
िसवँ कृ पासागर ससुर कर संतोषु सब भाँितिहं िकयो ।
पुिन गहे पद पाथोज मयनाँ ूेम पिरपूरन िहयो ॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 47 - बालकांड
छं द
जनिनिह बहिर
ु िमिल चली उिचत असीस सब काहँू द ।
िफिर िफिर िबलोकित मातु तन तब सखीं लै िसव पिहं गई ॥
जाचक सकल संतोिष संक उमा सिहत भवन चले ।
सब अमर हरषे सुमन बरिष िनसान नभ बाजे भले ॥
दोहरा
चले संग िहमवंतु तब पहँु चावन अित हे तु ।
िबिबध भाँित पिरतोषु किर िबदा क न्ह बृषकेतु ॥१०२॥
छं द
जगु जान षन्मुख जन्मु कमु ूतापु पु षारथु महा ।
तेिह हे तु म बृषकेतु सुत कर चिरत संछेपिहं कहा ॥
यह उमा संगु िबबाहु जे नर नािर कहिहं जे गावह ं ।
क यान काज िबबाह मंगल सबदा सुखु पावह ं ॥
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रामचिरतमानस - 48 - बालकांड
दोहरा
चिरत िसंधु िगिरजा रमन बेद न पाविहं पा ।
बरनै तुलसीदासु िकिम अित मितमंद गवाँ ॥१०३॥
दोहरा
ूथमिहं मै किह िसव चिरत बूझा मरमु तु हार ।
सुिच सेवक तु ह राम के रिहत समःत िबकार ॥१०४॥
दोहरा
िस तपोधन जोिगजन सूर िकंनर मुिनबृंद ।
बसिहं तहाँ सुकृती सकल सेविहं िसब सुखकंद ॥१०५॥
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रामचिरतमानस - 49 - बालकांड
दोहरा
जटा मुकुट सुरसिरत िसर लोचन निलन िबसाल ।
नीलकंठ लावन्यिनिध सोह बालिबधु भाल ॥१०६॥
दोहरा
ूभु समरथ सब य िसव सकल कला गुन धाम ॥
जोग यान बैरा य िनिध ूनत कलपत नाम ॥१०७॥
दोहरा
ज नृप तनय त ॄ िकिम नािर िबरहँ मित भोिर ।
दे ख चिरत मिहमा सुनत ॅमित बुि अित मोिर ॥१०८॥
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रामचिरतमानस - 50 - बालकांड
दोहरा
बंदउ पद धिर धरिन िस िबनय करउँ कर जोिर ।
बरनहु रघुबर िबसद जसु ौुित िस ांत िनचोिर ॥१०९॥
दोहरा
बहिर
ु कहहु क नायतन क न्ह जो अचरज राम ।
ूजा सिहत रघुबंसमिन िकिम गवने िनज धाम ॥११०॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 51 - बालकांड
दोहरा
रामकृ पा त पारबित सपनेहुँ तव मन मािहं ।
सोक मोह संदेह ॅम मम िबचार कछु नािहं ॥११२॥
दोहरा
रामकथा सुरधेनु सम सेवत सब सुख दािन ।
सतसमाज सुरलोक सब को न सुनै अस जािन ॥११३॥
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रामचिरतमानस - 52 - बालकांड
दोहरा
कहिह सुनिह अस अधम नर मसे जे मोह िपसाच ।
पाषंड हिर पद िबमुख जानिहं झूठ न साच ॥११४॥
सोरठा
अस िनज हृदयँ िबचािर तजु संसय भजु राम पद ।
सुनु िगिरराज कुमािर ॅम तम रिब कर बचन मम ॥११५॥
सगुनिह अगुनिह निहं कछु भेदा । गाविहं मुिन पुरान बुध बेदा ॥
अगुन अ प अलख अज जोई । भगत ूेम बस सगुन सो होई ॥१॥
जो गुन रिहत सगुन सोइ कैस । जलु िहम उपल िबलग निहं जैस ॥
जासु नाम ॅम ितिमर पतंगा । तेिह िकिम किहअ िबमोह ूसंगा ॥२॥
राम स चदानंद िदनेसा । निहं तहँ मोह िनसा लवलेसा ॥
सहज ूकास प भगवाना । निहं तहँ पुिन िब यान िबहाना ॥३॥
हरष िबषाद यान अ याना । जीव धम अहिमित अिभमाना ॥
राम ॄ यापक जग जाना । परमानन्द परे स पुराना ॥४॥
दोहरा
पु ष ूिस ूकास िनिध ूगट परावर नाथ ॥
रघुकुलमिन मम ःवािम सोइ किह िसवँ नायउ माथ ॥११६॥
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रामचिरतमानस - 53 - बालकांड
दोहरा
रजत सीप महँु मास जिम जथा भानु कर बािर ।
जदिप मृषा ितहँु काल सोइ ॅम न सकइ कोउ टािर ॥११७॥
दोहरा
जेिह इिम गाविह बेद बुध जािह धरिहं मुिन यान ॥
सोइ दसरथ सुत भगत िहत कोसलपित भगवान ॥११८॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 54 - बालकांड
दोहरा
िहँ यँ हरषे कामािर तब संकर सहज सुजान
बहु िबिध उमिह ूसंिस पुिन बोले कृ पािनधान ॥१२०(क)॥
नवान्हपारायन,पहला िवौाम
मासपारायण, चौथा िवौाम
सोरठा
सुनु सुभ कथा भवािन रामचिरतमानस िबमल ।
कहा भुसुंिड बखािन सुना िबहग नायक ग ड ॥१२०(ख)॥
सो संबाद उदार जेिह िबिध भा आग कहब ।
सुनहु राम अवतार चिरत परम सुंदर अनघ ॥१२०(ग)॥
हिर गुन नाम अपार कथा प अगिनत अिमत ।
म िनज मित अनुसार कहउँ उमा सादर सुनहु ॥१२०(घ)॥
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रामचिरतमानस - 55 - बालकांड
दोहरा
असुर मािर थापिहं सुरन्ह राखिहं िनज ौुित सेतु ।
जग िबःतारिहं िबसद जस राम जन्म कर हे तु ॥१२१॥
दोहरा
भए िनसाचर जाइ तेइ महाबीर बलवान ।
कुंभकरन रावण सुभट सुर िबजई जग जान ॥१२२॥
दोहरा
छल किर टारे उ तासु ॄत ूभु सुर कारज क न्ह ॥
जब तेिह जानेउ मरम तब ौाप कोप किर द न्ह ॥१२३॥
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रामचिरतमानस - 56 - बालकांड
दोहरा
बोले िबहिस महे स तब यानी मूढ़ न कोइ ।
जेिह जस रघुपित करिहं जब सो तस तेिह छन होइ ॥१२४(क)॥
सोरठा
कहउँ राम गुन गाथ भर ाज सादर सुनहु ।
भव भंजन रघुनाथ भजु तुलसी तज मान मद ॥१२४(ख)॥
दोहरा
सुख हाड़ लै भाग सठ ःवान िनर ख मृगराज ।
छ िन लेइ जिन जान जड़ ितिम सुरपितिह न लाज ॥१२५॥
दोहरा
सिहत सहाय सभीत अित मािन हािर मन मैन ।
गहे िस जाइ मुिन चरन तब किह सुिठ आरत बैन ॥१२६॥
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रामचिरतमानस - 57 - बालकांड
दोहरा
संभु द न्ह उपदे स िहत निहं नारदिह सोहान ।
भार ाज कौतुक सुनहु हिर इ छा बलवान ॥१२७॥
दोहरा
ख बदन किर बचन मृद ु बोले ौीभगवान ।
तु हरे सुिमरन त िमटिहं मोह मार मद मान ॥१२८॥
सुनु मुिन मोह होइ मन ताक । यान िबराग हृदय निहं जाके ॥
ॄ चरज ॄत रत मितधीरा । तु हिह िक करइ मनोभव पीरा ॥१॥
नारद कहे उ सिहत अिभमाना । कृ पा तु हािर सकल भगवाना ॥
क नािनिध मन दख िबचार । उर अंकुरे उ गरब त भार ॥२॥
बेिग सो मै डािरहउँ उखार । पन हमार सेवक िहतकार ॥
मुिन कर िहत मम कौतुक होई । अविस उपाय करिब मै सोई ॥३॥
तब नारद हिर पद िसर नाई । चले हृदयँ अहिमित अिधकाई ॥
ौीपित िनज माया तब ूेर । सुनहु किठन करनी तेिह केर ॥४॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 58 - बालकांड
दोहरा
आिन दे खाई नारदिह भूपित राजकुमािर ।
कहहु नाथ गुन दोष सब एिह के हृदयँ िबचािर ॥१३०॥
दोहरा
एिह अवसर चािहअ परम सोभा प िबसाल ।
जो िबलोिक र झै कुअँिर तब मेलै जयमाल ॥१३१॥
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रामचिरतमानस - 59 - बालकांड
दोहरा
जेिह िबिध होइिह परम िहत नारद सुनहु तु हार ।
सोइ हम करब न आन कछु बचन न मृषा हमार ॥१३२॥
दोहरा
रहे तहाँ दइु ि गन ते जानिहं सब भेउ ।
िबूबेष दे खत िफरिहं परम कौतुक तेउ ॥१३३॥
दोहरा
सखीं संग लै कुअँिर तब चिल जनु राजमराल ।
दे खत िफरइ मह प सब कर सरोज जयमाल ॥१३४॥
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रामचिरतमानस - 60 - बालकांड
मुिन अित िबकल म हँ मित नाठ । मिन िगिर गई छूिट जनु गाँठ ॥
तब हर गन बोले मुसुकाई । िनज मुख मुकुर िबलोकहु जाई ॥३॥
अस किह दोउ भागे भयँ भार । बदन दख मुिन बािर िनहार ॥
बेषु िबलोिक बोध अित बाढ़ा । ितन्हिह सराप द न्ह अित गाढ़ा ॥४॥
दोहरा
होहु िनसाचर जाइ तु ह कपट पापी दोउ ।
हँ सेहु हमिह सो लेहु फल बहिर
ु हँ सेहु मुिन कोउ ॥१३५॥
दोहरा
असुर सुरा िबष संकरिह आपु रमा मिन चा ।
ःवारथ साधक कुिटल तु ह सदा कपट यवहा ॥१३६॥
दोहरा
ौाप सीस धर हरिष िहयँ ूभु बहु िबनती क न्ह ।
िनज माया कै ूबलता करिष कृ पािनिध ली न्ह ॥१३७॥
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रामचिरतमानस - 61 - बालकांड
दोहरा
बहिबिध
ु मुिनिह ूबोिध ूभु तब भए अंतरधान ॥
स यलोक नारद चले करत राम गुन गान ॥१३८॥
दोहरा
एक कलप एिह हे तु ूभु लीन्ह मनुज अवतार ।
सुर रं जन स जन सुखद हिर भंजन भुिब भार ॥१३९॥
एिह िबिध जनम करम हिर केरे । सुंदर सुखद िबिचऽ घनेरे ॥
कलप कलप ूित ूभु अवतरह ं । चा चिरत नानािबिध करह ं ॥१॥
तब तब कथा मुनीसन्ह गाई । परम पुनीत ूबंध बनाई ॥
िबिबध ूसंग अनूप बखाने । करिहं न सुिन आचरजु सयाने ॥२॥
हिर अनंत हिरकथा अनंता । कहिहं सुनिहं बहिबिध
ु सब संता ॥
रामचंि के चिरत सुहाए । कलप कोिट लिग जािहं न गाए ॥३॥
यह ूसंग म कहा भवानी । हिरमायाँ मोहिहं मुिन यानी ॥
ूभु कौतुक ूनत िहतकार ॥ सेवत सुलभ सकल दख
ु हार ॥४॥
सोरठा
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रामचिरतमानस - 62 - बालकांड
दोहरा
सो म तु ह सन कहउँ सबु सुनु मुनीस मन लाई ॥
राम कथा किल मल हरिन मंगल करिन सुहाइ ॥१४१॥
सोरठा
होइ न िबषय िबराग भवन बसत भा चौथपन ।
हृदयँ बहत
ु दख
ु लाग जनम गयउ हिरभगित िबनु ॥१४२॥
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रामचिरतमानस - 63 - बालकांड
दोहरा
ादस अ छर मंऽ पुिन जपिहं सिहत अनुराग ।
बासुदेव पद पंक ह दं पित मन अित लाग ॥१४३॥
दोहरा
एिह िबिध बीत बरष षट सहस बािर आहार ।
संबत स सह पुिन रहे समीर अधार ॥१४४॥
दोहरा
ौवन सुधा सम बचन सुिन पुलक ूफु लत गात ।
बोले मनु किर दं डवत ूेम न हृदयँ समात ॥१४५॥
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रामचिरतमानस - 64 - बालकांड
दोहरा
नील सरो ह नील मिन नील नीरधर ःयाम ।
लाजिहं तन सोभा िनर ख कोिट कोिट सत काम ॥१४६॥
दोहरा
तिडत िबिनंदक पीत पट उदर रे ख बर तीिन ॥
नािभ मनोहर लेित जनु जमुन भवँर छिब छ िन ॥१४७॥
दोहरा
बोले कृ पािनधान पुिन अित ूसन्न मोिह जािन ।
मागहु बर जोइ भाव मन महादािन अनुमािन ॥१४८॥
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रामचिरतमानस - 65 - बालकांड
सुिन ूभु बचन जोिर जुग पानी । धिर धीरजु बोली मृद ु बानी ॥
नाथ दे ख पद कमल तु हारे । अब पूरे सब काम हमारे ॥१॥
एक लालसा बिड़ उर माह । सुगम अगम किह जात सो नाह ं ॥
तु हिह दे त अित सुगम गोसा । अगम लाग मोिह िनज कृ पना ॥२॥
जथा दिरि िबबुधत पाई । बहु संपित मागत सकुचाई ॥
तासु ूभा जान निहं सोई । तथा हृदयँ मम संसय होई ॥३॥
सो तु ह जानहु अंतरजामी । पुरवहु मोर मनोरथ ःवामी ॥
सकुच िबहाइ मागु नृप मोिह । मोर निहं अदे य कछु तोह ॥४॥
दोहरा
दािन िसरोमिन कृ पािनिध नाथ कहउँ सितभाउ ॥
चाहउँ तु हिह समान सुत ूभु सन कवन दराउ
ु ॥१४९॥
दोहरा
सोइ सुख सोइ गित सोइ भगित सोइ िनज चरन सनेहु ॥
सोइ िबबेक सोइ रहिन ूभु हमिह कृ पा किर दे हु ॥१५०॥
सोरठा
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रामचिरतमानस - 66 - बालकांड
दोहरा
यह इितहास पुनीत अित उमिह कह बृषकेतु ।
भर ाज सुनु अपर पुिन राम जनम कर हे तु ॥१५२॥
दोहरा
जब ूतापरिब भयउ नृप िफर दोहाई दे स ।
ूजा पाल अित बेदिबिध कतहँु नह ं अघ लेस ॥१५३॥
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रामचिरतमानस - 67 - बालकांड
दोहरा
ःवबस िबःव किर बाहबल
ु िनज पुर क न्ह ूबेसु ।
अरथ धरम कामािद सुख सेवइ समयँ नरे सु ॥१५४॥
दोहरा
जँह लिग कहे पुरान ौुित एक एक सब जाग ।
बार सह सह नृप िकए सिहत अनुराग ॥१५५॥
दोहरा
नील मह धर िसखर सम दे ख िबसाल बराहु ।
चपिर चलेउ हय सुटु िक नृप हाँिक न होइ िनबाहु ॥१५६॥
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रामचिरतमानस - 68 - बालकांड
दोहरा
खेद खन्न छुि त तृिषत राजा बा ज समेत ।
खोजत याकुल सिरत सर जल िबनु भयउ अचेत ॥१५७॥
दोहा
भूपित तृिषत िबलोिक तेिहं सरब द न्ह दे खाइ ।
म जन पान समेत हय क न्ह नृपित हरषाइ ॥१५८॥
दोहरा
िनसा घोर ग भीर बन पंथ न सुनहु सुजान ।
बसहु आजु अस जािन तु ह जाएहु होत िबहान ॥१५९(क)॥
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रामचिरतमानस - 69 - बालकांड
दोहरा
कपट बोिर बानी मृदल
ु बोलेउ जुगुित समेत ।
नाम हमार िभखािर अब िनधन रिहत िनकेित ॥१६०॥
दोहरा
अब लिग मोिह न िमलेउ कोउ म न जनावउँ काहु ।
लोकमान्यता अनल सम कर तप कानन दाहु ॥१६१(क)॥
सोरठा
तुलसी दे ख सुबेषु भूलिहं मूढ़ न चतुर नर ।
सुंदर केिकिह पेखु बचन सुधा सम असन अिह ॥१६१(ख)॥
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रामचिरतमानस - 70 - बालकांड
अब ज तात दरावउँ
ु तोह । दा न दोष घटइ अित मोह ॥२॥
जिम जिम तापसु कथइ उदासा । ितिम ितिम नृपिह उपज िबःवासा ॥
दे खा ःवबस कम मन बानी । तब बोला तापस बग यानी ॥३॥
नाम हमार एकतनु भाई । सुिन नृप बोले पुिन िस नाई ॥
कहहु नाम कर अरथ बखानी । मोिह सेवक अित आपन जानी ॥४॥
दोहरा
आिदसृि उपजी जबिहं तब उतपित भै मोिर ।
नाम एकतनु हे तु तेिह दे ह न धर बहोिर ॥१६२॥
सोरठा
सुनु मह स अिस नीित जहँ तहँ नाम न कहिहं नृप ।
मोिह तोिह पर अित ूीित सोइ चतुरता िबचािर तव ॥१६३॥
दोहरा
जरा मरन दख
ु रिहत तनु समर जतै जिन कोउ ।
एकछऽ िरपुह न मिह राज कलप सत होउ ॥१६४॥
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रामचिरतमानस - 71 - बालकांड
दोहरा
एवमःतु किह कपटमुिन बोला कुिटल बहोिर ।
िमलब हमार भुलाब िनज कहहु त हमिह न खोिर ॥१६५॥
दोहरा
होिहं िबू बस कवन िबिध कहहु कृ पा किर सोउ ।
तु ह तज द नदयाल िनज िहतू न दे खउँ कोउँ ॥१६६॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 72 - बालकांड
दोहरा
िनत नूतन ि ज सहस सत बरे हु सिहत पिरवार ।
म तु हरे संकलप लिग िदनिहं किरब जेवनार ॥१६८॥
दोहरा
म आउब सोइ बेषु धिर पिहचानेहु तब मोिह ।
जब एकांत बोलाइ सब कथा सुनाव तोिह ॥१६९॥
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रामचिरतमानस - 73 - बालकांड
जेिह िरपु छय सोइ रचे न्ह उपाऊ । भावी बस न जान कछु राऊ ॥४॥
दोहरा
िरपु तेजसी अकेल अिप लघु किर गिनअ न ताहु ।
अजहँु दे त दख
ु रिब सिसिह िसर अवसेिषत राहु ॥१७०॥
तापस नृप िनज सखिह िनहार । हरिष िमलेउ उिठ भयउ सुखार ॥
िमऽिह किह सब कथा सुनाई । जातुधान बोला सुख पाई ॥१॥
अब साधेउँ िरपु सुनहु नरे सा । ज तु ह क न्ह मोर उपदे सा ॥
पिरहिर सोच रहहु तु ह सोई । िबनु औषध िबआिध िबिध खोई ॥२॥
कुल समेत िरपु मूल बहाई । चौथे िदवस िमलब म आई ॥
तापस नृपिह बहत
ु पिरतोषी । चला महाकपट अितरोषी ॥३॥
भानुूतापिह बा ज समेता । पहँु चाएिस छन माझ िनकेता ॥
नृपिह नािर पिहं सयन कराई । हयगृहँ बाँधेिस बा ज बनाई ॥४॥
दोहरा
राजा के उपरोिहतिह हिर लै गयउ बहोिर ।
लै राखेिस िगिर खोह महँु मायाँ किर मित भोिर ॥१७१॥
दोहरा
नृप हरषेउ पिहचािन गु ॅम बस रहा न चेत ।
बरे तुरत सत सहस बर िबू कुटंु ब समेत ॥१७२॥
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रामचिरतमानस - 74 - बालकांड
दोहरा
बोले िबू सकोप तब निहं कछु क न्ह िबचार ।
जाइ िनसाचर होहु नृप मूढ़ सिहत पिरवार ॥१७३॥
दोहरा
भूपित भावी िमटइ निहं जदिप न दषन
ू तोर ।
िकएँ अन्यथा होइ निहं िबूौाप अित घोर ॥१७४॥
दोहरा
भर ाज सुनु जािह जब होइ िबधाता बाम ।
धूिर मे सम जनक जम तािह यालसम दाम ॥१७५॥
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रामचिरतमानस - 75 - बालकांड
काल पाइ मुिन सुनु सोइ राजा । भयउ िनसाचर सिहत समाजा ॥
दस िसर तािह बीस भुजदं डा । रावन नाम बीर बिरबंडा ॥१॥
भूप अनुज अिरमदन नामा । भयउ सो कुंभकरन बलधामा ॥
सिचव जो रहा धरम िच जासू । भयउ िबमाऽ बंधु लघु तासू ॥२॥
नाम िबभीषन जेिह जग जाना । िबंनुभगत िब यान िनधाना ॥
रहे जे सुत सेवक नृप केरे । भए िनसाचर घोर घनेरे ॥३॥
काम प खल जनस अनेका । कुिटल भयंकर िबगत िबबेका ॥
कृ पा रिहत िहं सक सब पापी । बरिन न जािहं िबःव पिरतापी ॥४॥
दोहरा
उपजे जदिप पुलः यकुल पावन अमल अनूप ।
तदिप मह सुर ौाप बस भए सकल अघ प ॥१७६॥
दोहरा
गए िबभीषन पास पुिन कहे उ पुऽ बर मागु ।
तेिहं मागेउ भगवंत पद कमल अमल अनुरागु ॥१७७॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 76 - बालकांड
दोहरा
कौतुकह ं कैलास पुिन लीन्हे िस जाइ उठाइ ।
मनहँु तौिल िनज बाहबल
ु चला बहत
ु सुख पाइ ॥१७९॥
दोहरा
कुमुख अकंपन कुिलसरद धूमकेतु अितकाय ।
एक एक जग जीित सक ऐसे सुभट िनकाय ॥१८०॥
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रामचिरतमानस - 77 - बालकांड
दोहरा
छुधा छन बलह न सुर सहजेिहं िमिलहिहं आइ ।
तब मािरहउँ िक छािड़हउँ भली भाँित अपनाइ ॥१८१॥
दोहरा
भुजबल िबःव बःय किर राखेिस कोउ न सुतंऽ ।
मंडलीक मिन रावन राज करइ िनज मंऽ ॥१८२(क)॥
दे व ज छ गंधव नर िकंनर नाग कुमािर ।
जीित बर ं िनज बाहबल
ु बहु सुंदर बर नािर ॥१८२(ख)॥
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रामचिरतमानस - 78 - बालकांड
छं द
जप जोग िबरागा तप मख भागा ौवन सुनइ दससीसा ।
आपुनु उिठ धावइ रहै न पावइ धिर सब घालइ खीसा ॥
अस ॅ अचारा भा संसारा धम सुिनअ निह काना ।
तेिह बहिबिध
ु ऽासइ दे स िनकासइ जो कह बेद पुराना ॥
सोरठा
बरिन न जाइ अनीित घोर िनसाचर जो करिहं ।
िहं सा पर अित ूीित ितन्ह के पापिह कविन िमित ॥१८३॥
छं द
सुर मुिन गंधबा िमिल किर सबा गे िबरं िच के लोका ।
सँग गोतनुधार भूिम िबचार परम िबकल भय सोका ॥
ॄ ाँ सब जाना मन अनुमाना मोर कछू न बसाई ।
जा किर त दासी सो अिबनासी हमरे उ तोर सहाई ॥
सोरठा
धरिन धरिह मन धीर कह िबरं िच हिरपद सुिम ।
जानत जन क पीर ूभु भं जिह दा न िबपित ॥१८४॥
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रामचिरतमानस - 79 - बालकांड
दे स काल िदिस िबिदिसहु माह ं । कहहु सो कहाँ जहाँ ूभु नाह ं ॥३॥
अग जगमय सब रिहत िबरागी । ूेम त ूभु ूगटइ जिम आगी ॥
मोर बचन सब के मन माना । साधु साधु किर ॄ बखाना ॥४॥
दोहरा
सुिन िबरं िच मन हरष तन पुलिक नयन बह नीर ।
अःतुित करत जोिर कर सावधान मितधीर ॥१८५॥
छं द
जय जय सुरनायक जन सुखदायक ूनतपाल भगवंता ।
गो ि ज िहतकार जय असुरार िसधुंसुता िूय कंता ॥
पालन सुर धरनी अ त
ु करनी मरम न जानइ कोई ।
जो सहज कृ पाला द नदयाला करउ अनुमह सोई ॥
जय जय अिबनासी सब घट बासी यापक परमानंदा ।
अिबगत गोतीतं चिरत पुनीतं मायारिहत मुकुंदा ॥
जेिह लािग िबरागी अित अनुरागी िबगतमोह मुिनबृंदा ।
िनिस बासर याविहं गुन गन गाविहं जयित स चदानंदा ॥
जेिहं सृि उपाई िऽिबध बनाई संग सहाय न दजा
ू ।
सो करउ अघार िचंत हमार जािनअ भगित न पूजा ॥
जो भव भय भंजन मुिन मन रं जन गंजन िबपित ब था ।
मन बच बम बानी छािड़ सयानी सरन सकल सुर जूथा ॥
सारद ौुित सेषा िरषय असेषा जा कहँु कोउ निह जाना ।
जेिह दन िपआरे बेद पुकारे िवउ सो ौीभगवाना ॥
भव बािरिध मंदर सब िबिध सुंदर गुनमंिदर सुखपुज
ं ा ।
मुिन िस सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा ॥
दोहरा
जािन सभय सुरभूिम सुिन बचन समेत सनेह ।
गगनिगरा गंभीर भइ हरिन सोक संदेह ॥१८६॥
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रामचिरतमानस - 80 - बालकांड
दोहरा
िनज लोकिह िबरं िच गे दे वन्ह इहइ िसखाइ ।
बानर तनु धिर धिर मिह हिर पद सेवहु जाइ ॥१८७॥
दोहरा
कौस यािद नािर िूय सब आचरन पुनीत ।
पित अनुकूल ूेम ढ़ हिर पद कमल िबनीत ॥१८८॥
दोहरा
तब अ ःय भए पावक सकल सभिह समुझाइ ॥
परमानंद मगन नृप हरष न हृदयँ समाइ ॥१८९॥
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रामचिरतमानस - 81 - बालकांड
दोहरा
जोग लगन मह बार ितिथ सकल भए अनुकूल ।
चर अ अचर हषजुत राम जनम सुखमूल ॥१९०॥
दोहरा
सुर समूह िबनती किर पहँु चे िनज िनज धाम ।
जगिनवास ूभु ूगटे अ खल लोक िबौाम ॥१९१॥
छं द
भए ूगट कृ पाला द नदयाला कौस या िहतकार ।
हरिषत महतार मुिन मन हार अ त
ु प िबचार ॥
लोचन अिभरामा तनु घनःयामा िनज आयुध भुज चार ।
भूषन बनमाला नयन िबसाला सोभािसंधु खरार ॥
कह दइु कर जोर अःतुित तोर केिह िबिध कर अनंता ।
माया गुन यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता ॥
क ना सुख सागर सब गुन आगर जेिह गाविहं ौुित संता ।
सो मम िहत लागी जन अनुरागी भयउ ूगट ौीकंता ॥
ॄ ांड िनकाया िनिमत माया रोम रोम ूित बेद कहै ।
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर पित िथर न रहै ॥
उपजा जब याना ूभु मुसकाना चिरत बहत
ु िबिध क न्ह चहै ।
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रामचिरतमानस - 82 - बालकांड
किह कथा सुहाई मातु बुझाई जेिह ूकार सुत ूेम लहै ॥
माता पुिन बोली सो मित डौली तजहु तात यह पा ।
क जै िससुलीला अित िूयसीला यह सुख परम अनूपा ॥
सुिन बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा ।
यह चिरत जे गाविहं हिरपद पाविहं ते न परिहं भवकूपा ॥
दोहरा
िबू धेनु सुर संत िहत लीन्ह मनुज अवतार ।
िनज इ छा िनिमत तनु माया गुन गो पार ॥१९२॥
दोहरा
नंद मुख सराध किर जातकरम सब क न्ह ।
हाटक धेनु बसन मिन नृप िबून्ह कहँ द न्ह ॥१९३॥
दोहरा
गृह गृह बाज बधाव सुभ ूगटे सुषमा कंद ।
हरषवंत सब जहँ तहँ नगर नािर नर बृंद ॥१९४॥
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रामचिरतमानस - 83 - बालकांड
दोहरा
मास िदवस कर िदवस भा मरम न जानइ कोइ ।
रथ समेत रिब थाकेउ िनसा कवन िबिध होइ ॥१९५॥
दोहरा
मन संतोषे सब न्ह के जहँ तहँ दे िह असीस ।
सकल तनय िचर जीवहँु तुलिसदास के ईस ॥१९६॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 84 - बालकांड
दोहरा
यापक ॄ िनरं जन िनगुन िबगत िबनोद ।
सो अज ूेम भगित बस कौस या के गोद ॥१९८॥
दोहरा
सुख संदोह मोहपर यान िगरा गोतीत ।
दं पित परम ूेम बस कर िससुचिरत पुनीत ॥१९९॥
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रामचिरतमानस - 85 - बालकांड
दोहरा
ूेम मगन कौस या िनिस िदन जात न जान ।
सुत सनेह बस माता बालचिरत कर गान ॥२००॥
दोहरा
दे खरावा मातिह िनज अदभुत प अखंड ।
रोम रोम ूित लागे कोिट कोिट ॄ ड
ं ॥२०१॥
अगिनत रिब सिस िसव चतुरानन । बहु िगिर सिरत िसंधु मिह कानन ॥
काल कम गुन यान सुभाऊ । सोउ दे खा जो सुना न काऊ ॥१॥
दे खी माया सब िबिध गाढ़ । अित सभीत जोर कर ठाढ़ ॥
दे खा जीव नचावइ जाह । दे खी भगित जो छोरइ ताह ॥२॥
तन पुलिकत मुख बचन न आवा । नयन मूिद चरनिन िस नावा ॥
िबसमयवंत दे ख महतार । भए बहिर
ु िससु प खरार ॥३॥
अःतुित किर न जाइ भय माना । जगत िपता म सुत किर जाना ॥
हिर जनिन बहिबिध
ु समुझाई । यह जिन कतहँु कहिस सुनु माई ॥४॥
दोहरा
बार बार कौस या िबनय करइ कर जोिर ॥
अब जिन कबहँू यापै ूभु मोिह माया तोिर ॥२०२॥
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रामचिरतमानस - 86 - बालकांड
दोहरा
भोजन करत चपल िचत इत उत अवस पाइ ।
भा ज चले िकलकत मुख दिध ओदन लपटाइ ॥२०३॥
दोहरा
कोसलपुर बासी नर नािर बृ अ बाल ।
ूानहु ते िूय लागत सब कहँु राम कृ पाल ॥२०४॥
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रामचिरतमानस - 87 - बालकांड
दोहरा
यापक अकल अनीह अज िनगुन नाम न प ।
भगत हे तु नाना िबिध करत चिरऽ अनूप ॥२०५॥
दोहरा
बहिबिध
ु करत मनोरथ जात लािग निहं बार ।
किर म जन सरऊ जल गए भूप दरबार ॥२०६॥
दोहरा
दे हु भूप मन हरिषत तजहु मोह अ यान ।
धम सुजस ूभु तु ह क इन्ह कहँ अित क यान ॥२०७॥
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रामचिरतमानस - 88 - बालकांड
दोहरा
स पे भूप िरिषिह सुत बहु िबिध दे इ असीस ।
जननी भवन गए ूभु चले नाइ पद सीस ॥२०८(क)॥
सोरठा
पु षिसंह दोउ बीर हरिष चले मुिन भय हरन ॥
कृ पािसंधु मितधीर अ खल िबःव कारन करन ॥२०८(ख)॥
दोहरा
आयुष सब समिप कै ूभु िनज आौम आिन ।
कंद मूल फल भोजन द न्ह भगित िहत जािन ॥२०९॥
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रामचिरतमानस - 89 - बालकांड
दोहरा
गौतम नािर ौाप बस उपल दे ह धिर धीर ।
चरन कमल रज चाहित कृ पा करहु रघुबीर ॥२१०॥
छं द
परसत पद पावन सोक नसावन ूगट भई तपपुंज सह ।
दे खत रघुनायक जन सुख दायक सनमुख होइ कर जोिर रह ॥
अित ूेम अधीरा पुलक सर रा मुख निहं आवइ बचन कह ।
अितसय बड़भागी चरन न्ह लागी जुगल नयन जलधार बह ॥
धीरजु मन क न्हा ूभु कहँु चीन्हा रघुपित कृ पाँ भगित पाई ।
अित िनमल बानीं अःतुित ठानी यानग य जय रघुराई ॥
मै नािर अपावन ूभु जग पावन रावन िरपु जन सुखदाई ।
राजीव िबलोचन भव भय मोचन पािह पािह सरनिहं आई ॥
मुिन ौाप जो द न्हा अित भल क न्हा परम अनुमह म माना ।
दे खेउँ भिर लोचन हिर भवमोचन इहइ लाभ संकर जाना ॥
िबनती ूभु मोर म मित भोर नाथ न मागउँ बर आना ।
पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना ॥
जेिहं पद सुरसिरता परम पुनीता ूगट भई िसव सीस धर ।
सोइ पद पंकज जेिह पूजत अज मम िसर धरे उ कृ पाल हर ॥
एिह भाँित िसधार गौतम नार बार बार हिर चरन पर ।
जो अित मन भावा सो ब पावा गै पितलोक अनंद भर ॥
दोहरा
अस ूभु द नबंधु हिर कारन रिहत दयाल ।
तुलिसदास सठ तेिह भजु छािड़ कपट जंजाल ॥२११॥
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रामचिरतमानस - 90 - बालकांड
दोहरा
सुमन बािटका बाग बन िबपुल िबहं ग िनवास ।
फूलत फलत सुप लवत सोहत पुर चहँु पास ॥२१२॥
दोहरा
धवल धाम मिन पुरट पट सुघिटत नाना भाँित ।
िसय िनवास सुंदर सदन सोभा िकिम किह जाित ॥२१३॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 91 - बालकांड
दोहरा
ूेम मगन मनु जािन नृपु किर िबबेकु धिर धीर ।
बोलेउ मुिन पद नाइ िस गदगद िगरा गभीर ॥२१५॥
दोहरा
रामु लखनु दोउ बंधुबर प सील बल धाम ।
मख राखेउ सबु सा ख जगु जते असुर संमाम ॥२१६॥
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रामचिरतमानस - 92 - बालकांड
किर पूजा सब िबिध सेवकाई । गयउ राउ गृह िबदा कराई ॥४॥
दोहरा
िरषय संग रघुबंस मिन किर भोजनु िबौामु ।
बैठे ूभु ॅाता सिहत िदवसु रहा भिर जामु ॥२१७॥
दोहरा
जाइ दे खी आवहु नग सुख िनधान दोउ भाइ ।
करहु सुफल सब के नयन सुंदर बदन दे खाइ ॥२१८॥
मुिन पद कमल बंिद दोउ ॅाता । चले लोक लोचन सुख दाता ॥
बालक बृंिद दे ख अित सोभा । लगे संग लोचन मनु लोभा ॥१॥
पीत बसन पिरकर किट भाथा । चा चाप सर सोहत हाथा ॥
तन अनुहरत सुचंदन खोर । ःयामल गौर मनोहर जोर ॥२॥
केहिर कंधर बाहु िबसाला । उर अित िचर नागमिन माला ॥
सुभग सोन सरसी ह लोचन । बदन मयंक तापऽय मोचन ॥३॥
कान न्ह कनक फूल छिब दे ह ं । िचतवत िचतिह चोिर जनु लेह ं ॥
िचतविन चा भृकुिट बर बाँक । ितलक रे खा सोभा जनु चाँक ॥४॥
दोहरा
िचर चौतनीं सुभग िसर मेचक कुंिचत केस ।
नख िसख सुंदर बंधु दोउ सोभा सकल सुदेस ॥२१९॥
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रामचिरतमानस - 93 - बालकांड
दोहरा
बय िकसोर सुषमा सदन ःयाम गौर सुख घाम ।
अंग अंग पर वािरअिहं कोिट कोिट सत काम ॥२२०॥
दोहरा
िबूकाजु किर बंधु दोउ मग मुिनबधू उधािर ।
आए दे खन चापमख सुिन हरषीं सब नािर ॥२२१॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 94 - बालकांड
दोहरा
िहयँ हरषिहं बरषिहं सुमन सुमु ख सुलोचिन बृंद ।
जािहं जहाँ जहँ बंधु दोउ तहँ तहँ परमानंद ॥२२३॥
पुर पूरब िदिस गे दोउ भाई । जहँ धनुमख िहत भूिम बनाई ॥
अित िबःतार चा गच ढार । िबमल बेिदका िचर सँवार ॥१॥
चहँु िदिस कंचन मंच िबसाला । रचे जहाँ बेठिहं मिहपाला ॥
तेिह पाछ समीप चहँु पासा । अपर मंच मंडली िबलासा ॥२॥
कछुक ऊँिच सब भाँित सुहाई । बैठिहं नगर लोग जहँ जाई ॥
ितन्ह के िनकट िबसाल सुहाए । धवल धाम बहबरन
ु बनाए ॥३॥
जहँ बठ दे खिहं सब नार । जथा जोगु िनज कुल अनुहार ॥
पुर बालक किह किह मृद ु बचना । सादर ूभुिह दे खाविहं रचना ॥४॥
दोहरा
सब िससु एिह िमस ूेमबस परिस मनोहर गात ।
तन पुलकिहं अित हरषु िहयँ दे ख दे ख दोउ ॅात ॥२२४॥
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रामचिरतमानस - 95 - बालकांड
किह बात मृद ु मधुर सुहा । िकए िबदा बालक बिरआई ॥४॥
दोहरा
सभय सूेम िबनीत अित सकुच सिहत दोउ भाइ ।
गुर पद पंकज नाइ िसर बैठे आयसु पाइ ॥२२५॥
दोहरा
उठे लखन िनिस िबगत सुिन अ निसखा धुिन कान ॥
गुर त पिहलेिहं जगतपित जागे रामु सुजान ॥२२६॥
दोहरा
बागु तड़ागु िबलोिक ूभु हरषे बंधु समेत ।
परम र य आरामु यहु जो रामिह सुख दे त ॥२२७॥
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रामचिरतमानस - 96 - बालकांड
दोहरा
तासु दसा दे ख स खन्ह पुलक गात जलु नैन ।
कहु कारनु िनज हरष कर पूछिह सब मृद ु बैन ॥२२८॥
दोहरा
सुिमिर सीय नारद बचन उपजी ूीित पुनीत ॥
चिकत िबलोकित सकल िदिस जनु िससु मृगी सभीत ॥२२९॥
कंकन िकंिकिन नूपुर धुिन सुिन । कहत लखन सन रामु हृदयँ गुिन ॥
मानहँु मदन दं द
ु भी
ु द न्ह ॥ मनसा िबःव िबजय कहँ क न्ह ॥१॥
अस किह िफिर िचतए तेिह ओरा । िसय मुख सिस भए नयन चकोरा ॥
भए िबलोचन चा अचंचल । मनहँु सकुिच िनिम तजे िदगंचल ॥२॥
दे ख सीय सोभा सुखु पावा । हृदयँ सराहत बचनु न आवा ॥
जनु िबरं िच सब िनज िनपुनाई । िबरिच िबःव कहँ ूगिट दे खाई ॥३॥
सुंदरता कहँु सुंदर करई । छिबगृहँ द पिसखा जनु बरई ॥
सब उपमा किब रहे जुठार । केिहं पटतर िबदे हकुमार ॥४॥
दोहरा
िसय सोभा िहयँ बरिन ूभु आपिन दसा िबचािर ।
बोले सुिच मन अनुज सन बचन समय अनुहािर ॥२३०॥
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रामचिरतमानस - 97 - बालकांड
दोहरा
करत बतकिह अनुज सन मन िसय प लोभान ।
मुख सरोज मकरं द छिब करइ मधुप इव पान ॥२३१॥
दोहरा
लताभवन त ूगट भे तेिह अवसर दोउ भाइ ।
िनकसे जनु जुग िबमल िबधु जलद पटल िबलगाइ ॥२३२॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 98 - बालकांड
दोहरा
दे खन िमस मृग िबहग त िफरइ बहोिर बहोिर ।
िनर ख िनर ख रघुबीर छिब बाढ़इ ूीित न थोिर ॥२३४॥
दोहरा
पितदे वता सुतीय महँु मातु ूथम तव रे ख ।
मिहमा अिमत न सकिहं किह सहस सारदा सेष ॥२३५॥
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रामचिरतमानस - 99 - बालकांड
नारद बचन सदा सुिच साचा । सो ब िमिलिह जािहं मनु राचा ॥४॥
छं द
मनु जािहं राचेउ िमिलिह सो ब सहज सुंदर साँवरो ।
क ना िनधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥
एिह भाँित गौिर असीस सुिन िसय सिहत िहयँ हरषीं अली ।
तुलसी भवािनिह पू ज पुिन पुिन मुिदत मन मंिदर चली ॥
सोरठा
जािन गौिर अनुकूल िसय िहय हरषु न जाइ किह ।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ॥२३६॥
दोहरा
जनमु िसंधु पुिन बंधु िबषु िदन मलीन सकलंक ।
िसय मुख समता पाव िकिम चंद ु बापुरो रं क ॥२३७॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 100 - बालकांड
दोहरा
सतानंद पद बंिद ूभु बैठे गुर पिहं जाइ ।
चलहु तात मुिन कहे उ तब पठवा जनक बोलाइ ॥२३९॥
दोहरा
किह मृद ु बचन िबनीत ितन्ह बैठारे नर नािर ।
उ म म यम नीच लघु िनज िनज थल अनुहािर ॥२४०॥
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रामचिरतमानस - 101 - बालकांड
डरे कुिटल नृप ूभुिह िनहार । मनहँु भयानक मूरित भार ॥३॥
रहे असुर छल छोिनप बेषा । ितन्ह ूभु ूगट कालसम दे खा ॥
पुरबािसन्ह दे खे दोउ भाई । नरभूषन लोचन सुखदाई ॥४॥
दोहरा
नािर िबलोकिहं हरिष िहयँ िनज िनज िच अनु प ।
जनु सोहत िसंगार धिर मूरित परम अनूप ॥२४१॥
िबदषन्ह
ु ूभु िबराटमय द सा । बहु मुख कर पग लोचन सीसा ॥
जनक जाित अवलोकिहं कैस । सजन सगे िूय लागिहं जैस ॥१॥
सिहत िबदे ह िबलोकिहं रानी । िससु सम ूीित न जाित बखानी ॥
जोिगन्ह परम त वमय भासा । सांत सु सम सहज ूकासा ॥२॥
हिरभगतन्ह दे खे दोउ ॅाता । इ दे व इव सब सुख दाता ॥
रामिह िचतव भायँ जेिह सीया । सो सनेहु सुखु निहं कथनीया ॥३॥
उर अनुभवित न किह सक सोऊ । कवन ूकार कहै किब कोऊ ॥
एिह िबिध रहा जािह जस भाऊ । तेिहं तस दे खेउ कोसलराऊ ॥४॥
दोहरा
राजत राज समाज महँु कोसलराज िकसोर ।
सुंदर ःयामल गौर तन िबःव िबलोचन चोर ॥२४२॥
दोहरा
कुंजर मिन कंठा किलत उर न्ह तुलिसका माल ।
बृषभ कंध केहिर ठविन बल िनिध बाहु िबसाल ॥२४३॥
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रामचिरतमानस - 102 - बालकांड
दोहरा
सब मंचन्ह ते मंचु एक सुंदर िबसद िबसाल ।
मुिन समेत दोउ बंधु तहँ बैठारे मिहपाल ॥२४४॥
सोरठा
सीय िबआहिब राम गरब दिर
ू किर नृपन्ह के ॥
जीित को सक संमाम दसरथ के रन बाँकुरे ॥२४५॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 103 - बालकांड
दोहरा
एिह िबिध उपजै ल छ जब सुंदरता सुख मूल ।
तदिप सकोच समेत किब कहिहं सीय समतूल ॥२४७॥
दोहरा
गुरजन लाज समाजु बड़ दे ख सीय सकुचािन ॥
लािग िबलोकन स खन्ह तन रघुबीरिह उर आिन ॥२४८॥
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रामचिरतमानस - 104 - बालकांड
कह नृप जाइ कहहु पन मोरा । चले भाट िहयँ हरषु न थोरा ॥४॥
दोहरा
बोले बंद बचन बर सुनहु सकल मिहपाल ।
पन िबदे ह कर कहिहं हम भुजा उठाइ िबसाल ॥२४९॥
दोहरा
तमिक धरिहं धनु मूढ़ नृप उठइ न चलिहं लजाइ ।
मनहँु पाइ भट बाहबलु
ु अिधकु अिधकु ग आइ ॥२५०॥
दोहरा
कुअँिर मनोहर िबजय बिड़ क रित अित कमनीय ।
पाविनहार िबरं िच जनु रचेउ न धनु दमनीय ॥२५१॥
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रामचिरतमानस - 105 - बालकांड
दोहरा
किह न सकत रघुबीर डर लगे बचन जनु बान ।
नाइ राम पद कमल िस बोले िगरा ूमान ॥२५२॥
दोहरा
तोर छऽक दं ड जिम तव ूताप बल नाथ ।
ज न कर ूभु पद सपथ कर न धर धनु भाथ ॥२५३॥
दोहरा
उिदत उदयिगिर मंच पर रघुबर बालपतंग ।
िबकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग ॥२५४॥
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रामचिरतमानस - 106 - बालकांड
दोहरा
रामिह ूेम समेत लख स खन्ह समीप बोलाइ ।
सीता मातु सनेह बस बचन कहइ िबलखाइ ॥२५५॥
दोहरा
मंऽ परम लघु जासु बस िबिध हिर हर सुर सब ।
महाम गजराज कहँु बस कर अंकुस खब ॥२५६॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 107 - बालकांड
दोहरा
ूभुिह िचतइ पुिन िचतव मिह राजत लोचन लोल ।
खेलत मनिसज मीन जुग जनु िबधु मंडल डोल ॥२५८॥
दोहरा
लखन लखेउ रघुबंसमिन ताकेउ हर कोदं डु ।
पुलिक गात बोले बचन चरन चािप ॄ ांडु ॥२५९॥
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रामचिरतमानस - 108 - बालकांड
राम बाहबल
ु िसंधु अपा । चहत पा निह कोउ कड़हा ॥४॥
दोहरा
राम िबलोके लोग सब िचऽ िलखे से दे ख ।
िचतई सीय कृ पायतन जानी िबकल िबसेिष ॥२६०॥
छं द
भरे भुवन घोर कठोर रव रिब बा ज तज मारगु चले ।
िच करिहं िद गज डोल मिह अिह कोल कू म कलमले ॥
सुर असुर मुिन कर कान द न्ह सकल िबकल िबचारह ं ।
कोदं ड खंडेउ राम तुलसी जयित बचन उचारह ॥
सोरठा
संकर चापु जहाजु साग रघुबर बाहबलु
ु ।
बूड़ सो सकल समाजु चढ़ा जो ूथमिहं मोह बस ॥२६१॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 109 - बालकांड
दोहरा
संग सखीं सुदंर चतुर गाविहं मंगलचार ।
गवनी बाल मराल गित सुषमा अंग अपार ॥२६३॥
सोरठा
रघुबर उर जयमाल दे ख दे व बिरसिहं सुमन ।
सकुचे सकल भुआल जनु िबलोिक रिब कुमुदगन ॥२६४॥
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रामचिरतमानस - 110 - बालकांड
सखीं कहिहं ूभुपद गहु सीता । करित न चरन परस अित भीता ॥४॥
दोहरा
गौतम ितय गित सुरित किर निहं परसित पग पािन ।
मन िबहसे रघुबंसमिन ूीित अलौिकक जािन ॥२६५॥
दोहरा
दे खहु रामिह नयन भिर तज इिरषा मद ु कोहु ।
लखन रोषु पावकु ूबल जािन सलभ जिन होहु ॥२६६॥
बैनतेय बिल जिम चह कागू । जिम ससु चहै नाग अिर भागू ॥
जिम चह कुसल अकारन कोह । सब संपदा चहै िसविोह ॥१॥
लोभी लोलुप कल क रित चहई । अकलंकता िक कामी लहई ॥
हिर पद िबमुख परम गित चाहा । तस तु हार लालचु नरनाहा ॥२॥
कोलाहलु सुिन सीय सकानी । सखीं लवाइ ग जहँ रानी ॥
रामु सुभायँ चले गु पाह ं । िसय सनेहु बरनत मन माह ं ॥३॥
रािनन्ह सिहत सोचबस सीया । अब ध िबिधिह काह करनीया ॥
भूप बचन सुिन इत उत तकह ं । लखनु राम डर बोिल न सकह ं ॥४॥
दोहरा
अ न नयन भृकुट कुिटल िचतवत नृपन्ह सकोप ।
मनहँु म गजगन िनर ख िसंघिकसोरिह चोप ॥२६७॥
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रामचिरतमानस - 111 - बालकांड
दोहरा
सांत बेषु करनी किठन बरिन न जाइ स प ।
धिर मुिनतनु जनु बीर रसु आयउ जहँ सब भूप ॥२६८॥
दोहरा
बहिर
ु िबलोिक िबदे ह सन कहहु काह अित भीर ॥
पूछत जािन अजान जिम यापेउ कोपु सर र ॥२६९॥
दोहरा
सभय िबलोके लोग सब जािन जानक भी ।
हृदयँ न हरषु िबषाद ु कछु बोले ौीरघुबी ॥२७०॥
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रामचिरतमानस - 112 - बालकांड
दोहरा
रे नृप बालक कालबस बोलत तोिह न सँमार ॥
धनुह सम ितपुरािर धनु िबिदत सकल संसार ॥२७१॥
दोहरा
मातु िपतिह जिन सोचबस करिस मह सिकसोर ।
गभन्ह के अभक दलन परसु मोर अित घोर ॥२७२॥
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रामचिरतमानस - 113 - बालकांड
दोहरा
जो िबलोिक अनुिचत कहे उँ छमहु महामुिन धीर ।
सुिन सरोष भृगुबंसमिन बोले िगरा गभीर ॥२७३॥
कौिसक सुनहु मंद यहु बालकु । कुिटल कालबस िनज कुल घालकु ॥
भानु बंस राकेस कलंकू । िनपट िनरं कुस अबुध असंकू ॥१॥
काल कवलु होइिह छन माह ं । कहउँ पुकािर खोिर मोिह नाह ं ॥
तु ह हटकउ ज चहहु उबारा । किह ूतापु बलु रोषु हमारा ॥२॥
लखन कहे उ मुिन सुजस तु हारा । तु हिह अछत को बरनै पारा ॥
अपने मुँह तु ह आपिन करनी । बार अनेक भाँित बहु बरनी ॥३॥
निहं संतोषु त पुिन कछु कहहू । जिन िरस रोिक दसह
ु दख
ु सहहू ॥
बीरॄती तु ह धीर अछोभा । गार दे त न पावहु सोभा ॥४॥
दोहरा
सूर समर करनी करिहं किह न जनाविहं आपु ।
िब मान रन पाइ िरपु कायर कथिहं ूतापु ॥२७४॥
दोहरा
गािधसूनु कह हृदयँ हँ िस मुिनिह हिरअरइ सूझ ।
अयमय खाँड न ऊखमय अजहँु न बूझ अबूझ ॥२७५॥
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रामचिरतमानस - 114 - बालकांड
दोहरा
लखन उतर आहित
ु सिरस भृगुबर कोपु कृ सानु ।
बढ़त दे ख जल सम बचन बोले रघुकुलभानु ॥२७६॥
दोहरा
लखन कहे उ हँ िस सुनहु मुिन बोधु पाप कर मूल ।
जेिह बस जन अनुिचत करिहं चरिहं िबःव ूितकूल ॥२७७॥
दोहरा
सुिन लिछमन िबहसे बहिर
ु नयन तरे रे राम ।
गुर समीप गवने सकुिच पिरहिर बानी बाम ॥२७८॥
अित िबनीत मृद ु सीतल बानी । बोले रामु जोिर जुग पानी ॥
सुनहु नाथ तु ह सहज सुजाना । बालक बचनु किरअ निहं काना ॥१॥
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रामचिरतमानस - 115 - बालकांड
दोहरा
गभ विहं अविनप रविन सुिन कुठार गित घोर ।
परसु अछत दे खउँ जअत बैर भूपिकसोर ॥२७९॥
दोहरा
परसुरामु तब राम ूित बोले उर अित बोधु ।
संभु सरासनु तोिर सठ करिस हमार ूबोधु ॥२८०॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 116 - बालकांड
दोहरा
बार बार मुिन िबूबर कहा राम सन राम ।
बोले भृगुपित स ष हिस तहँू बंधु सम बाम ॥२८२॥
दोहरा
ज हम िनदरिहं िबू बिद स य सुनहु भृगुनाथ ।
तौ अस को जग सुभटु जेिह भय बस नाविहं माथ ॥२८३॥
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रामचिरतमानस - 117 - बालकांड
दोहरा
जाना राम ूभाउ तब पुलक ूफु लत गात ।
जोिर पािन बोले बचन अदयँ न ूेमु अमात ॥२८४॥
दोहरा
दे वन्ह द न्ह ं दं द
ु भीं
ु ूभु पर बरषिहं फूल ।
हरषे पुर नर नािर सब िमट मोहमय सूल ॥२८५॥
दोहरा
तदिप जाइ तु ह करहु अब जथा बंस यवहा ।
बू झ िबू कुलबृ गुर बेद िबिदत आचा ॥२८६॥
दत
ू अवधपुर पठवहु जाई । आनिहं नृप दसरथिह बोलाई ॥
मुिदत राउ किह भलेिहं कृ पाला । पठए दत
ू बोिल तेिह काला ॥१॥
बहिर
ु महाजन सकल बोलाए । आइ सब न्ह सादर िसर नाए ॥
हाट बाट मंिदर सुरबासा । नग सँवारहु चािरहँु पासा ॥२॥
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रामचिरतमानस - 118 - बालकांड
दोहरा
हिरत मिनन्ह के पऽ फल पदमराग
ु के फूल ।
रचना दे ख िबिचऽ अित मनु िबरं िच कर भूल ॥२८७॥
दोहरा
सौरभ प लव सुभग सुिठ िकए नीलमिन कोिर ॥
हे म बौर मरकत घविर लसत पाटमय डोिर ॥२८८॥
दोहरा
बसइ नगर जेिह ल छ किर कपट नािर बर बेषु ॥
तेिह पुर कै सोभा कहत सकुचिहं सारद सेषु ॥२८९॥
पहँु चे दत
ू राम पुर पावन । हरषे नगर िबलोिक सुहावन ॥
भूप ार ितन्ह खबिर जनाई । दसरथ नृप सुिन िलए बोलाई ॥१॥
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रामचिरतमानस - 119 - बालकांड
दोहरा
कुसल ूानिूय बंधु दोउ अहिहं कहहु केिहं दे स ।
सुिन सनेह साने बचन बाची बहिर
ु नरे स ॥२९०॥
दोहरा
सुनहु मह पित मुकुट मिन तु ह सम धन्य न कोउ ।
रामु लखनु जन्ह के तनय िबःव िबभूषन दोउ ॥२९१॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 120 - बालकांड
दोहरा
तब उिठ भूप बिस कहँु द न्ह पिऽका जाइ ।
कथा सुनाई गुरिह सब सादर दत
ू बोलाइ ॥२९३॥
सुिन बोले गुर अित सुखु पाई । पुन्य पु ष कहँु मिह सुख छाई ॥
जिम सिरता सागर महँु जाह ं । ज िप तािह कामना नाह ं ॥१॥
ितिम सुख संपित िबनिहं बोलाएँ । धरमसील पिहं जािहं सुभाएँ ॥
तु ह गुर िबू धेनु सुर सेबी । तिस पुनीत कौस या दे बी ॥२॥
सुकृती तु ह समान जग माह ं । भयउ न है कोउ होनेउ नाह ं ॥
तु ह ते अिधक पुन्य बड़ काक । राजन राम सिरस सुत जाक ॥३॥
बीर िबनीत धरम ॄत धार । गुन सागर बर बालक चार ॥
तु ह कहँु सब काल क याना । सजहु बरात बजाइ िनसाना ॥४॥
दोहरा
चलहु बेिग सुिन गुर बचन भलेिहं नाथ िस नाइ ।
भूपित गवने भवन तब दतन्ह
ू बासु दे वाइ ॥२९४॥
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रामचिरतमानस - 121 - बालकांड
सोरठा
जाचक िलए हँ कािर द न्ह िनछाविर कोिट िबिध ।
िच जीवहँु सुत चािर चबबित दसर थ के ॥२९५॥
दोहरा
मंगलमय िनज िनज भवन लोगन्ह रचे बनाइ ।
बीथीं सीचीं चतुरसम चौक चा पुराइ ॥२९६॥
दोहरा
सोभा दसरथ भवन कइ को किब बरनै पार ।
जहाँ सकल सुर सीस मिन राम लीन्ह अवतार ॥२९७॥
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रामचिरतमानस - 122 - बालकांड
दोहरा
छरे छबीले छयल सब सूर सुजान नबीन ।
जुग पदचर असवार ूित जे अिसकला ूबीन ॥२९८॥
दोहरा
चिढ़ चिढ़ रथ बाहे र नगर लागी जुरन बरात ।
होत सगुन सुन्दर सबिह जो जेिह कारज जात ॥२९९॥
दोहरा
सब क उर िनभर हरषु पूिरत पुलक सर र ।
कबिहं दे खबे नयन भिर रामु लखनू दोउ बीर ॥३००॥
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रामचिरतमानस - 123 - बालकांड
दोहरा
तेिहं रथ िचर बिस कहँु हरिष चढ़ाइ नरे सु ।
आपु चढ़े उ ःपंदन सुिमिर हर गुर गौिर गनेसु ॥३०१॥
सिहत बिस सोह नृप कैस । सुर गुर संग पुरंदर जैस ॥
किर कुल र ित बेद िबिध राऊ । दे ख सबिह सब भाँित बनाऊ ॥१॥
सुिमिर रामु गुर आयसु पाई । चले मह पित संख बजाई ॥
हरषे िबबुध िबलोिक बराता । बरषिहं सुमन सुमंगल दाता ॥२॥
भयउ कोलाहल हय गय गाजे । योम बरात बाजने बाजे ॥
सुर नर नािर सुमंगल गाई । सरस राग बाजिहं सहनाई ॥३॥
घंट घंिट धुिन बरिन न जाह ं । सरव करिहं पाइक फहराह ं ॥
करिहं िबदषक
ू कौतुक नाना । हास कुसल कल गान सुजाना ॥४॥
दोहरा
तुरग नचाविहं कुँअर बर अकिन मृदंग िनसान ॥
नागर नट िचतविहं चिकत डगिहं न ताल बँधान ॥३०२॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 124 - बालकांड
दोहरा
आवत जािन बरात बर सुिन गहगहे िनसान ।
सज गज रथ पदचर तुरग लेन चले अगवान ॥३०४॥
दोहरा
हरिष परसपर िमलन िहत कछुक चले बगमेल ।
जनु आनंद समुि दइु िमलत िबहाइ सुबेल ॥३०५॥
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रामचिरतमानस - 125 - बालकांड
दोहरा
िसिध सब िसय आयसु अकिन ग जहाँ जनवास ।
िलएँ संपदा सकल सुख सुरपुर भोग िबलास ॥३०६॥
िनज िनज बास िबलोिक बराती । सुर सुख सकल सुलभ सब भाँती ॥
िबभव भेद कछु कोउ न जाना । सकल जनक कर करिहं बखाना ॥१॥
िसय मिहमा रघुनायक जानी । हरषे हृदयँ हे तु पिहचानी ॥
िपतु आगमनु सुनत दोउ भाई । हृदयँ न अित आनंद ु अमाई ॥२॥
सकुचन्ह किह न सकत गु पाह ं । िपतु दरसन लालचु मन माह ं ॥
िबःवािमऽ िबनय बिड़ दे खी । उपजा उर संतोषु िबसेषी ॥३॥
हरिष बंधु दोउ हृदयँ लगाए । पुलक अंग अंबक जल छाए ॥
चले जहाँ दसरथु जनवासे । मनहँु सरोबर तकेउ िपआसे ॥४॥
दोहरा
भूप िबलोके जबिहं मुिन आवत सुतन्ह समेत ।
उठे हरिष सुखिसंधु महँु चले थाह सी लेत ॥३०७॥
दोहरा
पुरजन पिरजन जाितजन जाचक मंऽी मीत ।
िमले जथािबिध सबिह ूभु परम कृ पाल िबनीत ॥३०८॥
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रामचिरतमानस - 126 - बालकांड
दोहरा
रामु सीय सोभा अविध सुकृत अविध दोउ राज ।
जहँ जहँ पुरजन कहिहं अस िमिल नर नािर समाज ॥३०९॥
दोहरा
बारिहं बार सनेह बस जनक बोलाउब सीय ।
लेन आइहिहं बंधु दोउ कोिट काम कमनीय ॥३१०॥
छं द
उपमा न कोउ कह दास तुलसी कतहँु किब कोिबद कह ।
बल िबनय िब ा सील सोभा िसंधु इन्ह से एइ अह ॥
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रामचिरतमानस - 127 - बालकांड
सोरठा
कहिहं परःपर नािर बािर िबलोचन पुलक तन ।
सख सबु करब पुरािर पुन्य पयोिनिध भूप दोउ ॥३११॥
दोहरा
धेनुधूिर बेला िबमल सकल सुमंगल मूल ।
िबून्ह कहे उ िबदे ह सन जािन सगुन अनुकुल ॥३१२॥
दोहरा
भा य िबभव अवधेस कर दे ख दे व ॄ ािद ।
लगे सराहन सहस मुख जािन जनम िनज बािद ॥३१३॥
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रामचिरतमानस - 128 - बालकांड
दे ख जनकपु सुर अनुरागे । िनज िनज लोक सबिहं लघु लागे ॥२॥
िचतविहं चिकत िबिचऽ िबताना । रचना सकल अलौिकक नाना ॥
नगर नािर नर प िनधाना । सुघर सुधरम सुसील सुजाना ॥३॥
ितन्हिह दे ख सब सुर सुरनार ं । भए नखत जनु िबधु उ जआर ं ॥
िबिधिह भयह आचरजु िबसेषी । िनज करनी कछु कतहँु न दे खी ॥४॥
दोहरा
िसवँ समुझाए दे व सब जिन आचरज भुलाहु ।
हृदयँ िबचारहु धीर धिर िसय रघुबीर िबआहु ॥३१४॥
दोहरा
राम पु नख िसख सुभग बारिहं बार िनहािर ।
पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरािर ॥३१५॥
छं द
जनु बा ज बेषु बनाइ मनिसजु राम िहत अित सोहई ।
आपन बय बल प गुन गित सकल भुवन िबमोहई ॥
जगमगत जीनु जराव जोित सुमोित मिन मािनक लगे ।
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रामचिरतमानस - 129 - बालकांड
दोहरा
ूभु मनसिहं लयलीन मनु चलत बा ज छिब पाव ।
भूिषत उड़गन तिड़त घनु जनु बर बरिह नचाव ॥३१६॥
छं द
अित हरषु राजसमाज दहु ु िदिस दं द
ु भीं
ु बाजिहं घनी ।
बरषिहं सुमन सुर हरिष किह जय जयित जय रघुकुलमनी ॥
एिह भाँित जािन बरात आवत बाजने बहु बाजह ं ।
रािन सुआिसिन बोिल पिरछिन हे तु मंगल साजह ं ॥
दोहरा
सज आरती अनेक िबिध मंगल सकल सँवािर ।
चलीं मुिदत पिरछिन करन गजगािमिन बर नािर ॥३१७॥
छं द
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रामचिरतमानस - 130 - बालकांड
दोहरा
जो सुख भा िसय मातु मन दे ख राम बर बेषु ।
सो न सकिहं किह कलप सत सहस सारदा सेषु ॥३१८॥
छं द
बैठािर आसन आरती किर िनर ख ब सुखु पावह ं ॥
मिन बसन भूषन भूिर वारिहं नािर मंगल गावह ं ॥
ॄ ािद सुरबर िबू बेष बनाइ कौतुक दे खह ं ।
अवलोिक रघुकुल कमल रिब छिब सुफल जीवन लेखह ं ॥
दोहरा
नाऊ बार भाट नट राम िनछाविर पाइ ।
मुिदत असीसिहं नाइ िसर हरषु न हृदयँ समाइ ॥३१९॥
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रामचिरतमानस - 131 - बालकांड
छं द
मंडपु िबलोिक िबचीऽ रचनाँ िचरताँ मुिन मन हरे ॥
िनज पािन जनक सुजान सब कहँु आिन िसंघासन धरे ॥
कुल इ सिरस बिस पूजे िबनय किर आिसष लह ।
कौिसकिह पूजत परम ूीित िक र ित तौ न परै कह ॥
दोहरा
बामदे व आिदक िरषय पूजे मुिदत मह स ।
िदए िद य आसन सबिह सब सन लह असीस ॥३२०॥
बहिर
ु क न्ह कोसलपित पूजा । जािन ईस सम भाउ न दजा
ू ॥
क न्ह जोिर कर िबनय बड़ाई । किह िनज भा य िबभव बहताई
ु ॥१॥
पूजे भूपित सकल बराती । समिध सम सादर सब भाँती ॥
आसन उिचत िदए सब काहू । कह काह मूख एक उछाहू ॥२॥
सकल बरात जनक सनमानी । दान मान िबनती बर बानी ॥
िबिध हिर ह िदिसपित िदनराऊ । जे जानिहं रघुबीर ूभाऊ ॥३॥
कपट िबू बर बेष बनाएँ । कौतुक दे खिहं अित सचु पाएँ ॥
पूजे जनक दे व सम जान । िदए सुआसन िबनु पिहचान ॥४॥
छं द
पिहचान को केिह जान सबिहं अपान सुिध भोर भई ।
आनंद कंद ु िबलोिक दलह
ू ु उभय िदिस आनँद मई ॥
सुर लखे राम सुजान पूजे मानिसक आसन दए ।
अवलोिक सीलु सुभाउ ूभु को िबबुध मन ूमुिदत भए ॥
दोहरा
रामचंि मुख चंि छिब लोचन चा चकोर ।
करत पान सादर सकल ूेमु ूमोद ु न थोर ॥३२१॥
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रामचिरतमानस - 132 - बालकांड
छं द
चिल याइ सीतिह सखीं सादर सज सुमंगल भािमनीं ।
नवस साज सुंदर सब म कुंजर गािमनीं ॥
कल गान सुिन मुिन यान यागिहं काम कोिकल लाजह ं ।
मंजीर नूपुर किलत कंकन ताल गती बर बाजह ं ॥
दोहरा
सोहित बिनता बृंद महँु सहज सुहाविन सीय ।
छिब ललना गन म य जनु सुषमा ितय कमनीय ॥३२२॥
छं द
आचा किर गुर गौिर गनपित मुिदत िबू पुजावह ं ।
सुर ूगिट पूजा लेिहं दे िहं असीस अित सुखु पावह ं ॥
मधुपक मंगल ि य जो जेिह समय मुिन मन महँु चह ।
भरे कनक कोपर कलस सो सब िलएिहं पिरचारक रह ॥१॥
दोहरा
होम समय तनु धिर अनलु अित सुख आहित
ु लेिहं ।
िबू बेष धिर बेद सब किह िबबाह िबिध दे िहं ॥३२३॥
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रामचिरतमानस - 133 - बालकांड
छं द
लागे पखारन पाय पंकज ूेम तन पुलकावली ।
नभ नगर गान िनसान जय धुिन उमिग जनु चहँु िदिस चली ॥
जे पद सरोज मनोज अिर उर सर सदै व िबराजह ं ।
जे सकृ त सुिमरत िबमलता मन सकल किल मल भाजह ं ॥१॥
दोहरा
जय धुिन बंद बेद धुिन मंगल गान िनसान ।
सुिन हरषिहं बरषिहं िबबुध सुरत सुमन सुजान ॥३२४॥
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रामचिरतमानस - 134 - बालकांड
छं द
बैठे बरासन रामु जानिक मुिदत मन दसरथु भए ।
तनु पुलक पुिन पुिन दे ख अपन सुकृत सुरत फल नए ॥
भिर भुवन रहा उछाहु राम िबबाहु भा सबह ं कहा ।
केिह भाँित बरिन िसरात रसना एक यहु मंगलु महा ॥१॥
अनु प बर दलिहिन
ु परःपर लख सकुच िहयँ हरषह ं ।
सब मुिदत सुंदरता सराहिहं सुमन सुर गन बरषह ं ॥
सुंदर सुद
ं र बरन्ह सह सब एक मंडप राजह ं ।
जनु जीव उर चािरउ अवःथा िबमुन सिहत िबराजह ं ॥४॥
दोहरा
मुिदत अवधपित सकल सुत बधुन्ह समेत िनहािर ।
जनु पार मिहपाल मिन िबयन्ह सिहत फल चािर ॥३२५॥
जिस रघुबीर याह िबिध बरनी । सकल कुअँर याहे तेिहं करनी ॥
किह न जाइ कछु दाइज भूर । रहा कनक मिन मंडपु पूर ॥१॥
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रामचिरतमानस - 135 - बालकांड
छं द
सनमािन सकल बरात आदर दान िबनय बड़ाइ कै ।
ूमुिदत महा मुिन बृंद बंदे पू ज ूेम लड़ाइ कै ॥
िस नाइ दे व मनाइ सब सन कहत कर संपुट िकएँ ।
सुर साधु चाहत भाउ िसंधु िक तोष जल अंजिल िदएँ ॥१॥
दोहरा
पुिन पुिन रामिह िचतव िसय सकुचित मनु सकुचै न ।
हरत मनोहर मीन छिब ूेम िपआसे नैन ॥३२६॥
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रामचिरतमानस - 136 - बालकांड
छं द
गाथे महामिन मौर मंजुल अंग सब िचत चोरह ं ।
पुर नािर सुर सुंदर ं बरिह िबलोिक सब ितन तोरह ं ॥
मिन बसन भूषन वािर आरित करिहं मंगल गाविहं ।
सुर सुमन बिरसिहं सूत मागध बंिद सुजसु सुनावह ं ॥१॥
दोहरा
सिहत बधूिटन्ह कुअँर सब तब आए िपतु पास ।
सोभा मंगल मोद भिर उमगेउ जनु जनवास ॥३२७॥
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रामचिरतमानस - 137 - बालकांड
धोए जनक अवधपित चरना । सीलु सनेहु जाइ निहं बरना ॥२॥
बहिर
ु राम पद पंकज धोए । जे हर हृदय कमल महँु गोए ॥
तीिनउ भाई राम सम जानी । धोए चरन जनक िनज पानी ॥३॥
आसन उिचत सबिह नृप द न्हे । बोिल सूपकार सब लीन्हे ॥
सादर लगे परन पनवारे । कनक कल मिन पान सँवारे ॥४॥
दोहरा
सूपोदन सुरभी सरिप सुंदर ःवाद ु पुनीत ।
छन महँु सब क प िस गे चतुर सुआर िबनीत ॥३२८॥
पंच कवल किर जेवन लागे । गािर गान सुिन अित अनुरागे ॥
भाँित अनेक परे पकवाने । सुधा सिरस निहं जािहं बखाने ॥१॥
प सन लगे सुआर सुजाना । िबंजन िबिबध नाम को जाना ॥
चािर भाँित भोजन िबिध गाई । एक एक िबिध बरिन न जाई ॥२॥
छरस िचर िबंजन बहु जाती । एक एक रस अगिनत भाँती ॥
जेवँत दे िहं मधुर धुिन गार । लै लै नाम पु ष अ नार ॥३॥
समय सुहाविन गािर िबराजा । हँ सत राउ सुिन सिहत समाजा ॥
एिह िबिध सबह ं भौजनु क न्हा । आदर सिहत आचमनु द न्हा ॥४॥
दोहरा
दे इ पान पूजे जनक दसरथु सिहत समाज ।
जनवासेिह गवने मुिदत सकल भूप िसरताज ॥३२९॥
िनत नूतन मंगल पुर माह ं । िनिमष सिरस िदन जािमिन जाह ं ॥
बड़े भोर भूपितमिन जागे । जाचक गुन गन गावन लागे ॥१॥
दे ख कुअँर बर बधुन्ह समेता । िकिम किह जात मोद ु मन जेता ॥
ूातिबया किर गे गु पाह ं । महाूमोद ु ूेमु मन माह ं ॥२॥
किर ूनाम पूजा कर जोर । बोले िगरा अिमअँ जनु बोर ॥
तु हर कृ पाँ सुनहु मुिनराजा । भयउँ आजु म पूरनकाजा ॥३॥
अब सब िबू बोलाइ गोसा । दे हु धेनु सब भाँित बनाई ॥
सुिन गुर किर मिहपाल बड़ाई । पुिन पठए मुिन बृंद बोलाई ॥४॥
दोहरा
बामदे उ अ दे विरिष बालमीिक जाबािल ।
आए मुिनबर िनकर तब कौिसकािद तपसािल ॥३३०॥
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रामचिरतमानस - 138 - बालकांड
दोहरा
बार बार कौिसक चरन सीसु नाइ कह राउ ।
यह सबु सुखु मुिनराज तव कृ पा कटा छ पसाउ ॥३३१॥
दोहरा
अवधनाथु चाहत चलन भीतर करहु जनाउ ।
भए ूेमबस सिचव सुिन िबू सभासद राउ ॥३३२॥
दोहरा
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रामचिरतमानस - 139 - बालकांड
दोहरा
तेिह अवसर भाइन्ह सिहत रामु भानु कुल केतु ।
चले जनक मंिदर मुिदत िबदा करावन हे तु ॥३३४॥
दोहरा
प िसंधु सब बंधु लख हरिष उठा रिनवासु ।
करिह िनछाविर आरती महा मुिदत मन सासु ॥३३५॥
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रामचिरतमानस - 140 - बालकांड
छं द
किर िबनय िसय रामिह समरपी जोिर कर पुिन पुिन कहै ।
बिल जाँउ तात सुजान तु ह कहँु िबिदत गित सब क अहै ॥
पिरवार पुरजन मोिह राजिह ूानिूय िसय जािनबी ।
तुलसीस सीलु सनेहु लख िनज िकंकर किर मािनबी ॥
सोरठा
तु ह पिरपूरन काम जान िसरोमिन भाविूय ।
जन गुन गाहक राम दोष दलन क नायतन ॥३३६॥
दोहा
ूेमिबबस नर नािर सब स खन्ह सिहत रिनवासु ।
मानहँु क न्ह िबदे हपुर क नाँ िबरहँ िनवासु ॥३३७॥
दोहा
ूेमिबबस पिरवा सबु जािन सुलगन नरे स ।
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रामचिरतमानस - 141 - बालकांड
बहिबिध
ु भूप सुता समुझाई । नािरधरमु कुलर ित िसखाई ॥
दासीं दास िदए बहते
ु रे । सुिच सेवक जे िूय िसय केरे ॥१॥
सीय चलत याकुल पुरबासी । होिहं सगुन सुभ मंगल रासी ॥
भूसुर सिचव समेत समाजा । संग चले पहँु चावन राजा ॥२॥
समय िबलोिक बाजने बाजे । रथ गज बा ज बराितन्ह साजे ॥
दसरथ िबू बोिल सब लीन्हे । दान मान पिरपूरन क न्हे ॥३॥
चरन सरोज धूिर धिर सीसा । मुिदत मह पित पाइ असीसा ॥
सुिमिर गजाननु क न्ह पयाना । मंगलमूल सगुन भए नाना ॥४॥
दोहा
सुर ूसून बरषिह हरिष करिहं अपछरा गान ।
चले अवधपित अवधपुर मुिदत बजाइ िनसान ॥३३९॥
दोहा
कोसलपित समधी सजन सनमाने सब भाँित ।
िमलिन परसपर िबनय अित ूीित न हृदयँ समाित ॥३४०॥
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रामचिरतमानस - 142 - बालकांड
दोहा
नयन िबषय मो कहँु भयउ सो समःत सुख मूल ।
सबइ लाभु जग जीव कहँ भएँ ईसु अनुकुल ॥३४१॥
दोहा
िमले लखन िरपुसूदनिह द न्ह असीस मह स ।
भए परःपर ूेमबस िफिर िफिर नाविहं सीस ॥३४२॥
दोहा
बीच बीच बर बास किर मग लोगन्ह सुख दे त ।
अवध समीप पुनीत िदन पहँु ची आइ जनेत ॥३४३॥
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रामचिरतमानस - 143 - बालकांड
दोहा
िबिबध भाँित मंगल कलस गृह गृह रचे सँवािर ।
सुर ॄ ािद िसहािहं सब रघुबर पुर िनहािर ॥३४४॥
दोहा
िदए दान िबून्ह िबपुल पू ज गनेस पुरार ।
ूमुिदत परम दिरि जनु पाइ पदारथ चािर ॥३४५॥
दोहा
कनक थार भिर मंगल न्ह कमल कर न्ह िलएँ मात ।
चलीं मुिदत पिरछिन करन पुलक प लिवत गात ॥३४६॥
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रामचिरतमानस - 144 - बालकांड
दोहा
होिहं सगुन बरषिहं सुमन सुर दं द
ु भीं
ु बजाइ ।
िबबुध बधू नाचिहं मुिदत मंजुल मंगल गाइ ॥३४७॥
दोहा
एिह िबिध सबह दे त सुखु आए राजदआर
ु ।
मुिदत मातु प छिन करिहं बधुन्ह समेत कुमार ॥३४८॥
दोहा
िनगम नीित कुल र ित किर अरघ पाँवड़े दे त ।
बधुन्ह सिहत सुत पिरिछ सब चलीं लवाइ िनकेत ॥३४९॥
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रामचिरतमानस - 145 - बालकांड
दोहा
एिह सुख ते सत कोिट गुन पाविहं मातु अनंद ु ॥
भाइन्ह सिहत िबआिह घर आए रघुकुलचंद ु ॥३५०(क)॥
लोक रत जननी करिहं बर दलिहिन
ु सकुचािहं ।
मोद ु िबनोद ु िबलोिक बड़ रामु मनिहं मुसकािहं ॥३५०(ख)॥
दोहा
दिहं असीस जोहािर सब गाविहं गुन गन गाथ ।
तब गुर भूसुर सिहत गृहँ गवनु क न्ह नरनाथ ॥३५१॥
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रामचिरतमानस - 146 - बालकांड
दोहा
बधुन्ह समेत कुमार सब रािनन्ह सिहत मह सु ।
पुिन पुिन बंदत गुर चरन दे त असीस मुनीसु ॥३५२॥
दोहा
चले िनसान बजाइ सुर िनज िनज पुर सुख पाइ ।
कहत परसपर राम जसु ूेम न हृदयँ समाइ ॥३५३॥
दोहा
सुतन्ह समेत नहाइ नृप बोिल िबू गुर याित ।
भोजन क न्ह अनेक िबिध घर पंच गइ राित ॥३५४॥
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रामचिरतमानस - 147 - बालकांड
दोहा
लिरका ौिमत उनीद बस सयन करावहु जाइ ।
अस किह गे िबौामगृहँ राम चरन िचतु लाइ ॥३५५॥
भूप बचन सुिन सहज सुहाए । जिरत कनक मिन पलँग डसाए ॥
सुभग सुरिभ पय फेन समाना । कोमल किलत सुपेतीं नाना ॥१॥
उपबरहन बर बरिन न जाह ं । ग सुगंध मिनमंिदर माह ं ॥
रतनद प सुिठ चा चँदोवा । कहत न बनइ जान जेिहं जोवा ॥२॥
सेज िचर रिच रामु उठाए । ूेम समेत पलँग पौढ़ाए ॥
अ या पुिन पुिन भाइन्ह द न्ह । िनज िनज सेज सयन ितन्ह क न्ह ॥३॥
दे ख ःयाम मृद ु मंजुल गाता । कहिहं सूेम बचन सब माता ॥
मारग जात भयाविन भार । केिह िबिध तात ताड़का मार ॥४॥
दोहा
घोर िनसाचर िबकट भट समर गनिहं निहं काहु ॥
मारे सिहत सहाय िकिम खल मार च सुबाहु ॥३५६॥
दोहा
राम ूतोषीं मातु सब किह िबनीत बर बैन ।
सुिमिर संभु गुर िबू पद िकए नीदबस नैन ॥३५७॥
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रामचिरतमानस - 148 - बालकांड
दोहा
क न्ह सौच सब सहज सुिच सिरत पुनीत नहाइ ।
ूातिबया किर तात पिहं आए चािरउ भाइ ॥३५८॥
दोहा
मंगल मोद उछाह िनत जािहं िदवस एिह भाँित ।
उमगी अवध अनंद भिर अिधक अिधक अिधकाित ॥३५९॥
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रामचिरतमानस - 149 - बालकांड
रामु सूेम संग सब भाई । आयसु पाइ िफरे पहँु चाई ॥५॥
दोहा
राम पु भूपित भगित याहु उछाहु अनंद ु ।
जात सराहत मनिहं मन मुिदत गािधकुलचंद ु ॥३६०॥
छं द
िनज िगरा पाविन करन कारन राम जसु तुलसी क ो ।
रघुबीर चिरत अपार बािरिध पा किब कौन ल ो ॥
उपबीत याह उछाह मंगल सुिन जे सादर गावह ं ।
बैदेिह राम ूसाद ते जन सबदा सुखु पावह ं ॥
सोरठा
िसय रघुबीर िबबाहु जे सूेम गाविहं सुनिहं ।
ितन्ह कहँु सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु ॥३६१॥
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